एमपी काडर के चार दर्जन अफसरों पर गिर सकती है गाज
प्रतिनियुक्ति पर हैं सूबे के 70 अफसरान
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। अपने मूल काडर को छोड़कर देश की राजधानी दिल्ली में मलाई चखने वाले अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की अब खैर नहीं है। केंद्र सरकार के कार्मिक विभाग (डीओपीटी) ने इन अधिकारियों की मुश्कें कसना आरंभ कर दिया है। पांच साल का समय प्रतिनियुक्ति के लिए पर्याप्त माना गया है। पांच साल से ज्यादा समय तक पदस्थ रहने वाले अफसरों को अपने मूल काडर में लौटना अनिवार्य कर दिया गया है।
कार्मिक विभाग के आला दर्जे के सूत्रों का कहना है कि अपने आवंटित सूबे के बजाए अधिकारियों को दिल्ली में रहना ज्यादा भा रहा है, इसका कारण राजनैतिक चैसर पर बिछी बिसात को माना जा रहा है। राज्यों अफसरों की कमी होने के बाद भी ये दिल्ली में या तो रूके रहना चाहते हैं या फिर मंत्रालय इन्हें रोकने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं। यह मामला प्रधानमंत्री तक गया और पीएम के साफ निर्देशों के बाद कार्मिक विभाग ने सख्त आदेश जारी कर ही दिए हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार अब पांच साल से अधिक प्रतिनियुक्ति पर रहने वाले अफसरांे के खिलाफ न केवल अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी, वरन् पांच साल से अधिक वाला सेवाकाल उनके कार्यकाल के सेवाकाल में नहीं जोड़ा जाएगा, इतना ही नहीं उनकी वेतनवृद्धि भी रोकी जाकर पेंशन भी कम करने का प्रावधान किया गया है। अगर कोई अफसर पांच साल की अवधि से ज्यादा समय प्रतिनियुक्ति पर काटता है तो इसकी जवाबदेही उसके उच्चाधिकरियों पर आहूत की गई है।
केंद्र के इस सख्त आदेश के बाद अब राज्यों से आए भारतीय प्रशासनिक, पुलिस और वन सेवा के अधिकारियों का बोरिया बिस्तर बंधना तय माना जा रहा है। वहीं दूसरी और देश की नीति निर्धारक सबसे ताकतवर आईएएस लाबी ने इस मामले में प्रधानमंत्री पर दबाव बनाने का मन बना लिया है। माना जा रहा है कि जल्द ही लाबी के आला पदाधिकारियों द्वारा पीएम से मिलकर इन नियमों को शिथिल करने के मसले पर चर्चा की जाएगी।
कार्मिक विभाग के आला दर्जे के सूत्रों का कहना है कि अपने आवंटित सूबे के बजाए अधिकारियों को दिल्ली में रहना ज्यादा भा रहा है, इसका कारण राजनैतिक चैसर पर बिछी बिसात को माना जा रहा है। राज्यों अफसरों की कमी होने के बाद भी ये दिल्ली में या तो रूके रहना चाहते हैं या फिर मंत्रालय इन्हें रोकने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं। यह मामला प्रधानमंत्री तक गया और पीएम के साफ निर्देशों के बाद कार्मिक विभाग ने सख्त आदेश जारी कर ही दिए हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार अब पांच साल से अधिक प्रतिनियुक्ति पर रहने वाले अफसरांे के खिलाफ न केवल अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी, वरन् पांच साल से अधिक वाला सेवाकाल उनके कार्यकाल के सेवाकाल में नहीं जोड़ा जाएगा, इतना ही नहीं उनकी वेतनवृद्धि भी रोकी जाकर पेंशन भी कम करने का प्रावधान किया गया है। अगर कोई अफसर पांच साल की अवधि से ज्यादा समय प्रतिनियुक्ति पर काटता है तो इसकी जवाबदेही उसके उच्चाधिकरियों पर आहूत की गई है।
केंद्र के इस सख्त आदेश के बाद अब राज्यों से आए भारतीय प्रशासनिक, पुलिस और वन सेवा के अधिकारियों का बोरिया बिस्तर बंधना तय माना जा रहा है। वहीं दूसरी और देश की नीति निर्धारक सबसे ताकतवर आईएएस लाबी ने इस मामले में प्रधानमंत्री पर दबाव बनाने का मन बना लिया है। माना जा रहा है कि जल्द ही लाबी के आला पदाधिकारियों द्वारा पीएम से मिलकर इन नियमों को शिथिल करने के मसले पर चर्चा की जाएगी।
छोटा मोटा वल्लभ भवन बन गया था दिल्ली में
2003 में जब उमा भारती के नेतष्त्व में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई तब कांग्रेस की मानसिकता वाले अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों ने खतरे को भांपते हुए सूबे से निकलने में ही भलाई समझी। अपने संपर्कों का लाभ उठाकर अफसरान ने केंद्र में प्रतिनियुक्ति ले ली, ताकि उमा भारती के कोप से बचा जा सके। इस बात को आठ साल बीतने को हैं, पर न तो शिवराज सिंह ने इसकी सुध ली और ना ही केंद्र सरकार ने इन्हें वापस भेजने में कोई दिलचस्पी दिखाई। यही कारण है कि सूबे में अधिकारियों की कमी के चलते ही राज्य स्तर की सेवाओं के अधिकारियों को जिलों में महत्वपूर्ण कमान सौंपी गई है।
यह है लेखा जोखा
केंद्र सरकार के पास अखिल भातीय सेवा के पांच हजार छः सौ नवासी अफसर हैं जिनमें से चार हजार पांच सौ चैंतीस काम कर रहे हैं। केंद्र सरकार के पास इनमें से कुल सात सौ चैदह आईएएस अफसर प्रतिनियुक्ति पर हैं। मध्य प्रदेश के बावन अफसर दिल्ली में प्रतिनियुक्ति पर हैं। इस तरह सवा सात फीसदी भागीदारी है मध्य प्रदेश की केंद्र में आईएएस प्रतिनियुक्ति में और लगभग दस फीसदी सभी अखिल भारतीय सेवाओं में।
आईएएस का हुआ प्रदेश से मोह भंग
भारतीय जनता पार्टी सरकार के मध्य प्रदेश में सत्तारूढ होते ही भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरान का अपने मूल काडर से मोह भंग हो गया है। 2003 के बाद केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने वाले अफसरों की संख्या में विस्फोटक वृद्धि दर्ज की गई है। अधिकतर अफसर कार्यकाल पूरा करने के बाद भी वापस न लौटें इसके लिए जतन कर रहे हैं तो एमपी में रहने वाले अफसर केंद्र में जाने की लाबिंग में जुटे हुए हैं। 87 बैच के प्रवीर कृष्ण और 91 बैच के मनु श्रीवास्तव ने एमपी के सीएस से प्रतिनियुक्ति बढ़ाने का आग्रह किया है। उधर मध्य प्रदेश में बीस जिलों में पुलिस अधीक्षक की कमान राज्य पुलिस सेवा के स्तर के अधिकारियों के कांधों पर है, जिस बारे में शिवराज सरकार कतई संजीदा नहंी दिख रही है।
इन पर गिर सकती है गाज
एमपी काडर के भारतीय प्रषासनिक सेवा में राघवेंद्र सिंह सिरोही, अल्का सिरोही, सुषमा नाथ, के.एम.आचार्य, जेमनि कुमार षर्मा, अजय आचार्य, सुमित बोस, डी.आर.एस.चैधरी, विमल जुल्का, आर,गोपालकृष्णन, स्नेहलता कुूमार, स्वदीप सिंह, लवलीन कक्कड़, राजन कटोच, एंथोनी जे.सी.डिसा, डाॅ.अमर सिंह, अमिता शर्मा, अरूणा शर्मा, डी.के.सामन्तरे, सुरंजना रे, अजय नाथ, जे.एस.माथुर, राघव चन्द्रा, रश्मि शुक्ला शर्मा, एम.गोपालरेड्डी, प्रवीर कृष्ण, गौरी सिंह, आई.सी.पी.केशरी, मनु श्रीवास्तव, प्रमोद अग्रवाल, नीलम शमी राव, ब्ही.एल.कान्ता राव, दीप्ति गौड़ मुखर्जी, पल्लवी जैन, फैज अहमद किदवई, केरेलिन खोंगवार देशमुख।
भारतीय पुलिस सेवा के अफसरान में यशोवर्धन आजाद, रीना मित्रा, विवेक जोहरी, आलोक पटेरिया, सुधीर कुमार सक्सेना, संजीव कुमार सिह, राजीव टंडन, एस.के.पाण्डेय, एस.एल.थौसेन, प्रज्ञा ऋचा श्रीवास्तव, अनन्त कुमार सिंह, मनीश शंकर षर्मा, जयदीप प्रसाद, योगेष देशमुख, सालोमन के.मिंज।
भारतीय वन सेवा के डाॅ.राजेश गोपाल, असित गोपाल और प्रकाश उन्हाले।
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