बुढ़िया के मरने का गम नहीं, गम तो इस बात का
है मौत ने घर देख लिया. . .
(लिमटी खरे)
मच्छर जनित रोग मलेरिया, डेंगू, जल जनित रोग डायरिया, उल्टी दस्त, हैजा, गेस्ट्रोएंट्राईटिस, अमीबाईसिस आदि की चपेट में भगवान शिव की नगरी पूरी तरह से है।
नगर पालिका प्रशासन, लोक स्वास्थ्य
यांत्रिकी व लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की नजरों में मानो कुछ हुआ ही
नहीं है। सभी नीरो के मानिंद चैन की बंसी बजाने में व्यस्त हैं। इनकी बंसी की
सुमधुर तान पर तबले की थाप दे रहे हैं भाजपा सांसद के.डी.देशमुख, कांग्रेस के सांसद बसोरी सिंह मसराम, भाजपा विधायक श्रीमती नीता पटेरिया, श्रीमती शशि ठाकुर और कमल मर्सकोले। इन पांचों जनसेवकों को इस
बात की परवाह नहीं है कि इन्हें जनता ने जनादेश देकर लोकसभा और विधानसभा में भेजा
है। इनकी ज्यादा नहीं तो कम से कम एक प्रतिशत तो जवाबदेही बनती है जनता के प्रति।
अफसोस सांसद विधायक अपनी जवाबदेही भूल चुके हैं। सांसद के.डी.देशमुख और विधायक
श्रीमती नीता पटेरिया के क्षेत्र में जिला मुख्यालय आता है। शहर में डेंगू फैलने
की खबरें हैं एक व्यक्ति के मलेरिया से मरने की खबर है, पर कर्तव्यनिष्ठ सांसद और संवदेनशील विधायक की कर्तव्यनिष्ठा
और संवेदनशीलता का अंदाजा लगाईए कि दोनों ने एक बार भी प्रभावित वार्ड का भ्रमण
करने की जहमत नहीं उठाई है।
श्रीमती नीता पटेरिया के पति डॉ.एच.पी.पटेरिया जिला मलेरिया अधिकारी हैं, और सालों से सिवनी में पदस्थ हैं। वहीं लखनादौन विधायक
श्रीमती शशि ठाकुर के पति डॉ.वाय.एस.ठाकुर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी
हैं। दोनों ही भाजपा की विधायक हैं, के.ड़ी.देशमुख भी
भाजपा के हैं, नगर पालिका अध्यक्ष भी भारतीय जनता
पार्टी के ही हैं और आगामी विधानसभा के चुनावों में सिवनी सीट के प्रबल दावेदार भी
माने जा रहे हैं। भाजपा संगठन भी शतुर्मुग बना बैठा है। अपने कार्यकर्ता भले ही वे
सांसद विधायक या नगर पालिका अध्यक्ष हों, पर कार्यवाही
करने से गुरेज कर रहा है संगठन, इसका तातपर्य यह
है कि शहर में फैली इस तरह की अराजकता में संगठन की मौन सहमति है। अब यह बात
प्रदेश या देश के भाजपा के आला लीडरान् को सोचना है कि कभी कांग्रेस के गढ़ रहे
सिवनी में कांग्रेस के एक ‘विशेष क्षत्रप‘ की मेहरबानी से अपना राज कायम करने वाली भाजपा अब अपने इन
सांसद विधायक और नगर पालिका अध्यक्ष एवं संगठन के ढुल मुल रवैए के चलते नागरिकों
को अपने खिलाफ करती जा रही है। आने वाले चुनावों में भाजपा को अगर करारी शिकस्त
मिले तो इसके लिए संगठन का नकारात्मक रवैया ही प्रमुख तौर पर जिम्मेदार माना जा
सकता है।
सिवनी में लोग नारकीय जीवन जीने पर मजबूर हैं। लोगों को पीने तक को साफ
पानी नहीं मिल पा रहा है। जगह जगह गंदगी के ढेर लगे हैं। अस्पताल में लोगों के साथ
जानवरों से बदतर व्यवहार किया जा रहा है। पैसा ना होने पर अस्पताल से मरीजों को
भगा दिया जाता है। पैंशनर्स को दवाएं नहीं मिल पा रही हैं। जो थोड़ी बहुत दवाएं मिल
भी रहीं हैं तो दवा इस तरह से दी जा रहीं हैं मानो अस्पताल के कर्मचारी पैंशनर्स
को भीख दे रहे हैं। यह सब हो रहा है जिला चिकित्सालय के सिविल सर्जन डॉ.सत्य
नारायण सोनी की आंखों के सामने, जिन पर आपरेशन के
पहले बेहोश करने के एवज में पैसे लेने के हजारों संगीन आरोप हैं। दो दो विधायकों
के पति जिला चिकित्सालय में पदस्थ हैं, फिर अस्पताल में
इस तरह की अराजकता! क्या भाजपा संगठन को यह दिखाई नहीं दे रहा है? क्या भाजपा ने जिला संगठन की बागडोर किसी धृतराष्ट्र के हाथों
सौंप दी है, जो धर्म अधर्म में भेद नहीं कर पा
रहे हैं। कार्यकर्ता प्रेम (चाहे वह सांसद विधायक या पालिका अध्यक्ष हों) में अंधे
होकर संगठन प्रमुख धृतराष्ट्र बनकर हस्तिनापुर (सिवनी) में अर्धम होता देख रहे
हैं। वैसे राजनीति की एक लाईन में कही जाने वाली परिभाषा है -‘‘जिस नीति से राज हासिल हो वह राजनीति हैै।‘‘ किन्तु सियासत में रियाया का ध्यान रखना बेहद आवश्यक होता है।
सिवनी के लोग पहले से ही निकम्मे और नपुंसक नगर पालिका प्रशासन के कारण
नारकीय जीवन जी रहे थे वह क्या कम था, जो अब मलेरिया और
डेंगू ‘दूबरे पर दो अषाढ़‘ के मानिंद आ खड़ा
हुआ है। नगर पालिका ने साल भर साफ सफाई का ध्यान नहीं रखा है, साल भर पालिका की फागिंग मशीन धूल खाती रही, पर इसके लिए तेल और दवा की मद् में लाखों रूपए निकाल लिए गए
हैं यह बात उतनी ही सच है जितना कि दिन और रात। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राजिक अकील
सहित कांग्रेस के 12 पार्षद क्या
जनता की नजरों से नजरें मिलाकर इस बात को कह पाएंगे कि फागिंग मशीन की मद में
निकाली गई राशि के बजट प्रस्ताव का उन्होंने विरोध किया था? जाहिर है नहीं किया गया था विरोध, क्योंकि पालिका में ‘अली बाबा‘ के चालीस चोरंों में कांग्रेस के पार्षदों का भी समावेश है, जो समय समय पर पालिका अध्यक्ष को आंखें दिखाकर अपना उल्लू सीधा
करते आए हैं। क्या कांग्रेस के पार्षद अपने दिल पर हाथ रखकर कहने का साहस कर
पाएंगे कि जनता की सेवा का बीड़ा उठाने के एवज में वे पालिका में ठेकेदारी नहीं कर
रहे हैं। नाम किसी का काम किसी का की तर्ज पर पालिका के सौ फीसदी काम पार्षदों
द्वारा ही करवाए जा रहे हैं, फिर सैंया भए
कोतवाल की तर्ज पर गुणवत्ता विहीन काम का भी पूरा भुगतान कर दिया जाता है। नगर
पालिका में खुली लूट मची है कोई देखने वाला नहीं है।
यही आलम विज्ञापनों का है। नगर पालिका द्वारा मीडिया के सामने विज्ञापन की
रोटी डाल दी जाती है। किसकी दरें कितनी हैं, इस बात से पालिका
को लेना देना नहीं है। पालिका अध्यक्ष द्वारा विज्ञापनों का प्रलोभन देकर मीडिया
से मनमर्जी का काम करवाने का दावा भी किया जाता है। सार्वजनिक स्थानों पर मोबाईल
लगाकर ‘फलां खबर छाप देना, उसकी . . . . .
कर देना,
अरे उसको मत छापना, हां विज्ञापन भिजवा रहे हैं, सर तक लाद देंगे विज्ञापन से मेरे भाई,‘ जैसे जुमले पालिका अध्यक्ष के मुंह से सुनने को मिल जाते हैं।
मीडिया भी विज्ञापनों के पीछे भागकर अपनी नैतिकता खोता जा रहा है। पालिका अध्यक्ष
द्वारा समाचार पत्रों को ‘रोटेशन‘ के हिसाब से विज्ञापन देने की बात कही जाती है, पर ‘रोटेशन‘ का मतलब शायद ‘कमीशन‘ से है। कहा जा रहा है कि जो अखबार पालिका को कमीशन देता है
उसे सबसे ज्यादा विज्ञापन मिलते हैं। इन बातों में सच्चाई कितनी है यह तो पालिका
अध्यक्ष ही जाने पर अगर कोई सूचना के अधिकार में समाचार पत्रों की डीएवीपी, सीपीआर एमपी की दरें और पालिका द्वारा किए गए भुगतान की दरें
निकलवा ले तो पालिका में एक बहुत बड़ा विज्ञापन घोटाला भी सामने आ सकता है। सूचना
के अधिकार एक्टिविस्ट दादू निखलेंद्र नाथ सिंह द्वारा पूर्व में आरटीआई में
निकलवाई गई जानकारी में ऐसे ऐसे समाचार पत्रों को विज्ञापन जारी किए गए हैं जो
भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक कार्यालय में या तो पंजीकृत नहीं हैं, या फिर दो साल की अवधि में स्थाई नहीं करवाए जाने पर डी ब्लाक
हो चुके हैं। इसमें कुछ विज्ञापन तो समाचार पत्र वितरण एजेंसी को जारी किए गए हैं, जो दांतों तले उंगली दबाने के लिए पर्याप्त माने जा सकते हैं।
बहरहाल, शहर में डेंगू का कहर जोरों पर है।
डेंगू और मलेरिया जैसे खतरनाक और जानलेवा रोगों के मामले में संजीदा होने के बजाए
नगर पालिका परिषद ‘कमीशन‘ के चक्कर में आकण्ठ डूबी है तो स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण
विभाग की नजर एनआरएचएम के ‘छीछड़ों‘ पर है। दोनों ही एक दूसरे पर कीचड़ उछालकर अपनी अपनी जवाबदेही
से बचना चाह रहे हैं, जो निंदनीय है।
राजधानी दिल्ली में डेंगू का कहर किसी से छिपा नहीं है। दिल्ली में स्वास्थ्य
विभाग के बजाए इसकी कमान एनडीएमसी और डीएमसी यानी वहां की नगर निगम द्वारा संभाली
जाती है। सिवनी में स्थिति उलट है निकम्मी नगर पालिका के प्रतिनिधि कमीशन के गंदे
धंधे में उलझे हैं और मजबूरन स्वास्थ्य विभाग को कमान संभालना पड़ रहा है। एमसीडी
द्वारा मीडिया को रोज मेल, फेक्स के जरिए यह
बताया जाता है कि कितने घरों में एकत्र पानी की जांच की गई?, कहां कहां कौन से मच्छर का लार्वा मिला?, क्या समझाईश दी गई?, कितना जुर्माना
किया गया?,
कितनी रक्त पट्टिकाएं बनीं?, कितने पॉजिटिव मरीज मिले? आदि, पर सिवनी मेें तो
मानो नगर पालिका परिषद का मूल काम नागरिकों की सेवा के स्थान पर पैसा बटोरना हो
गया है। लोग तो यह कहने से नहीं चूक रहे हैं कि पालिका की जेसीवी मशीन खराब है
उसके सुधारने में ही साढ़े तीन लाख रूपए का एस्टीमेट बनवा दिया गया है। बारिश के
मौसम में उसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है पर वह भी कमीशन के चक्कर में खराब ही पड़ी
है, वरना पालिका के कर्णधार तो जेसीवी से पैसा सकेलते (खींचते)!
पिछले साल गोपालगंज के करीब सारसडोल में एक युवक को डेंगू से प्रभावित
पाया गया था, वह नागपुर का रहने वाला था एवं बाद
में उसकी मौत हो गई थी। इस साल चार मरीजों में से दो को डेंगू होने की पुष्टि
स्वास्थ्य विभाग ने 30 जुलाई को की है।
इसके उपरांत तीन दिन से स्वास्थ्य और पलिका प्रशासन मौन साधे हुए है कि डेंगू
अभियान में उसने क्या किया है? डेंगू के लिए
जिम्मेदार एडीज मच्छर का लार्वा मिलना सिवनी के लिए खतरे का संकेत है। डेंगू का
प्रकोप ठण्ड के मौसम में बेहद तेज हो जाता है उस समय इस पर काबू पानी आसान नहीं
होता है। डेंगू से निपटने के लिए प्रशिक्षित कर्मियों के दल की आवश्यक्ता है। जब
सिवनी में आम बुखार के लिए मरीज दर दर भटकता है तो भला उसे डेंगू जैसे जानलेवा रोग
से निपटने के लिए सरकारी इमदाद कहां से मिल पाएगी?
बहुत पुरानी कहावत यहां चरितार्थ होती दिख रही है। कहते हैं किसी गांव में
सब अजर अमर थे, किसी को मृत्यु नहीं आई थी, एक दिन अचानक वहां एक उमर दराज महिला मर गई तो गांव का गांव
बोल उठा -‘‘बुढ़िया के मरने का गम नहीं! गम तो इस बात का है कि मौत ने घर
देख लिया।‘‘
यही हाल डेंगू का है, चार मरीजों को डेंगू हुआ है उनके खून के प्लेटलेट्स कम होंगे, नागपुर या अन्य जगहों पर वे ईलाज करवाकर स्वस्थ्य होकर वापस आ
जाएंगे, पर गम तो इस बात का ही रहेगा कि अब डेंगू के मच्छर ने सिवनी
का घर देख लिया है।