गुरुवार, 11 जुलाई 2013

तपस्या का अर्थ इच्छाओं पर नियंत्रण: आचार्यश्री

तपस्या का अर्थ इच्छाओं पर नियंत्रण: आचार्यश्री

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। पूज्यपाद विद्यासागर जी महाराज द्वारा आज आयोजित एक विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि तपस्या का अर्थ अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करना है। सद्विचारों के साथ सभी के कल्याण की कामना लेकर हमारे द्वारा किया जाने वाला अनुष्ठान हमें आत्मबोध कराने में सहायक होता है। कषाय के रहते हम आत्म स्वरूप की अनुभूति नहीं कर सकते।
महाराज ने एक उदाहरण के माध्यम से अपनी बात को समझाते हुए कहा कि एक व्यवसायी थ जो भगवान से यही प्रार्थना कर रहा था कि 15 दिन वर्षा न हो। ऐसा हो जाने पर गोदाम में रखा उसका सारा माल बिक जायेगा और वह फायदे में रहेगा। इसके विपरीत एक दूसरा व्यक्ति भगवान से प्रार्थना करता है कि हे प्रभु समय समय पर आवश्यकता के अनुरूप वर्षा होती रहे ताकि पर्याप्त अन्न उपजेे और पृथ्वी के सभी जीव जंतु और पेड़ पौधे हरे-भरे और संतुष्ट हों।
पहले व्यक्ति की प्रार्थना स्वार्थ भरी है, और ऐसी प्रार्थना करने वाला आत्मबोध की अनुभूति नहीं कर सकता, और न ही परमात्मा को प्राप्त हो सकता है। जबकि सभी के कल्याण की कामना करने वाला व्यक्ति न सिर्फ संतुष्ट और धन धान्य से परिपूर्ण होता है, बल्कि आत्मबोध के साथ ही वह परमात्मा की अनुभूति भी कर लेता है।
महाराजश्री ने कहा कि भगवत् स्वरूप पाने की क्षमता प्रत्येक व्यक्ति में होती है। कहने को हम अपने आपको मानव कहते हैं लेकिन वास्तव में हम मानव कब बनते हैं। मस्तिष्क, आंख, नाक, मंुह, हाथ-पैर से युक्त यह शरीर हमारा आकार है, यह हमारा स्वरूप नहीं है। स्वरूप तो भीतर छुपा हुआ है जो दिखाई नहीं देता है। इसे देखने के लिये हमें अपने स्वार्थ, अपना अभिमान, छोड़कर धर्म का अनुशरण करना पड़ता है। धर्म सभी के कल्याण के लिये है, स्वयं के कल्याण के लिये किया गया धर्म स्वार्थ की श्रेणी में आ जाता है।
अतः आप सभी निःस्वार्थ भाव से सभी के कल्याण की कामना लेकर आत्म तथ्य की अनुभूति हेतु अग्रसर हों आज हम आप सबसे इतना ही कहेंगे। प्रवचन के पश्चात महाराजश्री नागपुर की ओर गमन कर गये हैं।

मिल रहा है लिपिक हड़ताल को जमकर समर्थन

मिल रहा है लिपिक हड़ताल को जमकर समर्थन

(जितेश अवधवाल)

सिवनी (साई)। लिपिक वर्गीय कर्मचारियों की हड़ताल आज 7वें दिन भी सफलतापूर्वक जारी रही। जिसमे भारी संख्या मे लिपिकों की उपस्थिति रही।
म.प्र.लिपिक वर्गीय शासकीय कर्मचारी संघ जिला सिवनी के प्रचार सचिव मनीष जैन ने जिलाधक्ष पी.आर.गुप्ता के हवाले से बताया है कि, जिला शाखा सिवनी के म.प्र.अधिकारी कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति/म.प्र.अधिकारी कर्मचारी अध्यक्षीय मण्डल एवं म.प्र.तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ ने संयुक्त रूप से हड़ताली पंडाल मे उपस्थित होकर संयुक्त हस्ताक्षरित पत्र जारी कर लिपिकों की इस हड़ताल का पूर्ण समर्थन किया है। सांथ ही म.प्र.शासन से अनुरोध किया है कि वर्षों से लंबित लिपिक वर्गीय कर्मचारियों की जायज मांगों का तत्काल निराकरण कर समस्या का समाधान करने का कष्ट करेंगें।
हड़ताल के पंडाल मे सिवनी के एम.के.अमरोदिया अध्यक्ष म.प्र.राज्य कर्मचारी संघ, महेन्द्र पण्डया अध्यक्ष म.प्र.तृतीय वर्ग शास.कर्म.संघ, सूरज नागेश्वर अध्यक्ष म.प्र.लघु वेतन कर्म.संघ, सुरेश दुबे अध्यक्ष म.प्र.शिक्षक कांग्रेस, विजय शुक्ला अध्यक्ष म.प्र.शिक्षक संघ, अरूण सैनी अध्यक्ष म.प्र.कर्मचारी कांग्रेस, विपनेंश जैन अध्यक्ष, महफूज खान कार्यकारी अध्यक्ष व शमसुन्निशा महिला प्रमुख म.प्र.राज्य अध्यापक संघ, जयपाल धुर्वे अध्यक्ष म.प्र.पटवारी संघ, टीकाराम बघेल अध्यक्ष म.प्र.स्वास्थ्य कर्म.संघ, समीर वर्मा अध्यक्ष म,प्र,वन कर्म.संघ, टी.आर.वर्मा अध्यक्ष म.प्र.डिप्लोमा इन्जी.एसो., जमुना सनोड़िया अध्यक्ष पशुचिकित्सा क्षेत्र अधि.संघ, कैलाश रूनिझा अध्यक्ष म.प्र.हैण्डपंप टैक्नि.संघ एवं म.प्र.अ.जा.जन.जाति कर्म.संघ के अध्यक्ष शामिल रहे।

अपराध की अंधी सुरंग में सिवनी का युवा!

अपराध की अंधी सुरंग में सिवनी का युवा!

(लिमटी खरे)

सिवनी जिला एक समय में शांति का टापू माना जाता था। कहा जाता है कि एक समय था जब सरकारी नुमाईंदे जिनकी सिवनी पदस्थापना होती थी वह सिवनी में महज छः माह ही बिताने के उपरांत यह सोच लेता था कि सिवनी में ही बसा जाए, क्योंकि सिवनी में आपसी सौहाद्र, भाईचारा और शांति उसके लंबे जीवन के लिए वाकई सुकून दे सकती है।
कालांतर में नब्बे के दशक के आगाज के साथ ही सिवनी में अपराधिक तत्वों ने दस्तक दी। सिवनी में अपराध का ग्राफ शनैः शनैः तेज गति से बढ़ता ही चला गया। दरअसल राजनैतिक संरक्षण के चलते आपराधिक तत्वों के हौसले बुलंदी पर आए और लोगों का जीना मुहाल हो गया।
इक्कीसवीं सदी के आगाज के साथ ही सिवनी में जुंआ, सट्टा, विशेषकर क्रिकेट का सट्टा सर चढ़कर बोलने लगा। जंगलों में जुंए की फड़ जमने लगी, गौकशी के लिए गौवंश का निर्यात जोरों पर हुआ, क्रिकेट में भी सट्टे ने लोगों के घरों को बर्बाद कर दिया, शराब का प्रचलन जमकर हो गया। कुल मिलाकर सिवनी जिले में अमन चैन पूरी तरह समाप्त ही प्रतीत होने लगा।
सिवनी में एक के बाद एक हाईटेक क्रिकेट सट्टा पकड़ाए गए, पुलिस ने इनकी मश्कें कसीं, फिर भी वर्तमान में क्रिकेट का सट्टा चरम पर ही कहा जा रहा है। कम समय में ज्यादा पैसा कमाने की चाह में सिवनी के युवा क्रिकेट के सट्टे के मकड़जाल में उलझकर रह गए हैं।
यही आलम जुंए का है। जंगलों में जुंए की फड़ें जम रही हैं। वहां खेलने वालों को सारी सुविधाएं भी दिए जाने की खबरें हैं। कहते हैं जुंए में जो जीता वह जुंआ खिलाने वाले को नाल देता है और हारने वाले के लिए स्पाट फाईनेंस की सुविधा है सो अलग। कहा जाता है कि महाजनी ब्याज दर से कई गुना ज्यादा ब्याज दर पर स्पाट फाईनेंस की सुविधा भी है।
बीते दिवस भाजयुमो के एक कार्यकर्ता को गोलियों से भून दिया गया, जिससे शहर दहल गया। पुलिस ने इस केस को सुलझाने का दावा किया है। इसमें तीन आरोपी अभी फरार हैं। अपनी पीठ ठोंकने वाली पुलिस द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि आरोपी बबलू सरदार को कार में बिठाकर फलां घर ले गया जहां से वह मोटर सायकल से घटना स्थल पहुंचा।
क्या यह सिवनी पुलिस की कार्यप्रणाली है जो खुद को ही आईना दिखाने के लिए पर्याप्त कही जा सकती है। इसके पहले मिशन स्कूल में हुई घटना में बबलू सरदार फरार बताया जा रहा है। पुलिस का खुफिया तंत्र कैसा है कि फरार आरोपी खुद ही अपने घर जाता है और फिर मोटर सायकल पर बैठकर एक जघन्य हत्या जैसे अपराध में शामिल होकर अंजाम देता है?
कहा जा रहा है कि उक्त आरोपी फरारी के दौरान तीन दिन तक जिला चिकित्सालय में उपचार हेतु भर्ती रहा! कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि अगर पुलिस के कुछ मुलाजिमों के मोबाईल फोन के इन दिनों के काल रिकार्ड निकाल लिए जाएं तो अफसर दांतों तले उंगली दबा लेंगे। इन बातों में कितनी सच्चाई है यह नहीं कहा जा सकता है, और यह देखना पुलिस के आला अधिकारियों की जांच का विषय है।
गत दिवस पुलिस ने जिन आठ लोगों को इस हत्याकाण्ड में पकड़ा है, उनमें से सभी की आयु लगभग 20 से 25 साल के बीच है, जो चिंता का विषय है। हमें यह सोचना आवश्यक है कि आखिर हम सिवनी के युवाओं को किस रास्ते पर धकेल रहे हैं। जिस उमर में युवाओं के सर पर पढ़ाई का भूत सवार होना चाहिए उस आयु में युवा आखिर कैसे माउजर और हथियार लेकर घूम रहे हैं?
आखिर क्या वजह है कि इन युवाओं के पालकों को भी इनके भविष्य की चिंता नहीं सता रही है? एक दशक पहले जब ये बच्चे रहे होंगे तब इनके पालकों ने निश्चित तौर पर यही सोचा होगा कि आगे चलकर ये शहर के जिम्मेदार नागरिक बनेंगे! पर आज का परिदृश्य कुछ और ही नजर आ रहा है।
शहर के जिम्मेदार नागरिक बनने के बजाए इनमें से अधिकांश कम समय में ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने की चाहत मन में पालते दिख रहे हैं। इनमें से अधिकांश राजनैतिक तौर पर किसी ना किसी को माईबाप बनाए हुए हैं। इसका तातपर्य यह हुआ कि राजनैतिक तौर पर सक्रिय साहेबान भी सिवनी को बिहार बनाने पर ही अमादा हैं। कोई जनसेवक बनने की चाह मन में रख रहा है और कमर में रिवाल्वर टांगे घूम रहा है तो कोई अवैध कट्टों को खिलौने की तरह उपयोग करने वालों के सर पर अपना हाथ रखे हुए है!
मोबाईल और इंटरनेट के युग के सकारात्मक परिणाम तो हैं पर युवा पीढ़ी इनके नकारात्मक परिणामों की ओर बढ़ती दिख रही है। माता पिता की चोरी से युवा वर्ग अपने न जानने वाले किसी साथी से भी घंटो बतियाते रहते हैं। अंत में यह रिश्ता अवैध शारीरिक संबंधों में तब्दील हो जाता है। फिर आरंभ होता है युवती को ब्लेकमेल करने का सिलसिला, अपनी इज्जत को बचाने के चक्कर में किशोरियां तबाह हो जाती हैं। ऐसे एक नहीं, अनेकों वाक्ये शहर की फिजां में तैर रहे हैं।
आज हमें ही सोचना होगा, सिवनी के हर प्रौढ़ और उमर दराज व्यक्ति को सोचना ही होगा कि आखिर क्या वजह है कि युवा पीढ़ी पढ़ाई लिखाई से दूर भागकर हाथ में हथियार उठाने को फैशन मानने लगी है। आज समाज को इस दिशा में सोचना अत्यावश्यक है, वरना सिवनी के युवा जिस अंधेरी सुरंग में तेजी से दौड़ लगा रहे हैं, उसका दूसरा मुहाना बंद है। इस तरह की दौड़ की परिणिति बीच बीच में इस तरह के हत्याकांड के रूप में सामने आए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
यह वाकई बेहद संवेदनशील मामला है। इसके लिए समाज को ही आगे आना होगा। सामाजिक तौर पर ही नैतिक पतन के क्षरण को रोकने की बात होना चाहिए। सांसद विधायक सहित सभी जनसेवक और जनसेवक बनने का सपना देखने वालों को भी यह सोचना आवश्यक है कि इस तरह के कारनामो को सियासी प्रश्रय न दिया जाए। आखिर उनके बच्चे भी कल जवां होंगे और वे भी इसी परिवेश में ही पलेंगे तब उनका क्या हाल होगा यह बात भी उन्हें ध्यान में रखना अहम ही है।

सिवनी बालाघाट मार्ग की दुर्दशा!

सिवनी बालाघाट मार्ग की दुर्दशा!

(शरद खरे)

सिवनी से बालाघाट होकर गोंदिया फिर रायपुर जाने वाला मार्ग छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र को मध्य प्रदेश से जोड़ता है। इस मार्ग पर आवागमन का भारी दबाव है। इस मार्ग से होकर व्यापारिक व्यवसायिक माल लेकर चलने वाले वाहनों की खासी तादाद है। वैसे छत्तीसगढ़ से मध्य प्रदेश होकर अन्य प्रदेशों को जाने वाले वाहन मण्डला जिले की छिल्पी घाटी का प्रयोग भी करते हैं।
सिवनी से बालाघाट मार्ग लंबे समय से जर्जर हालत में रहा है। सालों बाद इस मार्ग की रंगत बदली, और यह ना केवल मोटरेबल हुआ वरन् इस मार्ग पर दो पहिया से लेकर दस चक्का वाहन फर्राटे भरते नजर आए। सिवनी से बालाघाट की दूरी महज 90 किलोमीटर है, पर इसे पाटने में पहले चार से पांच घंटे लग जाया करते थे।
मार्ग के निर्माण के उपरांत बस से बालाघाट पहुंचने में महज दो से ढाई घंटे ही लग रहे थे। अचानक ही हिर्री नदी का पुल टूट गया। वैकल्पिक व्यवस्था के बतौर इस मार्ग पर नदी में एक छोटा अस्थाई रपटा बना दिया गया। इस रपटे ने गर्मी भर साथ दिया किन्तु बारिश आते ही समस्या जस की तस हो गई।
पिछले साल भोपाल से आए जांच दल ने इस पुल को वाहनों के लिए असुरक्षित बताकर बंद करवा दिया था। दिसंबर माह में पुल को पूरी तरह ढहा दिया गया था। पुल ध्वस्त होते ही इसके समीप एक विचलन मार्ग बनाया गया था, जिससे आवागमन कुछ हद तक सुचारू हो सका।
जनवरी माह में यह कहा जा रहा था कि इस साल बारिश के पहले ही इस पुल को तैयार कर दिया जाएगा। बारिश आ गई पर बात को सच नहीं कर पाई सरकार। विचलन मार्ग को भी बारिश की पहली फुहार सहन नहीं कर पाई और वह भी बह गया। वैकल्पिक तौर पर मंडी काचना, केकड़ई होकर लोग आना जाना कर रहे हैं।
यह मार्ग भारी वाहनों या यातायात के अधिक दबाव को सहने की स्थिति में कतई नहीं है। इस मार्ग की हालत बहुत ही जर्जर थी जो बारिश में अत्यंत बुरी स्थिति में आ चुका है। इस मार्ग पर से निकलने वाले वाहन कीचड़ में आए दिन फंस रहे हैं जिससे जाम की स्थिति निर्मित हो रही है।
इस मार्ग के निर्माण की जवाबदेही कलकत्ता की एमबीएल कंपनी को दी गई थी। निर्माण कंपनी को ही मार्ग के रखरखाव की जवाबदेही भी सौंपी गई थी। इस कंपनी के कारिंदों को इस बात की कतई चिंता नहीं दिख रही है कि इस मार्ग का निर्माण पूरी तरह होकर आवागमन सुव्यवथित हो जाए।
इस मार्ग में सबसे बड़ी बात तो यह है कि जब इसका ठेका दिया गया था तब क्या लोक निर्माण विभाग के सेतु अनुभाग के सरकारी नुमाईंदे सो रहे थे। जब यह पुल जर्जर था तो इसका निर्माण भी मार्ग के निर्माण के साथ क्यों नहीं करवाया गया? आखिर क्या वजह है कि इसके विस्तृत प्राक्कलन बनाते वक्त ब्रितानी शासन में बने इस पुल को शामिल नहीं किया जाकर इसकी अनदेखी की गई थी?
आज सिवनी से बालाघाट आवागमन बाधित है, इस मार्ग पर बाकायदा टोल टैक्स वसूला जा रहा है, क्या वाहन मालिक या यात्री अपना समय व्यर्थ गंवाने के एवज में टोल टैक्स दे रहे हैं? इसकी जवाबदेही किस पर आहूत होती है? क्या सिवनी जिले के विधायक विशेषकर बरघाट विधानसभा के विधायक कमल मर्सकोले इस संबंध में विधानसभा के आहूत सत्र में किसी की जवाबदेही तय करने की मांग उठाएंगे या फिर सदा की ही भांति अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़े बैठे रहेंगे?
इस मार्ग पर पुल आखिर क्यों नहीं बनाया गया यह शोध का ही विषय माना जा सकता है। जब इस सड़क के निर्माण का ठेका हुआ तब इस पुल की क्यों और किन परिस्थितियों में अनदेखी की गई है यह सोचना और जवाबदेही निर्धारित करना सरकार का काम है, इससे इस सड़क से होकर गुजरने वाले यात्रियों को कुछ लेना देना नहीं है।
जिला प्रशासन को चाहिए कि वह तत्काल लोक निर्माण विभाग के आला अधिकारियों को पत्र लिखकर इस मार्ग पर टोल वसूली को स्थगित करवाए क्योंकि जब सड़क पर सिवनी से बालाघाट तक निर्विध्न यात्रा ही संभव नहीं है तो फिर टोल किस बात का? इसके लिए निर्माण कंपनी को ही कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए।

वैसे जिला प्रशासन से यह अपेक्षा भी है कि वह यात्रियों को वैकल्पिक मार्ग की व्यवस्था कर बालाघाट जिला प्रशासन से सामंजस्य स्थापित कर रूटीन की सिर्फ वैध यात्री बसों के अलावा अन्य भारी वाहनों को बालाघाट से वारासिवनी कटंगी के रास्ते सिवनी आने के लिए बाध्य करने की व्यवस्था सुनिश्चित करे। इससे इस मार्ग पर यातायात का दबाव भी कम होगा और छोटे वाहन चालकों के साथ ही साथ यात्री बसें भी बिना किसी विध्न के गंतव्य तक पहुंच सकेंगी।