तपस्या का अर्थ इच्छाओं
पर नियंत्रण: आचार्यश्री
(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)।
पूज्यपाद विद्यासागर जी महाराज द्वारा आज आयोजित एक विशाल धर्मसभा को संबोधित करते
हुए कहा कि तपस्या का अर्थ अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करना है। सद्विचारों के साथ
सभी के कल्याण की कामना लेकर हमारे द्वारा किया जाने वाला अनुष्ठान हमें आत्मबोध
कराने में सहायक होता है। कषाय के रहते हम आत्म स्वरूप की अनुभूति नहीं कर सकते।
महाराज ने एक
उदाहरण के माध्यम से अपनी बात को समझाते हुए कहा कि एक व्यवसायी थ जो भगवान से यही
प्रार्थना कर रहा था कि 15 दिन वर्षा न हो। ऐसा हो जाने पर गोदाम में रखा उसका सारा माल
बिक जायेगा और वह फायदे में रहेगा। इसके विपरीत एक दूसरा व्यक्ति भगवान से
प्रार्थना करता है कि हे प्रभु समय समय पर आवश्यकता के अनुरूप वर्षा होती रहे ताकि
पर्याप्त अन्न उपजेे और पृथ्वी के सभी जीव जंतु और पेड़ पौधे हरे-भरे और संतुष्ट
हों।
पहले व्यक्ति की
प्रार्थना स्वार्थ भरी है, और ऐसी प्रार्थना करने वाला आत्मबोध की अनुभूति नहीं कर सकता, और न ही परमात्मा
को प्राप्त हो सकता है। जबकि सभी के कल्याण की कामना करने वाला व्यक्ति न सिर्फ
संतुष्ट और धन धान्य से परिपूर्ण होता है, बल्कि आत्मबोध के साथ ही वह परमात्मा की
अनुभूति भी कर लेता है।
महाराजश्री ने कहा
कि भगवत् स्वरूप पाने की क्षमता प्रत्येक व्यक्ति में होती है। कहने को हम अपने
आपको मानव कहते हैं लेकिन वास्तव में हम मानव कब बनते हैं। मस्तिष्क, आंख, नाक, मंुह, हाथ-पैर से युक्त यह
शरीर हमारा आकार है,
यह हमारा स्वरूप नहीं है। स्वरूप तो भीतर छुपा हुआ है जो
दिखाई नहीं देता है। इसे देखने के लिये हमें अपने स्वार्थ, अपना अभिमान, छोड़कर धर्म का
अनुशरण करना पड़ता है। धर्म सभी के कल्याण के लिये है, स्वयं के कल्याण के
लिये किया गया धर्म स्वार्थ की श्रेणी में आ जाता है।
अतः आप सभी निःस्वार्थ भाव से सभी के कल्याण की कामना लेकर आत्म तथ्य की
अनुभूति हेतु अग्रसर हों आज हम आप सबसे इतना ही कहेंगे। प्रवचन के पश्चात
महाराजश्री नागपुर की ओर गमन कर गये हैं।
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