शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010

सियासी जादूगर के जाल में भाजपा

सियासी जादूगर कमल नाथ के जाल में उलझे भाजपा के कर्णधार
 
(लिमटी खरे)

मध्य प्रदेश भाजपा के तीखे तेवरों के बाद प्रदेश सरकार और केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के बीच रार बढ़ती ही जा रही है। भाजपा के मुख्यमंत्री और मंत्रियों के केंद्रीय मंत्रियांे विशेषकर कमल नाथ के गुणगान के बाद संगठन ने इस मामले को गंभीरता से लिया और नेशनल हाईवे के मामलों में केंद्र को घेरना आरंभ कर दिया है। भाजपा के चरणबद्ध आंदोलन के आगाज ने सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं, इसका कारण केंद्रीय मंत्रियांे और मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार के बीच आपसी समन्वय को ही माना जा रहा है। भले ही संगठन इस बात को लेकर खासा चिंतित हो कि 2003 में दस साल के दिग्विजयी शासन को उसने सड़क, बिजली और पानी के मामले को भुनाकर मध्य प्रदेश का ताज पाया हो, किन्तु पिछले सात सालों में प्रदेश के राष्ट्रीय राजमार्गों की दुर्दशा ने जनता के मन में भाजपा के प्रति एक असंतोष को पनपने की भूमि तैयार कर ही दी है। लोगों का कहना है कि जब वे वाहन खरीदते हैं, तभी उनके द्वारा रोड़ टेक्स की अदायगी कर दी जाती है वह भी लाईफ टाईम, तब जगह जगह टोल टेक्स की वसूली का क्या ओचित्य है। सड़क पर चलने का कर तो एक बार एक मुश्त जमा हो ही चुका है, फिर उसी मद में दुबारा वसूली क्यों और कैसे? फिर जब 2003 से अब तक स्वर्णिम चतुर्भुज और नार्थ साउथ, ईस्ट वेस्ट कारीडोर के लिए पेट्रोल डीजल पर वाहन चालकों से एक रूपए सेस वसूला जा रहा है, तब उन्ही वाहन चालकों से दुबारा टोल टेक्स वसूली को कहां तक न्याय संगत ठहराया जा सकता है?

‘‘सियासी जादूगर‘‘ एवं भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के पक्ष मंे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और सूबे के लोक कर्म मंत्री नागेंद्र सिंह ने पिछले माहों में खासा तराना बजाया। मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार सियासी जादूगर की शान में बज रहे इस मनमोहक तरन्नुम में सब कुछ भूल बैठी और केंद्र के द्वारा राज्य की उपेक्षा की राष्ट्रीय भाजपा की चीख पुकार ने भी उसकी नींद में खलल नहीं डाला। भाजपा मंहगाई और मध्य प्रदेश के साथ होने वाले अन्याय को लेकर केंद्र सरकार को कोस रही थी, उधर भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों द्वारा केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री के पक्ष में बयानबाजी की जा रही थी। भाजपा की नेशनल बाडी के विरोध और सरकार के पक्ष के बयानांे पर नेशनल मीडिया के सामने मुख्यमंत्री स्वयं निरूत्तर थे।

हो सकता है जब यह बात भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के कानों में डाली गई हो तब भाजपा के नेताओं के कान खड़े हुए हों, कि मध्य प्रदेश सरकार और केंद्र के कुछ मंत्रियों के बीच अघोषित परोक्ष समझौते केंद्रीय मंत्रियों द्वारा ही मीडिया के समक्ष लाए जा रहे हों और उन्होंने सरकार पर लगाम कसने अपनी मध्य प्रदेश इकाई को इस बात को गंभीरता से लेने की बात कही हो। संभवतः यही कारण है कि भाजपा के प्रदेश पदाधिकारियों के सामने इस बात को रेखांकित किया गया। जब यह बात प्रदेश पदाधिकारियों के सामने आई तब प्रदेश भाजपा ने नेशनल हाईवे के मामले में केंद्र को आड़े हाथों लेने का फैसला लिया।
 
मध्य प्रदेश से होकर गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों के रखरखाव हेतु केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्रालय द्वारा हाथ खींच लिए जाने के आरोप के साथ ही मध्य प्रदेश भाजपा द्वारा भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के खिलाफ सड़कों पर उतरने की बात कही जा रही है। भूतल परिवहन मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का दावा है कि मध्य प्रदेश सरकार द्वारा नेशनल हाईवे के संधारण के प्रस्तावों को महालेखाकार लेखा एवं हकदारी ग्वालियर के माध्यम से केंद्र को भेजना था, वह अभी तक नही भेजे गए हैं, कुछ प्रस्ताव केंद्र को प्राप्त भी हुए थे किन्तु त्रुटिपूर्ण होने के चलते केंद्र ने इन्हें नामंजूर कर दिया था। सूत्रों का आरोप है कि मध्य प्रदेश के नेशनल हाईवे के रखरखाव के लिए केंद्र सरकार से आने वाली भारी भरकम रकम में पिछले नौ सालों के रिकार्ड में जबर्दस्त गड़बड़झाला है। केंद्र सरकार को प्रस्ताव न भेजकर मध्य प्रदेश ने अपने ही खजाने में तकरीबन तीस करोड़ रूपए की चपत लगा ली है।
 
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव वैसे तो 2013 के अंत तक निर्धारित हैं, किन्तु कांग्रेस नीत केंद्र सरकार के कदमताल देखकर भाजपा को भय सताने लगा है कि अगर किसी कीमत पर मध्यावधि चुनाव की नौबत आई तो प्रदेश की सत्ता भाजपा के हाथों से सियासत की मलाई रेत के ढेर की तरह फिसलने में ढेर नहीं लगने वाली। केंद्रीय भाजपा द्वारा पांच चरणों में कराए एक सर्वे की चर्चाएं भी इन दिनों सियासी हल्कों में गुलजार हो रही हैं, जिसमें आज की स्थिति में चुनाव होने की दशा में भाजपा को महज 80 सीटों पर ही संतोष करना पड़ सकता है। कांग्रेस बिना कुछ करे ही सैकड़ा पार करने की स्थिति में है। बिजली के मामले में तो आज की स्थिति पूर्व के कांग्रेस के शासनकाल से बहुत बेहतर कही जा सकती है, किन्तु सड़कों की दुर्दशा के कारण भाजपा माईनस में जाती जा रही है। विशेषकर नेशनल हाईवे की दुर्दशा को देखकर राहगीर और वाहन चालक दोनों ही मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार को पानी पी पी कर कोस रहे हैं।
 
मध्य प्रदेश में सड़कों का मामला बहुत ही संवेदनशील हो रहा है। सड़कों विशेषकर नेशनल हाईवे की स्थिति बहुत ही दयनीय होती जा रही है। संधारण के अभाव में राष्ट्रीय राजमार्ग गढ़ढों और पोखरों की सड़क में तब्दील हो गए हैं। एक तरफ नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) और लोक कर्म विभाग के नेशनल हाईवे डिवीजन्स के माध्यम से राष्ट्रीय राजमार्गों का संधारण करने की बात केंद्र सरकार द्वारा की जाती है, किन्तु इसमें भी अनेक पेंच सामने आ रहे हैं।
 
अव्वल तो यह कि पीडब्लूडी के एनएच डिवीजन में पदस्थ अधिकारी और कर्मचारी मूलतः मध्य प्रदेश लोक निर्माण विभाग के ही मुलाजिम हैं, जिनके वेतन भत्ते और अन्य स्थापना व्यय का जिम्मा प्रदेश सरकार के कांधों पर ही आहूत होता है। अगर केंद्र सरकार से राष्ट्रीय राजमार्गों के संधारण की मद में राशि प्रदान नहीं की जाती है तो यह अतिरिक्त भार प्रदेश की भाजपा सरकार के कंधों पर ही आता है। जनसेवकों, मंत्रियों और नौकरशाहों की विलासिता पूर्ण जीवनशैली और फिजूलखर्ची के चलते प्रदेश सरकार की माली हालत बहुत ही नाजुक दौर से गुजर रही है, जिसके चलते प्रदेश सरकार इस स्थिति में नहीं प्रतीत हो रही है कि वह इस जवाबदारी का निर्वहन कर सके।
 
इसके अलावा केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्रालय के नए विंग के तौर पर अस्तित्व में आया एनएचएआई बिना बाराती के दूल्हा की भूमिका में है, अर्थात एनएचएआई के पास अपना कोई अमला नहीं है। केंद्र सरकार के भूतल परिवहन मंत्रालय द्वारा इसका गठन अवश्य ही कर दिया गया है, पर इसके लिए जरूरी महकमे की तैनाती के मामले में वह पूरी तरह मौन साधे बैठा है। मूलतः एनएचएआई की स्थापना राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के दौरान अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्रित्वकाल की महात्वाकांक्षी परियोजना ‘स्वर्णिम चतुर्भुज‘ और इसके अंग ‘उत्तर दक्षिण एवं पूर्व पश्चिम गलियारे‘ के निर्माण के लिए की गई थी। दोनों ही काम लगभग लगभग पूरे होने को हैं, इसलिए अब एनएचएआई के लिए नए काम की तलाश आरंभ कर दी गई है।
 
कहा जा रहा है कि भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ चाह रहे हैं कि राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण और संधारण का जिम्मा एनएचएआई को सौंप दिया जाए। इस मामले का सबसे आश्चर्य जनक पहलू यह है कि एनएचएआई के पास भारत गणराज्य में किसी भी सूबे में एसा अमला नहीं है जो नए राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण या रखरखाव की महती जवाबदारी उठा सके। बिना किसी ठोस कार्ययोजना के एनएचएआई को इसकी जवाबदारी देना किसी भी दृष्टिकोण से उचित कतई नहीं कहा जा सकता है।
 
बहरहाल कल तक केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ की तारीफों में कशीदे गढ़ने वाले मध्य प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री नागेंद्र सिंह को अब अचानक (संगठन के कड़े रूख के उपरांत) दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई है। अब उन्हें भान हुआ है कि सबसे बड़े ‘‘सियासी जादूगर‘‘ कमल नाथ ने उन्हें अब तक जो सपने दिखाए थे, वे महज छलावा ही थे। सियासत के अखाड़े के स्वयंभू अपराजित अजेय (1997 में उपचुनाव में सुंदर लाल पटवा के हाथों जबर्दस्त पटकनी खाने को छोड़कर) योद्धा कमल नाथ ने एक ही धोबी पाट में प्रदेश की भाजपा सरकार के मंत्रियों को धूल चटवा दी है। अपने पत्र में नागेंद्र सिंह लिखते हैं कि प्रदेश से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्गो का रखरखाव पूरी तरह एनएचएआई के हवाले कर दिया जाए या फिर इसके संधारण का काम पूरी तरह से मध्य प्रदेश सरकार को सौंप दिया जाए।
 
वैसे नागेंद्र सिंह की पीड़ा जायज है। कमल नाथ को लिखे पत्र में उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा न तो मई 2010 में केंद्र को भेजे गए राष्ट्रीय राजमार्गों के प्रस्तावों को मंजूरी दी जा रही है, और न ही केंद्र द्वारा खुद ही उसका संधारण किया जा रहा है, नतीजतन ये राजमार्ग बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। नागें्रद सिंह को चाहिए कि वे इस बात को भी जनता के सामने लाएं कि उन्होंने लोक कर्म मंत्री रहते हुए मध्य प्रदेश की किन किन सड़कों को राष्ट्रीय राजमार्ग में तब्दील करने के प्रस्ताव कंेद्र को भेजे थे।
 
क्या कारण था कि बहुत ही कम यातायात दबाव वाले एवं कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र जिला छिंदवाड़ा से गुजरने वाले नरसिंहपुर, हर्रई, सिंगोड़ी, छिंदवाड़ा, उमरानाला, सौंसर, सावनेर, नागपुर मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग मंे तब्दील करने का प्रस्ताव उनके द्वारा केंद्र सरकार को भेजा गया था? जिस प्रस्ताव पर योजना आयोग ने अपना अडंगा लगा दिया है। सियासी जादूगर कमल नाथ ने एक एसा तीर चलाया था, जिसमें भाजपा के कुशाग्र बुद्धि के धनी समझे जाने वाले जनसेवक उलझकर रह गए हैं। राज्य की अनेक सड़कों को राष्ट्रीय राजमाग में तब्दील कराने का प्रस्ताव भेजकर प्रदेश सरकार ने इन सड़कों का संधारण बंद कर दिया था।
 
राज्य सरकार को लगने लगा था कि ये सड़कें जल्द ही राष्ट्रीय राजमार्ग में तब्दील हो जाएंगी और फिर इनके रखरखाव या निर्माण का सरदर्द केंद्र के भरोसे ही होगा, जिससे इसमें व्यय होने वाले धन से राज्य सरकार पूरी तरह मुक्त होगी। वस्तुतः एसा हुआ नहीं, ये सड़कें राष्ट्रीय राजमार्ग में तब्दील नहीं हुई और आज भी ये प्रदेश सरकार की संपत्ति ही हैं। इतना ही नहीं दीगर राष्ट्रीय राजमार्गों का संधारण भी केंद्र द्वारा नही किए जाने से, संधारण के अभाव में इन सड़कों के धुर्रे पूरी तरह से उड़ चुके हैं। आम जनता को इस बात से कोई लेना देना नहीं है कि ये सड़कंे किसके स्वामित्व में हैं, वह तो राज्य से गुजरने वाली हर सड़क की दुर्दशा के लिए राज्य सरकार को ही पूरी तरह दोषी मानती है, भले ही केंद्र सरकार द्वारा इसका पैसा नहीं दिया जा रहा हो।
 
सड़कों बदहाली पर जनता के गुस्से को देखकर भाजपा की शिवराज सिंह के नेतृत्व वाली सरकार बुरी तरह खौफजदा साफ दिखाई दे रही है। यही कारण है कि केंद्र सरकार को घेरने के लिए वह अब राष्ट्रीय राजमार्गों पर जगह जगह नोटिस बोर्ड लगाने का मन बना रही है, जिसमें इस बात का उल्लेख होगा कि इन सड़कों की बदहाली के लिए राज्य की भारतीय जनता पार्टी की सरकार कतई जवाबदार नही है। सूबे की सरकार मान रही होगी कि एसा करके कम से कम इन मार्गों पर चलने वालों को सच्चाई से रूबरू तो करवा ही दिया जाएगा।
 
जनता को इस बात से कतई लेना देना नहीं है कि सड़कें किसकी संपत्ति हैं, या इसके रख रखाव का जिम्मा किसका है। राज्य सरकार अगर बोर्ड लगा रही है तो फिर राज्य सरकार को उस नोटिस बोर्ड पर इस बात का उल्लेख भी करना चाहिए कि इसका संधारण करने वाला लोक कर्म विभाग का राष्ट्रीय राजमार्ग महकमा मूलतः किस राज्य की सेवा का अंग है। वस्तुतः इसके मातहत मध्य प्रदेश सरकार के कर्मचारी ही होते हैं। कर्मचारी मध्य प्रदेश के जिम्मेदारी केंद्र सरकार की अगर दोनों ही जगह एक दल की सरकार है, तब तो सामंजस्य बना रह सकता है, किन्तु अगर सरकारें अलग अलग दलों की हैं तो फिर सामंजस्य का अभाव निश्चित तौर पर परिलक्षित ही होगा।
 
मध्य प्रदेश की संसकारधानी जबलपुर से बरास्ता सिवनी, महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक सात (जिसका लखनादौन से नागपुर तक का हिस्सा उत्तर दक्षिण गलियारे का अंग बन गया है) की हालत देखकर राहगीरों और वाहन चालकांे को रोना ही आता है। आलम यह है कि वाहन चालकों को गड्ढों के बीच सड़कों को खोजना पड़ता है। अनेक स्थानों पर तो डेढ़ से दो फीट गहरे गड्ढे हो चुके हैं, सड़कों पर।
 
एसा नहीं कि इस मार्ग पर से उच्च न्यायालय एवं अन्य न्यायालयों के माननीय न्यायधीशगण, प्रदेश और केंद्र सरकार के मंत्रीगण, सांसदगण, विधायकगण, कमिश्नर, कलेक्टर, महानिरीक्षक, उपमहानिरीक्ष पुलिस, एसपी या एनएचएआई के प्रोजेक्ट डायरेक्टर विवेक जायस्वाल सहित अन्य अधिकारी न गुजरते हों, पर किसी ने भी अब तक इस बारे में संज्ञान लेने की फुर्सत नहीं उठाई है। हो सकता है इनमें से अधिकांश साहेबान सरकारी वाहनों में सफर करते हों, तो इन्हें वाहन की टूट फूट और टायर घिसाई से ज्यादा लेना देना न हो पर एक आम आदमी गाढ़े पसीने की कमाई से खरीदे गए वाहन के कलपुर्जे हिलते कैसे देख सकता है? नेशनल हाईवे पर पेंच तो इससे कुछ ही दूरी पर कान्हा नेशनल पार्क अवस्थित है। देश विदेश से आने वाले पर्यटकों द्वारा जब राष्ट्रीय राजमार्ग की दुर्दशा देखी जाती है तो निश्चित तौर उनके मानस पटल पर प्रदेश की छवि बहुत अच्छी तो कतई नहीं बन पाती होगी। वे निश्चित तौर पर मध्य प्रदेश की सड़कों को कोढ़, खाज ग्रस्त मानते होंगे, और वापस जाकर यही कहते होंगे, ‘‘इस जन्म या अगले जन्म मोहे एम पी न भेजियो‘‘।
 
कहा जा रहा है कि लखनादौन के पास बने टोल ब्रिज को इस साल के अंत तक टोल टेक्स वसूली के लिए चालू भी कर दिया जाएगा। वाहन चालकों में इस उधड़ी सड़क को देखकर वैसे ही रोष और असंतोष पनप रहा है, फिर उपर से टोल टेक्स की वसूली उनके रिसते घावों पर जख्म का ही काम करेगी। वैसे देखा जाए तो वाहन खरीदी के समय ही लिया जाने वाला रोड़ टेक्स आखिर क्यों वसूला जाता है? जाहिर है सड़क पर चलने का कर होता है रोड़ टेक्स, जब वाहन चालक एक मुश्त वाहन के पंजीयन के दौरान परिवहन विभाग के पास इसे आरंभ मंे ही जमा करा देता है, फिर टोल टेक्स किस बात का।
 
क्या सड़कों पर चलने के लिए वाहन चालकों को बार बार कर देना पड़ेगा? एक बात और यहां उल्लेखनीय है कि जब स्वर्णिम चतुर्भुज और उसके अंग उत्तर दक्षिण गलियारे के निर्माण और संधारण हेतु 2003 से अब तक पेट्रोल डीजल पर एक रूपए सेस (एक तरह का कर) लगाकर वसूल ही लिया गया है, तो फिर टोल टेक्स वसूलने की बात तो बेमानी ही है। आश्चर्य इस बात पर ज्यादा होता है कि इस मामले में केंद्र में विपक्ष में बैठी भाजपा बयानबाजी के अलावा और कुछ करती नहीं दिखती है।