लालू की संजीवनी बिना मुश्किल है बिहार में कांग्रेस का पुर्नवास
(लिमटी खरे)
बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे सूबों में अपना जनाधार बुरी तरह खो चुकी सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस को इन राज्यों में अगर फिर से जीवित होना है, तो उसे राष्ट्रीय जनता दल और लोजपा की बैसाखी पर ही उसे खड़ा होना मजबूरी बन गया है। यद्यपि कांग्रेस के भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश की कमान संभाली है, साथ ही उन्होंने बिहार पर भी नजरें इनायत करने के संकेत दिए हैं, फिर भी अकेले के बूते कांग्रेस इन राज्यों में खड़ी हो जाए इसमें संशय ही लगता है।
उल्लेखनीय तथ्य यह है कि बिहार में कांग्रेस के वोट बैंक पर राजद ने अपना कब्जा जमा लिया है। जब लालू राबड़ी के खिलाफ राज्य में आवाजें बुलंद हो रहीं थीं उस वक्त कांग्रेस के पास माकूल मौका था, कि वह अपना वोट बैंक फिर वापस पाकर सहेज सकती थी, किन्तु कांग्रेस ने एसा किया नहीं, उस दौरान कांग्रेस के मैनेजर लालू चालीसा के पाठ में लगे हुए थे।
वैसे भी इन चुनावों में उत्तर प्रदेश में पंद्रह तो बिहार में कांग्रेस को महज दस फीसदी वोट ही मिल सके हैं। देखा जाए तो आने वाले विधानसभा चुनावों में वोट प्रतिशत और गिरने की उम्मीद है, क्योंकि मतदाताओं में उनका शुमार है, जो एक तरफ केंद्र मे राहुल गांधी का हाथ मजबूत करना चाह रहे हैं, तो दूसरी ओर सूबे में लालू राबड़ी की शक्ल भी देखना पसंद नहीं करते हैं।
बिहार में ब्राम्हणों ने कांग्रेस को नकार दिया है। इस जाति के वोटों का प्रतिशत 18 है, जबकि राजग को 69 प्रतिशत वोट मिले हैं। यूपी में कांग्रेस को 21 तो बिहार में महज दो ही मिल सकी हैं। इन दो सीटों पर कांग्रेस का परचम लहराने का कारण सोनिया, राहुल फेक्टर नहीं वरन स्थानीय प्रत्याशियों की अपनी मेहनत कहा जा सकता है।
बिहार में नितीश कुमार की सरकार के खिलाफ अभी तक जनता में किसी तरह का असंतोष नहीं उपजा है। गांव गांव में चौपाल लगाकर सरकारी तंत्र को मैदानी इलाकों में दौड़ाने वाले नितीश कुमार से पार पाना अभी तो कांग्रेस के लिए टेड़ी खीर ही लग रहा है। वैसे कांग्रेस अगर चाहे तो बिहार में सरकारी तंत्र में लगा भ्रष्टाचार का घुन, शिक्षकों की बहाली में बंदबांट और हर गली में खुली शराब की दुकानों को मुद्दा बनाकर जनांदोलन कर सकती है।
भले ही केंद्र सरकार से बाहर का रास्ता दिखाकर कांग्रेस ने लालू प्रसाद यादव को उनकी औकात बता दी है, किन्तु बिहार में अपना जनाधार वापस पाने के लिए उसे लालू प्रसाद यादव जैसे घाघ नेताओं के साथ मिलकर ही सरकार के खिलाफ हल्ला बोलना पड़ेगा। लालू को साधने के लिए दििZग्वजय सिंह, कमल नाथ, कपिल सिब्बल, नारायण सामी, अजीत जोगी, जैसे नेताओं को बिहार के लिए पाबंद करना जरूरी होगा, क्योंकि ये नेता लालू यादव पर नकेल कसकर कांग्रेस के अरमानों को पूरा करने का माद्दा रखते हैं।
कांग्रेस के रणनीतिकारों ने केंद्र में सरकार बनाने में निश्चित तौर पर बेहतर रणनीति का इस्तेमाल किया है। मगर यह आश्चर्य की बात है कि जब सूबों में कांग्रेस की सरकार बनाने की बात आती है तो इनकी मेनेजरी की हवा निकल जाती है। अजुZन सिंह, कमल नाथ, सुरेश पचौरी, दििग्वजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुभाष यादव, हरवंश सिंह, कांतिलाल भूरिया जैसे कुशल सेनापतियों के होते हुए भी मध्य प्रदेश में 2003 के बाद कांग्रेस का सूपड़ा क्यों साफ है, यह बात अभी तक कोई समझ नहीं सका है। बात जब अपने सूबे से इतर दूसरे राज्य की आती है, तब इन सभी की रणनीति कमाल कर देती है।
मायावती की सोशल इंजीनियरिंग का कमाल था कि 2007 में वे उत्तर प्रदेश में सत्ता पर काबिज हो गईं। वस्तुत: लोकसभा चुनाव में मायावती के कुशासन का फल था कि कांग्रेस ने अपनी सीटों में इजाफा कर लिया। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी और उनके अघोषित राजनैतिक गुरू दििग्वजय सिंह उत्तर प्रदेश में 21 सीटें आने पर अपनी पीठ ठोंक अवश्य रहे हों, पर उनके चेहरों की चमक ज्यादा दिन रहने नहीं वाली।
इस बार गौर के नक्शे कदम पर शिवराज
हर मंत्री के दर पर दी दस्तक
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की दिल्ली यात्रा के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल गौर की कार्यप्रणाली उनमें परिलक्षित हुई। इस बार दिल्ली आने पर शिवराज ने न केवल प्रदेश कोटे के सभी मंत्रियों से भेंट की वरन् उन्होंने सांसदों को रात्रि भोज भी दिया।
ज्ञातव्य है कि पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल गौर ने अपने कार्यकाल में जब भी दिल्ली का रूख किया, उनकी केंद्रीय मंत्रियों विशेषकर कमल नाथ के साथ खूब छनी। केंद्रीय मंत्रियों का वे दोहन कर पाते इसके पहले ही उन्हें पदच्युत कर दिया गया था।
शिवराज सिंह चौहान ने कृषि मंत्री शरद पवार, भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ, उर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे, कोयला मंत्री श्री प्रकाश जायस्वाल, आदिवासी मामलों के मंत्री कांतिलाल भूरिया, युवा मामलों के मंत्री अरूण यादव आदि से भ्ोंट कर प्रदेश का पक्ष रखा। माना जा रहा है कि विशेष रणनीति के तहत चौहान ने अपनी दिल्ली यात्रा को अंजाम दिया है।
गौरतलब होगा कि राज्य की विधानसभा चुनावों के दौरान केंद्र सरकार द्वारा मध्य प्रदेश को दी इमदाद के बारे में कांग्रेस द्वारा विज्ञापनों के माध्यम से मतदाताओं को लुभाने का असफल प्रयास किया था। माना जा रहा है कि अगली बार के लिए शिवराज सिंह चौहान द्वारा इस तरह के कार्य किए जाकर अपना होमवर्क किया जा रहा है। मुख्यमंत्री की दिल्ली यात्रा को बेहतर कवरेज मिले इसके लिए भी व्यापक इंतजामात किए बताए जाते हैं।
ओला मध्य प्रदेश तो जाखड़ होंगे महाराष्ट्र के लाट साहेब
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। केंद्र में सरकार बनाने के उपरांत अब कांग्रेस ने सरकार में शामिल होने से चूक गए नेताओं को अब सूबों में राज्यपाल बनाकर भेजने की तैयारियां आरंभ कर दीं हैं। राज्यपालों के उलटफेर मासांत तक होने की उम्मीद जताई जा रही है।
कांग्रेस की सत्ता के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ के भरोसेमंद सूत्रों ने बताया कि पिछली सरकार में राजस्थान कोटे से खान मंत्रालय संभालने वाले शीशराम ओेला को मध्य प्रदेश के लाट साहब की कुर्सी दी जा सकती है। वर्तमान राज्यपाल बलराम जाखड़ इसी माह 30 जून को पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले हैं।
सूत्रों ने आगे बताया कि हाल ही में बलराम जाखड़ ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी, जिसके बाद पीएम और सोनिया गांधी के बीच हुई मंत्रणा में पीएम ने सोनिया गांधी को बताया कि जाखड़ मध्य प्रदेश में ही रहने के इच्छुक हैं, किन्तु सोनिया गांधी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर उन्हें महाराष्ट्र भेजने की इच्छुक हैं।
गुरुवार, 4 जून 2009
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