शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

शिवराज से मांगा हिसाब मनमोहन ने

शिवराज से मांगा हिसाब मनमोहन ने
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। किसानों के मुद्दे पर आमने सामने आ चुके मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कांग्रेसनीत केंद्र सरकार के बीच रार तेज हो गई है। शुक्रवार को प्रधानमंत्री से मिलने पहुंचे शिवराज सिंह चौहान से डॉ.मनमोहन सिंह ने केंद्र पोषित समस्त योजनाओं के बारे में हिसाब मांगकर चौंका दिया।
प्रधानमंत्री निवास के भरोसेमंद सूत्रों का दावा है कि आज वजीरे आजम से मिलने पहुंचे शिवराज सिंह चौहान से प्रधानमंत्री ने राहत की अगली किश्त तब तक जारी नहीं करने की बात कही गई है जब तक कि केंद्र की इमदाद का हिसाब मध्य प्रदेश सरकार द्वारा आना पाई से केंद्र को नहीं दिया जाता।
सूत्रों का कहना है कि पीएम और प्लानिंग कमीशन से मिलने गए शिवराज सिंह चौहान का होम वर्क पूरा न हो पाने के चलते वे मध्य प्रदेश के किसानों की झोली में कुछ डालने में कामयाब नहीं हो सके हैं। प्रधानमंत्री ने सूबे के निजाम को आश्वासनों के लालीपाप थमाकर फिलहाल का टकराव टाल दिया है।
शिवराज आज सुबह साढ़े नौ बजे योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया से मिले फिर उन्होने प्रधानमंत्री आवास की ओर रूख किया। उधर अपरान्ह ग्यारह बजे मध्य प्रदेश के राज्यपाल रामेश्वर ठाकुर भी नियमित उड़ान से दिल्ली पहुंच गए हैं। महामहिम के मध्य प्रदेश भवन पहुंचते ही पत्रकारों से रूबरू शिवराज सिंह चौहान हवाई अड्डे की ओर कूच कर गए और सरकारी उड़न खटोले से भोपाल रवाना हो गए।

0 कल से जमे हैं अफसर
मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव अवनि वैश्य के नेतृत्व में प्रमुख सचिव राजस्व, प्रमुख सचिव खाद्य, प्रमुख सचिव परिवहन के अलावा एग्रीकल्चर प्रोडक्शन कमिश्नर ने मध्य प्रदेश भवन में अपना डेरा गुरूवार से डाला हुआ है। सूत्रों का कहना है कि गुरूवार दिन भर इन अफसरान ने योजना आयोग के अधिकारियों के साथ माथा पच्ची की। बाद में रात सवा दस बजे जब शिवराज सिंह चौहान एमपी भवन पहुंचे तब उनके साथ इन अधिकारियों ने बैठक कर पीएम और योजना अयोग के उपाध्यक्ष से बैठक का एजेंडा तय किया।

0 पीएम सीएम के बीच का सेतु बने लाट साहेब
डॉ.मनमोहन सिंह और शिवराज सिंह चौहान के बीच संवाद का सेतु सूबे के महामहिम राज्यपाल रामेश्वर ठाकुर बन गए हैं। गौरबलब होगा कि मुख्यमंत्री के अनशन के पूर्व राजभवन से ही रामेश्वर ठाकुर ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की बात करवाकर अनशन समाप्त करवाया था। पीएमओ के सूत्रों के अनुसार पीएम और लाट साहेब के बीच हुई चर्चा के उपरांत ही पीएम और सीएम की मुलाकात संभव हो पाई है।

पाला को प्राकृतिक आपदा में शामिल किया जाएगा: शिवराज

पाला को प्राकृतिक आपदा में शामिल किया जाएगा: शिवराज
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। ‘‘वर्तमान में पाला को प्राकृतिक आपदा नहीं माना जाता है, प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया है कि इसे प्राकृतिक आपदा में शामिल करने की कार्यवाही की जाएगी। मध्य प्रदेश को कितनी धनराशि देना है कितनी मदद करना है इस मामले में विचार किया जाएगा।‘‘ उक्ताशय की बात आज मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश भवन में पत्रकारों से चर्चा के दौरान कही।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि उन्होंने केंद्र से 2400 करोड़ रूपयों के विशेष पैकेज की मांग की है। साथ ही पीएम ने सीएम को आश्वासन दिया कि पाला को प्राकृतिक आपदा की फेहरिस्त में शामिल करने और मध्य प्रदेश को कितनी इमदाद दी जानी है इसके लिए मंत्री समूह (जीएमओ) का गठन किया जाएगा, जिसमें योजना आयोग के उपाध्यक्ष, वित्त और गृह मंत्री के अलावा शिवराज चौहान को विशेष आमंत्रित बनाया गया है। श्री चौहान ने कहा कि राज्य सरकार ने अब तक पांच सौ करोड़ रूपयों की राहत राशि वितरित की जा चुकी है।
सीएम ने कहा कि फसल बीमा योजना में इकाई को क्षेत्र के बजाए किसान को बनाने की मांग पर प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया कि इसके लिए एक वर्कशाप का आयोजन किया जाएगा जिसमें इस मसले पर चर्चा होगी, इसमें से एक वर्कशाप भोपाल में भी आयोजित होगा।
श्री चौहान ने बताया कि केंद्रीय सड़क निधि में दो सौ करोड़ रूपए, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना पर सैद्धांतिक चर्चा के उपरांत केंद्र द्वारा पांच सौ करोड़ रूपए की राशि, इंदिरा आवास में एक लाख अतिरिक्त मकान की स्वीकृति भी केंद्र सरकार ने दी है। खाद्यान आवंटन के मसले पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि प्रदेश में 65 लाख परिवार गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं, वर्तमान में केंद्र द्वारा महज 41 लाख परिवारों को इसका लाभ दिया जा रहा है। सुरेश तेंदुलकर समीति की सिफारिशों के मान लिए जाने के बाद मध्य प्रदेश को इसका सबसे अधिक लाभ होगा। उन्होंने बताया कि महेश्वर परियोजना के रूके हुए काम के लिए केंद्र एक दल भेजकर वस्तुस्थिति का पता भी लगाएगा। कोयला आवंटन में पक्षपात का आरोप लगाने के उपरांत सीएम ने कहा कि कोल के आवंटन के युक्तियुक्तकरण हेतु भी टास्क फोर्स का गठन कर दिया गया है।

शिवराज के आरोप तथ्यहीन: पचौरी

शिवराज के आरोप तथ्यहीन: पचौरी
(लिमटी खरे)
 
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुरेश पचौरी ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के द्वारा कांग्रेसनीत केंद्र सरकार पर भेदभाव के आरोपों को सिरे से खारिज किया है। अपने निवास पर पत्रकारों से चर्चा के दौरान श्री पचौरी ने वास्तविक आंकड़े प्रस्तुत कर कहा कि शिवराज सिंह चौहान गलत बयानी कर रहे हैं।
पाला से मची तबाही पर उन्होंने कहा कि इस हेतु केंद्र सरकार द्वारा अब तक 424 करोड़ रूपए जारी किए जा चुके हैं। मध्य प्रदेश सरकार अगर सात सौ करोड़ देने की बात कहती है तो कुल 1124 करोड़ रूपयों में से 17 फरवरी तक प्रदेश सरकार द्वारा महज 309 करोड़ रूपयों की राशि ही बांटी गई है। उन्होंने कहा कि एनडीए के शासनकाल में मध्य प्रदेश को मिली इमदाद और यूपीए के दौरान मिली मदद में जमीन आसमान का अंतर है। केंद्र ने मध्य प्रदेश को पहले की तुलना में कई गुना अधिक राशि दी है।
श्री पचौरी ने कहा कि अटल सरकार ने पांच सालों में इंदिरा आवास मद में 387 करोड़ दिए जिसकी तुलना में मनमोहन सरकार ने छः सालों में 1102 करोड़ रूपए प्रदान किए। इसी तरह प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना में एनडीए के 1209 करोड़ की तुलना में यूपीए ने 9833 करोड़ रूपए दिए हैं। इस तरह केंद्र द्वारा मध्य प्रदेश को पहले से अधिक धनराशि दी गई है तब भेदभाव किस बात का। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की मद में केंद्र से मिली मदद में से राज्य ने 312 करोड़ रूपए खर्च ही नहीं किए हैं।
पाला पर राज्य सरकार की भूमिका के बारे में चर्चा करते हुए सुरेश पचौरी ने मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में किसानों द्वारा उनको मिलने वाले राहत के चेक की होली जलाने की कतरने लहराते हुए कहा कि पूरे प्रदेश में तहसीलदार, नायब तहसीलदार, पटवारी किसानों के खेत पर न जाकर भाजपा कार्यकर्ताओं के घरों में बैठ मुंह देखकर फसलों का नुकसान तय कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने फसलों के एवज में 990 करोड़ रूपए ही मांगे हैं।

भ्रष्टों के सरदार मनमोहन --- 2


कथड़ी ओढ़ कर घी खा रहे हैं मनमोहन

नाकामियों का बचाव कमजोरियों से!

मनमोहन के लिए राष्ट्रधर्म से बढ़ा है गठबंधन धर्म

वजीरे आजम ने प्रिंट को दरकिनार कर इलेक्ट्रानिक को बिठाया गोद में

(लिमटी खरे)

आजाद भारत के इतिहास में सबसे भ्रष्ट सरकार के मुखिया डॉक्टर मनमोहन सिंह गत दिवस चुनिंदा समाचार चेनल्स के संपादकों से रूबरू हुए। प्रधानमंत्री ने अपने आप को बेहद निरीह बताकर देशवासियों का भरोसा और हमदर्दी जीतने का कुत्सित प्रयास किया है, जिसकी निंदा की जानी चाहिए। कितने आश्चर्य की बात है कि मनमोहन सिंह जैसी शख्सियत राष्ट्रधर्म निभाने के बजाए गठबंधन के चलते अपनी मजबूरियों दुश्वारियों को गिना रहे हैं। इस मुलाकात के पहले ही इसे पूर्वनियोजित बढ़ा चढ़ा कर पेश कर दिया गया था। देश के संपादकों ने भी बेबाकसवाल दागे, पर किसी ने यह नहीं पूछा कि जनता ने कांग्रेस को अगर स्पष्ट जनादेश नहीं दिया है तो क्या गठबंधन की कीमत पर देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस के प्रधानमंत्री सरकार को सहयोग करने वाले दलों के नुमाईंदों को देश को लूटने की इजाजत दे देंगे? क्या मुखिया होने के नाते नैतिकता के आधार पर वे त्यागपत्र देने को तैयार हैं?

वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह ने कहा कि उन्हें राज के खिलाफ ढेरों शिकायतें मिल रही थीं, फिर भी गठबंधन की मजबूरी के चलते राजा को संचार मंत्री बनाया गया। यक्ष प्रश्न तो यह है कि सत्ता की मलाई चखने की आखिर एसी क्या मजबूरी है, जिसके चलते देश के संसाधनों के अवैध तरीके से दोहन और सिस्टम को अपनी जेब में रखे बिना कोई और उपाय क्यांे नहीं किए गए। ईमानदार साफगोई पसंद प्रधानमंत्री की आखिर क्या मजबूरी थी कि उन्होंने शिकायत के ढेर पर बैठे एक एसे शख्स को न केवल मंत्री बनाया वरन् उसे लंबे समय तक ढोया और उसका बचाव भी किया।

जनता के मानस पटल पर यह प्रश्न घुमड़ना स्वाभाविक ही है कि भ्रष्टाचारी ए राजा जिनके खिलाफ शिकायतों के पुलिंदे थे, उन्हें मंत्री बनाना प्रधानमंत्री की मजबूरी थी, या फिर उनकी या किसी अन्य मंत्री या संत्री की गल्ति को रोकना प्रधानमंत्री की नैतिक जवाबदारी है। इससे क्या यह साफ नहीं हो जाता है कि मनमोहन सिंह सत्ता का सुख पाने के लिए किसी दल विशेष को सरेराह रिश्वत देकर खुश कर रहे थे? मनमोहन सिंह को जवाब देना ही होगा कि प्रधानमंत्री रहते हुए वे किसी दल विशेष के प्रति जवाबदेह हैं या फिर भारत गणराज्य की सवा करोड़ से अधिक जनता के प्रति। प्रधानमंत्री की गठबंधन को लेकर स्वीकारोक्ति से साफ हो जाता है कि वे सरकार नहीं चला रहे वरन् एक मुनाफा कमाने वाली एक संस्था के मुखिया बन चुके हैं। देश में डॉ.मनमोहन सिंह की छवि धूल धुसारित हुए बिना नहीं है, लोग कहने लगे हैं कि जो प्रधानमंत्री जनता के बीच जाकर जनादेश लेने से कतरा रहा हो, वह किसी जांच एजेंसी का भला क्या सामना कर सकेगा।

सरकार चलाने के लिए ममता बनर्जी का हाथ थामना भी डॉ.मनमोहन सिंह की मजबूरी है। ममता बनर्जी इसी छूट का बेजा इस्तेमाल कर सरकारी खर्च पर बंगाल को नाप रही हैं। देश का रेल मंत्रालय भाड़ में जाता है जाए ममता की बला से! यह हो क्या रहा है मनमोहन सिंह जी? भारतीय रेल पटरी से उतर चुकी है, ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल का मुख्यमंत्री बनना है, तब तक वे भारत गणराज्य की रेल व्यवस्था को पंगु बनाए जा रही हैं। रेल विभाग के आला अफसरान विभाग की नस्तियां ममता के हस्ताक्षरों के लिए उनके पीछे दौड़ रहे हैं, वह भी जनता के द्वारा एकत्र किए गए धन पर। आप कब तक ध्रतराष्ट्र बने बैठे रहोगे?

भारत गणराज्य में किसी प्रधानमंत्री द्वारा एक विशेष आयोजन कर चुनिंदा मीडिया पर्सन्स को बुलाकर संवाद करने का कोई इतिहास नहीं मिलता है, अलबत्ता विदेश यात्रा, स्वाधीनता अथवा गणतंत्र दिवस या विशेष राजनैतिक या रणनीतिक महत्व की घटनाओं के दौरान एसा होने का उल्लेख अवश्य ही मिलता है। प्रधानमंत्री को अगर खुद चलकर मीडिया के पास जाना पड़ा इसका मतलब साफ है कि प्रधानमंत्री, सरकार, कांग्रेस और उसके गठबंधन वाले दलों के बीच सब कुछ सामान्य कतई नहीं है। संसद का शीतकालीन सत्र हंगामें की भेंट चढ़ा क्योंकि विपक्ष टूजी मामले में जेपीसी की मांग पर अडिग था। अब प्रधानमंत्री उस पर राजी होते दिख रहे हैं। अब क्या कहा जाए? यही न कि प्रधानमंत्री के अडियल रूख के चलते देश वासियों के करोड़ों रूपयों में आग लगा दी गई।

कितने आश्चर्य की बात है कि प्रधानमंत्री ने चुनिंदा टीवी संपादकों के सामने ही मीडिया को कटघरे में खड़ा कर दिया और संपादक खीसें निपोरते रहे। मीडिया की भूमिका पर बोलते हुए पीएम ने कहा कि मीडिया की भूमिका अच्छी है, किन्तु अत्याधिक नकारात्मक रिर्पोटिंग से यह छवि बनती है कि देश में घोटालों के अलावा और कुछ नहीं हो रहा है। वस्तुतः यही सच है कि देश में घपलों घोटालें के अलावा हो क्या रहा है? ये उजागर हो रहे हैं, और सरकार इन पर पर्दा डालने का जतन कर रही है। वैसे प्रधानमंत्री ने चुनिंदा मीडिया पर्सन्स के बीच इस बात पर यकीन दिलाया कि भ्रष्टाचार के मामलों की पूरी जांच की जाएगी। किसी भी सम्माननीय संपादक ने यह पूछने की जहमत नहीं उठाई कि क्या इसे समय सीमा में बांधा जा सकता है? क्या मामलों की जांच समय सीमा में संभव है? अब तक सुखराम को छोड़कर किस मामले में किस माननीय जनसेवक को जेल की चक्की पीसनी पड़ी?

चुनिंदा टीवी के संपादकों के सामने बैठकर डरने, सहमने और मजबूर दिखाने का प्रहसन कर प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह आम जनता के मानस पटल पर सरकार के प्रति उपजे अविश्वास को कम नहीं कर पाए हैं। विदेशों में जमा काला धन इस चर्चा में गौड हो जाना इस बात की ओर साफ इंगित करता है कि इन चुनिंदा टीवी के संपादकों को पहले से ही क्वेश्चनायर थमा दिया गया था ताकि ये सिर्फ विषय पर ही प्रश्न कर सकें।

पहले कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने गठबंधन की मजबूरी का राग अलापा अब खुद वजीरे आजम इस बारे में रोना रो रहे हैं। वस्तुतः दोनों ही महानुभावों को गठबंधन की मजबूरी के स्थान पर सत्ता सुख की मजबूरी का राग मल्हार गाना चाहिए। वहीं इलेक्ट्रानिक मीडिया के चुनिंदा संपादकों को अपने आवास पर बुलाकर प्रधानमंत्री ने साबित कर दिया है कि उनकी नजर में प्रिंट और वेव मीडिया वाले सौतेली संतान हैं। कल तक पेड पत्रकारिता पर बहस के दौरान इसी सगे बेटे को सबसे अधिक कटघरे में खड़ा किया गया था। हर मोर्चे पर विफल देश के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने संपादकों के साथ चर्चा कर देश वासियों के सामने अपने आप को लाचार और मजबूर साबित कर राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आड़वाणी के उस आरोप को पुख्ता कर ही दिया है जिसमें आड़वाणी ने कहा था कि मनमोहन अब तक के सबसे कमजोर प्रधानमंत्री हैं।

मनमोहन सिंह को यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रजातंत्र के घोषित तीन स्तंभ न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका को सीमाओं में रखने के लिए मीडिया जैसा चौथा अघोषित स्तंभ खड़ा हुआ था। आज तीनों घोषित और चौथे अघोषित स्तंभ की जुगलबंदी के चलते देश रसातल की ओर जाने लगा है तब उदय हुआ है पांचवें स्तंभ अर्थात ब्लागका। जिन खबरों को मीडिया मुगल सैंसर कर देते हैं वे ब्लाग पर प्रमुखता से पढ़ी और देखी जाती हैं। कहने का तात्पर्य महज इतना ही है कि चंद संपादकों के साथ मनमोहन सिंह अपनी और सरकार की छवि चाहे जैसी पेश करना चाहें करें, किन्तु ब्लागर्स वास्तविकता को जनता के सामने लाकर ही रहेंगे।

उत्तर प्रदेश में पकड़ मजबूत करने में जुटे वरूण

निर्वासित राजकुमार पुर्नवास की तलाश में!

राजाओं पर डाल रहे हैं डोरे

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नेहरू गांधी परिवार के निर्वासित राजकुमार वरूण गांधी भारतीय जनता पार्टी के स्टार प्रचारकों की फेहरिस्त मंे अपना स्थान बना चुके हैं, किन्तु खाटी भाजपा नेताओं ने उनका महिमा मण्डन नहीं किया है, जिससे वे राहुल गांधी की लोकप्रियता के मुकाबले कमतर ही माने जाते हैं। वरूण गांधी के हालिया कदमतालों को देखकर लगने लगा है कि उन्होंने अपने आप को स्थापित करने की जुगत लगाना आरंभ कर दिया है, और यह काम उन्होंने उत्तर प्रदेश से आरंभ किया है।
अगले माह शादी के बंधन मंे बंधने जा रहे वरूण ने अपने लिए दुल्हनिया तलाशी वो भी ब्राम्हण। इस तरह उन्होंने अब अपने चचेरे भाई राहुल गांधी के कम्बोडियाई गर्लफ्रेंड के साथ शादी के अरमानों पर पानी फेर दिया है। यद्यपि यामिनी उनकी बचपन की सखी है, पर है तो खालिस देशी ही। वाराणसी में शंक्राचार्य के आश्रम में सादे समारोह में शादी की सुर्खियां बटोरने के बाद वरूण द्वारा दिल्ली में होटल अशोक में एक जोरदार धमाकेदार रिसेप्शन दे रहे हैं। उम्मीद जताई जा रही है कि इसमें सोनिया, राहुल गांधी के साथ ही साथ प्रियंका वढ़ेरा भी शिरकत कर सकती हैं।
खुद को स्थापित करने के लिए वरूण गांधी ने अब अपने मरहूम पिता स्वर्गीय संजय गांधी के नक्शे कदम पर चलना आरंभ कर दिया है। वरूण अब उत्तर प्रदेश से अपना सक्रिय सियासी सफर आरंभ करने लालायित लग रहे हैं। इसीलिए उन्होंने उत्तर प्रदेश के राजघरानों पर डोरे डालना आरंभ कर दिया है। राहुल की टीम में कांग्रेस के वफादार रहे राजा सहसपुर बिदारी चंद, विजय सिंह, समाजवादी राजा साहेब बांसी, राजा साहेब भिनगा, बहराईच राजा साहेब भदावर, बसपा सांसद रहे राजा साहेब मानकापुर को शामिल हो चुके हैं।
घपलों घोटालों में घिरी कांग्रेसनीत संप्रग सरकार को बचाने में कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी दिन रात एक किए हुए हैं, एसी स्थिति में नेहरू गांधी परिवार के निर्वासित राजकुमार वरूण गांधी का दबे पांव लोगों को एकत्र करना निश्चित तौर पर उनकी सियासी समझ बूझ का परिचायक ही माना जाएगा। वैसे भी भाजपा द्वारा वरूण को स्थापित करने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई जा रही है।

महिला आरक्षण पर सियासत शुरू

फिर निकला महिला आरक्षण का जिन्न

बजट सत्र में पेश करने की तैयारी

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। घपले घोटालों से परेशान कांग्रेस ने अब संसद का बजट सत्र सुचारू तौर पर चलाने की नई कवायद आरंभ कर दी है। बजट सत्र में महिला आरक्षण बिल को प्रस्तुत करने की संभावनाएं अचानक बढ़ गई हैं। लोकसभा में दलों के सचेतकों को थमाए गए विधाई एजेंडे में महिला आरक्षण को भी स्थान दिया गया है।
लोकसभा सचिवालय से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो सरकार द्वारा बजट सत्र में पारित कराए जाने वाले विधेयकों की सूची में महिला आरक्षण विधेयक भी शािमल किया गया है। गौरतलब होगा कि पिछले साल मार्च में इसे लेकर राज्यसभा रणभूमि बन गया था। मजबूरी में सरकार ने वायदा किया था कि राजनीतिक आम सहमति बनने के उपरांत ही इसे लोकसभा में पेश किया जाएगा।
माना जा रहा है कि भ्रष्टाचार, घपले, घोटालों के चलते संसद के बजट सत्र में गहमा गहमी रोकने के लिए कांग्रेस द्वारा इस तरह की चाल चली जा रही है, ताकि विपक्ष की एकता को दरकाया जा सके। बताया जाता है कि कांग्रेस द्वारा जानबूझकर इसे राज्य सभा द्वारा पारित किए गए मौजूदा स्वरूप में ही लोकसभा में लाया जा रहा है ताकि विपक्ष इस मामले में ही उलझा रहे और उसका ध्यान अन्य मुद्दों की ओर न जाए।

ये हैं मौजूदा स्वरूप के खिलाफ

समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज वादी पार्टी, जनता दल यूनाईटेड इसके मौजूदा स्वरूप के मुखर विरोधी हैं, यहां तक कि कांग्रेस और भाजपा में भी अतिपिछड़ों के लिए कोई विकल्प न रखे जाने से इसकी मुखालफत करने वालों की कमी नहीं है।

युवराज भी हैं भयाक्रांत

कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी भी महिला आरक्षण बिल से घबराए हुए हैं। बुराड़ी में दिसंबर में हुए कांग्रेस के महाधिवेशन में उन्होंने मजाक में ही सही पर यह कहकर सभी को चौंका दिया था कि महिला आरक्षण विधेयक के चलते उन्हें भी डर है कि कहीं उनकी सीट ही महिलाओं के लिए आरक्षित न हो जाए।