गुरुवार, 29 सितंबर 2011

लोकसभा चुनावों का मुख्य मुद्दा रहा है ब्राडगेज!


0 सिवनी से चलेगी पेंच व्हेली ट्रेन . . . 5

लोकसभा चुनावों का मुख्य मुद्दा रहा है ब्राडगेज!

हर बार ब्राडगेज का आश्वासन देकर छला गया सिवनी वासियों को

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। जब जब लोकसभा चुनाव हुए हैं तब तब ब्राडगेज जैसे ज्वलंत और जनता से जुड़े मुद्दे को पार्टियों द्वारा उठाकर इस मामले में आश्वासन दे जनता का विश्वास जीता जाता रहा है। जीतने के बाद पांच साल तक न तो किसी सांसद ने उसे मिले जनादेश की चिंता की है और ना ही लोकसभा में इस मामले को उठाने का ही प्रयास किया है, और न ही पराजित उम्मीदवार ने ही इस मामले के लिए सांसद को जगाने का प्रयास किया। हार के बाद पराजित उम्मीदवार ने भी उसे नियति मानकर पांच साल के लिए मौन साधे रखा।
सिवनी लोकसभा जब तक अस्तित्व में रही हर बार जनता की भावनाओं का जमकर उपयोग किया गया है, प्रत्याशियों द्वारा। चूंकि रेल का ममला केंद्र सरकार का होता है अतः लोकसभा चुनावों के दौरान प्रमुख राजनैतिक दल के प्रत्याशियों द्वारा इस संवेदनशील मुद्दे को हथियार की तरह इस्तेमाल कर सिवनी में शतायु हो चुकी नेरोगेज रेल लाईन को ब्राड गेज में तब्दील कराने का आश्वासन दिया जाता रहा है।
एक मर्तबा तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.व्ही.नरसिंहराव द्वारा भी चुनावी घोषणा के तौर पर परमहंसी आश्रम श्रीधाम में जगतगुरू शंकराचार्य जी के समक्ष यह कहा गया था कि उनके संसदीय क्षेत्र रहे महाराष्ट्र के रामटेक से गोटेगांव तक बड़ी रेल लाईन लाई जाएगी। दुर्भाग्य से वे दुबारा प्रधानमंत्री नहीं बन पाए और छिंदवाड़ा नैनपुर से इतर रामटेक गोटेगांव की यह घोषणा खालिस चुनावी वायदा बनकर रह गई।
सिवनी विधानसभा से दो बार कांग्रेस प्रत्याशी रहे आशुतोष वर्मा द्वारा अलबत्ता इस मामले को अपने हाथ में लेकर रामटेक गोटेगांव को भारतीय रेल के नक्शे पर लाने का हर संभव प्रयास किया गया किन्तु उनकी आवाज भारतीय रेल के नक्कारखाने में तूती ही साबित हुई। पिछले बजट में इस मार्ग का जिकर होने से कुछ आशाएं अवश्य जगी हैं, किन्तु यक्ष प्रश्न अब भी यही है कि जब नागपुर से छिंदवाड़ा, सिवनी, नैनपुर होकर मण्डला और जबलपुर जाने वाला जो मार्ग अस्त्तिव में है उसका छिंदवाड़ा से नैनपुर और मण्डला का रेलखण्ड ही अभी तक नहीं बन पाया है तो नई रेल लाईन कब और कैसे आ पाएगी।
यहां उल्लेखनीय होगा कि जब जब चुनाव समाप्त हुए तो विजयी सांसद ने जनता से किए गए इस चुनावी वायदे को पूरा करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई है। लोकसभा सचिवालय के सूत्रों का कहना है कि सिवनी जिले के किसी भी संसद सदस्य द्वारा अब तक नैनपुर से बरास्ता सिवनी होकर छिंदवाड़ा जाने वाले रेलखण्ड के संबंध में प्रश्न नहीं उठाया गया है। सिवनी की सियासती जमीन इतनी भुरभुरी है कि बरास्ता राज्यसभा संसदीय सौंध तक पहुंचाने कांग्रेस और भाजपा को एक भी दावेदार नहीं मिला है इसलिए इस रेलखण्ड से संबंधित बात राज्य सभा में भी नहीं उठ सकी है।

लोकसभा चुनावों के आते ही सिवनी वासियों के मस्तिष्क पटल पर विकास का जो नक्शा उकेरा जाता रहा है उसमें ब्राडगेज को विशेष स्थान दिया जाता रहा है। लोगों को लगने लगता बस एक दो बरस में ही सिवनी ब्राडगेज से जुड़ जाएगा और फिर सिवनी के विकास के रास्ते प्रशस्त हो जाएंगे। सिवनी के निवासियों के युवा सदस्यों को इस विकास का भागीदार बनाकर यहां उद्योग धंधे स्थापित हो जाएंगे, फिर सिवनी में राम राज्य की स्थापना को कोई नहीं रोक सकता है।
(क्रमशः जारी)

बाबा आदम के जमाने में जी रही है कांग्रेस


बाबा आदम के जमाने में जी रही है कांग्रेस

तकनीकि मामलों में कांग्रेस मुख्यालय फिसड्डी

लिमटी खरे

नई दिल्ली। इक्कीसवीं सदी के भारत के स्वप्नदृष्टा तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की अर्धांग्नी एवं विश्व की ताकतवर महिलाओं में शुमार श्रीमति सोनिया गांधी के नेतृत्व में सवा सौ साल पुरानी और देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस का नेशनल हेडक्वार्टर आज भी बाबा आदम के जमाने में सांसे ले रहा है। तकनीकि मामलों में यह कार्यालय अन्य राजनैतिक पार्टियों के मुकाबले बेहद पिछड़ा ही है।

कांग्रेस की नजर में भविष्य के वजीरे आजम और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी एवं कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी का अपना निजी कार्यालय भले ही सूचना प्रोद्योगिकी के मामले में चाक चौबंद हो पर कांग्रेस का राष्ट्रीय मुख्यालय आज भी इस मामले में कराह ही रहा है।

हाल ही में रहीद किदवई की प्रकाशित एक पुस्तक कांग्रेस मुख्यालय का पता 24 अकबर रोड़ में इस बात का खुलासा हुआ है। कांग्र्रेस पर आरोप लगाया गया है कि उसने अपने मुख्यालय में अनेक अवैध निर्माण भी करवाए हैं। 295 पेज की यह किताब देश की सबसे पुरानी सियासी पार्टी कांग्रेस की अंदरूनी बातों को उजागर करती है।

कांग्रेस मुख्यालय का आलम यह है कि न तो यहां वाईफाई है और न ही अनेक महासचिवों और पदाधिकारियों के पास कंप्यूटर ही। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति इंदिरा गांधी से श्रीमति सोनिया गांधी तक कांग्रेस के मुख्यालय में कमरों के निर्माण तो करवाए गए हैं किन्तु शौचालयों की तादाद सीमित ही है। आलम यह है कि कांग्रेस अध्यक्ष सहित 11 महासचिवों के लिए तो शौचालय सहित कमरे हैं किन्तु अन्य पदाधिकारियों और आगंतुकों के लिए दो शौचालय हैं जो चोबीसों घंटे सड़ांध उगलते रहते हैं। किताब की बात को सच मानें तो मुख्यालय में एक भी शौचालय नहीं है जहां महिलाएं प्रसाधन कर सकें।

अण्णा को प्रथम नागरिक बनाने की तैयारी



अण्णा को प्रथम नागरिक बनाने की तैयारी

प्रतिभा ताई के बाद अण्णा का आशियाना होगा रायसीना हिल्स पर!

आम चुनावों के अण्णा को पिंजरे में बंद करने की कवायद

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। अण्णा के रामलीला मैदान के सफलतम अनशन के बाद लोग उनकी तुलना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से करने लगे थे। इंटरनेट पर तो अण्णा हजारे के चित्र वाले नोट भी बनकर आ गए थे। 16 अगस्त की धूम देशवासियों के सर चढ़कर बोल रही थी। लोगों का जोश और जुनून देखते ही बन रहा था। अण्णा प्रकरण में सत्ताधारी कांग्रेस के प्रबंधकों के सारे दांव उल्टे पड़ने के बाद अब सियासी दलों के नेता अण्णा की चौखट चूमते नजर आ रहे हैं।

अगले आम चुनावों में अगर अण्ण हजारे की दहाड़ एक बार फिर सुनाई पड़ी तो लोगों की भावनाओं का खिलवाड़ कर सत्ता की मलाई चखने वाले सियासी दल चारों खाने चित्त ही नजर आएंगे। इसी डर के चलते अब सियासी दलों के प्रबंधकों ने अण्णा के आसपास अपने ताने बाने बुनने आरंभ कर दिए हैं। प्रबंधकों का मानना है कि अण्णा जिस भी दल की गोद में बैठेंगे उसे चुनावों में खासा फायदा होने की उम्मीद है।

गौरतलब है कि अगले साल 2012 में जुलाई में देश का पहला नागरिक चुना जाना है एवं आम चुनाव मई 2014 में प्रस्तावित हैं। इस तरह अगर अण्णा को अपना उम्मीदवार बनाकर प्रस्तुत किया जाए तो निश्चित तौर पर यह संदेश जाएगा कि वह दल भ्रष्टाचार को मिटाने संकल्पित है। अण्णा का आशियाना रायसीना हिस्ल पर स्थित ब्रिटिश वायसराय जनरल के आवास यानी वर्तमान राष्ट्रपति भवन बनते ही अण्णा हजारे संवैधानिक मर्यादाओं के पालन के लिए पाबंद हो जाएंगे।

चर्चाओं के अनुसार शीर्ष सियासी दल कांग्रेस और भाजपा में इस विषय पर गंभीर मंथन भी चल रहा है। वैसे अण्णा के अनशन की समाप्ति पर यह संभावना व्यक्त की गई थी। उस वक्त ‘वे थे राष्ट्रपिता और ये होंगे राष्ट्रपति‘ शीर्षक की खबर ने सियासी हल्कों में तहलका भी मचाया था।

केंद्र बालाघाट में तैनात करेगा पेशेवर युवा


केंद्र बालाघाट में तैनात करेगा पेशेवर युवा

नक्सल प्रभावित जिलों की सुध ली सरकार ने

मण्डला, बालाघाट डिंडोरी हैं नक्सल प्रभावित

पीएम की मुहर हेतु लंबित है मामला

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश में तेजी से पैर पसारते नक्सलवाद पर अब केंद्र सरकार कुछ संजीदा होती नजर आ रही है। पिछले दिनों दिल्ली में हुई कलेक्टर्स कांफ्रेस के बाद केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने एक मसौदा तैयार किया है जिसके तहत विभाग की केंद्र पोषित योजनाओं के लिए सूबों के नक्सल प्रभावित जिलों में पेशेवर युवाओं की तैनाती का प्रस्ताव किया गया है। ये युवा जिलाधिकारियों का सहयोग करेंगे।

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने बताया कि इस योजना को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के समक्ष पिछले दिनों हुई नक्सल प्रभावित जिलों के कलेक्टर्स की बैठक में रखा गया था। नक्सल प्रभावित जिलों के कलेक्टर्स ने सरकार के इस प्रस्ताव को सराहा था। प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास फेलो प्रोग्राम को अब सिर्फ प्रधानमंत्री कार्यालय की अंतिम मुहर की दरकार है।

लोक कार्यक्रम और ग्रामीण प्रौद्योगिकी परिषद (कपार्ट) द्वारा स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से कार्यक्रमों का संचालन कराया जाता है। प्रधानमंत्री फेलो प्रोग्राम पर आने वाला पूरा खर्च कपार्ट उठाएगा। इससे खजाने पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा। इसके लिए उन स्वयंसेवी संगठनों का सहयोग लिया जाएगा, जो नक्सली क्षेत्रों में पहले से ही काम कर रहे हैं।

गौरतलब है कि वर्तमान में मध्य प्रदेश के बालाघाट मण्डला और डिंडोरी जिलों को नक्सल प्रभावित जिलों की श्रेणी में रखा गया है। मध्य प्रदेश सरकार ने सीधी, सिंगरोली, शहडोल, उमरिया और अनूपपुर को इसमें शामिल करने का प्रस्ताव दिया है। इस प्रस्ताव में बालाघाट और मण्डला जिले की सीमा से लगे सिवनी जिले को शुमार न किया जाना आश्चर्यजनक है क्योंकि कुछ सालों पहले तक सिवनी जिले में भी नक्सलवाद की पदचाप केवलारी और बरघाट विकासखण्ड में सुनाई देती रही है।

वैसे इस तरह के पेशेवर युवाओं को देश के 180 नक्सल प्रभावित जिलों में पदस्थ किए जाने की योजना है। वर्तमान में मध्य प्रदेश सहित छत्तीसगढ़, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखण्ड, बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल मुख्य रूप से नक्सलवाद की समस्या से जूझ रहे हैं। पिछले साल जुलाई माह में कर्नाटक को नक्सल प्रभावित राज्यों की सूची से हटा दिया गया था।

कलमाड़ी ने खेला था टिकिटों का भी खेल



कलमाड़ी ने खेला था टिकिटों का भी खेल

अपनों को बांट दी 72 करोड़ रू की टिकिटें

वेब साईट पर सोल्ड पर वास्तव में बिकी ही नहीं 75 फीसदी टिकिटें

टिकिट बिक्री के बाद जारी किए बिक्री के विज्ञापन!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। ‘हरि अनंत हरि कथा अनंता‘ की तर्ज पर कामन वेल्थ गेम्स की आयोजन समिति के अध्यक्ष रहे सुरेश कलमाड़ी के चमत्कार एक के बाद एक खुलते जा रहे हैं। हरि अर्थात भगवान के चमत्कार जनकल्याण के लिए थे किन्तु कलमाड़ी के चमत्कार कामन वेल्थ गेम्स के रास्ते खुद की वेल्थ सुधारने के लिए थे। इस आयोजन के लिए जनता के गाढ़े पसीने की कमाई के 72 करोड़ रूपयों की टिकिटें उपहार में ही बांट दी गई थीं।

उद्घाटन और समापन समारोह के लिए 23 हजार टिकिटें उपहार में दी गई थीं। लोगों ने इन्हें ले तो लिया किन्तु खेल देखने नहीं पहुंचे, परिणाम स्वरूप स्टेडियम में चालीस फीसदी सीट खाली ही रहीं। टिकिटों के लिए दर्शकों ने दस दिन में चालीस लाख से ज्यादा बार इसकी वेब साईट खंगाली किन्तु वहां टिकिटें सोल्ड ही मिलीं। और तो और दिल्ली में टिकिट बेचने के लिए एक भी काउंटर नहीं खोला गया। आईआरसीटीसी को सिर्फ एक आउटलेट के लिए दो करोड़ रूपयों का भुगतान कर दिया गया।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (केग) के प्रतिवेदन ने यह खुलासा किया है। आयोजन समिति द्वारा जून 2010 में टिकिटिंग सलाहकरा के द्वारा अनुबंध समाप्त होने पर विशेषज्ञ की राय के बिना ही खुद के द्वारा निर्णय ले लिए गए। अफरातफरी का माहौल इस कदर था कि सितम्बर 2010 तक टिकिटों की बिक्री आरंभ नहीं हो सकी।

इतना ही नहीं शुरूआत में टिकिटों से मिलने वाले राजस्व का लक्ष्य सौ करोड़ रखा गया था। बाद में इससे कुल राजस्व 39 करोड़ 17 लाख रूपए ही प्राप्त हुए। आश्चर्यजनक पहलू तो यह है कि टिकिट की बिक्री और प्रबंधन में ही 23 करोड़ 37 लाख रूपए खर्च हो गए। टिकिटों से कुल शुद्ध राजस्व करोड़ महज 15 करोड़ अस्सी लाख रूपए ही मिल पाया।