थापर ग्रुप के लिए बन रही हैं, चमचमाती सडकें
झाबुआ पावर प्लांट में होगा इन सडकों से कोयला सप्लाई
सिवनी जिले की सडकों के उड जाएंगे धुरेZ
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। देश की जानी मानी थापर ग्रुप ऑफ कम्पनीज को लाभ दिलाने के लिए देश के सबसे लंबे और व्यस्ततम राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक सात को चमचमाता फोरलेन में तब्दील करने का इन्तजाम किया जा रहा है। वैसे भी मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर से महज सौ किलोमीटर दूर बनने झाबुआ पावर लिमिटेड के पावर प्लांट की प्रोजेक्ट रिपोर्ट में ही अनेक विसंगतियां होने के बाद भी न तो मध्य प्रदेश सरकार ने ही उसकी ओर ध्यान दिया और न ही केन्द्र सरकार के आला अधिकारियों की नज़रें ही इस पर इनायत हो रही हैं।
केन्द्रीय कोयला मन्त्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि यद्यपि अभी तक झाबुआ पावर लिमिटेड के लिए कोल लिंकेज का अलाटमेंट नहीं किया गया है, फिर भी झाबुआ पावर लिमिटेड ने अपना कोल परिवहन अनूपपुर स्थित कोयला खदान से किया जाना दर्शाया है। इस मामले में सबसे रोचक तथ्य यह है कि कंपनी ने अपना कोल परिवहन रेल मार्ग से किया जाना प्रस्तावित किया गया है। सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील के बरेला ग्राम में प्रस्तावित इस पावर प्लांट के लिए कोयला ब्राड गेज से अनूपपुर से जबलपुर लाया जाएगा, इसके उपरान्त इसे अनलोड कर नेरो गेज में पुन: लोड कर घंसोर लाया जाएगा।
कंपनी की इस प्रोजेक्ट रिपोर्ट में अनेक तकनीकि पेंच हैं, जिन्हें पूरी तरह से नज़र अन्दाज ही किया गया है। अव्वल तो यह कि अगर ब्राड गेज से कोयला अनूपपुर से ढुलकर जबलपुर आ भी गया तो जबलपुर के ब्राड गेज के यार्ड से उसे नेरो गेज के यार्ड तक कैसे लाया जाएगा। या तो उन्हें ब्राड गेज के यार्ड से नैरो गेज के यार्ड तक लाईन बिछानी पडेगी या फिर ट्रक के माध्यम स ेनैरो गेज तक ढोना पडेगा। इतना ही नहीं आने वाले समय में जब बालाघाट से जबलपुर अमान परिवर्तन का काम आरम्भ हो जाएगा तब नैरो गेज की पटरियां उखाड दी जाएंगी, एसी परिस्थिति में फिर कोयला परिवहन का वैकल्पिक साधन बच जाएगा सडक मार्ग। वैसे भी लोडिंग अनलोडिंग की प्रक्रिया झाबुआ पावर लिमिटेड के लिए काफी खर्चीली और समय की बरबादी वाली ही होगी।
झाबुआ पावर लिमिटेड के भरोसेमन्द सूत्रों का कहना है कि कंपनी द्वारा अन्त में सडक मार्ग से ही कोयले की सप्लाई की कार्ययोजना बनाई जा रही है। इसके लिए बडे ट्रांसपोर्टर्स को भी तलाशा जा रहा है। आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील के बरेला के इस प्रस्तावित पार प्लांट के लिए 32 लाख टन कोयला का परिवहन प्रतिवर्ष अनूपपुर से घंसौर तक होना प्रस्तावित है। हाल ही में रीवा से लखनादौन तक के राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक सात के हिस्से को भी फोल लेन में तब्दील किए जाने का प्रस्ताव आया है। कहा जा रहा है कि थापर ग्रुप ऑफ कम्पनीज के दवाब में आकर केन्द्र सरकार द्वारा इस मार्ग की मरम्मत और इसे चौडा करने की कार्ययोजना बनाई है।
सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीआरआरआई) सदा ही एक बात का रोना रोती रहती है कि देश की सडकें उसके द्वारा निर्धारित गुणवत्ता के अनुसार नहीं बन पाती हैं, और जितना भार उन पर चलना चाहिए उससे कहीं ज्यादा भार परिवहन और पुलिस महकमे की कृपा से चलता है, इन परिस्थितियों में सडकों की दुर्दशा होना स्वाभाविक ही है। डर तो इस बात का है कि जब वर्तमान में लखनादौन से घंसोर मार्ग जर्जर हाल में है तब थापर ग्रुप ऑफ कंपनीज के प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड के बरेला में प्रस्तावित संयन्त्र में लाखों टन कोयला परिवहन किया जाएगा तब तो अधमरी सडकों के धुर्रे उडने में समय नहीं लगेगा।