गुरुवार, 20 जनवरी 2011

राष्ट्रधर्म के बजाए गठबंधन धर्म निभाया कांग्रेस ने

आजाद भारत के सबसे बेबस प्रधानमंत्री साबित हुए मनमोहन

इससे बेहतर तो पुराना चेहरा ही था

कांग्रेस के अंदर ही उबल रहा है असंतोष

(लिमटी खरे)

भारत गणराज्य भ्रष्टाचार, अनाचार, दुराचार की आग में जल रहा है, उधर कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी और वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह नीरो के मानिंद चैन की बंसी बजा रहे हैं। कांग्रेस के युवराज ने कुछ दिन पहले गठबंधन की मजबूरियों पर प्रकाश डाला था। देशवासियों के जेहन में एक बात कौंध रही है कि बजट सत्र के ठीक पहले हुए इस फेरबदल और विस्तार के जरिए कांग्रेस क्या संदेश देना चाह रही है? संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की दूसरी पारी में जितने घपले घोटाले सामने आए हैं, वे अब तक का रिकार्ड कहे जा सकते हैं। मंत्रियों, अफसरशाही की जुगलबंदी के चलते लालफीताशाही के बेलगाम घोड़े ठुमक ठुमक कर देशवासियों के सीने पर दली मूंग के मंगौड़े तल रहे हैं। महंगाई आसमान छू रही है, आम आदमी मरा जा रहा है, प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि वे ज्यांतिषी नहीं हैं कि बता सकें कि आखिर कब महंगाई कम होगी। मनमोहन भूल जाते हैं कि वे भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री हैं। भारत के संविधान में भले ही महामहिम राष्ट्रपति को सर्वोच्च माना गया हो किन्तु ताकतवर तो प्रधानमंत्री ही होता है। अगर मनमोहन सिंह चाहें तो देश में मंहगाई, घपले घोटाले, भ्रष्टाचार पलक झपकते ही समाप्त हो सकता है, किन्तु इसके लिए मजबूत इच्छा शक्ति की आवश्यक्ता है, जिसकी कमी डॉ.मनमोहन सिंह में साफ तौर पर परिलक्षित हो रही है।

उन्नीस माह पुरानी मनमोहन सरकार में पिछले लगभग अठ्ठारह माह से ही फेरबदल की सुगबुगाहट चल रही थी। तीन नए मंत्रियों को शामिल करने, तीन को पदोन्नति देने और चंद मंत्रियों के विभागों में फेरबदल के अलावा मनमोहन सिंह ने आखिर किया क्या है? हमारी नितांत निजी राय में यह मनमोहनी डमरू है, जो देश की मौजूदा समस्याओं, घपलों, घोटालों, भ्रष्टाचार, नक्सलवाद, अलगाववाद, आतंकवाद की चिंघाड़ से देशवासियों का ध्यान बंटाने का असफल प्रयास कर रहा है। संप्रग दो में असफल और अक्षम मंत्रियों को बाहर का रास्ता न दिखाकर प्रधानमंत्री ने साबित कर दिया है कि वे दस जनपथ (श्रीमति सोनिया गांधी के सरकारी आवास) की कठपुतली से ज्यादा और कुछ नहीं हैं। आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे मंत्रियों को बाहर करके मनमोहन सिंह अपनी और सरकार की गिरती साख को बचाने की पहल कर सकते थे, वस्तुतः उन्होंने एसा किया नहीं है। आज देश प्रधानमंत्री से यह प्रश्न पूछ रहा है कि जो मंत्री अपने विभाग में अक्षम, अयोग्य या भ्रष्टाचार कर रहा था, वह दूसरे विभाग में जाकर भला कैसे ईमानदार, योग्य और सक्षम हो जाएगा? साथ ही साथ प्रधानमंत्री को जनता को बताना ही होगा कि आखिर वे कौन सी वजह हैं जिनके चलते मंत्रियों के विभागों को महज उन्नीस माह में ही बदल दिया गया है। क्या वजह है कि सीपीजोशी को ग्रामीण विकास से हटाकर भूतल परिवहन मंत्रालय दिया गया है?

दरअसल विपक्ष द्वारा शीत सत्र ठप्प किए जाने के बाद अब बजट सत्र में अपनी खाल बचाने के लिए मंत्रियों के विभागों को आपस में बदलकर देश के साथ ही साथ विपक्ष को संदेश देना चाह रही है कि अब भ्रष्ट मंत्रियों की नकेल कस दी गई है। वैसे कांग्रेस की नजरों में भविष्य के प्रधानमंत्री और युवराज राहुल गांधी की युवा तरूणाई को इस मंत्रीमण्डल में स्थान न देकर कांग्रेस ने एक संदेश और दिया है कि आने वाले फेरबदल में भ्रष्टों को स्थान नहीं दिया जाएगा, बजट सत्र के बाद जो फेरबदल होगा वह राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने का रोडमेप हो सकता है। इसी बीच इन तीन चार माहों में भ्रष्ट और नाकारा मंत्रियों को भी अपना चाल चलन सुधारने का मौका दिया जा रहा है, किन्तु मोटी खाल वाले मंत्रियों पर इसका असर शायद ही पड़ सके। इसी बीच मंहगाई पर काबू पाने के लिए भी कुछ प्रयास होने की उम्मीद दिख रही है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी की जो छवि है, वह भी बचाकर रखने के लिए कांग्रेस के प्रबंधकों ने देशी छोड़ विदेशी मीडिया को साधना आरंभ कर दिया है। कांग्रेस के प्रबंधक जानते हैं कि देश में मीडिया को साधना उतना आसान नहीं है, क्योंकि न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बाद अघोषित चौथे स्तंभ ‘‘मीडिया‘‘ के पथभ्रष्ट होने के उपरांत ‘ब्लाग‘ ने पांचवे स्तंभ के बतौर अपने आप को स्थापित करना आरंभ कर दिया है।

इस फेरबदल में वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी, कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को भारी मशक्कत करनी पड़ी है। एक दूसरे के बीच लगातार संवाद कराने में कांग्रेस अध्यक्ष के राजनैतिक सलाहकार अहमद पटेल की महती भूमिका रही। किसी को इस फेरबदल का लाभ हुआ हो अथवा नहीं किन्तु इसका सीधा सीधा लाभ अहमद पटेल को होता दिख रहा है, जिन्होंने एक बार फिर कांग्रेस सुप्रीमो की नजर में अपनी स्थिति को मजबूत बना लिया है। दस जनपथ और सात रेसकोर्स के बीच अहमद पटेल ने सेतु का काम ही किया है। बताते हैं कि फेरबदल में मंत्रियों को बाहर का रास्ता न दिखाने का सुझाव अहमद पटेल का ही था। पटेल ने कांग्रेस अध्यक्ष को मशविरा दिया कि अगर मंत्रियों को हटाया गया तो वे पार्टी के अंदर असंतोष को हवा देंगे, तब बजट सत्र में टू जी स्पेक्ट्रम, विदेशों में जमा काला धन वापस लाना, नामों के खुलासे, महंगाई, सीवीसी की नियुक्ति आदि संवेदनशील मुद्दों पर पार्टीजनों को संभालना बड़ी चुनौती बनकर सामने आएगा। भले ही कांग्रेस प्रबंधकों ने यह सोचा होगा कि टीम मनमोहन से आक्रोश को शांत किया जा सकता है, किन्तु अभी भी पार्टी के अंदर लावा उबल ही रहा है।

मनमोहन ने देश की वर्तमान चुनौतियों को दरकिनार कर गठबंधन का धर्म ही निभाया है। भारत में गठबंधन सरकार का श्रीगणेश सत्तर के दशक में हुआ था। आपातकाल के उपरांत 1977 में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था, उस समय मोरारजी देसाई के नेतृत्व में पहली गठबंधन सरकार केंद्र पर काबिज हुई थी। इसके बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, नरसिंम्हाराव, अटल बिहारी बाजपेयी, एच.डी.देवगौड़ा, इंद्रकुमार गुजराल पुनः अटल बिहारी बाजपेयी के बाद डॉ.मनमोहन ंिसह की सरकार द्वारा दो बार गठबंधन के जरिए केंद्र पर राज किया है। इक्कीसवीं सदी में सरकार में शामिल सहयोगी दलों द्वारा जब तब कांग्रेस या भाजपा की कालर पकड़कर उसे झझकोरा है। बिना रीढ़ के प्रधानमंत्रियों ने सहयोगी दलों के इस रवैए को भी बरदाश्त किया है। बहरहाल जो भी हो गठबंधन धर्म निभाते हुए कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ही ने सत्ता की मलाई का रस्वादन अवश्य किया है पर गठबंधन के दो पाटों के बीच में पिसी तो आखिर देश की जनता ही है।

युवाओं को तरजीह न देने से राहुल हैं नाराज!

युवराज खफा हैं टीम मनमोहन के गठन से!

गायब रहे शपथ ग्रहण समारोह से

उप प्रधानमंत्री न बन पाने का मलाल दिखा प्रणव के चेहरे पर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। भ्रष्टाचार से चौतरफा घिरी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की दूसरी पारी में हुए पहले फेरबदल से राहुल गांधी ने अपने आप को दूर ही रखा। उधर उप प्रधानमंत्री न बन पाने की पीड़ा प्रणव मुखर्जी के चेहरे पर साफ दिखाई पड़ रही थी। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को प्रसन्न करने के लिए फोटो सेशन में भारी उद्योग मत्री प्रफुल्ल पटेल ने उन्हें भी आमंत्रित कर डाला। इस फेरबदल से कांग्रेस में रोष और असंतोष की स्थिति बनती जा रही है। फेरबदल में आपाधापी का माहौल इस कदर था कि मंत्रियों को अपने अपने विभागों के बारे में ही पता नहीं था, जबकि सरकारी वेब साईट पर मंत्रीमण्डल की सूची पहले ही जारी कर दी गई थी।

कांग्रेस की नजर मे ंभविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी को शपथ ग्रहण समारोह में सभी की नजरें तलाशती रहीं किन्तु उन्होंने इस कार्यक्रम में शिरकत नहीं की। राहुल के करीबी सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी देश के वर्तमान हालातों और केंद्र सरकार की कार्यप्रणाली से खासे खफा हैं। राहुल चाह रहे थे कि मंत्री मण्डल से दागदार चेहरों को बाहर कर इसमें युवाओं को मौका दिया जाए। राहुल गांधी की बात कांग्रेस के रणनीतिकारों को जम तो रही थी किन्तु वे फिलहाल बजट सत्र तक कोई जोखम उठाना नहीं चाह रहे थे। सूत्रों की मानें तो राहुल ने अपनी नाराजगी को तल्ख शब्दों में प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन ंिसह और कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी तक पहुंचा दिया है। सियासी गलियारों में चल रही चर्चाओं के अनुसार वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी को पूरी उम्मीद थी कि उन्हें केंद्र सरकार में उप प्रधानमंत्री बना दिया जाएगा। अंतिम समय में जब उनकी मनोकामना पूरी नहीं हुई तो वे शपथ ग्रहण समारोह में कटे कटे से नजर आए। समारोह में अधिकांश समय प्रणव ने पत्रकारों से बतियाकर ही गुजारा। बाद में जब प्रधानमंत्री डॉ.एम.एम.सिंह की नजर उन पर पड़ी तो खुद प्रधानमंत्री उठकर प्रणव के पास गए और इशारे से उन्हें बुलाकर उनके कान में कुछ मंत्र फूंका।

समारोह में जब मंत्रियों के साथ प्रेजीडेंट और पीएम का फोटो सेशन हो रहा था, तब पदोन्नत हुए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रफुल्ल पटेल ने कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को खुश करने की गरज से उन्हें भी फोटो सेशन में शामिल होने का आमंत्रण दे डाला। जैसे ही राकांपा क्षत्रप शरद पंवार ने उन्हें देखा तो इशारे से पास बुलाकर कहा कि प्रोटोकाल के मुताबिक इस सेशन में मंत्रियों के अलावा प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ही शामिल हो सकते हैं। यह मंत्रिमण्डल विस्तार कांग्रेस अध्यक्ष के लिए बहुत ही बड़ी चुनौति बना हुआ था, यही कारण है कि इसमें अंतिम समय तक लगाई जा रही अफवाहें अटकलें परवान न चढ़ सकीं। मंत्रियों को अपने अपने विभागों की जानकारी भी पत्रकारों के माध्यम से मिली, क्योंकि मंत्रियों के विभागों की सूची सरकारी वेब साईट पर शपथ ग्रहण से कुछ समय पूर्व ही डाल दी गई थी।



कांग्रेस में फट रहा है असंतोष का लावा

क्षेत्रीय संतुलन न बाना पाने और भ्रष्ट मंत्रियों के पर न कतरे जाने से कांग्रेस के अंदरखाने में रोष और असंतोष तेजी से भड़क रहा है। मीरा कुमार को छोड़कर बिहार से कोई नहीं है, वहीं छत्तीसगढ़ गोवा, त्रिपुरा, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, मणिपुर, नागालेण्ड, मिजोरम को भी प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है। आंध्रा की रेणुका चौधरी को उम्मीद थी कि वे लाल बत्ती पा सकती हैं, किन्तु वे निराश ही हुईं। उधर यूपी के बेनी वर्मा को केबनेट मंत्री बनाने का आश्वासन दिया गया था, जिन्होंने शपथ ग्रहण के बाद अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए न तो मीडिया से चर्चा की और न ही वहां से लाल बत्ती वाली गाड़ी की सवारी करना पसंद किया। वर्मा शपथ ग्रहण के बाद अपने उसी वाहन से वापस लौटे जिसमें बैठकर वे आए थे। पीएमओ के सूत्रों ने बताया कि बाद में पीएम के निर्देश पर कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने वर्मा को समझाया तब जाकर गुरूवार को उन्होंने इस्पात राज्यमंत्री का पदभार ग्रहण कर लिया।

टेक्निकल एजूकेशन में सेकंड शिफ्ट की मांग की शर्मा ने

तकनीकी शिक्षा मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा द्वारा तकनीकी शिक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में सुझाव

टेक्निकल एजूकेशन में सेकंड शिफ्ट की मांग की शर्मा ने

नई दिल्ली (ब्यूरो)। तकनीकी एवं उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने हिन्दीभाषी विद्यार्थियों के हित में संवाद कौशल को तकनीकी पाठ्यक्रम में शामिल करने, उद्योगों की आवश्यकतओं तथा पूर्ति के अंतर के आंकलन के लिए संस्थागत व्यवस्था करने तथा तकनीकी शिक्षण संस्थाओं में दूसरी पाली शुरु करने की अनुमति दिये जाने का सुझाव दिया है।

श्री शर्मा आज यहाँ केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल की अध्यक्षता में राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा अर्हता ढाँचा निर्धारित करने के लिए आयोजित राज्यों के तकनीकी शिक्षा मंत्रियों की बैठक को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने विभिन्न एजेंसियों द्वारा प्रदाय की जा रही अर्हताओं में एकरुपता लाने की दृष्टि से तैयार किये जा रहे एकीकृत ढांचे को सराहनीय और स्वागत योग्य बताते हुए, इसमें राज्य सरकारों के विचारों तथा प्रस्तावों को शामिल करने का आग्रह किया।

तकनीकि शिक्षा मंत्री ने कहा कि हिन्दी भाषी प्रदेशों के विद्यार्थी तकनीकी रूप से सक्षम होने के बावजूद कौशल की कमी के कारण रोजगार प्राप्त करने में कठिनाई का सामना करते हैं। इसे दूर करने और बेहतर नियोजन के लिए आवश्यक कौशल तथा संवाद कौशल को पाठ्यक्रम का आवश्यक अंग बनाया जाए।

श्री शर्मा ने सुझाव दिया कि उद्योगों की आवश्यकताओं तथा मांग और पूर्ति के अंतर के आंकलन के लिए एक बार व्यवस्था की जगह इसे संस्थागत स्वरूप दिया जाना चाहिए, ताकि प्रादेशिक स्तर पर इस प्रकार के आंकलन के डाटा का सतत रूप से पाठ्यक्रम के पुनरीक्षण, नवीन पाठ्यक्रमों को शुरू करने तथा अप्रासंगिक पाठ्यक्रमों को बंद करने में किया जा सके। श्री शर्मा ने पारम्परिक व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के साथ गौ संवर्द्धन एवं जैविक खेती के काम आने वाले पाठ्यक्रमों को भी इसमें शामिल करने का सुझाव दिया।

तकनीकी शिक्षा मंत्री ने कहा कि शिक्षकों की गुणवŸाा से ही व्यावसायिक शिक्षा का लक्ष्य प्राप्त हो सकता है। शिक्षकों के प्रशिक्षण और उन्मुखीकरण के लिए प्रदेश में एडवान्सड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट स्थापित किया जाए। उन्होंने कहा कि आईटीआई संस्थाओं के भवनों के निर्माण के लिए मध्यप्रदेश को लगभग 160 करोड़ रुपये की आवश्यकता है। उन्होंने केन्द्र से यह राशि एक मुश्त उपलब्ध कराने का अनुरोध किया। श्री शर्मा ने कहा कि प्रदेश के निजी इंजीनियरिंग महाविद्यालयों में तकनीकी ज्ञान एवं प्रशिक्षण देने के लिए बड़ी अधोसरंचना उपलब्ध है। एआईसीटीई द्वारा इन महाविद्यालयों तथा पॉलीटेकनिक महाविद्यालयों को द्वितीय शिफ्ट में आईटीआई प्रारम्भ करने की स्वीकृति दी जाए। इससे बड़े पैमान पर कौशल विकास का कार्य किया जा सकेगा।

श्री शर्मा ने कहा कि पीपीपी मोड में पॉलीटेकनिक स्थापित करने की योजना के तहत मध्यप्रदेश को 97 प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। ये प्रस्ताव छानबीन और दिशा निर्देशों के लिये भारत शासन को भेज दिये गये हैं। उन्होंने इन प्रस्तावों को शीघ्र मंजूर किये जाने का अनुरोध किया, जिससे प्रदेश के पॉलीटेकनिक महाविद्यालयों में प्रवेश क्षमता में लगभग 30 हजार की वृद्धि होगी। उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश में पीपीपी मोड में 110 आईटीआई तथा 313 कौशल विकास केन्द्र खोले जाने का प्रस्ताव भारत शासन के पास लंबित है जिसे शीघ्र स्वीकृति दी जाए। श्री शर्मा ने बताया कि मध्यप्रदेश में गुणवŸाा सुनिश्चित करने के लिये व्यावसायिक शिक्षण संस्थाओं के बीच प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इन संस्थाओं की रेकिंग और ग्रेडिंग करने का निर्णय लिया गया है।

श्री शर्मा ने व्यावसायिक कम्प्युनिटी पॉलीटेकनिक योजना प्रदेश के सभी पॉलीटेकनिक महाविद्यालयों में लागू किये के प्रस्ताव के बारे में भी जानकारी दी । उन्होंने मध्यप्रदेश में तकनीकी शिक्षा के विस्तार और गुणवŸाा में सुधार के लिये राज्य सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों की भी विस्तार से जानकारी दी।

आवाम ए हिन्‍द 05 जनवरी 2011

ये है दिल्‍ली मेरी जान

बेईमान ही बेईमान

हम भी बेईमान तो तुम भी बेईमान....


(मनोज मर्दन त्रिवेदी)
सिवनी। किसानों के खेत में ओला गिरे, पाला गिरे, सूखा पड़े या अतिवृष्टि हो,इल्लियों से फसल नष्ट हो जाये। किसानों क बर्बादी पर राजनैतिक व्यक्ति जश्र मनाते नजर आते हैं। किसानों की फसल चौपट चाहे किसी भी कारण से हो,किसानों पर विपदा आते ही राजनीति करने वालों की फसल लहलहा जाती है। चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष दोनो अपने-अपने स्तर की राजनीति करते हैं। उन्हे किसानों की आपदा पर सुनहरा अवसर मिल जाता है। हाल ही में सिवनी सहित पूरे प्रदेश में कड़ाके की ठंड में गिरे पाले और तुषार से किसानों की फसलें चौपट हो गयी हैं,प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यह घोषणा कर रहे हैं कि 50 प्रतिशत नुकसानी को 100 प्रतिशत मानकर किसानों को राहत प्रदान की जायेगी। कोई उन्हे किसान विरोधी नेता न कह दे इसका उन्हे भय ऐंसा सताया कि उन्होने दर्जन भर घोषणाऐं किसानों के हित में कर डाली,जिसके साथ उन्होने एक ऐंसी हास्यप्रद घोषणा भी की है जिसे पूरी करना सरकार के वश की बात नहीं और यदि किसान उनकी घोषणा का पालन करता है तो और भी बड़े नुकसान में चला जायेगा,परंतु उस बात की ओर प्रशासन तंत्र की तो हिम्मत नहीं है कि उन्हे सलाह दे सके,सत्ता पक्ष के और विपक्ष के नेता भी उस बात का उल्लेख करने से बच रहे हैं। मुख्यमंत्री की यह घोषणा साहूकारों का ऋण अदा न करने से संबंधित है। यह बात मुख्यमंत्री भी अच्छी तरह जानते हैं कि साहूकार जितना ऋण देता है,उससे दुगनी कीमत की मूल्यवान वस्तु अपने पास गिरवी रख लेता है। किसान यदि उसका ऋण अदा नहीं करेगा तो किसान को साहूकार को ब्याज देना पड़ेगा साथ ही यदि समय बीत जाता है तो किसान का जेवर या जो वस्तु उसने गिरवी रखी है वह डूब जायेगी।

50 प्रतिशत नुकसानी को 100 प्रतिशत नुकसानी मानने की परिभाषा बड़े राजनैतिक व्यक्ति बेहतर समझते हैं, परंतु किसानों को वे समझाने से हमेशा परहेज करते हैं। ठाकुर हरवंश सिंह क्षेत्र का सघन दौरा कर किसानों के हमदर्द बनने की नौटंकी कर रहे हैं,उन्हे कम से कम उस 50 प्रतिशत की परिभाषा किसानों को स्पष्ट समझा देना चाहिये था परंतु सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की मजबूरी उन्हे ऐंसा करने से रोक देती है। किसानों के धरना कार्यक्रम में शामिल होने के लिए उनके समर्थकों द्वारा किसानों और उनका अभिनंदन संबंधी विज्ञापन जारी होना किसानों के प्रति क्या पीड़ा है कांगे्रस की उस मानसिकता को प्रकट करता है। ठाकुर हरवंश सिंह मामूली एक विधायक नहीं पूरी सरकार हैं, वे चाहें तो विधानसभा उपाध्यक्ष के नाते राजस्व पुस्तिका में संशोधन करा सकते हैं,परंतु इसके लिए राजनैतिक ईमानदारी की आवश्यकता है जो राजनैतिक व्यक्तियों में कम पायी जाती है। राजस्व रिकार्ड के अनुसार प्रति एकड़ जो उत्पादन दर्ज है,आज किसान उससे दुगना-तिगना उत्पादन अपने खेतों में कर रहा है परंतु यह किसानों द्वारा महंगे बीज,खाद महंगी दवाईयां और महंगी तकनीकियों के बल पर किया जा रहा है। उत्पादन का आंकलन पुराने रिकार्ड के अनुसार होता है जबकि वर्तमान में लागत अधिक लगाकर किसान अपने उत्पादन को बढ़ा चुका है। यह संशोधन जब तक नहीं होगा किसानों को पर्याप्त नुकसानी मिलना संभव नहीं है। ठाकुर हरवंश सिंह को विरोध नहीं विधानसभा उपाध्यक्ष के नाते संशोधन पर बल देना चाहिये। किसानों की आपदा पर अभिनंदन नहीं उनके साथ ईमानदारी से खड़े होकर साथ निभाना चाहिये। जनता उन पर अटूट विश्वास जताते रही है,उस विश्वास के अनुरूप उन्हे अपनी भूमिका निभाकर अपने विशाल हृदय का परिचय दें। किसानों की आपदा पर जारी हुए विज्ञापन किस मानसिकता से जारी किये गये थे संभव है कांग्रेस इस पर मंथन कर रही हो,परंतु आम जनता एक ही राग अलाप रही है कि नेता बेईमान तो चेला बेईमान। परेशानियों से जूझता किसान फिर भी मेरा देश महान।

जारी......