शनिवार, 21 अगस्त 2010
वेतन भत्तों के लिए नंगा नाच हो रहा है संसद में
घर के लड़का गौहीं चूसें, मामा खाए अमावट
भरपूर सुविधाएं फिर भी सांसदों का नहीं भर रहा पेट
रियाया मरे भूखी पर सांसदों का पेट होना चाहिए भरा
जनता को बेवकूफ ही समझते हैं देश के नीति निर्धारक
आम जनता के लिए क्या किया है सांसदों ने!
वेतन का त्याग और नैतिक मान्यताओं पर उतरना होगा खरा
(लिमटी खरे)
बुंदेल खण्ड की एक मशहूर कहावत है- ‘‘घर के लड़का गोहीं (आम की गुठली) चूसें, मामा खाएं अमावट (आम के रस से तैयार होने वाला एक स्वादिस्ट पदार्थ)।‘‘ जिसका भावार्थ कुछ इस प्रकार है कि घर में बच्चे भूख से परेशान होकर आम के रस निकालने के उपरांत बची गुठली को चूसने पर मजबूर हैं, किन्तु जब माता का भाई (मामा) आता है तो उसी रस को गाढ़ा करने के उपरांत बनाई गई आमवट उसके आगे परोस दी जाती है। इस तरह का सौतेला व्यवहार किया जाता है।
कमोबेश यही आलम देश की सबसे बड़ी पंचायत में बीते गुरूवार और शुक्रवार को देखने को मिला। दोनों ही दिन सांसदों ने अपने वेतन भत्तों को बढ़वाने के लिए जो नग्न नृत्य किया है, वह समूचे देश और दुनिया से छिपा नहीं है। सांसद कितनी संजीदगी के साथ अपने वेतन और भत्तों में कई गुना वृद्धि करवाना चाह रहे थे, और जब उन्हें वोट देने वाली जनता के अधिकार और कर्तव्यों पर बहस की बारी आती है, तो ये माननीय बगलें झांकने लगते हैं। मंहगाई पर संसद ठप्प नहीं होती है, महिला आरक्षण बिल परवान नहीं चढ़ पाता है पर जब अपने खुद के वेतन भत्तों के निर्धारण की बात आती है तब ये माननीय एक स्वर में चिल्ला कर सदन को सर पर उठा लेते हैं।
सवाल यह है कि खुद के वेतन भत्तों का निर्धारण कोई खुद कैसे कर सकता है? यह परंपरा तो कार्पोरेट सेक्टर में ही देखने को मिलती है कि किसी कंपनी का मालिक अपने वेतन भत्ते और सुविधाओं के मामले में स्वयं ही तय कर लेता है, और फरमान सुना देता है। ठीक इसी तरह देश के चुने हुए जनसेवक अपने वेतन भत्तों के बारे में फैसला ले लेते हैं मानो देश की सबसे बड़ी पंचायत एक प्राईवेट लिमिटेड कंपनी बनकर रह गई हो।
दरअसल सांसदों के मन में मेरी साड़ी तेरी साड़ी से सफेद कैसी की भावना घर कर गई है। यही कारण है कि लालू प्रसाद यादव जैसे सांसद सदन में चिल्ला चिल्ला कर यह स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं कि उनका ओहदा एक जूनियर क्लर्क से कम है। भले ही यह बात वे वेतन भत्तों के संदर्भ में कह रहे हों पर उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि सैद्धांतिक मामलों में जनसेवक को नौकरशाहों से कहीं उपर का दर्जा प्राप्त है।
सांसदों की इस दलील पर विचार किया जा सकता है कि उन्हें अपने विशाल संसदीय क्षेत्र में जाकर अपने मतदाताओं की पूछ परख और आवभगत में मौजूदा वेतन भत्तों के चलते काफी दिक्कत होती है। सांसद जब अपने संसदीय क्षेत्र में जाता है तो उसे 13 रूपए किलोमीटर की दर से वाहन का किराया मिलता है, जो बाजार दर के हिसाब से देखा जाए तो विलासिता वाले वाहनों की दर है। इसके अलावा कार्यालय भत्ता 20 हजार रूपए, निर्वाचन क्षेत्र भत्ता 20 हजार रूपए, सत्र के दौरान मिलने वाला भत्ता एक हजार रूपए प्रतिदिन, और वेतन 16 हजार रूपए। कुल मिलाकर एक सांसद को प्रतिमाह छप्पन हजार रूपए तो नकद मिल ही जाते हैं।
इसके आलवा अपनी पत्नी या किसी रिश्तेदार के साथ माननीय साल भर में 34 हवाई उड़ान, रेल गाड़ियों के प्रथम श्रेणी वातानुकूलित में पत्नि या एक रिश्तेदार के साथ असीमित मुफ्त यात्रा, दिल्ली में निशुल्क आवास, दो टेलीफोन जिसमें हर साल 50 हजार लोकल काल मुफ्त, एक अन्य टेलीफोन इंटरनेट के साथ, 04 हजार किलोलीटर पानी और 50 हजार यूनिट बिजली एकदम मुफ्त।
मौजूदा सिफारिशों के अनुसार वेतन पचास हजार रूपए, कार्यालय खर्च चालीस हजार रूपए, संसदीय क्षेत्र भत्ता चालीस हजार रूपए, वाहन का माईलेज 16 रूपए प्रति किलोमीटर तय किया गया है। पूर्व सांसदों को पेंशन आठ के बजाए अब बीस हजार रूपए मिलेगी। इस तरह एक सांसद को प्रतिमाह मिलने वाला कुल वेतन एक लाख तीस हजार रूपए है। क्या यह वेतन उनकी जरूरतं पूरी करने के लिए नाकाफी है।
सांसदों के वेतन भत्ते बढ़ाने की मांग गांधीवादी सोच को तजने और कार्पोरेट सेक्टर की अवधारणा से प्रेरित होने के कारण ही उपजी है। वर्तमान सांसदों को यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि लगातार लंबे स्वतंत्रता संग्राम के जिन नैतिक आदर्शों और मूल्यों से भारत का लोकतंत्र और संघीय संसदीय ढांचा पैदा हुआ है, उनमें बहुतेरे सांसद एसे भी हुए हैं जिनके निधन के बाद उनकी कोई संपत्ति तक नहीं थी।
इस मामले में कांग्रेस अध्यक्ष का कथन स्वागतयोग्य है कि जिस समय श्रीमति इंदिरा गांधी सांसद थीं, तब उनका वेतन उनके पायलट पुत्र राजीव गांधी से कम था। जनसेवकों को यह नहीं भूलना चाहिए कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पास प्रधानमंत्री रहते हुए भी फिएट कार खरीदने के पैसे नहीं थे। सरदार वल्लभ भाई पटेल से उन्हें सीख लेना होगा जिनके निधन के उपरांत उनके बैंक खाते में महज 259 रूपए थे। डॉ.राम मनोहर लोहिया के निधन के वक्त उनके पास भी न तो बैंक बेलेंस ही था और न ही उनका घर द्वार था। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपनी आनंद भवन जैसी इमारत को भी राष्ट्र को समर्पित करने में संकोच नहीं किया था।
भारत गणराज्य में 85 करोड़ लोगों की प्रतिदिन की आय 20 रूपए से भी कम है, और सरकार इन्हें प्रस्तावित कर रही है कि ये माननीय प्रतिदिन चार हजार 33 रूपए की दिहाड़ी पर काम करें, जनता के द्वारा ही चुने गए ये माननीय चाहते हैं कि इन्हें पांच हजार पांच सौ रूपए से अधिक की दिहाड़ी मिले। यह कहीं भी संभव नहीं है, किन्तु कांग्रेस के राज में एसा चमत्कार अवश्य ही हो रहा है कि देश की सत्तर फीसदी आबादी महज बीस रूपए कमाने के लिए सारा दिन मेहनत मजदूरी करने पर विवश है और उसी जनता के गाढ़े पसीने की कमाई पर टेक्स लगाकर जमा की गई रकम से जनता के चुने हुए नुमाईंदो को हजारों रूपए रोज की दिहाड़ी मुहैया करवाई जा रही है।
कांग्रेसनीत केंद्र सरकार के इस कदम से निश्चित तौर पर अमीर और गरीब के बीच की खाई में जबर्दस्त इजाफा होने के मार्ग ही प्रशस्त होंगे। होना यह चाहिए था कि संसद में बहस इस बात को लेकर की जाती कि किस तरह देश में मंहगाई कम हो, जनता पर टेक्स का भार कम किया जाए। रोजगार के अवसर कैसे बढ़ाए जाएं। वस्तुतः एसा हुआ नहीं, संविधान के नीति निर्देशक तत्वों मंे इस बात का उल्लेख साफ तौर पर किया गया है कि सरकार का कोई भी कदम देश में आर्थिक विषमता को बढ़ावा न दे।
देश में बढ़ रही मंहगाई को भी षणयंत्र के तौर पर देखा जाना चाहिए। भारत गणराज्य के नीति निर्धारक यह नहीं चाहते कि गरीब गुरबो में से योग्य लोग आगे आएं। जब मंहगाई अधिक होगी, लोगों की क्रय शक्ति का हास होगा, तो गरीब गुरबा चुनाव लड़ने की सोच ही नहीं सकेगा। गरीबों की मजबूरी होगी कि वे अमीरों और संपन्न लोगों के सामने नतमस्तक हो जाएं। इन परिस्थितियों में भारत गणराज्य की सबसे बड़ी और सूबों की पंचायतें साधन संपन्न और अमीरों की लौड़ी बन ही जाएगी।
एक समय था जब राजनीति को सेवा भाव की दृष्टि से देखा जाता था। जो भी देश के लिए जनता के लिए समर्पण का भाव रखता था, उसे लोग अपना अगुआ (पायोनियर) मानते थे। आजादी की लड़ाई हो या आजादी के उपरांत के साठ के दशक तक देश के नेताओं में नैतिकता का आभास होता था, उस समय नेताओं द्वारा नैतिक मूल्यों को बरकरार रखकर राजनीति की जाती थी, किन्तु अब इस सबकी परिभाषाएं बदल गई हैं। जब राजनीति सेवा के बदले व्यवसाय हो जाए तब एसी स्थिति बनना स्वाभिवक है कि जनता के चुने हुए प्रतिनिधि मलाई खाएं और निरीह बेबस जनता उनका मुंह ताकती रह जाए।
फोरलेन विवाद का सच ------------ 13
कमल नाथ और शिवराज मिलकर कर रहे हैं फोरलेन पर राजनीति
हिमांशु कौशल
सिवनी। केन्द्रीय मंत्री श्री कमलनाथ के नेतृत्व वाला भूतल परिवहन मंत्रालय मध्यप्रदेश में 21 प्रोजेक्ट चला रहे हैं इन 21 प्रोजेक्ट में से 5 प्रोेजेक्ट कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा को केन्द्र में रखकर तैयार किये हैं जिससे सिवनी अलग हट जाये और छिंदवाड़ा केन्द्र में आ जाये. उत्तर प्रदेश के कानपुर में जन्मे कमलनाथ द्वारा अपने उŸार प्रदेश के बाद मध्यप्रदेश में ही सबसे ज्यादा प्रोजेक्ट चलाये जा रहे हैं संभ्वतः यही कारण है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सिवनी फोरलेन के मुद्दे को तूल नहीं दे पा रहे हैं.
केन्द्रीय भूतल एवं परिवहन मंत्री श्री कमलनाथ ने जब से भूतल परिवहन मंत्रालय का कामकाज संभाला है उनके नेतृत्व में देश के सभ्ी राज्यों में फोरलेन-टू लेन प्रोजेक्ट बनने आरंभ हो गए हैं, देश में चल रही इन परियोजनाओं में सर्वाधिक प्रोजेक्ट वे उŸार प्रदेश यानी की अपने गृह राज्य में चला रहे हैं इसके बाद दूसरा नंबर आता है मध्यप्रदेश का. उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में वे 29 प्रोजेक्ट चला रहे हैं और मध्यप्रदेश में उनके द्वारा 19 प्रोजेक्ट चलाये जा रहे हैं. म.प्र. में चल रहे इन 19 प्रोजेक्टों में से 5 प्रोजेक्ट मतलब 25 प्रतिशत प्रोजेक्ट उन्होंने केवल अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा को केन्द्र में रखकर बनाये हैं.
उल्लेखनीय है कि केन्द्रीय मंत्री श्री कमलनाथ द्वारा मध्यप्रदेश में जो 19 प्रोजेक्ट चलाये जा रहे हैं उनमें कमल नाथ समर्थक सांसद सज्जन सिंह वर्मा, विधायक सुखदेव पांसे, लखन घनघोरिय आदि के कार्यक्षेत्र में इंदौर से गुजरात/एम.पी. बार्डर तक, भोपाल से बरेली, बरेली से राजमार्ग क्रासिंग, राजमार्ग क्रासिंग से जबलपुर, झाँसी से खजुराहो, भोपाल से साँची, इंदौर से देवास ,ग्वालियर से देवास, बेओरा से राजस्थान बार्डर, बैतूल से नागपुर, जबलपुर से कटनी-रीवा, औबेदुल्लागंज से बैतूल, जबलपुर से मंडला चिल्पी (छ.ग.), नरसिंहपुर से अमरवाड़ा, अमरवाड़ा से उमरानाला छिंदवाड़ा बायपास होते हुए, उमरानाला से रामाकोना होते हुए सौंसर से सावनेर, सिवनी से चौरई होते हुए छिंदवाड़ा, छिंदवाड़ा से मुल्ताई और जबलपुर से लखनादौन तक है. कमल नाथ को चूंकि महाकौषल का नेता माना जाता है अतः उन्होंने जो परियोजनाएं बनवाई हैं उनमें महाकौषल का ज्यादा ध्यान रखा है, किन्तु महाकौषल के केंद्र समझे जाने वाले सिवनी जिले को ‘कमलनाथ के महाकौषल‘ के नक्षे से बाहर कर दिया गया है।
मध्यप्रदेश में चलने वाले फोरलेन-टू लेन प्रोजेक्ट्स में से 5 प्रोजेक्ट केवल छिंदवाड़ा को केन्द्र में रखकर तैयार किये गये हैं. इन पाँँच प्रोजेक्ट में पहले तीन प्रोजेक्ट 01) नरसिंहपुर से अमरवाड़ा, 02) अमरवाड़ा से उमरानाला छिंदवाड़ा बायपास को जोड़ते हुए और 03) उमरानाला से सौंसर होते हुए सावनेर नागपुर के पास तक के हैं. उक्त मार्ग पूर्व में राज्य सरकार के स्वामित्व का स्टेट हाइवे हुआ करता था. इस स्टेट हाईवे को नेषनल हाईवे में तब्दील करवाने का प्रस्ताव राज्य सरकार ने भेजा और केन्द्रीय मंत्री ने मुख्यमंत्री से मिलकर नेशनल हाइवे घोषित करवा लिया और इसका नाम नेशनल हाइवे क्रमांक 26 बी रख दिया गया.
इसी प्रकार केन्द्रीय मंत्री श्री नाथ ने सिवनी से चौरई होते हुए छिंदवाड़ा और छिंदवाड़ा से मुल्ताई तक के स्टेट हाइवे को भी मुख्यमंत्री के साथ मिलकर नेशनल हाइवे घोषित करवा इसका नाम नेशनल हाइवे क्रमांक 69 ए घोषित कर दिया है.
केन्द्रीय मंत्री श्री कमलनाथ द्वारा 26 बी,, 69 ए नामक दो नयी नेशनल हाइवे केवल अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा को नरसिंहपुर से नागपुर और सिवनी से मुल्ताई के केन्द्र में बनाये जाने हेतु घोषित किया गया है जिसमें प्रदेश सरकार ने अपनी सहमति दी है. नक्शे में यह भ्ी देखा जा सकता है कि छिंदवाड़ा के पास ही नेशनल हाइवे प्रोजेक्ट सबसे सघन है. उल्लेखनीय है कि स्टेट हाइवे को नेशनल हाइवे में बदलने के लिये राज्य शासन की सहमति की सहमति के साथ राज्य सरकार की ओर से प्रस्ताव अनिवार्य होता है. बिना प्रदेश सरकार की सहमति ओर प्रस्ताव के केन्द्रीय मंत्री श्री कमलनाथ अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा को नेशनल हाइवे का जंक्शन नहीं बना सकते थे. इससे स्पष्ट होता है कि कहीं न कहीं केन्द्रीय मंत्री श्री कमलनाथ प्रदेश के मुखिया श्री शिवराज सिंह चौहान के साथ मिलकर सिवनी फोरलेन की बलि चढ़ा रहे हैं.
गौरतलब है कि यदि मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के दृष्टिकोण से देखा जाये तो वे प्रदेश के मुखिया हैं और उन्हें पूरे प्रदेश का विकास देखना है यदि वे सिवनी फोरलेन के मुद्दे को तूल देते हैं और उनके ऐसा करने से केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ प्रदेश में चल रही परियोजनाओं को रोक लेते हैं तो इससे पूरे मध्य प्रदेश का भरी नुकसान होगा. संभवतः यही कारण होगा कि मुख्यमंत्री सिवनी के मुद्दे पर चुप बैठना ज्यादा पसंद कर रहे हैं. गौरतलब होगा कि गुरूवार को मघ्य प्रदेष भवन में संपन्न पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चौहान ने एक तरफ जहां केंद्र सरकार और उसके मंत्रियों को आड़े हाथों लिया था वहीं दूसरी और भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ की तारीफ में कषीदे भी गढ़े थे।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि पूरे देश में नेशनल हाइवे की सबसे ज्यादा लंबाई उŸार प्रदेश में है और फिर उसके बाद मध्य प्रदेश का नंबर आता है. यही कारण है कि केन्द्रीय मंत्री श्री नाथ से अगर मध्यप्रदेश में इतनी उदारता दिखाये जाने का कारण पूछा जायेगा तो इस प्रश्न का विशुद्ध राजनैतिक जवाब शायद यही दिया जायेगा कि कि उŸार प्रदेश के बाद मध्य प्रदेश ही एक ऐसा राज्य है जहाँ नेशनल हाइवे की लंबाई सबसे ज्यादा है इसीलिये उŸार प्रदेश के बाद वे मध्यप्रदेश में ज्यादा ध्यान दे रहे हैं.
बहरहाल अगर राष्ट्रीय स्तर और प्रदेश स्तर पर देखा जाये तो केन्द्रीय मंत्री श्री कमलनाथ कहीं गलत नहीं कर रहे हैं और न ही मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान गलत सोच रहे हैं. श्री नाथ द्वारा पूरे मध्यप्रदेश में नेशनल हाइवे का जाल बिछाया जा रहा है जिससे मध्यप्रदेश के विकास में गति मिलेगी. इसी के साथ-साथ वे अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा को राष्ट्रीय राजमार्ग का जंक्शन जैसा बना रहे हैं तो यह भ्ी ठीक है क्योंकि वे उस क्षेत्र का वर्षों से प्रतिनिधित्व करते हैं तो उसका विकास करना उनकी जिम्मेदारी है.
यहाँ महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे जनप्रतिनिधि क्या कर रहे हैं? सिवनी में भूतल परिवहन मंत्री के समर्थक माने जाने वाले विधानसभ उपाध्यक्ष श्री हरवंश सिंह और प्रदेश महिला मोर्चा की अध्यक्ष श्रीमती नीता पटैरिया जैसी नेत्री सिवनी विधायक हैं इसके बाद भी सिवनी के साथ लगातार अन्याय ही होता आया है सिवनी वासियों को न बड़ी रेल लाइन मिली न ही संभाग मुख्यालय बनाया जा रहा है न यहाँ एफ.एम. अथवा कम्युनिटी रेडियो आया, न तो एस्टोटर्फ का स्टेडियम ही बन पाया और तो और रही सही कसर लोकसभा सीट जाने से पूरी हो गई है।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)