सोमवार, 9 सितंबर 2013

उपेक्षा का परिणाम है अलगाव की भावना

उपेक्षा का परिणाम है अलगाव की भावना

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। मध्यप्रदेश के सर्वाधिक पिछड़े क्षेत्रों में से एक जबलपुर संभाग के तीन उपेक्षित जिलों सिवनी ंिछदवाड़ा और बालाघाट को मिलाकर नये संभाग के गठन के स्वयं प्रदेश के मुखिया के ऐलान के पांच साल बीत जाने के बाद भी उस मंें लेशमात्र प्रगति न हो पाना इस अंचल के लोगों को यह सोचने पर विवश करता है कि क्या प्रदेश की सरकार इस अभागे अंचल के विकास के लिये कभी सपने में भी विचार नहीं करती?
यदि प्रदेश की सरकार या उसके स्थानीय प्रतिनिधियों ने कभी भी इस क्षेत्र के विकास के लिये विचार किया होता तो इस अभागे क्षेत्र को अपने उदय के साढ़े पांच दशक बाद भी अभागा कहने की आवश्यकता महसूस नहीं होती। 55 लाख आबादी वाले तीन जिलों के विकास के लिये प्रदेश सरकार की उपेक्षा की तीव्र प्रतिज्ञा अंततः इस पिछड़े क्षेत्र के लोगों को इस बात पर विचार करने को विवश करने लगी है कि जब कोई प्रदेश सरकार उसके विकास का विचार करने को ही तैयार नहीं है तो क्यों न अपने उत्तरोत्तर और तीव्रगति के विकास के लिये नया मार्ग खोजा जाय।
संयोग या सौभाग्यवश जिस समय इस अंचल में उपेक्षा का यह दंश फैल रहा है ठीक उसी समय निकट पड़ोस में नये राज्य के गठन की संभावनायें जन्म ले रही हैं वह भी ऐसे नये राज्य की, जिसका अंग रह कर पूर्व में यह क्षेत्र विकास की सीढ़ियां लांघने की तैयारी कर रहा था ठीक उसी समय इस क्षेत्र को अपने पुराने राज्य से प्रथक कर एक ऐसे नये राज्य का अंग बना दिया गया जिसकी विशालता अपने आप में उस नये प्रदेश के विकास में बाधक थी।
एक नये प्रदेश छत्तीसगढ़ के गठन के बाद भी उस प्रदेश की विशालता में कोई अंतर नहीं आया। नवगठित छत्तीसगढ़ विकास के नये नये सोपान तय कर रहा है, वहीं राजनैतिक नेतृत्व के विद्यमान होने के बावजूद यह अभागा अंचल आज भी संभाग तक बनने को तरस रहा है, तब विकास के अन्य सोपान की कल्पना भी मूर्खता से कम नहीं मानी जा सकती।
यह सर्वविदित है कि विकास के लिये राजनैतिक सक्षम नेतृत्व की उपलब्धता प्रथम आवश्यकता होती है जो इस क्षेत्र में पर्याप्त मौजूद है। उसके बावजूद विकास का सपना साकार न होना समझ से परे है। ऐसी स्थिति में जनता को स्वयं अपने विकास की चिंता करना स्वाभाविक हो जाता है। यही कारण है कि प्रदेश सरकार के साथ साथ समूची राजनैतिक बिरादरी से लगातार उपेक्षा और तिरस्कार की शिकार हो रही इस अंचल की जनता ने अपने विकास का बीड़ा स्वयं उठाने का संकल्प लिया है और उसका सबसे उत्तम उपाय इस अंचल के लोगों को नये राज्य में संविलियन दिखाई दे रहा है।
परिणामस्वरूप इस अंचल की आम जनता अब और अधिक विलंब किये बिना अपने विकास की कल्पना को मूर्तरूप देेने के लिये पड़ोसी विदर्भ राज्य की मांग के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आंदोलन में शामिल होने का साहसिक निर्णय लेने पर मजबूर हो जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।

दिनेश राय मांग सकते हैं भाजपा के लिए वोट!

दिनेश राय मांग सकते हैं भाजपा के लिए वोट!

रजनीश की टिकिट लगभग तय, भाजपा का कमजोर प्रत्याशी होगा केवलारी विधानसभा से

(नन्द किशोर)

भोपाल (साई)। सिवनी जिले से कांग्रेस ने केवलारी विधानसभा से पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह के पुत्र रजनीश सिंह का नाम लगभग तय कर लिया है। उनका नाम बड़े नेताओं ने एक सुर में अकेला ही दिया है, जिससे लग रहा है कि उनकी टिकिट पक्की है। वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी को लग रहा है कि सिवनी विधानसभा में निर्दलीय रहकर कांग्रेस के प्रत्याशी प्रसन्न चंद मालू को हराने वाले दिनेश राय उर्फ मुनमुन ने जिले में भाजपा के लिए वोट मांगे तो भाजपा को जबर्दस्त बढ़़त मिल सकती है।
कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि हाल ही में बड़े नेताओं की रायशुमारी के उपरांत प्रदेश में छः दर्जन नामों पर लगभग सहमति बन चुकी है। इन 72 नामों की फेहरिस्त में विधायकों के साथ ही साथ एक हजार से कम अंतर से हारे प्रत्याशियों के नाम भी शुमार हैं। इसमें सिवनी जिले के केवलारी से हरवंश सिंह ठाकुर के सुपुत्र रजनीश सिंह का नाम केवलारी से अकेला गया है, जिससे लग रहा है कि उनकी टिकिट पक्की ही है।

हुकुम बन सकते हैं रजनीश के लिए सिरदर्द
ज्ञातव्य है कि केवलारी से रजनीश सिंह को टिकिट देने की स्थिति में कुंवर शक्ति सिंह द्वारा निर्दलीय रूप से मैदान में उतरने की हुंकार भरी गयी थी। अगर वे अपने वचन के अनुसार केवलारी में रजनीश सिंह के खिलाफ खड़े हो जाते हैं तो रजनीश सिंह को केवलारी से चुनाव लड़ने में ही पसीना आ सकता है। वहीं दूसरी ओर केवलारी से सालों से कांग्रेस को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले बसंत तिवारी की उपेक्षा भी कांग्रेस को भारी पड़ सकती है।

दिया जा सकता है लाल बत्ती का लालीपॉप
कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान कहा कि केवलारी में रजनीश सिंह की राह आसान करने हर संभव कोशिश की जाएगी। कांग्रेस में उनको भीतराधात का सामना न करना पड़े, इसके लिए कांग्रेस के आला नेताओं द्वारा बसंत तिवारी, कुंवर शक्ति सिंह आदि को प्रदेश में सरकार बनने की स्थिति मेंलाल बत्ती की लालीपॉप थमायी जा सकती है।

कमजोर प्रत्याशी उतारेगी भाजपा!
इसके साथ ही साथ ऊपरी स्तर पर अब यह तिकड़म चल रही है कि केवलारी विधानसभा से भाजपा द्वारा डॉ.ढाल सिंह बिसेन के स्थान पर किसी कमजोर प्रत्याशी को रजनीश सिंह के सामने उतारा जाए, जिससे रजनीश आसानी से चुनाव निकाल सकें। वहीं डॉ.ढाल सिंह बिसेन को बालाघाट लोकसभा की टिकिट देने की पेशकश कर पार्टी उन्हें मना सकती है। इसका कारण यह भी है कि बालाघाट के वर्तमान सांसद के.डी.देशमुख विधानसभा में दांव आजमाना चाह रहे हैं।

दिनेश राय का भाजपा में जाना तय
इधर, भाजपा मुख्यालय में चल रही बयार के अनुसार भाजपा के शीर्ष नेता अरविंद मेनन इन दिनों नगर पंचायत लखनादौन के पूर्व अध्यक्ष दिनेश राय से पूरी तरह इत्तेफाक रख रहे हैं। अरविंद मेनन के करीबी सूत्रों का कहना है कि दिनेश राय द्वारा अपनी भाजपाई सीढ़ी (संभवतः शिवराज सिंह चौहान केबिनेट के एक मंत्री, जो संभवतः उनके बिजनेस पार्टनर भी हैं) के जरिए अरविंद मेनन को पूरी तरह शीशे में उतारा जा चुका है। सूत्रों का कहना है कि दिनेश राय ने पिछले विधानसभा चुनावों में अपना खुद का परफार्मेंस, लखनादौन नगर पंचायत चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशी का ही नाम वापस लेना, उनकी माता श्रीमती सुधा राय की ऐतिहासिक फतह आदि के बारे में सविस्तार अरविंद मेनन को बताया है।

दिनेश के खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार नहीं मेनन
भाजपा के एक आला नेता ने नाम उजागर न करने की शर्त पर साई न्यूज से चर्चा के दौरान कहा कि अरविंद मेनन को दिनेश राय ने इस तरह बाहुपाश में लिया है कि वे दिनेश राय के खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हैं। कोई अगर दिनेश राय की शिकायत लेकर भी जाता है तो अरविंद मेनन यह कहकर भगा देते हैं कि सिवनी वालों का काम सिर्फ और सिर्फ शिकायत करना है।

कप प्लेट तब्दील हो जाएगा फूल में
उक्त नेता ने यह भी बताया कि अरविंद मेनन को यह घुटी पिलाई गई है कि पिछली बार दिनेश राय को लगभग तीस हजार वोट मिले थे। उनका चुनाव चिन्ह कप प्लेट था, इस बार अगर उन्हें टिकिट दी गई या उन्होंने भाजपा के पक्ष में वोट मांगे तो कप प्लेट पर डलने वाले सारे वोट कमल के फूल के वोट में तब्दील हो जाएंगे।

जमीनी हकीकत से अनजान!
उक्त नेता ने यह भी कहा कि शायद अरविंद मेनन सहित आला नेता जमीनी हकीकत से अनजान ही हैं। दरअसल, पिछली बार कप प्लेट को लगभग तीस हजार वोट इसलिए मिल गए थे, क्योंकि उस समय भाजपा की टिकिट सिटिंग एमएलए नरेश दिवाकर के बजाए तत्कालीन सांसद श्रीमती नीता पटेरिया को दी गई थी, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस की ओर से पहले यह सीट एनसीपी को समझौते में दी जाने वाली थी, बाद में यहां से प्रसन्न चंद मालू को मैदान में उतारा गया था। दोनों ही चेहरों से कांग्रेस और भाजपा के लोग बुरी तरह खफा थे। यही कारण था कि कांग्रेस और भाजपा के अंदर भीतराघात चरम पर पहुंचा और कांग्रेस के प्रत्याशी की जमानत जप्त हो गई थी तथा भाजपा को इस क्लीन सीट को निकालने में एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा था।

टिकिट मिलेगी या नहीं, फैसला जल्द
वहीं, भाजपा के एक आला पदाधिकारी ने पहचान गुप्त रखने की शर्त पर कहा कि दिनेश राय को भाजपा में शामिल करने की घोषणा किसी भी क्षण की जा सकती है। अभी इस बात पर विचार चल रहा है कि दिनेश राय को अगर भाजपा में शामिल किया जाता है तो उन्हें टिकिट दी जाए अथवा नहीं। भाजपा के आला नेता दिनेश राय को एक स्थापित और बड़ा नेता मान रहे हैं। हो सकता है कि इन चुनावों में भाजपा दिनेश राय का उपयोग कर उन्हें बालाघाट लोकसभा से टिकिट देने का प्रलोभन दे दे।

अगर मिली तो रायशुमारी. . .

उधर, सिवनी से समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया ब्यूरो से अय्यूब कुरैशी ने बताया कि सिवनी भाजपा में भी इस बात को लेकर मंथन आरंभ हो गया है। भाजपाईयों का कहना है कि अगर दिनेश राय को भाजपा में शामिल कर टिकिट दी जाती है तो पिछले दिनों हुई रायशुमारी का क्या औचित्य रह जाएगा, क्योंकि रायशुमारी में दिनेश राय का नाम ही सामने नहीं आया है। कार्यकर्ताओं में चल रही चर्चाओं के अनुसार अगर ऐसा हुआ तो यह कार्यकर्ताओं के साथ विश्वासघात होगा और हजारों की तादाद में भाजपा कार्यकर्ता त्यागपत्र भी दे सकते हैं।

प्राईवेट प्रेक्टिस पर प्रतिबंध व आईएमए का रूदन!

प्राईवेट प्रेक्टिस पर प्रतिबंध व आईएमए का रूदन!

(शरद खरे)

सरकार ने शासकीय चिकित्सकों की प्राईवेट प्रेक्टिस पर प्रतिबंध क्या लगाया, इलाज के नाम पर मरीजों का गला रेतने वाले सरकारी चिकित्सकों की सांसे थमती नजर आ रही हैं। सरकारी चिकित्सक का काम क्या है? वह किस बात की मोटी पगार हर माह लेता है? जनता के हित में जारी किए गए सरकारी आदेश के खिलाफ इंडियन मेडीकल एसोसिएशन और चिकित्सा अधिकारी संघ ने रूदन आरंभ कर दिया है।
आयुर्विज्ञान महाविद्यालय में जिस दिन ये चिकित्सक अध्ययन हेतु जाते हैं सबसे पहले इन्हें एक कसम दिलवाई जाती है। वह कसम क्या होती है? उसका क्या मतलब होता है? उसका पालन जीवन के हर मोड़ पर करने का वादा करते हैं ये चिकित्सक। यह इसलिए क्योंकि मानव जीवन बेशकीमती है, और इसे हर हाल में बचाना चिकित्सक का पहला दायित्व होता है। बावजूद इसके जैसे ही ये चिकित्सक सरकारी नौकरी मेें आते हैं वैसे ही ये सरकारी पगार के साथ ही साथ निजी चिकित्सा को अपना मूल कर्तव्य मान लेते हैं।
सिवनी जिले में सरकारी स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाएं चुस्त दुरूस्त हुआ करती थीं, इस बारे में प्रौढ़ हो रही पीढ़ी बेहतर जानती होगी। जबसे सुश्री विमला वर्मा को षणयंत्र के तहत कांग्रेस के ही नेताओं ने सक्रिय राजनीति से किनारा कर घर बिठाया है तबसे सिवनी जिला विकास में पिछड़ने लगा है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। साथ ही साथ जबसे सिवनी में सियासी कमान हरवंश सिंह ठाकुर के हाथों में आई सिवनी में जनसेवा के मायने बदलकर स्वयंसेवा होकर रह गई।
संभवतः यही कारण था कि सिवनी में चिकित्सकीय सुविधाएं बाबा आदम के जमाने में चली गईं। चिकित्सकों का सिवनी से मोह भंग होने लगा। एक वाक्ये का जिकर यहां लाजिमी होगा। डॉ.एस.के.श्रीवास्तव जैसे बेहतरीन चिकित्सक जो जिला चिकित्सालय की शान हुआ करते थे, को सियासी आकाओं की सरपरस्ती में उस वक्त के स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों ने इस कदर प्रताड़ित किया कि उन्होंने सिवनी से अपना तबादला भोपाल करवा लिया। इसके बाद भी आला अधिकारियों का दिल नहीं भरा, उन्हें रिलीव नहीं किया गया। बाद में उन्होंने अपने सियासी संपर्कों के सहारे तत्कालीन जिला कलेक्टर मोहम्मद सुलेमान पर दबाव बनाया और यहां से बिदाई ली।
इसके बाद सिवनी विधायक रहे नरेश दिवाकर और वर्तमान विधायक श्रीमती नीता पटेरिया ने सिवनी जिला चिकित्सालय के लिए शायद ही कुछ किया हो। सिवनी में बर्न यूनिट है, आईसीसीयू है, दोनों ही का अस्तित्व स्वास्थ्य संचालनालय में कहीं नहीं है। अब चूंकि ऊपर इसका अस्तित्व नहीं है, इसलिए इसके लिए अलग से स्टाफ नहीं है। एसटबलिशमेंट में इसका उल्लेख नहीं होने से अलग से तैनाती भला कैसे होगी? क्या इस बात से मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी अनिभिज्ञ हैं? जाहिर है नहीं?
कितने आश्चर्य की बात है कि सिवनी का यह सौभाग्य भी है कि दो विधायकों के पति सिवनी में चिकित्सक हैं और सरकारी तैनाती में भी हैं, फिर भी सिवनी के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं अत्याधुनिक होने के स्थान पर बाबा आदम के जमाने की हैं। जिसका जो मन आ रहा है वह कर रहा है। सिवनी में ट्रामा यूनिट का निर्माण हो रहा है। ट्रामा यूनिट किसके लिए होता है? इसे कहां बनना चाहिए, इस बारे में भी चिकित्सा स्टाफ मौन ही है।
देश की राजधानी दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) और सफदरज़ंग अस्पताल के मध्य भगवान वर्धमान ट्रामा सेंटर है। इसे रिंग रोड से सटाकर ही न केवल बनाया गया है वरन् इसमें प्रवेश के लिए सड़क भी सीधी प्रथम तल तक ले जाई गई है। ऐसा इसलिए कि कोई भी दुर्घटना के घायल को बिना किसी विध्न के तत्काल इस यूनिट में पहुंचाया जा सके। विडम्बना देखिए सिवनी में यह यूनिट घुमावदार रास्ते के बाद ओपीडी के पीछे बन रहा है जिला चिकित्सालय में! वस्तुतः इसे सड़क के किनारे ही बनाया जाना चाहिए था।
वैसे भी यह जवाबदेही एनएचएआई की है कि वह सिवनी में एक ट्रामा यूनिट की संस्थापना करे। एक बार फिर हम अपने आपको असहाय पाते हैं। सियासी नुमाईंदों की नपुंसकता का नतीजा है कि आज हमारे पास एक के बजाए दो सांसद हैं। फिर भी वे संसद में सिवनी की सड़क सुविधा या चिकित्सा सुविधा जो केंद्र से जुड़ी हैं को उठाने में कतराते हैं, कि कहीं महाकौशल के कांग्रेस के क्षत्रप उनसे नाराज न हो जाएं।

बहरहाल, आईएमए और चिकित्सा अधिकारी संघ को गुहार लगाना है तो वह यह कहे कि हम घरों पर मरीजों को निःशुल्क देखेंगे क्योंकि हमें सरकार तन्ख्वाह दे रही है। साथ ही साथ जिला चिकित्सालय को आईपीएचएस के मानकों के हिसाब से तैयार किया जाए। संघ की विज्ञप्ति पढ़कर कोई भी हंस देगा, क्योंकि इसमें डॉ.एच.पी.पटेरिया के बतौर अध्यक्ष हस्ताक्षर हैं। डॉ.पटेरिया की पत्नि श्रीमती नीता पटेरिया सांसद रही हैं और वर्तमान में विधायक हैं। बावजूद इसके वे खुद मांग कर रहे हैं कि चिकित्सालयों को सुसज्जित किया जाए। अगर वे वाकई ऐसा चाह रहे होते तो श्रीमती नीता पटेरिया और सीएमओ वाय.एस.ठाकुर की पत्नि श्रीमती शशि ठाकुर सिवनी की स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर विधानसभा को सर पर उठा चुकी होतीं, वस्तुतः भाजपा के राज में अब सरकारी कर्मचारी भी विज्ञप्ति जारी करने में माहिर हो चुके हैं, जमीनी हकीकत से उन्हें कोई लेना देना नहीं है।