सोमवार, 12 जुलाई 2010

अंत्‍तोगत्‍वा चुनौति बन ही गया पर्यावरण

भयावह लगने लगी है आने वाले कल की तस्वीर

पर्यावरण को हर कीमत पर होगा बचाना

महज 20 साल का तेल और 100 साल का बचा है कोयला

प्राकृतिक संसाधनों का करना होगा दोहन

जनजागरूकता फैलाना सरकार की महती जवाबदारी

(लिमटी खरे)

दुनिया की आबदी जिस द्रुत गति से बढ रही है, उसे देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि आने वाले समय की कल्पना मात्र से रोंगटे खडे हो रहे हैं। दुनिया के पास महज बीस साल का तेल और सौ साल तक उपयोग करने के लिए कोयले का भंडार बचा है, समय रहते अगर इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो हमारी आने वाली पीढियां आधुनिकता का लबादा तो ओढ सकेंगी पर वे जीवन का निर्वाह आदिकाल के संसाधनों में ही करने को मजबूर होंगी। पेट्रोलियम के भंडार के समाप्त होते ही वाहनों के पहिए थम जाएंगे। सुपर सोनिक विमान का अत्याधुनिक वर्जन तो इजाद कर लिया जाएगा पर उसे किससे उडाया जाए यह विकराल समस्या होगी। हवा में तैरने वाली कार या बाईक तो बन जाएंगी पर उन्हें चलाया किससे जाए यह सबसे बडी समस्या होगी। आलम यही होगा जिस तरह अस्सी के दशक की शुरूआत तक शहरों में लगने वाले मेले ठेले, प्रदर्शनी आदि में लोग खडी मोटर सायकल पर बैठकर फोटो खिचाया करते थे। कहने का तातपर्य तब लोगों की खरीदने की ताकत कम थी, पर आने समय में ताकत होगी पर किस चीज से उसे चलाया जाए यह सबसे बडी समस्या होगी।

तेल के मामले में ही अगर देखा जाए तो मध्य एशिया में विश्व भर का तकरीबन साठ फीसदी तेल भंडार है। एनजी वॉच गु्रप 2007 के प्रतिवेदन पर नजर डाली जाए तो यहां जो तेल शेष है वह आज की आबादी और साधनों के मुताबिक तीस वर्षों के लिए ही है, यह आबादी जैसे ही बढेगी तेल की खपत बढते ही भंडार तेजी से समाप्त होता जाएगा। भारत गणराज्य के परिदृश्य मंे अगर देखा जाए तो 2005 के मुकाबले आने वाले दस वर्षों बाद अर्थात 2020 में इसकी जरूरत तीन गुना बढ चुकेगी। वर्ष 2009 के आंकडों पर अगर गौर फरमाया जाए तो भारत में तेल की खपत 2 करोड, 72 लाख 22 हजार बेरल प्रतिदिन है। वर्ल्ड एनर्जी के 2007 के प्रतिवेदन में साफ कहा गया है कि इस हिसाब से अगर खपत का अनुमान लगाया जाए तो तेल महज बीस सालों के लिए ही शेष बचा है।

कोयले का भंडार भी कमोबेश यही इशारा कर रहा है। भारत की खुले आसमान तले (ओपन कास्ट) और जमीन के अंदर वाली (अंडर ग्राउंड) खदानों में आने वाले सौ सालों के लिए पर्याप्त कोयले का भंडार है। भारत का रिजर्व कोयला भण्डारण लगभग 197 बिलियन टन है। कोयले के भण्डारण में भारत का स्थान विश्व में चौथा है। वैश्विक परिदृश्य में अगर देखा जाए तो वर्ल्ड एनर्जी काउंसिल की 2007 की रिपोर्ट में कहा गया है कि कोयले के दो तिहाई रिजर्व स्टाक का भण्डारण अमेरिका, चीन, रूस, और आस्ट्रेलिया में ही है। कोल ईंधन का प्रमुख इस्तेमाल बिजली का उत्पादन ही माना जाता है। चालीस फीसदी कोयला इसमें खर्च किया जाता है।

यूरेनियम के मसले पर अगर गौर फरमाया जाए तो विश्व भर में होने वाली यूरेनियम की खपत का आधा हिस्सा मुख्यतः कनाडा, कजाकिस्तान और आस्ट्रेलिया से ही आता है। आंकडों पर बारीक नजर डाली जाए तो पता चलता है कि 2007 में महज ढाई प्रतिशत बिजली नाभकीय उर्जा से प्राप्त हुई थी। वर्तमान में भारत गणराज्य में 17 नाभिकीय रिएक्टर चार हजार एक सौ बीस मेगावाट बिजली का उत्पादन करते हैं। कहते हैं कि रामसेतु के नीचे भी यूरेनियम का अथाह भण्डार छिपा हुआ है।
अब सवाल यह उठता है कि प्रकृति द्वारा अपने आंचल में छिपाई इस बेशकीमती संपदा के समाप्त होने के उपरांत क्या किया जाएगा? इसका जवाब यह है कि प्राकृतिक तौर तरीकों को ही हमें अंगीकार कर इसमें ही भविष्य तलाशना होगा, बजाए समाप्त होने वाले भण्डारों के! वैज्ञानिक इस दिशा मे ंप्रयासरत अवश्य हैं पर विश्व की आवाम इस दिशा में न तो संवेदनशील ही है और न ही उसे जागरूक किया जा रहा है।

हवा, पानी और सूर्य तीनों चीजें न कभी समाप्त होंगी और न ही विलुप्त, चाहे कितने भी प्रयास कर लिए जाएं। आज आवश्यक्ता इस बात की है कि हम इनके दोहन और सही उपयोग के बारे में सोचें और लोगों को जगरूक बनाएं। शीत ऋतु में आज भी भारत गणराज्य में निन्यानवे फीसदी इलाकों में नहाने के पानी को गरम करने के लिए बिजली, कोयला या लकडी का उपयोग किया जाता है। वेकल्पिक स्त्रोतों के बारे में लोगों का ध्यान नहीं है।

उर्जा का सबसे बडा स्त्रोत हमारा सूर्य है। इस दिशा में सोचना बहुत ही आवश्यक है। सौर उर्जा का सही दिशा में उपयोग कर हम तेल और कोयले के भण्डार को सालों साल सुरक्षित रख सकते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार अगर भारत गणराज्य जो कि उष्णकटिबंदीय है यहां पांच हजार ट्रिलियन किलोवाट घंटा सूर्य के प्रकाश के एक प्रतिशत हिस्से को भी परिवर्तित कर सकें तो भारत की जनता को पूरे साल उर्जा की कमी महसूस ही नहीं होगी। तब अघोषित बिजली कटौती से लोगों को पूरी तरह निजात मिल सकती है। सौर उर्जा के मामले में अगर वैश्विक परिदृश्य देखा जाए तो विश्व में धरती की सात वर्ग मीटर सतह को सूर्य की 29 किलोवाट उर्जा हर समय मिलती ही रहती है। सूर्य प्रतिमिनिट 2 किलोवाट घंटा उर्जा प्रतिवर्गमीटर धरती को देताा है।

इसके बाद बारी आती है हवा की। हवा को बहने से कोई रोक नहीं सकता है, हवा का उपयोग सही दिशा में करने की महती आवश्यक्ता है आज के समय में। ग्लोबल विण्ड एनर्जी काउंसिल के अनुसार अगर हवा संबंधी नीतियों को सही तरीके से अपना लिया जाए तो इससे 2030 तक 29 फीसदी बिजली की आपूर्ति सिर्फ वायू के सही उपयोग से सुनिश्चित की जा सकती है। भारत में स्थापित पवन उर्जा सेक्टर की क्षमता 10 हजार 242 दशमलव 3 मेगावाट है। भारत में लगे इन संयंत्रों की क्षमता छः फीसदी है पर उत्पादन महज एक दशमलव छः फीसदी ही है। विश्व में भारत का स्थान इस मामले में पांचवां है।

कल कल बहते जल स्त्रोतों और बारिश के पानी को अगर सही दिशा में उपयोग कर लिया जाए तो इस समस्या से काफी हद तक निजात पाई जा सकती है। भारत में हाईड्रो आधारित प्लांटस के लिए काफी उपजाउ माहौल है। भारत सरकार ने इस हेतु अलग से मंत्रालय भी बनाया है, पर नतीजा ढाक के तीन पात ही है। एशिया में पहली मर्तबा दार्जलिंग और शिमला में हाईड्रो पावर प्लांट की स्थापना की गई थी। वर्ष 2008 तक भारत गणराज्य में इंस्टाल क्षमता 36 हजार 877 दशमलव सात छः थी। वहीं दूसरी ओर अगर सारे देशों में बहने वाले पानी का दोहन किया जाए तो हाईड्रोपावर प्लांट हर साल सोलह हजार पांच सौ टेरावॉट उर्जा का उत्पादन करने में सक्षम होंगे। विश्व में चीन ने इसका सबसे अधिक और अच्छा दोहन का उदहारण प्रस्तुत किया जा रहा है, जहां हर साल पानी से दो हजार 474 टेरावाट उर्जा उत्पादन किया जा रहा है।

इन आंकडों पर अगर बारीकी से गौर फरमाया जाए तो निश्चित तौर पर स्थिति आने वाले समय में बहुत भयावह हो सकती है। अभी समय है, इस संकट को जल्द ही अलविदा कहने के लिए यह माकूल समय है। विश्व भर के देश सर जोडकर इस समस्या के बारे में सोचें। विश्व में सोचा जाए अथवा नहीं पर भारत गणराज्य को तो इस मामले में आज से ही आत्मनिर्भर होने के प्रयास आरंभ करना ही होगा, वरना आने वाली पीढियां जो संकट भोगेंगी और इतिहास सुनहरा इतिहास भी उनके सामने होगा, किन्तु उनके हाथों में अंधकारमय भविष्य ही होगा, उन परिस्थियों में वे हमें याद तो करेेंगी पर बहुत अच्छे तरीके और सम्मान के साथ तो कतई नहीं। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि हमें स्वार्थी समझा जाएगा, हमने अपने जीवनकाल में तो सुख भोग लिए किन्तु आने वाली पीढियों के लिए दुश्वारियां ही पैदा करते गए. . .।

भूख से मौत की नई परिभाषा

















सडक पर तोडा दम मतलब भूख से मौत

सुको की समिति ने दी अपनी सिफारिश

शहरी बेघरों का सर्वे करना होगा छः माह के अंदर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 12 जुलाई। भारत गणराज्य की सर्वोच्च अदालत से अपील की गई है कि भुखमरी सिद्ध होने पर कठोर सजा और मृतक के परिजनों को पर्याप्त मुआवजा सुनिश्चित किया जाए। अगर दुर्घटना से इतर कोई मौत सडक पर होती है तो उसे भूख से हुई मौत ही माना जाए। यह सिद्ध होने पर कि उसकी मृत्यु दुर्घटना में नहीं हुई है, तो उसे भुखमरी की मौत ही माना जाएगा। ये सारी बातें खाद्य सुरक्षा पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित समिति के प्रतिवेदन के उपरांत प्रकाश में आई हैं।

खाद्य सुरक्षा पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गई समिति के आयुक्त डॉ.एन.सी.सक्सेना और विशेष आयुक्त हर्ष मंदर ने अपने प्रतिवेदन में कहा है कि भारत गणराज्य की सर्वोच्च अदालत भारत के हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश को निर्देश दे कि यदि कोई व्यक्ति सडक पर मरता है और यह साबित हो जाता है कि उसकी मौत दुर्घटना या किसी बीमारी के चलते नहीं हुई है तो उसकी मौत को भूख से हुई मौत ही माना जाए।

इस तरह की मौत होने पर मौत का कारण सुनिश्चित करने हेतु सीआरपीसी के प्रावधानों के तहत दण्डाधिकारी से जांच,मान्यता प्राप्त गैर सरकारी संगठन से उसकी मौखिक आटोप्सी, सक्षम चिकित्सक से उसका शव परीक्षण आदि आवश्यकतौर पर करवाया जाए। समिति ने सिफारिश की है कि अगर मौत का कारण भूख आता है तो इसके लिए सख्त दण्डात्मक कार्यवाही का प्रावधान किया जाए, और परिजनों को पर्याप्त मुआवजा भी प्रदान किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित इस समिति ने यह प्रावधान किया है कि सर्वोच्च न्यायालय राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को यह स्पष्ट निर्देश दे कि वे अपने अपने सूबों में शहरी बेघरों की पहचान इस साल अक्टूबर माह तक सुनिश्चित करे और उनकी वास्तविक संख्या के बारे में न्यायालय को आवगत करवाए। इस प्रतिवेदन पर केंद्र सरकार ने राज्यों को पत्र लिखकर उनका जवाब मांगा है।

घर की मुर्गी दाल बराबर, हीरामन को धूल चटाई पाल ने

ये है दिल्ली मेरी जान
 


(लिमटी खरे)


हीरामन को हरा बाजी मार ही ले गया पाल।
पुरानी कहावतें और मुहावरे यूं ही नहीं बने थे, उनके पीछे निहितार्थ को समझना होगा। न जाने कब से किस काल से लोग उक्तियों, कहावतों, मुहावरों मंे ही किसी कहानी का मर्म बता दिया करते थे। हाल हाल ही में इस तरह की बात चरितार्थ होती दिख रही है। हमारे देश में गली मोहल्ला, शहर, गांव, कस्बा, मजरा, टोला कहीं भी आपको एक चटाई बिछाए कुछ लिफाफों के साथ एक पिंजरे में ‘‘हीरामन‘‘ तोते के साथ तिलकधारी मिल जाएगा। वह तिलकधारी अपने हीरामन के माध्यम से आपका भाग्य बताता है, वह भी एक दो पांच और दस रूपए में। सालों साल यूं कहें कि सदियों से हीरामन की पुश्तें लोगों के भाग्य को उजागर करती आ रही हैं, भारत गणराज्य के लोग इसे, पोंगा पण्डित, रूढीवादी, लुटेरा न जाने क्या क्या उपमाएं देने से नहीं चूकते आए हैं। इसका खासा मजाक भी बना है राकेश रोशन जया प्रदा अभिनीत चलचित्र ‘‘कामचोर‘‘ में इसी तोते को मजाक बनाते हुए एक गाना भी फिल्माया गया था। अब सिक्के का दूसरा पहलू देखिए। देश की मीडिया बिरादरी एक बदसूरत से पाल नामक आक्टोपस के द्वारा यह काम किए जाने पर उसे हाथों हाथ ले रही है, उसे आक्टोपस बाबा का नाम दिया जा रहा है, उसे महिमा मण्डित किया जा रहा है। यहां तक कि देश की सेलीब्रिटी अमिताभ बच्चन, अभिषेक, लारा दत्ता, फरहा खान आदि न जाने कौन कौन है जो आक्टोपस बाबा को सलाम भेज रहे हैं। अगर इसी तोते को अमेरिका ले जाया जाता और वह फुटबाल की भविष्यवाणी करता तब तो हिन्दुस्तान का औपनिवेशवाद की मानसिकता से ग्रसित मीडिया उसे हाथों हाथ लेता, क्योंकि उस पर अंग्रेजों के साथ होने की सील लगी होती। जो काम वह आक्टोपस कर रहा है वही काम सदियों से हमारा हीरामन भी कर रहा था, पर हीरामन की कोई पूछ परख नहीं।
दिग्गी के नहले पर प्रभात का दहला
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजा दिग्विजय सिंह जब कभी भी कुछ भी बोलते हैं तो उनके बारे में कहा जाता है कि वे तोल मोल के ही बोल निकालते हैं। राजा दिग्विजय सिंह की जुबान कभी भी फिसलती नहीं है। पहली बार राजा की जुबान फिसली और मध्य प्रदेश के भाजपाध्यक्ष प्रभात झा ने उन्हें धोबी पाट दे चित्त कर दिया। हुआ यूं कि प्रभात झा के मध्य प्रदेश के भाजपाध्यक्ष हैं, और राजा दिग्विजय सिंह ने उन्हें आयतित बता दिया था। इस पर प्रभात झा हत्थे से उखड गए और लिख दिया राजा जी को पत्र। कहते हैं कि प्रभात झा ने पत्र में साफ लिखा है कि यह ठीक है कि वे बिहार से आए हैं, पर क्या राजा दिग्विजय सिंह अपनी पार्टी की प्रदेशाध्यक्ष के बारे में एसा कहने का दुस्साहस कर पाएंगे कि श्रीमति सोनिया गांधी को इटली से आयात किया गया है। प्रभात झा का कहना सच है। पहले शरद पवार ने विदेशी मूल के मुद्दे को हवा देकर सोनिया गांधी को काफी लानत मलानत भिजवाई थी, यह अलहदा बात है कि सत्ता की मलाई चट करने के लिए कांग्रेस ने बाद में उन्हीं शरद पवार से हाथ मिला लिया। प्रभात झा तो भारत गणराज्य के बिहार सूबे से हैं, पर सोनिया गांधी तो उस देश से आईं हैं जिसका नाम बोफोर्स तोप की दलाली में कई बार उछला है, और कांग्रेस को दो दशकों से उस मामले में बेक फुट पर ही रहने पर मजबूर होना पडा है।
मनमोहन के बडबोले मंत्री
भारत गणराज्य के अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह भले आदमी हैं। वे नरसिंहराव की तरह मोनी बाबा तो नहीं हैं, पर उनका रिमोट कंट्रोल कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ में ही है। मनमोहन चाहकर भी अपने मन की नहीं कर सकते हैं। मनमोहन के बडबोले मंत्रियों ने उनका जीना मुहाल कर दिया है। शरद पवार मंहगाई पर सरकार के प्रतिकूल टिप्पणी करते हैं तो उपचुनाव के दौरान कमल नाथ कहते हैं कि देश में मंहगाई इसलिए बढी है, क्योंकि किसान दो वक्त खाने लगा है। पूर्व विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर का अपना अलग अंदाज था, वे सोशल नेटवर्किंग वेवसाईट पर जाकर अपना दुखडा बयान करते थे कि काम के बोझ से वे दोहरे हो रहे हैं। अब बारी शरद पवार की है, पवार प्रधानमंत्री से मिले और चाहते हैं कि उनका बोझ कम किया जाए। अब वे अपनी पार्टी और क्रिकेट को समय देना चाह रहे हैं, एसा उनका कहना है। राजनैतिक हल्कों में बह रही फिजा संदेश ला रही है कि पवार बोझ से दोहरे होकर विभाग तजना नहीं चाहते, इसके पीछे की कहानी कुछ और है। यूं तो हर कोई लाल बत्ती की चाहत रखता है, पर आईसीसी जैसी चोबीसों घंटे दुहने को तैयार दुधारू गाय के अध्यक्ष बनने के बाद एकाध महत्वहीन विभाग का प्रभार अपने पास रखकर पवार चाहते हैं कि लाल बत्ती की लाल बत्ती उनके पास रहे और अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद की मलाई वे गुपचुप खाते भी रहें।
एसा क्या गलत कह दिया गडकरी ने
कांग्रेस के सियासी प्याले में जबर्दस्त तूफान मचा हुआ है। भाजपा के निजाम नितिन गडकरी का एक बयान कांग्रेस के लिए गले की फांस बनता दिख रहा है। इतिहास में यह पहला मौका है, जब विपक्ष के किसी राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कांग्रेस पर इतना तल्ख वार किया हो। नितिन गडकरी ने महज इतना ही तो पूछा है कि क्या अफजल गुरू कांग्रेस का जवाई है, क्या कांग्रेस ने उसे अपनी बेटी दी है? क्या गलत कह दिया गडकरी ने जो कांग्रेस हत्थे से उखड रही है। सालों साल उसकी फांसी की फाई कांग्रेसनीत केंद और कांग्रेस की ही दिल्ली सरकार के बीच देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली की सरहद में ही अगर मंत्रालयों की सीढियां चढती उतरती रहे तो इसे क्या कहा जाएगा। उसके बाद मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी केंद्र सरकार को कटघरे में खडा करें तो फिर क्या कहा जाए। भडकी कांग्रेस का कहना है कि गडकरी को किसी मनोचिकित्सा केंद्र में ले जाया जाए। दरअसल मनोचिकित्सक की आवश्यक्ता गडकरी को नहीं, कांग्रेस को है। आधी सदी से ज्यादा देश पर राज करने के बाद भी नंगे भूखी जनता का खून चूसने वाली कांग्रेस की कमियां उजागर होना आरंभ हुंईं और कांग्रेस ने आपा खोया। कांग्रेस में अगर नैतिकता बची है तो वह जवाब क्यों नहीं देती कि अफजल गुरू का बचाव उसके द्वारा अखिर क्यों किया जा रहा है?
विकास का रावण: जयराम रमेश
हिन्दुस्तान में भगवान राम को ही पूजा जाता है। रावण का दशहरे में दहन किया जाता है। इसे बुराई पर अच्छाई की विजय माना जाता है। रावण की पूजा शायद ही काई करता हो, भारत गणराज्य में, या शायद ही कोई माता पिता हों जो अपने बच्चों का नाम रावण रखता हो। राम नाम के लाखों लोग भारत में मिल जाएंगे। राम के नाम वाले भारत गणराज्य के वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने अपनी भोपाल यात्रा के दौरान खुद को ही रावण बता दिया। भारतीय वन प्रबंध संस्थान में अफसरान को संबोधित करते वक्त जयराम रमेश इतने उत्तेजित हो गए कि वे बोल पडे, -‘‘मुझे विकास का रावण समझा जाता है।‘‘ अब जयराम रमेश को कौन समझाए कि बिना आग के धुआ नहीं निकलता हुजूर। आपकी आदावत केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ से है, और आपने मध्य प्रदेश सिवनी जिले से होकर गुजरने वाली उत्तर दक्षिण गलियारे की फोर लेन में फच्चर फसा दिया है। आपको कौन समझाए कि जहां से यह गुजर रही है वह कमल नाथ का संसदीय क्षेत्र का हिस्सा नहीं है। रमेश जी आपको और कमल नाथ को देश में कहीं रावण समझा जाता हो या न हो, पर सिवनी जिले की जनता तो अपको रावण, क्या अस्सी के दशक तक के हिन्दी सिनेमा के विलेन शत्रुध्न सिन्हा और प्रेम चौपडा से कम नहीं मानती है।
दम तोडने लगा भोपाल गैस कांड का मामला
विश्व की सबसे बडी औद्योगिक त्रासदी भोपाल गैस कांड के फैसले के बाद समूचे देश में रोष असंतोष और आक्रोश का वातावरण निर्मित हो गया था। देशवासी इसके लिए सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी और मध्य प्रदेश के उस वक्त के मुख्यमंत्री कुंवर अर्जुन सिंह की भूमिकाओं पर सवालिया निशान लगाने लगे थे। भाजपा को भी इस मामले में कटघरे में रखा गया था। इसी बीच सरकार ने तेल की कीमतों में इजाफा कर दिया। जैसा अंदेशा था, वही हुआ, सभी का ध्यान भोपाल गैस कांड से हटकर मंहगाई पर चला गया। मीडिया की सुर्खियां बना भोपाल गैस कांड का फैसला और कांड से जुडे पहलु बाद में अंदर के पेज पर छोटी खबरों के तौर पर दम तोडने लगे हैं। समाज सेवी संगठन भी मीडिया की इस बेरूखी से हैरान परेशान ही नजर आ रहे हैं। अब देखना है कि भोपाल गैस कांड के मामले में कौन सा नया छुर्रा छोडा जाता है जिससे एक बार फिर लोगों का ध्यान इसकी ओर आकर्षित होगा, ताकि मृतकों के परिजनों और पीडितों को न्याय मिल सके।
परिवारवाद की जद में भाजपा
अभी तक माना जाता था कि परिवारवाद का कापीराईट अगर किसी के पास है तो वह है सवा सौ साल पुरानी अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस। उत्तर प्रदेश भाजपा में मचे घमासान से लगने लगा है कि परिवारवाद का पेटंेट और कापीराईट का कुछ अंश भाजपा के पास भी आ गया है। उत्तर प्रदेश में महासचिव के पांच पदों के लिए जडें जमाए बैठे चार बडे नेताओं के साहेबजादे लाईन में लगे हुए हैं। नेता चाह रहे हैं कि उनकी विरासत के साथ ही साथ राजनैतिक विरासत को भी उनके बच्चे ही आगे बढाएं। इसी कारण पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह के पुत्र पंकज, सूबे के पूर्व भाजपाध्यक्ष रमापतिराम त्रिपाठी के साहेबजादे शरदपति, लखनउ के सांसद लाल जी टंडन के पुत्र गोपाल और विधानमण्डल दल के नेता ओमप्रकाश के बेटे अनुराग सिंह के नामों को उनके वालिदान आगे कर रहे हैं। इन सभी के विरोधियों का कहना है कि चूंकि उत्तर प्रदेश जैसे बडे सूबे में प्रतिभाशाली युवाओं की कमी है, इसलिए राजनैतिक तौर पर सक्रिय रहे परिवारों के बच्चों को ही विरासत सौंपने की तैयारी की जा रही है।
लालू के दुर्दिन नहीं छोड रहे पीछा
मुसीबतें हैं कि चारा घोटाला के मुख्य सरगना के तौर पर चिन्हित और चर्चितत्र पूर्व रेल मंत्री एवं स्वयंभू प्रबंधन गुरू लालू प्रसाद यादव का पीछा छोडने को राजी ही नहीं। राष्ट्रवादी जनता दल का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छीना जाकर उसे राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा दिए जाने की तैयारियां की जा रही हैं। चुनाव आयोग ने राजद की उन दलीलों को दरकिनार कर दिया है जिसमें उसने कहा था कि झारखण्ड में अभी राष्ट्रपति शासन लागू है, यहां जल्द ही चुनाव की संभावना है और इन परिस्थितियों में राजद को नेशनल पार्टी का दर्जा बरकरार रखा जाए। चुनाव आयोग ने राजद को नोटिस जारी करते हुए कहा कि नागालेण्ड में चुनाव में हिस्सा न लेने के चलते क्यों न राजद की नेशनल पार्टी का दर्जा छीन लिया जाए। गौरतलब है कि नेशनल पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए यह आवश्यक है कि कम से कम चार राज्यों में राज्य स्तरीय दल की मान्यता पूरी करता हो, अर्थात इन चार राज्यों में उसे पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनावों में कम से कम छः फीसदी वोट मिले हों। चुनाव आयोग ने राजग मामले की सुनवाई लगभग पूरी कर ही ली है। हालात देखकर लगने लगा है कि स्वयंभू प्रबंधन गुरू लालू प्रसाद यादव का प्रबंधन इस बार ढेर हो गया है, और आने वाले वक्त में उनका दल नेशनल पार्टी के बजाए राज्य की पार्टी बनकर रह जाएगा।
राकांपा के बदले सुर का राज!
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के जनक शरद पवार हैं, और शरद पंवार ने कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी को विदेशी मूल का कहकर देश में बहस को जन्म दिया था। कभी कट्टर कांग्रेसी रहे पवार ने अपनी अलग पार्टी राकापा का गठन किया। एक दूसरे को गरियाने वाले पवार और कांग्रेस का चोली दामन का साथ हो गया। एक बार फिर पवार कुछ अलसाए से सरकार को गरियाते नजर आ रहे हैं। वे आईसीसी के चीफ बन गए हैं तो अब लाल बत्ती के साथ छोटा सा विभाग ही चाहते हैं। इस मामले में उन्होंन प्रधानमंत्री को अपनी इच्छा से आवगत करा दिया है। अब राकापा कोटे के दूसरे मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने चिंघाड भरी है वे नागरिक उड्डयन मंत्रालय पर छः साल से काबिज हैं, वे प्रधानमंत्री से कह रहे हैं कि उन्हें दूसरा विभाग दे दिया जाए। कुल मिलाकर यही लगने लगा है कि राकापां एक बार फिर सरकार के साथ बारगेन करने के मूड में आ चुकी है। राकापा चाहती है कि उसे दो के बजाए तीन स्थान मिलें और पंवार, पटेल के अलावा छगन भुजबल को केंद्र में लाया जाए और अगर भुजबल सूबाई राजनीति में ही फिट हैं तो फिर पवार की पुत्री सुप्रिया सुले को भी लाल बत्ती से नवाजा जाए। और तो और अब तो स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नवी आजाद भी चाहने लगे हैं कि उनका महकमा बदला जाए। अरे यहां हो क्या रहा है, देश के अनेक प्रदेशों में जिलों की बोली लगाई जाकर वहां कलेक्टर एसपी पदस्थ किए जाते हैं क्या उसी तर्ज पर देश के मंत्रालयों की बोलियां भी लगाई जाने लगी हैं।
गुमनाम पत्र ने मचाया भाजपा में तूफान
लगता है भाजपा के नए निजाम नितिन गडकरी के लिए 2010 शुभ नहीं है, या उनकी ताजपोशी के वक्त महूर्त ठीक नहीं था, यही कारण है कि उनके नेतृत्व में भाजपा अब भी पूरी तरह संभल नहीं पाई है। दिल्ली में रेली के दौरान गडकरी चक्कर खाकर गिर पडे। इसके बाद अनेकानेक मामले एसे सामने आए हैं जिससे भाजपा खुद ही अपनों से घिरती लगी। हाल ही में एक गुमनाम पत्र ने भाजपा के आला नेताओं की सांसे थाम दी हैं। भाजपा के राष्ट्रीय कार्यालय प्रभारी श्याम जाजू के बैंक खाते का विवरण लेने की शिकायत जाजू द्वारा पुलिस में दर्ज करवाई गई थी, कि किसी अज्ञात व्यक्ति उनके पेन कार्ड की कापी लेकर बैंक गया था, बाद में उक्त व्यक्ति को पुलिस ने धर दबोचा था। यह मामला दिल्ली की पटियाला हाउस अदालत में चल रहा है। इस मामले में मोड तब आ गया जब अदालत को एक गुमनाम पत्र मिला है, जिसमें उल्लेख किया गया है कि जाजू के पाए एक नहीं अनेकों पेन कार्ड हैं, जिनके माध्यम से वह करोडों अरबों के वारे न्यारे करता है। पत्र में लिखा है कि जाजू ने अलग अलग पते डालकर पेन कार्ड बनवाए हैं। बहरहाल इस पत्र से भाजपा में तूफान दिखाई दे रहा है, बडे नेताओं को डर है कि कहीं इस आंधी में उनकी पोल पट्टी भी उजागर न हो जाए।
हमें चाहिए, पगार, बंगला और कार!
कुपोषण के मामले में अव्वल माना जाना है देश के हृदय प्रदेश को। लोग मध्य प्रदेश को इथोपिया की संज्ञा भी दे चुके हैं। यहां सरकारी खजाने को भरने के लिए जनता पर कर पर कर लादे जा रहे हैं। जनता करों के बोझ से बढी मंहगाई से बुरी तरह कराह रही है, वहीं दूसरी ओर जनता के ही चुने गए नुमाईंदों को देखिए। विधायकों को जनता के दुखदर्द से काई लेना देना नहीं। उन्हें चाहिए बढी पगार। जब वे लाल बत्ती ले लेते हैं तो मंत्री कहलाते हैं। मंत्रियों के रहने के लिए राजधानी भोपाल में 45 बंग्ला, करबला, चार इमली, 74 बंग्ला, श्यामला हिल्स आदि जगहों पर दो सौ से ज्यादा बंगले हैं। मंत्रियों की ठसक तो देखिए उन्हें ये बंग्ले छोटे पडते हैं सो वे चाहते हैं, नए सर्वसुविधायुक्त आशियाने, जो करोडों रूपयों में बनेंगे। इसके अलावा मंत्रियों को अब पुरानी एम्बेसेडर कार की सवारी गांठना गवारा नहीं है। मंत्री चाहते हैं कि उन्हें विलासिता पूर्ण इनोवा या सफारी वाहन उपलब्ध कराए जाएं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी आपके प्रदेश की जनता मंहगाई से कराह रही है। आप केंद्र के द्वारा बढाई मंहगाई का विरोध कर धरना प्रदर्शन करते हैं, कम से कम अपने सूबे में टेक्स कम करके जनता को राहत तो दे दें। इसके साथ ही साथ मंत्रियों को समझाएं कि दिखावा न करते हुए किफायत से चलें।
पुच्छल तारा
मध्य प्रदेश में विद्युत की घोषित और अघोषित कटौती ने देश के हृदय प्रदेश के नागरिकों का जीना मुहाल कर रखा है। राजधानी भोपाल, संभागीय मुख्यालय, जिला, तहसील, विकासखण्ड मुख्यालय के अलावा ग्रामीण अंचलों के तो हाल ही बेहाल हैं। इंदौर जिले से रोली शर्मा ने ईमेल भेजा है। वे लिखतीं हैं कि एक अंग्रेज भारत आया, उसने मध्य प्रदेश के बारे में बहुत सुन रखा था। वह मध्य प्रदेश के एक गांव में गया और 15 दिन के लिए वहां रूक गया। 15 दिन बाद जब वह वापस लौटा तो वह दो वाक्य ही सीख पाया था। ‘‘पहली लाईन थी शुकर है लाईट आ गई।‘‘ और दूसरा वाक्य जो वह सीख पाया वह था -‘‘हे शिव - राज, फिर चली गई।‘‘