शिव के राज में माता के वाहन पर संकट!
(लिमटी खरे)
भगवान शिव बेहद भोले हैं वे थोड़ी सी ही भक्ति में प्रसन्न हो जाते हैं। मध्य प्रदेश में शिव का ही राज है। ये हैं पांव पांव वाले भईया शिवराज सिंह चौहान। शिव के गणों में वनों की देखभाल का जिम्मा है सरताज सिंह के कांधों पर। सरताज तो सरताज हैं उनकी देखरेख में एक के बाद एक जंगली जानवरों का आखेट में दम लिया जा रहा है। भेडिया बालक मोगली की कर्मस्थली पेंच नेशनल पार्क इन दिनों शिकारियों के लिए साफ्ट टारगेट बनकर रह गया है। एक के बाद एक बाघ कालकलवित होते जा रहे हैं और वनाधिकारी अपनी मटरगश्ती में ही मशगूल नजर आ रहे हैं। सिवनी के विधायक और सांसदों को सालों साल में यह भी आभास नहीं हुआ कि लगभग पांच हजार स्कव्यर किलोमीटर में फैले चंदन बगीचे जिसमें बेशकीमती चंदन हुआ करता था आज बंजर जमीन में कैसे तब्दील हो गया है। निश्चित तौर पर जनसेवक और लोकसेवक की गठजोड़ से वनसंपदा और वन्य प्राणी संकट में हैं।
देश के हृदय प्रदेश में पिछले कुछ सालों से शिवराज सिंह चौहान का राज कायम है। शिवराज सिंह चौहान के राज में सूबे के सिवनी जिले में मां दुर्गा के वाहन शेर का अस्तित्व समाप्ति की ओर है। भारी भरकम वन महकमे की फौज, विशेष सशस्त्र बल और पुलिस के जवानों के होने के बावजूद भी शिकारी सरेआम जंगल महकमे के अफसरान की खुली आंख से काजल चुराकर भागने में सफल हो रहे हैं। विश्व भर में अपनी पहचान बना चुके भेडिया बालक ‘‘मोगली‘‘ की कर्मस्थली सिवनी जिले के पेंच नेशनल पार्क के इर्दगिर्द तो क्या समूचे सिवनी जिले में वन्य जीव विशेषकर बाघ बुरी तरह संकट में हैं।
पेंच नेशलन पार्क वैसे भी देश में पिछले सालों में काफी हद तक चर्चा का विषय बना हुआ है, इसका कारण तत्कालीन भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ और तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के बीच पेंच नेशनल पार्क को लेकर खिची तलवारें हैं। गौरतलब होगा कि स्वर्णिम चतुर्भुज के अंर्तगत उत्तर दक्षिण गलियारे का निर्माण पेंच नेशनल पार्क के करीब से हो रहा है। कहते हैं जयराम रमेश को यह बताया गया है कि उक्त सडक कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र से होकर जा रही है, (जो कि सर्वथा गलत है) जिसके चलते रमेश के वन एवं पर्यावरण विभाग ने इस मार्ग के निर्माण में अनेक पेंच और फच्चर फसा दिए हैं।
इसके साथ ही साथ पेंच नेशनल पार्क कथित तौर पर जंगल में पले बढे भेडिया बालक मोगली की कर्मस्थली माना जाता है सो इसकी पहचान न केवल हिन्दुस्तान वरन् विश्व के अनेक देशों में बन चुकी है। यहां व्यवसायिक उपयोग के लिए आदिवासियों की जमीनों को धनपतियों और यहां पदस्थ रहे अधिकारियों ने कोडियों के भाव खरीदक उन पर मंहगे आलीशान स्टार होटल का निर्माण करवा दिया। पूर्व में यहां पदस्थ रहे एक अनुविभागीय दण्डाधिकारी, ने नेशनल पार्क से सटे इलाके में जमीन खरीदी थी। इस बात का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजस्व के एक अनुविभगीय अधिकारी के लिए यह काम कितना मुश्किल होगा! इसी तरह एक अतिरिक्त जिला दण्डाधिकारी ने भी सिवनी से नागपुर मार्ग पर अपने परिजन के नाम से बहुत बडा सा फार्म हाउस खरीद लिया है। चर्चा है कि सिवनी से खवासा का निर्माण करा रही सदभाव कंपनी ने इस फार्म हाउस को पूरी तरह विकसित कर कुआ आदि खोदा गया है जिसमें लगभग एक करोड रूपए की राशि खर्च की गई है। ‘‘जब सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का‘‘ की तर्ज पर अधिकारियों द्वारा पेंच नेशनल पार्क के आसपास और जिले की जमीनों पर कब्जा जमा लिया है।
जहां तक रही वन्य जीवों के शिकार की बात तो इस मामले में इतिहास के चंद पन्ने पलटने आवश्यक होंगे। नब्बे के दशक के आरंभ में जिले की वन संपदा इतनी जबर्दस्त थी कि लोग यहां सागौन के साथ ही साथ चंदन बगीचा घूमने देखने आया करते थे। बताते हैं कि कुरई के सकाटा का जंगल इतना सघन हुआ करता था कि लोगों के आकर्षण का केंद्र था यह। इसके उपरांत जब दिग्विजय ंिसह की सरकार सत्ता में आई उसके बाद के वनमंत्रियों की अर्थलिप्सा और निहित स्वार्थ तथा कर्तव्यों के प्रति अनदेखी के चलते सिवनी जिले के जंगल बुरी तरह साफ हो गए। जिले का इतना विशाल चंदन बगीचा आज किन हालातों में हैं, यह बात किसी से छिपी नहीं है। कांग्रेस के शासनकाल में दुर्दशा का शिकार हुआ चंदन बगीचा और उजडी वन्य संपदा को विपक्ष में बैठी भाजपा और उसके विधायक, सांसदों ने चुपचाप उजडने दिया। इस तरह देखा जाए तो जिले की वन्य संपदा के उजडने के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों ही बराबरी के दोषी हैं। यहां एक बात उल्लेखनीय होगी कि कांग्रेस के शासनकाल में हरवंश सिंह ठाकुर तो भाजपा की सरकार में डॉ.ढाल सिंह बिसेन सूबे के वन मंत्री रहे हैं।
याद पडता है कि जब प्रहलाद सिंह पटेल संसद सदस्य थे, उस दौरान 1995 में तीन शेरों का शिकार कर बेकार अंगो को सडक के किनारे फेंक दिया गया था। उस समय प्रहलाद सिंह पटेल ने इस मामले को संसद में गुंजाया था। केंद्रीय दल इसकी जांच के लिए आया, किन्तु वन्य जीवों के तस्कर और लकडी माफिया इतना ताकतवर था कि केंद्रीय दल ने इसे दुर्घटना में मौत बताकर मामले को रफा दफा कर दिया था। वन्य जीवों के तस्करों का साहस तो देखिए। पेंच नेशनल पार्क में सेलालियों के आकर्षण का केंद्र रही एक शेरनी को परधियों ने 1999 में जिंदा ही उठा लिया गया था। दरअसल यह शेरनी इतनी सीधी थी कि पर्यटक इसे नजदीक जाकर छू भी लिया करते थे।
पिछले साल ही एक शेर की संदेहास्पद मौत हुई थी। वन्य महकमे ने अपनी खाल बचाने के लिए इसे स्वाभाविक मौत ही बता दिया था। इतना ही नहीं इसके चंद माह बाद एक बाघ की जहर से मौत हो गई थी। साफ साफ दिखाई दे रहा था कि उसकी मौत पानी में जहर मिले होने के कारण हुई थी। वन विभाग इसे भी स्वाभाविक मोत ही बताने पर आमदा था। बाद में फोरंेसिक रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि हो सकी कि उसकी मौत जहर देने से हुई थी। हाल ही में पेंच पधारे प्रदेश के वन मंत्री से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने भी गोल मोल जवाब देकर वन महकमे की खाल बचाने का ही उपक्रम किया है।
इसके उपरांत एक के बाद एक मामले प्रकाश में आते रहे जो नागरिकों के होश उड़ाने के लिए पर्याप्त माने जा सकते हैं पर अधिकारियों और सांसद विधायकों को जगाने के लिए पर्याप्त नहीं माने जा सकते हैं। एक अन्य मामले ने तो होश ही उडा दिए हैं। पेंच नेशनल पार्क से गायब एक शावक का शव एक माह बाद वन विभाग को दिखाई देना अपने आप मंे ही अनेक प्रश्नों को अनुत्तरित ही छोड गया है। कहा जा रहा है कि इस शावक को तंत्र मंत्र के लिए मौत के घाट उतार दिया गया। इस शावक के दो पंजे एक तांत्रिक के पास ले जाते समय छिंदवाडा के वन महकमे द्वारा जप्त किए गए। आश्चर्य की बात तो यह है कि पंेच के रखरखाव के लिए राज्य शासन द्वारा भारी भरकम अलमा पदस्थ किया है जो जनता के द्वारा दिए जा रहे कर से भारी भरकम वेतन पा रहा है फिर एसी लापरवाही कैसे! क्या शिवराज सिंह चौहान स्वयं इस मामले में संज्ञान लेकर वन विभाग में शिख से लेकर नख तक माता दुर्गा के वाहन के साथ किए इस वीभत्स काम के लिए दण्ड देने का साहस कर पाएंगे?
कहा जा रहा है कि 9 मई 2010 को उक्त शावक को पंेच नेशनल पार्क के उप संचालक ने स्वयं ही कमजोर हालत में देखा था, इसके बाद से वह कथित तौर पर ‘‘लापता‘‘ था। एसा नहीं कि जिस स्थान पर उसका शव मिला है, वहां पर से उडन दस्ता न गुजरा हो। अगर नहीं गुजरा तो उडन दस्ते को वेतन और उडन दस्ते का डीजल कौन पी जाता है। जब बागड ही खेत को चरने लगे तो फिर खेत को कोई ताकत नहीं बचा सकती है। जब वन विभाग के अधिकारी कर्मचारी ही अपने कर्तव्यों में बेशकीमती इमारती लकडी और वन्य जीवों का दोहन करने का मानस बना लें तो फिर इनकी रखवाली भगवान ही आकर कर सकता है।
सिवनी जिले में काले हिरण भी बहुतायत में पाए जाते हैं। जिला मुख्यालय सिवनी से बमुश्किल पांच सात किलोमीटर के दायरे में ही काले हिरणों के झुण्ड दिखाई पड जाते हैं। इन काले हिरणों का शिकार बडे पैमाने पर किया जा रहा है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। हमने अपने पूर्व के आलेख में इन काले हिरणों के लिए एक सेंचुरी बनाने की बात कही थी, पर न तो मध्य प्रदेश सरकार के कानों में ही जूं रेंगी और न ही केंद्र की सरकार को इससे कोई सरोकार दिख रहा है। वन्य जीवों के शिकार और इमारती लकडी की दनादन कटाई को लेकर प्रहलाद सिंह पटेल के अलावा किसी और ने बात किसी मंच पर उठाई हो इसका उदहारण अभी तक तो नहीं मिल सका है। क्या कांग्रेस के जिले के इकलौते विधायक और विधानसभा उपाध्यक्ष ठाकुर हरवंश सिंह सहित सत्तारूढ भाजपा के विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, कमल मस्कोले, श्रीमति शशि ठाकुर सहित केंद्र में सत्ता और विपक्ष में बैठे जिले के दोनों सांसद बसोरी सिंह मसराम और के.डी.देशमुख इस मामले को उठाने का मद्दा रखते हैं।
इस तरह के शिकार को दुर्घटना में मौत बताकर एनएचएआई के उत्तर दक्षिण गलियारे के गुजरने में अडंगे कसे जा रहे हैं। एक बार चर्चा के दौरान जिले के एक वरिष्ठतम अधिकारी ने एनएचएआई के सडक निर्माण में फसे पेंच कारीडोर के फच्चर के बारे में अनोपचारिक तौर पर कहा गया था कि शिकारियों द्वारा किए गए शिकार को सडक दुर्घटना बताने से इस सडक का निर्माण और दुष्कर होता जा रहा है। सवाल यह उठता है कि केंद्र में बैठे वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश जो वनों और पर्यावरण के बारे में अपनी चिंता का स्वांग रचते हैं वे क्या पेंच का दौरा कर इन सारे अनसुलझे सवालों पर गौर फरमाएंगे। अगर वे एसा करते हैं तो यह न केवल वन और पर्यावरण के मामले में उनका स्वागतयोग्य और अनुकरणीय प्रयास समझा जाएगा, वरन् सिवनी वासियों के साथ पूरा न्याय भी माना जाएगा।