मंगलवार, 4 अक्टूबर 2011

रेल्वे ने फैलाए वित्त के सामने हाथ


रेल्वे ने फैलाए वित्त के सामने हाथ

दो हजार करोड़ की मांगी इमदाद

(ब्यूरो कार्यालय)

नई दिल्ली। निजामों के मनमाने रवैए से पटरी पर से उतर चुकी भारतीय रेल को अब सुव्यवस्थित होने के लिए दो सौ करोड़ रूपयों की दरकार है। आर्थिक कंगाली के मुहाने पर खड़े रेल मंत्रालय ने मदद के लिए वित्त मंत्रालय का दरवाजा खटखटाया है। उसने फिलहाल वित्त मंत्रालय से 2000 करोड़ रुपये का कर्ज मांगा है। अपनी आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने के लिए कुछ अन्य विकल्पों पर भी विचार कर रहा है।

रेलवे के पास महज 75 लाख की ही नगदी बची है। उसका परिचालन व्यय 73,650 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है, जबकि 2007-08 में यह 41,033 करोड़ रुपये था। पेंशन खर्च 7,953 करोड़ रुपये से बढ़कर 16000 करोड़ रुपये हो गया है। रेलवे बोर्ड के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि वित्त मंत्रालय को एक हफ्ता पहले पत्र भेजकर 2000 करोड़ रुपये ब्रिजलोन के रूप में मांगे गए हैं। पैसा न होने से परियोजनाएं प्रभावित हो रही हैं।

रेलवे की ओर से वित्त मंत्रालय को करीब एक पखवाड़ा पहले पत्र भेजा गया है। सूत्रों के मुताबिक, रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने इस बारे में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी से बात भी की है। तककरीबन 9 साल से रेलवे का किराया नहीं बढ़ा है। रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी भी किराया बढ़ाने के पक्ष में नहीं हैं। वित्तीय हालात खराब होते देख रेलवे कर्मचारियों की यूनियनें यात्री किराया बढ़ाने का दबाव बना रही हैं।

कैसे हो गया रेल्वे खस्ताहाल!

भारतीय रेल के पटरी पर से उतरने के अनेकों कारण हैं। इसका पहला कारण है छठा वेतन आयोग। इसके चलते रेलवे को अपने कर्मचारियों के वेतन और पूर्व कर्मचारियों की पेंशन पर बड़ी रकम खर्च करनी पड़ रही है। इसके अलावा माल ढुलाई में बाधा, नक्सली आंदोलन के कारण ट्रेनों और मालगाड़ियों के आवागमन पर विपरीत असर, ईंधन के बढ़ते दाम, हर साल बड़े पैमाने पर नई ट्रेनों का ऐलान ऐसे कारण हैं, जिन्होंने रेलवे की तिजोरी पर डाका डाला है। रेल मंत्रालय यह भी चाहता है कि केंद्र उसे एकमुश्त सहायता दे। यह संभव न हो तो कम से कम हर साल ब्याज के रूप में वसूले जाने वाले 6 हजार करोड़ रुपये की वसूली ही स्थगित कर दे।

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