नौटंकी प्रभात झा महोदय की!
(लिमटी खरे)
भारतीय जनता पार्टी की मध्य प्रदेश के अध्यक्ष बिहार मूल के प्रभात झा हैं। वैसे तो झा ने मध्य प्रदेश में सालों काम किया है, किन्तु भाजपा में आज भी उनकी सर्व स्वीकार्यता का अभाव साफ देखा जा रहा है। भले ही एक के बाद एक उपचुनावों में भाजपा ने अपना परचम लहरा दिया हो, किन्तु यह जीत संगठन के खाते में इसलिए नहीं जाएगी, क्योंकि हर जगह भाजपा नहीं जीती कांग्रेस हारी है। गुटबाजी में फंसी कांग्रेस ने सदा ही भाजपा की जीत के मार्ग प्रशस्त किए हैं। मुख्यमंत्री बनने की जुगत में लगे प्रभात झा के कारिंदों को उनकी मंशा का पता चल गया है, यही कारण है कि मध्य प्रदेश सरकार के नुमाईंदे इन दिनों दिल्ली में शिवराज सिंह चौहान को ‘‘पीएम मेटेरियल‘ बताने से नहीं चूक रहे हैं। इसी तरह का काम राजा दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में मध्य प्रदेश सूचना केंद्र प्रभारी इंदिरा स्वरूप ने भी किया था राजा पीएम तो नहीं बने पर इसके बाद राजा को दस साल का वनवास अवश्य ही भोगना पड़ा था।
हाथी को सबसे बड़ा स्तनधारी प्राणी माना गया है। हाथी के साथ अनेक किंवदंतियां, कहावत, महावत और मुहावरे आम हैं। ‘‘हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और‘‘ बड़ी ही पुरानी और सुनी सुनाई कहावत मानी गई है। मध्य प्रदेश में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी सरकार और संगठन ने इस कहावत को चरितार्थ करने का प्रयास किया है। भाजपा ने डीजल, पेट्रोल, रसोई गैस और कैरोसीन के मूल्यों में लगी आग पर जमकर हल्ला मचाया है। भाजपा वैसे तो संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार पर यह दबाव बनाने में नाकाम रही है कि वह मूल्य वृद्धि को वापस ले ले। भाजपा का देश व्यापी विरोध महज रस्म अदायगी ही नजर आ रहा है। भाजपा द्वारा आम आदमी की कमर इस मंहगाई से टूटने को आधार बनाकर विरोध जताया जा रहा है।
इसी मंहगाई के शोर में मध्य प्रदेश भाजपा के निजाम प्रभात झा ने एक नायाब तीर छोड़कर सभी का ध्यान अपनी ओर बरबस ही खींच लिया। प्रभात झा ने महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल को पत्र लिखकर उनसे इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी है। संभवतः पहली बार जनता द्वारा प्रत्यक्ष न चुने गए जनप्रतिनिधि ने इस तरह की अनुमति की मांग की होगी। प्रभात झा के इस कदम से भाजपा भी दो फाड़ में बट गई है। एक धड़ा जो एमपी के सीएम की कुर्सी पर प्रभात झा को काबिज देखना चाह रहा है वह प्रभात के साथ तो दूसरा धड़ा इसे शिवराज सिंह चौहान को निपटाने के खेल का आगाज मान रहा है।
ईंधन के दामों में बढ़ोत्तरी के बाद अनेक राज्य सरकारों ने अपने अपने सूबों में करों में राहत देकर आम आदमी को सहारा दिया है। मुख्यतः बिहार ने डीजल पर बिक्री कर में 0.36 फीसदी, उत्तराखण्ड और पंजाब ने डीजल की बढ़ी कीमतों से वैट से मुक्त रखा है। हरियाणा ने कैरोसीन पर वैट समाप्त कर दिया है। पश्चिम बंगाल ने रसोई गैस पर वैट समाप्त कर दिया है। राजस्थान ने डीजल पर वैट घटा दिया है एवं दिल्ली ने डीजल 37 पैसे प्रति लीटर तो बीपीएल परिवारों के लिए गैस पर पचास रूपए की छूट देने की घोषणा की है।
सभी की आंखें किसान पुत्र शिवराज सिंह चौहान पर टिकी थीं कि वे क्या करिश्मा करते हैं। अफसोस शिवराज ने मौन ही साधे रखा। एक आंकलन के अनुसार रसोई गैस और कैरोसीन दोनों ही एसे पेट्रोलियम उत्पाद हैं जो राज्यों के खजाने में खासी बढ़ोत्तरी के कारक माने जाते हैं। वैसे तो पेट्रोलियम उत्पाद पर आहूत बिक्रीकर और वैट से सरकारों को मोटी कमाई होती है, पर सूबाई सरकारें अगर चाहें तो इस पर कमी कर राज्य में जनता को राहत प्रदान कर सकती हैं। 2010 -2011 के आंकड़ों पर गौर फरमाया जाए तो इस वित्तीय वर्ष में राज्यों को पेट्रोलियम उत्पाद के माध्यम से 78 हजार 944 करोड़ रूपयों की कमाई हुई है। जो इसके पहले वाले वित्तीय वर्ष की तुलना में 24 फीसदी अधिक है। डीजल पर राजस्थान को छोड़कर किसी भी सूबे ने वैट की दरों में रियायत नहीं दी है।
एक तरफ किसान पुत्र शिवराज सिंह चौहान जो कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, वे पेट्रोलियम उत्पादों की दरों में बढ़ोत्तरी होने के बाद भी राज्यों के द्वारा इन पर आहूत करों में कमी करने को तैयार नहीं वहीं दूसरी ओर बरास्ता राज्य सभा संसदीय सौंध मेें कदम रखने वाले मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष प्रभात झा इस मंहगाई से आजिज आकर खुद इच्छा मृत्यु की इजाजत की दरकार रख रहे हैं। प्रभात झा को जिस राज्य में भाजपा की कमान सौंपी गई है उस राज्य में शिवराज के नेतृत्व में भाजपा सरकार काबिज है। शिवराज सरकार इन पेट्रोलियम उत्पादों पर भी वैट वसूलकर अपनी आमदनी बढ़ाने से नहीं चूक रहे हैं शिवराज सिंह चौहान।
अगर देखा जाए तो देश में अन्य राज्यों की तुलना में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा पेट्रोलियम उत्पादों पर आहूत वैट सबसे अधिक है। जब शिवराज चौहान से पूछा जाता है कि वे अपने राज्य में पेट्रोलियम उत्पादों पर करों में राहत क्यों नहीं देते? इसके जवाब में शिवराज का कहना है कि वे क्यों दे करों में राहत? पेट्रोलियम उत्पादों के दाम केंद्र ने बढ़ाए हैं सो इसमें राहत देने का जिम्मा भी केंद्र का ही है।
देश में सबसे मंहगी रसोई गैस मध्य प्रदेश में बिक रही है। एमपी में रसोई गैस 452 रूपए, झारखण्ड में 425 रूपए 50 पैसे, पंजाब में 420 रू., हिमाचल में 411 रूपए 15 पैसे, कर्नाटक में 411 रू.10 पैसे, गुजरात में 409 रूपए पच्चीस पैसे, बिहार में 407 रूपए, छत्तीगढ़ में 403 रूपए 25 पैसे तो उत्तराखण्ड में 394 रूपए तीस पैसे की दर से मिल रही है। भाजपा की उत्तराखण्ड और एमपी सरकार के राज में रसाई गैस की कीमतों में 57 रूपए 70 पैसे का अंतर है। इसी तरह एंट्री टेक्स और वेट देखा जाए तो रसाई गैस पर 24 रूपए पचास पैसे एंट्री तो बीस रूपए वैट, पेट्रोल पर इक्यावन पैसे एंट्री तो 14 रूपए 91 पैसे वैट एवं डीजल पर छत्तीस पैसे एंट्री तो आठ रूपए 23 पैसे वैट लगाया है शिवराज सिंह चौहान ने।
मजे की बात यह है कि ठेकेदारों को ज्यादा से ज्यादा लाभ देने की गरज से शराब लाबी के दबाव में शिवराज सरकार ने शराब पर एंट्री और वैट शून्य रखा है। राज्य सरकार को वर्ष 2009 - 2010 में पेट्रोलियम पदार्थों में वैट और एंट्री टेक्स से 2550 करोड़ तो शराब पर एक्साईज ड्यूटी के रूप में 2952 करोड़ रूपयों की आमदनी हुई थी। यह आमदनी अगले वित्तीय वर्ष 2010 - 2011 में बढ़कर पेट्रोलियम पदार्थ पर 3386 करोड़ तो शराब पर 3604 करोड़ रूपए हो गई।
शिवराज सिंह चौहान अपने राज्य के विकास के लिए खासे फिकरमंद नजर आते हैं। विकास के लिए धन की आवश्यक्ता होती है। किसी भी राज्य के पास टकसाल (सिक्के ढालने का स्थान) नहीं लगा हैै। धन करों को जनता पर आहूत कर ही वसूला जाता है और राजकोषीय खजाने को भरा जाता है। इसी से फिर विकास का अनंत सिलसिला आरंभ होता हैै।
इस विकास को करने की जवाबदारी सिर्फ देश की जनता के कांधों पर ही है। इसको अमली जामा पहनाने वाले जनसेवक और लोकसेवक भारी भरकम वेतन इसी राजकोष से लेकर विलासिता से परिपूर्ण अपना जीवन यापन करते हैं। 2010 में विधायकों की पगार बढ़ाने के बाद एक बार फिर पगार बढ़ाने के लिए विधानसभा उपाध्यक्ष ठाकुर हरवंश सिंह के नेतृत्व में एक समिति का गठन कर दिया गया है। यह है भाजपा सरकार का एक और चेहरा। एक तरफ जनता भूखों मरने पर मजबूर है, वहीं दूसरी ओर विधायक अपनी तनख्वाह बढ़ाने की जुगत में हैं।
इस तरह की विसंगतियां प्रभात झा को दिखाई नहीं पड़तीं। अपने निजाम शिवराज सिंह चौहान के सुरों पर ठुमके लगाते हुए प्रभात झा ने भी कह डाला कि राज्य अगर वैट घटाएगा तो राज्य की विकास योजनाएं प्रभावित होंगी। क्या प्रभात झा के अंदर इतना माद्दा है कि वे अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ता शिवराज सिंह चौहान और पार्टी के कार्यक्रमों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेकर विज्ञापनों में बड़े बड़े फोटो छपवाने वाले विधानसभा अध्यक्ष ईश्वर दास रोहाणी से यह पूछ सकें कि एक तरफ वे खुद मंहगाई के लिए इच्छा मृत्यु की मांग कर रहे हैं, साथ ही वैट न घटाने पर विकास योजनओं के प्रभावित होने की दलील दे रहे हैं, फिर किस आधार पर ‘आना फ्री, जाना फ्री, रहना फ्री, बिजली फ्री, फोन, मोबाईल फ्री, सब कुछ फ्री पाने वाले विधायकों का वेतन एक साल पहले ही बढ़ाने के बाद इस तरह की समिति बनाने का क्या ओचित्य? साथ ही साथ विपक्ष में बैठी कांग्रेस से कोई उम्मीद करना इसलिए बेमानी होगा क्योंकि 2003 के बाद कांग्रेस के कदम ताल इसी दिशा की ओर इशारा करते हैं कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस का संगठन पूरी तरह भाजपा के ही ‘पे रोल‘ पर काम कर रहा है।
प्रभात झा, शिवराज सिंह चौहान और वित्त मंत्री राघव जी तीनों को अपनी ही पार्टी की उत्तराखण्ड और हिमाचल सरकार से सीख लेना चाहिए जिन्होंने पेट्रोलियम उत्पादों पर राज्य के कर कम किए हैं। क्या इससे भाजपा शासित इन राज्यों में विकास योजनाएं प्रभावित नहीं होंगी। हर मामले में अपनी मांद (राज्य के अंदर) बैठकर केंद्र को कोसने से भला क्या होने वाला है! जब भी शिवराज सिंह चौहान दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री या केंद्रीय मंत्रियों से मिलते हैं, वे राज्य के हितों को मानों भूल ही जाते हैं।
मंहगाई पर इच्छा मृत्यु की चाहत रखने वाले प्रभात झा ने दस अप्रेल 2008 को राज्य सभा के लिए चुने जाने के उपरांत सदन में आम आदमी के हित अहित का एक भी प्रश्न नहीं पूछा है, जिससे मध्य प्रदेश क्या समूचे देश के निवासियों के प्रति उनके उत्तरदायी होने का प्रमाण खुद ब खुद मिल जाता है। तीन सालों में अगर प्रभात झा ने एक भी प्रश्न नहीं पूछा या किसी नीति का विरोध नहीं किया है तो इससे साफ है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार देश हित में काम कर ही है, जिसे मध्य प्रदेश भाजपा का पूरा पूरा समर्थन है। अब देखना यह है कि संसद के शीतकालीन सत्र में प्रभात झा द्वारा पेट्रोलियम उत्पादों की मूल्य वृद्धि पर संसद में कोई प्रश्न लगाया जाता है अथवा सदा की तरह इस बार भी मौन ही धारण कर लिया जाता है। हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि कांग्रेसनीत केंद्र सरकार को मध्य प्रदेश की सीमाओं के अंदर कोसने से सूबे के लोगों की सहानुभूति हासिल करने में भाजपा का कोई सानी नहीं है।