कमल नाथ, सत्यव्रत के आगे बौने हुए भूरिया
साल भर में नहीं हुई छिंदवाड़ा, छतरपुर अध्यक्षों की घोषणा
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली (साई)। भले ही कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया के भरोसे देश के हृदय प्रदेश में दस सालों के बाद राज वापस लाने के दिवा स्वप्न देख रहा हो किन्तु जमीनी हकीकत इससे उलट ही है। कांग्रेस महासचिव राजा दिग्विजय सिंह के रबर स्टेंप का ठप्पा लगे भूरिया का साहस इतना भी नहीं है कि वे केंद्रीय शहरी विकास मंत्री कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र वाले छिंदवाड़ा और राज्य सभा सदस्य सत्यव्रत चतुर्वेदी के प्रभाव वाले टीकम गढ़ और छतरपुर के अध्यक्षों के नामों की घोषणा एक वर्ष के बाद भी कर सकें।
गौरतलब है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री कांति लाल भूरिया को पिछले साल 6 अप्रेल को सुरेश पचौरी के स्थान पर मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष मनोनीत किया गया था। भूरिया ने अपना कार्यभार 15 अप्रेल को भोपाल में ग्रहण किया था। इसके बाद से भूरिया ने मध्य प्रदेश का सघन दौरा एक साल बीतने के बाद भी नहीं किया है। जिससे प्रदेश में व्याप्त जबर्दस्त गुटबाजी से जोड़कर देखा जा रहा है।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के नेशनल हेडक्वार्टर में चल रही चर्चाओं के अनुसार कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र जिला छिंदवाड़ा में दस सालों से अधिक समय से जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद पर गंगा प्रसाद तिवारी काबिज हैं। कहा जाता है कि कमल नाथ के लिए तिवारी भस्मासुर बन चुके हैं। कहा जा रहा है कि अगर कमल नाथ ने गंगा तिवारी को पदच्युत किया तो संगठन में उन्हें जिला स्तर पर काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है, जिसका सीधा असर उनके लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा।
यही कारण है कि मजबूरी में कमल नाथ द्वारा गंगा प्रसाद तिवारी को तीसरी बार अध्यक्ष बनाने दबाव बनाया जा रहा है। उधर, पार्टी की गाईड लाईन स्पष्ट है कि किसी भी कांग्रेस के नेता को तीसरी बार पार्टी जिलाध्यक्ष नहीं बनाया जा सकता है। कमल नाथ के कद और प्रभाव के आगे बौने प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कांति लाल भूरिया साल भर से छिंदवाड़ कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष को लेकर असमंजस में ही हैं। यही कारण है कि उनके कार्यभार ग्रहण करने के लिए लगभग एक साल बाद भी छिंदवाड़ा जिला कंाग्रेस कमेटी के अध्यक्ष की घोषणा लंबित ही है।
कमल नाथ के प्रभाव वाले सिवनी जिले में भी जिला कांग्रेस कमेटी की घोषणा के साथ ही विद्रोह के बिगुल बज गए हैं। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के द्वारा अनुमोदित सूची में जिला कांग्रेस के अधिकृत प्रवक्ता के बतौर ओम प्रकाश तिवारी का नाम था, जबकि जिला कांग्रेस कमेटी ने ओ.पी.तिवारी के अलावा जे.पी.एस.तिवारी और रामदास ठाकुर के नामों की घोषणा कर दी थी। डीसीसी द्वारा अल्पसंख्यकों की उपेक्षा की बात भी फिजां में तैर रही है।
बताया जाता है कि हाल ही में नगर कांग्रेस कमेटी सिवनी के संगठन मंत्री मुकेश सक्सेना और जिला कांग्रेस कमेटी के संगठन मंत्री रंजीत यादव को प्रदेश कांग्रेस कमेटी द्वारा महामंत्री बना दिया गया है। इसके अलावा राजा बघेल को विशेष आमंत्रित बनाने की खबर भी है। इस बात की खबर जिला कांग्रेस कमेटी को भी नहीं है। कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि जिला कांग्रेस कमेटी इस मामले में जानबूझकर अनजान बन रही है।
इसके साथ ही साथ हाल ही में मध्य प्रदेश कोटे से राज्य सभा पहुंचे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी अपने प्रभाव वाले टीकमगढ़ और छतरपुर में अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए एडी चोटी एक कर रहे हैं। छतरपुर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद पर चतुर्वेदी अपने पुत्र नितिन की ताजपोशी चाह रहे हैं। वहीं संगठन इसके खिलाफ है और वह वर्तमान अध्यक्ष जगदीश शुक्ला की बिदाई नहीं चाह रहा है। कहा जा रहा है कि शुक्ला का लट्टू पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी की बैटरी से चमचमा रहा है।
सत्यव्रत चतुर्वेदी एक बार फिर राज्य सभा से संसदीय सौध में पहुंच गए हैं जिससे उनके कद में जबर्दस्त इजाफा हुआ है। यही कारण है कि टीकमगढ़ और छतरपुर के सियासी समीकरण भी बदल चुके हैं। माना जा रहा है कि छतरपुर का फैसला सत्यव्रत चुतुर्वेदी के पक्ष में ही होगा। रही बात शुक्ला की तो उन्हें प्रदेश में कहीं एडजस्ट कर मना लिया जा सकता है।
टीकमगढ़ में सत्यव्रत चतुर्वेदी की सियासी चौपड़ में सबसे बड़ा अडंगा बनकर खड़े हैं विधायक यादवेंद्र सिंह। टीकमगढ़ वैसे तो यादवेंद्र सिंह की कर्मस्थली है किन्तु राष्ट्रीय स्तर पर यादवेंद्र सिंह ने अपनी पहचान नहीं बना सकी है। यही कारण है कि उन्हें मजबूरी में सत्यव्रत चतुर्वेदी के झंडे तले ही काम करने को मजबूर होना पड़ता है, यह बात शायद सिंह को नागवार गुजरती है। यही कारण है कि चतुर्वेदी के सुझाए नाम पर यादवेंद्र सिंह का वीटो आ जाता है।
एआईसीसी हेडक्वार्टर में एमपी कांग्रेस कमेटी के प्रेजीडेंट और पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया को कमल नाथ और सत्यव्रत चतुर्वेदी के सामने बच्चा ही माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि अगर कांग्रेस ने 2013 का विधानसभा चुनाव कांति लाल भूरिया के नेतृत्व में लड़ा तो एमपी में भी कांग्रेस के हालात गुजरात, बिहार और उत्तर प्रदेश की तरह होने में देर नहीं लगने वाली। लगातार दस साल से सत्ता से बाहर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को लगातार एमपी कोटे के केंद्रीय मंत्रियों से उपेक्षा का दंश भोगना पड़ रहा है जिससे उनका मनोबल पूरी तरह से टूट ही चुका है।