0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 46
वन मंत्रालय से पावर प्लांट के प्रथम चरण की अनुमति एक अजूबा!
पानी की स्वीकृति लिए बिना कैसे पनपते पेड़
फरवरी 2011 को पानी के लिए हुआ समझौता, नहीं हुआ वृक्षारोपण
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली (साई)। मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा मध्य प्रदेश के सिवनी जिले की आदिवासी बहुल्य घंसौर तहसील में स्थापित किए जाने वाले कोल आधारित पावर प्लांट के द्वारा पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए संयंत्र क्षेत्र में वृक्षारोपण न किए जाने के बावजूद भी मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की अनुशंसा पर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 600 मेगावाट के प्रथम चरण की स्वीकृति मिलना अपने आप में एक अजूबे से कम नहीं है।
वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर जिनका राजनैतिक क्षेत्र में भी इकबाल बुलंद है, के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा दो चरणों में लगाए जा रहे कोल आधारित पावर प्लांट के संयंत्र प्रबंधन द्वारा जमा कराए गए प्रपत्रों से साफ हो जाता है कि इस संयंत्र की स्थापना के दोनों चरणों में निर्माण अवस्था से प्रदूषण फैलना आरंभ हो जाएगा।
सूत्रों की मानें तो इसके निर्माण का काम वर्ष 2009 से ही आरंभ हो गया है। इस संयंत्र के निर्माण के पहले सबसे अधिक जरूरी यह बात थी कि संयंत्र क्षेत्र के आस पास वाले क्षेत्र में संयंत्र प्रबंधन द्वारा पर्याप्त मात्रा में वृक्षारोपण किया जाए, ताकि प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके। सूत्रों ने कहा कि इस हेतु संयंत्र प्रबंधन ने सरकार को भरोसा दिलाया था कि वह संयंत्र के निर्माण के पहले ही वृक्षारोपण का काम आरंभ कर देगा।
सूत्रों ने कहा कि जेपीएल के दूसरे चरण की लोकसुनवाई में संयंत्र प्रबंधन ने मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के आला अधिकारियों के समक्ष इस बात को स्वीकार किया था कि 22 नवंबर 2011 अर्थात निर्माण आरंभ होने के दो वर्षों बाद तक संयंत्र प्रबंधन द्वारा वृक्षारोपण नहीं किया गया है। हैरानी की बात तो यह है कि पर्यावरण और प्रदूषण नियंत्रण के लिए आहूत लोकसुनवाई में ही संयंत्र प्रबंधन ने स्वयं के द्वारा नियमों के माखौल उड़ाने की बात कही गई और जिला प्रशासन सिवनी तथा मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के आला अधिकारी मंुह ताकते बैठे रहे।
उधर, मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के सूत्रों का कहना है कि चूंकि वृक्षारोपण के उपरांत इन्हें बड़ा करने के लिए पानी की आवश्यक्ता होती। चूंकि मध्य प्रदेश सरकार से पानी लेने के लिए संयंत्र प्रबंधन का अनुबंध नहीं हुआ था अतः इन पौधों को पानी कैसे दिया जाता। अगर यह पानी दूर से लाया जाता तो यह काफी हद तक मंहगा साबित होता, संभवतः यही कारण था कि पर्यावरण बचाने और प्रदूषण रोकने के लिए आवश्यक वृक्षारोपण संयंत्र प्रबंधन द्वारा वर्ष 2009 से 2011 तक नहीं करवाया गया।
मध्य प्रदेश सरकार के जल संसाधन विभाग के सूत्रों का कहना है कि संयंत्र प्रबंधन द्वारा जल संसाधन विभाग, मध्य प्रदेश शासन के पत्र क्रमांक वृपनिम/31/रास्/162/08/86 दिनांक 06 फरवरी 2009 द्वारा 23 एमसीएम/वर्ष की जल अनुमति प्राप्त की जा चुकी है। सूत्रों ने आगे बताया कि मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड और मध्य प्रदेश सरकार के नर्मदा वैली विकास प्राधिकरण के मध्य 21 फरवरी 2011 को 16.88 एसीएम पानी हर साल रानी अवंती बाई सागर परियोजना के बरगी बांध से निकालने हेतु समझौता भी हो चुका है।
कुल मिलाकर सिवनी जिले की आदिवासी बाहुल्य तहसील घंसौर में पर्यावरण बिगड़े, प्रदूषण फैले, क्षेत्र झुलसे या आदिवासियों के साथ अन्याय हो इस बात से मध्य प्रदेश सरकार के प्रदूषण नियंत्रण मण्डल और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को कुछ लेना देना नहीं है। यह सब देखने सुनने के बाद भी केंद्र सरकार का वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, मध्य प्रदेश सरकार, मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल, जिला प्रशासन सिवनी सहित भाजपा के सांसद के.डी.देशमुख विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, कमल मस्कोले, एवं क्षेत्रीय विधायक जो स्वयं भी आदिवासी समुदाय से हैं श्रीमति शशि ठाकुर, कांग्रेस के क्षेत्रीय सांसद बसोरी सिंह मसराम एवं सिवनी जिले के हितचिंतक माने जाने वाले केवलारी विधायक एवं विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर चुपचाप नियम कायदों का माखौल सरेआम उड़ते देख रहे हैं।
(क्रमशः जारी)