कितने राज उगलेगी भोपाल गैस त्रासदी
रोजना हो रहा एक सनसनीखेज खुलासा
हर कोई ‘‘उपरी दबाव‘‘ में कर रहा था कार्यवाही
अगर गैरत बची है तो कांग्रेस भाजपा को माफी मांगना चाहिए राष्ट्र से
. . . मतलब 84 में ही अंकल सेम को बेच दिया था हिन्दुस्तान का जमीर
आखिर क्यों नहीं पसीज रहा सोनिया का दिल
(लिमटी खरे)
रोजना हो रहा एक सनसनीखेज खुलासा
हर कोई ‘‘उपरी दबाव‘‘ में कर रहा था कार्यवाही
अगर गैरत बची है तो कांग्रेस भाजपा को माफी मांगना चाहिए राष्ट्र से
. . . मतलब 84 में ही अंकल सेम को बेच दिया था हिन्दुस्तान का जमीर
आखिर क्यों नहीं पसीज रहा सोनिया का दिल
(लिमटी खरे)
1984 में देश के हृदय प्रदेश में हुई अब तक की सबसे बडी और भीषणतम औद्योगिक त्रासदी के फैसले के 26 साल बाद इससे संबंधित नित नए खुलासे इस तरह हो रहे हैं मानो बालाजी फिल्मस का कोई टीवी सीरियल हो। हालात देखकर लगने लगा है जिस तरह टीवी सीरियल में एक के बाद एक एपीसोड बढते ही जाते हैं, वैसे ही इस मामले में भेद खुलते ही जाएंगे। 84 की त्रासदी के बाद जहां एक ओर भोपाल शहर ने लाशें उगलीं वहीं अब इसके फैसले के उपरांत राज उगलते ही जा रहे हैं। एक के बाद एक सनसनीखेज खुलासे, कांग्रेस के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी और बीसवीं सदी के अंतिम दशकों के कांग्रेस की राजनीति के चाणक्य कुंवर अर्जुन सिंह को शक के दायरे में ला दिया गया है, प्रधानमंत्री मीडिया के सामने आने पर मजबूर हो गए हैं, नहीं डिगा तो कांग्रेस की राजमाता और स्व.राजीव गांधी की अर्धांग्नी सोनिया गांधी का सिहांसन। आज सोनिया गांधी ने साबित कर दिया है कि वे देश के सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री पद से बडी अहमियत रखती हैं। कांग्रेस पर लगे आरोपों के मामले में प्रधानमंत्री गोल मोल जवाब दे रहे हैं। कांग्रेस रक्षात्मक मुद्रा में है। सोनिया गांधी जबडे कसकर बांधे हुए हैं। उन्हें डर है कि अपने प्रबंधकों के मशवरों के चलते राजनैतिक बियावान में हाशिए में ढकेल दिए गए कुंवर अर्जुन सिंह उनके वक्तव्यों को किस दिशा में ले जाएं कहा नहीं जा सकता है। हालात देखकर लगता है कि अगर कुंवर अर्जुन सिंह ने मुंह खोला तो कांग्रेस की वो गत बन सकती है कि आने वाले दो तीन दशकों तक कांग्रेस का नामलेवा कोई भी नहीं बचेगा। कल तक सूने पडे कंुवर अर्जुन सिंह की सरकारी आवास में लाल बत्ती और सायरन की आवाजें इस बात का घोतक है कि भोपाल गैस कांड के फैसले से उनकी पूछ परख एकदम से बढ चुकी है।
तत्कालीन जिलाधिकारी मोती सिंह ने खुलासा किया कि उन्होंने तत्कालीन मुख्य सचिव के दबाव में यूनियन कार्बाईड के प्रमुख वारेन एंडरसन को छोडा था। यह अकाट््य सत्य है कि देश को भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी ही ‘‘हांक‘‘ (जिस तरह बेलगाडी को गाडीवान हांकता है) रहे हैं। क्या जिला दण्डाधिकारी ने तब ‘‘उपरी दबाव‘‘ को लिखा पढी में लिया था, अगर नहीं तो एंडरसन को भोपाल से भगाने का आपराधिक कृत्य मोती ंिसंह ने किया। मोती सिंह पर आपराधिक मामला दायर किया जाए फिर देखिए मजे। बरास्ता मोती सिंह एक के बाद एक सभी दोषी नग्नावस्था में सडको ंपर दिखाई देंगे।
जिस तरह बालाजी फिल्मस की प्रमुख एकता कपूर अपने सीरियल के अगले एपीसोड के लिए पटकथा आगे बढाती हैं, उसी तर्ज पर ‘‘भोपाल गैस कांड‘‘ सीरियल में बयानों की बोछारें हो रहीं हैं। छब्बीस साल का समय कम नहीं होता। अमूमन छब्बीस साल में एक युवा दो बच्चों का बाप बन चुका होता है, पर इन उमरदराज लोगों का साहस देखिए इस मामलें में छब्बीस साल तक मौन साधे रखा। आखिर क्या वजह थी कि छब्बीस सालों तक ये सारे राजदार अपने अंदर अपराध बोध को पालते रहे! राजधानी भोपाल के हनुमान गंज क्षेत्र में आता है यूनियन कार्बाईड। अब उस थाने के तत्कालीन थाना प्रभारी सुरेंद्र सिंह की आत्मा जागी है। उन्होंने छब्बीस साल बाद बताने की जहमत उठाई है कि ‘‘उपरी दबाव‘‘ के चलते उन्होनंे धाराएं बदलीं थी। रात में उन्हें यूनियन कार्बाईड के प्रंबंधन के खिलाफ धारा ‘304 ए‘ के तहत मामला पंजीबद्ध किया था, पर सुबह लाशों के ढेर देखने के बाद उन्होंने प्रबंधन के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज करना चाहा, किन्तु एक बार फिर ‘‘उपरी दबाव‘‘ का जिन्न सामने आया और उनके हाथ बंध गए।
सूत्रों के हवालों से जो खबरें मीडिया में आ रही हैं, उसके अनुसार तत्कालीन विदेश सचिव महाराज कृष्ण रसगोत्रा पर भी शक की सुई आकर टिक गई है। कहा जा रहा है कि रसगोत्रा ने एंडरसन को गैस कांड के उपरांत भोपाल यात्रा के दरम्यान पुलिस सुरक्षा और रिहाई तक सुनिश्चित की थी। अमेरिकी दूतावास के तत्कालीन उप प्रमुख गार्डन स्ट्रीब के खुलासे से भारत गणराज्य का प्रधानमंत्री कार्यालय और विदेश मंत्रालय दोनों ही शक के घेरे में आ गया है। मामले के पंेच कुछ समझ में आने लगे हैं। रसगोत्रा ने एंडरसन को मदद का वादा किया। संभवतः इसकी जानकारी तत्कालीन मुख्यमंत्री कुंवर अर्जुन सिंह को नहीं थी, इसीलिए एंडरसन को गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके उपरांत वही ‘‘उपरी दबाव‘‘ के चलते रसगोत्रा को गार्डन ने उनका वादा याद दिलाया।
पूर्व अमेरिकी राजनयिक गार्डन स्ट्रीब का कहना है कि वारेन एंडरसन के मामले में भारत सरकार ने अमेरिका की इस शर्त का मान लिया था कि एंडरसन को भोपाल ले जाया जाए, किन्तु उसे सुरक्षित वापस पहुंचाया जाए। इसके बाद रसगोत्रा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को समझाया फिर दूरभाष खडके होंगे और एंडरसन ने राजकीय अतिथि का अघोषित दर्जा पाकर तत्कालीन पुलिस अधीक्षक स्वराज पुरी को अपना सारथी बनाया। सरकारी वाहन में कंडक्टर की जगह तत्कालीन जिला दण्डाधिकारी मोती सिंह बैठे थे। मध्य प्रदेश सरकार का उडन खटोला उनके स्वागत में स्टेट हेंगर पर उनका इंतजार कर रहा था। केप्टन अली ने उनके आते ही उनका अभिवादन किया और उन्हें ससम्मान दिल्ली पहुंचाया दिया। एक टीवी चेनल के द्वारा जारी फुटेज में साफ दिखाई पड रहा है कि हजारों लोगों का हत्यारा वारेन एंडरसन यह कह रहा है, अमेरिका का कानून है, वह घर जाने के लिए स्वतंत्र है।
जनसेवक अपनी जवाबदारी भूल चुके हैं, यह बात पूरी तरह स्थापित हो चुकी है। अब किस पर भरोसा किया जाए। क्या माननीय न्यायालय स्वयं ही इस मामले में संज्ञान लेकर इन सभी से यह पूछ सकता है कि छब्बीस सालों तक सभी गोपनीय राजों को अपने सीने में दफन करने वालों की तंद्रा अब क्यों टूटी और अगर उन्होंने किसी के दबाव में अपने कर्तव्यों से मुंह मोडा था तो क्यों न उनसे छब्बीस साल का वेतन भत्ते और सारे सत्व जो उन्होंने इन छब्बीस सालों में लिए हैं, वे उनसे वापस ले लिए जाएं। वह पैसा आखिर जनता के गाढे पसीने की कमाई का ही था, अगर वे सेवानिवृत हो चुके हैं तो इन सभी की पेंशन तत्काल प्रभाव से रोक देना चाहिए। कोई भी सरकारी नुमाईंदा क्या दबाव में नौकरी करता है। सत्तर के दशक के पहले तो लोग भ्रष्टाचार करने से घबराते थे, इसे सामाजिक बुराई की संज्ञा दी जाती थी। क्या हो गया है कांग्रेस को आधी सदी से ज्यादा देश पर राज करने वाली कांग्रेस का चेहरा क्या इतना भयानक है कि सच्चाई सामने आते ही लोग इससे घ्रणा करने लगेंगे। क्या पंद्रह हजार से ज्यादा लाशों के एवज में कंाग्रेस ने दुनिया के चौधरी अमेरिका से निजी तोर पर ‘‘मुआवजा‘‘ लेकर देश को अंग्रेजों के हाथों बेच दिया था चोरासी में। कांग्रेस को इसका जवाब देना होगा। मरहूम राजीव गांधी की बेवा कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को अपना मौन तोडना ही होगा, वरना उनकी चुप्पी राजीव गांधी के उपर लगने वाले आरोपों की मौन स्वीकारोक्ति ही समझी जाएगी। एक बात और समझ से परे ही है कि इतने बडे नरसंहार के बाद सालों साल घिसटने वाले मृतकों के परिवार और पीडितों की व्यथा देखने के बाद भी एक ‘‘मा‘‘ सोनिया गांधी का दिल क्यों नहीं पसीज पा रहा है। क्या कारण है कि इतनी बडी त्रासदी के एक के बाद एक घुमावदार पेंच सामने आने के बाद भी वे चुपचाप ही बैठी हैं!