सांची का सच
(लिमटी खरे)
देश के हृदय प्रदेश
की राजधानी भोपाल से 46 किलोमीटर पूर्वोत्तर में स्थित सांची अचानक ही देश विदेश
में चर्चा का विषय बन गया है। गुमनामी के अंधेरे में सालों साल सांसें लेने वाले
रायसेन जिले के इस छोटे से कस्बे को वैसे तो दो चार मर्तबा सुर्खियों में आने का
मौका मिला है पर अचानक ही शुक्रवार को सांची ने अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर आमद दे
दी है। सांची में श्रीलंका के महामहिम राष्ट्रपति ओर भूटान के प्रधानमंत्री का आना
अपने आप में महत्वपूर्ण ही माना जाएगा। वैसे सांची की विशेषता यह है कि यहां के
बौद्ध स्मारक और स्तूप ईसापूर्व तीसरी शताब्दी के हैं। मध्य प्रदेश के रायसेन जिले
की नगर पंचायत है सांची जो मूलतः विदिशा (अंग्रेजों के जमाने का भेलसा जहां की
तोपें बड़ी प्रसिद्ध थीं) से महज दस किलोमीटर दूर है।
सांची के बारे में
इंटरनेट और इतिहास खंगालने पर ना जाने कितने तरह की बातें सामने आती हैं, पर सांची का सच
वाकई क्या है? क्यों
सालों साल इंटरनेशनल फेम का सांची गुमनामी में कराहता रहा है। सांची जाने पर आपको
मिलते हैं एक पहाड़ पर महज तीन स्तूप, कुछ पुराने अवशेष, एक मंदिर। पहाड़ी से
नीचे उतरने पर एक अस्पताल, एक गेस्ट हाउस। सड़क पार करते ही मध्य प्रदेश पर्यटन का गेटवे
रिट्रीट, एक रेल्वे
स्टेशन, भोपाल की
ओर जाने पर एक निजी होटल संबोधी के साथ ही साथ विदिशा की ओर जाने पर एक अदद विदेशी
शराब की दुकान!
सांची के बारे में
किंवदंतियां चाहे जो भी हों पर नगर पंचायत सांची के बारे में बताया जाता है कि
विदिशा और भोपाल के लोग सुरापान के लिए सांची से महफूज और लाजवाब कोई स्थान नहीं
पाते हैं। विदिशा से महज दस किलोमीटर दूर यह स्थान शराबखोरों के लिए मुफीद है।
उठाया स्कूटर और एक घंटे में टल्ली होकर वापस। सांची रेल्वे स्टेशन पर भी कम ही
रेल गाड़ियां रूकती हैं। इन वर्णित खूबियों के अलावा सांची में और हैं तो बस पुराने
मकान और बाजार।
वैसे कहा जाता है
कि सांची के विश्व विख्यात स्तूप वास्तुकला का नायाब उदहारण हैं। सांची सम्राट
अशोक के युग के बौद्ध स्तूपों के लिए प्रसिद्ध है, यहां पर वर्ष भर देश-विदेश
से सैलानी आते रहते हैं। कहा जाता है कि जिस समय बौद्ध धर्म अपने चरम पर था, उस समय सांची का
वैभव भी अपने चरम पर था। भोपाल व विदिशा के बीचोंबीच एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित
सांची स्तूप मौर्य सम्राट अशोक ने बनावाये थे।
बड़ा स्तूप क्रमांक
एक को विशाल पत्थरों से बनाया गया है यह भारत का प्राचीनतम स्तूप भी कहा जा सकता
है। इस स्तूप के चारों ओर जो तोरण द्वार बने हुए हैं, वह बहुत ही अद्भुत
हैं। पत्थरों पर बौद्ध कथाओं का अंकन दूसरे बौद्ध स्मारकों के मुकाबले में सांची
में सबसे बढ़िया माना जाता है। इस स्तूप के पूर्वी तथा पश्चिमी द्वारों पर युवा
गौतम बुद्ध की आध्यात्मिक यात्रा की अनेकों कहानियां अंकित हैं। स्तूप क्रमांक दो
व तीन भी बलुआ पत्थर के बने हुए हैं लेकिन इनके ऊपर की छतरी चिकने पत्थर की बनी
हुई है। यहीं पास में अशोक स्तंभ भी है।
इतिहास खंगालने पर
पता चलता है कि सांची को काकानाया, काकानावा, काकानाडाबोटा तथा
बोटा श्री पर्वत के नाम से प्राचीन समय में जाना जाता था। कहा जाता है कि सांची को
13वीं शताब्घ्दी के बाद 1818 तक लगभग भुला ही दिया गया था, जब जनरल टेलर, एक ब्रिटिश अधिकारी
ने इन्हें दोबारा खोजा, जो आधी दबी हुई और अच्छी तरह संरक्षित अवस्था में था। बाद में
1912 में सर जॉन मार्शल, पुरातत्व विभाग के महानिदेशक में इस स्थल पर खुदाई के कार्य
का आदेश दिया। यह स्मारक 1989 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित हुआ है।
यह है सांची का
इतिहास, पिछले दिनों
अचानक ही श्रीलंका के महामहिम राष्ट्रपति महिन्दा राजपक्षे और भूटान के वजीरे आजम
जिम्मी थिनेल के सांची आने की खबर ओर सांची में बौद्ध विश्वविद्यालय की स्थापना की
खबरों से सांची विश्व के मानचित्र का केंद्र बन गया। बौद्ध महत्व के प्रमुख शहरों
में सबसे पहले लुम्बिनी, बोध गया, सारनाथ और कुशीनगर का आता है। इसके उपरांत
श्रावस्ती, राजगीर, सनकिस्सा और वैशाली
तथा अन्य शहरों में पटना, गया, कोशम्बी, मथुरा, कपिल वस्तु, देवदहा, केसरिया, पावा, नालंदा और बनारस के
नाम हैं। बाद के शहरों में जहां बोद्ध धर्म पाया गया है उनमें सांची के साथ ही साथ
रत्नागिरी, एलोरा, अजंता और भारहट
हैं।
इन समीकरणों के
आधार पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा सांची में सांची
बौद्ध एवं ज्ञान विश्वविद्यालय का शिलान्यास करवाकर एक तरह से बाजी मार ही ली है।
बौद्ध धर्म के महत्व वाले उत्तर प्रदेश और बिहार के स्थानों की सुध सूबाई सरकारों
द्वारा सालों से नहीं ली गई है। देखा जाए तो सांची भी पूरी तरह से उपेक्षित होकर
भोपाल और विदिशा के लिए मयखाना ही बनकर रह गया था।
यहां इस बात का
उल्लेख करना भी लाजिमी होगा कि राज्य सरकार के डेयरी विकास विभाग के तहत संचालित
होने वलो मध्य प्रदेश स्टेट कोआपरेटिव डेयरी फेडरेशन लिमिटेड के उत्पादन और मध्य
प्रदेश में सबसे ज्यादा बिकने वाले दुग्ध उत्पादों को भी सांची के नाम से ही बेचा
जाता है, जिसके
ब्रांड एम्बेसेडर भी शिवराज सिंह चौहान ही हैं। सांची के नाम का दोहन तो प्रदेश
सरकार सालों से करते आ रही है बावजूद इसके सांची के उद्धार के लिए ना तो भाजपा की
सरकार और ना ही कांग्रेस की सरकारों द्वारा कोई कदम उठाए गए।
वायको ने भी
बनाया सांची को चर्चित
तमिलनाडू से अपने
सैकड़ों समर्थकों के साथ सांची जाकर राजपक्षे का विरोध करने वाले एमडीएम के नेता
गोपालसामी वाईको के कारण भी सांची खासा चर्चित रहा। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री
शिवराज सिंह चौहान ने पूर्व में ही इन अतिविशिष्ट व्यक्तियों के आगमन के चलते धरना
प्रदर्शन विरोध ना करने की अपील को वाईको ने दरकिनार ही किया। वाईको को एमपी महाराष्ट्र
की सीमा पर छिंदवाड़ा जिले में पुलिस ने धर लिया।
गिरफ्तारी को
स्वागत बताया जनसंपर्क ने
मध्य प्रदेश का
जनसंपर्क महकमा जो ना करे सो कम है। वाईको को छिंदवाड़ा जिले की सीमा में पुलिस और
प्रशासन ने घेरे रखा। इसी समय मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग की आधिकारिक वेब साईट पर
खबर जारी हुई कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ओर से छिंदवाड़ा कलेक्टर और एसपी
ने वाईको का स्वागत किया। बाद में बढ़चिचोली में वाईको के काफिले को रोक दिया गया
था।