बुधवार, 14 जुलाई 2010

उमा के नाम पर उबले भाजपाई

आखिर उमा से इतने भयाक्रांत क्यों हैं भाजपाई!
बाबू लाल गौर के इस्तीफे की पेशकश के पीछे क्या है राज

मध्य प्रदेश में भाजपा में मच चुका है घमासान

(लिमटी खरे)

कभी भारतीय जनता पार्टी की फायर ब्रांड नेत्री रहीं उमा भारती की घर वापसी की अटकलों ने एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी की मध्य प्रदेश इकाई के आलंबरदारों की धडकनों को बढा दिया है। उमा भारती जिस तरह भाजपा के आला नेताओं के मुंह पर लगभग थूक कर बाहर गईं थीं, उस वक्त के तेवर देखकर लगता था कि उमा भारती की घर वापसी किसी भी कीमत पर संभव नहीं होगी। समय वह चीज है जो हर घाव भर देता है, कट्टर दुश्मनों को भी गले लगने पर मजबूर कर देता है, और सच्चे मित्रों को एक दूसरे के सामने तलवार लेकर खडा भी कर देता है।

इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि भारतीय जनता पार्टी ने उमा भारती के दम पर 2003 में कांग्रेस के राजा दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली दस साला सरकार को उखाड फंेका था। उमा भारती के तेवरों से सभी भली भांति परिचित थे। उमा भारती पहले केंद्र सरकार में मंत्री रह चुकीं हैं, सो उनकी राजनैतिक दक्षता, प्रशासनिक क्षमता आदि पर कोई प्रश्न चिन्ह लगाने की स्थिति में नहीं था।

बतौर मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री उमा भारती का कार्यकाल बहुत सहज तो नहीं कहा जा सकता है, काफी मामलात में उनका कार्यकाल विवादित ही माना जाएगा। मुख्यमंत्री रहते हुए उनके गुस्से का शिकार हुए अनेक अफसरान ने बहुत जिल्लत बरदाश्त की है, दबी जुबान से आज भी उन अफसरान के बारे में जब तब चर्चा होती है तो निश्चित तौर पर वे अफसरान अपनी बेइज्जती पर खुद को ही शर्मसार महसूस करते हैं।

उमा भारती के खिलाफ कर्नाटक की अदालत की कार्यवाही के उपरांत उन्होंने मुख्यमंत्री पद तजा। इसके उपरांत जब उनके मन की नहीं हुई तो वे बैठक से ही पैदल यात्रा पर निकल पडीं। उस यात्रा के बाद से ही उमा भारती के राजनैतिक कद के ग्राफ ने ढलान पकड ली।

उमा भारती द्वारा बनाई गई भारतीय जनशक्ति पार्टी ने शैशव काल में ही दम तोड दिया। बडे जोर शोर से उन्होंने भाजपा के खिलाफ बिगुल फूंका फिर एक कदम आगे दो कदम पीछे की रणनीति के चलते वे अपने आप को तो आगे जाता महसूस करतीं रहीं वस्तुतः वे अपने स्थान से काफी पीछे आकर खडी हो गईं थीं। उमा भारती की लोकप्रियता में गिरावट का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि जब मध्य प्रदेश में उनके बलबूते भाजपा ने सरकार बना ली हो, फिर उनकी अपनी ही भारतीय जनशक्ति पार्टी बिना खाता खोले ही लोकसभा और विधान सभा के परिदृश्य से बाहर हो गई। यहां तक कि उमा भारती खुद भी अपनी कर्मस्थली टीकमगढ से चुनाव नहीं जीत सकीं।

समझा जाता है कि उमा भारती का दिमाग समझे जाने वाले प्रहलाद सिंह पटेल ने उमा भारती के असंतुलित और बिना सोचे समझे किए जाने वाले प्रयासों के चलते उनका साथ छोड वापस भाजपा में अपने आप को स्थापित कर लिया। अलग थलग पडी उमा भारती ने भी भाजपा में वापसी के प्रयास आरंभ कर दिए। कल तक राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आडवाणी को पानी पी पी कर कोसने वाली उमा भारती ने उन्ही आडवाणी को प्रधानमंत्री बनवाने के लिए भाजश को लोकसभा मैदान से न केवल बाहर किया वरन् उन्होंने भाजपा के पक्ष में चुनावी समा भी बांधा।

जब जब उमा भारती की भाजपा मे ंवापसी की बयार बहती है, उमा विरोधी सर उठाकर खडे हो जाते हैं। उमा भारती की घर वापसी का सबसे अधिक असर मध्य प्रदेश की भाजपाई राजनीति पर होने वाला है। जब उमा भारती भाजपा को कोस रहीं थीं तब उनके कलदार सिक्के (कटटर समर्थक) राजनैतिक फिजां को भांपकर उनसे दूरी बनाने में लगे हुए थे। उमा भारती के नब्बे फीसदी चेले चाटे और समर्थकों ने उनका दामन छोड नए आकाओं की गणेश परिक्रमा आरंभ कर दी थी।

इस सप्ताह जब उमा भारती की घर वापसी की बात सामने आई तब सुमित्रा महाजन, बाबू लाल गौर, कैलाश विजयवर्गीय, जयभान पवैया, सरताज सिंह आदि उमा भारती की घरवापसी के लिए आगे आ गए। बाकी सारे नामों पर तो किसी को आश्चर्य नहीं हुआ पर बाबू लाल गौर की पल्टी मारने की बात लोगों को हजम नहीं हो सकी। उमा भारती अपना ताज बाबू लाल गौर को सौंपकर गईं थीं, किन्तु बाद में गौर ने ही उमा भारती को आंखें दिखाना आरंभ कर दिया था। मुख्यमंत्री ने तटस्थ रहकर यही कहा कि उमा भारती का निर्णय संगठन को ही करना है, उन्हें तो प्रदेश का दायित्व सौंपा गया है, जिसका वे निर्वहन कर रहे हैं।

दरअसल राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आडवाणी चाहते हैं कि उमा भारती की घर वापसी हो जाए। आडवाणी मण्डली को डर सता रहा है कि उनसे नेता प्रतिपक्ष का ताज छीनने वाली सुषमा स्वराज अगर जमकर बैटिंग करने लगीं तो आडवणी को रिटायरमेंट लेना ही अंतिम विकल्प बचेगा। आडवाणी मण्डली के मन में 7 रेसकोर्स (प्रधानमंत्री का सरकारी आवास) में बैठकर देश चलाने की इच्छाएं कुलाचें मार रहीं हैं। वे किसी भी कीमत पर आडवाणी के अलावा किसी और को राजग का पीएम इन वेटिंग पर काबिज नहीं देखना चाहते हैं।

आडवाणी मण्डली जानती है कि सुषमा स्वराज की काट सिर्फ और सिर्फ उमा भारती ही हो सकती हैं। इसके साथ ही साथ मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह, प्रभात झा, सुषमा स्वराज की जुगलबंदी अगर चल निकली तो फिर ये ही केंद्र स्तर पर अपने आप को बहुत ताकतवर कर लेंगे। संभवतः यही कारण है कि आडवाणी को उल जलूल बकने वाली उमा भारती को भाजपा में वापस लाने वे ही आडवाणी सबसे ज्यादा लालायित दिखाई दे रहे हैं। आडवाणी मण्डली फुटबाल के ग्राउंड में उमा भारती की बाल को बहुत करीने से अपने गोल पोस्ट से ढकेलते हुए सामने वाले गोल पोस्ट तक ले तो जाते हैं पर जैसे ही उमा भारती की घरवापसी अर्थात गोल मारने की बारी आती है, रेफरी सीटी बजाकर हाफ साईड का फाउल जतला देता है। जिससे आडवाणी मण्डली की कवायद धरी की धरी रह जाती है।

अब जैसे ही उमा भारती की घरवापसी के मार्ग प्रशस्त हुए, वैसे ही मध्य प्रदेश भाजपा में उफान आ गया है। उमा भारती के सक्सेसर मुख्यमंत्री रहे बाबू लाल गौर ने अपने त्यागपत्र की पेशकश कर सभी को चौंका दिया है। उमा भारती की घरवापसी की पैरवी भाजपा के कुछ मंत्रियों द्वारा जिस तरह की जा रही है, उसे देखकर पार्टी की खामोशी तो हैरानी वाली है, पर राज्य सरकार की मंत्रीमण्डल की बैठक में बाबू लाल गौर ने पार्टी मुख्यमंत्री से अपना त्यागपत्र देने की बात कहकर ठहरे हुए पानी में कंकर मारकर हलचल मचा दी है।

यह पहला मोका होगा जबकि केबनेट बैठक आहूत करने और आरंभ करने के उपरांत नौकरशाहों को उस बैठक से बाहर कर दिया गया हो। इसके बाद यह केबनेट की बैठक पार्टी के मंत्रियों की बैठक में तब्दील हो गई थी। इस केबनेट के बाद आफीशियल ब्रीफिंग भी टाल दी गई। जिससे लगने लगा है कि अंदर सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। इस बैठक के उपरांत जो खबरें छन छन कर बाहर आई उससे साफ हो गया है कि उमा भारती की घर वापसी के मामले में मंत्रियों में भी धडे बट चुके हैं। कुछ सख्त खिलाफ हैं तो कुछ चाहते हैं कि तत्काल उनकी वापसी हो, एक धडा ‘‘कोउ हो नृप हमें का हानी‘‘ की तर्ज पर तटस्थ बना हुआ है।

उमा भारती के बहाने मंत्रियों ने अपनी अपनी भडास तबियत से निकाली। कैलाश विजयवर्गीय ने तो मुख्यमंत्री पर ही निशाना साधते हुए कहा कि मंत्रियों के खिलाफ बडे बडे समाचार छप रहे हैं और मुख्यमंत्री की तारीफ में कशीदे गढे जा रहे हैं, इस तरह काम कर है मध्य प्रदेश का जनसंपर्क विभाग, जबकि विभाग की जवाबदारी सरकार के मंत्रियों की तरफदारी की खबरें छापने की भले ही न हो पर मंत्रियों के बयान के प्रचार प्रसार की तो है, पर एसा कुछ उपक्रम करता जनसंपर्क विभाग दिख ही नहीं रहा है। जब जनसंपर्क विभाग ही राजनीति में उतर आए तो फिर किसी को क्या कहना चाहिए।

बाबू लाल गौर तो इतने आहत थे कि उन्होंने साफ कहा कि इतने सालों के संसदीय अनुभव के बाद उन्हें संसदीय ज्ञान सिखाया जाएगा? गौर का शिवराज से प्रश्न था कि क्या वे सरकार के बंधुआ हैं? क्या उन्हें हर बात को सरकार से पूछकर ही बोलना होगा? मंत्रियों ने सहकारिता मंत्री गौरी शंकर बिसेन को भी बडबोलेपन के लिए आडे हाथों लिया और कहा कि जब किसानों को बिना ब्याज पर ऋण के मामले में कोई निर्णय हुआ ही नहीं है तो फिर बिसेन मीडिया को इसकी जानकारी कैसे दे रहे हैं।

बहरहाल सभी जानते हैं कि अगर उमा भारती भाजपा में वापस आ गईं तो वे अपने उन समर्थकों जिन्होंने उनके गर्दिश के दिनों में उनका साथ छोडकर नए आकाओं की सरपरस्ती में जा टिके थे, को चुन चुनकर उनकी औकात दिखा सकतीं हैं। उमा भारती के स्वभाव, गुस्से और कार्यप्रणाली से सभी अच्छी तरह वाकिफ हैं। शार्ट टेम्पर्ड उमा भारती की घर वापसी को लेकर भाजपा में मचे घमासान से पार्टी की बहुत अच्छी छवि जनता के बीच नहीं जा रही है यह बात बिल्कुल सत्य है।