शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

हजार टन बारूद मचा सकता है तबाही

आसमान निगल गया या धरती लील गई जिंदा बमों को
 
कहां गायब हो गए बारूद से लदे फदे 164 वाहन?
 
प्रशासन और पुलिस बहुत गंभीर नहीं है हादसे के प्रति
 
अनुज्ञा समाप्ति के बाद भी बिक रहा था बारूद!
 
नियमों में कड़े संशोधन है जरूरी
 
(लिमटी खरे)

राजस्थान के गर्भ में पैदा हुआ बारूद जिसमें से लगभग एक हजार टन बारूद 164 ट्रकों में लादकर गन्तव्य की ओर रवाना किया गया था, वह अचानक ही गायब हो गया। ट्रकों की साईज इतनी छोटी भी नहीं होती है कि कोई उसे आसानी से छिपा सके। वैसे भी ज्वलनशील पदार्थ या बारूद ले जाने वाले ट्रकों की बनावट आम ट्रकों से अलग ही होती है। फिर 164 ट्रकों को आखिर कहां और कैसे गायब कर दिया गया है, यह यक्ष प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही है।

भारत में आंतरिक और बाहरी तौर पर आज आतंकवाद, अलगाववाद, माओवाद, नक्लवाद आदि के मामले में आग जिस तेजी से सुलग रही है, उसे देखते हुए 872 टन बारूद का हवा में गायब हो जाना सामान्य घटना नहीं माना जा सकता है। इस मामले को राजस्थान सहित छः राज्यों की पुलिस जिस हल्के तरीके से ले रही है, उसे देखकर लगता है कि सरकारें ही इस तरह के हिंसक आंदोलनों के लिए उपजाऊ माहौल प्रशस्त करती हैं।

देखा जाए तो सुरक्षा एजेंसियों की नींद इस तरह के संगीन और बड़े मामले में उड़ना चाहिए था। दो माह से अधिक समय पूर्व हुई यह कथित चोरी के बाद पुलिस के हाथों खाली ट्रक के अलावा कुछ नहीं लग सका है। पुलिस और प्रशासन हैं कि एक दूसरे पर जवाबदारी डालने पर तुले हुए हैं। इतनी व्यापक मात्रा में गायब हुआ विस्फोटक बारूद देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा बना हुआ है।

गौरतलब है कि गत दिनों सूरत में हुए विस्फोट में राजस्थान के ही धौलपुर में मचकुंड के पास 1979 - 80 में स्थापित राजस्थान एक्सप्लोसिव एवं केमिकल लिमटेड (आरईसीएल) बरूद फेक्ट्री में बने विस्फोटक और डेटोनेटर के इस्तेमाल की पुष्टि की गई थी। 164 ट्रक विस्फोटक के गायब होने के बाद धौलपुर पुलिस की तंद्रा टूटी है। धौलपुर के पुलिस अधीक्षक सुरेंद्र कुमार अब यह जांच करवा रहे हैं कि कितना माल वहां से निकला और कहां गया? पुलिस अधीक्षक का यह कहना कि कंपनी द्वारा माल निकासी की सूचना देने के बाद भी विस्फोटकों से लदे फदे वाहनों को सुरक्षा मुहैया करवाने की जिम्मेदारी पुलिस की नहीं है, बहुत ही हास्यास्पद माना जाएगा।

नियमानुसार तो विस्फोटकों से लदी लारी को पुलिस सुरक्षा मुहैया करवाई जाना चाहिए, अथवा अगर कोई कंपनी इसका परिवहन कर रही है तो उसे निजी तौर पर आर्मड सिक्यूरिटी गार्ड की मदद लेना चाहिए। विशेष प्रकार की कमोबेश बख्तरबंद गाडियों को पहचानना किसी के लिए कठिन नहीं है। ये लारी जब सुनसान इलाकों से होकर गुजरती हैं, तब इन्हें लूटना नक्सलवादी, आतंकवादी या डकैतों के लिए बहुत ही आसान होता है।

वैसे भी विस्फोटक नियंत्रक कार्यालय द्वारा इस तरह की लूट एवं अन्य घटनाओें की आशंकाओं के मद्देनजर फेक्ट्री से विस्फोटक को गंतव्य तक कड़ी सुरक्षा में पहुंचाने का निर्देश पहले ही जारी किया जा चुका है। कहा जाता है कि जिस स्थान पर बारूद का निर्माण या भण्डारण होता है, उन स्थलों का निरीक्षण संबंधित जिले के जिला कलेक्टर और जिला पुलिस अधीक्षक को कम से कम छः माह में एक बार करना अत्यावश्यक होता है।

अगर पुलिस की जवाबदारी में इन वाहनों की सुरक्षा का शुमार नहीं है तो फिर किस हक से अब पुलिस द्वारा इसकी तहकीकात की जा रही है कि माल कितना निकला और कहां गया? साथ ही साथ जब पुलिस के कारिंदे सड़कों पर खड़े होकर इन्हीं ट्रक चालकों से ‘चौथ‘ वसूलते हैं तब वे कागज पत्तर देखकर ही उस पर लदे माल की तादाद, अनुज्ञा आदि के बारे में पूछताछ कर ही अपनी ‘चौथ‘ के रेट तय करते हैं।

इतना ही नहीं जब हर बार माल की लदाई के साथ ही इसकी सूचना जिला कलेक्टर और जिला पुलिस अधीक्षक को लिखित तौर पर भेज दी जाती है तो फिर क्या वजह है कि अधिकारियों द्वारा इन वाहनों का भौतिक सत्यापन कराना भी जरूरी नहीं समझा। इस तरह के संवेदनशील मामलों को धौलपुर के जिलाधिकारी और जिला पुलिस अधीक्षक ने बहुत ही हल्के रूप में लिया है, जिसकी निंदा से काम नहीं चलने वाला, इस मामले की उच्च स्तरीय जांच की आवश्यक्ता है।

यहां उल्लेखनीय होगा कि लगभग सोलह साल पहले 1994 में विस्फोटकों के पड़ोसी देश बंग्लादेश भेजने, दो वर्ष पूर्व हैदराबाद, सायबर सिटी बैंग्लुरू और सूरत में हुए बम विस्फोटों में यह तथ्य कमोबेश स्थापित हो चुका था कि इनमें प्रयुक्त विस्फोटक आरईसीएल के ही थे, फिर प्रशासन ने इस मामले को बहुत ही सतही तौर पर लिया।

इस मामले में अनेक लचीले पेंच उभरकर सामने आ रहे हैं। बारूद निर्माता आरईसीएल के महाप्रबंधक वाई.सी.उपाध्याय का कहना है कि उनका काम विस्फोटक बेचना है, खरीददार उसका क्या करता है इससे उन्हें कोई सरोकार नहीं है। इसका मतलब यह है कि अगर आतंकवादी आकर उनसे माल खरीदे तो वे देश की कीमत पर उसे भी माल बेचने से गुरेज नहीं करेंगे। उपाध्याय यह भी स्वीकार कर रहे हैं कि जिन्हें माल बेचा गया उनका लाईसेंस समाप्त हो गया था। सवाल यह उठता है कि लाईसेंस समाप्त होने पर नवीनीकरण न होने या नवीनीकरण होने की प्रत्याशा में क्या बारूद बेचा जाना युक्तिसंगत माना जाएगा?

लाईसेंस नवीनीकरण की पद्धति बहुत ही उलझी हुई है। अनुज्ञा की अवधि समाप्त हो जाने के बाद भी कंपनी द्वारा संबंधित उपभोक्ता को तब तक माल बेच सकती है जब तक कि उसकी अनुज्ञा निरस्त होने की सूचना कंपनी को न मिल जाए। देखा जाए तो कंपनी को हर बार कंसाईंमेंट जारी करने के पहले लाईसेंस की मूल प्रति देखने के साथ ही साथ प्रमाणित छाया प्रति भी अपने पास रखना चाहिए। अगर किसी की अनुज्ञा को आगे नहीं बढ़ाया गया है तो उसकी आपूर्ति को तत्काल प्रभाव से रोक ही दिया जाना चाहिए।

किस वाहन में कितना माल कहां के लिए रवाना किया गया, रास्ते में कहां कितना माल उतारा गया, इस मामले से न तो विस्फोटक नियंत्रक कार्यालय को ही कोई लेना देना है और न ही आरईसीएल कंपनी को। कंपनी का काम विस्फोटक बेचना और नियंत्रक कार्यालय का काम सिर्फ कागज पत्तर दुरूस्त कर रखना ही लगता है। जिस डीलर या उपभोक्ता के पास अनुज्ञा है उसे कितना माल बेचा गया है, इसका भौतिक सत्यापन विस्फोटक नियंत्रक कार्यालय द्वारा किया ही नहीं जाता है।

यक्ष प्रश्न यह है कि आखिर इतनी बड़ी तादाद में विस्फोटक गया कहां? विस्फोटक का उपयोग क्या क्या हो सकता है। इस विस्फोटक के पहले दुरूपयोग के बारे में यही कहा जा सकता है कि इसे देश में अस्थिरता पैदा करने वाली ताकतों के हाथों बेच दिया गया हो, या उनके द्वारा लूट लिया गया हो। इस विस्फोटक का उपयोग नक्सलवादी, अलगाववादी, आतंकवादी, उग्रवादी, माओवादी आदि द्वारा गलत तौर पर किया जा सकता है।

दूसरी आशंका यह भी जताई जा रही है कि विस्फोटक को सड़क, बांध आदि निर्माण में लगी कंपनियों के हाथों बेच दिया गया हो, जिससे वे कम लागत में ज्यादा लाभ कमाने के लिए अवैध खनन के तौर पर प्रयोग कर सकती हैं। देश भर में सक्रिय खनन माफिया जिससे कि सफेदपोश, जनसेवक, खद्दरधारी और नौकरशाह प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर जुड़े हुए हैं के द्वारा इसका प्रयोग किया जा सकता है।

कुल मिलाकर 164 ट्रक में 872 टन बारूद गायब हुए दो माह से अधिक समय बीत चुका है पर न तो राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा की सरकारों के माथे पर पसीना छलका है और न ही आतंकवाद, अलगाववाद, उग्रवाद, माओवाद, नक्लवाद आदि के लिए संजीदा होने का प्रहसन करने वाले कांग्रेसनीत केंद्र सरकार की पेशानी पर ही चिंता की लकीरें उभरी हैं! उभरें भी आखिर क्यों? इससे जनसेवकों को क्या लेना देना, जान पर तो आवाम ए हिन्द की बन आना है, जनसेवक तो सुरक्षा घेरे में महफूज ही रहने वाले हैं।

सीबीएसई बोर्ड की तथा कथा

सीबीएसई मान्यता मिली नहीं, ख्वाब हैं इंजीनियरिंग कालेज के!

सिवनी 03 दिसंबर। भगवान शिव की नगरी में संचालित होने वाले शिक्षण संस्थाओं में केंद्रीय शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की मान्यता को लेकर भ्रम की स्थिति बनी ही हुई है। किसे सीबीएसई बोर्ड ने अपनी मान्यता दी है, किसे नहीं यह बात आज भी साफ नहीं हो सकी है, और न ही मध्य प्रदेश सरकार के शिक्षा महकमे के जिला स्तर पर सर्वोच्च कमांडिंग आफीसर जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा ही इस बारे में स्थिति स्पष्ट करना ही श्रेष्यस्कर समझा है।

जिला शिक्षा अधिकारी के मौन रवैए से नवमी, से लेकर बारहवीं के विद्यार्थियों के पालकों में मानस पटल पर छाए संशय के बादल छटने के बजाए घुमड़ने आरंभ हो गए हैं। जैसे जैसे नवमी कक्षा में सीबीएसई के एनरोलमेंट की तारीख पास आती जा रही है, वैसे वैसे विद्यार्थियों के पालकों के हृदय की धड़कने तेज होना आरंभ हो गई हैं।

पालकों के मन में यह बात अब भी घूम रही है, कि उनके आखों के तारे आखिर सीबीएसई बोर्ड के अधीन शिक्षा दीक्षा ग्रहण कर परीक्षा देंगे अथवा उन्हें मध्य प्रदेश बोर्ड के तहत परीक्षा देने पर मजबूर किया जाएगा? गौरतलब है कि दसवीं बोर्ड कक्षा के लिए नामांकन एक साल पूर्व अर्थात नवमीं कक्षा में ही करवा दिया जाता है। बोर्ड के पास चूंकि विद्यार्थियों की तादाद बहुत ज्यादा होती है अतः बोर्ड द्वारा एक साल की अवधि में इन्हें व्यवस्थित करने की गरज से ही नवमीं में इनका एनरोलमेंट किया जाता है।

नगर में संचालित होने वाली अनेक शालाओं द्वारा अपने यहां अध्ययनरत विद्यार्थियों के पालकों को आश्वस्त कराया गया था कि उनके आंखों के तारों को सीबीएसई बोर्ड के तहत ही परीक्षा दिलवाई जाएगी। इस हेतु सीबीएसई मान्यता की कार्यवाही उनकी शाला और सीबीएसई बोर्ड के बीच जारी है। बताया जाता है कि वर्ष 2010 - 2011 के शैक्षणिक सत्र लिए सीबीएसई बोर्ड की मान्यता संबंधी सिवनी की शालाओं के आवेदन में से अनेक शालाओं के आवेदन वांछित अर्हताएं पूरी न किए जाने पर निरस्त कर दिए गए हैं।

सीबीएसई बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय अजमेर के सूत्रों का कहना है कि इन शालाओं द्वारा एक बार फिर से शैक्षणिक सत्र 2011 - 2012 हेतु सीबीएसई बोर्ड की मान्यता के संबंध में आवेदन दिया गया है। इन शालाओं द्वारा अपने अपने कर्मचारियों को इस बात के लिए मुस्तैद रहने को कहा गया है कि कभी भी सीबीएसई बोर्ड का निरीक्षण दल आ सकता है, जिसके लिए सभी तैयारियां पूरी कर रखी जाएं।

सूत्रों का आगे कहना है कि अभी तक किसी भी शाला के लिए इंस्पेक्शन कमेटी (आईसी मेम्बर) का गठन नहीं किया गया है, अतः जल्द ही निरीक्षण का प्रश्न ही नहीं उठता है। सूत्रों ने कहा कि जैसे ही आईसी मेम्बरान तय कर दिए जाएंगे वैसे ही इंटरनेट पर सीबीएसई की वेब साईट पर यह प्रदर्शित कर दिया जाएगा कि किस शाला का निरीक्षण किस केंद्रीय, जवाहर नवोदय या निजी शाला के प्राचार्य द्वारा किया जा रहा है। तब उस शाला में अध्ययनरत विद्यार्थियों के पालकों या अन्य संबंधितों द्वारा आई सी मेम्बरान के समक्ष अपनी आपत्ति दर्ज कराई जा सकती है।

बहरहाल, जिले में निजी तौर पर चल रही एक शाला जिसे अभी सीबीएसई बोर्ड की मान्यता नहीं मिली सकी है, के द्वारा सिवनी में इंजीनियरिंग कालेज खोलने की कवायद करने की सुगबुगाहट भी मिल रही है। गौरतलब है कि ज्यादा लाभ कमाने के चक्कर में प्रदेश भर में कुकुरमुत्ते की तरह खुल इंजीनियरिंग कालेज की सफलता के परचम को देखकर लोग इसके दीवाने होते दिख रहे हैं। कहा जा रहा है कि ज्यादा लाभ कमाने के चक्कर में उक्त शाला के संचालकों द्वारा सीबीएसई बोर्ड की मान्यता को दरकिनार कर अब सिवनी में ही इंजीनियरिंग कालेेज खोलने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। जो शाला प्रबंधन सीबीएसई बोर्ड की मान्यता लेने में अक्षम रहा हो, वह अगर इंजीनियरिंग कालेज की नींव रखता है, तो उसकी नींव कितनी खोखली होगी इस बात का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।

फोरलेन विवाद का सच ------------------- 22

सिवनी से हो सकता है मोबाईल कंपनियांे का मोहभंग

सिवनी से गुजरने वाले फोरलेन उत्तर दक्षिण गलियारे का काम अगर पूरा नहीं किया गया तो आने वाले समय में सिवनी में बजने वाली विभिन्न सेवा प्रदाता कंपनियों के मोबाईल की घंटियां सुनाई देना बंद हो सकता है। यह एक बहुत बड़े घाटे के तोर पर फोरलेन के सिवनी से न होकर गुजरने के खामियाजे के तौर पर सामने आ सकता है। वैसे भी बीएसएनएल के अलावा अन्य सेवा प्रदाता कंपनियों ने सिवनी में इंटरनेट ब्राड बेण्ड को आरंभ कर इस सुविधा को वापस ले लिया था, जिसका कारण सिवनी से इन कंपनियों को वांछित राजस्व न मिल पाना ही बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि सिवनी में मोबाईल के क्षेत्र में भी सेवा प्रदाता कंपनियों को पर्याप्त राजस्व नहीं मिल पा रहा है। चूंकि स्वर्णिम चतुर्भज और उत्तर दक्षिण तथा पूर्व पश्चिम गलियारे के मार्ग में पड़ने वाले स्थानों पर मोबाईल नेटवर्क देना इन कंपनियों की मजबूरी बन गई थी अतः सिवनी को इन कमोबेश हर कंपनी ने अपने नक्शे में शामिल कर लिया है।

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 03 सितम्बर। सिवनी वासी अवश्य ही मुगालते में होंगे कि जो भी नया मोबाईल सेवा प्रदाता बाजार में आमद दे रहा है, उसकी नजरों में सिवनी एक अच्छा बाजार बनकर उभरा है, यही कारण है कि सिवनी में मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियां अपनी आमद दे चुकी हैं। सिवनी में कुछ मोबाईल सेवा प्रदाताओं को अगर छोड़ दिया जाए तो कमोबेश समस्त मोबाईल सेवा प्रदाताओं के एजेंट और नेटवर्क के लिए मोबाईल टावर स्थापित हो चुके हैं।
 
इन मोबाईल सेवा प्रदाताओं में से कुछ ने बाजार की नब्ज को पहचानते हुए यहां अपना इंटरनेट कनेक्शन का जाल भी बिछाना आरंभ कर दिया था। इस मामले में सेवा प्रदाता कंपनियों ने सामान्य के साथ ही साथ तेज गति की इंटरनेट सेवा के रूप में ब्राड बेण्ड का आगाज भी कर दिया था। ब्राड बेण्ड की सेवाओं में से बीएसएनएल को छोड़कर अन्य सेवाओं ने जल्द ही दम तोड़ दिया था।
 
इसके उपरांत निजी तोर पर सेवा प्रदान करने वाली कंपनियों ने सिवनी से अपने अपने ब्राड बेण्ड इंटरनेट कनेक्शन को समाप्त ही कर दिया था। ब्राड बेण्ड की सेवाएं इसके उपरांत भारत संचार निगम लिमिटेड द्वारा ही जनता के बीच परोसी जा रही थीं। इंटरनेट के शौकीन लोगों की मजबूरी हो गई थी कि वे तेज गति में इंटरनेट सर्फिंग के लिए बीएसएनएल की सेवाओं को ही लें। आरोपित है कि बीएसएनएल की इंटरनेट सेवाएं हर दम बाधित ही हुआ करती हैं। कभी गति बहुत ही धीमी होती है, तो कभी सिग्नल की ही दिक्कतों से उपभोक्ताओं को दो चार होना पड़ता है।
 
निजी तौर पर सेवा प्रदान करने वाली सेवा प्रदाता कंपनियों के बीच चल रही चर्चाओं के अनुसार सिवनी में अनेक मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों ने अपनी आमद इसलिए दी हैं, क्योंकि स्वर्णिम चतुष्गामी सड़क और उत्तर दक्षिण एवं पूर्व पश्चिम सड़क गलियारे के इर्द गिर्द उन्हें अपनी कंपनी के मोबाईल का नेटवर्क देना जरूरी हो गया है। यही कारण है कि सिवनी से होकर गुजरने वाले चतुष्गामी सड़क गलियारे के इर्दगिर्द भी मोबाईल के नेटवर्क को उपलब्ध कराने की गरज से कंपनियों ने सिवनी में अपना मोबाईल नेटवर्क का जाल बिछाया है।
 
जिस तरह से सिवनी से उत्तर दक्षिण गलियारे को अन्यत्र ले जाने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है, उसे देखते हुए आने वाले समय में तस्वीर कुछ धुंघली अस्पष्ट किन्तु बदली बदली सी ही दिख रही है। माना जा रहा है कि अगर उत्तर दक्षिण गलियारे के नक्शे पर से सिवनी जिले का नाम अगर मिटा दिया गया तो निजी तौर पर सेवा प्रदान करने वाली मोबाईल कंपनियांे ने जिस तरह अपने ब्राड बेण्ड कनेक्शन सिवनी से गायब कर दिए हैं, उसी तरह वे अपने नेटवर्क को भी सिवनी से उठाकर उस जगह ले जाएंगे जहां से होकर यह फोरलेन गलियारा जाएगा। उन परिस्थितियों में सेवा प्रदाता मोबाईल कंपनियों का सिवनी से मोह भंग होना स्वाभाविक ही माना जा रहा है।

कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि सिवनी में फोरलेन गलियारे के निर्माण में फंसे पेंच की आहट सुनने के उपरांत निजी तौर पर इंटरनेट सेवा प्रदान करने वाली कंपनियों ने अपनी अपनी ब्राडबेण्ड सेवाएं यहां से हटा ली थीं। इस मामले में सच्चाई कितनी है, यह तो सेवा प्रदाता कंपनी जाने किन्तु यह सच है कि सिवनी में ब्राड बेण्ड इंटरनेट कनेक्शन सिर्फ और सिर्फ भारत संचार निगम लिमिटेड द्वारा ही परोसा जा रहा है।

एनएचएआई के नक्‍शे से सिवनी गायब

उत्तर दक्षिण गलियारे की बाधाएं हटें: राजेंद्र गुप्त

गुजरात के सूरज को पश्चिम बंगाल के कोलकाता से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग क्र0 6 को चतुष्मार्गी मार्ग के रूप में विस्तारित किया जा रहा हैं । यह मार्ग नागझिरा एवं नवेगांव बाघ प्राणी उद्यान भंडारा जिले में बैनगंगा नदी के पुल से छत्तीसगढ़ की सीमा तक के 80 किलोमीटर के अतिसंवेदनशील क्षेत्र से गुजर रहा हैं । इस मार्ग के कारण बाघ सहित अन्य वन्य जीवों के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव को देखते हुये वन्य एवं पर्यावरण प्रेमियों की आपत्ति पर इस मार्ग का काम रोक दिया गया था व इस मार्ग पर संकट के बादल मंडराने लगे थें ।
 
इस विवाद को हल करने के लिये एन0एच0ए0आई0 द्वारा रिटायर्ड मुख्य वन संरक्षक आर0आर0 इंदुरकर को नियुक्त किया गया । उन्होंने एन0एच0ए0आई0 एवं वन अधिकारियों से चर्चा कर अपनी रिपोर्ट में वन्य प्राणियों एवं पर्यावरण की सुरक्षा के लिये कई महत्वपूर्ण सुझाव दियें । 

एन0एच0ए0आई0 द्वारा उनके सुझावों को मानकर मामला वन विभाग को सौंप दिया गया । इन सुझावों के अनुसार 80 किलोमीटर के इस अतिसंवदेनशील क्षेत्र में इस मार्ग पर वन्य प्राणियों के लिये 3 करोड़ 60 लाख रूपयें की लागत से आठ भूमिगत मार्ग बनेंगें ताकि वन्य प्राणी बिना सड़क पर आए इन भूमिगत मार्गो से दूसरी ओर निकल जायें । 1 करोड़ 20 लाख की लागत से चालीस किलोमीटर पर लंबी बाड़ (फैंसिंग) की जायेंगी, साथ ही वन्य प्राणियों के लिये 10 बचाव द्वार, 10 रैम्प, मवेशियों को रोकने के लिये 14 पिंजड़े एवं वाहन चालको की सुविधा के लिये 18 साइन बोर्ड बनाने होंगें । उक्त कार्य एन0एच0ए0आई0 को करना होगा और इस पर लगभग 4 करोड़ 90 लाख रूपयें खर्च होगें । इन सुझावों को मानकर एन0एच0ए0आई0 ने राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 6 के न केवल विस्तारीकरण का मार्ग प्रशस्त किया हैं वरन् वन्य जीवों एवं प्राणियों के सुरक्षित आवागमन हेतु भूमिगत मार्ग बनाने के साथ ही उनके लिये पानी की पर्याप्त व्यवस्था करने पर भी सहमत हो गया हैं ।
 
ठीक यही स्थिति राष्ट्रीय राजमार्ग क्र0 7 जो कि काश्मीर से कन्याकुमारी को जोड़ता हैं के अंतर्गत बनने वाले चतुष्मार्गी मार्ग को सिवनी से नागपुर के बीच स्थित पेंच टाईगर रिजर्व के कारण रोक दिया गया है । जब एन0एच0ए0आई0 और वनविभाग राष्ट्रीय राजमार्ग क्र0 6 के अंतर्गत रिटायर्ड मुख्य वन संरक्षक आर0आर0 इंदुरकर के सुझावों को मानकर वन्य प्राणियों के सुरक्षित आवागमन के लिये भूमिगत मार्ग बनाने व पर्याप्त पानी की व्यवस्था करने हेतु सहमत होकर राष्ट्रीय राजमार्ग 6 की बाधाओं को दूर कर सकतेे हैं, तो उन्हें म0प्र0 के सिवनी जिले में स्थित पेंच टाईगर रिजर्व के वन्य प्राणियों एवं जीवों की सुरक्षा व सुरक्षित आवागमन हेतु भूमिगम मार्ग व पर्याप्त पानी की व्यवस्था कर इस मार्ग में आ रही बाधाओं को शीघ्रातीशीघ्र हल कर राष्ट्रीय राजमार्ग क्र0 7 के विस्तारीकरण का मार्ग भी प्रशस्त करना चाहियें ।