आसमान निगल गया या धरती लील गई जिंदा बमों को
कहां गायब हो गए बारूद से लदे फदे 164 वाहन?
प्रशासन और पुलिस बहुत गंभीर नहीं है हादसे के प्रति
अनुज्ञा समाप्ति के बाद भी बिक रहा था बारूद!
नियमों में कड़े संशोधन है जरूरी
(लिमटी खरे)
राजस्थान के गर्भ में पैदा हुआ बारूद जिसमें से लगभग एक हजार टन बारूद 164 ट्रकों में लादकर गन्तव्य की ओर रवाना किया गया था, वह अचानक ही गायब हो गया। ट्रकों की साईज इतनी छोटी भी नहीं होती है कि कोई उसे आसानी से छिपा सके। वैसे भी ज्वलनशील पदार्थ या बारूद ले जाने वाले ट्रकों की बनावट आम ट्रकों से अलग ही होती है। फिर 164 ट्रकों को आखिर कहां और कैसे गायब कर दिया गया है, यह यक्ष प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही है।
भारत में आंतरिक और बाहरी तौर पर आज आतंकवाद, अलगाववाद, माओवाद, नक्लवाद आदि के मामले में आग जिस तेजी से सुलग रही है, उसे देखते हुए 872 टन बारूद का हवा में गायब हो जाना सामान्य घटना नहीं माना जा सकता है। इस मामले को राजस्थान सहित छः राज्यों की पुलिस जिस हल्के तरीके से ले रही है, उसे देखकर लगता है कि सरकारें ही इस तरह के हिंसक आंदोलनों के लिए उपजाऊ माहौल प्रशस्त करती हैं।
देखा जाए तो सुरक्षा एजेंसियों की नींद इस तरह के संगीन और बड़े मामले में उड़ना चाहिए था। दो माह से अधिक समय पूर्व हुई यह कथित चोरी के बाद पुलिस के हाथों खाली ट्रक के अलावा कुछ नहीं लग सका है। पुलिस और प्रशासन हैं कि एक दूसरे पर जवाबदारी डालने पर तुले हुए हैं। इतनी व्यापक मात्रा में गायब हुआ विस्फोटक बारूद देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा बना हुआ है।
गौरतलब है कि गत दिनों सूरत में हुए विस्फोट में राजस्थान के ही धौलपुर में मचकुंड के पास 1979 - 80 में स्थापित राजस्थान एक्सप्लोसिव एवं केमिकल लिमटेड (आरईसीएल) बरूद फेक्ट्री में बने विस्फोटक और डेटोनेटर के इस्तेमाल की पुष्टि की गई थी। 164 ट्रक विस्फोटक के गायब होने के बाद धौलपुर पुलिस की तंद्रा टूटी है। धौलपुर के पुलिस अधीक्षक सुरेंद्र कुमार अब यह जांच करवा रहे हैं कि कितना माल वहां से निकला और कहां गया? पुलिस अधीक्षक का यह कहना कि कंपनी द्वारा माल निकासी की सूचना देने के बाद भी विस्फोटकों से लदे फदे वाहनों को सुरक्षा मुहैया करवाने की जिम्मेदारी पुलिस की नहीं है, बहुत ही हास्यास्पद माना जाएगा।
नियमानुसार तो विस्फोटकों से लदी लारी को पुलिस सुरक्षा मुहैया करवाई जाना चाहिए, अथवा अगर कोई कंपनी इसका परिवहन कर रही है तो उसे निजी तौर पर आर्मड सिक्यूरिटी गार्ड की मदद लेना चाहिए। विशेष प्रकार की कमोबेश बख्तरबंद गाडियों को पहचानना किसी के लिए कठिन नहीं है। ये लारी जब सुनसान इलाकों से होकर गुजरती हैं, तब इन्हें लूटना नक्सलवादी, आतंकवादी या डकैतों के लिए बहुत ही आसान होता है।
वैसे भी विस्फोटक नियंत्रक कार्यालय द्वारा इस तरह की लूट एवं अन्य घटनाओें की आशंकाओं के मद्देनजर फेक्ट्री से विस्फोटक को गंतव्य तक कड़ी सुरक्षा में पहुंचाने का निर्देश पहले ही जारी किया जा चुका है। कहा जाता है कि जिस स्थान पर बारूद का निर्माण या भण्डारण होता है, उन स्थलों का निरीक्षण संबंधित जिले के जिला कलेक्टर और जिला पुलिस अधीक्षक को कम से कम छः माह में एक बार करना अत्यावश्यक होता है।
अगर पुलिस की जवाबदारी में इन वाहनों की सुरक्षा का शुमार नहीं है तो फिर किस हक से अब पुलिस द्वारा इसकी तहकीकात की जा रही है कि माल कितना निकला और कहां गया? साथ ही साथ जब पुलिस के कारिंदे सड़कों पर खड़े होकर इन्हीं ट्रक चालकों से ‘चौथ‘ वसूलते हैं तब वे कागज पत्तर देखकर ही उस पर लदे माल की तादाद, अनुज्ञा आदि के बारे में पूछताछ कर ही अपनी ‘चौथ‘ के रेट तय करते हैं।
इतना ही नहीं जब हर बार माल की लदाई के साथ ही इसकी सूचना जिला कलेक्टर और जिला पुलिस अधीक्षक को लिखित तौर पर भेज दी जाती है तो फिर क्या वजह है कि अधिकारियों द्वारा इन वाहनों का भौतिक सत्यापन कराना भी जरूरी नहीं समझा। इस तरह के संवेदनशील मामलों को धौलपुर के जिलाधिकारी और जिला पुलिस अधीक्षक ने बहुत ही हल्के रूप में लिया है, जिसकी निंदा से काम नहीं चलने वाला, इस मामले की उच्च स्तरीय जांच की आवश्यक्ता है।
यहां उल्लेखनीय होगा कि लगभग सोलह साल पहले 1994 में विस्फोटकों के पड़ोसी देश बंग्लादेश भेजने, दो वर्ष पूर्व हैदराबाद, सायबर सिटी बैंग्लुरू और सूरत में हुए बम विस्फोटों में यह तथ्य कमोबेश स्थापित हो चुका था कि इनमें प्रयुक्त विस्फोटक आरईसीएल के ही थे, फिर प्रशासन ने इस मामले को बहुत ही सतही तौर पर लिया।
इस मामले में अनेक लचीले पेंच उभरकर सामने आ रहे हैं। बारूद निर्माता आरईसीएल के महाप्रबंधक वाई.सी.उपाध्याय का कहना है कि उनका काम विस्फोटक बेचना है, खरीददार उसका क्या करता है इससे उन्हें कोई सरोकार नहीं है। इसका मतलब यह है कि अगर आतंकवादी आकर उनसे माल खरीदे तो वे देश की कीमत पर उसे भी माल बेचने से गुरेज नहीं करेंगे। उपाध्याय यह भी स्वीकार कर रहे हैं कि जिन्हें माल बेचा गया उनका लाईसेंस समाप्त हो गया था। सवाल यह उठता है कि लाईसेंस समाप्त होने पर नवीनीकरण न होने या नवीनीकरण होने की प्रत्याशा में क्या बारूद बेचा जाना युक्तिसंगत माना जाएगा?
लाईसेंस नवीनीकरण की पद्धति बहुत ही उलझी हुई है। अनुज्ञा की अवधि समाप्त हो जाने के बाद भी कंपनी द्वारा संबंधित उपभोक्ता को तब तक माल बेच सकती है जब तक कि उसकी अनुज्ञा निरस्त होने की सूचना कंपनी को न मिल जाए। देखा जाए तो कंपनी को हर बार कंसाईंमेंट जारी करने के पहले लाईसेंस की मूल प्रति देखने के साथ ही साथ प्रमाणित छाया प्रति भी अपने पास रखना चाहिए। अगर किसी की अनुज्ञा को आगे नहीं बढ़ाया गया है तो उसकी आपूर्ति को तत्काल प्रभाव से रोक ही दिया जाना चाहिए।
किस वाहन में कितना माल कहां के लिए रवाना किया गया, रास्ते में कहां कितना माल उतारा गया, इस मामले से न तो विस्फोटक नियंत्रक कार्यालय को ही कोई लेना देना है और न ही आरईसीएल कंपनी को। कंपनी का काम विस्फोटक बेचना और नियंत्रक कार्यालय का काम सिर्फ कागज पत्तर दुरूस्त कर रखना ही लगता है। जिस डीलर या उपभोक्ता के पास अनुज्ञा है उसे कितना माल बेचा गया है, इसका भौतिक सत्यापन विस्फोटक नियंत्रक कार्यालय द्वारा किया ही नहीं जाता है।
यक्ष प्रश्न यह है कि आखिर इतनी बड़ी तादाद में विस्फोटक गया कहां? विस्फोटक का उपयोग क्या क्या हो सकता है। इस विस्फोटक के पहले दुरूपयोग के बारे में यही कहा जा सकता है कि इसे देश में अस्थिरता पैदा करने वाली ताकतों के हाथों बेच दिया गया हो, या उनके द्वारा लूट लिया गया हो। इस विस्फोटक का उपयोग नक्सलवादी, अलगाववादी, आतंकवादी, उग्रवादी, माओवादी आदि द्वारा गलत तौर पर किया जा सकता है।
दूसरी आशंका यह भी जताई जा रही है कि विस्फोटक को सड़क, बांध आदि निर्माण में लगी कंपनियों के हाथों बेच दिया गया हो, जिससे वे कम लागत में ज्यादा लाभ कमाने के लिए अवैध खनन के तौर पर प्रयोग कर सकती हैं। देश भर में सक्रिय खनन माफिया जिससे कि सफेदपोश, जनसेवक, खद्दरधारी और नौकरशाह प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर जुड़े हुए हैं के द्वारा इसका प्रयोग किया जा सकता है।
कुल मिलाकर 164 ट्रक में 872 टन बारूद गायब हुए दो माह से अधिक समय बीत चुका है पर न तो राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा की सरकारों के माथे पर पसीना छलका है और न ही आतंकवाद, अलगाववाद, उग्रवाद, माओवाद, नक्लवाद आदि के लिए संजीदा होने का प्रहसन करने वाले कांग्रेसनीत केंद्र सरकार की पेशानी पर ही चिंता की लकीरें उभरी हैं! उभरें भी आखिर क्यों? इससे जनसेवकों को क्या लेना देना, जान पर तो आवाम ए हिन्द की बन आना है, जनसेवक तो सुरक्षा घेरे में महफूज ही रहने वाले हैं।