शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

पर्यावरण के नियमों को बलात ताक पर रख दिए हैं झाबुआ पावर ने

आदिवासियों को छलने में लगे गौतम थापर . . . 11

पर्यावरण के नियमों को बलात ताक पर रख दिए हैं झाबुआ पावर ने

वायदे के बाद अब तक एक भी पौधा नहीं लगाया कंपनी ने

(ब्यूरो कार्यालय)

घंसौर (साई)। मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाली अवंथा समूह की सहयोगी कंपनी झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा छटवीं अनुसूची में अधिसूचित आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र घंसौर में डाले जा रहे 1260 मेगावाट के दो पावर प्लांट में पर्यावरण के नियमों को बलाए ताक रख दिया गया है। आश्चर्य इस बात पर है कि इसमें शासन प्रशासन सहित मध्य प्रदेश और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मण्डल भी गौतम थापर के कदम से कदम मिलाकर चल रहा है। देश के हृदय प्रदेश में एक तरफ उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे में वन्य जीवों का आवागमन पेंच बना हुआ है तो दूसरी और दुर्लभ प्रजाति के काले हिरणों का घंसौर में डलने वाले इस संयंत्र के आसपास के क्षेत्र से पलायन भी मंत्री संत्रियों की जबरिया नींद में खलल नहीं डाल पा रहा है।
ज्ञातव्य है कि अवंथा समूह के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी गौतम थापर हैं। अवंथा समूह पेपर निर्माण, फुड प्रोसेसिंग, इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग, बिल्डिंग मैटेरियल जैसे क्षेत्र में काम करने वाला समूह है जिसकी परिसंपत्तियां खरबों रूपए से ज्यादा बताई जाती हैं। देश के मशहूर दून स्कूल में पले गौतम थापर की गिनती देश के सफलतम उद्योगपतियों में की जाती है।
घंसौर को देश की छटवीं अनूसूची में अधिसूचित क्षेत्र घोषित किया गया है। बावजूद इसके मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने इस क्षेत्र को झुलसाने के लिए पर्याप्त व्यवस्था और सुरक्षा के उपाय किए बिना ही कोल आधारित तीन तीन पावर प्लांट को अनुमति दे दी है। इनमें से एक पावर प्लांट के तार तो टूजी घोटाले के मुख्य आरोपी आदिमत्थू राजा से सीधे सीधे जुड़े बताए जा रहे हैं। संभवतः यही कारण है कि राजा के जेल में रहने के कारण इस पावर प्लांट का काम अभी थाम दिया गया है।
प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के आला अफसरान् के सामने ही कंपनी प्रबंधन ने इस बात को स्वीकारा कि वर्ष 2009 से अब तक उनके द्वारा वृक्षारोपण नहीं किया गया है। इतना ही नहीं कंपनी प्रबंधन ने इस बात को भी स्वीकारा कि अगर तब पौधे लगा दिए गए होते तो निश्चित तौर पर उनमें से साठ से सत्तर फीसदी पौधे आज जिंदा होते और उनकी उंचाई तीन चार फिट से ज्यादा हो गई होती। कंपनी ने हरित पट्टी बनाने कटिबद्धता तो दर्शाई पर इच्छुक कतई दिखाई नहीं दी। हरित पट्टी कब बनेगी इस बारे में कंपनी का मौन आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है।
कंपनी ने आरंभ में अपने कार्यकारी सारांश में वायदा किया था कि पानी के स्त्रोत के लिए वह रानी अवंती बाई सागर परियोजना जबलपुर के बरगी बांध डूब क्षेत्र के गड़ाघाट और पायली गांव जो संयंत्र से दस किलोमीटर दूर दर्शाया गया है पर ही निर्भर करेगी। जब ग्रामीणों ने स्थानीय स्तर पर ही पानी के दोहन की बात कही तो कंपनी प्रबंधन चुप्पी साध गया। पर्यावरण के प्रभावों के बारे में कंपनी ने कोई चर्चा ही नहीं की।
गौतम थापर के स्वामित्व वाली कंपनी के सहयोगी प्रतिष्ठान द्वारा आदिवासी बाहुल्य घंसौर में लगाए जाने वाले इस संयंत्र में स्थानीय लोगों को रोजगार न दिया जाना आश्चर्यजनक ही है, जबकि जमीन अधिग्रहण के वक्त कंपनी ने लोक लुभावने वायदे किए थे। ग्रामीणों का आरोप है कि अब प्रबंधन के संयंत्र स्थित कारिंदे यह कहकर ग्रामीणों को भगा देते हैं कि वह वायदा उस वक्त के संयंत्र प्रमुख चितले ने किया था जो अब नहीं हैं। वर्तमान साईट प्रमुख मिश्रा को इससे कोई लेना देना ही नहीं है।

ग्रामीणों ने जब गौतम थापर के स्वामित्व वाली कंपनी के सहयोगी प्रतिष्ठान् द्वारा आदिवासी बाहुल्य घंसौर में लगाए जाने वाले पावर प्लांट के जिला मुख्यालय सिवनी के बजाए संभागीय मुख्यालय जबलपुर में कार्यालय होने की बात कही गई तो कंपनी प्रबंधन मौन ही रहा।

अंडर वर्ल्ड के गुर्गे आ सकते हैं सिवनी!

अंडर वर्ल्ड के गुर्गे आ सकते हैं सिवनी!

मोनिका बेदी की सुरक्षा के लिए फिकरमंद है अबू सलेम!

(दादू अखिलेंद्र नाथ सिंह)

सिवनंी (साई)। सिवनी जिले में अंडरवर्ल्ड के गुर्गों की आमद हो सकती है, इन संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है। दरअसल, 15 सितम्बर को अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम की माशुका रहीं फिल्म अदाकारा मोनिका बेदी लखन कुंवर की नगरी में ठुमके लगाने आने वाली हैं। मोनिका बेदी की सुरक्षा की दृष्टि से सलेम के गुर्गे सिवनी में आमद दे सकते हैं।
प्रदेश की राजधानी भोपाल से समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया ब्यूरो से नंद किशोर ने खुफिया तंत्र के सूत्रों के हवाले से बताया कि खुफिया विभाग को इस बात की जानकारी मिली है कि अंडर वर्ल्ड डॉन अबू सलेम की माशुका रही मोनिका बेदी को मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में लखन कुंवर की नगरी में ठुमके लगवाने के लिए बुलवाया जा रहा है।
सूत्रों ने साई न्यूज को आगे बताया कि इसके पहले पिछले साल भी लखन कुंवर की नगरी में नगर पंचायत अध्यक्ष के चुनावों के दौरान मोनिका बेदी को लखनादौन बुलवाने की बात सामने आई थी। सूत्रों की मानें तो उस वक्त भी खतरे की आशंका के चलते मोनिका बेदी को सिवनी न जाने का मशविरा दिया गया था।
सूत्रों की बातों में कितना दम है यह तो वे ही जाने पर पिछले साल नगर पंचायत लखनादौन के अध्यक्ष के चुनावों में भद्र महिला और कुशल ग्रहणी की छवि वाली निर्दलीय प्रत्याशी और लखनादौन नगर पंचायत के पूर्व अध्यक्ष दिनेश राय की मां श्रीमती सुधा राय के चुनावों में घोषणा के बाद भी मोनिका बेदी ने इसमें हिस्सा नहीं लिया था।
प्राप्त जानकारी के अनुसार इस बार एक साल का कार्यकाल पूरा करने पर भद्र महिला, सुघड़ और कुशल ग्रहणी की भूमिका वाली श्रीमती सुधा राय के द्वारा अंडर वर्ल्ड डॉन अबू सलेम की माशुका को लखन कुंवर की नगरी आमंत्रित करने से लोगों को जबर्दस्त हैरानी हो रही है। लोगों का कहना है कि समझदार और स्वच्छ छवि वाली श्रीमती सुधा राय से किसी को भी इस तरह की उम्मीद कतई नहीं थी कि वे अंडरवर्ल्ड के लोगों से रिश्ता रखने वालों को लखनादौन बुलवाएंगी।
लखनादौन नगर परिषद् के एक पार्षद ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि दरअसल, सुधा राय तो वाकई बहुत ही अच्छी और भोली-भाली हैं, पर उनकी खड़ांऊ कुर्सी पर रखकर उनके पुत्र दिनेश राय उर्फ मुनमुन द्वारा नगर पंचायत लखनादौन में अपनी मनमानी और गुण्डागर्दी चलाई जा रही है। बिना एग्रीमेंट के अगर दिनेश राय के ससुराल, हटा शहर के एक ठेकेदार द्वारा सड़क खोदी गई और कृषि उपज मण्डी की जमीन पर सब्जी मण्डी बनाई गई, नेशनल हाईवे पर बलात कॉम्पलेक्स बनवाया जा रहा है तो यह सब दिनेश राय की हठ धर्मिता ही है।
उधर, यह भी कहा जा रहा है कि अंडर वर्ल्ड डॉन अबू सलेम आज भी अपनी माशुका मोनिका बेदी पर जान छिड़कता है। मोनिका बेदी अगर सिवनी या लखनादौन आती हैं तो उनके साथ साए की तरह अंडरवर्ल्ड के ‘भाई लोग‘ भी सिवनी आ सकते हैं। अगर आलम यही रहा तो लखनादौन नगर परिषद् के इस तरह के जनता की अदालत में जाने के कार्यक्रम के चलते सिवनी में भाई लोगों की आदम रफत तेज हो सकती है जो सिवनी की शांत फिजां के लिए खतरे की घंटी से कम नहीं होगा।

बी.पी.चंद्रवंशी ने एसपी का पदभार संभाला

बी.पी.चंद्रवंशी ने एसपी का पदभार संभाला

(पीयूष भार्गव)


सिवनी (साई)। नवागत पुलिस अधीक्षक बी.पी.चंद्रवंशी ने आज अपना पदभार ग्रहण कर लिया है। पुलिस अधीक्षक कार्यालय में आज उन्होंने अपने मातहतों से सौजन्य भेंट की। इस अवसर पर निर्वतमान पुलिस अधीक्षक मिथलेश शुक्ला भी उपस्थित थे। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया ने निर्वतमान पुलिस अधीक्षक मिथलेश शुक्ला के उज्जवल भविष्य की कामना की। श्री शुक्ला ने कहा कि नवागत पुलिस अधीक्षक श्री चंद्रवंशी एक अनुभवी पुलिस अधीक्षक हैं, सिवनी को उनके अनुभवों का लाभ अवश्य ही मिलेगा।

टापू में तब्दील होता सिवनी

टापू में तब्दील होता सिवनी

(शरद खरे)

भगवान शिव के नाम से जाना जाता है सिवनी को। सिवनी एक समय में काफी हद तक समृद्धशाली समझा जाता रहा है। सिवनी की सबसे बड़ी खासियत यहां की रेल लाईन और शेरशाह सूरी के जमाने का उत्तर से दक्षिण को जोड़ने वाला मार्ग था। आजादी के उपरांत देश ने तेजी से तरक्की की। छोटी और मीटर गेज लाईन को ब्राडगेज में तब्दील किया जाने लगा। सिवनी का नंबर कब आएगा, यह सोचते सोचते ही आजादी के वक्त जवान रही पीढ़ी भगवान को प्यारी होती गई। सिवनी में ब्राडगेज की कमी पूरी करता रहा नेशनल हाईवे नंबर सात।
एनएच 07 सिवनी की जीवन रेखा से कम नही है। यह मार्ग उत्तर भारत को दक्षिण भारत से जोड़ता है। ब्राडगेज के अभाव में इस मार्ग का उपयोग माल ढुलाई के लिए सबसे ज्यादा किया जाता है। अटल बिहारी बाजपेयी प्रधानमंत्री बने तब इस मार्ग के दिन फिरे। अनेक षणयंत्रों के झटके झेलने के बाद भी यह मार्ग केंद्र सरकार के स्वर्णिम चर्तुभुज परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे का हिस्सा बना रहा।
हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि जबसे पूर्व केंद्रीय मंत्री सुश्री विमला वर्मा को उनके अपनों ने ही षणयंत्र के साथ सक्रिय राजनीति से हाशिए पर बिठा दिया है, तबसे सिवनी की अस्मत के साथ लगातार खिलवाड़ किया जाता रहा है। सालों साल प्रदेश और सिवनी में कांग्रेस की तूती बोलती आई है। विमला वर्मा के सियासी राजनीति से हटकर घर बैठते ही उनके अपने और उनकी आस्तीन में छिपे सपोलों ने फन काढ़ा और सिवनी के भविष्य के साथ खिलवाड़ आरंभ कर दिया।
उस दौरान कांग्रेस के दो या तीन शीर्ष नेताओं ने आपसे में जुगलबंदी कर ऐसा सियासी त्रिफला बनाया कि सिवनी के लोग इन नेताओं के समर्थन और विरोध के स्वांग में ही उलझकर रह गए। इसके बाद सिवनी की अस्मत को कथित तौर पर गिरवी रखने का षणयंत्र रचा गया। सिवनी को प्रदेश के बड़े क्षत्रपों के हाथों गिरवी रखकर इन लोगों ने खूब दावतें उड़ाईं, फाग गाए, जश्न मनाए। वस्तुतः सिवनी आज पूरी तरह अनाथ है तो उसके पीछे ये नेता कहीं न कहीं जवाबदेह जरूर हैं।
सिवनी में लोकसभा हुआ करती थी। ‘‘थी‘‘ शब्द का प्रयोग आज मजबूरी में इन्हीं नेताओं के कारण करना पड़ रहा है। जब सिवनी के विलोपन का प्रस्ताव ही नहीं था तो भला सिवनी लोकसभा विलोपित कैसे हो गई। कहां थे कांग्रेस के कथित दिमागऔर दिमागदारलोग। क्या सिवनी से लोकसभा का विलोपन कांग्रेस के क्षत्रप हरवंश सिंहके कारण हुआ! अगर हुआ तो आप सिवनी के नागरिक पहले हैं कांग्रेस के सदस्य बाद में! क्या कारण था कि इस मामले को पार्टी फोरम में नहीं उठाया गया, और अगर उठाया गया तो क्या कारण था कि इसके विरोध में कांग्रेस से त्यागपत्र की झड़ी नहीं लगी! मतलब साफ है कि इस षणयंत्र के जगमगाते लट्टू में कहीं न कहीं इन नेताओं की बैटरी से भी करंट जा रहा था।
सिवनी में फोरलेन का षणयंत्र रचा गया। इसके लिए वर्ष 2009 में घोषित तौर पर तत्कालीन केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ को दोषी करार दिया गया। सिवनी में कमल नाथ को इन्हीं नेताओं ने पुरानी फिल्मों के विलेन प्रेम चौपड़ा, और शत्रुघ्न सिन्हाबना दिया गया। कमल नाथ की प्रतीकात्मक शवयात्राएं निकाली गईं। जनमंच सिवनी एवं जनमंच लखनादौन ने मामले की नजाकत और गरम तवा देखकर इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी। सिवनी जिला इस मामले को लेकर सड़क में अडंगे के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमल नाथ को ही जवाबदार मान रहा था। इसी बीच सर्वोच्च न्यायालय में जनमंच सिवनी की ओर से याचिका कर्ता वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और अधिवक्ता आशुतोष वर्मा की ओर से अपील प्रस्तुत की गई। वहीं लखनादौन जनमंच के सरपरस्त बने दिनेश राय ने भी अपनी अपील दाखिल की। सिवनी जनमंच ने लोगों से चंदा किया, लखनादौन जनमंच शायद धन्ना सेठ था इसलिए उसने किसी से चंदा नहीं लिया और कुरई जनमंच शायद साधनों या चंदे के अभाव में कहीं नहीं जा सका।

आज सिवनी से बालाघाट, सिवनी से नागपुर, सिवनी से जबलपुर, सिवनी से कटंगी, सिवनी से मण्डला, सिवनी से छिंदवाड़ा रोड़ जब चाहे तब बंद हो जाता है। सांसद, विधायक, भाजपा, कांग्रेस, अन्य राजनैतिक दलों के साथ ही साथ सड़क की लड़ाई लड़ने वाले जनमंच के त्रिफला भी मौन हैं। शायद सिवनी जनमंच का चंदा खत्म हो गया, लखनादौन जनमंच का ध्यान चुनाव की ओर हो, और कुरई का जनमंच . . .। कुल मिलाकर पिस तो सिवनी की जनता ही रही है। समझ में नहीं आता कि नेता आखिर यह कैसे सोच लेते हैं कि उनकी साल दो या चार साल पहले की हरकतें जनता कैसे भूल सकती है? कल तक सिवनी की जनता को सड़क के मामले में भरमाने, कमल नाथ को विलेन बनाने वाले नेता आज मौन क्यों हैं? सिवनी में सड़क की लड़ाई लड़ने के बजाए नेता नागपुर, जबलपुर, दिल्ली, छिंदवाड़ा जाकर सड़क के बारे में चर्चा कर फोटो अखबारों में छपवाकर क्या यह जतलाना चाहते हैं कि वे सिवनी की सरजमीं छोड़कर अन्य जिलों में सिवनी की सड़कों के लिए फिकरमंदर हैं? सभी नेताजी जानते हैं कि सड़क के जर्जर होने से सिवनी टापू बन गया है, जनता कराह रही है, चुप है इसका मतलब यह नहीं कि वह बेवकूफ है, वह सब कुछ सह रही है और नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के इंतजार में है जब वह इन नेताओं को देगी अपना माकूल जवाब।