मंगलवार, 8 मार्च 2011

नाम अवश्य ही बदलें बशर्ते मकसद सही हो


भोपाल अब भोजपाल क्यों?
इंडिया से भारत की जंग है जारी

लोगों की भावनाएं भड़काकर सियासत करना निंदनीय

(लिमटी खरे)

कस्बों, शहरों, प्रदेश और देश का नाम बदलने के सिलसिले का आगाज बीसवीं या इक्कीसवीं सदी मंे आरंभ नहीं हुआ है। नाम परिवर्तन का सिलसिला प्रचीन माना जा सकता है। भारत को पहले देवभूमि कहा जाता था, फिर इसे आर्यवत कहा जाने लगा। मुगलों के आगमन के उपरांत इसका नामकरण हिन्दुस्तान और ब्रितानियों के शासनकाल के समय हिंगलिश (अंग्रेजी और हिन्दी के संयुक्त अघोषित संस्करण) के पैरोकार इसे इंडिया कहने में अपनी शान समझने लगे। दिल्ली कभी इंद्रप्रस्थ तो शाहजहांबाद, पटना पाटलीपुत्र या अजीमाबाद के नाम से पहचानी जाती थी, इलाहाबाद को प्रयाग के नाम से पहचाना जाता था।

पिछले दशकों में कलकत्ता को कोलकता, मद्रास को चेन्नई, बंबई या बाम्बे को मुंबई, पांडिचेरी को पुंडुचेरी, त्रिवेंद्रम को तिरूअनंतपुरम, कोचीन को कोच्ची, कर्नाटक ने अपनी स्वर्णजयंती पर बैंगलोर को बंग्लुरू, मैसूर को मसूरू, मंगलौर को मंगलुरू, शिमांेग को शिवमुग्गा, टुमकुर को टुमकुरू, कोलार को कोलारा, हासन को हसन्ना, रायचूर को रायचुरू, बेलगाम को बेलगावी, पूना को पुणे, वाराणसी को बनारस, बालासोर को बालेश्वर, होशंगाबाद को नर्मदापुरम का नाम दिया गया है।

नाम बदले जाने की श्रंखला में अभी अनेक शहर कतारबद्ध खड़े हुए हैं जिनमें देश के हृदय प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर को इंदुरू, संस्कारधानी जबलपुर को जाबलीपुरम, अहमदाबाद को कर्णावती, इलाहाबाद को प्रयाग, दिल्ली को इंद्रप्रस्थ, पटना को पाटलीपुत्र किया जाना बाकी है। मध्य प्रदेश के सिवनी जिले को ही लिया जाए तो धारणा है कि यह भगवान शिव की नगरी है इसलिए इसे सिवनी कहते हैं, कुछ लोगों का मानना है कि सेवन के वृक्षों की अधिकता के कारण इसका यह नाम पड़ा।

मद्रास का नाम चेन्नई करने के पीछे द्रविड़ संस्कृति और पहचान की दलील दी गई थी। कलकत्ता को कोलकता करने के पीछे बंगाली जनता की मूल बांग्ला संस्कृति पहचान और नगर के नाम का सही उच्चारण को ही आधार बताया गया था। बाम्बे को मुंबई करने के पीछे मराठी अस्मिता और मुंबा देवी को अधार बताया गया था। बंगलौर के बंग्लुरू परिवर्तन के पीछे स्थानवादी विशेष संस्कृति को अधार बनया गया था।

लोग आज भी इस बात का अर्थ खोज रहे हैं कि नए बने राज्यों में उत्तरांचल का नाम आखिर उत्ताखण्ड करने के पीछे क्या आधार था। कुछ सालों पहले तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री प्रियरंजन दासमुंशी ने पश्चिम बंगाल का नाम बंग देश या बंग भूमि करने की बात फिजा में उछाल दी थी। तब इस बारे में व्यापक चर्चाएं भी हुई थीं, किन्तु इसके पीछे ठोस कारण न हो पाने से मामला ठंडे बस्ते के हवाले हो गया था।

देश के चार में से तीन महानगरों के नाम बदले जा चुके हैं तो भला देश की राजनैतिक राजधानी इससे कैसे बच पाती। तत्कालीन खेल मंत्री और पूर्व चुनाव आयुक्त मनोहर सिंह गिल ने नई दिल्ली को दिल्ली करने की हिमायत कर डाली। वैसे भी दिल्ली के अपभ्रंष डेहली का उच्चारण जोर शोर से जारी है। गिल की बात कामन वेल्थ गेम्स के भ्रष्टाचार के शोर में दबकर ही रह गई।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल का नाम भोजपाल करने के पीछे भी सियासत आरंभ हो गई है। इस मसले पर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस आमने सामने आ चुकी है। कांग्रेस का आरोप है कि यह सांप्रदायिकता की साजिश है। इतिहास बताता है  ि1718 में इसका नाम भोजनगरी था। भोपाल कभी राजा भोज की राजधानी ही नहीं रही। भोपाल पर गौड राजाओं का शासन रहा बाद में नवाब दोस्त मोहम्मद खान ने इसे अपनी राजधानी बना दिया था।

उधर राज्य सरकार ने करीब तीन शताब्दी पुराने फतेहगढ़ के किले के बुर्ज पर राजा भोज की विशालकाय प्रतिमा स्थापित कर दी है। भोपाल के विशाल जल संग्रह क्षमता वाले बड़े तालाब का नाम भी सरकार ने भोजताल कर दिया है। विडम्बना तो देखिए इसी भोजताल के अलावा छोटा तालाब और कोलार डेम होने के बाद भी होशंगाबाद से मोटरों से पानी खीचकर सत्तर किलोमीटर दूर भोपाल लाने का जतन कर रही है शिवराज सरकार। कहने को तो वह पुरातन सभ्यता को सहेज रही है पर जब उसके रखरखाव की बात आती है तो सरकार बगलें झांकने लगती है। इसी भोजताल का तीन चोथाई हिस्सा सुखा दिया गया है, पर इसका धनी धोरी कोई दिखाई नहीं पड़ता।

दरअसल लोगों की भावनाएं भड़काकर उन्हें वोट में तब्दील करना सियासी राजनीति का पुराना शगल है। नाम किसी शहर का हो या व्यक्ति का, अगर उसका उच्चारण गलत होगा या उसे गलत नाम से पुकारा जाएगा तो निश्चित तौर पर वह आहत हुए बिना नहीं रहेगा। ब्रितानी शासकों ने अपनी सहूलियत के अनुसार गली मोहल्लों, कस्बों, शहरों, प्रदेश और देश का नामकरण किया था। अब मिल को ही लें। इसका उच्चारण हम तमिल करते हैं, जबकि तमिल भाषा में इसका उच्चारण तमिस है। इसी तरह महाराष्ट्र प्रदेश के एक उपनाम केलकर का मराठी में उच्चारण केड़कर है। इसी तरह कानपुर की स्पेलिंग भी बाद में बदली गई।

पदम पुराण में ‘‘उज्जैन‘‘ के एक दर्जन से अधिक नामों की चर्चा है। मसलन अवन्तिका, उज्ज्ेनी, पदमावत आदि। इन सभी के पीछे कोई न कोई ठोस वजह है। वैसे नाम बदलने का मकसद पूरी तरह पाक पवित्र होना चाहिए। किसी का भी नाम बदलने के पीछे ठोस कारण दिया जाना अत्यावश्यक है। इसके पीछे वर्तमान में चल रही दिशाहीन स्वार्थपरक राजनीति की काली छाया कतई नहीं पड़ना चाहिए।

शेक्सपीयर ने कहा है ‘‘नाम में क्या रखा है?‘‘ लेकिन अनुभव बताते हैं कि नाम मंे बहुत कुछ रखा है। नाम किसी व्यक्ति का हो, स्थान का हो, कस्बे का हो, शहर, सूबे या देश का, उसके साथ उसकी ढेर सारी पहचान जुड़ी होती है। पूर्व प्रधानमंत्री स्व.नरसिंहराव के संसदीय क्षेत्र महाराष्ट्र के रामटेक का नाम आते ही लोगों को भान होने लगता है कि भगवान राम ने वहां कुछ देर टेक लगाई अर्थात विश्राम किया था।

हमारी नितांत निजी राय में होना यह चाहिए कि दासता का प्रतीक या दासता की याद दिलाने वाली सारी वस्तुओं, नाम आदि को अब हम सुविधा के अनुसार बदल दें। आज छः दशक से भी अधिक समय हो गया है हमंे आजादी के साथ सांसे लेते हुए फिर भी हम दासता के प्रतीकों का बोझ ढोने को मजबूर क्यों हैं। हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि आजद भारत को उसका गौरव वापस दिलवाने भारत की हिन्दुस्तान और इंडिया से जंग बदस्तूर जारी ही है।

साथ ही साथ अगर हम किसी का नाम संकीर्ण मानसिकता के आधार पर तब्दील करते हैं ताकि इसका राजनैतिक फायदा (पालिटिकल माईलेज) लिया जा सके, तो इसे किसी भी दृष्टिकोण से न्यायसंगत नहीं माना जा सकता है। हम महज इतना ही कहना चाहते हैं कि -ः

‘‘मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे में बांट दिया भगवानों को!
धरती बांटी, सागर बांटे, मत बांटो इंसानों को!!‘‘

नए साल से अब तक मदिरा का बह रहा है दरिया

नेताओं की पार्टियों में तबियत से उड़ रही है शराब
 
(लिमटी खरे)


नई दिल्ली। नए साल के आगाज के तीन माह बीतने के बाद भी देश की राजनैतिक राजधानी नई दिल्ली अभी भी शराब के सुरूर से उबर नहीं सकी है। पिछले साल दिसंबर से राजनेताओं ने अपनी पार्टियों में मदिरा का जो दरिया बहाया है वह आज भी अनवरत ही जारी है।
 
गौरतलब है कि पूर्व लोकसभाध्यक्ष पुरनो अगीटोक संगमा अपनी शराब की पार्टियों के लिए खासे मशहूर रहे हैं, उनकी सुपुत्री और केंद्र सरकार की युवा मंत्री अगाथा संगमा अपने पिता की परंपरा का बखूबी निर्वहन करती नजर आईं। अगाथा ने क्रिसमस के अवसर पर एक शानदार पार्टी दी जिसमें मेहमानों विशेष तौर पर मीडिया पर्सन ने जमकर जाम छलकाए। इसी के उपरांत क्रिसमस पर ही कांग्रेस के मीडिया विभाग ने परांपरा से हटकर एक यादगार पार्टी का आगाज किया। इस पार्टी में भी शराब और मांसाहार जमकर उड़ा।
 
बताते हैं कि केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने अपनी अर्धांग्नी लुईस के लिए एक पार्टी का आयोजन किया, जिसमें आमंत्रित रहे महज कार्पाेरेट घराने के लोग। इसमें भी सोम रस के चर्चे चर्चित हुए बिना नहीं रहे। अरूण जेतली का जन्म दिन, भई वाह वहां तो नीरा राडिया की मीडिया मण्डली मौजूद थी, फिर क्या था ठहाकों के बीच होता रहा सुरापान।

मंत्रीमण्डल फेरबदल के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार द्वारा शनिवार को एक दिन में दावत का इंतजाम किया गया, जिसमें चुनिंदा पत्रकार ही शिरकत करने गए। इस पार्टी में भी विस्की, रम, बियर और वाईन के साथ ही साथ चिकन और मटन को परोसा गया। पत्रकारों की दावत का मजा तब किरकिरा हुआ जब वहां लान में सीवर लाईन का पाईप फट गया और आसपास दुर्गंन्ध जमकर फैल गई। बाद में मंत्री जी की नाराजगी के बाद एमसीडी के कारिंदों ने जैसे तैसे इसे बंद किया। कहा जा रहा है कि अब होली आने को है सो एक बार फिर सुरापान की पार्टियां चरम पर ही होंगी।

डीएमके को साधने की कवायद में कांग्रेस

डीएमके को साधने की कवायद में कांग्रेस
नई दिल्ली (ब्यूरो)। डीएमके के कोप का भाजन बनी कांग्रेस अब उससे संबंध सुधारने की पहल में पूरी तरह जुट गई है। डीएमके नेताओं ने कांग्रेस के तारणहार प्रणव मुखर्जी और कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी से मुलाकात की। आज दिन भर भी दोनों ही दलों के नेताओं के बीच गहमागहमी बनी रही। सोनिया गांधी के साथ मुलाकात के बाद अब बात बनती दिख रही है।
बीती रात द्रमुक मंत्री एम.के.अलगिरी और दयानिधी मारन ने सोनिया गांधीं से मुलाकात की थी। इस बैठक के उपरांत द्रमुक कोटे के मंत्रियों को सरकार से वापस बुलाने का फैसला एक दिन के लिए टाल दिया गया था। इसके बाद टिकिट बटवारे को लेकर द्रमुक नेताओं ने प्रणव मुखर्जी से भी बातचीत की।
आज यूपीए अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी और द्रमुख क्षत्रप दयानिधि मारन के बीच देर रात मुलाकात होने की संभावना भी जताई जा रही है। कांग्रेस के अंदरखाने से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो सोनिया मारन की भेंट के बाद दोनों ही दलों में खीचतान को विराम लगने की संभावना है। गौरतलब है कि कांग्रेस द्वारा 63 सीटों की मांग की जा रही है, किन्तु द्रमुख कुल साठ सीट देने के लिए राजी है।

ये है दिल्ली मेरी जान


ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)

युवराज के इलाके में रेल है फेल
कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाला रेल मंत्रालय कुछ खास परफार्मेंस नहीं दिखा सका है। पिछली मर्तबा अमेठी और सुल्तानपुर पर रेलमंत्री ममता बनर्जी ने दरियादिली दिखाई थी। पिछले वित्तीय वर्ष में ममता ने सुल्तानपुर से अजमेर और मुंबई के लिए सुपरफास्ट रेल, सुल्तानपुर, अमेठी ओर निहालगढ़ को माडल स्टेशन, रेल्वे के छः वाटर बाटलिंग प्लांट में से रेल नीर के लिए एक अमेठी में स्थापित करने के साथ ही साथ अमेठी संसदीय क्षेत्र में रेल्वे का एक अस्पताल भी प्रस्तावित किया था। वर्तमान में अजमेर और मुंबई के लिए तो रेल आरंभ हो गई है, किन्तु रेल्वे अस्पताल और बाटलिंग प्लांट की स्थापना अभी भविष्य के गर्भ में ही छिपी हुई है। कांग्रेस की नजर में देश के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र को ममता बनर्जी ने तोहफों से भर तो दिया है, किन्तु वे सारे के सारे तोहफे महज कागज पर ही नजर आ रहे हैं। कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी के दिल्ली और उनके संसदीय क्षेत्र के कार्यालय में बाबूशाही का आलम यह है कि किसी ने भी इस मामले में रेल मंत्रालय से फालोअप कर इन घोषणाओं को अमली जामा पहनाने की सुध नहीं ली।

संकट में हैं मेनका
नेहरू गांधी परिवार की खालिस हिन्दुस्तानी बहू मेनका गांधी इन दिनों संकट में हैं। उनके पुत्र वरूण का विवाह संपन्न हो रहा है किन्तु एनडीएमसी दिल्ली के कर्मचारियों को बंधक बनाने के एक मामले में मेनका पर आपराधिक मुकदमा चल सकता है। मेनका ने इस मामले को खारिज करने के लिए उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी, किन्तु बाद में कोर्ट के कड़े रूख के बाद उन्होंने याचिका वापस ले ली है। बताया जाता है कि 2008 में मेनका गांधी को आवंटित 14 अशोक रोड़ की कोठी के पास एनडीएमसी के उद्यान विभाग के कर्मचारी काम कर रहे थे, इस दौरान मेनका गांधी ने वहां जाकर न केवल काम बंद करवाया बल्कि कर्मचारियों को जबरन पकड़कर वे अपनी कोठी में ले गईं और उन्हें डराया धमकाया। बाद में मेनका के वकील ने कहा कि कर्मचारियों और मेनका गांधी के बीच समझौता हो गया है अतः प्रकरण खारिज किया जाए। कानून के जानकारों का कहना है कि यह मसला कर्मचारी और मेनका के बीच का नहीं है। यह सामाजिक अपराध है अतः कर्मचारियों को समझौते का हक ही नहीं है। अब मेनका गांधी पर प्रकरण चलने के मार्ग प्रशस्त हो गए हैं।

तिहाड़ में राज कर रहे हैं राजा
लगभग पोने दो लाख करोड़ के टूजी घोटाले के सूत्रधार आदिमत्थू राजा तिहाड़ जेल की हवा खा रहे हैं। जनता के लिए वे जेल की सलाखों के पीछे हैं, किन्तु वास्तविकता यह है कि वे बेहद ही आरामदेह जीवन जी रहे हैं। तिहाड़ के एक आम कैदी के बजाए वे जेल में राजा की ही तरह रह रहे हैं। जेल प्रशासन और केंद्रीय जांच ब्यूरो भी उनकी सेवा टहल का पूरा पूरा ध्यान रखे हुए है। राजा को किसी तरह की परेशानी न हो इसलिए उनकी सुरक्षा में तमिलनाडू के जवान तैनात किए गए हैं, इसका कारण भाषा की समस्या होना बताया जा रहा है। पुलिस के ये जवान राजा की सुरक्षा का कम उनकी सेवा सुश्रुषा का ज्यादा ध्यान रखे हुए हैं। राजा की गिरफ्तारी कांग्रेसनीत केंद्र सरकार के लिए आवश्यक हो गई थी, किन्तु जब बारी उनको तिहाड़ जेल भेजने की आई तो करूणानिधी ने राजा के आराम का पूरा ख्याल रखने की शर्त रखी, जिसे सरकार ने बिना किसी ना नुकुर के मान लिया।

आमने सामने हैं दो स्वयंभू गुरू
पिछली सरकार के रेलमंत्री और स्वयंभू प्रबंधन गुरू लालू प्रसाद यादव और इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में एकाएक उभरे स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव। काले धन के मसले में यादवी संघर्ष छिड़ गया है। एक ने काला धन उजागर करने की ठान ली है तो लालू यादव को बाबा रामदेव का राजनैतिक चोला रास नहीं आ रहा है। लालू का कहना है कि रामदेव बाबा ने उनसे कई मर्तबा मदद मांगी, और उन्होने की भी। लालू यादव ने यहां तक कह दिया कि राम किशन यादव योग सिखाएं और दूध बेचें राजनीति में आना चाहते हों तो अलग से एक मंच का गठन करें फिर ताल ठोंके राजनीति में। उधर काले धन पर पहले भी कांग्रेस महासचिव राजा दिग्विजय सिंह और बाबा रामदेव का टकराव हो चुका है। दिग्गी राजा की धोबी पछाड़ के बाद बाबा रामदेव के मुंह से कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के लिए सोनिया गांधी जी का उद्बोधन आरंभ हो गया है। लोग कहने लगे हैं कि बाबा को राजनीति नहीं करना चाहिए। बाबा चाहें तो राजगुरू बनकर राजकाज में सही गलत अवश्य बताएं किन्तु अपनी पार्टी बनाकर अगर वे राजनीति की काल कोठरी में कूदते हैं तो फिर . . .।

ईडब्लूएस श्रेणी वाले सांसद विधायक
एक सांसद या विधायक की आय या उनका वेतन या पैंशन कितनी होती है? यह प्रश्न पूछकर लोग उनकी तोहीन नहीं करेंगे अगर राजस्थान का वाक्या लिया जाए। राजस्थान अवासन मण्डल की नजर में कमजोर आय वर्ग (ईडब्लूएस) की श्रेणी में डेढ़ दर्जन सांसद विधायक आवास ले सकते हैं। मण्डल ने राजस्थान के सांगनेर में प्रतापनगर सेक्टर 28 में कमजोर वर्ग के लिए 720 आवास की योजना आरंभ की थी। दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में अशोक गहलोत के राज की चर्चाएं और उनके मातहतों के कारनामों की बातें चटखारे लेकर सुनाई जा रही हैं। इस योजना में सांसद और विधायक को कोटा ढाई फीसदी निर्धारिक कर दिया गया है। मजे की बात तो यह है कि इसमें वे ही आवेदन कर सकते हैं जिनकी सालाना आय 39 हजार 600 रूपयों से कम हो, किन्तु राजस्थान में विधायकों की सालाना आय एक लाख बीस हजार रूपए है, और सांसदों की इससे कई गुना अधिक।

मन पर भारी मण्डली
प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह वाकई बहुत ही निरीह, मजबूर और कमजोर प्रधानमंत्री साबित हो रहे हैं। उनके मंत्रीमण्डल सहयोगियों द्वारा उनकी इस कदर खिचाई की जाती है कि वे बगलें झांकने लगते हैं। मंत्रीमण्डल समिति (केबनेट) और पार्टी की बैठकों में मनमोहन के मातहत मंत्री उनकी जमकर खबर ले रहे हैं। पीएमओ के सूत्रों का कहना है कि पिछले दिनों हुई बैठकों में प्रधानमंत्री की स्थिति बहुत ही असहज निर्मित हो गई थी। एक बैठक में तो वायलर रवि, पलनिअप्पम चिदम्बरम और कपिल सिब्बल ने ही इसरो मामले में वजीरे आजम को आड़े हाथों ले लिया था। वायलर रवि ने इस मामले में दुनिया के चौधरी अमेरिका की एक कंपनी को हाथों हाथ लेने पर पीएम को जमकर कोसा था। अपनी उपेक्षा से आहत चिदम्बरम ने पीएम पर नौकरशाहों के हाथों की कठपुतली होने का आरोप परोक्ष तौर पर जड़ ही दिया। पीएम के खिलाफ खिची मंत्रियों की तलवारें अगर पज रही हैं तो वह दस जनपथ के पत्थरों पर। गौरतलब है कि घपले घोटालों से घिरे मनमोहन के बचाव में कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी ने एक बार भी सामने आना मुनासिब नहीं समझा है।

नौकरी के साथ भी नौकरी के बाद भी
नौकरशाहों के सदा ही बल्ले बल्ले होते हैं। जब वे नौकरी में रहते हैं तब मंत्रियों के मार्गदर्शक के तौर पर वे सत्ता की मलाई चखते रहते हैं। जीवन भर जनसेवकों को भ्रष्टाचार के नए गुर सिखाते हैं, फिर जब वे सेवानिवृत होते हैं तो फिर किसी न किसी पद पर बनकर मजे लूटते रहते हैं। एसे एक नहीं अनेकों उदहारण हैं जिनमें रिटायरमेंट के बाद भी इनकी मौजां ही मौजां हुआ करती है। हाल ही में सेवानिवृति की कगार वाले एक आला अधिकारी ने दिल्ली में अपने लिए आशियाने का जुगाड़ करना आरंभ कर दिया है। केंद्र सरकार में ताकतवर मलयाली लाबी के अगली पंक्ति के सदस्य केंद्रीय गृह सचिव गोपाल कृष्ण पिल्लई ने अपनी सेवानिवृति से चार माह पहले ही अपने लिए टाईप सात के एक बंग्ले में जाने की जुगत लगानी आरंभ कर दी है। बताते हैं कि उन्होंने शहरी विकास मंत्री कमल नाथ से आग्रह किया है कि उनके लिए इस श्रेणी का एक बंग्ला आवंटित कर दिया जाए। सच ही है नौकरशाहों के लिए नौकरी के साथ भी नौकरी के बाद भी।

तलाश जारी है नए रेल मंत्री की!
चुनाव पूर्व की बयार देखकर लगने लगा है कि केंद्रीय रेल मंत्री ममता बनर्जी जल्द ही पश्चिम बंगाल की निजाम बन जाएंगी। कंेद्रीय राजनीति से उनके हटने के बाद रेल महकमे की कमान किसके हाथ होगी, इस बारे में कयास लगने आरंभ हो गए हैं। त्रणमूल कांग्रेस में अब नए रेल मंत्री बनने के सपने अनेक नेता अपने मन में पालने लगे हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि ममता के बाद सबसे ताकतवर नेता सुदीप बंदोपाध्याय रेल मंत्री इन वेटिंग की फेहरिस्त में सबसे उपर हैं। वैसे दिनेश त्रिवेदी और मुकुल राय रेल मंत्रालय पर अपनी नजरें टिकाए बैठे हैं। सुदीप बंदोपाध्याय भले ही ममता के बाद नंबर टू पोजीशन होल्ड कर रहे हों किन्तु वे ममता की पसंद नहीं हैं। पश्चिम बंगाल के चुनावों में व्यस्त ममता इस बारे में विचार विमर्श अवश्य ही कर रही हैं कि उनके बाद वे अपनी रेल मंत्रालय की गद्दी किसे सौंपें।

माटी में मिल गया थरूर का गुरूर
राजनयिक से राजनेता बने शशि थरूर इन दिनों बेहद मायूस दिख रहे हैं। बड़े ही अरमानों के साथ वे कांग्रेस में शामिल हुए उसके बाद मंत्री बने, किन्तु बड़बोलेपन के चलते उनकी कुर्सी छिन गई। थरूर का गुरूर फिर भी कम नहीं हुआ। वे सोशल नेटवर्किंग वेब साईट पर अपने प्रशसंकों से बतियाते, और सरकार की पोल पट्टी खोलते रहते। बताते हैं कि किसी ने कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के कान थरूर के खिलाफ भर दिए। फिर क्या था जब से राहुल गांधी ने थरूर के लिए नजरें तिरछी कीं, तब से वे बेचारे भीड़ में भी अकेले ही नजर आ रहे हैं। संसद में उनसे बोलने बताने वाला भी कोई नहीं है। किसी ने सच ही कहा है -‘‘क्या याद उसे कहते हैं जो तनहाई में आए, जी नहीं याद उसे कहते हैं जो भरी महफिल में आए और तन्हा कर जाए।‘‘ यही बात शशि थरूर पर एकदम फिट बैठती दिख रही है।

थामस की बिदाई के बाद सोनिया हुई सख्त
मुख्य सतर्कता आयुक्त के पद पर थामस की नियुक्ति के बाद कांग्रेस और केंद्र सरकार दोनों ही की खासी फजीहत हुई है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। सरकार और पार्टी दोनों ही के प्रबंधकों द्वारा इस मामले को संभाला नहीं जा सका है। अब सोनिया मण्डली ने उन्हें मशविरा दिया है कि वे नए सीवीसी के चयन में पूरी पूरी सतर्कता बरतें। कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ के सूत्रों का कहना है कि सोनिया ने सरकार को नसीहत दी है कि दोबारा इस तरह की गल्ति न हो इसको सुनिश्चित किया जाए। कांग्रेस की कोर गु्रप की बैठक में सोनिया ने साफ साफ कह दिया है कि भविष्य में महत्वपूर्ण पदों पर किसी की नियुक्ति के पहले पूरी पारदर्शिता बरती जाए। सोनिया के कड़े तेवरों के बाद प्रधानमंत्री का साहस कुछ बढ़ा है। देखना महज इतना है कि आने वाले दिनों में वे सोनिया की नसीहत पर अमल कर मजबूत बनाते हैं या फिर एक बार पुनः अपने आप को मजबूर प्रदर्शित करते हैं।

चुंबन का भरो खामियाजा
रिचर्ड गेरे और शिल्पा शेट्टी चुंबन मामले की चर्चा अब लोगों की जुबान पर नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने शिल्पा शेट्टी पर पांच हजार रूपए का जुर्माना आहूत किया है। जयपुर के अधिवक्ता पूनमचंद भण्डारी ने अमेरिका के अभिनेता रिचर्ड गेरे के द्वारा शिल्पा शेट्टी का सार्वजनिक तौर पर चुंबन लिए जाने के मसले में फौजदारी मुकदमा दायर किया था। अदालत ने प्रथम दृष्टया इस मामले को सुनवाई योग्य मानते हुए स्वीकार कर लिया था। बाद में शिल्पा ने इस मामले को मुंबई स्थानांतरित करने का आग्रह सर्वोच्च न्यायालय से किया था। इसमें पक्षकार के पते नहीं दिए जाने पर न्यायालय ने शिल्पा को बार बार समय दिया। शिल्पा द्वारा इस संबंध में कोई कार्यवाही नहीं किए जाने पर न्यायमूर्ति टी.एस.ठाकुर ने शिल्पा पर पांच हजार रूपए का जुर्माना लगया है। कोर्ट ने कहा है कि यह हर्जाना राशि दो सप्ताह में अधिवक्ता कल्याण कोष में हर हाल में जमा करवा दी जाए।

पुच्छल तारा
देश के नीति निर्धारकों को उनके ही मातहत गुमराह कर रहे हैं। यह आरोप मंत्री ही आपस में लगा रहे हैं। इसी को रेखांकित करते हुए दमोह मध्य प्रदेश से नितिन कोन्हेर ने एक मेल भेजा है जिसमें नितिन लिखते हैं कि ‘‘मंजिल तो मिल ही जाएगी, भटककर ही सही। अरे गुमराह तो वे होते हैं जो घर से निकलते ही नहीं।‘‘