शिव की भांजी का चीर हरण!
(लिमटी खरे)
‘‘अबला जीवन हाय तुम्हारी यह ही कहानी!,
आंचल में है दूध, और आंखों में है पानी!!‘‘
सुप्रसिद्ध कवि मैथलीशरण गुप्त द्वारा लिखित उक्त पंक्तियां महिलाओं की भारत गणराज्य में दशा को दर्शाने के लिए पर्याप्त मानी जा सकती हैं। देश के हृदय प्रदेश में महिलाओं की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है। मध्य प्रदेश में कानून और व्यवस्था की स्थिति अत्यंत दयनीय है। विपक्ष में बैठी कांग्रेस रस्म अदायगी के अलावा और कुछ भी नहीं कर रही है। हाल ही में नरसिंहपुर जिले में जो कुछ हुआ वह शिवराज सिंह चौहान, कांग्रेस या भाजपा नहीं देश को शर्मसार करने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है। दो दलित छात्राओं को सरेआम नग्न कर दिया गया और फिर ढकने ढकाने का कभी न थमने वाला खेल आरंभ हो गया। 15 मार्च और 20 मार्च को घटी इन घटानाओं के बाद भी सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्ष में बैठी कांग्रेस भी अपना मुंह आश्चर्यजनक तरीके से सिले बैठी हैं। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश सूबे के हर बेटा बेटी के शिवराज सिंह चौहान मामा हैं, पर हालात देखकर लगता है कि वे ही सबको मामा बना रहे हैं।
मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के गाडरवाड़ा से लगभग बीस किलोमीटर दूर बारहाबाड़ा के सरकारी स्कूल में 15 और 20 मार्च को जो हुआ वह मानवता को शर्मसार करने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है। परीक्षा के दौरान नकल की खानातलाशी के लिए शिक्ष्किाओं द्वारा विद्यार्थियों जिसमें छात्र भी शामिल थे की खाना तलाशी के नाम पर उनको सरेआम नग्न कर दिया गया, वह भी एक नहीं दो दो बार। नरसिंहपुर में प्रजातंत्र की आहट शायद ही कभी सुनाई दी हो। इस जिले में जो कुछ होता आया है वह हृदय प्रदेश को शर्मसार करने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है। जरायमपेशा लोगों की जुर्रत इतनी हो चुकी है कि हाल ही में जबलपुर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक का पीछा भी कुख्यात बदमाश के भाई ने काफी दूर तक किया। कहते हैं उस वक्त जिले के पुलिस अधीक्षक भी अपने आप को असहाय पा रहे थे। चूंकि मामला पुलिस महानिरीक्षक का था अतः पुलिस को कार्यवाही करने पर विवश होना पड़ा।
उक्त सरकारी शाला में 15 और 20 मार्च को दो मासूम कन्याओं के कपड़े उतारने की घटना मानवता को शर्मसार करने पर्याप्त कही जा सकती है। हद तो उस वक्त हो गई जब शिक्षिका ने कहा कि सलवार उतारो वरना उसका नाडा कैंची से काट दिया जाएगा। घबराई छात्रा ने अपनी गुरूआईन के आदेश की तामीली में हीला हवाला किया तो मेडम का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। दलित छात्रा ने गिडगिडाती रही कि भईया लोगों के सामने उसकी इज्जत न उछालें पर मेडम नहीं मानीं। डरकर अपनी सलवार उतार दी।
इसके बाद उस छात्रा को अंतःवस्त्र उतारने के लिए मजबूर किया गया। वह छात्रा गिड़गिड़ाती रही पर शिक्षिका नहीं मानी। छात्रा ने माहवारी की दलील भी दी पर अंततः उसे नंगा कर ही दिया गया। सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान अपने आप को प्रदेश के हर बच्चे का मामा कहते हैं। भगवान श्री कृष्ण के मामा थे कंस, और शिवराज सिंह चौहान अपने ही राज्य में अपने ही भानजे भानजियों के लिए कंस की भूमिका में नजर आ रहे हैं।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक ओर बेटी बचाओ अभियान में करोड़ों रूपए खर्च रहे हैं तो दूसरी ओर, दलित छात्राओं के साथ इस तरह के अत्याचार वह भी सार्वजनिक तौर पर होने से क्या संदेश जा रहा है इस बारे में ना तो भारतीय जनता पार्टी और ना ही हिन्दुत्व के पहरूआ होने का दावा करने वाला राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ही चिंतित नजर आ रहा है। यह घटना संघ के नेशनल हेडक्वार्टर नागपुर से महज ढाई सौ किलोमीटर दूर घटी है।
आदि अनादी काल से गुरूकुलों में व्यवहारिक शिक्षा पर अधिक जोर दिया जाता था। ऋषि मुनि अपने शिष्यों को लकडी काटने बटोरने से लेकर जीवन के हर पडाव में आने वाली व्यवहारिक कठिनाईयों से शिष्यों को रूबरू कराते थे। इसके साथ ही साथ धर्म अर्धम की शिक्षा भी दिया करते थे। बदलाव प्रकृति की सतत प्रक्रिया है। जमाना बदलता रहा और शिक्षा के तौर तरीकों में भी बदलाव होता रहा।
सत्तर के दशक की समाप्ति तक बदलाव की प्रक्रिया बहुत धीमी थी। इसके उपरांत बदलाव की बयार शनैः शनैः तेज होकर अब सुपरसोनिक गति में तब्दील होती जा रही है। हमारे विचार से शिक्षा को लेकर जितने प्रयोग भारतवर्ष में हुए हैं, उतने शायद ही किसी अन्य देश में हुए हों। जब जब सरकारें बदलीं, सबसे पहले हमला शिक्षा प्रणाली पर ही हुआ।
देश के भूत वर्तमान और भविष्य को देखने के बजाए निजामों ने अपनी पसंद को ही थोपने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई। रही सही कसर शालाओं के प्रबंधन ने पूरी कर दी। अनेक सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों के लिए प्रबंधन के तुगलकी फरमान ने बच्चों की जान ही निकाल दी। शिक्षकों को अध्यापन से इतर बेगार के कामों में लगाने से उनका ध्यान अपने मूल कार्य से भटकना स्वाभाविक ही है।
शिक्षक ही देश का भविष्य गढते हैं, किन्तु आज देश के भविष्य को बनाने वाले शिक्षकों से जनगणना, मतदाता सूची संशोधन, पल्स पोलियो जैसे कामों में लगा दिया जाता है। शिक्षकों को यह बात रास कतई नहीं आती है। यही कारण है कि शिक्षकों ने भी अपने मूल काम को तवज्जो देना बंद ही कर दिया है।
आदिवासी बाहुल्य इलाकों की स्थिति तो और भी बेकार ही है। इन स्थानों पर पदस्थ सरकारी शिक्षकों द्वारा अपने विद्यार्थियों से घर पर बेगार जैसे खाना बनवाना, बर्तन मंझवाना, झाडू लगवाना, कपड़े धुलवाना आदि किया जाता है। नए शिक्षकों द्वारा तो आदिवासी बालाओं के साथ देहिक शोषण तक के आरोप अनेक बार लगे हैं। चूंकि मामला ग्रामीण अंचलों का होता है अतः इसकी गूंज उपर तक नहीं पहुंच पाती है।
एसा प्रतीत होता है मानो शिक्षकों से बेगार करवाने से इनका मानसिक संतुलन तेजी से बिगड रहा है। आए दिन विद्यार्थियों के साथ ज्यादती के मामले अखबारों की सुर्खियां बने रहते हैं। देश के भविष्य को गढ़ने वाले शिक्षकों के द्वारा अगर इस तरह का काम किया जाता है तो यह अमानवीयता आखिर बच्चों में किस तरह के संस्कारों का बीज डालेगी यह सोचना आवश्यक है, वरना ऋषि मुनियों तपस्वियों की धरा भारतवर्ष में असुरों का राज्य कायम होने में समय नहीं लगेगा।
(साई फीसर्च)