सोमवार, 28 अक्टूबर 2013

भाजपा नेता की पत्थर खदान में तीन अबोध बालाएं डूबीं!

भाजपा नेता की पत्थर खदान में तीन अबोध बालाएं डूबीं!

रात के अंधेरे में निकाले गए शव, देर रात तक मर्चुरी के बजाए पीएम सेंटर में रखे रहे शव

(अखिलेश दुबे/अय्यूब कुरैशी)

गंगेरूआ/सिवनी (साई)। बंडोल के पास गंगेरूआ गांव के समीप लगे भाजपा नेता के एक क्रेशर के पास पत्थर की खदान में आज अपरान्ह तीन मासूम बालाओं की डूब जाने से इहलीला समाप्त हो गई। तीनों के शव शाम ढलते क्रत्रिम रूप से बन गए गहरे पोखर से निकाले गए, और देर रात पुलिस कार्यवाही के बाद शव परीक्षण के लिए तीनों के शवों को सिवनी लाया गया।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार तीनों बच्चियों के शव, भाजपा नेता के क्रेशर के करीब की पत्थर खदान में पत्थरों के निकालने से हुए, गड्ढे में पानी भर जाने से बने पोखर में तैरते पाए गए। बाद में पुलिस द्वारा शवों को बाहर निकालकर पंचनामा बनाकर अन्य औपचारिकताएं पूरी की गईं। इसके बाद शव को शव परीक्षण के लिए सिवनी भेजा गया।

अल्प संख्यक समुदाय की हैं तीनों बच्चियां
मौके पर मौजूद थाना प्रभारी बंडोल आर.के.गुप्ता ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि गंगेरूआ निवासी शेख कलाम की पुत्री सिफा, युसुफ की पुत्री कमरून एवं शेख रमजान की पुत्री आफरीन आज अपरान्ह नहाने धोने के लिए भाजपा के एक नेता के क्रेशर के करीब बने पोखर में आईं थीं।
थाना प्रभारी श्री गुप्ता ने बताया कि तीनों बच्चियों द्वारा संभवतः पहले कपड़े धोए गए। इस बात का आधार यह बताया जा रहा है कि मौके पर पोखर के किनारे दो प्लास्टिक के टब में धुले हुए कपड़े रखे हुए थे। उन्होंने बताया कि तीनों मृतक बच्चों की आयु बारह से चौदह साल बताई जा रही है।
मौके पर मौजूद लोगों ने साई न्यूज को बताया कि लोगों द्वारा यह भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि कपड़े धोने के उपरांत किसी एक बच्ची का पैर फिसला होगा और वह डूबने लगी होगी तब उसे बचाने के चक्कर में दो अन्य बच्चियां भी पानी में उतरी होंगी। मौके पर चल रही चर्चाओं के अनुसार पानी का यह क्रत्रिम रूप से निर्मित पोखर कुछ स्थानों पर तो उथला है पर कुछ स्थानों पर इसमें लगभग डेढ़ से दो पुरूष (दस से बारह फिट) पानी हो सकता है।
आशंका व्यक्त की जा रही है कि बच्चियां गहरे पानी में ही चली गईं थीं। प्रत्यक्ष दर्शियों के अनुसार बच्चियों के शव जिस ओर पानी में उतरा रहे थे वहां पानी सबसे ज्यादा गहरा बताया जा रहा था।

ग्यारह बजे के करीब गईं थी बच्चियां
मौके पर मौजूद लोगों ने बताया कि बच्चियां मौके से लगभग एक किलोमीटर दूर स्थित गंगेरूआ ग्राम से अपरान्ह लगभग ग्यारह बजे नहाने धोने के लिए गांव से मौके के लिए रवाना हुई थीं। लोगों ने बताया कि दो तीन घंटे बाद तक जब बच्चियां घर वापस नहीं लौटीं तो परिजनों को आशंका हुई कि बच्चियों के साथ कहीं कुछ अनहोनी तो नहीं घट गई। इसके बाद बच्चियों की तलाश जारी हुई। बताया जाता है कि इसी बीच किसी ने परिजनों को बताया कि कुछ बच्चों के शव भाजपा नेता के क्रेशर के पास की पत्थर की खदान में तैर रहे हैं। इसकी सूचना लगभग चार बजे बंडोल पुलिस को दी गई।

वाहनों की लाईट में हुई कार्यवाही
बंडोल पुलिस मौके पर कुछ देर से पहुंची, उसके बाद शव को बाहर निकालने की कार्यवाही की जाकर बंडोल पुलिस द्वारा अन्य औपचारिकताएं पूरी की गईं। बंडोल पुलिस की कार्यवाही के चलते शाम ढल चुकी थी और मौके पर स्याह अंधेरा पसरने लगा था। मौके पर खड़े वाहनों को चालू कर उनकी हेड लाईट जलाकर पुलिस द्वारा पंचनामा तैयार किया गया। इसके उपरांत तीनों बच्चों के शवों को शव परीक्षण के लिए सिवनी भेजा गया।

सातवीं कक्षा की हैं छात्राएं
परिजनों के अनुसार तीनों बच्चियां बंडोल में शासकीय शाला में कक्षा सातवीं में अध्ययन करती थीं। आज रविवार होने के कारण बच्चियां घर पर ही थीं। दोपहर वे नहाने धोने के उद्देश्य से मौके पर पहुंची थीं। प्रत्यक्ष दर्शियों के अनुसार एक शव की नाक से खून रिस रहा था। संभवतः पानी के अंदर अपने आप को बचाने के चक्कर में उक्त बालिका का सिर या कोई अंग नुकीले पत्थर से टकरा गया हो, जिसके चलते नाक से खून रिस रहा हो।

गांव वालों का आरोप!
मौके पर मौजूद ग्राम गंगेरूआ के ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि क्षेत्र में जमीन को क्रेशर संचालकों द्वारा छलनी किया जा रहा है। अपने लाभ के लिए संचालक गड्ढे खोदकर पत्थर तो निकाल लिया करते हैं, किन्तु उसके उपरांत जब काम पूरा हो जाता है तो गड्ढे खुले छोड़ दिया करते हैं। बारिश के समय इन गड्ढों में पानी भर जाया करता है। खुले में इस तरह के डबरों में भरा पानी मानव और मवेशियों के लिए परेशानी का सबब बन जाते हैं। इतना ही नहीं गंगेरूआ में पानी की विकराल समस्या है, जिसके चलते यहां के ग्रामीण आसपास के असुरक्षित डबरों में भरे पानी का उपयोग करते हैं। लोगों का आरोप है कि प्रशासन और खनिज विभाग की अनदेखी के चलते क्रेशर संचालक और गिट्टी खदानों के मालिकों द्वारा पत्थर खनन के लिए खोदे गए गड्ढों के आसपास वारवेड वायर लगाकर उसे बंद भी नहीं किया जाता है।

मौके पर नहीं पहुंचे खदान मालिक!
मृतकों के परिजनों ने आरोप लगाया है कि घटना के घटित होने के बाद शवों को बाहर निकालने और सिवनी शव परीक्षण के लिए लाने तक पत्थर की खदान और क्रेशर के मालिक न तो मौके पर पहुंचे और न ही इन पंक्तियों के लिखे जाने तक शव परीक्षण के लिए ही पीएम सेंटर में पहुंचे।

ठंड में ठिठुरते रहे परिजन

देर रात मृतकों के परिजन शव परीक्षण केंद्र के पास ठंड में अंधेरे में ही बैठे देखे गए। इस संबंध में जब जिला चिकित्सालय के सिविल सर्जन डॉ.सत्य नारायण सोनी से चर्चा की गई तो उन्होंने कहा कि यह पुलिस की जवाबदारी है कि परिजनों को कहां रूकवाया जाए। परिजन अपनी व्यवस्था स्वयं ही करें तो बेहतर होगा।

कब सुधरेंगी सिवनी की सड़क

कब सुधरेंगी सिवनी की सड़क

(शरद खरे)

सिवनी का दुर्भाग्य ही है कि जिला मुख्यालय से चारों ओर की सड़कें बुरी तरह घायल हैं। इन सड़कों पर चलने वाले हलाकान हैं। सिवनी से नागपुर या जबलपुर जाने वाले लोग अगर टैक्सी करके जाना चाहते हैं तो उन्हें दोगुने तीन गुने पैसे देने होते हैं। भगवान शिव के नाम से जाना जाता है सिवनी को। सिवनी एक समय में काफी हद तक समृद्धशाली समझा जाता रहा है। सिवनी की सबसे बड़ी खासियत यहां की रेल लाईन और शेरशाह सूरी के जमाने का उत्तर से दक्षिण को जोड़ने वाला मार्ग था। आज़ादी के उपरांत देश ने तेजी से तरक्की की। छोटी और मीटर गेज लाईन को ब्रॉडगेज में तब्दील किया जाने लगा। सिवनी का नंबर कब आएगा, यह सोचते सोचते ही आज़ादी के वक्त जवान रही पीढ़ी भगवान को प्यारी होती गई। सिवनी में ब्रॉडगेज की कमी पूरी करता रहा नेशनल हाईवे नंबर सात।
एनएच 07 सिवनी की जीवन रेखा से कम नहीं है। यह मार्ग उत्तर भारत को दक्षिण भारत से जोड़ता है। ब्रॉडगेज के अभाव में इस मार्ग का उपयोग माल ढुलाई के लिए सबसे ज्यादा किया जाता है। अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने तब इस मार्ग के दिन फिरे। अनेक षणयंत्रों के झटके झेलने के बाद भी यह मार्ग केंद्र सरकार के स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे का हिस्सा बना रहा।
हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि जबसे पूर्व केंद्रीय मंत्री सुश्री विमला वर्मा को उनके अपनों ने ही षणयंत्र के साथ सक्रिय राजनीति से हाशिए पर बिठा दिया है, तबसे सिवनी की अस्मत के साथ लगातार खिलवाड़ किया जाता रहा है। सालों साल प्रदेश और सिवनी में कांग्रेस की तूती बोलती आई है। विमला वर्मा के सियासी राजनीति से हटकर घर बैठते ही उनके अपने और उनकी आस्तीन में छिपे सपोलों ने फन काढ़ा और सिवनी के भविष्य के साथ खिलवाड़ करना आरंभ कर दिया।
उस दौरान कांग्रेस के दो या तीन शीर्ष नेताओं ने आपस में जुगलबंदी कर ऐसा सियासी त्रिफला बनाया कि सिवनी के लोग इन नेताओं के समर्थन और विरोध के स्वांग में ही उलझकर रह गए। इसके बाद सिवनी की अस्मत को कथित तौर पर गिरवी रखने का षणयंत्र रचा गया। सिवनी को प्रदेश के बड़े क्षत्रपों के हाथों गिरवी रखकर इन लोगों ने खूब दावतें उड़ाईं, फाग गाए, जश्न मनाए। वस्तुतः सिवनी आज पूरी तरह अनाथ है तो उसके पीछे ये नेता कहीं न कहीं जवाबदेह जरूर हैं।
सिवनी में लोकसभा हुआ करती थी। ‘‘थी‘‘ शब्द का प्रयोग आज मजबूरी में इन्हीं नेताओं के कारण करना पड़ रहा है। जब सिवनी के विलोपन का प्रस्ताव ही नहीं था तो भला सिवनी लोकसभा विलोपित कैसे हो गई। कहां थे कांग्रेस के कथित दिमागऔर दिमागदारलोग। क्या सिवनी से लोकसभा का विलोपन कांग्रेस के क्षत्रप हरवंश सिंहके कारण हुआ! अगर हुआ तो आप सिवनी के नागरिक पहले हैं, कांग्रेस के सदस्य बाद में! क्या कारण था कि इस मामले को पार्टी फोरम में नहीं उठाया गया, और अगर उठाया गया तो क्या कारण था कि इसके विरोध में कांग्रेस से त्यागपत्र की झड़ी नहीं लगी! मतलब साफ है कि इस षणयंत्र के जगमगाते लट्टू में कहीं न कहीं इन नेताओं की बैटरी से भी करंट जा रहा था।
सिवनी में फोरलेन का षणयंत्र रचा गया। इसके लिए वर्ष 2009 में घोषित तौर पर तत्कालीन केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ को दोषी करार दिया गया। सिवनी में कमल नाथ को इन्हीं नेताओं ने पुरानी फिल्मों के विलेन प्रेम चौपड़ा, और शत्रुघ्न सिन्हाबना दिया गया। कमल नाथ की प्रतीकात्मक शवयात्राएं निकाली गईं। जनमंच सिवनी एवं जनमंच लखनादौन ने मामले की नजाकत और गरम तवा देखकर इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी। सिवनी जिला इस मामले को लेकर सड़क में अडंगे के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमल नाथ को ही जवाबदार मान रहा था। इसी बीच सर्वोच्च न्यायालय में जनमंच सिवनी की ओर से याचिका कर्ता वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और अधिवक्ता आशुतोष वर्मा की ओर से अपील प्रस्तुत की गई। वहीं लखनादौन जनमंच के सरपरस्त बने दिनेश राय ने भी अपनी अपील दाखिल की। सिवनी जनमंच ने लोगों से चंदा किया, लखनादौन जनमंच शायद धन्ना सेठ था इसलिए उसने किसी से चंदा नहीं लिया और कुरई जनमंच शायद साधनों या चंदे के अभाव में कहीं नहीं जा सका।
आज सिवनी से बालाघाट, सिवनी से नागपुर, सिवनी से जबलपुर, सिवनी से कटंगी, सिवनी से मण्डला, सिवनी से छिंदवाड़ा रोड जब चाहे तब बंद हो जाता है। सांसद, विधायक, भाजपा, कांग्रेस, अन्य राजनैतिक दलों के साथ ही साथ सड़क की लड़ाई लड़ने वाले जनमंच के त्रिफला भी मौन हैं। शायद सिवनी जनमंच का चंदा खत्म हो गया, लखनादौन जनमंच का ध्यान चुनाव की ओर हो, और कुरई का जनमंच . . .। कुल मिलाकर पिस तो सिवनी की जनता ही रही है। समझ में नहीं आता कि नेता आखिर यह कैसे सोच लेते हैं कि उनकी साल दो या चार साल पहले की हरकतें जनता कैसे भूल सकती है? कल तक सिवनी की जनता को सड़क के मामले में भरमाने, कमल नाथ को विलेन बनाने वाले नेता आज मौन क्यों हैं? सिवनी में सड़क की लड़ाई लड़ने के बजाए नेता नागपुर, जबलपुर, दिल्ली, छिंदवाड़ा जाकर सड़क के बारे में चर्चा कर फोटो अखबारों में छपवाकर क्या यह जतलाना चाहते हैं कि वे सिवनी की सरजमीं छोड़कर अन्य जिलों में सिवनी की सड़कों के लिए फिकरमंदर हैं? सभी नेताजी जानते हैं कि सड़क के जर्जर होने से सिवनी टापू बन गया है, जनता कराह रही है, चुप है इसका मतलब यह नहीं कि वह बेवकूफ है, वह सब कुछ सह रही है और नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के इंतजार में है जब वह इन नेताओं को देगी अपना माकूल जवाब।