कब सुधरेंगी सिवनी की सड़क
(शरद खरे)
सिवनी का दुर्भाग्य ही है कि जिला मुख्यालय से चारों ओर की सड़कें बुरी तरह
घायल हैं। इन सड़कों पर चलने वाले हलाकान हैं। सिवनी से नागपुर या जबलपुर जाने वाले
लोग अगर टैक्सी करके जाना चाहते हैं तो उन्हें दोगुने तीन गुने पैसे देने होते
हैं। भगवान शिव के नाम से जाना जाता है सिवनी को। सिवनी एक समय में काफी हद तक
समृद्धशाली समझा जाता रहा है। सिवनी की सबसे बड़ी खासियत यहां की रेल लाईन और
शेरशाह सूरी के जमाने का उत्तर से दक्षिण को जोड़ने वाला मार्ग था। आज़ादी के उपरांत
देश ने तेजी से तरक्की की। छोटी और मीटर गेज लाईन को ब्रॉडगेज में तब्दील किया
जाने लगा। सिवनी का नंबर कब आएगा, यह सोचते सोचते
ही आज़ादी के वक्त जवान रही पीढ़ी भगवान को प्यारी होती गई। सिवनी में ब्रॉडगेज की
कमी पूरी करता रहा नेशनल हाईवे नंबर सात।
एनएच 07 सिवनी की जीवन रेखा से कम नहीं है।
यह मार्ग उत्तर भारत को दक्षिण भारत से जोड़ता है। ब्रॉडगेज के अभाव में इस मार्ग
का उपयोग माल ढुलाई के लिए सबसे ज्यादा किया जाता है। अटल बिहारी वाजपेयी
प्रधानमंत्री बने तब इस मार्ग के दिन फिरे। अनेक षणयंत्रों के झटके झेलने के बाद
भी यह मार्ग केंद्र सरकार के स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण
गलियारे का हिस्सा बना रहा।
हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि जबसे पूर्व केंद्रीय मंत्री सुश्री
विमला वर्मा को उनके अपनों ने ही षणयंत्र के साथ सक्रिय राजनीति से हाशिए पर बिठा
दिया है,
तबसे सिवनी की अस्मत के साथ लगातार खिलवाड़
किया जाता रहा है। सालों साल प्रदेश और सिवनी में कांग्रेस की तूती बोलती आई है।
विमला वर्मा के सियासी राजनीति से हटकर घर बैठते ही उनके अपने और उनकी आस्तीन में
छिपे सपोलों ने फन काढ़ा और सिवनी के भविष्य के साथ खिलवाड़ करना आरंभ कर दिया।
उस दौरान कांग्रेस के दो या तीन शीर्ष नेताओं ने आपस में जुगलबंदी कर ऐसा
सियासी त्रिफला बनाया कि सिवनी के लोग इन नेताओं के समर्थन और विरोध के स्वांग में
ही उलझकर रह गए। इसके बाद सिवनी की अस्मत को कथित तौर पर गिरवी रखने का षणयंत्र
रचा गया। सिवनी को प्रदेश के बड़े क्षत्रपों के हाथों गिरवी रखकर इन लोगों ने खूब
दावतें उड़ाईं, फाग गाए, जश्न मनाए। वस्तुतः सिवनी आज पूरी तरह अनाथ है तो उसके पीछे
ये नेता कहीं न कहीं जवाबदेह जरूर हैं।
सिवनी में लोकसभा हुआ करती थी। ‘‘थी‘‘ शब्द का प्रयोग आज मजबूरी में इन्हीं नेताओं के कारण करना पड़
रहा है। जब सिवनी के विलोपन का प्रस्ताव ही नहीं था तो भला सिवनी लोकसभा विलोपित
कैसे हो गई। कहां थे कांग्रेस के कथित ‘दिमाग‘ और ‘दिमागदार‘ लोग। क्या सिवनी से लोकसभा का विलोपन कांग्रेस के क्षत्रप ‘हरवंश सिंह‘ के कारण हुआ! अगर
हुआ तो आप सिवनी के नागरिक पहले हैं, कांग्रेस के
सदस्य बाद में! क्या कारण था कि इस मामले को पार्टी फोरम में नहीं उठाया गया, और अगर उठाया गया तो क्या कारण था कि इसके विरोध में कांग्रेस
से त्यागपत्र की झड़ी नहीं लगी! मतलब साफ है कि इस षणयंत्र के जगमगाते लट्टू में
कहीं न कहीं इन नेताओं की बैटरी से भी करंट जा रहा था।
सिवनी में फोरलेन का षणयंत्र रचा गया। इसके लिए वर्ष 2009 में घोषित तौर पर तत्कालीन केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल
नाथ को दोषी करार दिया गया। सिवनी में कमल नाथ को इन्हीं नेताओं ने पुरानी फिल्मों
के विलेन ‘प्रेम चौपड़ा, और शत्रुघ्न
सिन्हा‘ बना दिया गया। कमल नाथ की प्रतीकात्मक शवयात्राएं निकाली गईं।
जनमंच सिवनी एवं जनमंच लखनादौन ने मामले की नजाकत और गरम तवा देखकर इस मामले को
लेकर सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी। सिवनी जिला इस मामले को लेकर सड़क में अडंगे के
लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमल नाथ को ही जवाबदार मान रहा था। इसी बीच सर्वोच्च
न्यायालय में जनमंच सिवनी की ओर से याचिका कर्ता वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और
अधिवक्ता आशुतोष वर्मा की ओर से अपील प्रस्तुत की गई। वहीं लखनादौन जनमंच के
सरपरस्त बने दिनेश राय ने भी अपनी अपील दाखिल की। सिवनी जनमंच ने लोगों से चंदा
किया, लखनादौन जनमंच शायद धन्ना सेठ था इसलिए उसने किसी से चंदा
नहीं लिया और कुरई जनमंच शायद साधनों या चंदे के अभाव में कहीं नहीं जा सका।
आज सिवनी से बालाघाट, सिवनी से नागपुर, सिवनी से जबलपुर, सिवनी से कटंगी, सिवनी से मण्डला, सिवनी से छिंदवाड़ा रोड जब चाहे तब बंद हो जाता है।
सांसद, विधायक, भाजपा, कांग्रेस, अन्य राजनैतिक दलों के साथ ही साथ सड़क की लड़ाई लड़ने
वाले जनमंच के त्रिफला भी मौन हैं। शायद सिवनी जनमंच का चंदा खत्म हो गया, लखनादौन जनमंच का ध्यान चुनाव की ओर हो, और कुरई का जनमंच . . .। कुल मिलाकर पिस तो सिवनी की
जनता ही रही है। समझ में नहीं आता कि नेता आखिर यह कैसे सोच लेते हैं कि उनकी साल
दो या चार साल पहले की हरकतें जनता कैसे भूल सकती है? कल तक सिवनी की जनता को सड़क के मामले में भरमाने, कमल नाथ को विलेन बनाने वाले नेता आज मौन क्यों हैं? सिवनी में सड़क की लड़ाई लड़ने के बजाए नेता नागपुर, जबलपुर, दिल्ली, छिंदवाड़ा जाकर सड़क के बारे में चर्चा कर फोटो अखबारों
में छपवाकर क्या यह जतलाना चाहते हैं कि वे सिवनी की सरजमीं छोड़कर अन्य जिलों में
सिवनी की सड़कों के लिए फिकरमंदर हैं? सभी नेताजी जानते हैं कि सड़क के जर्जर होने से सिवनी
टापू बन गया है, जनता
कराह रही है, चुप है
इसका मतलब यह नहीं कि वह बेवकूफ है, वह सब कुछ सह रही है और नवंबर में होने वाले विधानसभा
चुनाव के इंतजार में है जब वह इन नेताओं को देगी अपना माकूल जवाब।
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