सोमवार, 16 जुलाई 2012

प्रणव पर ममता दिखाएंगी बनर्जी


ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

प्रणव पर ममता दिखाएंगी बनर्जी
राष्ट्रपति पद के संप्रग प्रत्याशी प्रणव मुखर्जी के पक्ष में अंतिम समय में ममता बनर्जी का दिल भी पसीज ही जाएगा। पूर्व वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी को रायसीना हिल्स पहुंचाने के पीछे जो कहानी सामने आ रही है उसे देखकर विपक्ष भी प्रणव का साथ देता नजर आ रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के धुर विरोधी प्रणव के कार्यालय की होने वाली जासूसी के तार भी इससे जोड़कर देखे जा रहे हैं। सियासी गलियारों में इन दिनों यह बात जोर शोर से उछल रही है कि संवैधानिक व्यवस्था के कीड़े बन चुके प्रणव मुखर्जी को धुर बनाना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा। प्रणव मुखर्जी 1984 से ही मन में प्रधानमंत्री ना बन पाने की पीड़ा रखे बैठे हैं। मुखर्जी के दिल में यह बात नश्तर की भांति ही चुभ रही है। कहा जा रहा है कि जैसे ही वे रायसीना हिल्स स्थिति राष्ट्रपति भवन में प्रवेश करेंगे सबसे पहले वे अपने विधायक पुत्र अभिजीत की तरक्की के मार्ग प्रशस्त कर कांग्रेस से चुन चुनकर बदला लेंगे। कांग्रेस को समूल नष्ट करने की इस योजना में विपक्ष प्रणव दा को पूरा समर्थन देता नजर आ रहा है। ममता बनर्जी तक भी इस बात की खबर है, जो जल्द ही अपनी ममता प्रणव पर उड़ेल सकती हैं।

युवराज की भद्द पिटवाती कांग्रेस!
बंद मुठ्ठी लाख की, खुली तो खाक की, की कहावत को चरितार्थ करते हुए कांग्रेस ही अपने युवराज राहुल गांधी की किरकिरी करवाने में कोई कसर नहीं रख छोड़ रही है। कांग्रेस के अंदर ही अंदर एक के बाद एक एक कर गांधी परिवार के खिलाफ सुर बुलंद हो रहे हैं जिससे स्थिति विफोटक होती जा रही है। जैसे ही कांग्रेस ने प्रणव मुखर्जी का नाम आगे बढ़ाया वैसे ही प्रणव के राजीव विरोधी होने की बात सामने आने लगी। फिर क्या था कांग्रेस के आला नेताओं को लगने लगा मानो नेहरू गांधी परिवार के खिलाफ बयान देकर ही सत्ता की मलाई पाई जा सकती है। सलमान खुर्शीद ने राहुल के खिलाफ बोलकर भाजपा का रीता तरकश तीरों से भर दिया है। भाजपा के वरिष्ठ नेता ने मौके का पूरा पूरा फायदा उठाया और राहुल को कम पढ़ा लिखा और नाकाम कारतूस निरूपित कर दिया। माना जा रहा है कि एक बार राहुल पर वार करने का जो सिलसिला आरंभ हुआ है वह फिलहाल थमे इसमें संशय ही है।

शरद पर दांव लगा सकता है राजग!
हामिद अंसारी को संप्रग द्वारा उप राष्ट्रपति के लिए नामांकित किए जाने के बाद अब राजग ने कमर कसना आरंभ कर दिया है। राजग द्वारा देश के हृदय प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर में पले बढ़े शरद यादव पर इस पद के लिए दांव लगाने का मन बना लिया है। राष्ट्रपति के लिए प्रणव मुखर्जी का साथ देने वाला बंटा हुआ राजग अब अपना मौखटा उप राष्ट्रपति के लिए उतारकर नए क्लेवर में सामने आ रहा है। राष्ट्रपति के लिए राजग के शिवसेना और जदयू ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। अब उप राष्ट्रपति के लिए मोर्चाबंदी हो रही है। उप राष्ट्रपति के लिए बादल और जसवंत सिंह का नाम सामने आ रहा था, पर अब शरद यादव से कुछ नेताओं की चर्चा के उपरांत उनके नाम पर अंतिम मोहर लग सकती है। उप राष्ट्रपति के लिए शरद यादव के नाम पर राजग के अलावा संप्रग के कुछ दल और वाम दल भी अपनी सहमति दे सकते हैं। माना जा रहा है कि राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस प्रत्याशी का समर्थन करके शरद ने जो दांव खेला है उससे उप राष्ट्रपति पद के लिए माहौल उनके मुफीद ही प्रतीत हो रहा है।

यह सेमीफायनल है संगमा के लिए!
सियासी गलियारों में इस बारे में शोध हो रहा है कि एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार पी.ए.संगमा का गेम प्लान आखिर क्या है? इस बार साफ दिख रहा है कि संगमा हारी हुई बाजी पर ही दांव लगा रहे हैं। संगमा की पुत्री अगाथा केंद्र में लाल बत्ती की मलाई चख रही हैं, वे एनसीपी कोटे से हैं। एनसीपी सुप्रीमो शरद पंवार ने अगाथा को साफ कह दिया है कि अगर अगाथा ने अपने पिता के पक्ष में प्रचार किया तो उनकी लाल बत्ती खतरे में पड़ सकती है। डरी सहमी मासूम बाला अगाथा ने अपने पिता के नामांकन दाखिले के दौरान भी अपने आप को उनसे दूर ही रखा। यह अलहदा बात है कि अगाथा सामाजिक और अन्य प्रोग्राम में पिता के पक्ष में प्रचार प्रसार करती नजर आ रही हैं। संगमा के करीबियों की मानें तो संगमा 2012 को 2017 का सेमीफायनल मानकर चल रहे हैं। वे चाहते हैं कि 2017 में उन्हें सर्वसम्मत प्रत्याशी बना दिया जाए।

राहुल को दमाद बनाने 15 करोड़ का दहेज!
कथित तौर पर देश के मोस्ट इलीजिबल बैचलर (वास्तव में प्रौढ़) राहुल गांधी को अपना दामाद बनाने के लिए ओम शांति नामक महिला चर्चाओं में है। केंद्र और सूबाई सरकारें दहेज लेना और देना दोनों ही अपराध मानती हैं। इसके लिए भारतीय दण्ड विधान में धारा 498 ए का प्रावधान भी है। बावजूद इसके ओम शांति ने अपने धरना स्थल पर चस्पा किया पोस्टर साफ इस बात को दर्शाता है कि वे अपनी बेटी के विवाह के लिए कुछ भी कर गुजरने पर आमदा है। वे इसके लिए कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को 15 करोड़ रूपए दहेज भी देने को तैयार हैं। कहते हैं कि ओम शांति ने धरने पर बैठने के लिए दिल्ली पुलिस से अनुमति भी नहीं ली है। भले ही चर्चाओं में आने के लिए ओम शांति ने यह प्रयास किया हो पर मानना होगा देश की सरकार और दिल्ली की सरकार को, जो दहेज जैसे दानवीय अपराध को अपनी मांग में शामिल करने के बाद भी उसे पकड़ने के बजाए मूकदर्शक ही बनी बैठी है।

बिना वोट वाले सीएम
उत्तर प्रदेश के साथ बड़ा ही गजब का संयोग जुड़ रहा है। लगातार दूसरी मर्तबा महामहिम राष्ट्रपति को चुनने में यहां का निजाम अपने मत का इस्तेमाल ही नहीं कर पाएगा। वैसे यह संयोग ही कहा जाएगा का भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री के रूप में डॉ.मनमोहन सिंह लगातार आठ साल से इस स्थिति में हैं कि वे अपनी ही सरकार को बचाने के लिए मताधिकार का प्रयोग इसलिए नहीं कर सकते क्योंकि वे राज्यसभा के सदस्य हैं। बहरहाल, मायावती के मानिंद ही अखिलेश भी विधानपरिषद के सदस्य हैं। राष्ट्रपति चुनावों में संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों के अलावा विधानसभा के निर्वाचित सदस्य ही वोट डाल सकते हैं। इसके पहले मायावती 2007 में 29 जून को विधान परिषद की सदस्य बनीं और 5 जुलाई को राज्यसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया था। 19 अप्रेल 2012 को विधानपरिषद के सदस्य बनते ही अखिलेश यादव ने लोकसभा से त्यागपत्र दे दिया था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री 12 और 13 वें राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनावों में अपने मताधिकार का प्रयोग ही नहीं कर पाएंगे!

कृतध्न मनमोहन!
अब तक एक भी चुनाव प्रत्यक्ष तौर पर नहीं जीत पाने वाले भारत गणराज्य के वज़ीरे आज़म डॉ.मनमोहन सिंह को असम का तहेदिल से शुक्रगुजार होना चाहिए क्योंकि यह वही सूबा है जिसने उन्हें राज्य सभा सदस्य बनाया और देश की बागडोर थामने का मौका दिया। हकीकत इससे उलट ही है। मनमोहन सिंह असम का रूख तभी करते हैं जब यहां बाढ़ या कोई आपदा आती है। प्रधानमंत्री 2 जुलाई को कांग्रेस की राजमाता के साथ 140 मिनिट के असम दौरे पर गए, इसमें से 90 मिनिट तक उन्होंने कांजीरंगा नेशनल पार्क सहित धेमजी, लखीमपुर और जोरहाट का हवाई निरीक्षण किया। मतलब वे कुल मिलाकर 50 मिनिट ही वहां के लोगों से मिले। केंद्र में असम का प्रतिनिधित्व करने वाले देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने असम के प्रति अपनी कृतज्ञता के बजाए कृतध्नता जतलाते हुए एक भी बाढ़ पीढ़ित से मिलने की जहमत नहीं उठाई। अगर हवा हवाई सर्वेक्षण से ही काम चलाना था तो अपना समय और देश का पैसा क्यों लुटाया मनमोहन जी, बेहतर होता कि इंटरनेट पर असम का ई सर्वे कर लिया होता।

लाभ के लिए हटाया भूषण को!
पूर्व नागरिक उड्डयन मंत्री वायलर रवि हैरान हैं कि नागर विमानन महानिदेशालय के प्रमुख केरल काडर के 1979 बैच के आईएएस अफसर भरत भूषण को क्यों हटाया गया? भरत भूषण का कार्यकाल एक सप्ताह पूर्व ही छः माह के लिए बढ़ाया गया था, और उन्हें हटा दिया गया है। इस मामले में उड्डयन मंत्रालय मौन है। मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि इसके पीछे कुछ और कहानी है। दरअसल, 15 साल पुरानी तकनीक के पुराने बड़े विमान और 20 बरस पूर्व की तकनीक वाले हेलीकाप्टर यात्रियों को ढोने के लिए असुरक्ष्ति होते थे। अजीत सिंह ने इस नियम को शिथिल कर दिया है। कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि इस तरह के पुरानी तकनीक वाले विमानों और चौपर को खरीदने का खेल खेला जाने वाला था, जिसमें सबसे बड़ी रूकावट भरत भूषण थे। पायलट हड़ताल को खींचना भी इसका ही एक हिस्सा माना जा रहा है। अब भूषण हट गए देखना है कि क्या अजीत सिंह का शिथिल किया गया रूक्का अब काम कर पाएगा।

चौधरी का दबाव! खरीदो हमारी मंहगी दवाएं!
दुनिया के चौधरी अमरीका द्वारा अन्य देशों पर किस तरह का दबाव बनाया जाता है इसका नायाब उदहारण सामने आ रहा है। पीएमओ के सूत्रों का कहना है कि अमरीका का भारत पर यह दबाव बढ़ता ही जा रहा है कि कैंसर की मंहगी दवाएं भारत उससे खरीदे। कैंसर विशेषज्ञों की मानें तो जो दवाएं अमरीका कैंसर के लिए भारत भेजता है उनकी कीमत ढाई लाख रूपए सालाना है, पर जो दवाएं भारत ने इजाद कर ली हैं उनकी कीमत महज एक लाख रूपए सालाना बैठती है। अमरीका प्रशासन का दबाव है कि भारत अपनी सस्ती दवाओं के बजाए अमरीका की मंहगी दवाओं पर देश के कैंसर रोगियों को निर्भर करे। अमरीका की दवा लाबी ने दुनिया के चौधरी अमरीका के प्रेजीडेंट बराक ओबामा पर भी इस बात का दबाव बढ़ा दिया है कि वह इस मामले में हस्ताक्षेप कर इस दवा के लिए भारत में व्यापार का माहौल बनवाए। वर्तमान में भारत सरकार ने तो इस मामले में दो टूक इंकार कर दिया है पर भारत का यह स्टेंड कब तक कायम रहता है यह कहा नहीं जा सकता है।

सरकार से ध्यान हटाया जनसंपर्क ने!
मध्य प्रदेश सरकार की छवि चमकाने, जनहित की योजनाओं को जनता तक पहुंचाने, सरकार की उपलब्धियों के बखान के लिए पाबंद सरकार का एक महकमा सरकार की ही उपेक्षा पर आमदा नजर आ रहा है। पहले न्यूयार्क में मिले प्रदेश सरकार को सम्मान की खबर को बाद में जारी किया गया अब मनरेगा में एमपी की उलब्धि को भी नजर अंदाज ही किया जाता प्रतीत हो रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना-मनरेगा को लागू करने में मध्यप्रदेश का  प्रदर्शन निरंतर बेहतर रहा है। वह अन्य राज्यों की तुलना में प्रदर्शन के आधार पर पांच श्रेणियों में पहले दस राज्यों में शामिल हो गया है। इसके बाद भी शिवराज सिंह चौहान की इतनी बड़ी उपलब्धि का ही मध्य प्रदेश सरकार के जनसंपर्क महकमे द्वारा प्रचार प्रसार ना किया जाना आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है। अब सरकार के कुछ आला अफसरान इस बात की तह में जाने की कोशिश में लग गए हैं कि आखिर माजरा क्या है?

लंदन ओलंपिक में मिलेंगे लज़ीज देशी व्यंजन!
अक्सर विदेश में होने वाली खेल प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने जाने वाले दल को वहां भारतीय खाने की शिद्दत से महसूस होती रही है। इस बार लंदन ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों को देशी व्यंजनों के लिए तरसना नहीं पड़ेगा। वैसे तो लंदन ओलंपिक में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों ही तरह के व्यंजनों का लुत्फ उठा सकेंगे। दरअसल, बार बार आने वाली शिकायतों से आज़िज आने के उपरांत लंदन में रह रहे भारतीय मूल के लोगों से संपर्क साधना आरंभ किया गया, जिनसे अनुरोध किया गया कि वे भारतीय पहलवानों और टीम के सदस्यों के लिए भारतीय स्वाद की चपाती, सब्जियां आदि मुहैया करवाएं। भारतीय जायके को ध्यान में रखते हुए देश के महाबली सतपाल ने भी लंदन में भारतीय मूल के परिवारों से संपर्क कर उनसे गुजारिश की है कि भारतीय दल को विशेषतौर पर भारतीय जायके वाला शाकाहारी खाना उपलब्ध करवाएं।

पुच्छल तारा
संचार क्रांति का दौर है। अब तो हर हाथ में मोबाईल दिखाई देता है। शार्ट मैसेज सर्विस यानी एसएमएस के बजाए अब तो एमएमएस का दौर है। ना जाने कितने अश्लील एमएमएस बनकर लोगों के हाथों में घूम रहे हैं। विधानसभा में विधायकों को भी अश्लील एमएमएस देखने में आनंद की अनुभूति होती है। इसी पर हैदराबाद से समीर मिड्ढ़ा ने एक ईमेल भेजा है। समीर लिखते हैं कि कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी का दरबार लगा हुआ था।
दरबान ने सोनिया गांधी से कहा -‘‘आपका, एमएमएस, आया है।‘‘
अश्लील एमएमएस की बाढ़ में अपने एमएमएस की बात सुनकर वे बुरी तरह चौंकी। इतने में जैसे ही मनमोहन सिंह (एमएमएस) अंदर आए तब सोनिया ने राहत की सांस ली और मनमोहन सिंह कह पड़े -‘‘कंबख्त, नाम तो पूरा लिया कर।‘‘

सोनिया के ‘मन‘ उतर चुके हैं प्रधानमंत्री

सोनिया के मनउतर चुके हैं प्रधानमंत्री

सात रेसकोर्स और 10, जनपथ के बीच नहीं पट पाई है खाई

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। सत्ता के घोषित शीर्ष केंद्र 7, रेसकोर्स रोड़ (भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री का सरकारी आवास) और सत्ता तथा शक्ति के परोक्ष तौर पर स्थापित शीर्ष केंद्र 10, जनपथ (बतौर सांसद सोनिया गांधी को आवंटित सरकारी आवास) के बीच खुदी खाई अभी तक पाटी नहीं जा सकी है। इसका उदहारण पिछले दिनों महामहिम राष्ट्रपति चुनावों के दरम्यान देखने को मिला जब राष्ट्रपति पद के लिए मनमोहन सिंह का नाम सामने आया और सोनिया गांधी ने उनका बचाव नहीं किया।
प्रधानमंत्री कार्यालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि राष्ट्रपति चुनाव के दौरान कांग्रेस के हाईकमान के व्यवहार ने प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह को दुखी कर दिया है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री का नाम राष्ट्रपति के लिए सुनियोजित तरीके से आगे किया गया था। एसा तब किया गया जब खुद मनमोहन सिंह राष्ट्रपति की उम्मीदवारी से अपने आप को अलग कर चुके थे। मीडिया से चर्चा के दौरान उन्होंने इस तरह की संभावनाओं को मुस्कुराकर यह कहकर खारिज कर दिया था कि वे जहां हैं वहीं ठीक हैं।
यद्यपि, मनमोहन सिंह का नाम मीडिया में आगे आने पर पार्टी ने उनका बचाव किया पर बचाव के तरीके से मनमोहन सिंह खासे खफा बताए जा रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि जब ममता बनर्जी और मुलायम सिंह यादव द्वारा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम आगे किया तब खुद सोनिया गांधी को आगे आकर मनमोहन सिंह का बचाव किया जाना चाहिए था, पर सोनिया के बजाए जनार्दन द्विवेदी ने सामने आकर कहा कि 2014 तक मनमोहन सिंह ही प्रधानमंत्री रहेंगे।
उधर, दूसरी ओर कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के केंद्र 10, जनपथ के सूत्रों की मानें तो मनमोहन सिंह अब सोनिया गांधी के मन से पूरी तरह उतर चुके हैं। इसका कारण यह है कि भले ही सोनिया के यस मेनके बतौर मनमोहन सिंह काम कर रहे हों, पर सच्चाई यह है कि वे केंद्र में इस कदर कीचड़ मचा चुके हैं कि अब राहुल गांधी की ताजपोशी के लिए सोनिया को इंतजार के अलावा और कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है।
सूत्रों के अनुसार अगर प्रणव मुखर्जी द्वारा त्यागपत्र की धमकी ना दी गई होती तो मनमोहन सिंह से कांग्रेस और सोनिया निजात पा ही जातीं। माना जा रहा है कि मनमोहन सिंह के लिए तारणबनकर अनजाने में ही प्रणव मुखर्जी सामने आए, जिनके चलते मनमोहन सिंह की जाती नौकरी कुछ महीनों के लिए बच गई है। सोनिया गांधी इस समय सबसे ज्यादा चिंता ग्रस्त इस बात को लेकर हैं कि वे अपने दुलारे राहुल गांधी को कैसे देश की बागडोर सौंपें?

राजेंद्र प्रसाद और पंडित जी की जंग में संसद हुई सर्वोच्च!


राजेंद्र प्रसाद और पंडित जी की जंग में संसद हुई सर्वोच्च!

कश्यप बंधुओं की किताब से हुआ अहम खुलासा

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। भारत गणराज्य की स्थापना के साथ ही देश के प्रथम महामहिम राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद और देश के पहले वज़ीरे आज़म पंडित जवाहर लाल नेहरू के बीच चली वर्चस्व की जंग के चलते ही देश में महामहिम राष्ट्रपति के बजाए संसद को सर्वोच्च माना गया। इस बात का खुलासा कश्यप बंधुओं की हाल ही में बाजार में आई किताब से हुआ है।
भारत गणराज्य के प्रथम महामहिम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद और प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के बीच हुई तकरार के परिणाम ने संभवतः भारत देश की राजनीति को नया मोड़ दिया जिसमें संसद की सर्वाेच्चता को मान्यता दी गई। प्रसाद और नेहरू के बीच पत्रों के आदान-प्रदान से स्पष्ट होता है कि प्रसाद राष्ट्रपति के लिए असीम शक्तियां चाहते थे मगर देश में शुद्ध रूप से संसदीय प्रणाली की सरकार चलाने पर जोर दिया गया। इसी कारण नेहरू राष्ट्रपति प्रसाद के साथ हुई झड़प में जीत गए।
1950 और 1951 में दोनों नेताओं के बीच हुए पत्रों के आदान-प्रदान को सार्वजनिक किया गया। समय था संविधान कानून विशेषज्ञ सुभाष सी. कश्यप और अभय कश्यप की पुस्तक के विमोचन का। पत्रों का पूरा विवरण पुस्तक इंडियन प्रैसीडैंसीमें दिया गया। पुस्तक का विमोचन डा. कर्ण सिंह ने इंडिया इंटरनैशनल सैंटर में किया।
डा. प्रसाद ने 21 मार्च 1950 को नेहरू को एक पत्र लिखा जिसमें भारत के राष्ट्रपति द्वारा अपने अधिकारों का इस्तेमाल मंत्रिपरिषद की सलाह पर करने का उल्लेख किया गया और इस बात पर जोर दिया गया कि इस मामले पर स्पष्टीकरण की जरूरत है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति एक सांसद नहीं बल्कि संसद का तीसरा हिस्सा है।
संसद द्वारा पारित विधेयक को कानून बनाने के लिए राष्ट्रपति के हस्ताक्षर की जरूरत होती है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि राष्ट्रपति को किसी भी मामले में सूचना या सलाह प्राप्त करने के लिए किसी भी सचिव से संपर्क करने का अधिकार हो। उन्होंने कहा कि आजादी से पहले राज्यपाल और एक सचिव के बीच सीधे सम्पर्क पर आपत्ति की जाती थी मगर अब ऐसा कुछ भी नहीं है।
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने नेहरू ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 74 के अनुरूप राष्ट्रपति को सभी काम मंत्रिपरिषद की सलाह और मदद से करने हैं क्योंकि अनुच्छेद 75 के अनुरूप यह मंत्रिपरिषद ही है जो संसद के प्रति सामूहिक रूप से जिम्मेदार है। इस दलील ने देश का प्रशासन चलाने में संसद की सर्वाेच्चता को बनाया।
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को मिली जानकारी के अनुसार नेहरू ने 6 अक्तूबर 1950 को लिखा कि जिस समय राष्ट्रपति ने मंत्रिपरिषद की सलाह और मदद को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया उसी समय संवैधानिक संकट पैदा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि संविधान निर्माताओं ने स्पष्ट किया है कि देश में संसदीय प्रणाली की सरकार की व्यवस्था होगी न कि अध्यक्षीय प्रणाली की सरकार की।

ओबामा मामले में रक्षात्मक मुद्रा में राजनेता


ओबामा मामले में रक्षात्मक मुद्रा में राजनेता

(रश्मि सिन्हा)

नई दिल्ली (साई)। सरकार और राजनीतिक दलों ने भारत में निवेश के माहौल पर अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की चिंताएं खारिज कर दी हैं। कॉरपोरेट कार्य मंत्री वीरप्पा मोइली ने कहा कि कुछ अंतर्राष्ट्रीय लॉबी ऐसी बातें फैला रहीं हैं और अमरीकी राष्ट्रपति को भारत की अर्थव्यवस्था की मजबूत नींव के बारे में सही जानकारी नहीं है। श्री मोइली ने कल बेंगलूर में बताया कि भारत में निवेश का माहौल बिगड़ने की धारणा आर्थिक मानकों पर आधारित नहीं है बल्कि यह कुछ व्यक्तियों, उद्यमियों और निवेशकों की राय है।
श्री मोइली ने कहा कि भारत में कोई आर्थिक संकट नहीं है जबकि अमरीका और अन्य देशों ने वर्ष २००८ और २०१० में दो बार ऐसी समस्याओं का सामना किया है। उन्होंने कहा कि भारत में कोई भी वित्तीय संस्था दिवालिया नहीं हुई जबकि अमरीका और अन्य देशों में ऐसी अनेक घटनाएं हुई।
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को मिली प्रतिक्रियाओं के हिसाब से विपक्षी दलों ने भी श्री ओबामा की इस टिप्पणी की आलोचना की है कि भारत कई क्षेत्रों में विदेशी निवेश की अनुमति नहीं दे रहा है। भारतीय जनता पार्टी के नेता यशवंत सिन्हा ने कहा कि भारत सिर्फ अमरीकी राष्ट्रपति के चाहने से विदेशी निवेश के लिए अपने बाजार नहीं खोल सकता। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता नीलोत्पल बसु ने कहा है कि अमरीका चाहता है कि भारत अपनी अर्थव्यवस्था और बाजार को उसकी शर्तों पर खोले, इसलिए। भारत पर दबाव डाला जा रहा है।
नई दिल्ली। देश की लगातार गिरती अर्थव्यवस्था को लेकर व्यापार में भारत के सहयोगी देशों की भी चिंता बढ़ने लगी है। भारत के विदेशी निवेश में अमेरिका की भी अहम भूमिका है, लेकिन अमेरिका को अब लगता है कि भारत में निवेश का माहौल बिगड़ता जा रहा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक समाचार एजेंसी को दिए इंटरव्यू में साफ तौर पर कहा कि अमेरिकी निवेशक भारत में निवेश करना चाहते हैं लेकिन रिटेल सहित कई क्षेत्रों में पाबंदी की वजह से अमेरिकी निवेशक भारत से मुंह मोड़ने लगे हैं।
ओबामा ने कहा कि दोनों देशों में रोजगार के अवसर पैदा करना आवश्यक है और भारत के विकास के लिए ये निहायत जरूरी है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दोनों देशों में आर्थिक संबंध बढ़ाने के लिए निवेश का अच्छा माहौल बनाने की जरूरत है।
ओबामा की मानें तो अब वक्त आ गया है कि भारत आर्थिक क्षेत्र में सुधार के लिए एक नई लहर पैदा करे। हालांकि ओबामा की इस नसीहत को सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया है।
संसदीय कार्यमंत्री हरीश रावत ने कहा है कि रिटेल में मल्टीब्रांड को लेकर सरकार पूरी तरह तैयार है। किसी अन्य देश के मुताबिक भारत अपनी आर्थिक नीति तय नहीं करता है। दुनिया में सभी इस बात को मान रहे हैं कि संकट के बाद भी भारत अपनी ग्रोथ रेट 7 प्रतिशत के आसपास बनाए हुए है। हमें बूस्ट अप की जरूरत है।
उधर विपक्ष ने भी ओबामा के बयान को ये कहते हुए खारिज कर दिया है कि अमेरिका पहले अपने घर को मजबूत करे। लेकिन खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को लेकर उसने एक बार फिर सरकार पर हमला बोला है।
बीजेपी उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि रुपया कंगाल हो रहा है और डॉलर मालामाल हो रहा है। केंद्र सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए जनता चाह रही है। केंद्र सरकार को अब कदम उठाना पड़ेगा। देश आर्थिक आपातकाल के दौर से गुजर रहा है।
ओबामा ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की धीमी रफ्तार पर तो चिंता जताई है लेकिन उन्होंने यह भी माना कि विकास की दर प्रभावशाली है। दुनिया की अर्थव्यवस्था में भारत की अहमियत को स्वीकारते हुए ओबामा ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की धीमी रफ्तार के असर से दुनिया भर के देश प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका को भारत के अंदरुनी मामलों में दखल देने का हक नहीं है लेकिन वक्त का तकाजा है कि भविष्य में आर्थिक खुशहाली के लिए भारत प्रभावशाली दिशा खुद तय करे।
भारतीय कार्पाेरेट जगत ने अमरीकी राष्ट्रपति के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि भारत अब भी निवेश का एक सुदृढ़ क्षेत्र बना हुआ है और लंबी अवधि में उसके आर्थिक विकास की संभावनाएं मजबूत हैं। औद्योगिक संगठन एसोचेम के महासचिव डी एस रावत ने कहा कि अनेक विकसित देशों की अपेक्षा भारतीय अर्थव्यवस्था बेहतर प्रदर्शन कर रही है। एक अन्य औद्योगिक संगठन-सी आई आई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा है कि विश्वव्यापी आर्थिक अनिश्चितताओं के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था छह प्रतिशत की दर से बढ़ रही है।
गौरतलब है कि पहले इस तरह की खबरें आ रही थीं कि देश की लगातार गिरती अर्थव्यवस्था को लेकर व्यापार में भारत के सहयोगी देशों की भी चिंता बढ़ने लगी है। भारत के विदेशी निवेश में अमेरिका की भी अहम भूमिका है, लेकिन अमेरिका को अब लगता है कि भारत में निवेश का माहौल बिगड़ता जा रहा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक समाचार एजेंसी को दिए इंटरव्यू में साफ तौर पर कहा कि अमेरिकी निवेशक भारत में निवेश करना चाहते हैं लेकिन रिटेल सहित कई क्षेत्रों में पाबंदी की वजह से अमेरिकी निवेशक भारत से मुंह मोड़ने लगे हैं। ओबामा ने कहा कि दोनों देशों में रोजगार के अवसर पैदा करना आवश्यक है और भारत के विकास के लिए ये निहायत जरूरी है।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दोनों देशों में आर्थिक संबंध बढ़ाने के लिए निवेश का अच्छा माहौल बनाने की जरूरत है। ओबामा की मानें तो अब वक्त आ गया है कि भारत आर्थिक क्षेत्र में सुधार के लिए एक नई लहर पैदा करे। हालांकि ओबामा की इस नसीहत को सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया है।
ओबामा ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की धीमी रफ्तार पर तो चिंता जताई है लेकिन उन्होंने यह भी माना कि विकास की दर प्रभावशाली है। दुनिया की अर्थव्यवस्था में भारत की अहमियत को स्वीकारते हुए ओबामा ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की धीमी रफ्तार के असर से दुनिया भर के देश प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका को भारत के अंदरुनी मामलों में दखल देने का हक नहीं है लेकिन वक्त का तकाजा है कि भविष्य में आर्थिक खुशहाली के लिए भारत प्रभावशाली दिशा खुद तय करे।