बुधवार, 2 नवंबर 2011

अफसोस इस बार तो आश्वासन भी नहीं मिल सका . . .


अफसोस इस बार तो आश्वासन भी नहीं मिल सका . . .

(लिमटी खरे)
 
देश का हृदय प्रदेश कहलाता है मध्य प्रदेश। मध्य प्रदेश की स्थापना 01 नवंबर 1956 को हुई उसी दिन जन्म हुआ था भगवान शिव के सिवनी का। नब्बे के दशक के आगाज के साथ ही जैसे जैसे कांग्रेस की कद्दावर नेता सुश्री विमला वर्मा ने सक्रिय राजनीति से किनारा किया वैसे ही जिले पर दुर्भाग्य ने अपना काला स्याहा बढ़ाना आरंभ किया। एक के बाद एक झटकों के बाद अब आभावों में जीने के आदी हो चुके हैं सिवनीवासी। 2008 से सिवनी में स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क गलियारे के अंग उत्तर दक्षिण कारीडोर का काम रूका हुआ है। इसमें माननीय न्यायालय का भय बताकर लोगों को भ्रमित भी किया गया। अब साल भर होने का आ रहा है जबकि मामला माननीय उच्चतम न्यायालय ने वाईल्ड लाईफ बोर्ड के पाले में भेज दिया है, जो कि न्यायिक संस्था नहीं है फिर भी काम आरंभ नहीं हो सका है। एमपी के 56वें बर्थडे पर पूर्व भूतल मंत्री कमल नाथ की कर्मभूमि छिंदवाड़ा आए केंद्रीय भूतल परिवहन सी.पी.जोशी ने सिवनी के रणबांकुरों को आश्वासन भी नहीं दिया कि वे कुछ करेंगे।

इस देश में शायद ही एसा कोई व्यक्ति होगा जो मोगली बालक को नहीं जानता होगा। द जंगल बुक के हीरो मोगली को लोगों ने नब्बे के दशक के पूर्वाध में तब पहचाना था जब सुबह सवेरे दूरदर्शन पर ‘‘जंगल जंगल पता चला है, चड्डी पहन के फूल खिला है‘‘ का कर्णप्रिय गीत बज उठता था। हर उमर के लोगों का चहेता बन गया था मोगली। इसी मोगली की जन्म और कर्मस्थली है सिवनी जिला। आज सिवनी के लोग गर्व से अपना सर उठाकर कहते हैं कि वे मोगली के क्षेत्र के निवासी हैं। मोगली ने सिवनी जिले को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलवाई है। जैसे सीमावर्ती छिंदवाड़ा जिले को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर केंद्रीय मंत्री कमल नाथ के लिए जाना जाता है उसी तरह सिवनी भी छिंदवाड़ा से कहीं उन्नीस नहीं बैठता। सिवनी का नाम मोगली के कारण देश के हर कोने में है। इसके बाद महर्षि महेश योगी, आचार्य रजनीश का भी सिवनी के प्रति लगाव रहा है। जगत गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी सरस्वती की जन्म स्थली भी सिवनी ही है। देश विदेश के आध्यात्मिक क्षितिज पर अपना परचम लहराने वाले स्वामी प्रज्ञानंद, स्वामी प्रज्ञनानंद, आबू वाले बाबा आदि के नामों से अटा पड़ा है सिवनी का इतिहास।

अनेक एतिहासिक और महान विभूतियों की स्मृतियों को अपने आंचल में सहेजने वाले सिवनी जिले का दुर्भाग्य नब्बे के दशक से ही आरंभ हुआ जब राजनैतिक तौर पर कमान अपरिपक्व, स्वार्थी, स्वकेंद्रित लोगों के हाथों में जाने लगी। इसके उपरांत ही सिवनी में सियासी तौर पर भी नैतिक पतन का श्रीगणेश हुआ। यह पतन महज राजनैतिक तौर पर नहीं आया। हर क्षेत्र में पतन दर्ज किया गया। इक्कीसवीं सदी के आगाज के साथ ही सिवनी में मानो सब कुछ समाप्त ही हो गया। सिवनी के विकास का क्रम पूरी तरह अवरूद्ध हो गया। क्या ब्राडगेज, क्या आयुर्विज्ञान महाविद्यालय (मेडीकल कालेज), क्या फोरलेन, हर मामले में भगवान शिव के जिले के भोले भाले निवासियों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया गया।

28 अगस्त 2005 को बिलासपुर के सांसद पुन्नू लाल माहोले ने अतारांकित प्रश्न संख्या 4502 के तहत चार बिन्दुओं पर जानकारी चाही थी। इसमें बिलासपुर से मण्डला होकर नैनपुर और नैनपुर से सिवनी होकर छिंदवाड़ा रेलमार्ग के अमान परिवर्तन की जानकारी चाही गई थी। इसके जवाब में तत्कालीन रेल राज्यमंत्री आर.वेलू ने पटल पर जानकारी रखते हुए कहा था कि नैनपुर से बरास्ता छिंदवाड़ा के 139.6 किलोमीटर खण्ड का छोटी लाईन से बड़ी लाईन में परिवर्तन हेतु 2003 - 04 में सर्वेक्षण किया गया था। सर्वेक्षण प्रतिवेदन के अनुसार इस परियोजना की लागत ऋणात्मक प्रतिफल के साथ 228.22 करोड़ रूपए आंकी गई थी। वेलू ने यह भी कहा था कि इस प्रस्ताव की अलाभकारी प्रकृति, चालू परियोजनाओं के भारी थ्रोफारवर्ड एवं संसाधनों की अत्याधिक तंगी को देखते हुए स्वीकार नहीं किया जा सका। इसके बाद बार बार रेल बजट में छिंदवाड़ा से सिवनी होकर नैनपुर तक अमान परिवर्तन का झुनझुना सिवनी वासियों को दिखाया जाता रहा। कांग्रेस और भाजपा ने इसका पालीटिकल माईलेज लेने की गरज से विज्ञापनों की बौछार कर दी। आज नवंबर 2011 में भी एक इंच काम आरंभ नहीं हो सका है।

कमोबेश यही आलम देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ किसानों के मामले में है। किसानों के लिए सरकार की महात्वाकांक्षी पेंच परियोजना में भी सियासी दलों ने गुमराह करने के अलावा और कुछ नहीं किया है। कांग्रेस और भाजपा एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप के दौर चला रही है। विधायकों के विज्ञप्तिवीर गुर्गे जनता को गुमराह करने की गरज से न जाने कहां कहां की बातें शिगूफे हवा में उछाल रहे हैं। कांग्रेस कहती है विधायक हरवंश सिंह 35 साल से इस परिजयोना के लिए प्रयासरत हैं। पेंतीस साल में वर्तमान आठ साल और सुंदर लाल पटवा की सरकार के ढाई साल छोड़ दिए जाएं तो साढ़े चोबीस साल कांग्रेस का शासन रहा। क्या कारण है कि कांग्रेस के शासन काल में कांग्रेस के विधायक हरवंश सिंह इस परियोजना को मूर्तरूप नहीं दिलवा पाए? क्या कारण है कि पेंतीस सालों में इस परियोजना में एक ईंट भी नहीं जोड़ी जा सकी? वहीं दूसरी ओर रही बात भाजपा की तो। प्रदेश में नब्बे के दशक से अब तक के अपने साढ़े दस साल के कार्यकाल में सिवनी जिले के शूरवीर भाजपा विधायकों ने किसानों के हितों की बात विधानसभा या लोकसभा में उठाने की जहमत आखिर क्यों नहीं उठाई? क्या यह जनता के जनादेश का सीधा सीधा अपमान नहीं है? आखिर कब तक किसानों और जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर सत्ता की मलाई का सुख उठाएंगे जनसेवक?

अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में राजग सरकार की महात्वाकांक्षी स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे में सिवनी जिले में काम 2008 से बाधित है। विधानसभा चुनावों के दौरान आचार संहिता के दौरान ही सारे खेल हो गए किसी को कानों कान खबर तक नहीं लगी। तत्कालीन जिलाधिकारी पिरकीपण्डला नरहरि के हस्ताक्षरों से 18 दिसंबर 2008 को जारी और 19 दिसंबर को पृष्ठांकित पत्र में सर्वोच्च न्यायालय की साधिकार समिति के सदस्य सचिव के पत्र (जो वस्तुतः मध्य प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को लिखा गया था जिला कलेक्टर को नहीं) पर मोहगांव से खवासा तक झाड़ कटाई का काम रोक दिया गया। जब झाड़ ही नहीं कट पाएंगे तो भला सड़क क्या बनेगी। जब इस पत्र को वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों को दिखाया गया तो उन्होंने इस तरह के पत्र पर काम रोकने को अनुचित ही ठहराया।

एक एनजीओ द्वारा मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचाया गया। सिवनी का पक्ष भी यहां के समूहों द्वारा न्यायालय में रखा गया। अंत में इस साल माननीय न्यायालय ने मामले को वाईल्ड लाईफ बोर्ड के पास भेज दिया। गौरतलब है कि वाईल्ड लाईफ बोर्ड कोई न्यायिक संस्था नहीं है। यह सब होने के बाद भी जिले की जनता का वोट लेकर विधानसभा और लोकसभा में बैठने वाले जनता के नुमाईंदे खामोश हैं? उनकी खामोशी क्या बयां कर रही है? क्या वे किसी नेता विशेष से भयाक्रांत हैं? क्या नेता विशेष सिवनी की जनता जनार्दन जिसने इन नेताओं को सर आखों पर बिठाया से कद में बड़े हो गए?

इसी दौरान केंद्रीय मंत्री कमल नाथ पर यह आरोप भी लगे कि उन्होंने ही इस काम में अडंगा लगवाया है। वे इस मार्ग को लखनादौन से हर्रई, अमरवाड़ा, छिंदवाड़ा, चौरई के रास्ते नागपुर ले जाना चाह रहे थे। कमोबेश इसी आशय का वक्तव्य उन्होंने राज्य सभा में भी दिया था। फिर फिजां में एक बात तैरी कि यह रास्ता सिवनी से चौरई, छिंदवाड़ा, सौंसर होकर छिंदवाड़ा जाएगा। आज सिवनी से खवासा होकर नागपुर मार्ग इतना जर्जर हो चुका है कि लोग सिवनी से छिंदवाड़ा सौंसर के रास्ते ही नागपुर जाने पर मजबूर हैं।

बहरहाल कांग्रेस का एक डेलीगेशन तत्कालीन भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ से मिलने दिल्ली गया था। तब उसे आश्वासन मिला था कि इस मामले में वे अवश्य ही कोई कार्यवाही करेंगे। पिछले साल मध्य प्रदेश की भाजपा ने दो बार जर्जर नेशनल हाईवे के लिए आंदोलन चलाने की घोषणा की। कभी मानव श्रंखला तो कभी हस्ताक्षर अभियान। दोनों ही बार मामला ‘‘सेट‘‘ हो गया और भाजपाध्यक्ष प्रभात झा अपनी घोषणा से मुकर गए। जनता को यह याद नहीं होगा किन्तु नेताओं के असली चेहरे उनके सामने लाना अत्यावश्यक है। पिछले साल जुलाई माह में सिवनी, बंडोल, छपारा शहर के अंदर के मार्गों को दुरूस्त करने के लिए कांग्रेस के विधायक हरवंश सिंह ठाकुर ने राशि स्वीकृत करवाई। पहली बार किसी जीर्णोद्धार के काम का भूमिपूजन किया गया। आज भी सिवनी में नगझर बायपास से शीलादेही बायपास तक सड़क पर सर्कस के ही बाजीगर चल पा रहे हैं।

01 नवंबर 2011, एक बार फिर सिवनी के लोगों की आशाएं जगीं। भूतल परिवहन मंत्री सी.पी.जोशी पधारे तत्कालीन भूतल परिवहन और वर्तमान शहरी विकास मंत्री कमल नाथ के द्वार। लोगों को लगा इस बार कांग्रेस के डेलीगेशन की झोली में एक अच्छा लुभावना, भड़कीला आश्वासन आएगा, जिससे कम से कम चार छः माह का समय तो काटा ही जा सकेगा। सिवनी के शूरवीर रणबांकुरे छिंदवाड़ा गए। सी.पी.जोशी की गिनती वैसे ही बहुत अख्खड़ राजनेताओं में है। उनका लट्टू कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की बेटरी से सीधे करंट पा रहा है। इसलिए वे किसी को भाव नहीं देते।
जोशी ने दो टूक शब्दों में कह ही डाला - ‘‘कमल नाथ जी से समय ले लो, पांच लोग दिल्ली आ जाओ। कमल नाथ जी के घर बैठकर बात कर समस्या निपटा लेंगे।‘‘ हमारे योद्धा खेत रहे। वे यह भी नहीं बोल पाए कि कमल नाथ जी सालों साल भूतल परिवहन मंत्री थे तब मामला उठा पर सुलट नहीं पाया, और आप अभी कमल नाथ जी के घर (छिंदवाड़ा) में ही हैं। कुल मिलाकर सड़क मामले में दुर्भाग्य यह रहा कि हमें आश्वासन भी नहीं मिला। हरि अनंत हरि कथा अनंता।

मीडिया से पींगे बढ़ा रहे गड़करी!


मीडिया से पींगे बढ़ा रहे गड़करी!

अध्यक्ष बनने के बाद पहली बार बदले नजर आए गड़करी

दीपावली मिलन के नाम पर मिले मीडिया से

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। महाराष्ट्र की सूबाई राजनीति से उठकर सीधे केंद्रीय राजनीति में पदार्पण करने वाले भाजपा के निजाम नितिन गड़करी ने अब मीडिया के प्रति अपनी सोच बदलना आरंभ कर दिया है। कल तक मीडिया से दूरी बनाने वाले गड़करी दीपावली मिलन के नाम पर पत्रकारों को दिए रात्रि भोज में पत्रकारों से काफी हद तक घुले मिले नजर आए। गड़करी को उनके सलाहकार ने मशविरा दिया है कि मीडिया से दूरी बनाकर वे ज्यादा दिन नहीं चल पाएंगे।

गड़करी के सरकारी आवास 13, तीन मूर्ति लेन में पत्रकार रात्रि भोज का निमंत्रण पाकर अचरज में थे। गड़करी के बदले बर्ताव से लोग हैरान थे। गड़करी सभी से बहुत आत्मीयता से मिल रहे थे और पत्रकारों को अपनी एक खास उपलब्धि बता रहे थे कि उन्होंने अपना ग्यारह किलो वजन कम कर लिया है। पत्रकार पार्टी में बहुत संभलकर चल रहे थे, पता नहीं गड़करी के मन में क्या है।

अपना टिफिन साथ लेकर खाने के शौकीन गड़करी ने पत्रकारों के साथ पार्टी में अपने आप को खाने की टेबिल से काफी दूर ही रखा। गड़करी के मीडिया एडवाईजर्स अशोक टंडन और राजकुमार शर्मा पत्रकारों के खैर मकदम में लगे रहे। रूढ़ी पत्रकारों से घुले मिले दिखे तो दूसरी ओर निर्मला सीतारमण पत्रकारों से गप्पयाती और ठहाके लगाती दिखीं। शहला मसूद कांड में घिरे सांसद तरूण विजय जरूर किनारा पकड़ने की नाकाम कोशिशें करते दिखे।

खाने की टेबिलों से महाराष्ट्र के व्यंजनों की खुशबू चारों ओर फैल रही थी। खाने के लिए गड़करी ने नागपुर से अपने पसंदीदा स्पेशल केटरर्स को बुला भेजा था। कुछ व्यंजन काफी हद तक मिर्च के साथ तीखे थे, सो पत्रकार सीसी करते नजर आए। वहीं मधुमेह के रोगी गड़करी ने अपने आप को तो मीठे से दूर रखा किन्तु पत्रकारों को मीठा व्यंजन दिल से परोसा गया। आईस्क्रीम इतनी सख्त थी कि उसे खाने में मीडिया के लोगों को पसीना चुचा गया।

सीएम बनना चाह रहे हैं बेनी वर्मा


सीएम बनना चाह रहे हैं बेनी वर्मा

बेनी का मेकओवर अभियान तेज

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस के केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा इन दिनों उत्तर प्रदेश पर अपना ध्यान सबसे ज्यादा केंद्रित कर रखे हैं। बेनी वर्मा के क्षेत्र गौंडा को अब दुल्हन जैसा सजाया जा रहा है। बेनी वर्मा के दो करीबियों के कांधों पर उनकी छवि निर्माण का जिम्मा सौंपा गया है। वर्मा के करीबियों का कहना है कि वे उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का सपना मन में पाले हुए हैं। यही कारण है कि अब वे पूर्व रेल मंत्री ममता बनर्जी की तर्ज पर दिल्ली में अपने मंत्रालय से ज्यादा समय उत्तर प्रदेश में बिता रहे हैं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार बेनी वर्मा के इलाके गौंडा में बड़ी तादाद में नलकूप खनन का काम किया जा रहा है। क्षेत्र में उनके बड़े बड़े होर्डिंग्स और बेनर पोस्टर्स देखते ही बन रहे हैं। गौंडा में आने वाले और वहां से निकलने वाले समाचार पत्र इन दिनों उनके विज्ञापनों से पटे पड़े हैं। इलेक्ट्रानिक मीडिया में भी उनका बोलबाला ही दिख रहा है।

पर्दे के पीछे से यह सारा काम वर्मा के दो सहयोगी संभाले हुए हैं। दरअसल बेनी के दोनों हाथ बने हुए हैं आर.सी.पी.सिंह और शीतल सिंह। आर.सी.पी.सिंह बेनी वर्मा के संचार मंत्री रहते उनके पीएस थे। दूसरे शीतल सिंह पत्रकार कम लाईजनर की भूमिका में हैं। सिंह युगल के कांधों पर चलकर बेनी वर्मा चाह रहे हैं कि वे अगले विधानसभा चुनावों में सूबे के निजाम की कुर्सी हथिया लें।

अधोसंरचना विकास में भी भांजी मारी झाबुआ पावर ने


घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 4

अधोसंरचना विकास में भी भांजी मारी झाबुआ पावर ने

चार साल में एक फीसदी से भी कम राशि का किया प्रावधान

आदिवासियों के हितों पर हो रहा कुठाराघात

प्रदेश सरकार को कितनी मिलेगी रायल्टी!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। भगवान शिव का जिला माने जाने वाले मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में थापर ग्रुप ऑफ कम्पनी के प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा आदिवासी बाहुल्य तहसील घंसौर के बरेला ग्राम में प्रस्तावित 600 मेगावाट के पावर प्लांट के प्रस्ताव में क्षेत्र के अधोसंरचना विकास में भी घालमेल किया जा रहा है। कम्पनी द्वारा आदिवासियों के हितों पर सीधा डाका डालकर स्कूल, उद्यान, अस्पताल आदि की मद में भी कम व्यय किया जाना दर्शाया गया है।

गौरतलब होगा कि इस पावर प्रोजेक्ट में प्रतिदिन दस हजार टन कोयला जलाकर उससे बिजली का उत्पादन किया जाना प्रस्तावित है। झाबुआ पावर लिमिटेड की प्रोजेक्ट रिपोर्ट के अनुसार इसके लिए 300 लोगों को रोजगार दिया जाना प्रस्तावित है। इन तीन सौ लोगों में कितने लोग स्थानीय और कितने स्किल्ड और अनस्किल्ड होंगे इस मामले में कंपनी ने पूरी तरह मौन ही साध रखा है।

केन्द्रीय उर्जा मन्त्रालय के सूत्रों का कहना है कि थापर ग्रुप ऑफ कम्पनीज के प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड के इस 1200 मेगावाट के पावर प्लांट के प्रथम चरण में 600 मेगावाट का पावर प्लांट लगाया जाना प्रस्तावित है। इस पावर प्लांट में निकलने वाली उर्जा के दुष्प्रभावों को किस प्रकार कम किया जाएगा इस बारे में कोई स्पष्ट बात नहीं कही गई है। इतना ही नहीं इस काम में इतना जबर्दस्त ध्वनि प्रदूषण होगा कि यहां काम करने वाले लोगों को इयर फोन आदि का प्रयोग करना ही होगा। इसके साथ ही साथ आसपास रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोग इसके ताप को सहन कर पाएंगे कि नहीं इस बारे में कहा नहीं जा सकता है।

इस परियोजना के पूरा होने तक चार सालों में अधोसंरचना विकास हेतु महज एक करोड रूपए की राशि प्रस्तावित की गई है, जिसे बहुत ही कम आंका जा रहा है। घंसौर में स्थानीय स्तर पर हुई जनसुनवाई के उपरांत कंपनी ने कितनी रकम किस मद में व्यय की है इस बारे में वह पूरी तरह से मौन साधे बैठी है। वैसे यहां पावर प्लांट लगाने वाली कंपनी द्वारा अस्पताल, स्कूल, बाग बगीचे आदि के लिए बहुत कम राशि का प्रावधान किया गया है। जानकारों का कहना है कि इस मद में एक से पांच प्रतिशत तक की राशि का प्रावधान किया जाना चाहिए था, ताकि इस परियोजना से होने वाले दुष्प्रभावों को कम करने के मार्ग प्रशस्त किए जाकर आदिवासियों को कुछ मुआवजा ही मिल पाता।

मजे की बात तो यह है कि इस पावर प्रोजेक्ट की स्थापना हेतु मध्य प्रदेश सरकार को कितनी रायल्टी मिलने वाली है, इस बात का भी खुलासा नहीं किया गया है। गौरतलब है कि उस वक्त हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा उस राज्य में स्थापित होने वाले पावर प्रोजेक्ट पर जितनी रायल्टी वर्तमान में प्रस्तावित थी, उससे इतर बिजली उत्पादन होने की दशा में प्रोजेक्ट से एक फीसदी की दर से अतिरिक्त रायल्टी लेने का प्रावधान किया गया है, इस राशि से पावर प्रोजेक्ट की जद में आने वाली ग्राम पंचायतों को गुलजार किया जाना प्रस्तावित है।

विडम्बना यह है कि आदिवासी बाहुल्य तहसील घंसौर के ग्राम बरेला में लगने वाले इस पावर प्लांट की कुल लागत कितनी है, कंपनी को स्थानीय क्षेत्र या जद में आने वाले गावों के विकास के लिए कितने फीसदी राशि का प्रावधान किया जाना है, राज्य सरकार को कितनी रायल्टी मिलेगी या फिर बिजली उत्पादन होने पर अतिरिक्त रायल्टी कितनी मिलेगी और कब तक मिलती रहेगी, इस बारे में कोई ठोस जानकारी न तो सरकार के पास से ही मुहैया हो पा रही है, और न ही कंपनी द्वारा पारदर्शिता अपनाते हुए बताया जा रहा है।

(क्रमशः जारी)

मंत्रियों की शाहखर्ची ने नाराज हैं कार्यकर्ता


बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 16

मंत्रियों की शाहखर्ची ने नाराज हैं कार्यकर्ता

जनता के सामने जवाब देते समय बगलें झांकते हैं कार्यकर्ता

पीएमओ पर होने वाला खर्च डाल रहा आश्चर्य में

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की कलई शनैः शनैः खुलने लगी है। मंदी के दौर के बावजूद केंद्र सरकार के मंत्रियों की शाहखर्ची से सरकारी खजाना तेजी से खाली हुआ है। विदेश दौरों के मामले में संप्रग के मंत्रियों ने राजग के मंत्रियों को पानी पिला दिया है। कार्यकर्ता हैरान परेशान है। जनता के बीच तो उसे ही जाना है, उधर इस तरह की खबरें कांग्रेस आलाकमान की पेशानी पर परेशानी की बूंदे छलका रही हैं। आलाकमान भी अब मानने लगी हैं कि मनमोहन अक्षम होने के साथ ही साथ भ्रष्टाचार के ईमानदार संरक्षक ही साबित हो रहे हैं।

अटल बिहारी बाजपेयी के शासनकाल में प्रधानमंत्री कार्यालय पर पांच सालों में 55 करोड़ रूपए व्यय किए गए। उस वक्त इस बजट को ही अधिक मानकर हो हल्ला हुआ था। इसके बाद पांच सालों में जब वैश्विक मंदी की मार भारत गणराज्य भी झेल रहा था तब पांच सालों में पीएमओ ने 85 करोड़ रूपए फूंक डाले। हद तो तब हुई जब संप्रग टू में अब तक प्रधानमंत्री कार्यालय सत्तर करोड़ रूपए फॅूक चुका है।

गौरतलब है कि वैसे भी मंत्रीगण जनता के पैसे पर एश करने के लिए बुरी तरह कुख्यात रहे हैं। जनता के द्वारा दिए गए करों से एकत्रित राजस्व को हवा में उड़ाने में न तो राजग के मंत्री पीछे रहे और न ही संप्रग के। तुलनात्मक अध्ययन में राजग के मंत्री किफायती साबित हुए हैं। राजग के पांच साल के शासनकाल में वाजपेयी सरकार के मंत्रियों ने विदेश यात्राओं पर 268 करोड़ रूपए खर्च किए तो उसके बाद मनमोहन सरकार के मंत्रियों ने पांच सालों में ही 546 करोड़ रूपए से अधिक विदेश यात्राओं में फूंक दिए।

विदेश यात्राओं का प्रेम संप्रग टू में भी जारी है। इस बार भी मंत्रियों ने तबियत से विदेश यात्राएं की और अभी अनेकों प्रस्ताव आज भी लंबित हैं। मंत्री लाख कहें कि वे सार्वजनिक संपत्ति में खर्च नहीं करेंगे पर यक्ष प्रश्न यही खड़ा है कि क्या वे इन यात्राओं में अपनी गांठ ढीली करेंगे। अनेकों बार मंत्रियों के साथ उद्योगपति होते हैं जो परोक्ष तौर पर उनकी सुविधाओं का पूरा पूरा ध्यान रखते हैं। अगर कोई उद्योगपति राष्ट्र के मंत्रियों पर व्यय करता है तो वह उसका कितना गुना उन मंत्रियों से वसूलेगा इस बारे में अंदाजा लगाना मुश्किल ही है।

(क्रमशः जारी)

आड़वाणी को पीएम नहीं देखना चाह रहे भाजपाई


उत्तराधिकारी हेतु रथ यात्रा . . . 10

आड़वाणी को पीएम नहीं देखना चाह रहे भाजपाई

मोदी, नितीश, शिवराज पर दांव लगाना चाह रहा संघ

युवाओं में नहीं आड़वाणी का क्रेज़

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस अब आड़वाणी को साईड लाईन करने की जुगत लगाने लगा है। भाजपा का युवा वर्ग तिरासी साल के आड़वाणी को पचाने की स्थिति मे नहीं है। युवाओं के मन में उमरदराज हो चुके आड़वाणी के प्रति अनुराग नहीं उमड़ पा रहा है। हालात देखकर लगने लगा है कि भाजपा और संघ दोनों ही मिलकर लाल कृष्ण आड़वाणी को प्रधानमंत्री नहीं देखना चाह रहा है।

भाजपा के अंदर चल रही बयार के अनुसार भाजपा के कार्यकर्ता ही आड़वाणी और उनकी रथ यात्रा के बारे में उत्साहित नहीं है। आड़वाणी के सामने तो कार्यकर्ता यह जताते हैं कि वे उन्हें पीएम बनवाना चाहते हैं किन्तु जब इसे अमली जामा पहनाने की बात आती है तब कार्यकर्ता चुप्पी साध लेते हैं।

संघ के सूत्रों का कहना है कि मुगालते की बजाए यथार्थ में ही जीना होगा। देश का तीन चौथाई मतदाता 35 साल की उमर से कम का है। अपेक्षाकृत युवाओं को तिरासी साल के उमर दराज आड़वाणी कतई रास नहीं आ रहे हैं। इस सबके अलावा पेंतीस साल से आड़वाणी ने जो चेहरा अपनाया था वह रातों रात तो बदला नहीं जा सकता है।

आजादी के उपरांत देश में संचार क्रांति चरम पर है। आज इंटरनेट, टीवी और मोबाईल का युग है, इसमें रथ यात्रा जैसे बाबा आदम के जमाने के निष्प्रभावी अस्त्र कब तक काम करेंगे। संसद की कार्यवाही भी अब घरों घर समाचार चेनल्स के माध्यम से पहुंच रही है। इन परिस्थितियों में संसद में सरकार के सामने कथित तौर पर घुटने टेकने के बाद रथ यात्रा का ओचित्य लोगों को समझ नहीं आ पा रहा है।

(क्रमशः जारी)

आईडिया को संचार मंत्रालय ने दिया था कारण बताओ नोटिस


एक आईडिया जो बदल दे आपकी दुनिया . . .  12

आईडिया को संचार मंत्रालय ने दिया था कारण बताओ नोटिस

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। टू जी स्पेक्ट्रम मामले में कथित तौर पर अपनी मुगलई चलाने वाले आदित्य बिरला गु्रप की मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनी आईडिया द्वारा संचार मंत्रालय को अपने घर की लौंडी समझा जाने लगा था। संचार मंत्रालय के निर्देशों की सरेआम अव्हेलना करना आईडिया सेल्यूलर का प्रमुख शगल बनकर रह गया था। इस साल मई माह में संचार मंत्रालय ने आईडिया को आड़े हाथों लेकर एक नोटिस जारी किया था।

आंध्र प्रदेश व कर्नाटक में सेवा शुरू करने में विलम्ब होने पर दूरसंचार मंत्रालय ने आइडिया सेल्युलर और स्पाइस कम्युनिकेशंस को मई माह में नोटिस जारी किया था। दोनों कंपनियों को 60 दिन के अंदर नोटिस का जवाब देने को कहा गया और जारी नोटिस में कंपनियों से पूछा गया है कि क्यों न उनके लाइसेंस रद्द कर दिए जाएं।

दूरसंचार विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार दूरसंचार नियामक ट्राई ने दोनों कंपनियों द्वारा समय पर सेवा शुरू नहीं किए जाने पर पांच राज्यों में उनके लाइसेंस रद्द किए जाने की सिफारिश की है। इससे पहले, सरकार ने लाइसेंस समझौते के तहत आइडिया और स्पाइस समेत कई नई कंपनियों से समय पर सेवा शुरू नहीं करने को लेकर जुर्माने के रूप में करीब 300 करो़ड रूपये वसूल किए और, जुर्माना लेने के बाद उनके लाइसेंस रद करने के नोटिस दिए थे। गौरतलब है कि दोनों कंपनियों को इन सर्किलों के लिए पूर्व टूजी मामले में फंसे दूरसंचार मंत्री ए. राजा के कार्यकाल में वर्ष 2008 में लाइसेंस दिया गया था। आइडिया ने वर्ष 2008 में स्पाइस को खरीदा था, लेकिन विलय के बारे में उसे अब तक दूरसंचार विभाग से मंजूरी नहीं मिली थी।

(क्रमशः जारी)