अफसोस इस बार तो आश्वासन भी नहीं मिल सका . . .
(लिमटी खरे)
देश का हृदय प्रदेश कहलाता है मध्य प्रदेश। मध्य प्रदेश की स्थापना 01 नवंबर 1956 को हुई उसी दिन जन्म हुआ था भगवान शिव के सिवनी का। नब्बे के दशक के आगाज के साथ ही जैसे जैसे कांग्रेस की कद्दावर नेता सुश्री विमला वर्मा ने सक्रिय राजनीति से किनारा किया वैसे ही जिले पर दुर्भाग्य ने अपना काला स्याहा बढ़ाना आरंभ किया। एक के बाद एक झटकों के बाद अब आभावों में जीने के आदी हो चुके हैं सिवनीवासी। 2008 से सिवनी में स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क गलियारे के अंग उत्तर दक्षिण कारीडोर का काम रूका हुआ है। इसमें माननीय न्यायालय का भय बताकर लोगों को भ्रमित भी किया गया। अब साल भर होने का आ रहा है जबकि मामला माननीय उच्चतम न्यायालय ने वाईल्ड लाईफ बोर्ड के पाले में भेज दिया है, जो कि न्यायिक संस्था नहीं है फिर भी काम आरंभ नहीं हो सका है। एमपी के 56वें बर्थडे पर पूर्व भूतल मंत्री कमल नाथ की कर्मभूमि छिंदवाड़ा आए केंद्रीय भूतल परिवहन सी.पी.जोशी ने सिवनी के रणबांकुरों को आश्वासन भी नहीं दिया कि वे कुछ करेंगे।
इस देश में शायद ही एसा कोई व्यक्ति होगा जो मोगली बालक को नहीं जानता होगा। द जंगल बुक के हीरो मोगली को लोगों ने नब्बे के दशक के पूर्वाध में तब पहचाना था जब सुबह सवेरे दूरदर्शन पर ‘‘जंगल जंगल पता चला है, चड्डी पहन के फूल खिला है‘‘ का कर्णप्रिय गीत बज उठता था। हर उमर के लोगों का चहेता बन गया था मोगली। इसी मोगली की जन्म और कर्मस्थली है सिवनी जिला। आज सिवनी के लोग गर्व से अपना सर उठाकर कहते हैं कि वे मोगली के क्षेत्र के निवासी हैं। मोगली ने सिवनी जिले को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलवाई है। जैसे सीमावर्ती छिंदवाड़ा जिले को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर केंद्रीय मंत्री कमल नाथ के लिए जाना जाता है उसी तरह सिवनी भी छिंदवाड़ा से कहीं उन्नीस नहीं बैठता। सिवनी का नाम मोगली के कारण देश के हर कोने में है। इसके बाद महर्षि महेश योगी, आचार्य रजनीश का भी सिवनी के प्रति लगाव रहा है। जगत गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी सरस्वती की जन्म स्थली भी सिवनी ही है। देश विदेश के आध्यात्मिक क्षितिज पर अपना परचम लहराने वाले स्वामी प्रज्ञानंद, स्वामी प्रज्ञनानंद, आबू वाले बाबा आदि के नामों से अटा पड़ा है सिवनी का इतिहास।
अनेक एतिहासिक और महान विभूतियों की स्मृतियों को अपने आंचल में सहेजने वाले सिवनी जिले का दुर्भाग्य नब्बे के दशक से ही आरंभ हुआ जब राजनैतिक तौर पर कमान अपरिपक्व, स्वार्थी, स्वकेंद्रित लोगों के हाथों में जाने लगी। इसके उपरांत ही सिवनी में सियासी तौर पर भी नैतिक पतन का श्रीगणेश हुआ। यह पतन महज राजनैतिक तौर पर नहीं आया। हर क्षेत्र में पतन दर्ज किया गया। इक्कीसवीं सदी के आगाज के साथ ही सिवनी में मानो सब कुछ समाप्त ही हो गया। सिवनी के विकास का क्रम पूरी तरह अवरूद्ध हो गया। क्या ब्राडगेज, क्या आयुर्विज्ञान महाविद्यालय (मेडीकल कालेज), क्या फोरलेन, हर मामले में भगवान शिव के जिले के भोले भाले निवासियों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया गया।
28 अगस्त 2005 को बिलासपुर के सांसद पुन्नू लाल माहोले ने अतारांकित प्रश्न संख्या 4502 के तहत चार बिन्दुओं पर जानकारी चाही थी। इसमें बिलासपुर से मण्डला होकर नैनपुर और नैनपुर से सिवनी होकर छिंदवाड़ा रेलमार्ग के अमान परिवर्तन की जानकारी चाही गई थी। इसके जवाब में तत्कालीन रेल राज्यमंत्री आर.वेलू ने पटल पर जानकारी रखते हुए कहा था कि नैनपुर से बरास्ता छिंदवाड़ा के 139.6 किलोमीटर खण्ड का छोटी लाईन से बड़ी लाईन में परिवर्तन हेतु 2003 - 04 में सर्वेक्षण किया गया था। सर्वेक्षण प्रतिवेदन के अनुसार इस परियोजना की लागत ऋणात्मक प्रतिफल के साथ 228.22 करोड़ रूपए आंकी गई थी। वेलू ने यह भी कहा था कि इस प्रस्ताव की अलाभकारी प्रकृति, चालू परियोजनाओं के भारी थ्रोफारवर्ड एवं संसाधनों की अत्याधिक तंगी को देखते हुए स्वीकार नहीं किया जा सका। इसके बाद बार बार रेल बजट में छिंदवाड़ा से सिवनी होकर नैनपुर तक अमान परिवर्तन का झुनझुना सिवनी वासियों को दिखाया जाता रहा। कांग्रेस और भाजपा ने इसका पालीटिकल माईलेज लेने की गरज से विज्ञापनों की बौछार कर दी। आज नवंबर 2011 में भी एक इंच काम आरंभ नहीं हो सका है।
कमोबेश यही आलम देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ किसानों के मामले में है। किसानों के लिए सरकार की महात्वाकांक्षी पेंच परियोजना में भी सियासी दलों ने गुमराह करने के अलावा और कुछ नहीं किया है। कांग्रेस और भाजपा एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप के दौर चला रही है। विधायकों के विज्ञप्तिवीर गुर्गे जनता को गुमराह करने की गरज से न जाने कहां कहां की बातें शिगूफे हवा में उछाल रहे हैं। कांग्रेस कहती है विधायक हरवंश सिंह 35 साल से इस परिजयोना के लिए प्रयासरत हैं। पेंतीस साल में वर्तमान आठ साल और सुंदर लाल पटवा की सरकार के ढाई साल छोड़ दिए जाएं तो साढ़े चोबीस साल कांग्रेस का शासन रहा। क्या कारण है कि कांग्रेस के शासन काल में कांग्रेस के विधायक हरवंश सिंह इस परियोजना को मूर्तरूप नहीं दिलवा पाए? क्या कारण है कि पेंतीस सालों में इस परियोजना में एक ईंट भी नहीं जोड़ी जा सकी? वहीं दूसरी ओर रही बात भाजपा की तो। प्रदेश में नब्बे के दशक से अब तक के अपने साढ़े दस साल के कार्यकाल में सिवनी जिले के शूरवीर भाजपा विधायकों ने किसानों के हितों की बात विधानसभा या लोकसभा में उठाने की जहमत आखिर क्यों नहीं उठाई? क्या यह जनता के जनादेश का सीधा सीधा अपमान नहीं है? आखिर कब तक किसानों और जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर सत्ता की मलाई का सुख उठाएंगे जनसेवक?
अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में राजग सरकार की महात्वाकांक्षी स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे में सिवनी जिले में काम 2008 से बाधित है। विधानसभा चुनावों के दौरान आचार संहिता के दौरान ही सारे खेल हो गए किसी को कानों कान खबर तक नहीं लगी। तत्कालीन जिलाधिकारी पिरकीपण्डला नरहरि के हस्ताक्षरों से 18 दिसंबर 2008 को जारी और 19 दिसंबर को पृष्ठांकित पत्र में सर्वोच्च न्यायालय की साधिकार समिति के सदस्य सचिव के पत्र (जो वस्तुतः मध्य प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को लिखा गया था जिला कलेक्टर को नहीं) पर मोहगांव से खवासा तक झाड़ कटाई का काम रोक दिया गया। जब झाड़ ही नहीं कट पाएंगे तो भला सड़क क्या बनेगी। जब इस पत्र को वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों को दिखाया गया तो उन्होंने इस तरह के पत्र पर काम रोकने को अनुचित ही ठहराया।
एक एनजीओ द्वारा मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचाया गया। सिवनी का पक्ष भी यहां के समूहों द्वारा न्यायालय में रखा गया। अंत में इस साल माननीय न्यायालय ने मामले को वाईल्ड लाईफ बोर्ड के पास भेज दिया। गौरतलब है कि वाईल्ड लाईफ बोर्ड कोई न्यायिक संस्था नहीं है। यह सब होने के बाद भी जिले की जनता का वोट लेकर विधानसभा और लोकसभा में बैठने वाले जनता के नुमाईंदे खामोश हैं? उनकी खामोशी क्या बयां कर रही है? क्या वे किसी नेता विशेष से भयाक्रांत हैं? क्या नेता विशेष सिवनी की जनता जनार्दन जिसने इन नेताओं को सर आखों पर बिठाया से कद में बड़े हो गए?
इसी दौरान केंद्रीय मंत्री कमल नाथ पर यह आरोप भी लगे कि उन्होंने ही इस काम में अडंगा लगवाया है। वे इस मार्ग को लखनादौन से हर्रई, अमरवाड़ा, छिंदवाड़ा, चौरई के रास्ते नागपुर ले जाना चाह रहे थे। कमोबेश इसी आशय का वक्तव्य उन्होंने राज्य सभा में भी दिया था। फिर फिजां में एक बात तैरी कि यह रास्ता सिवनी से चौरई, छिंदवाड़ा, सौंसर होकर छिंदवाड़ा जाएगा। आज सिवनी से खवासा होकर नागपुर मार्ग इतना जर्जर हो चुका है कि लोग सिवनी से छिंदवाड़ा सौंसर के रास्ते ही नागपुर जाने पर मजबूर हैं।
बहरहाल कांग्रेस का एक डेलीगेशन तत्कालीन भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ से मिलने दिल्ली गया था। तब उसे आश्वासन मिला था कि इस मामले में वे अवश्य ही कोई कार्यवाही करेंगे। पिछले साल मध्य प्रदेश की भाजपा ने दो बार जर्जर नेशनल हाईवे के लिए आंदोलन चलाने की घोषणा की। कभी मानव श्रंखला तो कभी हस्ताक्षर अभियान। दोनों ही बार मामला ‘‘सेट‘‘ हो गया और भाजपाध्यक्ष प्रभात झा अपनी घोषणा से मुकर गए। जनता को यह याद नहीं होगा किन्तु नेताओं के असली चेहरे उनके सामने लाना अत्यावश्यक है। पिछले साल जुलाई माह में सिवनी, बंडोल, छपारा शहर के अंदर के मार्गों को दुरूस्त करने के लिए कांग्रेस के विधायक हरवंश सिंह ठाकुर ने राशि स्वीकृत करवाई। पहली बार किसी जीर्णोद्धार के काम का भूमिपूजन किया गया। आज भी सिवनी में नगझर बायपास से शीलादेही बायपास तक सड़क पर सर्कस के ही बाजीगर चल पा रहे हैं।
01 नवंबर 2011, एक बार फिर सिवनी के लोगों की आशाएं जगीं। भूतल परिवहन मंत्री सी.पी.जोशी पधारे तत्कालीन भूतल परिवहन और वर्तमान शहरी विकास मंत्री कमल नाथ के द्वार। लोगों को लगा इस बार कांग्रेस के डेलीगेशन की झोली में एक अच्छा लुभावना, भड़कीला आश्वासन आएगा, जिससे कम से कम चार छः माह का समय तो काटा ही जा सकेगा। सिवनी के शूरवीर रणबांकुरे छिंदवाड़ा गए। सी.पी.जोशी की गिनती वैसे ही बहुत अख्खड़ राजनेताओं में है। उनका लट्टू कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की बेटरी से सीधे करंट पा रहा है। इसलिए वे किसी को भाव नहीं देते।
जोशी ने दो टूक शब्दों में कह ही डाला - ‘‘कमल नाथ जी से समय ले लो, पांच लोग दिल्ली आ जाओ। कमल नाथ जी के घर बैठकर बात कर समस्या निपटा लेंगे।‘‘ हमारे योद्धा खेत रहे। वे यह भी नहीं बोल पाए कि कमल नाथ जी सालों साल भूतल परिवहन मंत्री थे तब मामला उठा पर सुलट नहीं पाया, और आप अभी कमल नाथ जी के घर (छिंदवाड़ा) में ही हैं। कुल मिलाकर सड़क मामले में दुर्भाग्य यह रहा कि हमें आश्वासन भी नहीं मिला। हरि अनंत हरि कथा अनंता।