रविवार, 11 अक्टूबर 2009

कहां खो गया कांग्रेस का चाणक्य!


ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

कहां खो गया कांग्रेस का चाणक्य!

एक समय था जब देश की राजनीति में कुंवर अर्जन सिंह को कांग्रेस की आधुनिक रजनीति का चाणक्य माना जाता था। देश में उनकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिल पाता था। खतो खिताब की राजनीति के जनक अर्जुन सिंह चाहे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हों या पंजाब के राज्याल या फिर केंद्र में मंत्री कोई भी उनसे पंगा लेने का साहस नहीं कर पाता था। जब अजंZन सिंह केंद्र की राजनीति में सक्रिय हुए तो आज के सबसे ताकतवर राजनेता अहमद पटेल, दिग्विजय सिंह, अिम्बका सोनी, जनार्दन द्विवेदी, राजीव शुक्ला जैसे धुरंधर अर्जुन सिंह का कीर्तन कर उनके नाम की माला जपते नहीं थकते थे। आज उनके पोषकों ने ही उन्हें राजनैतिक बियाबान से उठाकर किनारे करने में कसर नहीं रख छोड़ी है। अर्जुन सिंह के लगाए पौधे आज बट वृक्ष बन चुके हैं, विडम्बना यह है कि ये सारे बट वृक्ष आज सूरज का प्रकाश अर्जुन सिंह तक नहीं पहुंचने दे रहे हैं। यही कारण है कि सूरज की रोशनी के अभाव में पिछले कुछ माहों से अर्जुन सिंह का वृक्ष पूरी तरह कुम्हला गया है।



शस्त्रों से खेलते सरकारी परिवार

मध्य प्रदेश में आजकल काफी उथल पुथल मची हुई है। इसका कारण सरकारी अस्त्रों के साथ सरकारी तंत्र में शामिल नुमाईंदों के परिवारों द्वारा खिलवाड़ किया जाना है। कुछ दिनों पूर्व पुलिस अधीक्षक जयदीप प्रसाद के नाबालिग पुत्र द्वारा सरकारी बंदूक एके 47 से हवाई फायर किया था। इसके बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उनकी पित्न साधना एवं पुत्र के हाथों में सरकारी बंदूकों के छाया चित्र विवाद को जन्म दे रहे हैं। इस दौरान शिवराज ने हवाई फायर भी किया था। एक तरफ तो केंद्र सरकार द्वारा एके 47 जैसी बंदूकों की गोलियों की कमी के चलते इसमें किफायत की सलाह दी जा रही है, वहीं दूसरी ओर राज्य में एसपी के नाबालिक बेटे द्वारा सरेआम बिना लाईसेंस इससे गोली दागी जा रही है। कहने को तो महज छ: इंच के चाकू रखने पर आपके खिलाफ पुलिस आर्मस एक्ट के तहत मामला पंजीबद्ध कर सकती है, किन्तु ``समरथ को नही दोष गोसाईं``। इसके पहले भी भोपाल की एक समाज सेवी आरती भदोरिया के जन्म दिवस पर उनके अंगरक्षक द्वारा किए गए हवाई फायर के उपरांत पुलिस ने उस पर बाकायदा मुकदमा दायर किया था।



केबनेट बंक करने पर आमदा मंत्री

कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी को राजनीति की क्लास से बंक करने में आनंद आता है तो उनके मंत्री भला उनके पदचिन्हों पर क्यों न चलें। इस गुरूवार को प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने मंत्रीमण्डल समिति की बैठक (केबनेट) आहूत की, जिसमें आधे से अधिक मंत्री गायब रहे। तीन सूबों में विधानसभा चुनाव होने हैं, किन्तु कांग्रेस का सबसे अधिक ध्यान महाराष्ट्र पर ही नजर आ रहा है। अधिकतर मंत्री महाराष्ट्र में ही डेरा डाले हुए हैं। कृषि मंत्री शरद पंवार, नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल, उर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे, भारी उद्योग मंत्री विलास राव देशमुख, पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा, पीएमओ में राज्य मंत्री पृथ्वीराज चौहान, सामाजिक न्याय मंत्री मुकुल वासनिक, दूरसंचार मंत्री गुरूदास कामत, सामाजिक न्याय राज्य मंत्री प्रतीक पटेल इस केबनेट से गायब रहे। चर्चा है कि इन मंत्रियों के दिल्ली से बाहर रहने और मंत्रालयों के कामकाज पर ध्यान न देने से मंत्रालयों के कामकाज पर जबर्दस्त असर पड़ रहा है। सूबों में कांग्रेस की सरकार बने न बने यह तय है कि इन मंत्रियों के इस तरह के रवैए से देश विकास के मार्ग पर मंथर गति से ही चल पाएगा।



मुसलमीनों से युवराज को परहेज

कांग्रेस के युवराज और कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी के राजनैतिक प्रबंधकों ने भले ही दलितों के घर युवराज को रात रूकवाकर मीडिया की सुर्खियों में ला दिया हो किन्तु हाल ही में आल इंडिया यूनाईटेड मुस्लिम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ.एम.ए.सिद्दकी ने राहुल गांधी को दलित मुसलमानों के घर रात गुजारने का मशविरा देकर नई बहस को जन्म दे दिया है। इतिहास गवाह है साल दर साल कांग्रेस का एक बड़ा वोट बैंक रहा है मुसलमीन (मुसलमानों के लिए एक पीर द्वारा उपयोग किया जाने वाला शब्द)। पिछले दो दशकों से मुसलमानों का कांग्रे्रस से मोहभंग होता जा रहा है, यह बात भी सच ही है। क्षेत्रीय दलों ने इस बड़े वोट बैंक में सेंध लगाकर कांग्रेस को जबर्दस्त झटका भी दिया है। यह बात भी साफ हो गई है कि राहुल गांधी मुसलमानों के घरों पर रूकने से परहेज ही कर रहे हैं। अब राहुल के प्रतिद्वंदी इस बात को हवा देने में लग गए हैं। एआईसीसी में व्याप्त चर्चाओं के अनुसार राहुल को दलित गरीब मुसलमान के घर पर रूककर उसकी उजड़ी रसोई के दीदार भी करें, कि आधी सदी से ज्यादा देश पर शासन करने वाली कांग्रेस ने देश के गरीबों को क्या दिया है। चूंकि अमीर सांसदों, उद्योगपतियों के घरों पर होने वाली नौ लखा दावतों का लुत्फ तो काफी हद तक उठा चुके हैं, राहुल। अब उन्हें दलित मुसलमानों से परहेज नहीं करना चाहिए।



शोरी की मुश्कें कसने को बेताब हैं राजनाथ

एक समय में बोफोर्स के नाम पर पत्रकारिता के आकाश में पहुंचने वाले अरूण शोरी के मन में अब वही पत्रकार वाला कीड़ा कुलबुलाता दिख रहा है। यही कारण है कि वे अब पार्टी लाईन से हटकर पार्टी के बारे में अपने विचार खुलकर व्यक्त करने लगे हैं। पिछले दिनों उन्होंने एक निजी समाचार चेनल को दिए साक्षात्कार में पार्टी प्रमुख राजनाथ सिंह को ``हंप्टी डंप्टी`` कहकर सभी को चौंका दिया था। अरूण शोरी के साहस को देखकर चंदन मित्रा ने भी ताल ठोंकनी आरंभ कर दी है। पार्टी प्रमुख राजनाथ सिंह इससे खासे परेशान बताए जा रहे हैं। राजनाथ के सलाहकारों ने उन्हें मशविरा दिया कि वे पार्टी के मुखपत्र ``कमल संदेश`` के माध्यम से शोरी और मित्रा को साईज में लाएं। कमल संदेश के पिछले अंक में संपादकीय काफी करारी लिखी गई है, जिसमें उल्लेख किया गया है कि कुछ पत्रकार एसे भी हैं जो भाजपा को चलाना चाहते हैं, यह बात तो समझ में आती है कि बतोर पत्रकार आप सलाह दें, किन्तु यह संभव नहीं है कि आपकी सलाह पर ही भाजपा चले। एक नहीं अनेकों नसीहतें दी गई हैं, पत्रकार से नेता बने भाजपाईयों को। राजनाथ के कड़े तेवर देखकर अभी तो शोरी और मित्रा खामोश हैं, पर आने वाले समय में क्या होगा कुछ कहा नहीं जा सकता है।



ठेके पर स्कूल

एक ओर केंद्र और राज्यों की सरकारें नौनिहालों को शिक्षित करने के लिए एडी चोटी एक करने का प्रयास कर रहीं है, वहीं दूसरी ओर जमीनी हकीकत देखकर लगने लगा है कि केंद्र और सूबे की सरकारें सरकारी धन को आग लगाने की नौटंकी से अधिक कुछ नहीं कर रही हैं। मध्य प्रदेश के खण्डवा जिले के पुनावा ब्लाक की सुरगांव बंजारी प्राथमिक शाला में एक प्राचार्य ने अपना पद ही ठेके पर दे दिया। इस गांव में प्राचार्य हमेशा ही नदारत रहा करते थे। उन्होंने अपनी कुर्सी संभालने की जवाबदारी एक चरवाहे को दे दी थी। शाला के प्राचार्य ने बकायदा कुछ राशि माहवार तय कर उस चरवाहे को अपनी कुर्सी पर बिठा दिया था। मजे और आश्चर्य की बात तो यह रही कि शाला के शिक्षक और अन्य कर्मचारी उस चरवाहे के आदेश का उसी तरह पालन करते थे जैसे कि वे प्राचार्य के आदेशों का पालन करते हों। यह सारी बातें मनगढंत कहानी नहीं बल्कि शिक्षा विभाग के एक जांच दल को मिली शिकायत के बाद हुई जांच में सामने आई हकीकत है। बाद में उस प्राचार्य को निलंबित कर दिया गया। देश भर में ग्रामीण अंचलों में न जाने कितने चरवाहे, दूधवाले, खोमचेवाले शालाओं की कमान संभाले होंगे इसका अंदाजा लगाना मुश्किल ही है।



सोनिया का उपहास उड़ातीं शीला

मितव्ययता का संदेश देकर कम से कम कांग्रेस के लोगों को सुधारने के सोनिया गांधी की चीत्कार की गूंज दिल्ली सूबे में ही नहीं पहुंच पा रही है तो शेष भारत के कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की कौन कहे। दिल्ली में तीसरी बार काबिज हुईं श्रीमति शीला दीक्षित के मातहत ही सोनिया की अपील और दिशा निर्देशों का खुले आम माखौल उड़ा रहे हैं। दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष योगानंद शास्त्री और विधानसभा सचिव सिद्धार्थ राव एक सप्ताह के लिए तंजानिया उड़ गए। इन दोनों की इस यात्रा पर ज्यादा नहीं महज 14 लाख रूपए खर्च होंगे। इतना ही नहीं दिल्ली सरकार के दो मंत्रियों की सत्य सदन स्थित कोठियों को ``रहने लायक`` बनाने के लिए भी ज्यादा नहीं महज पचास लाख रूपए ही खर्च किए जा रहे हैं। उद्योग मंत्री मंगतराम सिंघल के सरकारी आवास की फ्लोरिंग के लिए भी महज 15 लाख रूपयों की दरकार है। स्वास्थ्य मंत्री किरण वालिया की कोठी को चकाचक करने के लिए भी बस 25 लाख रूपए ही खर्च होना प्रस्तावित बताया जा रहा है। एसा नहीं कि राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी की मितव्ययता की अपील का इन मंत्रियों पर कोई असर नहीं हुआ हो। सभी विधायकों ने अपने अपने वेतन का 20 फीसदी कटवाना आरंभ कर दिया है, किन्तु बंग्लों के मामले में उनकी राय सोनिया से जुदा ही नजर आ रही है।



भूख से मरती युवराज की रियाया

कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी देश भर में घूम घूम कर भारत की खोज में लगे हुए हैं, वहीं उनके संसदीय क्षेत्र में लोग भूख से मर रहे हैं। बहुत पहले एक लघु कथा को कवि सम्मेलनों में सुनाया जाता था कि एक व्यक्ति बहुत ही बड़बोला था, कभी जर्मनी तो कभी अमेरिका की बातें कर वहां के मंत्रियों प्रधानमंत्री आदि के बारे में लोगों से पूछकर उन्हें शर्मसार किया करता था। अंत में वह कहता कि कभी बाहर घूमो तो जानो। एक शरारती बच्चे ने उससे ही उल्टे पूछ लिया ``राम लाल को जानते हो``। उसने इंकार से सर हिलाया तब वह बच्चा बोला ``कभी घर में भी रहो तो जानो``। इसी तर्ज पर राहुल गांधी देश भर की चिंता कर रहे हैं, पर अमेठी में हुई दलित नंदलाल की मौत के बारे में खामोशी की चादर आढे हुए हैं। अमेठी दौरे पर गए राहुल से उसने मदद की गुहार भी लगाई थी, किन्तु उसे आश्वासन के अलावा और कुछ नहीं मिला, मिलता भी कैसेर्षोर्षो राहुल को देश भर की जो फिकर सता रही है, सो घर की चिंता कौन करे



घर से बाहर निकलने से कतराती तीरथ

देश की आधी से अधिक आबादी के हितों और विकास के लिए जिम्मेदार केंद्र सरकार का महिला विकास मंत्रालय की महती जवाबदारी संभालने वाली संसद सदस्य कृष्णा तीरथ को अपने संसदीय क्षेत्र से बाहर निकलने की फुर्सत ही नहीं मिल पा रही है। कितने आश्चर्य की बात है कि तीरथ दिल्ली में घर बैठे बैठे ही पचास करोड़ से अधिक की आबादी की चिंता कर रही हैं, यहीं बैठकर वे ढेर सारी योजनाओं को अमली जामा भी पहनाने से नहीं चूक रही हैं। केंद्र सरकार के सौ दिनी एजेंडे को पलीता लग गया। सरकार के गठन के पांच माह बाद भी तीरथ ने देश के अन्य हिस्सों में जाने की जहमत ही नहीं उठाई है। लगता है कि महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) कृष्णा तीरथ द्वारा गणेश परिक्रमा के महत्व को समझ लिया है। यही कारण है कि उनके लिए समूचा देश सिमटकर 10 जनपथ (श्रीमति सोनिया गांधी का सरकारी आवास) और 12 तुगलक लेन (राहुल गांधी का सरकारी आवास) में आ बसा है।



राजेंद्र शायद ही भुना पाएं विरासत

देश की पहली नागरिक महामहिम प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के पुत्र राजेंद्र सिंह शेखावत के लिए अमरावती विधानसभा का चुनाव काफी मंहगा साबित होता नजर आ रहा है। एक ओर उन्हेें माता जी की विरासत को बचाए रखना है, वहीं दूसरी ओर दो बार के विधायक रहे सुनील देशमुख निर्दलीय तौर पर उनके लिए परेशानी का सबब बन चुके हैं। कांग्रेस ने भले ही राजेंद्र बाबू को टिकिट दे दी हो पर कांग्रेस महासचिव राजा दिग्विजय सिंह के तरकश से निकले जहर बुझे तीरों से बच पाना उनके लिए मुश्किल ही दिख रहा है। आलम यह है कि प्रदेश कांग्रेस अमरावती से दूर ही दूर नजर आ रही है। सुनील देशमुख सरेआम यह कहते घूम रहे हैं कि राजेंद्र शेखावत को टिकिट उनकी माता प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने दिलवाई है। वहीं राजेंद्र शेखावत का कहना है कि उन्हें टिकिट उनकी मां ने नहीं वरन कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी ने खुद ही दी है। प्रतिभा पाटिल महामहिम हैं, उनके नाम का उपयोग बहुत ही संभलकर करना होगा राजेंद्र शेखावत को, वरना प्रोटोकाल टूटते ही राजेंद्र बाबू को लेने के देने न पड़ जाएं।



प्रफुल्ल पटेल का बदला जा सकता है मंत्रालय

नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल को जल्द ही इस महकमे से मुक्त कर नई जवाबदारी दी जा सकती है। महाराष्ट्र के चुनावों के बाद प्रधानमंत्री अपने पत्ते फेंट सकते हैं। वैसे भी शशि थुरूर, एम.एस.कृष्णा, ममता बेनर्जी पहले से ही उनकी नापसंदगी वाली सूची में शामिल हो चुके हैं, अब पटेल की कार्यप्रणाली से उन पर गाज गिरने की संभावनाएं बढ़ती दिख रही है। पहले जेट फिर एयर इंडिया की हड़ताल से पीएमओ नाखुश ही है। बताते हैं कि पीएम का मानना है कि पायलट हडताल को पटेल ने ठीक तरीके से ``हेंडल`` नहीं किया वरना हालात कुछ ओर होते। प्रधानमंत्री आवास के सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने प्रफुल्ल पटेल को साफ शब्दों में चेतावनी दे दी है कि वे अपना रवैया बदल दें वरना महाराष्ट्र चुनाव के बाद उनका मंत्रालय ही बदल दिया जाएगा। उधर कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ के सूत्रों ने कहा कि महाराष्ट्र चुनावों के नतीजों के बाद अगर वहां राकांपा की स्थिति कमजोर रही तो हो सकता है कि पटेल को महत्वहीन मंत्रालय ही थमा दिया जाए।



पुच्छल तारा

देश का कोई भी कोना एसा नहीं होगा जहां आप भिखारियो से रूबरू न होएं। अक्सर हम सिनेमा में यही देखते हैं जिसमें कोई भी पात्र यही कहता है कि गरीबी से बड़ा जुर्म और कोई नहीं है। क्या गरीबी जुर्म हैर्षोर्षो इस बारे में एक जनहित याचिका उच्च न्यायालय में दाखिल की गई है। इस याचिका में बाम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट को भी चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया है कि गरीबी कोई जुर्म नहीं है और अगर कोई गरीबी के कारण भीख मांगता है तो उसे क्राईम नहीं करार दिया जाना चाहिए, और इस आधार पर उसे गिरफ्तार कर सजा नहीं दी जानी चाहिए। कोर्ट ने इस याचिका पर सरकार से पूछा है कि क्या भीख मांगना क्राईम है