शनिवार, 7 नवंबर 2009



शिव बनने लगे हैं ``राज``

(लिमटी खरे)

मध्य प्रदेश के सूबेदार शिवराज सिंह चौहान अब राज ठाकरे और शीला दीक्षित के नक्शे कदम पर चलते दिख रहे हैं। सूबाई हुकूमत को बरकरार रखने की गरज से राजनेताओं द्वारा असंयमित भाषा का प्रयोग कोई नया नहीं है। इसके पहले भी दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित द्वारा उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के खिलाफ जहर उगला था।


मध्य प्रदेश के सतना में आयोजित एक कार्यक्रम में कथित तौर पर कहा कि मध्य प्रदेश में नौकरियों के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश के निवासियों का स्वागत नहीं किया जाएगा। खबरों के अनुसार चौहान ने कहा है कि कारखाने सतना में लगें और उसमें नौकरी यूपी बिहार के लोग करें यह नहीं चलेगा।


इसके पहले दिल्ली की सत्ता पर तीसरी बार काबिज होने वाली मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित ने बदरपुर में एक कार्यक्रम में भी कुछ वक्तव्य देकर विवाद खडा कर दिया था। बकौल शीला दीक्षित -``दशकों से दिल्ली का अव्यवस्थित विकास हुआ है। बाहर से लोग आते हैं, और जहां मन होता है बैठ जाते हैं।`` शीला दीक्षित का यह बयान पूरी तरह गैर जिम्मेदाराना था। देखा जाए तो वे भी उत्तर प्रदेश से ही आईं हैं और दिल्ली पर एक दशक से हुकूमत कर रहीं हैं।


अपना इस तरह का बचकाना बयान देने के पहले शीला दीक्षित शायद भूल गईं कि आजादी के बाद के छ: दशकों में से एक दशक से अधिक समय तक तो दिल्ली उन्हीं के कब्जे में है, और बीच का कुछ अरसा अगर छोड़ दिया जाए तो शेष समय तो दिल्ली की गद्दी पर कांग्रेस का ही शासन रहा है। शीला से बयान से लगता है मानो वे कह रहीं हों कि दिल्ली पर काबिज रही कांग्रेस की सरकारों ने यहां की बसाहट पर ध्यान नहीं दिया है।


मुंबई में महराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) सुप्रीमो एवं शिवसेना चीफ बाला साहेब ठाकरे के भतीजे ने उत्तर भारतीयों के खिलाफ जमकर जहर उगला है। मनसे द्वारा लगातार उत्तर भारतीयों को नीचा दिखाने के लिए तरह तरह की बयानबाजी और हथकंडे अपनाए जाते रहे हैं।


क्षेत्रीयता को बढावा देने वाले राजनेताओं की फेहरिस्त में अब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम भी जुड गया है, जिन्होंने देश के हृदय प्रदेश में यूपी बिहार के लोगों की आमद नौकरियों के लिए बंद कराने की हुंकार भरकर नए विवाद को जन्म दे दिया है।


भारत गणराज्य में हर कोई नागरिक स्वतंत्र है। देश में जम्मू एवं काश्मीर के लोगों को छोड दिया जाए जिन्हें दोहरी नागरिकता प्राप्त है, के अलावा देश में हर कोई हर प्रांत में जाकर व्यापार, नौकरी कर सकता है। सामंतशाही के अवसान के उपरांत जम्मू एवं काश्मीर के निवासियों को दोहरी सुविधा प्रदाय की गई थी।


सवाल यह उठता है कि जब एक सूबे के निवासी द्वारा दूसरे सूबे में जाकर विवाह जैसा महात्वपूर्ण संस्कार को अंजाम दिया जाता है तो फिर नौकरियों में उनके साथ भेदभाव किस आधार पर किया करने की हुंकार या कल्पना की जाती है, यह बात समझ से परे ही है।


`शिवराज` जो अब `राज ठाकरे` की राह पर चलने का प्रयास कर रहे हैं, के बचाव में उतरे भाजपा के प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर का कहना कि शिवराज की तुलना राज ठाकरे से की जानी ठीक नहीं है, हर राज्य को अपने हितों को देखना पडता है, भी कम हास्यास्पद नहीं माना जाएगा। राज्य के निजामों को अपने अपने राज्यों के हितों का संवर्धन अवश्य करना चाहिए पर इसके लिए वे अपने संविधान में आवश्यक संशोधन करें। इस तरह की भडकाउ बयानबाजी से तो स्थितियां विस्फोटक ही होंगी।


जब इस मामले ने तूल पकडा तब शिवराज सिंह चौहान ने यू टर्न लेते हुए बात को संभालने का प्रयास भी किया है। अब वे कहने लगे हैं कि उन्होंने एसा कुछ नहीं कहा। मध्य प्रदेश में हर राज्य के लोगों का स्वागत करते हुए उन्होंने अपने पूर्व बयान का एक तरह से खण्डन ही किया है।


देखा जाए तो राजनेता अति उत्साह में कुछ इस तरह के वक्तव्य दे जाते हैं, जो उनके साथ ही साथ सारे राज्य के लिए उचित नहीं कहे जा सकते हैं। राजनेता हो या अभिनेता वह समाज के हर वर्ग के किसी न किसी का अगुआ होता है। उसके द्वारा कही गई बात को उनके समर्थक आत्मसात भी करते हैं, इस बात को राजनेताओं को भूलना नहीं चाहिए।


अपने वोट बैंक को बढाने और समर्थकों में इजाफे के लिए राजनेताओं को हर जतन करने चाहिए किन्तु इस तरह की घटिया बयानबाजी से बचना चाहिए जिसमें एक ही देश में दो राज्यों के निवासियों के बीच बैर बढे। आज मुंबई में उत्तर भारतीयों के खिलाफ राज ठाकरे किस कदर ताल ठोक रहे हैं, और वहीं दूसरी ओर सत्तारूढ कांग्रेस, प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के साथ ही साथ अन्य दल किस कदर खामोशी ओढे हुए हैं।


कहीं एसा न हो कि इन नेताअों के इस घिनौने तरीके सेे जनाधार बढाने के चक्कर में देश के समस्त राज्यों के निवासी एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाएं। नेताओं को इस तरह के संवेदनशील मुद्दे पर एक सर्वदलीन नीति बनाने की आवश्यक्ता है, वरना आने वाला कल रक्त रंजित क्रांति से भरा हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।