शनिवार, 22 दिसंबर 2012

प्रजातंत्र, हिटलरशाही या सामंतशाही!


प्रजातंत्र, हिटलरशाही या सामंतशाही!

(लिमटी खरे)

एक समय था जब भारत देश (भारत गणराज्य नही) में सामंतशाही हावी थी। आदि अनादिकाल से न्यायप्रिय और मनमानी करने वाले शासकों की कहानियां सभी ने (नब्बे के दशक तक अध्ययन करने वालों ने) पढ़ी होंगी। उचित अनुचित, नीति अनीति आदि का भय सभी को होता था। आज के समय में आखों की शर्म या पानी पूरी तरह मर चुका है। देश अंदर ही अंदर अलगाववाद, आतंकवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, अमीरी गरीबी, ताकतवर, निरीह जैसे मामलों में बुरी तरह सुलग रहा है। देश की राजनैतिक राजधानी में पेरामेडीकल की छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार इसलिए भी टीस दे रहा है क्योंकि अभी ज्यादा दिन हीं हुए जब देश का गौरव बनीं प्रथम महामहिम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सुषमा स्वराज हैं, कांग्रेस की कमान श्रीमति सोनिया गांधी के हाथों है तो दिल्ली की कमान श्रीमति शीला दीक्षित के हाथों। सभी का आवास दिल्ली ही है इन परिस्थितियों में अगर दिल्ली में किसी बाला के साथ सामूहिक बलात्कार हो जाए तो यह नेशनल शेम की ही बात मानी जाएगी।

दिल्ली में चलती बस में सामूहिक बलात्कार ने वाकई अनेक प्रश्न खड़े कर दिए हैं। समय के साथ लोगों का गुस्सा तो शांत हो जाएगा पर कांग्रेसनीत केंद्रीय संप्रग सरकार और दिल्ली की श्रीमति शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के माथे पर लगा यह कलंक शायद ही धुल पाए। आज कम ही लोग गीता और संजय चौपड़ा के कांड को याद करते होंगे। सरकार भी 26 जनवरी को संजय गीता चौपड़ा के नाम से आरंभ किए गए वीरता पुरूस्कार को प्रदाय करते समय ही इन दोनों की कहानी को याद कर पाते होंगे।
दिल्ली में सबकी नाक के नीचे जो कुछ हुआ वह वाकई अफसोसजनक है, इसकी महज निंदा करने से काम नहीं चलने वाला है। मीडिया का रोल इस मामले में ठीक कहा जा सकता है किन्तु संतोषजनक कतई नहीं। सोशल मीडिया चीख चीख कर मीडिया के उपर हावी होता दिख रहा है। यह देश के बिके हुए मीडिया की कारस्तानी का ही परिणाम है कि आज मीडिया के चीखने के बाद भी उसकी आवाज नक्कारखाने में तूती ही साबित हो रही है।
क्या मीडिया में इतना साहस है कि वह लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सुषमा स्वराज, दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित, पूर्व महामहिम प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के मुंह पर माईक लगाकर लाईव प्रश्न कर देश को सुना सके। अगर ये कथित महान और वरिष्ठ नेता अगर मीडिया से खुली चर्चा से इंकार करते हैं तो क्या मीडिया इनका बहिष्कार करने का साहस जुटा पाएगा?
कांग्रेस और भाजपा के चतुर सुजान वाक पटु प्रवक्ताओं को ढाल बनाकर आखिर कब तक ये नेता अपनी जवाबदेहियों से बचते रहेंगे। केंद्र और दिल्ली में कांग्रेस सत्ता में है बावजूद इसके अपराधों के लिए नया कानून अभी बन रहा है का राग कब तक सुनाते रहेंगे शासक! कब तक किसी मजलूम को अपनी इज्जत से हाथ धोना पड़ेगा? मीडिया को तो चंद विज्ञापन और अन्य सुविधाओं के बल पर खरीद लिया है शासकों ने पर क्या सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट्स की चीत्कार इन निजामों के महलों की दीवारों से टकराकर लौट रही है?
बलात्कार का मामला उठते ही निजामों की फौज ने आनन फानन कठोर कार्यवाहीका आश्वासन दे मारा। दिल्ली में सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद होने का दावा और आपके लिए सदा आपके पास होने का दावा करने वाली दिल्ली पुलिस के क्या हाल हैं यह किसी से छिपा नहीं है। देर रात वाहन चालकों से वसूली के अलावा और कोई काम नहीं रह गया है दिल्ली पुलिस का।
हाल ही में कुछ पत्रकारों के साथ केंद्रीय गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह ने डीटीसी की एक बस में उसी रूट पर निकले जिस पर गेंग रेप की घटना को अंजाम दिया गया था। साउथ मोतीबाग से केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने 640 नंबर की बस पकड़कर छतरपुर मेट्रो स्टेशन तक का जायजा लिया। बस में मंत्री महोदय को कोई पहचानता नहीं था सो वे आम आदमी की तरह सब कुछ देखते सुनते रहे।
जब बस छतरपुर पहुंची तब मंत्री जी को आभास हुआ कि इस मार्ग पर तो एक भी पुलिस का बेरीकेट और पुलिस मोबाईल तक नहीं मिली। उल्टे छतरपुर में बस रूकने के साथ ही उन्होंने पाया कि कुछ बसें तो मयखाना बनी हुईं थीं। चालक परिचालक, परिसहाय आदि बैठकर जाम टकरा रहे थे। एक पत्रकार ने पूछा कि भई पुलिस का खौफ नहीं है यहां? इस पर बस चालक ने छूटते ही कहा कुछ देर रूको काक्के, पुलिस भी इसी मयखाने का हिस्सा बन जाएगी।
बलात्कार के मामले में अब केंद्र सरकार पूरी तरह बंटी ही नजर आ रही है। केंद्र सरकार में गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे जहां कड़ी कार्यवाही का आलाप गा रही है तो वहीं दूसरी ओर केंद्रीय गृह सचिव आर.के.सिंह द्वारा दिल्ली पुलिस के आयुक्त नीरज कुमार को बचाया जा रहा है। सिंह ने दिल्ली पुलिस की सेवाओं को आउट स्टेंडिंग का तगमा दे दिया है। इस मामले में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का गुस्से का निशाना भी शिंदे बन रहे हैं। सोनिया गांधी के सलाहकारों ने उन्हें मशिवरा दिया है कि वे इस मामले में सख्ती का आवरण ओढ़ें पर सरकार में समन्वय ना होने वे भी मजबूर और बेबस ही नजर आ रही हैं।
जब इस मामले में जनाक्रोश चरम पर आया और रायसीना हिल्स की ओर भीड़ बढ़ी तब लाठी चार्ज कर रेपिड एक्शन फोर्स को बुला लिया जाता है। इसकी सफाई में गृह राज्य मंत्री महोदय कहते हैं कि वह लाठी चार्ज भीड़ पर नियंत्रण के लिए किया गया था। क्या गृह राज्य मंत्री के पास इसका कोई जवाब है कि भीड़ पर नियंत्रण के लिए तो लाठी चार्ज का सहारा ले रहे हैं पर पुलिस और अपराध पर नियंत्रण के लिए किसका साथ लिया जाएगा?
एक ब्लागर मित्र बी.एस.पाबला ने एक अपडेट लगाकर लोगों का ध्यान खीचा है। एक अखबार की कटिंग में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में एक पांच साल की बच्ची के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या करने के मामले में निचली अदालत से लेकर देश की सबसे बड़ी पंचायत तक ने उसे मौत की सजा सुनाई थी। इस मामले में आरोपी ने दया याचिका को रायसीना हिल्स भेजा जहां तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने उस दया याचिका में मौत की सजा को उम्रकेद में बदल दिया था।
क्या अब कांग्रेस के आला नेता, सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, सुशील कुमार शिंदे, राहुल गांधी, श्रीमति शीला दीक्षित आदि के द्वारा बलात्कार पीडिता के पक्ष में किए जाने वाले रूदन को घडियाली आंसू की संज्ञा नहीं दी जानी चाहिए। क्या इन नेताओं में इतनी भी नैतिकता नहीं बची है कि ये अपने ही पार्टी के लोगों द्वारा किए गए कामों के बारे में दिखावा करने से भी बाज नहीं आ रहे हैं? क्या ये अपने दिमाग के बजाए सलाहकरों के दिमाग से चलने वाले चाभी वाले वे खिलौने हैं जिसकी चाबी खत्म होने पर वह रूक जाता है?
पूरा देश नहीं कमाबेश विश्व के हर देश में इस बारे में माहिती है कि सालों साल से दिल्ली में महिलाएं महफूज नहीं हैं। दिल्ली परिवहन की रीढ़ बन चुकी मेट्रो में महिलाओं के लिए पहली बोगी आरक्षित है तो रेल्वे ने भी डीएमयू (लोकल रेल) में भी महिला स्पेशल को चलाया है। हर कदम पर दिल्ली में पीसीआर वेन खड़ी है। मोटर साईकल पर चौकसी अलग से हो रही है। दिल्ली कमोबेश 365 दिन ही हाई अलर्ट पर रहती है। देश के व्हीव्हीव्हीआईपी नीति निर्धारक यहां बसते हैं। शीर्ष पदों पर महिलाओं का कब्जा है, फिर क्या कारण है कि बार बार बलात्कार की चीत्कार ना तो पुलिस सुन पाती है और ना ही उंचे पदों पर बैठे निजाम!
एक समय था जब देश में सामंतशाही थी। हाकिमों का राज था, जो वे कहते और चाहते वही सही माना जाता। विरोध करने वालों का सर कलम कर दिया जाता। अराजकता पूरी तरह हावी होने की संभावनाएं रहतीं। एक हिटलर का राज था जिसे हिटलरशाही कहा जाता है। हिटलर के बारे में सभी बखूबी जानते हैं। तीसरा देश का लोकतंत्र या प्रजातंत्र है, जो जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए है। विडम्बना है कि जब प्रजातंत्र देश में बचता नहीं दिख रहा है। यक्ष प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही है कि देश में प्रजातंत्र है, सामंतशाही है उपनिवेशवाद है या हिटलरशाही! (साई फीचर्स)

सीएम को भी ठेंगा दिखाता है जनसंपर्क


लाजपत ने लूट लिया जनसंपर्क ------------------ 31

सीएम को भी ठेंगा दिखाता है जनसंपर्क

(विस्फोट डॉट काम)

भोपाल (साई)। मध्यप्रदेश में जनसंपर्क संचालनालय में जमकर घमासान मचा हुआ है। जबसे सारी शक्तियां अतिरिक्त संचालक लाजपत आहूजा के इर्दगिर्द आकर समटी हैं, तबसे जनसंपर्क संचालनालय में मनहूसियत छाने लगी है। वरिष्ठ अधिकारियों के बीच अब वर्चस्व की अघोषित जंग तेज हो गई है। इसका सीधा असर भारतीय जनता पार्टी की शिवराज सिंह सरकार पर पड़ता दिख रहा है।
पिछले दिनों न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा दिवस पर मध्य प्रदेश को सम्मानित किया गया। इसकी खबर जनसंपर्क संचालनालय द्वारा जारी ही नहीं की गई जबकि यह मध्य प्रदेश विशेषकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए बहुत गौरव की बात थी। चर्चाओं को सही मानें तो सरकार की छवि चमकाने के लिए पाबंद एमपी पब्लिसिटी डिपार्टमेंट की कमान सत्ता के बजाए संगठन के हाथों में चली गई है जिसके चलते अब विभाग का ध्यान सत्ता के बजाए संगठन की छवि चमकाने में लग गया है। आरोपित है कि इसके पहले दिल्ली स्थित विभाग के कार्यालय द्वारा भी इसी तरह की कवायद की गई थी।
उधर न्यूयार्क में शिवराज सिंह चौहान प्रदेश का डंका पीट रहे थे तो इधर जनसंपर्क गाफिल हो अपने में ही मस्त दिखाई दे रहा है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा के प्रभाव से प्रदेश के जनसंपर्क की कमान थामने आये लाजपत आहूजा सीएम से ज्यादा प्रभात झा से अपना रिश्ता ठीक रखना चाहते हैं क्योंकि वे यह जानते हैं कि अगर प्रभात झा का हाथ उनके सिर पर रहेगा तो सीएम भी उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकते। वैसे भी भोपाल के राजनीतिक गलियारों में अक्सर अफवाहें तो उड़ती ही रहती हैं कि अगले चुनाव में सीएम पद पर दावेदारी करने के लिए प्रभात झा अभी से गोटियां बिछा रहे हैं और पहला कब्जा उन्होंने मध्य प्रदेश जनसंपर्क पर किया है ताकि अपनो को उपकृत करने के साथ ही अपनी छवि को चमका सकें। ऐसे में जनसंपर्क अगर सीएम को भी ठेंगा दिखा देता है तो इसमें हर्ज क्या है?

आज चुना जाएगा हिमाचल का सीएम


आज चुना जाएगा हिमाचल का सीएम

(रीता वर्मा)

शिमला (साई)। हिमाचल प्रदेश में आज कांग्रेस विधायक दल के नेता का चयन किया जाएगा। पार्टी ने सभी ३६ नवनिर्वाचित विधायकों की बैठक आज शाम पांच बजे शिमला में बुलाई है। कांग्रेस के आला दर्जे के सूत्रों ने साई न्यूज को बताया कि केंद्रीय प्रेक्षक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव जनार्दन द्विवेदी, दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और राज्य में पार्टी मामलों के प्रभारी वीरेन्द्र चौधरी बैठक में मौजूद रहेंगे।
कांग्रेस मुख्यालय के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि कांग्रेस अध्यक्ष वीरभद्र सिंह, विधायक दल नेता की दौड़ में सबसे आगे हैं। हालांकि नेतृत्व के मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी में खींचतान दिख रही है और राज्य के कुछ वरिष्ठ नेता, राष्ट्रीय नेताओं से मिलने कल नई दिल्ली चले गए।
बताया जाता है कि दिल्ली गए नेताओं में पूर्व अध्यक्ष मोहन सिंह ठाकुर, राष्ट्रीय सचिव आशा कुमारी और वरिष्ठ विधायक डी।एस। बाली शामिल हैं। नेता के मुद्दे पर वीरभद्र सिंह सहित अन्य वरिष्ठ नेता पार्टी हाईकमान और राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के निर्देश मानने की बात कह रहे हैं। ६८ सदस्यीय विधानसभा में पार्टी को चुनाव में ३६ सीटों पर विजय मिली है। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को पिछली विधानसभा की तुलना में १३ सीटों का फायदा हुआ है। पिेछले चुनाव में उसने २३ सीटें जीती थीं।

मंगल को मोदी चुने जाएंगे नेता


मंगल को मोदी चुने जाएंगे नेता

(जलपन पटेल)

अहमदाबाद (साई)। गुजरात में भारतीय जनता पार्टी के नवनिर्वाचित विधायकों की मंगलवार को गांधी नगर में बैठक होगी जिसमें विधायक दल के नेता का चयन किया जाएगा। मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्य मंत्रिपरिषद भंग कर अपना इस्तीफा कल राज्यपाल को सौंपा।
नरेंद्र मोदी के करीबी सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि वरिष्ठ पार्टी नेता लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली और भाजपा शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री शपथग्रहण समारोह में शामिल होंगे। भाजपा ने १८२ सदस्यों की विधानसभा में ११५ सीटें जीतीं हैं।
मोदी की जीत के उपरांत राज्य में दीप पर्व जैसा माहोल दिख रहा है। गुजरात में चुनाव के जीतने के बाद मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की नई सरकार बनाने के लिए जोर-शोर से तैयारियां शुरू हो गई हैं। मंगलवार को भाजपा विधायक दल की गांधीनगर में होने वाली बैठक में नरेन्द्र मोदी को नेता चुनने की औपचारिकता पूरी की जाएगी और बुधवार को राज्यपाल द्वारा उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई जाएगी।
मुख्यमंत्री के शपथ-विधि समारोह के लिए अहमदाबाद के सरदार पटेल स्टेडियम में तैयारियां शुरू हो गई हैं। वहीं कांग्रेस के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि पंचमहल जिले की मोरवा हदफ सीट से नवनिर्वाचित कांग्रेस विधायक सविताकांत की कल दिमाग की नस फटने से मृत्यु हो गई। इसके बाद विधानसभा में कांग्रेस की ६० सीटें रह गई हैं।

आधी रात तक खुले रहेंगे पब डिस्को


आधी रात तक खुले रहेंगे पब डिस्को

(शरद)

नई दिल्ली (साई)। देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में सरेराह बलात्कार की घटना होने के बाद भी केंद्र और दिल्ली सरकार की सेहत पर कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा है। सरकार ने दिल्ली की सरहद में आने वाले पब और डिस्को को रात दस ग्यारह या बारह नहीं वरन् एक बजे रात तक खुले रखने की आधिकारिक अनुमति प्रदान कर दी है।
केंद्रीय गृह सचिव आर.के.सिंह ने दिल्ली के पुलिस आयुक्त के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि बलात्कार मामले में जल्दी ही आरोप-पत्र दाखिल कर दिया जाएगा। श्री आर के सिंह ने कहा कि पुलिस ने काले शीशे वाली बसों पर कार्रवाई तेज कर दी है और काले शीशे वाले वाहनों को जब्त किया जाएगा।
बसों, ऑटो और टैक्सियों के ड्राइवरों, कंडक्टरों और अन्य कर्मचारियों की पुलिस जांच कराई जाएगी और शराब पीकर गाड़ी चलाने तथा अन्य अवैध गतिविधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। श्री सिंह ने कहा कि अन्य राज्यों से जारी ड्राइविंग लाइसेंसों वाले ड्राइवरों को दिल्ली में ड्राइविंग परीक्षा देनी होगी। इसके बाद ही उन्हें दिल्ली में वाहन चलाने की अनुमति दी जाएगी।
उन्होंने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भी एनसीईआर परामर्श जारी किए गए हैं। इस बीच, पुलिस ने दिल्ली समूहिक बलात्कार मामले के सभी छह अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया है। बलात्कार की पीड़ित युवती को हालांकि नई दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में वेंटिलेटर से हटा दिया गया है लेकिन अब भी उसकी हालत चिंताजनक है।

ठंड से एक बार फिर सहमे पूर्वोत्तर वासी


ठंड से एक बार फिर सहमे पूर्वोत्तर वासी

(महेश)

नई दिल्ली (साई)। पूर्वोत्तर भारत में ठण्ड ने एक बार फिर असर दिखाना आरंभ कर दिया है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हिमाचल, मेघालय, जम्मू काश्मीर आदि क्षेत्रों में ठण्ड से जनजीवन रूक सा गया है। उत्तर प्रदेश के समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के ब्यूरो ने बताया कि राज्य में ठण्ड से बुरे हाल हो चुके हैं।
साई न्यूज ने बताया कि उत्तर प्रदेश में कड़ाके की ठंड से सामान्य जन-जीवन ठप पड़ गया है। रेल, सड़क और हवाई यातायात सुबह और शाम को घने कोहरे के कारण बुरी तरह प्रभावित हुआ है। मुजफ्फरनगर से समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया ब्यूरो से सचिन धीमान ने बताया कि पिछले २४ घंटे के दौरान राज्य में मुजफ्फरनगर दो दशमलव सात डिग्री सेल्सियस तापमान के साथ सबसे ठंडा रहा। हमारे गोरखपुर से साई संवाददाता ने बताया कि दिन का अधिकतम तापमान सामान्य से सात डिग्री नीचे आ गया है।
गोरखपुर में जिले में कक्षा दस तक के स्कूलों को सोमवार तक के लिए बंद कर दिया गया है। लंबी दूरी की ज्यादातर रेलगाड़ियां ४-८ घंटे की देरी से चल रही हैं। कई छोटी दूरी की पैसेंजर गाड़ियों को रद्द भी किया गया है। कोहरे के कारण सड़क पर दृश्यता दस मीटर से भी कम हो गई है। ठंड से प्रभावित जि$लों में गरीबों और बेआसरा लोगों को कम्बल बांटे जा रहे हैं। ऐसे लोगों के लिए रैन बसेरों और अलाव जलाने की व्यवस्था भी की गई है।
शिमला से समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के ब्यूरो से रीता वर्मा ने बताया कि हिमाचल प्रदेश के कुछ इलाके भी कंपकंपाती ठंड की चपेट में हैं और वहां तापमान शून्य से नीचे चला गया है। जन-जातीय इलाके लाहौल-स्पीति में केलोंग में तापमान शून्य से दस दशमलव एक डिग्री नीचे रहा। शिमला में मौसम विभाग ने अगले तीन दिन मौसम सूखा रहने की संभावना व्यक्त की है लेकिन कहा है कि इस महीने की २४ तारीख के बाद से पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में पश्चिमी विक्षोभ का असर देखने को मिल सकता है।

नवीन जिंदल के खिलाफ मानहानि का मुकदमा


नवीन जिंदल के खिलाफ मानहानि का मुकदमा

(प्रदीप चौहान)

नई दिल्ली (साई)। टेलीविजन चौनल जी न्यूज के संपादक सुधीर चौधरी ने कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल के खिलाफ मानहानि का एक मुकदमा दायर किया। मानहानि की यह शिकायत 100 करोड रुपए वसूले जाने के कथित प्रयास के संबंध में दर्ज प्राथमिकी और यहां एक प्रेस विज्ञप्ति में लगाए गए आरोपों को लेकर की गयी है।
चौधरी ने अदालत से कहा कि वसूली के कथित प्रयास संबंधी मामले में दर्ज प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि लाइव इंडिया चौनल के सीईओ के रुप में उन्होंने एक फर्जी स्टिंग आपरेशन किया था। चौधरी के वकील विजय अग्रवाल ने कहा कि प्राथमिकी में लगाए गए आरोप गलत हैं क्योंकि इस मामले में चौधरी के खिलाफ कोई आरोपपत्र नहीं दाखिल किया गया था।
उन्होंने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट जय थरेजा के समक्ष दलील दी कि अदालत इस मामले में संज्ञान लेने और शिकायतकर्ता के हलफनामे की जांच के लिए बाध्य है। दलीलें सुनने के बाद अदालत ने शिकायत का संज्ञान लेने पर अपने आदेश के लिए तीन जनवरी की तारीख तय की।
मजिस्ट्रेट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 499 (मानहानि) के तहत नई लिखित शिकायत दर्ज करायी गयी है। उन्होंने कहा कि संज्ञान लेने के मुद्दे पर दलीलें सुनी गयी हैं। उन्होंने संज्ञान लेने के संबंध में आदेश जारी करने और जरुरत हुयी तो आगे की कार्यवाही के लिए तीन जनवरी 2013 की तारीख तय की। वकील ने कहा कि मानहानि का मुकदमा दर्ज करने की दूसरी वजह जिंदल द्वारा संवाददाता सम्मेलन में की गयी टिप्पणी है।
उन्होंने कहा कि संवाददाता सम्मेलन में यह आरोप लगाया गया कि ब्राडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन (बीईए) ने चौधरी को बुलाया था और उन्होंने (चौधरी ने) उनके सामने अपनी बात रखी थी और इसके बाद चौधरी को हटा दिया गया था। चौधरी के वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल कभी भी बीईए में नहीं गए और न ही उसके सामने कोई प्रस्तुतीकरण दिया। वकील ने कहा, ‘‘ मेरे खिलाफ लगाए गए आरोपों की प्रकृति मानहानि करने वाली है।

धर्म के बाद महाप्रलय बना धंधा, अब 2036 में दुनिया खत्म !


धर्म के बाद महाप्रलय बना धंधा, अब 2036 में दुनिया खत्म !

(रश्मि सिन्हा)

नई दिल्ली (साई)। देश में इलेक्ट्रनिक मीडिया भी गजब ढा रहा है। कभी टीवी पर धर्म का धंधा चमकता है तो कभी महाप्रलय का। एक समय था जब सुबह सवेरे योग के बहाने लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया था भगवा वस्त्र धारी एक बाबा ने। इसके बाद कुर्ता पायजामा वाले किरपा बरसाने वाले बाबा छाए रहे, तो अब महाप्रलय छा गया टीवी पर।
कई सालों से 21 दिसंबर 2012 के दिन दुनिया खत्म होने की अफवाहों ने माहौल को गर्म कर रखा था। इसी दिन पांच हजार साल पुराना माया कैलेंडर समाप्त हो गया। इसी कैलेंडर को आधार बना कर 21-12-12 को महाप्रलय की आशंका जतायी गयी थी।
लेकिन ऐसा कुछ नहीं और दुनिया पहले ही की तरह पूरी आबाद है। दुनिया ऐसे ही चलती रहेगी। मीडिया में आयी रिपोर्ट के मुताबिक ब्राजील के गांव आल्टो पारायसो में प्रलय में विश्वास रखने वाले लोग भारी तादाद में पहुंच गये थे। इस गांव के बारे में कहा जाता रहा है कि यहां रहस्यमयी शक्तियां हैं जो सालों से प्रलय का इंतजार कर रही हैं। उधर अब 2036 में प्रलय आने की खबरें इंटरनेट पर आने लगी हैं। हालांकि इसे भी एक नया धंधा ही माना जा रहा है।
एक विदेशी एजेंसी के सर्वे के मुताबिक, चीन की करीब 20 प्रतिशत जनता ने कयामत की अफवाहों पर विश्वास जताया। यहां अफवाह फैलाने वाले करीब 450 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। बहुत सारे लोगों ने तो कयामत के दिन की तैयारियों के मद्देनजर घर में रसद और मोमबत्तियां जैसी दैनिक जरूरत से जुड़ी चीजें इकट्ठी कर लीं। लोग खास किस्म के सर्वाइवल पॉड्स बनवाने का ऑर्डर करते रहे। इनकी खासियत यह है कि इसमें एक बार में 14 लोग समा सकते हैं और यह सुनामी की तेज लहरों को झेलने में सक्षम है।
दुनिया के अंत के संबंध में समय-समय पर कई प्रकार की भविष्यवाणियां की जाती रही हैं। 21 मई, 2011 और उससे पहले 6 जून 2006 को दुनिया के विनाश का दिन बताया जा रहा था। नास्त्रेदमस ने भी 2012 में धरती के खत्म होने की भविष्यवाणी की थी। जर्मनी के वैज्ञानिक रोसी ओडोनील और विली नेल्सन ने 21 दिसंबर 2012 को एक्स ग्रह की पृथ्वी से टक्कर की बात कह कर धरती के विनाश की अफवाहों को और हवा दे दी।
ऐसी ही एक अफवाह 1910 में फैली थी जब हेली पुच्छल तारा पृथ्वी के आसपास से गुजरा था और आशंकाएं जतायी गयी थीं कि यह पृथ्वी से टकरा सकता है। क्या थी अफवाह? दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक माया सभ्यता के एक कैलेंडर में 21 दिसंबर 2012 के आगे किसी तारीख का कोई जिक्र नहीं है। इस वजह से माना जा रहा था कि इस दिन पूरी दुनिया समाप्त हो जायेगी। माया कैलेंडर की एक व्याख्या के मुताबिक 21 दिसंबर 2012 में एक ग्रह पृथ्वी से टकरायेगा, जिससे धरती खत्म हो जायेगी।
पुराणों के अनुसार महाप्रलय एक मनवंतर की समाप्ति पर आता है। प्रत्येक मनवंतर 71 महायुग का होता है। एक महायुग में 71 सतयुग, इतने ही त्रेता, द्वापर और कलयुग होते हैं। वर्तमान में वैवस्वत मनवंतर चल रहा है जिसके सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर समाप्त हो चुके हैं और 28वां कलयुग चल रहा है।

फेसबुक बदलाव कर रहा है टाइमलाइन में

फेसबुक बदलाव कर रहा है टाइमलाइन में

(यशवंत)

न्यूयार्क (साई)। लोगों के लिए लाईफ लाईन बन चुका फेसबुक जल्द ही नए क्लेवर में नजर आने वाला है। सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक अपने टाइमलाइन फीचर को दोबारा से डिजाइन कर सकता है। कंपनी का कहना है कि वह यूजर्स के पेज के लेआउट के साथ नए एक्सपेरिमेंट कर रही है।
फेसबुक के प्रवक्ता ने बताया कि यह नए तरह का डिजाइन है जिसकी टेस्टिंग कुछ पर्सेंट यूजर्स के साथ ही की जा रही है। इस नए लुक में टैब की वापसी हो रही है। इसमें नेविगेशन के लिए साफ-सुथरा और बड़ा मेनु रहेगा। इसमें आपका नाम भी कवर फोटो पर रहेगा। फिलहाल फेसबुक पर कुछ सुधार दिखने लगे हैं। अब फोटो अपलोड करने के तीन स्टेप के बजाए दो स्टेप ही रह गए हैं।

फेसबुक बदलाव कर रहा है टाइमलाइन में


फेसबुक बदलाव कर रहा है टाइमलाइन में

(यशवंत)

न्यूयार्क (साई)। लोगों के लिए लाईफ लाईन बन चुका फेसबुक जल्द ही नए क्लेवर में नजर आने वाला है। सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक अपने टाइमलाइन फीचर को दोबारा से डिजाइन कर सकता है। कंपनी का कहना है कि वह यूजर्स के पेज के लेआउट के साथ नए एक्सपेरिमेंट कर रही है।
फेसबुक के प्रवक्ता ने बताया कि यह नए तरह का डिजाइन है जिसकी टेस्टिंग कुछ पर्सेंट यूजर्स के साथ ही की जा रही है। इस नए लुक में टैब की वापसी हो रही है। इसमें नेविगेशन के लिए साफ-सुथरा और बड़ा मेनु रहेगा। इसमें आपका नाम भी कवर फोटो पर रहेगा। फिलहाल फेसबुक पर कुछ सुधार दिखने लगे हैं। अब फोटो अपलोड करने के तीन स्टेप के बजाए दो स्टेप ही रह गए हैं।

परीक्षा शुल्क मामले में कंप्यूटर सेंटर पर जुर्माना


परीक्षा शुल्क मामले में कंप्यूटर सेंटर पर जुर्माना

(एस.के.खरे)

सिवनी (साई)। फारेस्ट गार्ड परीक्षा का आनलाईन फार्म भरने के लिय्ो परीक्षा व सुविधा शुल्क प्राप्त कर लेने, परन्तु परीक्षा शुल्क फीस बोर्ड को न भिजवाने के कारण आवेदक का परीक्षा प्रवेश पत्र्ा न आने के एक मामले में सेवा प्रदाता को आवेदक को ३ हजार रूपय्ो की नकद क्षतिपूर्ति और परीक्षा शुल्क के रूप में ली गई ३॰॰ रूपय्ो की राशि  १॰ प्रतिशत की ब्य्ााज दर से ब्य्ााज का भुगतान तीन माह के भीतर करना होगा। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम सिवनी के प्रकरण क्रमांक १॰१/२॰१२ में सेवा प्रदाता चहक मोबाईल एन्ड कम्प्य्ाूटर सेन्टर, सोमवारी चौक भैरोगंज के प्रोप्राइटर विरूद्व क्रेता राजेश कुमार पुत्र्ा प्रेम कुमरे निवासी भोमा के प्रकरण पर य्ाह फैसला दिय्ाा गय्ाा है। उपभोक्ता फोरम के अध्य्ाक्ष श्री रवि कुमार नाय्ाक द्वारा क्रेता के पक्ष में य्ाह निर्णय्ा गत ७ दिसंबर को जारी किय्ाा गय्ाा। 
उपभोक्ता हित में लिय्ो गय्ो इस फैसले में मामला कुछ य्ाूं है कि सेवा प्रदाता अपने कम्प्य्ाूटर सेन्टर में शासकीय्ा नौकरिय्ाों के संबंध में ऑनलाईन इंटरनेट के जरिय्ो फार्म व फीस जमा करवाते हैं। आवेदक राजेश ने सेवा प्रदाता के सेन्टर से वनरक्षक भर्ती परीक्षा वर्ष २॰१२ के लिय्ो १६ फरवरी १२ को ऑनलाईन आवेदन भरा था। जिसमें परीक्षा शुल्क २५॰ रूपय्ो और ऑनलाईन सुविधा शुल्क ५॰ रूपय्ो, इस तरह कुल ३॰॰ रूपय्ो सेवा प्रदाता ने आवेदक से प्राप्त कर ऑनलाईन आवेदन फार्म भरा था और उसी दिन उसके साथी सीताराम उइके तथा नितलेश कुमारी के आवेदन-पत्र्ा भी एक साथ भरे थे।                       
सेवा प्रदाता ने आवेदक के उक्त दोनों साथिय्ाों के परीक्षा शुल्क मध्य्ाप्रदेश प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड भोपाल को भिजवा दिय्ाा, लेकिन आवेदक से लिय्ाा गय्ाा परीक्षा शुल्क बोर्ड को नहीं भिजवाय्ाा, जिस कारण से आवेदक को उक्त परीक्षा का प्रवेश पत्र्ा प्राप्त नहीं हो पाय्ाा है और आवेदक वनरक्षक की परीक्षा में बैठने से वंचित हो गय्ाा। आवेदक ने  उक्त परीक्षा के लिय्ो अछी तैय्ाारी कोचिंग कर की थी जिससे आवेदक का नुकसान हुआ। सेवा प्रदाता ने आवेदक से शुल्क लेकर फार्म तो भरा, लेकिन शुल्क बोर्ड नहीं भेजा। परीक्षा प्रवेश पत्र्ा न आने पर आवेदक ने सेवा प्रदाता से पूछा तो उसने कहा कि तुम्हारी फीस जमा नहीं हो पाई थी, इस कारण प्रवेश-पत्र्ा नहीं आय्ाा। सेवा प्रदाता ने आवेदक को फीस वापस देने का प्रस्ताव दिय्ाा। परन्तु आवेदक ने अधिवक्ता के माध्य्ाम से सेवा प्रदाता को १॰॰॰ रूपय्ो की क्षतिपूर्ति अदा करने का नोटिस भेजा। नोटिस १६ जुलाई को सेवा प्रदाता को प्राप्त हो गय्ाा, परन्तु इसके बावजूद भी सेवा प्रदाता ने कोई जवाब नहीं दिय्ाा, न ही हर्जाने की राशि दी। य्ाहीं नहीं, जब आवेदक ने उपभोक्ता फोरम जाने की कायर््ावाही की, तो सेवा प्रदाता ने आवेदक का ऑनलाईन फार्म भरे जाने से ही असत्य्ा रूप से इंकार कर दिय्ाा, इस प्रकार उसने उपभोक्ता सेवा में भी कमी की। प्रकरण की जांच में य्ाह स्पष्ट हुआ कि सेवा प्रदाता द्वारा आवेदक का परीक्षा शुल्क जमा नहीं कराय्ाा गय्ाा, जिससे आवेदक उक्त परीक्षा में सम्मिलित होने से वंचित हो गय्ाा। आवेदक द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य्ा से भी य्ाह साबित हुआ कि सेवा प्रदाता ने परीक्षा शुल्क की २५॰ रूपय्ो की उसे वापस देने का प्रस्ताव दिय्ाा था।
इस पर उपभोक्ता फोरम ने सेवा प्रदाता को सेवा में की गई कमी से उपभोक्ता आवेदक को हुई असुविधा मानसिक कष्ट और भविष्य्ा की भी संभावित क्षति की पूर्ति के रूप में आवेदक को ३॰॰॰ रूपय्ो नकद एवं आवेदक से ली गई ३॰॰ रूपय्ो की राशि पर य्ाह मामला उपभोक्ता फोरम में प्रस्तुति दि। २७ सितंबर १२ से भुगतान करने की तिथि तक दस प्रतिशत वार्षिक ब्य्ााज की दर से ब्य्ााज का भुगतान करने के आदेश दिय्ो हैं।

नकली आरमेचर मामले में हुआ जुर्माना


नकली आरमेचर मामले में हुआ जुर्माना

(शिवेश नामदेव)

सिवनी (साई)। झ्ाूठी प्रवंचना कर अमानक स्तर का घटिय्ाा एवं नकली आरमेचर बेचने और विधिसम्मत पक्की रसीद भी जारी न करने के कारण विक्रेता ए।के। इन्टरप्राईजेस, विनय्ा रेडिय्ाोज के बाजू में, बुधवारी बाजार सिवनी के प्रोप्राइटर/संचालक क्रेता शोएब खान वल्द नजीर खान निवासी अग्रवाल धर्मशाला के पीछे दुर्गा चौक सिवनी को ४ हजार रूपय्ो का नकद जुर्माना दो माह के भीतर अदा करेंगे। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम सिवनी के प्रकरण क्रमांक १॰२/२॰१२ में फोरम के अध्य्ाक्ष श्री रवि कुमार नाय्ाक द्वारा क्रेता के पक्ष में य्ाह निर्णय्ा गत १३ दिसंबर को जारी किय्ाा गय्ाा। विक्रेता को क्रेता से आरमेचर के मूल्य्ा के रूप में लिय्ो गय्ो १७॰ रूपय्ो भी लौटाने होंगे।
उपभोक्ता हित में लिय्ो गय्ो इस निर्णय्ा का लब्बो-लुआब कुछ य्ाूं है कि क्रेता द्वारा विक्रेता की दुकान से खरीदे  गय्ो आरमेचर को टेस्ट करने पर त्र्ाुटिपूर्ण व अमानक स्तर का पाय्ो जाने पर, उसे वापस न लेने और विक्रय्ा का उचित प्रकार का बिल न देने और वारंटी से मना कर, दुव्यर््ावहार करने पर विक्रेता द्वारा अपनाई गई इस अनुचित व्य्ाापार प्रथा व सेवा में कमी के संबंध में हर्जाना दिलाने और त्र्ाुटिपूर्ण आरमेचर का विक्रय्ा मूल्य्ा वापस दिलाने के संबंध में उपभोक्ता फोरम में य्ाह प्रकरण छह अक्टूबर को लगाय्ाा गय्ाा था। विक्रेता की दुकान में वाईडिंग मटेरिय्ाल, स्पेय्ार पार्टस आदि का सामान विक्रय्ा व रिपेय्ार किय्ो जाते हैं। क्रेता द्वारा कई बार विक्रेता से नकली आरमेचर वापस कर लेने का अनुरोध भी किय्ाा गय्ाा, परन्तु विक्रेता द्वारा उसे वापस न लिय्ो जाने पर पुलिस में रिपोर्ट भी किय्ाा और अधिवक्ता के माध्य्ाम से ७ सितंबर १२ को लिखित नोटिस भी विक्रेता को भेजा। परन्तु विक्रेता द्वारा क्रेता को कोई राहत नहीं दी गई। क्रेता द्वारा आपत्ति किय्ो जाने पर विक्रेता ने उसके साथ अभद्रता की और कहा कि आपको जो करना है, कर लेना मैं भी वकील हूं। तो क्रेता ने विक्रेता के इस कृत्य्ा की शिकाय्ात पुलिस में दर्ज कराई थी। प्रकरण की जांच में य्ाह पाय्ाा गय्ाा कि विक्रेता ने उक्त आरमेचर का दोष छिपाते हुए, बगैर टेस्ट किय्ो व वापसी से बचने के लिय्ो दोषपूर्ण बिल जारी किय्ाा और बाद में उसमें टीप लगाकर झ्ाूठा साक्ष्य्ा गढने का प्रय्ाास किय्ाा है, जो कि अनुचित व्य्ाापार प्रथा का परिचाय्ाक है तथा त्र्ाुटिपूर्ण आरमेचर वापस न कर ग्राहक सेवा में भी कमी की।
इस पर उपभोक्ता फोरम द्वारा पारित निर्णय्ा में विक्रेता को क्रेता को ४ हजार रूपय्ो का जुर्माना देने सहित त्र्ाुटिपूर्ण आरमेचर का मूल्य्ा १७॰ रूपय्ो भी वापस करने को कहा गय्ाा है। आरमेचर की मूल्य्ा अदाय्ागी के पश्चात ही विक्रेता आरमेचर के क्रेता से उस त्र्ाुटिपूर्ण आरमेचर को वापस प्राप्त कर सकेगा।   

महानता के बरगद तले भारतीय रंगमंच


महानता के बरगद तले भारतीय रंगमंच

(अश्विनी कुमार पंकज)

सामंती और औपनिवेशिक गुलामी से भारतीय समाज अभी भी उबरा नहीं है। बल्कि ग्लोबलाइजेशन के बाद उसमें और गहरे धंस जाने की होड़ लगी है। भारत के स्त्री, किसान-मजदूर और दलित-वंचित उत्पीड़ित राष्ट्रीयताओं के सृजन संघर्ष को साहित्य, कला, रंगमंच में अंकन का ऐतिहासिक सवाल हो या फिर आर्थिक-सामाजिक क्षेत्रों में उनकी दावेदारी की बात हो, चाहे शिक्षा, संस्कृति, इतिहास, राजनीति, आजीविका का मंच हो, सामंती और औपनिवेशिक जकड़न ढीली होने की बजाय और मजबूत होती ही दिख रही है। अंधश्रद्धा व आस्था का बाजार इस कदर हावी है कि आप किसी महानपर उंगली नहीं उठा सकते, मिथकों और इतिहास का पुनर्पाठ नहीं कर सकते। लिंगगत, नस्लीय, जातीय अमानवीय धार्मिक परंपराओं पर सवाल नहीं कर सकते। गिरीश कारनाड जैसे संजीदा नाटककार द्वारा टैगोर पर दिए गए बयान कि वे एक महान कवि तो हैं पर दोयम दर्जे के नाटककार हैपर जिस तरह से प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, उसका एक बड़ा संकेत यही है कि हम सामंती-औपनिवेशिक गुलाम मानसिकता से निकलने को तैयार नहीं हैं। टैगोर पर इसलिए सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए कि वे महानहैं।
साहित्यिक क्षेत्र में इस तरह के वक्तव्यों, विचारों का विवाद नया नहीं है, पर यह पहली बार हुआ है कि किसी एक ही बयान ने अभिव्यक्ति की दो बड़ी विधाओं के व्यापक परिधि को एक साथ अतिक्रमित किया है। टैगोर साहित्य भी रचते हैं, नाटककार भी हैं, गायक और संगीतज्ञ भी हैं। कुल मिलाकर एक व्यापक सांस्कृतिक दायरा हैं टैगोर। वह भी भारतीय नवजागरण के अग्रदूतबंगाल के नागरिक। जाहिर है, कारनाड के बयान की चोटिलता भी बड़े स्तर पर महसूस करेंगे लोग। लेकिन कारनाड का बयान जिस विमर्श की मांग कर रहा है, प्रतिक्रियाएं और जोर उस पर कम, महानता व कारनाड की नीयत पर ज्यादा केन्द्रित हैं। यह महानतावाद सामंती व औपनिवेशिक मानसिकता है और इसी आलोक में कारनाड के बयान पर विमर्श जरूरी है।
औपनिवेशिक गुलामी का प्रमुख लक्षण है सत्ता द्वारा स्थापित प्रतीकों को आंख मंदकर भक्तिभाव से स्वीकार कर लेना। अगर हम गोर्की जैसे विदेशी शख्सीयत की बजाय भारतेंदु, फुले, भिखारी ठाकुर, स्वामी अछूतानंद, प्रेमचंद, निराला, धूमिल, रघुनाथ मुर्मू जैसों की ही बात करें तो क्या इनकी लोकप्रियता नोबल या ज्ञानपीठ जैसे पुरस्कारों की देन है? जाहिर है कि नहीं। आप जानते हैं कि शेक्सपीयर जैसे साहित्यकारों की विश्वव्यापी लोकप्रियता ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों ने गढ़ी है। वे अपनी अंग्रेजी भाषा के साथ शेक्सपीयर को अपने कॉलोनी देशों में नहीं ले जाते तो इन्हें कोई भी वैसे ही नहीं जानता जैसे कि हम 19वीं सदी के या इसके पूर्व के अन्य लेखकों को नहीं जानते। शायद वे शेक्सपीयर से महान भी हों।
इसी तरह यह मानते हुए भी कि टैगोर निःसंदेह महान रचनाकार हैं उनकी व्यापक स्वीकार्यता में नोबल की प्रभावी भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता। प्रेमचंद और टैगोर के सांस्कृतिक विस्तार के दो विपरीत छोर हैं। एक औपनिवेशिक गुलामी के खिलाफ शासकवर्ग के तमाम अवरोधों बंदिशों के बीच व्यापकता ग्रहण करता है तो दूसरा उसके पुरस्कार के जरिए। लोकप्रियता के इस आयाम में प्रभुसत्ता के स्वीकृति की औपनिवेशिक मानसिकता रही है, तब और आज के अनुभवों से तो ऐसा ही मालूम होता है। व्यापक स्तर पर गोष्ठियां, विमर्श, स्मृतियां, सम्मान, श्रद्धांजलियां उन्हीं लोगों को समर्पित होती हैं जो बड़े सरकारी या ज्ञानपीठ-नोबल जैसे लखटकिया गैर-सरकारी पुरस्कारों-सम्मानों से अलंकृत हुए रहते हैं, महानगरों में रहते हैं, या फिर अपनी रचनाओं से महानगरों में उपस्थित हुए रहते हैं। भाषा नहीं जानने के कारण हम गैरहिंदी राज्यों के लोगों को नहीं जानते हैं, यह एक अलग मुद्दा है। परंतु हिंदी क्षेत्र के ही लोगों के साथ जब यह लगातार हो रहा हो, मामला बहुत संजीदा हो जाता है। जबकि साहित्य, कला, रंगमंच के सभी क्षेत्रों में हम और आप सभी शायद ऐसे बहुत लोगों को शायद जानते हों जो रचना के स्तर पर किसी भी महानरचनाकार से कमतर नहीं हैं। पर पुरस्कार-सम्मान व महानगरों में वे नहीं हैं इसलिए उनके रचने-जीने-मरने से हमारा कोई सरोकार नहीं है।
भाषाई विभिन्नता भी इसमें एक कारक है। पर इसके बरक्स जब हम यह देखते हैं कि अंग्रेजी के चश्मे से दुनिया को देखने-समझने में हमारी जितनी दिलचस्पी है, उतना लगाव हम अपने आसपास, अगल-बगल के अन्य भारतीय भाषिक समाज के प्रति बिल्कुल नहीं रखते है। उत्तर-मध्य भारत के विशाल हिंदी पट्टी में हिंदी किसी की मातृभाषा नहीं है। स्पष्ट है कि हिंदी क्षेत्र अनेको देशज बोलियों व भाषाओं का समुच्चय है। फिर यह सांस्कृतिक समुच्चय हिंदी के सृजनात्मक संसार में क्यों नहीं दिखता? उनको रोजाना देखते हुए भी हिंदी विश्व के आंख-कान क्यों बंद हैं? आसपड़ोस के स्वयं से इतर भाषाई समाज का घर-गांव हम नहीं देख रहे परंतु फ्रांस, अमेरिका, इंग्लैण्ड आदि न जाकर भी दिन-रात उसी ओर नजर गड़ाए हुए हैं। यह और कुछ नहीं प्रभुसत्ता के मापदंडों व उनके मूल्यों पर खरे उतरने, उनकी स्वीकृतियां पाने और वैश्विक (सामंाज्य विस्तार) आकांक्षाओं की ही औपनिवेशिक मानसिकता है।
साहित्य और रंगमंच से हमारा रिश्ता रहा है और इस परिचय के आधार पर कह सकता हूं कि महानताके मापदंड औपनिवेशिक हैं। जैसे आजादी (सत्ता हस्तांतरण) के बाद शासन, प्रशासन, विधि व्यवस्था, शिक्षा आदि सभी क्षेत्रों में औपनिवेशिक नीतियों को जस का तस लागू कर दिया गया और जब-जब इनमें से किसी केे खिलाफ व्यापक जनाक्रोश सामने आया, कुछ लीपा-पोती कर दी गई। इसी तरह सृजनशील विधाओं में भी सामंती और पूंजीवादी मूल्यों को ही कुछ भारतीयकिस्म का रंगरोगन कर औपनिवेशिक गुलामी को स्वीकार कर लिया गया। सांस्कृतिक स्तर पर यह सब बहुत ही सुनियोजित ढंग से हुआ और शासक वर्ग ने इसमें प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष भरपूर सहयोग दिया। सत्ता हस्तांतरण के बाद नये भारत के निर्माण व एकीकरण की बुनियाद हिंदी हिंदू हिंदुस्तानही रहा। भाषाई और सांस्कृतिक बहुलता को संविधान में स्वायत्तता और अधिकार प्रदत्त करने की संकल्पना के बावजूद संस्कृतिकरणकी नीति जबरन थोप दी गई। परिणाम हमारे सामने हैं। सत्ता हस्तांतरण के छह दशकों बाद भी भाषाई और सांस्कृतिक बहुलता के समर्थन, संरक्षण व विस्तार का मसला महज तात्कालिक राजनीतिक फायदे-नुकसान का मुद्दा है। भारत की चारों भौगोलिक व राजनीतिक दिशाएं - उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम - एकदूसरे से अनजान हैं और राष्ट्रीयता व आत्मनिर्णय के अधिकार के सवाल पर राज्यसत्ता से मुठभेड़ कर रही हैं।
महान लोगों और उनकी महानता पर वही उंगली उठा सकता है जो सामंती व औपनिवेशिक सोच की दासता से मुक्त है। गिरीश कारनाड का वक्तव्य कम से ऐसी हिम्मत करता है। वे कहां बोल रहे थे, कैसे बोल रहे थे, कैसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे आदि सवाल महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि उन्होंने क्या सवाल रखा। कारनाड ने स्पष्ट कहा कि टैगोर जितने महान कवि हैं उतने ही महान नाटककार नहीं हैं। उनके नाटक दोयम दर्जें के हैं। उनके लिखे नाटकों में से कुछ ही नाटक पर काम हुआ है। बीते 50 साल में भारत ने बादल सरकार, मोहन राकेश और विजय तेंदुलकर जैसे तमाम नाटककार पैदा किए हैं। वे टैगोर से कहीं बेहतर थे। चूंकि टैगोर अभिजात और कुलीन वर्ग से संबंधित थे इसलिए वो गरीबों के चरित्र को समझ नहीं पाते थे। टैगोर के नाटकों में गरीब आदमी सिर्फ कार्ड-बोर्ड कैरेक्टर की तरह था जिसमें भावना और वेदना की कमी थी। उनके नाटक असरदार नहीं थे और बंगाली थियेटर पर भी टैगोर के नाटकों का ज्यादा प्रभाव नहीं दिखाई देता। सिर्फ नोबल पुरस्कार मिल जाने से ये नहीं मान लेना चाहिए की वो शख्स हर मायने में अद्भुत होगा।ध्यान रहे कि कारनाड इसे पांच वर्ष पूर्व अपनी पुस्तक में भी लिख चुके हैं। जाहिर है कारनाड उनकी महानता से अभिभूत या आक्रांत हुए बिना उनके नाट्य साहित्य पर विमर्श की मांग कर रहे हैं। टैगोर के नाटकों में गरीबों के चित्रण का सवाल उठाते हुए यह बात कह रहे हैं। पर उनके वक्तव्य को वर्गीय दृष्टि की बजाय नोबल प्राप्त महानताके सामंती व औपनिवेशिक दृष्टि से ही देखा जा रहा है।
कारनाड के बयान पर आई कुछ प्रतिक्रियाओं से इसे और अच्छी तरह से समझा जा सकता है। दादा साहब फाल्के अवार्ड से सम्मानित रंगमंच और फिल्म के वरिष्ठ अभिनेता सौमित्रो चटर्जी कहते हैं - एक नोबल प्राप्त साहित्यकार को दोयम दर्जें का कहना शर्मनाक है।बंगाल के जानेमाने रंगकर्मी देवाशीष राय चौधरी जिन्होंने टैगोर के कई नाटकों का निर्देशन किया है, की प्रतिक्रिया है - कारनाड बंगाली नहीं हैं और बांग्ला नहीं जानते हैं इसलिए शायद उन्होंने टैगोर के सारे नाटक नहीं पढ़े हैं। उनके वक्तव्य को गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए।प्रमुख बांगला रंगकर्मी विभाष चक्रवर्ती ने कहा - यह उनके निजी विचार हैं और मैं उनसे सहमत नहीं हंू। उनकी राय को समूचे रंगजगत की राय नहीं माननी चाहिए।सीपीआई के  नेता गुरुदास दासगुप्ता के अनुसार - यह हमारे लिए बेहद दुखद है कि एक आदमी जिसे हम उसके ज्ञान, संस्कृति और नाटक के लिए पसंद करते हैं, उसने बदकिस्मती से इस तरह का बयान दिया है। यह जनता की अभिव्यक्ति को नहीं समझ पाने के कारण है। सौ साल से भी ज्यादा समय से जो लोकप्रिय है उसके लेखन को स्तरहीन कहना सचमुच दुखद है।’ (पीटीआई न्यूज, टाईम्स ऑफ इंडिया, 9 नवंबर 2012) दिल्ली बेस्ड टैगोर विशेषज्ञ प्रो। आनंद लाल की राय है - गिरीश कारनाड जिस स्तर पर हैं, उस स्तर से ऐसी बात कहना ठीक नहीं है। हालांकि वे पिछले 20 वर्षों से ऐसा कह रहे हैं पर एक खास मुकाम पर पहुंचकर उन्हें इस तरह का गैरऐतिहासिक बयान देकर लोगों को गुमराह नहीं करना चाहिए।’ (सीएनएन-आईबीएन लाइव वेबसाइट, 10 नवंबर 2012)
ये प्रतिक्रियाएं बताती हैं कि कारनाड के बयान को महज क्षेत्रीय और नोबल महानता के चश्मे से देख रहे हैं लोग। जाति आधारित सामाजिक संरचना और वर्ग विभाजित समाज में स्त्री व गैर-स्त्री, दलित व गैर-दलित और आदिवासी व गैर-आदिवासी घटकों के दुख, क्षोभ एवं संघर्ष के नितांत विशिष्ट अनुभव और अभिव्यक्तियां हैं। सामान्य कमजोर, दुखी, गरीब चरित्रों के रूप में स्त्री, दलित और आदिवासी समाजों के विशिष्ट सवालों को नहीं संबोधित किया जा सकता। लिहाजा रंगमंच की दुनिया को ऐसे विमर्शों का स्वागत करना चाहिए। क्योंकि कारनाड वर्ग विभाजित समाज में नाटक और रंगकर्म की प्रवृति पर बोल रहे हैं। टैगोर की 150वीं जयंती के अवसर पर महानता के गुणगान से अगर हमें ऐतराज नहीं है फिर हम उनपर और उनके बहाने भारतीय नाट्य पर विमर्श से क्यों कतरा रहे हैं? क्या नाटक और रंगमंच हमारी सदी के सबसे प्रमुख विमर्श सामाजिक न्यायसे बाहर रहना चाहिए? इस सवाल और विमर्श को आगे बढ़ाना चाहिए। विशेषकर हिंदी रंगजगत को। क्योंकि उसका प्रभाव अन्य भारतीय भाषाओं की अपेक्षा व्यापक है। लेकिन हिंदी रंगजगत की चुप्पी बता रही है कि महानबनने की लालसा ज्यादा है, सामंती व औपनिवेशिक दासता से मुक्ति की छटपटाहट कम। (साई फीचर्स)