सोमवार, 19 अप्रैल 2010

मोदी का सिक्सर, थुरूर मैदान के बाहर

कब तक क्षमा करोगे शिशुपाल को - - -(3)
 
मोदी का सिक्सर, थुरूर मैदान के बाहर
 
ट्वंटी ट्वंटी अब निर्याणक मोड पर
 
मन्त्री ने दिया सांसद की हैसियत से बयान
 
बडे बेआबरू होकर तेरे कूचे से थुरूर निकले
(लिमटी खरे)

आजाद भारत के एक जिम्मेदार मन्त्री शशि थुरूर और आईपीएल के चेयरपर्सन ललित मोदी के बीच आरम्भ हुए अन्तहीन विवाद में रोजाना ही कोई न कोई रोचक मोड आता जा रहा है। अब भारत गणराज्य के मन्त्री शशि थुरूर ने देश की सबसे बडी पंचायत में अपनी सफाई बतौर मन्त्री न देकर बतौर सांसद देकर नए विवाद को जन्म दे दिया है। थुरूर के इस कदम से न केवल उनकी खुद की वरन् समूची कांग्रेस की भद्द पिटती नज़र आ रही है। प्रधानमन्त्री ने अप्रिय और कडा कदम उठाते हुए शशि थुरूर को मन्त्रीमण्डल से रूखसत कर दिया है।
 
थुरूर की इस बचकानी हरकत पर मन्त्रीमण्डल के एक अन्य सहयोगी फारूख अबदुल्ला ने तो यहां तक कह दिया है कि अगर वे थुरूर की जगह होते तो देश और सरकार की गरिमा को बचाने के लिए वे त्यागपत्र दे देते। फारूख अब्दुल्ला का कहना था कि शशि थुरूर को सुनन्दा से अपने रिश्ते छिपाना नहीं चाहिए था। अब्दुल्ला के बयान को कांग्रेस ने काफी गम्भीरता से लिया है। कांग्रेस को डर था कि शशि थुरूर के मामले में अगर ज्यादा लोगों के मुंह खुल गए तो उसे परेशानी उठानी पड सकती है।
 
शशि थुरूर की रूखसती के बाद अब ललित मोदी को धोबीघाट पर कपडे की तरह धुलाई की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है। कांग्रेस इस मामले में बेकफुट पर है और अब मोदी जिस करवट मिलेंगे उस करवट ही उनकी धुनाई होगी। मामला आगे न बढे इसलिए अब ललित मोदी के जानने वालों पर भी गाज गिराकर मोदी को भयाक्रान्त करने का प्रयास किया जाएगा। उधर आयकर का शिकंजा भी मोदी मण्डली पर जमकर कसने की उम्मीद से इंकार नहीं किया जा सकता है। रान्देवू स्पोर्टस केे सीईओ शैलेन्द्र गायकवाड के भाई रवि गायकवाड जो क्षेत्रीय उप परिवहन अधिकारी हैं, एवं उनका स्थानान्तरण मराठवाडा से बीड कर दिया गया था, को निलंबित करने की प्रक्रिया महाराष्ट्र की कांग्रेसनीत सरकार ने आरम्भ कर ही दी है।
 
सबसे अधिक आश्चर्य तो उन खबरों पर होता है, जिनमें कहा जा रहा है कि आईपीएल विवाद उभरने के पहले ही केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड को जो रिपोर्ट सोंपी गई थी उसमें मोदी के रिश्तेदारों के नामों सहित अनेक नामों को विवादित माना गया था। इतना ही नहीं तीन सालों में मोदी की संपत्ति में बेतहाशा बढोत्तरी की बात भी इस रिपोर्ट में थी। बावजूद इसके केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड आखिर कार्यवाही के लिए किसकी हरी झण्डी का इन्तजार कर रहा था, जो इस विवाद के बाद सक्रिय हुआ।
 
भाजपा ने भी एक तीर से कई निशाने साधते हुए थुरूर को पलनिअप्पम चिदंबर से सबक लेने की नसीहत दे डाली है। भाजपा का कहना है कि नरसिंहराव सरकार में जब चिदम्बरम वाणिज्य मन्त्री थे, तब उन पर उनकी पित्न को एक कंपनी के शेयर बाजार से कम कीमत पर देने के आरोप लगे थे, तब चिदम्बरम ने तत्काल नैतिकता के आधार पर त्यागपत्र दे दिया था, पर थुरूर कुर्सी से चिपके रहे और आखिरकार उन्हें बेइज्जत होकर जाना पडा।
 
टि्वटर से चर्चा में आए थुरूर का विवादों से गहरा नाता रहा है। कांग्रेस की सदस्यता लेते वक्त शशि थुरूर ने कोिच्च में शशि थुरूर ने देश के राष्ट्रगान का सरासर अपमान किया था। अमूमन राष्ट्रगीत के बजते, गाते, सुनते समय हर भारतवासी सावधान की मुद्रा में रहता है, पर विदेशों में ज्यादा समय बिताने वाले शशि थुरूर ने सावधान की मुद्रा को न अपनाकर दुनिया के चौधरी अमेरिका की तर्ज पर दिल पर हाथ रखकर इसे न केवल खुद गाया वरन् लोगों को भी एसा करने प्रेरित किया।
 
पिछले साल वैश्विक स्तर पर आर्थिक मन्दी के चलते हर जगह फिजूलखर्ची पर रोक के बावजूद भी शशि थुरूर ने सरकारी खर्च पर फाईव स्टार होटल को अपना आशियाना बना लिया था। सितम्बर 2009 में होटल ताज के फाईव स्टार सूट में दो माह रहने के बाद आज तक यह बात सार्वजनिक नहीं हो सकी है कि उस होटल का भोगमान (बिल) किसने भोगा, भारत सरकार ने, थुरूर ने या उनके किसी मित्र ने। इस मामले के उजागर होने पर कांग्रेस को बहुत जिल्लत झेलनी पडी थी।
 
इसी माह शशि थुरूर ने एक और हंगामा खडा किया। देशवासियों को दिखाने के लिए जब कांग्रेस की राजमाता ने देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली से व्यवसायिक राजधानी मुम्बई तक का हवाई सफर 20 सीटों को खाली करवाकर इकानामी क्लास में किया तब दूसरे ही दिन थुरूर ने सोशल नेटविर्कंग वेवसाईट टि्वटर पर हवाई जहाज की इकानामी क्लास को केटल क्लास (मवेशी का बाडा) की संज्ञा दे दी। इसके बाद कांग्रेस को खून का घूंट पीना पडा क्योंकि इसके सोनिया गांधी की यात्रा से जोडकर देखा जा रहा था।
 
दिसम्बर 2009 में जब केन्द्रीय गृह मन्त्रालय ने वीजा सम्बंधी नियमों को कडे करने का फैसला लिया तब फिर शशि थुरूर ने इसे गैरवाजिब बताया। दरअसल यह फैसला इसलिए लिया गया था, क्योंकि 26/11 की साजिश में शामिल आरोपी डेविड हेडली और तहव्वूर राणा को लांग टर्म मल्टी एंट्री वीजा मिला हुआ था। इस पर भी थुरूर की टि्वट ने सरकार के खिलाफ ही जहर उगला था।
 
देश के पहले प्रधानमन्त्री और कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के परनाना जवाहर लाल नेहरू को भी शशि थुरूर ने नहीं बख्शा। 8 जनवरी 2010 को लार्ड भीखू पारेख के एक प्रोग्राम मे शशि थुरूर का कहना था कि गांधी के योगदान और नेहरू की नीतियों से देश की स्थिति मजबूत तो हुई है, किन्तु इससे विश्व के सामने हमारी नकारात्मक छवि बनी है। हम वैश्विक मसलों पर नैतिकता को रगडते रहते हैं। इतना ही नहीं देश जिस मोहनदास करमचन्द गांधी को राष्ट्र का पिता मानकर नमन करता है उनकी जयन्ती पर शशि थुरूर का मानना है कि गांधी जयन्ती पर घर पर न बैठा जाए, काम किया जाए।
 
शशि थुरूर के ग्यारह महीनों के कार्यकाल में उन्होंने कांग्रेस को तबियत से नुकसान पहुंचाया है, फिर भी कांग्रेस की राजमता श्रीमति सोनिया गांधी और वजीरे आजम डॉ.मन मोहन सिंह ने उन्हें गले से लगाकर रखा एवं शिशुपाल की तरह उनकी गिल्तयों को भी माफ किया। कांग्रेस ने एसा क्यों किया यह तो वह ही जाने पर शशि थुरूर कांग्रेस के उजले दामन पर एक बदनुमा दाग बनकर इतिहास में सदा कांग्रेस के लिए खटकेगा। आने वाले चुनावों में भी शशि थुरूर का मामला एक मुद्दे की तरह उछाला जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

सिहांसन पर बोने ही नज़र आ रहे हैं गडकरी

सिहांसन पर बोने ही नज़र आ रहे हैं गडकरी

गद्दी सम्भालने में हो रही परेशानी
 
गुटबाजी आ रही काम में आडे
 21 की रेली बनी प्रतिष्ठा का प्रश्न
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 19 अप्रेल। सूबाई राजनीति से निकलकर एकाएक राष्ट्रीय परिदृश्य में बिठा दिए गए भाजपा के नए निजाम नितन गडकरी को अब गद्दी सम्भालना मुश्किल हो रहा है। सालों से केन्द्र की राजनीति में जमे जकडे नेताओं के काकस में वे धीरे धीरे घिरते नज़र आ रहे हैं। भाजपा में फैली गुटबाजी और सत्ता के लिए ललक के साथ ही महात्वाकांक्षी नेताओं ने गडकरी को बोना ही साबित करना आरम्भ कर दिया है। 21 अप्रेल को आहूत रेली की सफलता पर उनका आने वाला समय कैसा होगा यह काफी हद तक निर्भर करेगा।
 
भाजपा को घुन की तरह खाने वाले नेताओं के तेवरों को देखकर नितिन गडकरी को अपने अनेक फैसले खुद ही बदलने पड रहे हैं। भाजपा के नेताओं को अपने अपने क्षेत्रों में माह में कम से कम आठ दिन रहने के निर्देश के बाद उसे बदलकर आठ दिन करना गडकरी की मजबूरी हो गई थी। इसके अलावा 21 अप्रेल की रेली में दस लाख लोगों के जमावडे के लक्ष्य को भी घटाकर साढे तीन लाख पर लाकर खडा करना पडा। यह सब इन्ही घाघ नेताओं के कदम तालों के चलते हुआ है।
 
गौरतलब है कि गडकरी ने अध्यक्ष बनने के बाद यह कहा था कि वे अपनी टीम में उन्हीं लोगों को स्थान देंगे जो हर माह कम से कम दस दिन अपने क्षेत्र को समय देंगे। जब ``टीम गडकरी`` का गठन हुआ तो उसमें पुराने पदाधिकारियों को देखकर हर कोई इसे नई बोतल में पुरानी शराब की संज्ञा देने से नहीं चूका। टीम गडकरी के गठन के साथ ही साथ असन्तोष की खिचडी भी खदबदाने लगी है। लोग इसमें रूपहले पर्दे के अनुभवहीन अदाकारों को शोभा की सुपारी बनाए जाने से खासे खफा नज़र आ रहे हैं।
 
उधर नितिन गडकरी ने अब सूबों के अध्यक्षों की मश्कें कसना आरम्भ कर दिया है। भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्र बताते हैं कि गडकरी ने एक फरमान जारी किया है जिसमें साफ कहा गया है कि पार्टी के कार्यकर्ता अपनी समस्या के लिए पार्टी अध्यक्ष के कार्यालय के बाहर कतई न जाएं। अपनी समस्याएं पार्टी अध्यक्ष को न बताकर उन्हें दल के वरिष्ठ नेताओं के समक्ष रखने पर वे खासे नाराज नज़र आ रहे हैं।
 
नई व्यवस्था के तहत अब किसी भी मुद्दे को सिर्फ और सिर्फ पार्टी अध्यक्ष के दफ्तर में ही उठाया जा सकेगा, एवं पार्टी अध्यक्ष का कार्यालय ही उस पर कार्यवाही करेगा। शिकायतों को अब सीधे वरिष्ठ नेताओं तक ले जाने की मनाही है। सूत्रों ने साफ किया कि कार्यकर्ता चाहे तो वरिष्ठ नेता से मिल सकता है, किन्तु अपनी समस्या के बारे में वह नेता से चर्चा नहीं करेगा। गडकरी का यह कदम पार्टी को वरिष्ठ नेताओं के प्रभाव और गणेश परिक्रमा से मुक्त कराने के तौर पर देखा जा रहा है। संघ भी गडकरी की इस अभिनव पहल में उसके साथ ही खडा दिखाई दे रहा है।

राजा का काटा नहीं मागता है पानी

ये है दिल्ली मेरी जान
 (लिमटी खरे)
राजा का काटा नहीं मागता है पानी
देश के हृदय प्रदेश में दस साल लगातार राज करने वाले कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह को इक्कीसवीं सदी में कांग्रेस के आधुनिक चाणक्य की उपाधि से अघोषित तौर पर नवाजा जाता है। मध्य प्रदेश में अपने शासनकाल में उन्होंने संयुक्त मध्य प्रदेश में विद्याचरण, श्यामाचरण शुक्ल, अर्जुन सिंह, स्व.माधव राव सिंधिया, अजीत जोगी, कमल नाथ जैसे दिग्गजों को धूल चटा दी थी। इसके बाद 2003 में कांग्रेस के औंधे मुंह गिरने के बाद उन्होंने केन्द्र की राजनीति की ओर रूख किया है। आज की तारीख में राजा दिग्विजय िंसंह कांग्रेस के सबसे ताकतवर महासचिव राहुल गांधी के बाद दूसरी पायदान पर विराजे हैं। पिछले दिनों एक अखबार में उन्होंने नक्सलवाद के खिलाफ गृहमन्त्री पी.चिदम्बरम के खिलाफ टीका टिप्पणी कर ठहरे हुए पानी में हलचल मचा दी है। सियासी हल्कों में चल रही बयार के अनुसार दिग्विजय के इस कदम के पीछे राहुल गांधी का समर्थन था। उधर कांग्रेस की राजमाता को भी भरोसे में लिया गया था। यह अलहदा बात है कि तय रणनीति के अनुसार बाद में कांग्रेस ने इस बात से पल्ला झाड लिया, पर दिग्गी राजा के जहर बुझे तीर का ही कमाल था कि पलनिअप्पम चिदम्बरम को आनन फानन अपना त्यागपत्र पेश करना पडा था।
सोनिया से सियासी गणित बिठाने में लगीं ममता
पश्चिम बंगाल में रेल्वे के विज्ञापनों से कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और प्रधानमन्त्री मन मोहन सिंह के फोटो यह कहकर निकालने वालीं कि रेलवे के विज्ञापनों में मनमोहन सोनिया का क्या काम, ममता बनर्जी अब सोनिया गांधी से राजनैतिक गणित ठीक ठाक करने में जुट गईं हैं। इसी तारतम्य में ममता बनर्जी ने उत्तर रेल्वे द्वारा सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को अपना ब्राण्ड एम्बेसेडर बनाने की कवायद को ठण्डे बस्ते में डाल दिया है। रेल्वे के सूत्रोें का कहना है कि मानव रहित रेल्वे क्रासिंग पर होने वाली दुघZटनाओं को रोकने के लिए उत्तर रेल्वे ने यह प्रस्ताव दिया था कि अमिताभ बच्चन को ब्राण्ड एम्बेसेडर बनाकर बिना मानव वाली रेल्वे क्रासिंग के खतरों के बारे में आगाह करें तो लोग उनका अनुसरण आसानी से कर लेंगे। बताते हैं कि अमिताभ इसके लिए तैयार भी हो गए थे, तभी ममता दीदी को किसी ने बताया कि बिग बी की एंट्री से सोनिया खफा हो सकतीं हैं, सो ममता ने तत्काल इस मामले को लंबित करने के निर्देश दे दिए। अब ममता चाहतीं हैं कि 22 अप्रेल को बंटने वाले रेल मन्त्री पुरूस्कार को सोनिया के हाथों बटवाया जाए, पर 10 जनपथ की महारानी इसके लिए तैयार होती नहीं दिख रहीं हैं।
गोविन्दाचार्य ने दिखाए तेवर
भाजपा छोडकर गए दो नेताओं गोविन्दाचार्य और उमा भारती ने अपने द्वारा बनाई गई पार्टियों से त्यागपत्र देकर एक मिसाल कायम की है। इन दोनों ही नेताओं की भाजपा में वापसी को लेकर अटकलों और अफवाहों के न थमने वाले दौर चल पडे हैं। दोनों ही नेताओं की घर वापसी में उनको पसन्द न करने वाले नेताओं ने रोढे अटकाने आरम्भ कर दिए हैं। इसी बीच भाजपा के नए निजाम ने गोविन्दाचार्य की घर वापसी के लिए प्रायशचित की शर्त से गोविन्दाचार्य बुरी तरह भडक गए हैं। उन्होंने भाजपाध्यक्ष नितिन गडकरी को जुबान पर लगाम लगाने की नसीहत तक दे डाली है। कभी भाजपा के थिंक टेंक रहे गोविन्दाचार्य के बारे में नए नवेले और सूबाई राजनीति से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति में पहुंचने वाले नितिन गडकरी को वैसे सोच समझकर ही बयान जारी करना चाहिए था। उन्होंने गडकरी को उनकी औकात दिखाते हुए कहा कि गडकरी को वाणी में संयम रखने की जरूरत है, जिससे उनकी छवि अनर्गल बोलने वाले और सतही एवं अक्षम नेता की न बन सके। गोविन्दाचार्य का कहना है कि उन्हें पार्टी से निकाला नहीं गया था, वे 9 सितम्बर 2000 को अध्ययनावकाश पर गए थे और 2003 के बाद उन्होंने प्राथमिक सदस्यता का नवीनीकरण नहीं कराया है।
घर के लडका गोंही चूसें, मामा खाएं अमावट
बहुत पुरानी बुन्देलखण्डी कहावत -``घर के लडका गोंही (आम की गुठली) चूसें, मामा खाएं अमावट (आम के रस से बनने वाला एक स्वादिष्ट पदार्थ) को चरितार्थ करते हुए, वैश्विक मन्दी के इस दौर में एक और जहां देश की आधी से अधिक आबादी को एक जून की रोटी भी मयस्सर नहीं है, वहीं दूसरी ओर राष्ट्रमण्डल खेलों से जुडी परियोजनाओं की समीक्षाओं को लेकर सुरेश कलमाडी की अध्यक्षता आयोजित 57 बैठकों में ही महज 29 लाख 26 हजार रूपए का नाश्ता गटक गए अधिकारी। है न अचरज की बात। कार्यकारी बोर्ड की एक दिन में हुई बैठक मे ंनाश्ते का कुल खर्च सिर्फ एक लाख 75 हजार रूपए आया है। यह बात सूचना के अधिकार में निकाली गई जानकारी में सामने आई हैं पहले तो सूचना के अधिकार के तहत आवेदन देखकर अधिकारियों के हाथ पांव ही फूल गए थे। काफी समय ना नुकुर करने के बाद जब आला अधिकारियों ने निर्देश दिया तब पांच महीनों बाद यह जानकारी मुहैया करवाई गई। नियमानुसार एक माह में जानकारी देने का प्रावधान है।
सज्जन की राह पर कमल नाथ!
चोरासी के दंगों की फाईलें बन्द होने का नाम ही नहीं ले रहीं हैं। छब्बीस साल बाद भी अगर दंगों के बारे में प्रकरण चल रहे हों तो भारत सरकार और कानून व्यवस्था को सलाम ही करना बेहतर होगा। साल दर साल प्रकरण चल रहे हैं, मीडिया में उछल रहे हैं। विपक्ष में बैठी भाजपा ने छ: साल लगातार शासन भी किया, फिर भी नतीजा ढाक के तीन पात। जाहिर है केन्द्र की सत्ता में चाहे कांग्रेस सत्तारूढ हो या भाजपा, दोनों मिलकर नूरा कुश्ती ही खेलते हैं, जनता तमाशबीन खडी चुपचाप सब कुछ देखती सुनती रहती है। सज्जन कुमार को इसमें बुरी तरह लपेट दिया गया है। इससे पहले कमल नाथ सहित अनेक नेताओं को क्लीन चिट दे दी गई थी। कमल नाथ का दुर्भाग्य तो देखिए कि जब वे अमेरिका में थे, तभी वहां की एक संघीय अदालत में न्यूयार्क के एक सिख संगठन सिख्ख फॉर जस्टिस की ओर से जसबीर सिंह और महिन्दर सिंह ने मामला दर्ज कराते हुए एलियन टॉटर्स क्लेम्स अधिनियम के तहत कमल नाथ को दण्ड देने और मुआवजा दिलाने की मांग की है। जसबीर ने अपने परिवार के 24 सदस्य खोए हैं तो उस वक्त दो साल के रहे महिन्दर ने अपने पिता को गंवाया था।
सूख गई मैया दाई की बाण गंगा
प्रकृति से लगातार हो रही छेडछाड से पर्यावरण का असन्तुल साफ दिखाई देने लगा है। कभी भीषण गर्मी तो कभी हाड कपाने वाली ठण्ड, और तो और सबसे अधिक बारिश वाले चेरापूंजी के सर से खिताब भी छिनने लगा है कि वहां सबसे ज्यादा पानी गिरता है। चहुं ओर हाहाकार मचा हुआ है। त्रिकुटा पर्वत पर विराजीं माता वेष्णो देवी के चरणों को धोने वाली बाणगंगा अब पूरी तरह सूख चुकी है। माता रानी के दर्शन को जाने वाले श्रृद्धालु इस पवित्र नदी में डुबकी अवश्य लगाते हैं। यह नदी समाखल क्षेत्र के 200 फुट उंचे पहाड के मध्य से प्रकट हुई है। इस नदी में माता रानी की गुफा से आने वाला झरना आगे जाकर मिल जाता है। बारिश की कमी से समाखल का तालाब पूरी तरह सूख चुका है। बाण गंगा के बारे में कहा जाता है कि अब तक यह नदी कभी भी नहीं सूखी यह पहला मौका है जब नदी सूख गई है। श्रृद्धालु इसे प्रलय का आगज ही मान रहे हैं।
पत्रकारों को रिझाया ममता ने
मीडिया को प्रजातन्त्र का चौथा स्तंभ माना गया है। मीडिया की ताकत से राजनेता अनजान नहीं है। मीडिया चाहे तो सरकार बना दे चाहे तो गिरा दे। आज मीडिया पथभ्रष्ट हो गया है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। मीडिया को रिझाने के लिए ममता बनर्जी ने पत्रकारों के साथ साथ साल में एक बार उसकी अर्धांग्नी को भी ले जाने की छूट प्रदान की थी। इससे वे तलाकशुदा, कंवारे और वे पत्रकार नाराज थे, जिनकी अर्धांग्नी अल्लाह को प्यारी हो गईं, सो ममता ने पत्रकारों के किसी भी सहचर को साल में एक बार आधे किराए पर यात्रा की अनुमति दे दी। अब ममता ने एक नया पांसा फेंका है, जिसके मुताबिक पत्रकारों के 18 साल तक के आश्रित बच्चे भी साल में एक बार पचास फीसदी किराए में यात्रा कर सकेंगे। वर्तमान में राजधानी शताब्दी एक्सपे्रस सहित सभी रेल गाडियों में पत्रकारों को पचास फीसदी किराए में असीमित यात्रा की सुविधा प्राप्त है। पत्रकार हैरान न हों, पश्चिम बंगाल चुनाव तक ममता बनर्जी पत्रकारों पर यूं ही मेहरबान रहने वालीं हैं।
राशि गरीबों या कलेक्टर के विकास के लिए
महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना की राशि गरीबों को रोजगार मुहैया कराने खर्च हो रही है या फिर कलेक्टर बंगलों को भव्य बनाने के लिए इस बात पर अब बहस चल पडी है। पहली बार मन्त्री बने ग्रामीण विकास राज्यमन्त्री प्रदीप जैन ने मध्य प्रदेश सरकार पर गम्भीर आरोप लगाया है कि केन्द्र सरकार द्वारा इस मद में दी जाने वाली राशि का दुरूपयोग हो रहा है। जिलों में जिलाधिकारियों के बंग्लों का रख रखाव इस मद की राशि से किया जा रहा है। प्रदीप जैन का आरोप है कि वर्ष 2009 - 10 में महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के तहत केन्द्र सरकार द्वारा 72061.418 लाख रूपए की राशि दी गई थी, जिसमें से राज्य द्वारा महज 53379.327 लाख रूपए ही खर्च किए हैं। इस मद में 15 सौ करोड रूपए की राशि तो मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने खर्च ही नहीं की। मजे की बात तो यह है कि मध्य प्रदेश कोटे से मन्त्री बने कमल नाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कान्तिलाल भूरिया, अरूण यादव सहित कांग्रेस के सांसदों ने कभी इस पहलू पर गौर ही नहीं फरमाया कि केन्द्र पोषित योजनाओं से उनके संसदीय क्षेत्र में चल रही योजनाओ में क्या घालमेल हो रहे है, वे ध्यान दें तो क्यों! आखिर 2013 में ही तो उन्हें दोबरा जनता के सामने जाना है, तब तक जनता सब कुछ भूल ही चुकी होगी।
आडवाणी आउट : मोदी इन
भारतीय जनता पार्टी का स्टेयरिंग सम्भालने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अब आने वाले आम चुनावोें के लिए भूमिका बांधन आरम्भ कर दिया है। हाल ही में संघ ने कहा है कि आगामी लोकसभा चुनावों में गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी ही भाजपा की ओर से प्रधानमन्त्री के दावेदार होंगे। इसके पहले एसआईटी द्वारा मोदी को तलब करने के मसले पर भाजपा के नए निजाम नितिन गडकरी ने कहा था कि मोदी प्रधानमन्त्री बनने के योग्य हैं और वे इन सब झंझटों से पार पा लेंगे। मोदी की तारीफों में गडकरी और संघ की एक सी सुरताल से अडवाणी की भजन मण्डली सकते में है। आडवाणी की मण्डली को अभी भी उम्मीद है कि आने वाले चुनावों में राजग एक बार फिर से आडवाणी पर दांव लगाएगा, पर संघ गडकरी की जुगलबन्दी से उनकी आशाओं पर तुषारापात होता लग रहा है। दूसरी ओर पीएम इन वेटिंग की राह में दूसरी सबसे सशक्त दावेदार सुषमा स्वराज द्वारा भी इस तरह की चाल चलकर आडवाणी को पाश्र्व में ढकेला जा सकता है।
बेटी के चक्कर में बेटों को दुश्मन न बना लें शिवराज
मध्य प्रदेश सूबे में बेटियों को बहुत ही सम्मान से देखा जाने लगा है। महिलाओं का हितैषी बन चुका है देश का हृदय प्रदेश, यह बात सोलह आने सच है। मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान भी बिटियों के लिए दीवाने बावले दिख रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय मुख्यालय में एक नेता ने नाम उजागर न करने की शर्त पर एक वाक्या सुनाया। मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में एक कार्यक्रम के दौरान शिवराज सिंह चौहान भावावेश में कुछ ज्यादा ही कह गए। उनके अनुसार कल तक यह मान्यता थी कि बेटा बुढापे की लाठी है, पर आज यह मिथक टूट गया है, बेटों की हरकतों को देखकर उन पर अविश्वास होने लगा है। अरे भले मानस अगर आज से 50, 55 साल पहले अगर इसी बात को सोचा गया होता तो आज मध्य प्रदेश को शिवराज सिंह चौहान जैसा योग्य मुख्यमन्त्री कैसे मिलता। शिवराज जी बेटियों की चाहत में जाने अनजाने में कहीं आप बेटों के मन में विरोध तो नहीं जगाने लगे हैं।
``आल इज नाट वेल`` विदिन बिग बी एण्ड अमर
समाजवादी पार्टी से बखाZस्त किए गए शातिर राजनेता अमर सिंह और सदी के महानायक बिग बी के बीच सब कुछ ठीक ठाक नहीं है। इस बार मुम्बई यात्रा पर आए अमर सिंह ने पहली दफा अमिताभ बच्चन के घर न रूककर सन्देश दे दिया है कि उनके बीच कुछ न कुछ गडबड अवश्य ही है। अमर सिंह ने अपने ब्लाग में लिखा है कि 9 अप्रेल को अपनी मुम्बई यात्रा के दौरान वे पहली बार अमिताभ बच्चन के घर नहीं रूके। अमूमन हर बार वे होटल में कमरा बुक अवश्य ही करवाते थे, पर अमिताभ के घर रात जरूर गुजारते थे। वैसे जया बच्चन के जन्म दिन पर वे बाकायदा उनके घर गए और शुभकामनाएं दीं। सदा ही खामोश रहकर वार करने वाले सदी के महानायक अमिताभ बच्चन इस मामले में पूरी तरह खामोश हैं। अमर सिंह अपनी ओर से अवश्य बार बार यह संकेत दे रहे हैं कि उनके और बिग बी के बीच अब सब कुछ सामान्य नहीं है।
सिलिकॉन इंप्लांट, जरा संभल कर
अपनी खूबसूरती को बढाने और शरीर को सुडोल आकार देने के लिए महानगरों में सिलिकॉन इम्पलांट का जोर है। पर अब यही बालओं के लिए खतरे की घंटी बजा रही है। दरअसल हवाई अड्डों पर सुरक्षा एजेंसियों द्वारा लगऐ स्केनर अब महिलाओं के द्वारा शरीर में सिलिकॉन इम्पलांट करने पर जोर से बीप बजाने लगता है। यह सिलिकॉन को एक मेटल की तरह डिटेक्ट करता है। वैसे इस तरह की घटनाएं कम ही प्रकाश में आईं हैं पर लोगों की प्राईवेसी के मद्देनज़र महिलाओं की चेकिंग के लिए अलग से कक्ष और मशीन के चीखने पर महिला सुरक्षा कर्मी शरीर की किसी अन्य बन्द कमरे में जांच कर पुष्टि करेंगी कि महिला ने सिलिकॉन इम्पलांट करवाया है या फिर कोई अस्त्र शस्त्र छुपाकर रखा है।
पुच्छल तारा
पिछले दिनों बस्तर में हुए अब तक के सबसे बडे नक्सली हमले के बाद पूरे देश में इनके समर्थन ओर विरोध पर चर्चाएं चल पडीं हैं। इसी बीच एक खबर आई कि दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में भी नक्सल विचारधारा के पोषक लोग हैं। गुजरात के वापी शहर से अनन्त अग्रवाल ई मेल भेजते हैं कि देश भर में कुकुर मुत्ते की तरह गली गली में स्कूल कालेज खुल गए हैं, तब नक्सलवादी अपना स्कूल या कालेज क्यों नहीं चलते, उनके पास जेनएयू है तो. . . .।