राहुल का नेतृत्व
पाने आतुर है कांग्रेस!
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली (साई)।
कांग्रेस में अब नेहरू गांधी परिवार से इतर कोई और नेता नहीं बचा है। सारे के सारे
कांग्रेस के सिपाही एक बार फिर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की ओर टकटकी लगाए
बैठे हैं कि वे आएं और बीच भंवर में फंसी कांग्रेस की नैया को खेकर ठिकाने तक
पहुंचाएं। राहुल कांग्रेस की नैया के खिवैया बनेंगे या नहीं यह तो वे ही जानें पर
जिस तरह से कांग्रेस के मीडिया प्रबंधक राहुल का एक बार फिर महिमा मण्डन कर रहे
हैं उससे साफ हो गया है कि कांग्रेस इस वक्त राहुल का नेतृत्व पाने बेकरार ही है।
आजादी के इतिहास
में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाली सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस का इतिहास काफी
गौरवशाली रहा है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। कांग्रेस ने आजादी के
उपरांत भी देश के नवनिर्माण में महती भूमिका निभाई है। कांग्रेस में नेहरू गांधी
परिवार का दबदाब रहा है यह बात भी सर्वविदित ही है, किन्तु राजीव गांधी
के उपरांत कांग्रेस में इस परिवार में करिश्माई नेतृत्व का अभाव साफ दिखाई देने
लगा।
नब्बे के दशक में
गैर नेहरू गांधी परिवार के मुखिया के बतौर नरसिंहराव ने पांच साल तक सरकार चलाकर
एक नया इतिहास कायम किया। इसके उपरांत जब कांग्रेस की नैया की पतवार जैसे ही इटली
मूल की सोनिया गांधी के हाथों में आई उसके उपरांत कांग्रेस का पतन आरंभ हो गया।
इक्कीसवीं सदी में पहले दशक में 2004 में अस्तित्व में आया कांग्रेसनीत संप्रग
दो का आरंभिक काल ठीक ठाक रहा पर संप्रग दो में घपले घोटालों ने कांग्रेस का जीना
दूभर कर दिया।
कांग्रेस के अंदर
चल रही चर्चाओं के अनुसार सोनिया गांधी के यस मैन डॉ.मनमोहन सिंह को वैसे तो
ईमानदार की संज्ञा दी जाती है पर पिछले दो सालों से मनमोहन सिंह को ईमानदार के
बजाए अब ‘भ्रष्टाचार
के ईमानदार संरक्षक‘
का तगमा अघोषित तौर पर इसलिए मिल गया क्योंकि उनके सामने
भ्रष्टाचार घपले, घोटालों के
अनगिनत बड़े छोटे खेल खेले गए और वे मौन बैठे रहे।
कहा जाता है कि
कांग्रेस अंदर ही अंदर टूट चुकी है। अब उसे आवश्यक्ता है संजीवनी की। यह संजीवनी
या तो राहुल गांधी अथवा प्रियंका गांधी से मिल सकती है या फिर उमर दराज नेताओं को
बाहर का रास्ता दिखाकर। राहुल गांधी का जादू उत्तर प्रदेश के चुनावों में साफ तौर
पर फ्लाप शो ही साबित हो चुका है। फिर भी कांग्रेस के मीडिया प्रबंधक उन्हें महिमा
मण्डित करने का जतन करते नजर आ रहे हैं।
राहुल गांधी ने भी
पिछले दिनों बड़ी भूमिका निभाने हेतु अपनी अनुमति देकर कांग्रेस के साथ ही साथ देश
पर एहसान कर दिया है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने मनमोहन
सरकार के मंत्री के रूप में नई पारी शुरू करने की पूरी तैयारी कर ली है।
कांग्रेस के सत्ता
और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया
से चर्चा के दौरान कहा कि इस बात की पूरी संभावना है कि वे रक्षा, मानव संसाधन या
ग्रामीण विकास मंत्रालय संभाल सकते हैं। सूत्रों की मानें तो अगर राहुल रक्षा
मंत्री बनते हैं तो पार्टी की नीति निर्धारण कमेटी यानी कोर गु्रप में भी वह शामिल
होंगे और इस मंत्रालय का मंत्री विवादों से भी परे है। अगर वे मानव संसाधन मंत्री
बनते हैं तो ज्यादा से ज्यादा शिक्षा संस्थानों में जाएंगे और युवा सोच को आगे
बढ़ाने का पार्टी को मौका मिलेगा। इसी तरह अगर वह ग्रामीण विकास की राह पकड़ते हैं
तो महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, जिसमें वे खासी
रुचि रखते हैं, को भी नया
आयाम मिल सकता है। साथ ही एआईसीसी में महासचिव भी वह बने रहेंगे यानी राहुल अब एक
साथ कई पारियों की शुरुआत कर सकते हैं।
उधर, राहुल को
मंत्रीमण्डल में शामिल करने की अटकलों के बीच अब शिंदे को दलित पीएम प्रोजेक्ट
करने की संभावनाओं पर पानी पड़ता नजर आ रहा है। भले ही शिंदे को देश का होम
मिनिस्टर और लोकसभा में सदन का नेता बना दिया गया हो पर उन्हें अब भी संगठन में
महत्वपूर्ण स्थान से दूर ही रखा गया है।
सुपर सीडब्लू सी के
नाम से पहचानी जाने वाली कांग्रेस के कोर ग्रुप की कमेटी मे शिंदे को शामिल ना
किया जाना इस बात की ओर संकेत दे रहा हे कि उन्हें दलित सैअलमेंट के बतौर यह पद
दिया गया है। पिछले सप्ताह हुई कोर ग्रुप की बैठक में शिंदे को आमंत्रित नहीं किया
जाना साफ दर्शाता है कि शिंदे को बतौर शोभा की सुपारी ही इस्तेमाल करने वाली है
कांग्रेस।
ज्ञातव्य है कि
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी के अलावा कोर ग्रुप में
रक्षा मंत्री ए के एंटनी, वित्त मंत्री पी चिदंबरम और सोनिया के राजनैतिक सचिव अहमद
पटेल शामिल हैं। चिदंबरम को गृह मंत्री रहते वक्त इस ग्रुप में शामिल किया गया था
और शिवराज पाटिल को भी गृह मंत्री के तौर पर इस समूह का सदस्य बनाया गया था।