डेंगू का निर्दयी
डंक और निष्ठुर प्रशासन
(शरद खरे)
सिवनी जिले में
डेंगू की दस्तक वाकई दुखदायी है। डेंगू का कहर सिवनी के निवासियों ने मीडिया के
माध्यम से ही देखा और सुना होगा। डेंगू का डंक वाकई बेहद खतरनाक होता है। मलेरिया
से तो जिलावासी रूबरू हो चुके हैं पर अब डेंगू का डंक उनकी परेशानी का सबब बन चुका
है। स्वास्थ्य प्रशासन भले ही इस मामले में शुतुरमुर्ग के मानिंद रेत में सर गड़ाकर
अपने आप को पाक साफ बताने का प्रयास कर रहा हो पर जमीनी हकीकत है हाल ही में हुई
डेंगू से एक मौत!
सिवनी में मलेरिया
और डेंगू के मरीज मिलने से हड़कंप मचा हुआ है। ये दोनों ही मच्छर जनित रोग हैं।
इसके साथ ही साथ मच्छर जनित चिकन गुनिया भी बेहद ही पीड़ा दायक रोग है। न ही नगर
पालिका को न ही स्थानीय निकाय की अन्य शाखाओं को और न ही स्वास्थ्य विभाग ने इसकी
रोकथाम के लिए कोई उपाय किए हैं। यही कारण है कि जिले में स्थिति भयावह हो चुकी
है। जिला मुख्यालय सिवनी में जहां देखो वहां पानी के डबरे, पोखर भरे पड़े हैं।
लोगों के घरों में भी पानी रूका हुआ है। कहा जाता है कि ठहरा हुआ पानी जानलेवा
मलेरिया के लिए जिम्मेदार मच्छरों के लिए उपजाऊ माहौल तैयार करता है। जिला
चिकित्सालय में पानी के डबरे निश्चित तौर पर इनके लिए संजीवनी का काम ही कर रहे
हैं।
कम ही लोग जानते
होंगे कि भारत की आजादी वाले साल यानी 1947 में मलेरिया जैसी घातक जानलेवा बीमारी ने
देश में दस लाख से ज्यादा लोगों की इहलीला समाप्त कर दी थी। तब से 2006 तक लगभग आठ लाख 12 हजार लोग इसकी
चपेट में आकर जान गंवा चुके हैं। चाहे महानगर हो या छोटा सा कस्बा, लोग आज भी इसके
आगोश में हैं।
दरअसल मादा
एनाफिलीस़ मच्छर जब इंसान को काटती है, तब वह एक विशेष तरह का वायरस मनुष्य के अंदर
प्रविष्ट करा देती है। यही वायरस मलेरिया को जन्म देता है। इस मादा मच्छर के पास
इंसानी त्वचा को भेदने के लिए एक विशेष तरह का हथियार होता है। शोध बताता है कि
इसके पास पतले डंक के अंत में सुईनुमा जुड़वा अस्त्र होता है।
यह मादा, इंसान के शरीर में
इसे प्रविष्ट कराकर रक्त वाहनियों की तलाश करती है। नहीं मिलने पर यह क्रम जारी
रखती है। नस मिलने पर यह मादा इंसान का कुछ रक्त चूस लेती है, और फिर डंक को बाहर
निकालने के पहले इसमें एक विशेष तरह का एंजाईम उसमें छोड़ देती है। शोधकर्ताओं की
मानें तो यह मादा मच्छर दो दिन में ही 30 से 150 तक अंडे देती है। इन अंडों को सेने के लिए
उसे मानव रक्त की आवश्यक्ता होती है।
मलेरिया का स्वरूप
विश्व भर में इतना विकराल हो गया है कि इसे दुनिया की तीसरे नंबर की सबसे बड़ी
महामारी का दर्जा मिल गया है। कहा जाता है कि एड्स से 15 सालों में जितनी
जानें जाती हैं, उतनी जान
मलेरिया रोग के कारण महज एक साल में ही चली जाती हैं। मलेरिया का सबसे अधिक प्रकोप
पांच साल से कम के बच्चों पर होता है। औसतन हर साल दुनिया भर में 25 लाख से अधिक लोग
इस भयानक बीमारी से अपने प्राण गंवा देते हैं।
विश्व हेल्थ
आर्गनाईजेशन (डब्लूएचओ) का प्रतिवेदन साफ तौर पर बताता है कि मलेरिया के मरीजों की
वृद्धि की दर हर साल 16 फीसदी आंकी गई है। यह तथ्य निश्चित रूप से चिंता का विषय कहा
जा सकता है। मलेरिया कितनी गंभीर बीमारी है यह इस बात से ही साफ हो जाता है कि हर
साल विश्व भर में 2 अरब डालर
से ज्यादा इस पर खर्च कर दिया जाता है। इतना ही नहीं मलेरिया को लेकर होने वाले
शोधों पर हर साल 580 लाख डालर
खर्च किया जाता है।
भारत सरकार इस रोग
को लेकर कितनी संजीदा है, यह इस बात से साफ हो जाता है कि देश के स्वास्थ्य बजट का 25 फीसदी हिस्सा
मलेरिया की रोकथाम के लिए सुरक्षित रखा जाता है। भारत सरकार के स्वास्थ्य महकमे
द्वारा नब्बे के दशक के उत्तरार्ध तक राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम को
पृथक से चलाया जाता था। इसके तहत देश के हर जिले मंे मलेरिया नियंत्रण की एक पृथक
यूनिट हुआ करती थी।
शनैःशनैः मलेरिया
की इकाईयों में कार्यरत सरकारी कर्मियों को शिक्षकों की तरह ही जनसंख्या, पल्स पोलियो आदि के
काम में बेगार के तौर पर उपयोग किया जाने लगा। इसके चलते देश भर में एक बार फिर
मलेरिया बुरी तरह पैर पसारने लगा है। सरकार द्वारा चलाए जा रहे समग्र स्वच्छता
अभियान में भी भ्रष्टाचार का दीमक पूरी तरह लग चुका है। मलेरिया फैलने की मुख्य
वजह अज्ञानता मानी जा सकती है। अज्ञानता के चलते साफ सफाई न रख पाने तथा छोटे छोटे
पानी के स्त्रोतों के कारण मच्छरों को प्रजनन का उपजाऊ माहौल मिल जाता है।
सिवनी में डेंगू के
मरीजों की पुष्टि स्वास्थ्य विभाग द्वारा आधिकारिक तौर पर की जा चुकी है। अब तो
डेंगू से दो मरीज की मौत की खबर भी आ गई है। छपारा विकासखण्ड के ग्राम केकड़ा में
डेंगू से भाई बहन की मौत से मातम पसरा है। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी
डॉ.वाय.एस.ठाकुर एवं जिला मलेरिया अधिकारी डॉ.एच.पी.पटेरिया को शायद इस खबर से अंतर
न पड़े, पर आने
वाला समय भयावह है जिससे इंकार नहीं किया जा सकता है। स्वास्थ्य विभाग के निष्ठुर
प्रशासन द्वारा गांव गांव में दवाओं के छिड़काव की बात कही जा रही है। वास्तव में
दवाओं का छिड़काव कागजों तक ही सीमित है। अगर ऐसा नहीं होता तो लोगों के बीमार पड़ने
या मरने की खबरें नहीं आतीं। अब लोग संवेदनशील जिला कलेक्टर भरत यादव के ‘कड़े निर्देशों‘ के स्थान पर ‘ठोस कदम‘ की ही प्रतीक्षा कर
रहे हैं।