फ्यूज हो गई कनफ्यूज भाजपा
(समीर चौंगावकर)
पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में अगर कांग्रेस कमतर हुई है तो भाजपा की स्थिति कमतर से भी ज्यादा बदतर हो गई है. कभी भाजपा का गढ़ रहे उत्तर प्रदेश में ही अपनी लाज बचाने में कामयाब नहीं हो पाई और जितनी सीटें थीं उसमें से भी पांच सीटें गंवा दी. पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडकरी ने वैसे तो प्लान किया था कि जितनी सीटें हैं उससे दोगुनी पर जाएंगे लेकिन उत्तर प्रदेश की जनता ने न सिर्फ नितिन गडकरी को गर्त में डाल दिया बल्कि प्रदेश में पूरी भाजपा का ही लगभग सफाया हो गया है.
उत्तर प्रदेश में इस बार का विधानसभा चुनाव भाजपा के कई नेताओं और खुद पार्टी अध्यक्ष के लिए प्राथमिक परीक्षण बन गया था. नितिन गडकरी ने उत्तर प्रदेश में भाजपा की स्थिति बेहतर करने के लिए सारे साधन और संसाधन झोंक दिये थे. नागपुर से दिल्ली होते हुए लखनऊ तक नितिन गडकरी ने कहीं कोई कमी नहीं रहने दी थी. लेकिन जब चुनाव परिणाम सामने आये तो पता चला कि नितिन गडकरी की सारी कवायद को जनता ने कोई तवज्जो नहीं दिया.
उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव परिणाम भाजपा के लिए बेहद चौंकानेवाला है. लेकिन केवल भाजपा ही नहीं चौंक रही है. भाजपा का वैचारिक आका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तो भौचक्का रह गया है. पिछले पांच बार से जो अयोध्या भाजपा की परंपरागत सीट बन गई थी इस बार वह सीट भी हाथ से जाती रही. अयोध्या में हार को भाजपा गंभीरता से ले न ले, लेकिन संघ ने बहुत गंभीरता से लिया है. अयोध्या में समाजवादी पार्टी के तेज नारायण पांडेय विजयी हुए हैं. इस सीट पर हार के बाद से ही नागपुर के महाल में सन्नाटा पसरा हुआ है. बताया जा रहा है कि संघ प्रमुख तक को सदमा लगा है. इसका कारण एक तो अयोध्या से भाजपा और संघ का भावनात्मक लगाव है तो दूसरा बड़ा कारण यह है कि अयोध्या की कुल आबादी में एक तिहाई स्वयंसेवक हैं. कॉडर की इतनी बड़ी संख्या के रहते अगर भाजपा अपनी अयोध्या को नहीं बचा पाई तो उसका लंकादहन होने से कौन रोक सकता है?
लेकिन अयोध्या के जाने का सदमा ही नहीं है. पथरदेवा से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही अपनी सीट नहीं बचा पाये तो इलाहाबाद से एक और वरिष्ठ नेता केशरीनाथ त्रिपाठी भी पटखनी खाकर औंधे गिरे पड़े हैं. गाजियाबाद से सांसद राजनाथ सिंह ने पूरे प्रदेश में जमकर दौरा किया था और जितनी सभाएं राजनाथ सिंह ने की थी उतनी शायद किसी और भाजपा नेता नहीं की. लेकिन तमाशा देखिए कि राजनाथ सिंह की गाजियाबाद सीट की वह सीट भी हाथ से जाती रही जिसकी बदौलत राजनाथ सिंह को लोकसभा चुनाव में जीत हासिल हुई थी. गाजियाबाद की साहिबाबाद सीट से सुनील शर्मा हार गये और लोनी में भी राजनाथ का लठैत लाठी नहीं भांज पाया. हां, लालजी टंडन अपने बेटे गोपाल टंडन को चुनाव जितवाने में कामयाब नहीं हो पाये. इन हारते परिदृश्यों के बीच अगर कोई लाज बचाकर बाहर निकल आया है तो वे हैं कलराज मिश्र और उमा भारती जो कि लखऩऊ सिटी और चरखारी की सीटें जीतने में कामयाब रहे हैं. शायद उमा भारती के होने का ही असर है कि पड़ोस की हमीरपुर सीट भी भाजपा के खाते में चली गई है.
अगर हम उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के चुनावी रणनीति का आंकलन करें तो हमें दिखता है कि पूरे प्रचार के दौरान भाजपा कन्फ्यूज दिखी. नेताओं की भीड़ ने भागदौड़ तो बहुत की लेकिन इस भागदौड़ और मंथन से वे कुछ हासिल नहीं कर पाये. नकवी जैसे नकारा नेता को प्रबंधन सौंप दिया गया जो चुनाव जीतने की रणनीति बनाने से ज्यादा अपनों पर उपकार करने में ही जुटे रहे. खुद गडकरी कहीं उमा भारती को मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी बताते तो कहीं कलराज मिश्र का नाम लेते. इसी कन्फ्यूजन का परिणाम हुआ कि प्रदेश में भाजपा की बत्ती फ्यूज हो गई.
अब सवाल यह है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की इस करारी हार का खुद भारतीय जनता पार्टी और उसके नेताओं पर क्या असर पड़ेगा? भाजपा की इस हार की मार से न तो नितिन गडकरी बच पायेंगे और न ही संजय जोशी या उमा भारती को छुटकारा मिलेगा. भाजपा के अंदर जो योजनाएं पक रही थीं, उसके अनुसार अगर उत्तर प्रदेश में पार्टी का प्रदर्शन बेहतर होता तो संजय जोशी कई राज्यों के प्रभार के साथ राज्यसभा में नजर आते तो उमा भारती केन्द्र में महासचिव बन बिराजतीं. लेकिन अब ऐसा होना मुश्किल लगता है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हार की मार इन्हीं तीनों नेताओं पर ही पड़ेगी. प्रदेश के कुछ बड़े नेता मसलन, राजनाथ सिंह, लालजी टंडन या कलराज मिश्र को भी इस हार का खामियाजा भुगतना होगा.
उत्तर प्रदेश में भाजपा की इस हार से अगर नितिन गडकरी, उमा भारती या संजय जोशी पर मार पड़ने की आशंका दिख रही है तो कुछ नेता ऐसे भी हैं जिनका कद पार्टी में ऊंचा उठेगा. इसमें सबसे पहला नाम नरेन्द्र मोदी का है. नरेन्द्र मोदी पूरे चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश नहीं गये. जो जानकारी है वह यह कि नरेन्द्र मोदी न तो चुनाव प्रबंधन से संतुष्ट थे और न ही संजय जोशी या सुधीन्द्र कुलकर्णी जैसे नेताओं की मौजूदगी से. नरेन्द्र मोदी के अलावा सुषमा स्वराज, अरुण जेटली और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेता भी राहत की सांस लेंगे जो दम साधे केवल प्रचार देख रहे थे.
उत्तर प्रदेश में हुई भाजपा की हार के बाद संघ कुछ बड़े बदलाव भी कर सकता है. आगामी 16-17-18 मार्च को संघ के पदाधिकारियों की अखिल भारतीय बैठक होनेवाली है. इस बैठक में भाजपा को ष्मजबूतष् करनेवाले कुछ ऐसे निर्णय लिये जा सकते हैं जिससे भाजपा के कुछ नेताओं पर गाज गिर सकती है. क्योंकि संघ को जितनी चिंता उत्तर प्रदेश में भाजपा के हारने की है उससे ज्यादा चिंता मुलायम सिंह यादव के जीतने की है. मौलाना मुलायम की उत्तर प्रदेश की मौजूदगी को संघ जाया नहीं जाने देगा, इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि उत्तर प्रदेश की करारी शिकस्त के बाद भाजपा के कुछ बड़े नेता पस्त कर दिये जाएं.
(साई फीचर्स)