मंगलवार, 1 नवंबर 2011
फिर केंद्रीय मंत्रीमण्डल फेरबदल की सुगबुगाहट
फिर केंद्रीय मंत्रीमण्डल फेरबदल की सुगबुगाहट
विधानसभा चुनावों के मद्देनजर फेंटे जा सकते हैं पत्ते
मंत्रियों को संगठन में लाने की चर्चाएं
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की दूसरी पारी में एक बार फिर केंद्रीय मंत्रीमण्डल में फेरबदल की सुगबुहाटें तेज हो गईं हैं। यद्यपि दबी जुबान से इसकी चर्चा चल रही है फिर भी लोकसभा के शीत कालीन सत्र के पहले एक छोटे फेरबदल की संभावनाओं से कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्र इंकार नहीं कर रहे हैं। सियासी हल्कों में कयास लगाए जाने लगे हैं कि संसद के 21 नवंबर से आहूत शीतकालीन सत्र के पहले कांग्रेस अपने सत्ता और संगठन के पत्ते फेंट लें।
कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ (कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी का सरकारी आवास) के उच्च पदस्थ सूत्रों ने संकेत दिए हैं कि सोनिया के रणनीतिकारों ने उन्हें मशविरा दिया है कि शीतकालीन सत्र के एन पहले कांग्रेस और सरकार का चेहरा मोहरा ठीक ठाक कर लिया जाए। इसे पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से जोड़कर भी देखा जा रहा है।
इन पांच राज्यों के चुनावों के मद्देनजर अनेक हेवीवेट मंत्रियों को वहां से हटाकर संगठन की जिम्मेवारी देने पर भी विचार किया जा रहा है। चूंकि वर्तमान में नेताओं के लाल बत्ती प्रेम के कारण संगठन चरमरा गया है इसलिए अब सोनिया गांधी हेवी वेट नेताओं पर लगाम कसने की अपनी तैयारी पूरी कर रही है। इसके लिए सोनिया ने चाबुक चलाने का भी फैसला लिया है।
उधर महाराष्ट्र, हरियाणा, राजस्थान और आंध्र प्रदेश में भी मुख्यमंत्री भी कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी के रडार पर हैं अतः उनके स्थान पर नए नेता की खोज जारी है। सोनिया और राहुल जुंडाली का कहना है कि इन राज्यों में केंद्रीय मंत्रियों को ही फिट करना मुनासिब लग रहा है। यद्यपि इस तरह की चर्चाएं बहुत ज्यादा वजनदारी से नहीं की जा रही हैं किन्तु फिर भी सूत्रों ने साफ संकेत दिए हैं कि अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो इस माह के पहले पखवाड़े की समाप्ति के पहले ही फेरबदल को अंजाम दे दिया जाएगा।
ट्रेन प्यासी, यात्री हलाकान
ट्रेन प्यासी, यात्री हलाकान
देश भर में अधिकतर रेलगाडियों को नहीं मिल पा रहा पानी
सालों साल सफाई नहीं हो रही पानी के टेंक की
गंदे पानी से ही कुल्ला करने मजबूर यात्री
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। भारतीय रेल अपने यात्रियों के लिए बीमारी का सामन ढो रहा है। कहीं रेल प्यासी दौड़ रहीं हैं तो कहीं रेल के कोच में बनी पानी की टंकी की सालों साल सफाई न होने से उनमें बीमारी के जनक जीवाणु पनप रहे हैं। रेल यात्रियों का स्वास्थ्य ताक पर रख रही है भारतीय रेल किन्तु लोकसभा और राज्य सभा जैसी देश की सबसे बड़ी पंचायत में बात रखने का दुस्साहस कोई भी जनसेवक नहीं कर पा रहा है। कमोबेश यही आलम साफ सफाई का है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार भारतीय रेल में साफ सफाई का ठेका प्रति रेल करोड़ों रूपयों महीने का होता है। इसमें रेल के प्रस्थान स्थल से लेकर गंतव्य तक बीच की निर्धारित दूरी के बाद रेल में टायलेट आदि की साफ सफाई निरंतर किए जाने का प्रावधान है। इसका ठेका भी बाकायदा दिया जाता है। अमूमन रेलों में वातानुकूलित श्रेणी के डब्बों की सफाई कर ठेकेदार अपने कार्याें की इतिश्री समझ लेते हैं। सूचना के अधिकार में ही अगर प्रति रेल साफ सफाई पर व्यय होने वाली राशि की जानकारी निकलवाई जाए तो लोग दांतों तले उंगली दबा लेंगे। इतना ही नहीं सीएजी अगर बारीकी से इसकी जांच कर ले तो आदिमत्थू राजा के बाजू वाली कोठरियों में भारतीय रेल के अधिकारी नजर आ सकते हैं।
भारतीय रेल की अधिकतर रेल गाडियां इस वक्त ठंड के आगाज के बावजूद भी प्यासी ही दौड़ने पर मजबूर हैं। बताया जाता है कि रेल गाडियों को चार पांच सौ किलोमीटर के बाद भी पानी नहीं मिल पा रहा है, जिससे रेल यात्री कोच में मारा मारी की स्थिति निर्मित हो रही है। पानी के अभाव में शौचालय बुरी तरह दुर्गंध से बजबजा रहे हैं। इस सबके बाद भी रेल्वे प्रबंधन मुस्कुराते हुए अपने यात्रियों के स्वागत में जुटा हुआ है।
रेल्वे के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि भारतीय रेल के कोच में दोनों सिरों पर पानी की टंकी बनाई जाती है जिसको शौचालयां से जोड़ा जाता है। इन टंकियों की नियमित अंतराल में सफाई का प्रावधान होने के बाद भी इनकी साफ सफाई की दिशा में कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। अनेक कोच तो एसे हैं जो ट्रेक पर उतरकर अपना जीवन पूरा कर ऑफट्रेक भी हो गए और उनकी पानी की टंकियों को एक बार भी साफ नहीं किया गया। गौरतलब है कि पानी में ही तरह तरह के जानलेवा विषाणु पनपते हैं और सालों साल सफाई के अभाव में भारतीय रेल अपने यात्रियों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहा है।
झाबुआ पावर की जनसुनवाई पर भी लगे थे प्रश्नचिन्ह
घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 3
झाबुआ पावर की जनसुनवाई पर भी लगे थे प्रश्नचिन्ह
क्षेत्रवासियों को पता ही नहीं और हो गई जनसुनवाई
पर्यावरण विभाग की वेव साईट पर 5 दिन पहले डली थी रिपोर्ट
कम्पनी और सरकारी मुलाजिमों की भूमिका सन्दिग्ध
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। देश की मशहूर थापर ग्रुप ऑफ कम्पनीज के प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर के करीब डाले जाने वाले 600 मेगावाट के पावर प्लांट की शुरूआती सरकारी कार्यवाही में हुई गफलत एक के बाद एक उभरकर सामने आती गईं। पावर प्लांट के लिए आदिवासी बाहुल्य घंसौर में हुई जनसुनवाई के दौरान ही अनेक अनियमितताएं प्रकाश में आई थीं, किन्तु रसूखदार कम्पनी की उंची पहुंच और लक्ष्मी माता की कृपा से जनसुनवाई तो निर्विध्न हो गई किन्तु ग्रामीणों में रोष और असन्तोष बना रही।
पर्यावरण मन्त्रालय के सूत्रों का दावा है कि इसके लिए निर्धारित प्रक्रिया में क्षेत्रीय पर्यावरण के प्रभावों का अवलोकन कर इसका प्रतिवेदन एक माह तक परियोजना स्थल के अध्ययन क्षेत्र और दस किलोमीटर त्रिज्या वाले क्षेत्र की समस्त ग्राम पंचायतों के पास अवलोकन हेतु होना चाहिए। जब यह प्रतिवेदन ग्राम पंचायत को उपलब्ध हो जाए उसके उपरान्त गांव गांव में डोण्डी पिटवाकर आम जनता को इसकी जानकारी दी जानी चाहिए। इसके साथ ही साथ पर्यावरण विभाग की वेव साईट पर इसे डाला जाना चाहिए।
मजे की बात यह है कि पर्यावरण विभाग की मिली भगत के चलते उस वक्त 22 अगस्त को होने वाली जनसुनवाई का प्रतिवेदन 5 दिन पूर्व अर्थात 17 अगस्त 2009 को पर्यावरण विभाग की वेव साईट पर मुहैया करवाया गया। बताया जाता है कि जब जागरूक नागरिकों ने हस्ता़क्षेप किया तब कहीं जाकर इसे वेव साईट पर डाला गया था। महज पांच दिनों में इस प्रतिवेदन के बारे में व्यापक प्रचार प्रसार नहीं हो सका, जिससे इसमें व्याप्त विसंगतियों के बारे में कोई भी गहराई से अध्ययन नहीं कर सका।
इस पूरे खेल में सरकारी महकमे के साथ मिलकर मशहूर थापर ग्रुप ऑफ कम्पनीज के प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा आदिवासी बाहुल्य घंसौर के ग्राम बरेला में डलने वाले 600 मेगावाट के पावर प्लांट हेतु ताना बाना बुना गया। इस खेल में आदिवासियों के हितों पर कुठाराघात तो हुआ साथ ही सिवनी जिले के आदिवासियों के हितों के कथित पोषक बनने का दावा करने वाले जनसेवक हाथ पर हाथ रखे तमाशा देखते रहे। जनसुनवाई के उपरान्त न जाने कितने विधानसभा सत्र आहूत हो चुके हैं और न जाने कितने संसद सत्र ही, अपने निहित स्वार्थों के लिए प्रश्न पर प्रश्न दागने वाले जनसेवकों की इस मामले में अरूचि समझ से परे ही है।
(क्रमशः जारी)
उदारीकरण पर मन से असहमत हैं युवराज
बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 15
उदारीकरण पर मन से असहमत हैं युवराज
विदेशी प्रोफेसर को बुलाया संकेत देने के लिए
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। वजीरे आजम डॉक्टर मनमोहन सिंह से कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भी बुरी तरह आहत हैं। मनमोहन सिंह की उदारीकरण की नीति राहुल के गले नहीं बैठ पा रही है। मनमोहन के उदारीकरण की नीति से असहमत राहुल गांधी ने एक विदेशी प्रोफेसर को लेक्चर के लिए आमंत्रित किया, ये महाशय उदारीकरण के सख्त आलोचकों में शुमार हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार जर्मन प्रोफेसर थामस पोग को राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेपरेरी स्टडीज में लेक्चर हेतु न्योता गया। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी इसके ट्रस्टी हैं। पोग भारत में उदारीकरण और न्याय आधिकारिता पर अपने व्याख्यान दे गए। पोग की पहचान उदारीकरण के घोर आलोचकों के बतौर होती है।
एक ही तीर से राहुल गांधी ने कई निशाने साधकर एक परिपक्व राजनीतिज्ञ होने के प्रमाण देना आरंभ कर दिया है। राहुल ने इस तीर से वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी और वजीरे आजम डॉक्टर मनमोहन सिंह को जतला दिया है कि वे उनके सुझावों से पूरी तरह असहमत हैं। गौरतलब है कि मुखर्जी और सिंह उदारीकरण के खासे हिमायती समझे जाते हैं। उधर इसी के साथ कांग्रेस में भी यह संदेश चला गया कि प्रणव और मनमोहन के उदारीकरण प्रस्तावों पर युवराज की सहमति कतई नहीं है।
(क्रमशः जारी)
आड़वाणी को अब रखा जाने लगा है ‘बेचारे‘ की श्रेणी में
उत्तराधिकारी हेतु रथ यात्रा . . . 9
आड़वाणी को अब रखा जाने लगा है ‘बेचारे‘ की श्रेणी में
सालों साल तपस्या और तप का नतीजा सिफर
रथ यात्रा पूरी तरह फ्लाप हो रही साबित
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। सालों साल भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की आंखों के तारे बने रहे राजग की पीएम इन वेटिंग से हाल ही में हटे लाल कृष्ण आड़वाणी के हाथ अब संभावित अंतिम रथ यात्रा के बाद भी कुछ खास नहीं लगने की उम्मीद जताई जा रही है। संघ द्वारा तिरासी बसंत देख चुके उमर दराज एल.के.आड़वाणी को अब विश्राम की सलाह दी गई है। प्रधानमंत्री बनने की जुंग में ढलती उमर में भी आड़वाणी रथ यात्रा की अपनी जिद पूरी करने पर अड़े हुए हैं।
एक समय था जब आड़वाणी संघ की आंखों के तारे हुआ करते थे। उनकी एक बात पर संघ उनके पीछे आ खड़ा होता था, किन्तु पिछले कुछ सालों से आड़वाणी के कदमतालों ने उन्हें संघ से काफी दूर ले जाकर खड़ा कर दिया है। अब संघ आड़वाणी से सुरक्षित दूरी बनाकर ही चल रहा है। संघ मुख्यालय नागपुर के सूत्रों का दावा है कि संघ के शीर्ष नेतृत्व ने आड़वाणी को रथ यात्रा न करने की सलाह दी थी।
लगता है कि आड़वाणी आज भी इस मुगालते में हैं कि उनकी छवि पूर्व में अटल बिहारी बाजपेयी के साथ जुगलबंदी के वक्त जैसी है। दरअसल, अटल बिहारी बाजपेयी के द्वारा सक्रिय राजनीति से सन्यास लिए जाने के उपरांत आड़वाणी शीर्ष में इकलौते नेता बचे और उनकी अघोषित हुकूमत चलने लगी। कालांतर में उनके विरोधी सक्रिय हुए और फिर आड़वाणी की लोकप्रियता का ग्राफ एक एक कर नीचे की पायदान पर खिसकने लगा।
(क्रमशः जारी)
टूजी स्पेक्ट्र घोटाले का सर्वाधिक फायदा आईडिया को!
एक आईडिया जो बदल दे आपकी दुनिया . . . 11
टूजी स्पेक्ट्र घोटाले का सर्वाधिक फायदा आईडिया को!
आईडिया की भूमिका पर लगने लगे प्रश्न चिन्ह
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। आदिमत्थू राजा के कार्यकाल में हुए भारत गणराज्य के अब तक के सबसे बड़े टेलीकाम घोटाले में सबसे अधिक मलाई काटी है आदित्य बिरला कंपनी के स्वामित्व वाली मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनी आईडिया ने। इस मामले में एक सदस्यी जांच समिति के समक्ष अनेक सनसनीखेज बातें लाईं गईं जिससे जांच समीति इस निश्कर्ष पर पहुंची कि यह घोटाला मानो आईडिया के साथ एक अन्य मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनी के इशारे पर ही किया गया हो।
2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच रिपोर्ट के मुताबिक इस घोटाले से एयरटेल और आईडिया जैसी टेलीकॉम कंपनियों को सबसे ज्यादा फायदा मिला है। इस मामले पर रिटायर जज शिवराज पाटिल की एक सदस्यीय जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि टेलिकॉम मिनिस्ट्री के मनमाने फैसलों से भारती एयरटेल और आइडिया सेल्युलर जैसे ऑपरेटरों को स्पेक्ट्रम हासिल करने में मदद मिली।
शिवराज पाटिल की समिति ने नीतियों में खामियों का जिक्र करते हुए उदाहरण दिया है कि 2003 में एनडीए के कार्यकाल में भारती एयरटेल को 8 मेगाहर्ट्ज के और 2 मेगाहर्ट्ज अतिरिक्त स्पेक्ट्रम आवंटित किया गया। हालांकि, उस समय इसके लिए कोई प्रावधान नहीं था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह फैसला संबंधित इंजिनियर के एक नोट के आधार पर लिया गया और इसे वायरलेस सलाहकार ने अपने बाकी सहयोगियों के साथ मंजूरी दी। यह पूरी तरह से मनमाना फैसला था और इससे बाकी आवेदकों को नुकसान हुआ। आदित्य बिड़ला समूह की कंपनी आइडिया सेल्युलर को भी फायदा पहुंचाया गया। आइडिया को पात्रता हासिल करने के लिए ज्यादा समय दिया गया।
(क्रमशः जारी)
आज हम 55 साल के हो गए
सभी को बधाई, आज मध्य प्रदेश और हमारा अपना सिवनी जिला पचपन साल का हो गया है। खुशियां मनाओ मिठाई बांटो। अब तो हमारे जन प्रतिनिधियों को शर्म करना चाहिए कि इन पचपन में से पिछले डेढ दशक यानी पंद्रह सालों में हमें बाबा आदम के जमाने में जीवन यापन पर मजबूर कर दिया है। किसी नेता विशेष की तमन्ना पूरी हो गई आज सिवनी से नागपुर सडक इतनी खराब है कि मजबूरी में हम छिंदवाडा होकर जाने को मजबूर हैं। यही प्रस्ताव तो रखा था हमें अनाथ करने वाले नाथ के इशारे पर उनके मातहतों ने। उसके बाद भी हम उससे सिर्फ मांग रहे हैं चिरौरी कर रहे हैं उनकी। बार बार सिवनी को गोद लेने वाले कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र छिंदवाडा में आज वे और केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री सीपी जोशी हैं देखना है हमें कौन से आश्वासन की सौगात मिलती है। वैसे हमारे रिसते घावों पर नमक और मिर्च कौन छिडक रहा है कौन है वो जो इस नमक मिर्च को भुरकने के लिए हमारे रिसते घाव आगे कर रहा है, जागो मित्रों जागो, समय आ गया है वरना हम सभी खत्म ही समझो।
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