सोमवार, 31 मई 2010

पाकिस्तान भेज रहा है 'कबूतर जासूस'

ये है दिल्ली मेरी जान



लिमटी खरे




पाकिस्तान भेज रहा है 'कबूतर जासूस'
हिन्दुस्तान को हर तरह से अस्थिर करने की जुगत में लगे पाकिस्तान ने अपने नापाक इरादों के तहत अब कबूतर जासूस भेजना आरंभ कर दिया है। पिछले दिनों त्रिकुटा पर्वत पर विराजीं माता वेष्णो देवी के बेस केम्प कटडा में पकडे गए एक कबूतर के पैर पर कुछ संदिग्ध टेलीफोन नंबर और संदेश दर्ज था। इसी तरह का एक कूबतर पाक सीमा पर ततेयाल गांव के करीब भी पकडा गया है। 2009 में भी एक इसी तरह का कबूतर आरएसपुरा के पास सुचैतगढ में पकडा गया था। इन कबूतरों पर लिखे संदेशों की डिकोडिंग आरंभ कर दी गई है। हो सकता है कि इन कबूतरों के माध्यम से केमरा चिप आदि के माध्यम से चित्र वीडियो फुटेज आदि जुटाए जा रहे हों। जानकारों का कहना है कि इस तरह से कबूतर हमला कर पाकिस्तान द्वारा भारत पर आक्रमण की नई रणनीति तैयार की जा रही हो। उधर कबूतरबाजों की माने तो इस तरह के खास कबूतरों को संदेश लाने ले जाने के काम में इस्तेमाल किया जाता है। ये कबूतर लगातार घंटो उडान भर सकते हैं और बिना रास्ता भटके अपने घर वापस लोट सकते हैं। उडान के पहले इन्हें बादाम, काले चने और दूध पिलाया जाता है। भारत में इस तरह की गतिविधियों के बाद अगर खुफिया एजेंसी हरकत में न आईं तो आने वाले दिनों में पाक के आतंकी पिल्ले फिर से हमला कर दें तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

प्लेटफार्म बिकता है बोलो खरीदोगे!
दिल्ली में प्लेटफार्म पर हुई भगदड से संबंधित नई कहानी प्रकाश में आ रही है। कहा जा रहा है कि इसके पीछे वैंडर्स का खेल है, जिससे उच्चाधिकारी भली भांति परिचित हैं। चर्चा है कि कौन सी रेलगाडी किस प्लेटफार्म पर आएगी इसको कौन तय करता है, जवाब है ‘‘चढावा‘‘। दरअसल रेल्वे स्टेशन पर खानपान और अन्य सामग्रियां बेचने वाले वेंडर्स के चढावे पर ही तय होता है कि कौन सी रेलगाडी किस प्लेटफार्म पर आएगी। ये वेंडर्स पहले से ही प्लेटफार्म पर अपनी ट्राली लगा लेते हैं। इसके बाद आरंभ होता है खेल। दिल्ली में बीते दिनों हुई दुर्घटना पर अगर नजर डाली जाए तो प्लेटफार्म नंबर 2 पर सात, छः और सात पर 80, 8 और 9 पर 70, 10 तथा 11 पर 60, 12 और 13 पर 125, 14 और 15 पर पचास अवैध वेंडर्स ने अपना डेरा जमा रखा था। गौरतलब है कि प्लेटफार्म 15 गाडी 13, 13 की 12 पर स्थानांतरित किया गया था। अब ममता दीदी को कौन समझाए कि रेल्वे के कण कण में भ्रष्टाचार समा चुका है, जिसे निकाल पाना शायद किसी के बस की बात नहीं है। हालात देखकर यही कहा जा सकता है, ‘‘प्लेटफार्म बिकता है बोलो खरीदोगे।‘‘

आप भी दे दो कसाब को फांसी
2008 में देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई पर हुए अब तक के सबसे बडे आतंकी हमले के इकलौते जिंदा दोषी कसाब के बारे में हर भारतीय का मन होता होगा कि कसाब की गर्दन हाथ में आ जाए और उसे फांसी पर चढा दिया जाए। वास्तविकता में तो आप एसा नहीं कर सकते किन्तु अगर आप चाहें तो इंटरनेट पर कसाब को फांसी पर चढा सकते हैं। नेट पर ‘आनलाईन रियल गेम्स डाट काम‘ पर ‘‘हेंग कसाब‘‘ नाम का खेल मोजूद है। इसके माध्यम से आप जितनी बार चाहे कसाब को फांसी पर चढा सकते हैं। हर बार सफलता पूर्वक फांसी देने पर आपको बाकायदा 100 प्वाईंट भी मिलंेगे। एक मिनिट के इस खेल में कसाब बचने की हर संभव कोशिश करता है। हिन्दुस्तान में यह खेल इतना लोकप्रिय हो गया है कि रोजाना एक लाख लोग कसाब को फांसी पर चढा रहे हैं।

उर्दू अकामदी का उर्दू को बढावा!
केंद्र सरकार द्वारा अल्पसंख्यक वोट बैंक तगडा करने की जुगत में उर्दू भाषा को बढाने का प्रयास किया जाता रहा है, इस मामले में कांग्रेस का कोई सानी नहीं है। उर्दू को बढावा देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा करोडों अरबों रूपए फूंके जाते हैं, वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश की उर्दू अकादमी द्वारा उर्दू जुबान के साहित्यकारों का सरेआम माखौल उडाया जा रहा है। वर्ष 2009 - 2010 के लिए अकादमी पुरूस्कारों की घोषणा की गई। चयन समिति ने विभिन्न स्तरों पर पुरूस्कारों के लिए देश भर से ग्यारह लोगों का चयन किया था। चयनित लोगों को उर्दू अकादमी के बुलावे का इंतजार था। इन लोगों का भरम तब टूटा जब इन्हें पुरूस्कार के लिए बुलावा तो नहीं आया पर इन्हें पुरूस्कार में मिली राशि और प्रशस्ति पत्र भारत डाक एवं तार विभाग के सौजन्य से घर बैठे ही प्राप्त हो गया। साहित्यकारों की आपत्ति वाजिब है, उनका कहना है कि उनका सम्मान बकायदा सम्मान समारोह आयोजित कर किया जाना चाहिए था, और महामहिम राज्यपाल द्वारा उन्हें पुरूस्Ńत किया जाना चाहिए था, वस्तुतः जो हुआ नहीं।

शेखावत के खाते में एक रूपैया 9 पैसा!
दिवंगत पूर्व उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत के एक बैंक खाते में कितनी रकम हो सकती है। जी हां आपको जानकर अश्चर्य होगा कि शेखावत के राजस्थान के उदयपुर स्थित महिला समृद्धि बैंक के खाते में महज एक रूपए 09 पैसे ही जमा हैं। इस खाते के खुलने के उपरांत से ही इसमें कोई लेन देन नहीं हुआ है। दरअसल 1995 में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने इस बैंक का उद्घाटन किया था। उस समय बैंक के अनुरोध पर भैरो सिंह शेखावत ने महिला समृद्धि बैंक में खाता खुलवाया था। मजे की बात यह है कि उस समय शेखावत की जेब में महज बीस रूपए ही थे। गनीमत थी कि वहां उपस्थित बैंक कर्मी ने शेखावत के खाते को खोलने के लिए दो रूपए मिलाए तब जाकर 22 रूपए में उनका खाता खुल सका था। इस खाते में सालाना ब्याज जुडकर 2002 तक रकम 35 रूपए तक पहुंच गई थी। इसके उपरांत न्यूनतम बैलेंस 500 रूपए न रख पाने से उनके खाते से निर्धारित राशि का आहरण बैंक द्वारा लगातार किया जाता रहा है, जिससे अब उनके खाते की रकम घटकर एक रूपैया और 9 पैसा ही बची है।

आईएएस का छग से मोहभंग
नक्सलवाद की आग में झुलस रहे छत्तीसगढ सूबे से अफसरशाही की रीढ माने जाने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों का मोह भंग होता जा रहा है। काडर बेस्ड अधिकारियों की तैनाती में अहम भूमिका निभाने वाले डीओपीटी मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार वह विभिन्न राज्यों में अधिकारियों की तैनाती में काडर रिव्यू में जुटा है। छग मेें नक्सलवादी समस्या को देखकर लगता था कि केंद्र सरकार द्वारा सूबे में आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की अधिक तैनाती में अपनी सहमति दे देगा, वस्तुतः एसा होता नहीं दिख रहा है। सूबे ने केंद्र से 111 आईएएस अधिकारी मांगे थे, पर उसे मिले महज 103, वर्तमान में इनकी संख्या यहां 81 ही है। छग के अस्तित्व में आने के उपरांत वहां भेजे गए आईएएस अधिकारियों में से मोहम्मद सुलेमान, आई.बी.चहल, विनय शुक्ला, एस.के.राजू ने अपना काडर बदलवा लिया था। अब एम.गीता ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा इसी आधार पर खटखटाया है कि जब इनका काडर बदला जा सकता है तो फिर गीता का क्यों नहीं। छग की नक्सल समस्या और भोगोलिक परिस्थितियों से घबराकर आईएएस अधिकारियों ने जुगाड का सहारा लेकर अपना काडर बदलवा लिया है या प्रयास जारी हैं।

राजनीति में माहिर हो गई ‘‘गुड्डी‘‘
सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की अर्धांग्नी जया बच्चन ने कभी गुड्डी का किरदार बहुत ही करने से निभाया था, पर राजनैतिक बिसात पर वे गुड्डी नहीं रहीं बल्कि शतरंज की माहिर खिलाडी हो चुकी हैं। अपने बाल सखा राजीव गांधी के कहने पर राजनैतिक जीवन में प्रवेश करने वाले अमिताभ बच्चन को भले ही राजनीति रास न आई हो पर उनकी पत्नि की रग रग में राजनीति बसी दिख रही है। अमर प्रेम के तले दबे बच्चन परिवार की बहू जया ने समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की राज्य सभा की पेशकश को जिस कदर ठुकराया है, वह किसी अनाडी राजनेता के बस की बात नहीं, एसे कदम घाघ राजनेता ही उठा सकते हैं। कल तक सायकल की सवारी करने वाले संजय दत्त, मनोज तिवारी, जया प्रदा ने पहले ही मुलायम को बाय बाय कह दिया है। वालीवुड द्वारा की जाने वाली सायकल की सवारी अब सपा के लिए गुजरे जमाने की बात हो गई है। उधर अमिताभ बच्चन की नरेंद्र मोदी से बढती नजदीकियों से कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाले दिनांे में जया बच्चन कमल पर बैठी दिखाई दें तो किसी को अश्चर्य नहीं होना चाहिए।

टुम बोले टुम बोले हम टो टुप्पई टाप
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने सूबे के समस्त जिला कलेक्टर्स को 24 अप्रेल को एक परिपत्र भेजकर साफ निर्देश दिए थे कि जो भी मंत्री पूर्व सूचना देकर सूबे में आंए उनके लिए प्रोटोकाल का पालन किया जाए। उनकी खातिर तवज्जो में कोई कोर कसर नहीं रखी जाए। इसका अर्थ यह भी लगाया जा रहा है कि अगर कोई बिना सूचना के आता है तो उसकी परवाह न की जाए। मध्य प्रदेश सूबे का प्रतिनिधित्व करने वाले चार में से तीन मंत्री कांति लाल भूरिया, ज्योतिरादित्य सिंधिया और अरूण यादव ने शिवराज के इस फरमान पर अपनी गहरी नाराजगी जताई, पर कमल नाथ ने चिरपरिचित शांति का ही परिचय दिया। तीनों मंत्रियों ने पलटवार करते हुए कहा कि उनके द्वारा सूचना देने पर भी समीक्षा बैठकों में सूबे के आला अधिकारी नदारत ही रहते हैं। कांतिलाल भूरिया ने तो प्रधानमंत्री से यहां तक सिफारिश कर डाली कि अगर शिवराज बाज न आएं तो केंद्रंीय इमदाद को तत्काल प्रभाव से रोक दिया जाए। राजनैतिक बियावान में कमल नाथ की मुस्कुराहट और इस मसले पर शांति के अर्थ अपने अपने ढंग से खोजे जा रहे हैं।

भारत सुरक्षित है सैलानियों के लिए
आतंकी गतिविधियों के निशाने पर आए हिन्दुस्तान में विदेशी सैलानियों की आवाजाही काफी हद तक कम हो चुकी है। समूची दुनिया विशेषकर दुनिया के चौधरी अमेरिका ने अपने नागरिकों को हिन्दुस्तान न जाने का मशविरा दिया है। इस सबके चलते विदेशी राजस्व में आई कमी को दूर करने की गरज से केंद्र सरकार हरकत में आई है। केंद्रीय पर्यटन सचिव सुजीत बनर्जी ने टोरंटो में एक कार्यŘम में कहा कि भारत पूरे एशिया में न केवल विदेशी पर्यटकोें के लिए न केवल सुरक्षित स्थान है वरन् यह ध्यान, योग, चिकित्सा के क्षेत्र में तेजी से उभर रहा है। भले ही भारत में आंतरिक और बाहरी अस्थिरता चल रही हो पर यह सच है कि यहां पर्यटन की दृष्टि से बहुत ही अनुकूल माहौल है। भारत सरकार अगर वास्तव में विदेशी सैलानियों को आकर्षित करना चाह रही हो तो उसे चाहिए कि आंतरिक और बाहरी सुरक्षा की दीवारें अभैद्य करे, ताकि ‘अतिथि देवो भव‘ को साकार करने के लिए कम से कम उसे पर्यटक तो मिल सकें।

न्यायधीश होंगे जवाबदेह!
न्यायधीशों की जवाबदेही से संबंधित विधेयक को केंद्र सरकार अगले सत्र में पेश किया जा सकता है। उक्ताशय की बात केंद्रीय कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोईली ने वैकल्पिक व्यापारिक मध्यस्थता एवं समाधान के एक अंतर्राटŞीय केंद्र के शिलान्यास के मौके पर कही। मोईली ने कहा कि न्यायधीश जवाबदेही बिल पर मंत्रियों के समूह अर्थात जीएमओ ने अपनी सहमति प्रदान कर दी है। इसके संसद के अगले सत्र में पेश होने की संभावना है। न्यायधीशों की उम्र बढाने पर भी केंद्र सरकार विचार कर रही है, पर यह विचार सिर्फ उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशों पर ही होगा। वर्तमान में न्यायधीशों की सेवानिवृति की आयु 62 वर्ष है, न्यायालयों में मुकदमों के बोझ को देखकर केंद्र सरकार ने विचार किया है कि न्यायधीशों की सेवानिवृति की आयु 62 से बढाकर 65 कर दी जाए।

सरकारी में दम है!
कौन कहता है कि सरकारी सिस्टम कोलेप्स हो चुका है। हो सकता है कि बाबूराज के चलते देखने में लगता हो कि सरकारी सिस्टम के धुर्रे उड रहे हों, पर स्कूल शिक्षा के मामले में प्राईवेट सेक्टर यानी निजी तौर पर चलने वाले स्कूलों से सरकारी स्कूल बहुत ही आगे निकल चुके हैं। निजी शालाओं में फीस का स्टकर्चर बहुत ही हेवी होता है, पर सरकारी स्कूल में फीस बहुत ज्यादा नहीं होती है। अस्सी के दशक के उपरांत आम धारणा बन गई थी कि सरकारी स्कूलों में पढने वाले बच्चों का विकास औसत से कम ही होता है, यही कारण था कि निजी स्कूलों की तादाद गली कूचों में कुकुरमुत्तों की तरह हो गई थी। योग्य शिक्षकों के अभाव में इन शालाओं में अध्ययन अध्यापन का काम किसी तरह आगे बढाया जाता रहा है। पिछले कुछ सालों में यह बात आईने की तरह साफ हो चुकी है कि निजी शालाओं में पढाई का स्तर सरकारी स्कूलों की तुलना में कहीं गिरा हुआ है। इस साल के दसवीं, बारहवी के परीक्षा परिणामों पर अगर गौर फरमाया जाए तो निजी शालाओं के बजाए सरकारी स्कूलों के परफारमेंस में जबर्दस्त उछाल दर्ज किया गया है। सरकारी में दम है, जय हो . . .।

कैदी नंबर सी 7096 यानी कसाब
देश के आम नागरिक को भले ही यूनिक आईडेंटिटी नंबर न मिला हो पर मुंबई आतंकी हमले में पकडे गए इकलौती दोषी कसाब को एक नई पहचान अवश्य ही मिल गई है। पाकिस्तानी बंदूकधारी अजमल आमिर कसाब की नई पहचान है कैदी नंबर सी 7096। जेल के सूत्रों का कहना है कि दोषियों का रिकार्ड रखने के लिए उन्हें नंबर प्रदान किया जाता है। साथ ही जिनकी सजा तीन महीने तक की हो उन्हें ‘ए‘ श्रेणी में, तीन महीने से पांच साल तक की सजा वाले कैदियों को ‘बी‘ श्रेणी में रखा जाता है। चूंकि कसाब को मौत की सजा मिली है, अतः उसे सी श्रेणी में रखा गया है। कसाब को जेल में कोई काम नहीं दिया जाएगा। कसाब सिर्फ अपने कपडे ही धोएगा। कसाब के पास लांडŞी के पैसे नहीं है, इसलिए उसे यह काम खुद ही करना पडेगा। जेल में अकेला अलग थलग पडा कसाब रोज ही जेल अधिकारियों से पूछता है कि उससे मिलने उसके रिश्तेदार आए क्या। अमूमन सात बजे सुबह उठने वाले कसाब का सारा दिन कोठरी के कोने में बैठकर उंघते हुए ही बीतता है।

पुच्छल तारा
जिंदगी क्या है, मौत क्या है, इस बारे में कवियों, लेखकों ने अनगिनत बाते लिखीं हैं। किसी ने जिंदगी को सुनहरा पल तो किसी ने अंधेरे की कोठरी ही बता दिया है। इसी तरह मौत के बारे में भी तरह तरह की बातें लोगों के जेहन में आना स्वाभाविक ही है। नरेंद्र ठाकुर ‘‘गुड्डू‘‘ ने एक जबर्दस्त ईमेल भेजा है जो जिन्दगी और मौत के बीच रिश्ता कायम करते हुए इसे रेखांकित करता है कि जीवन और मृत्यु क्या है। वे लिखते हैं कि जिंदगी की सबसे बडी सच्चाई बयां कर रहा था मोक्षधाम यानि कब्रिस्तान के बाहर लगा एक नोटिस बोर्ड। इस पर लिखा था ‘‘मंजिल तो मेरी यही थी, बस जिंदगी गुजर गई यहां आते आते।‘‘

शुक्रवार, 28 मई 2010

शिव के माथे पर लगा बदनुमा दाग

शिव के माथे पर लगा बदनुमा दाग

हृदय प्रदेश में फिर दागदार हुई वर्दी

एसपी को लेना होगा नैतिक जिम्मेवारी

(लिमटी खरे)

हरियाणा प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक एसपीएस राठौर के द्वारा रूचिका गहरोत्रा के साथ की गई ज्यादती, रूचिका का काल कलवित होना और इंसाफ के लिए बीस साल तक रगडना, यह सब अभी लोगों की स्मृति से विस्मृत नहीं हुआ है, कि अचानक ही देश के हृदय प्रदेश के छतरपुर जिले में दो कोमलांगी बालाओं द्वारा पुलिस की अमानवीय बर्बरता के सामने घुटने टेककर आत्महत्या करने का दिल दहलाने वाला वाक्या सामने आया है।

एक ओर मध्य प्रदेश के निजाम शिवराज सिंह चौहान अपनी कमान वाले सूबे को स्वर्णिम प्रदेश बनाने के ताने बाने बुन रहें हैं, वहीं दूसरी और उनकी सरकार के ही खाकी वर्दी वाले नुमाईंदों द्वारा आवाम के साथ बर्बरता की नायाब पेशकश प्रस्तुत की जा रही है। शिवराज सिंह चौहान इस हादसे में यह कहकर अपना पल्ला झाडने का प्रयास कर रहे हैं कि रक्षक ही भक्षक बन गए हैं। मामले की जांच अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक स्तर के अधिकारी से करवाई जा रही है। इस मामले में छतरपुर के पुलिस अधीक्षक प्रेम सिंह बिष्ट ने ओरछा रोड थाना प्रभारी के.के.खनेजा सहित तीन को निलंबित कर दिया है।

दरअसल बिन मां की दो बच्चियों के पिता राजकुमार सिंह देश के नौनिहालों का भविष्य संवारने का काम करते हैं, वे पेशे से शिक्षक हैं। जब इनमें से एक अपने मित्र के साथ झांसी मार्ग से अपने घर लौट रही थी, तब ओरछा रोड थाने में पदस्थ सिपाही अरविंद पटेल और कन्हैया लाल ने उन्हेें धमकाया और जबरिया उस युवती को निर्वस्त्र कर अपने मोबाईल से उसके अश्लील वीडियो बना लिए। पीडिता ने इसकी शिकायत पुलिस अधीक्षक प्रेम सिंह बिष्ट से की, मगर नतीजा सिफर ही निकला।

शिव के राज में मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार और बेलगाम अफसरशाही के बेलगाम घोडे तो पहले से ही दौडते आ रहे हैं, अब रियाया की जान माल का जिम्मा संभालने वाली खाकी वर्दी पहनने वालों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि वे अबोध मासूम बालाओें की इज्जत पर सरेआम हाथ डालने का दुस्साहस भी करने लगे हैं। इनके इस तरह के दुष्कृत्य की अगर उच्चाधिकारियों से शिकायत की जाती है, तो उच्चाधिकारी दोषियों को इस शर्त पर निलंबित करते हैं कि अगर पीडिता अपनी शिकायत वापस ले लें तो उन पर कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।

जाहिर है कि उच्चाधिकारियों के इस तरह के प्रश्रय का लाभ उठाकर आरोपियों द्वारा अपनी खाकी वर्दी का रौब तो गांठा ही जाएगा। फिर अगर हाथ में लट्ठ लिए सिपाही गर्जेगा तो बेचारी आम जनता तो चूहे की तरह बिलों में छिपने को मजबूर होगी ही। गौरतलब होगा कि अभी दो दिन पहले ही इंदौर के अन्नपूर्णा नगर थाने में प्रदेश की सरकारी और गैरसरकारी जमीनों की हेराफेरी के एक बहुत बडे आरोपी और भूमाफिया बॉबी छावडा को इंदौर पुलिस हवालात में एयर कंडीशनर की व्यवस्था के लिए चर्चित होती है, फिर दो दिन बाद ही छतरपुर में अबोध बालाओं को इहलीला समाप्त करने पर मजबूर कर देती है।

छतरपुर की यह घटना निश्चित तौर पर मध्य प्रदेश पुलिस के साथ ही साथ सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान के माथे पर कभी न धुलने वाले कलंक के मानिंद ही माना जा सकता है। याद पडता है कि जैसे ही भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश में सत्ता संभाली थी, तभी सवर्ण और दलित के बीच हुई तकरार के चलते सिवनी जिले में भोमाटोला कांड घटित हुआ था, इसमें सर्वण समाज के दर्जनों लोगों ने सारे गांव के सामने एक अधेड दलित महिला और उसकी जवान बहू का बलात्कार किया था। इस मामले में दोषियों को सजा मिल चुकी है, पर यह कांड भाजपा के सत्ता में आने के साथ ही हुआ था।

इस मामले में बताया जाता है कि भोपाल में प्रशिक्षण ले रहे छतरपुर के पुलिस अधीक्षक ने प्रभारी पुलिस अधीक्षक एवं छतरपुर के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिए थे कि दोनों ही आरोपियों को निलंबित किया जाए। जैसे ही उपर से कार्यवाही के डंडे की आशंका हुई इन दोनों ही आरोपियों ने पीडिता के बयान लेने गए सहयोगी आरक्षक दिनेश सिंह और प्रवीण त्रिपाठी के माध्यम से दोनों ही बालाओं पर अपनी शिकायत वापस लेने दबाव बनाया। किसी भी अधिकारी ने यह जानने का प्रयास अब तक नहीं किया है कि महिलाओं के बयान लेने के लिए महिला पुलिस को ले जाना सिंह और त्रिपाठी ने उचित क्यों नहीं समझा।

छतरपुर की यह घटना प्रदेश के उस हर मां बाप की पेशानी पर चिंता की लकीरें उभार सकती है, जिनकी जवान बच्चियां हैं। खाकी वर्दी के गुरूर में कोई भी सरकारी नुमाईंदा किसी के साथ भी मनमानी कर सकता है। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि मध्य प्रदेश सूबे में आज की तारीख में कानून और व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं बची है। प्रदेश में पूरी तरह जंगलराज कायम है। कहीं आम जनता पर जुल्म ढाया जा रहा है तो कहीं मीडिया के इस तरह की गफलतों के खिलाफ आवाज उठाने पर उनके खिलाफ दमनात्मक कार्यवाहियां की जा रहीं हैं। यह सब देख सुन कर भी सूबे के निजाम ‘‘नीरो‘‘ के मानिंद बांसुरी बजा रहे हैं।

रूचिका का मामला देश में मीडिया ने उछाला। जोर शोर से उछले मामले में भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी राठौर को सजा दिलवाने में बीस बरस का समय लग गया है। उस हिसाब से यह मामला तो बहुत छोटा ही है। आज प्रिंट मीडिया की यह सुर्खियां बना हुआ है, पर निहित स्वार्थ में उलझा मीडिया भी इस खबर को एकध सप्ताह में बीच के पन्नों में लाकर इसका दम तोड देगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चेतना होगा। मीडिया को मध्य प्रदेश सरकार की तंद्रा तोडनी होगी। इस मामले में पुलिस अधीक्षक या प्रभारी पुलिस अधीक्षक को नैतिक जिम्मेदारी लेनी ही होगी, क्योंकि हर मामले में विभाग का प्रमुख ही जवाबदार होता है। सरकार को इस मामले में कठोर कदम उठाना ही होगा, अन्यथा आने वाले समय में शांत और सौम्य समझे जाने वाले देश के हृदय प्रदेश, मध्य प्रदेश के बिहार बनते देर नहीं लगेगी।

सोच विचार में गमन हैं राहुल


गुरुवार, 27 मई 2010

कब मिल सकेगा साफ पेयजल!


कब मिल सकेगा साफ पेयजल!

हर जिले में खुलेगी पेयजल परीक्षण प्रयोगशाला

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 27 मई। भारत गणराज्य को ब्रितानी हुकूमत की गुलामी जंजीरें तोडे हुए छः दशक से ज्यादा का समय बीत चुका है फिर भी आवाम को साफ पीने का पानी मुहैया न होना अब तक की सरकारों के लिए शर्म की बात कही जा सकती है। आम आदमी खाने के बिना गुजारा कर सकता है, पर पानी के बिना गुजारा संभव ही नहीं है। ब्रितानी राज में अंग्रेजों द्वारा साफ तौर पर कहा जाता था कि सारी सुविधाएं मुहैया कराना ब्रितानी हुकूमत की जवाबदारी है, पर पानी के लिए रियाया को खुद ही पहल करनी होगी। यही कारण था कि उस समय हर घर में एक कुंआ खोदा गया था। अमूमन हर घर में पानी की व्यवस्था खुद ही की जाती रही थी, आजादी के पहले तक।

आजादी के उपरांत 2010 में एक बार सरकार की तंद्रा टूटती नजर आ रही है। केंद्र सरकार ने फैसला किया है कि आम जनता को पीने का पानी मुहैया करवाने के लिए अब हर जिले में पेयजल परीक्षण प्रयोगशाला की स्थापना की जाए। कंेद्र सरकार का ग्रामीण विकास मंत्रालय देश के हर जिले में चार लाख रूपए व्यय कर इस तरह की प्रयोगशाला की संस्थापना करने जा रही है। ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत संचालित राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत केंद्र सरकार की एक महात्वाकांक्षी योजना सामने आई है, जिसमें देश के हर नागरिक को साफ पीने का पानी मुहैया करवाना प्रमुख माना गया है।

ग्रामीण विकस मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों ने संकेत दिए हैं कि विभाग के पेयजल आपूर्ति विंग ने इस योजना को युद्ध स्तर पर अमली जामा पहनाने की ठान ली है। इस हेतु विभाग द्वारा शत प्रतिशत अनुदान भी मुहैया करवाया जा रहा है। सूत्रों ने कहा कि इस योजना को राज्यों की सरकारें चाहें तो अपने अपने स्तर पर आगे बढवा सकती हैं। केंद्र ने राज्य सरकारों को निर्देश दिए हैं कि अगर वे चाहें तो राष्ट्रीय पेयजल सहायता योजना में मिलने वाली राशि का पांच प्रतिशत हिस्सा प्रयोगशाला को बनाने में खर्च कर सकती हैं।

मुफ्त के आदी हो चुके जनसेवक

मुफ्त के आदी हो चुके जनसेवक

(लिमटी खरे)

देश को नीति अनीति का मार्ग दिखाने वाले जनसेवकों के मुंह में बत्तीसी के बजाए तेंतीसी है, अर्थात उनकी एक और दाढ है, और वह है हराम दाढ। इस तरह की बात अस्सी के दशक के उपरांत लोगों के बीच होती आई हैं। लोगों का कहना है कि इस दाढ के माध्यम से जनसेवकों का प्रयास होता है कि उन्हें अपने कार्यकाल या सेवानिवृति के उपरांत भी वे हर चीज का लाभ एकदम निशुल्क उठाएं एसा उनका प्रयास होता है। चूंकि नियम कायदे कानून उन्हें ही बनाने होते हैं तो वे अपने फायदे के सौदे के वक्त जबर्दस्त एका का प्रदर्शन करते हैं। भारत गणराज्य का इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब भी सांसद विधायकों के वेतन और सुविधाओं के बढने की बात आई है, जनसेवकों ने सदन में मेजे थपथपाकर इसका स्वागत किया है। किसी ने भी खाली खजाने का हवाला देकर इसका विरोध नहीं किया है। कोई करे भी क्यों, उनका फायदा इस सबमें है, इसलिए वे जनता जनार्दन का ख्याल रखने के बजाए अपनी झोली भरने में ही दिलचस्पी रखते हैं।

जनसेवकों की मुफ्त में पाने की चाहत इस कदर बुलंद है कि उन्हें आवाम की तकलीफों से कोई लेना देना भी नहीं है। यही कारण है कि आलीशान सर्व सुविधायुक्त सरकारी आवास, बिजली, दूरभाष, परिवार के साथ मुफ्त हवाई और रेल यात्रा के बाद भी उन्हें संतोष नहीं है। राज्य सभा, लोकसभा के सदस्य, विधायक, विधानपरिषद के सदस्यों ने अब राजमार्ग पर बिना किसी शुल्क, टोल के दिए हुए समूचे देश की सडकों पर अपने वाहन दौडा सकेंगे।

केंद्रीय राजमार्ग मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि अब सांसद, विधायक, केंद्र और राज्य सरकार के वाहन, वीरता पुरूस्कार से नवाजे गए लोगों के वाहन राजमार्गों पर बिना शुल्क चुकाए अपना वाहन दौडा सकेंगे। वर्तमान में विधायकों को उनके सूबे में ही इस तरह की सुविधा मुहैया है। 2008 की टोल नीति में विधायकों को इस सुविधा से महरूम कर दिया गया था, जिसमें भारत के प्रधान न्यायधीश, उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायधीशों तक को इस सुविधा का लाभ नहीं दिया गया था। अब यह सुविधा एक बार फिर बहाल कर दी गई है। भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ, वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया की उपस्थिति में यह फैसला लिया गया हैै। तीनों ने इस बार मीडिया को इससे मुक्त रखने की जहमत नहीं उठाई है, सो मीडिया के कार्पोरेट घरानों द्वारा इसका विरोध किया जाना लाजिमी है।

अब नेताजी को टोल से छूट मिल गई है, जाहिर है कि उनके काफिले में चलने वाले नेहले देहले भी इस सुविधा का लाभ उठाने के लिए अपने आका जनसेवकों पर दवाब बनाएंगे। एक बार फिर मंथन होगा और संभव है कि आने वाले समय में जनसेवकों के काफिले में शामिल कुछ निर्धारित वाहनों को इससे मुक्त रखने का फैसला ले लिया जाए। इनके वाहनों से जो राजस्व नहीं वसूला जाएगा, उस राजस्व हानि को सरकार द्वारा आम जनता की जेब पर डाका डालकर ही वसूला जाएगा।

अमूमन हर बार जनसेवकों को मिलने वाले वेतन, भत्ते, सुख सुविधाओं पर उंगलियां उठती ही रही हैं। आवाम की तरफ से मुंह मोडे जनसेवकों को मिलने वाली अनगिनत छूट में एक और सुविधा का इजाफा करना देश की रियाया के साथ अन्याय ही माना जा सकता है। आम सामान्य लोगों की तुलना में सरकारी खजाने से सौ गुना ज्यादा लाभ उठाने वाले इन जनसेवकों सडक विकास की मद में विकास के मकसद से वसूले जाने वाले टोल से छूट देना किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता है। सडक परिवहन मंत्री कमल नाथ जानते होंगे कि अगर उन्होंने जनसेवकों को इस तरह की छूट प्रदान की है तो इससे टोल के जरिए वसूले जाने वाले राजस्व में दस फीसदी की कमी दर्ज हो सकती है।

आसमान छूती सुरसा के मुंह की तरह बढती मंहगाई में आम जनता किस तरह दो वक्त की रोटी जुटा पा रही है, इस बात से किसी भी जनसेवक को कुछ लेना देना नहीं है। कहने को खाली सरकारी खजाने और वैश्विक आर्थिक मंदी का कथित तौर पर प्रलाप कर तमाम तरह की कटौतियों को आम जनता पर ही लादा जा रहा है। इस कटौती का जनसेवकों की मोटी खाल पर कोई असर परिलक्षित नहीं हो रहा है। जनसेवकों का इस दौर में भी मंहगे कपडे पहनना, विलासितापूर्ण जीवन जीना, आलीशान बंग्लों में सरकार के खजाने से करोडों रूपए फूंकना, तीन या पांच सितारा होटलों में रात गुजारना, मंहगी सरकारी दावतें देना, विदेश यात्राएं आदि का क्रम अनवरत ही जारी है। सांसदों का सरकार पर दवाब बना हुआ है कि उनके वेतन और भत्तों में बढोत्तरी की जाए।

सरकार का रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में रखने वाली कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह के साथ ही साथ कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भी मितव्ययता बरतने का प्रहसन कर चुके हैं, बावजूद इसके अगर केंद्र सरकार का भूतल परिवहन मंत्रालय इस तरह का कदम उठाता है तो कहना ही पडेगा कि बीसवीं सदी में नेतृत्व की परवाह किसी को भी नहीं है। जिस तरह उपनिवेशवाद में आवाम और शासकों के बीच एक खाई हुआ करती थी, उसी की एक बानगी माना जा सकता है भूतल परिवहन मंत्रालय का यह फैसला, इस फैसले से शासक और रियाया के बीच खुदी खाई तेजी से बढने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।

शुक्रवार, 21 मई 2010

एटीएम बब्बा नहीं रहे

एटीएम बब्बा नहीं रहे

पहली बार 1967 में हुआ था एटीएम का प्रयोग

भारत में जन्मा था एटीएम का जनक

(लिमटी खरे)

आधुनिकता के इस युग में लोग बहुत ही अधिक सुविधाभोगी हो चुके हैं। इस काल में जीवन चक्र को सहज बनाने में जिन लोगों ने अपना अपना योगदान दिया है, उनमें जान शेफर्ड बेरान का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा, वह इसलिए कि उन्होंने लोगों को पैसा निकालने के लिए बैंक की समयसीमा और लंबी लंबी कतारों से छुटकारा दिलाते हुए आटोमेटेड टेलर मशीन (एटीएम) का अविष्कार किया था, जो आज कमोबेश हर एक नागरिक के पास है।

स्काटलैंड मूल के माता पिता की संतान शेफर्ड का भारत से गहरा नाता रहा है। उनका जन्म भारत गणराज्य के मेघालय सूबे के शिलांग में हुआ था। कहते हैं आवश्यक्ता ही अविष्कार की जननी है। इसे ही चरितार्थ किया था शेफर्ड ने। सप्ताहांत का आनंद लेने के शौकीन शेफर्ड को बैंक से पैसा निकालने की झंझट के चलते वीकेंड के मजे खराब हो जाया करते थे। एक दिन नहाते नहाते उनके दिमाग में आया कि क्यों न एसी मशीन को इजाद किया जाए जिससे कहीं भी कभी भी धन की निकासी की जा सके। शेफर्ड ने स्वचलित चाकलेट वेंडिग मशीन को देखकर सोचा कि क्यों न इसी तर्ज पर धन निकासी की व्यवस्था की जाए।

धुन के पक्के 23 जून 1925 को जन्मे शेफर्ड ने एटीएम मशीन को बना ही दिया। पहली बार 27 जून 1967 को उत्तरी लंदन के एनफील्ड में बारक्लेज बैंक की शाखा में इसे प्रयोग के तौर पर लगाया गया। यह मशीन वर्तमान एटीएम मशीन से बिल्कुल भिन्न हुआ करती थी। इसका नाम उस वक्त डी ला रूई ऑटोमेटिक कैश सिस्टम (डीएससीएस) कहा जाता था। उस वक्त रसायन युक्त कोडिंग से विशेष जांच के उपरांत ही पैसा निकाला जाता था। इसमें एक खांचे में उपभोक्ता द्वारा अपना चेक रखकर अपनी निजी पहचान संख्या दर्ज करता था, तब दूसरे खांचे से दस पाउंड के नोट बाहर आते थे। एटीएम नोट निकालने वाला पहला उपभोक्ता मशहूर फिल्म ‘आन द बजेस‘ फिल्म के नायक रेग वर्नी थे।

यही युग था जब एटीएम मशीन के युग का सूत्रपात हुआ था। शेफर्ड ने आरंभिक समय में इसका पिन नंबर छः अंकों का रखा था। बाद में उनकी पत्नि का कहना था कि उन्हें चार अंकों की संख्या ही आसानी से याद रह पाती है, सो शेफर्ड ने इसे छः से बदलकर चार अंकों में कर दिया। आज समूची दुनिया में पिन कोड चार अंकों का ही है।

ब्रिटेन मंे स्काटलेंड के लोगों को वैसे तो बहुत ही कंजूस माना जाता है, पर ब्रितानी इस बात को गर्व से कह सकते हैं कि उनके बीच का ही एक व्यक्ति जो भारत मंे जन्मा हो, ने एक मशीन का अविष्कार कर दुनिया भर के बैंक की तिजोरियों के ताले चोबीसों घंटे के लिए खोल दिए हों। आज प्रोढ हो चली पीढी के स्मृति से यह बात कतई विस्मृत नहीं हुई होगी कि एटीएम संस्कृति के आने से पहले किस तरह लोग घंटों लाईन में लगकर बैंक में अपना जमा धन निकलवाया करते थे। रविवार या अवकाश के दिनों में लोगों को किस कदर परेशानियों से दो चार होना पडता था। कहा जाता था कि बैंक कभी भी लगातार तीन दिन तक बंद नही रहते। आज वे सारे मिथक टूट चुके हैं।

आज बिजली, बल्व, सायकल आदि के अविष्कारकों को हमने अपने पाठ्यक्रम की किताबों में पढा है, पर अनेक एसे अविष्कारक हुए हैं, जिनके बारे में बहुत ज्यादा प्रचारित नहीं हो सकता है। मसलन इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन के जनक सुजाता को कम ही लोग जानते हैं। सुजाता दक्षिण भारत के एक फिल्मकार थे। सरकार की उपेक्षा के कारण इस तरह की प्रतिभाओं के बारे में लोग जान ही नहीं पाते हैं। टेलीफोन के अविष्कारक अलेक्जेंडर ग्राहम बेल, बिजली के बल्व के अविष्कारक टॉमस आल्वा एडिसन को तो लोग जानते हैं, किन्तु फ्रिज, टीवी, वाशिंग मशीन, गैस चूल्हा, मोबाईल आदि रोजमर्रा उपयोग में आने वाली वस्तुओं के अविष्कारकों के बारे में कम ही लोग जानते हैं।

बीसवी शताब्दी के उत्तारर्ध में विज्ञान और टेक्नालाजी का विकास जिस दु्रत गति से हुआ और बदलाव की प्रक्रिया इतनी तेज रही कि लोगों केा इनके अविष्कारकों के बारे में जानने या याद रखने की फुर्सत ही नहीं मिल सकी। आने वाले दिनों में कागज की मुद्रा के स्थान पर प्लास्टिक मनी जिसे ई ट्रांजक्शन भी कहते हैं, का प्रचलन बहुत ज्यादा बढ सकता है। आज भी क्रेडिट, डेबिट कार्ड पूरी तरह प्रचलन में आ चुके हैं। लोग आज अपनी अंटी में ज्यादा रूपया रखने के बजाए इस तरह के कार्ड रखने में ही ज्यादा समझदारी समझते हैं। हमें धन्यवाद देना चाहिए जान शेफर्ड बैरन का जिन्होंने बैंक की तिजोरियों के दरवाजे चौबीसों घंटों के लिए खोल दिए वरना आज भी हम बाबा आदम के जमाने की व्यवस्था पर ही चलने को मजबूर रहते। शेफर्ड को एटीएम का जनक नहीं पितामह कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। एटीएम बब्बा नहीं रहे इस बात का दुख सभी को होना चाहिए।

नकली नोटों के सौदागर



कौन जीतेगा - प्रजातंत्र या कमलनाथ ?

कौन जीतेगा - प्रजातंत्र या कमलनाथ ? 
राजेश स्थापक 

उत्तर भारत को दक्षिण भारत से जोड़ने वाले उत्तर-दक्षिण गलियारे का भविष्य केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्री कमलनाथ की जिद, संकुचित मानसिकता एवं स्वार्थ के कारण खतरे में पड़ता दिखायी दे रहा है। अपने व्यक्तिगत लाभ के लिये व्यास नदी की धारा मोड़ने वाले कमलनाथ अब विशेषज्ञों द्वारा स्वीकृत उत्तर-दक्षिण गलियारे को अपनी मर्जी के हिसाब से अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा की ओर मोड़ना चाहते हैं। कमलनाथ की जिद के चलते राष्ट्रीय महत्व के इस गलियारा के अंतर्गत फोरलेन रोड का काम मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में आकर रूक गया है एवं फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट की पेशी के बीच अटका पड़ा है। इस मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने में कमलनाथ की ही विशेष भूमिका रही है।

वर्ष 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने देश के सभी दिशाओं को फोरलेन मार्ग से जोड़ने का प्रस्ताव रखा था जो बाद में स्वीकृत होकर प्रधानमंत्री स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के नाम से अस्तित्व में आकर अटल सरकार के कार्यकाल के दौरान ही क्रियान्वित होने लगा। वर्ष 2004-05 के लोकसभा चुनाव के बाद केन्द्र में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए (संप्रग) की सरकार बनी। तब एक बारगी ऐसा लगा की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की इस परियोजना को कांग्रेस सरकार शायद ही आगे बढ़ाये। परंतु इस परियोजना का महत्व और उपयोगिता को देखते हुए वर्ष 2004-05 में बनी मनमोहन सिंह सरकार ने इस परियोजना को न केवल आगे बढ़ाया बल्कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस परियोजना को पूर्ण कराने में व्यक्तिगत रूचि लेकर तत्कालीन भूतल परिवहन मंत्री टी.आर. बालू को भी निर्देशित किया।

इसी परियोजना के अंतर्गत उत्तर भारत के श्रीनगर को दक्षिण भारत के अंतिम छोर कन्याकुमारी तक फोरलेन सड़क से जोड़ा जाना है जिसे नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर नाम दिया गया। जाहिर है नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा न केवल आर्थिक बल्कि सामरिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी है।

नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर के निर्माण का कार्य तक टी.आर. बालू के भूतल परिवहन मंत्री रहते तेज गति से चला। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद केन्द्र में पुनः कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार बनी। इस सरकार में विभिन्न कारणों के चलते कमलनाथ का कद कम करते हुए उन्हें सड़क परिवहन मंत्रालय दिया गया। कमलनाथ को सड़क परिवहन मंत्री बनते अपनी वर्षों पुरानी मंशा (जिसका जिक्र वे 29 जुलाई 2009 को राज्यसभा में दिये अपने बयान में कर चुके हैं) को पूरा करने का मौका मिल गया क्योंकि उत्तर-दक्षिण गलियारा उनके संसदीय क्षेत्र मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले से मात्र 70 कि.मी. दूर सिवनी जिले से होकर नागपुर जा रहा था। दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के स्कूल के जमाने से मित्र रहे ताकतवर कमलनाथ को लगा कि नदी की धारा की तरह वे नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर की दिशा अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा की तरफ मोड़ सकते हैं तब जबकि वे स्वयं उस मंत्रालय के मंत्री हैं जो यह गलियारा बना रहा है।

यहां से नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर को छिंदवाड़ा ले जाने की योजना पर अमल शुरू हुआ। इसके लिये सबसे पहले वर्ष 2007 के अंतिम महीनों में एक काल्पनिक खबर छपवायी गयी कि कान्हा नेशनल पार्क से एक बाघ 180 कि.मी. पैदल चल पेंच नेशनल पार्क पहुंचा जिससे लगभग 15 कि.मी. दूर से नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर के अंतर्गत फोरलेन सड़क को बनाया जाना है।

कॉरीडोर की फोरलेन सड़क को छिंदवाड़ा ले जाने के लिये वन्यप्राणियों और पर्यावरण का सहारा लेकर कथित तौर पर कमलनाथ के चचेरे भाई अशोक कुमार जो वार्डल्ड लाईफ ट्रस्ट नाम का एक अन्जान संगठन वन्यप्राणियों के संरक्षण के नाम पर चलाते हैं, ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर के माध्यम से यह निवेदन किया कि यदि सिवनी से नागपुर के बीच नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर की फोरलेन सड़क बनती है तो यह पेंच नेशनल पार्क के वन्यप्राणियों पर दुष्प्रभाव डालेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने वन्यप्राणी विशेषतौर से बाघों को ध्यान में रखते हुए तत्काल केन्द्रीय साधिकार समिति (सी.ई.सी.) को इस मामले की जांच कर रिपोर्ट सौंपने को कहा। सी.ई.सी. की टीम में कमलनाथ के प्रभाव वाले नेशनल टाईगर कन्जर्वेशन ऑथारिटी के सदस्य सचिव डॉक्टर राजेश गोपाल को वन्यजीव विशेषज्ञ के बतौर शामिल किया गया। जैसी की उम्मीद थी डॉक्टर राजेश गोपाल ने अपनी विद्वता का परिचय देते हुए मध्य भारत के सिवनी जिले के जंगलों की ऐसी रिपोर्ट तैयार किया कि ऐसा लगा की देश के सारे बाघ इसी क्षेत्र में रहते हैं। डॉ. राजेश गोपाल ने यहां तक लिख डाला कि पेंच नेशनल पार्क से कान्हा नेशनल पार्क जिसके बीच की दूरी लगभग 200 कि.मी. दूर है एवं जिसके बीच से नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर को गुजरना है बाघ के पेंच से कान्हा नेशनल पार्क का प्राकृतिक रास्ता है। इसी रिपोर्ट ने डॉ. राजेश गोपाल की कमलनाथ के प्रति इरादे स्पष्ट कर दिया। वास्तव में पेंच और कान्हा किसी भी तरह से जंगल से जुड़े नहीं हैं। दोनों के बीच हजारों गांव कस्बे, रेल मार्ग, सड़क मार्ग, बांध, नदी इतनी कि इन सबको पार करके किसी बाघ को 200 कि.मी. दूरी पर कान्हा नेशनल पार्क तक पहुंचना लगभग असंभव कार्य है। तब जबकि सभी को पता है आज नेशनल पार्क के अंदर बाघों का शिकार धड़ल्ले से किया जा रहा है तब 200 कि.मी. के आबादी वाले इलाकों से गुजरकर कोई बाघ जीवित कैसे बचेगा।

भले ही डॉ. राजेश गोपाल की रिपोर्ट काल्पनिक एवं एक उद्देश्य विशेष को लेकर लिखी गयी हो लेकिन यह रिपोर्ट ने पर्यावरण एवं वन्यप्राणियों के शुभचिन्तकों एंव संवेदनशील मीडिया की कुछ सहानुभूति पाने में सफल हो गयी। दिल्ली और मुम्बई जैसे महानगरों में बैठे पर्यावरणविदों और मीडिया को लगा कि वास्तव में सिवनी से गुजरने वाले नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर की फोरलेन सड़क से जंगली जानवरों को नुकसान पहुंचेगा। जबकि वास्तव में मध्य भारत के इस दुर्गम आदिवासी क्षेत्र की वास्तविकता किसी को पता नहीं है। स्वयं कमलनाथ के चचेरे भाई और वाईल्ड लाईफ ट्रस्ट के उपाध्यक्ष  और वन्यप्राणियों के कथित संरक्षक अशोक कुमार को छिंदवाड़ा के जंगलों की वास्तविकता नहीं पता जहां से में फोरलेन मार्ग को ले जाने का सुझाव सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत अपनी याचिका में दे रहे हैं।

वास्तव में पेंच नेशनल पार्क छिंदवाड़ा से घने जंगलों से जुड़ा हुआ है छिंदवाड़ा के ये घने जंगल प्रसिद्ध पर्यटन क्षेत्र पचमढ़ी तक एक समान जुड़े हैं। यह सम्पूर्ण क्षेत्र सतपुड़ा पर्वतमाला का सघन वनों वाला क्षेत्र है जिसे वनविभाग ने देश की सर्वश्रेष्ठ जैवविविधताओं वाले क्षेत्रों में शामिल किया है। इस क्षेत्र के घने जंगलों में स्थानीय वन विभाग और ग्रामीणों को अक्सर बाघ और उसके पदचिन्ह दिखायी देते हैं। स्पष्ट है कि पेंच नेशनल पार्क के जंगली जानवर पार्क से सटे छिंदवाड़ा जिले के घने जंगलों की तरफ स्वाभाविक रूप से जायेंगे न कि उस तरफ जहां बसाहट हो, और सड़क मार्ग हो। लेकिन बाघ विशेषज्ञ डॉ. राजेश गोपाल ऐसा नहीं मानते हैं।

पिछले पांच वर्षों में देश के नेशनल पार्कों के अंदर मारे जा रहे बाघों के बारे में कभी न चिन्ता करने वाले डॉ. राजेश गोपाल और बाघों के कथित संरक्षक अशोक कुमार ने पेंच नेशनल पार्क और इस क्षेत्र के जंगलों और जंगली जानवरों के बारे में दिल्ली में बैठे मीडिया को न केवल गुमराह करने का प्रयास किया बल्कि फोरलेन सड़क को नरसिंहपुर-छिंदवाड़ा होते नागपुर ले जाने का पक्ष लेकर इस क्षेत्र की सर्वश्रेष्ठ जैवविविधता, लाखों पेड़ और देश के लुप्त होते बाघों को खतरे में डाल दिया।

यही नहीं इन कथित और छद्म पर्यावरणविदों को छिंदवाड़ा से नागपुर फोरलेन सड़क को बनाने के वो दुष्परिणाम भी नहीं दिख रहे हैं जिसे एक आम व्यक्ति आसानी से सोच सकता है। केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ को जिद के दुष्परिणाम क्या निकलेंगे गौर करें। यदि फोरलेन सिवनी से सीधे नागपुर की बजाये छिंदवाड़ा होते हुए नागपुर बनायी जाती है जैसा कमलनाथ चाहते हैं तो इसका मतलब है सारे देश के लोगों को 70 कि.मी. अतिरिक्त वाहन चलाना पड़ेगा। यही नहीं इससे वर्तमान दर के हिसाब से लगभग 14 लाख रूपये अतिरिक्त पेट्रोल और डीजल का खर्चा वाहन मालिकों पर पड़ेगा। बात यहीं खत्म नहीं होती है 70 कि.मी. अतिरिक्त चलने से इस क्षेत्र में 900 टन कार्बन का उत्सर्जन प्रतिवर्ष होगा जो पर्यावरण और वनों के लिये कितना विनाशकारी है उसका पता शायद कमलनाथ और उनके चचेरे भाई अशोक को नहीं है। बात समाप्त यहीं नहीं होती है यदि कमलनाथ अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा से नागपुर फोरलेन बनवाते हैं तो उन्हें छिंदवाड़ा से नागपुर के बीच स्थित जंगलों के उच्च क्वालिटी वाले प्रथम वर्ग श्रेणी के 81,500 वृक्षों की बलि देना होगा यही नहीं छिंदवाड़ा से नागपुर के बीच जलेबी आकार की 22 कि.मी. लम्बी घाटी जो छिंदवाड़ा के हिस्से वाले पेंच नेशनल पार्क के करीब है पर फोरलेन सड़क यदि बना भी दी जाये तो इस घाटी पर बड़े वाहन बमुश्किल चल पायेंगे। ऊपर से 22 कि.मी. लम्बी इस घाटी के घाट को कम करने के लिए उसका विस्तार लगभग 30-32 कि.मी. तक करना पड़ेगा जिसका असर इस क्षेत्र की जैवविविधता और पेंच पार्क के बचे हुए चंद बाघों पर बुरी तरह से पड़ेगा।

सभी को पता है कि स्वर्णिम चतुर्भुज जैसी महत्वपूर्ण परियोजना के पहले विशेषज्ञों द्वारा सर्वे कर फोरलेन सड़क बनाये जाने का प्लान तैयार किया गया था। आश्चर्य है टी.आर. बालू के सड़क परिवहन मंत्री रहते जो परियोजना सुगमता से चल रही थी वो कमलनाथ के सड़क परिवहन मंत्री बनने के बाद कैसे पर्यावरण मंत्रालय और कोर्ट कचहरी में उलझ कर रह गयी। क्यों कमलनाथ एक ही मंजिल के लिये तीन रास्तों का विकल्प दे रहे हैं। उनका दूसरा विकल्प है नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर की फोरलेन सड़क नरसिंहपुर से छिंदवाड़ा होते हुए नागपुर जाये जिसके लिये कमलनाथ लगभग ढ़ाई लाख वृक्षों को कटवाने को तैयार हैं।

आखिर क्यों ? कमलनाथ छिंदवाड़ा से फोरलेन सड़क तमाम सच्चाईयों के बाद ले जाना चाहते हैं। क्या वास्तव में आज तक पिछड़े एवं अविकसित आदिवासी छिंदवाड़ा जिले की जनता अगले चुनाव में उन्हंे फोरलेन सड़क के नाम पर वोट देगी। क्या उद्योपति कमलनाथ छिंदवाड़ा से नागपुर के बीच के क्षेत्रों में आदिवासी इलाकों में उद्योगों को मिली बेहिसाब छूट का फायदा उठाकर स्वयं और अपने उद्योपति मित्रों के उद्योग खुलवाना चाहते हैं। क्या कमलनाथ छिंदवाड़ा में विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज-स्पेशल इकॉनामिक जोन) बनाकर अपने संसदीय क्षेत्र में घटते जनाधार को रोकना चाहते हैं या फिर क्या यह सब कमलनाथ अपनी जिद के कारण कर रहे हैं।

निःसंदेह यह सोच का विषय है कि क्या एक शक्तिशाली नेता और मंत्री अपने स्वार्थ के लिये देश के पर्यावरण, वन्यप्राणी और आम व्यक्तियों के साथ-साथ सरकारी खजाने पर इस तरह का खिलवाड़ कर सकता है क्योंकि लखनादौन से सिवनी के आगे 12 कि.मी. आगे अब तक फोरलेन सड़क बनाने में सरकार के बारह सौ करोड़ रूपये खर्च हो चुके और इस क्षेत्र में फोरलेन सड़क बनाने के लिये हजारों पेड़ पहले ही काटे जा चुके हैं। क्या सिवनी के आदिवासी जिन्होंने कभी जंगल बचाने के लिये अंग्रेजों के विरूद्ध जंगल सत्याग्रह कर अंग्रेजी बंदूकों की गोली खाकर शहादत दिया था। ऐसे आदिवासी जिनके लिये सिवनी से नागपुर जाने वाली फोरलेन सड़क लाईफ लाईन साबित होगी। क्या सिवनी के आदिवासियों अपने क्षेत्र के विकास को छीने जाने के बाद भी बाघ और जंगलों के प्रति वैसी सहानुभूति रखर पायेंगे जैसी वे आज तक रखते आये हैं। पिछले दिनों जब सिवनी जिले में कमलनाथ के विरूद्ध फोरलेन बचाओ आंदोलन हुआ था उस दौरान इस क्षेत्र के आदिवासियों ने यही चर्चा थी कि बाघों के कारण उनका विकास नहीं हो पा रहा है।

फिलहाल यह सम्पूर्ण मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है लेकिन पर्यावरण और बाघों के झूठे संरक्षण के नाम पर कमलनाथ अपने मकसद में कामयाब भी हो गये तो भी मूक बाघ, जंगली जानवर, वृक्ष, गरीब आदिवासी और सिवनी जिले के लाखों लोग जो पहले ही 21 अगस्त को कमलनाथ के 100 से ज्यादा पुतले जला चुके है कमलनाथ को कभी माफ नहीं करेंगे। क्योंकि स्वयं राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अधिकारी सिवनी से नागपुर फोरलेन सड़क के पक्ष में है और बाघ एवं अन्य जानवरों की सुरक्षा के लिये उन्होंने विश्व स्तर के व्यवहारिक सुझाव भी जिम्मेदार लोगों को बताया है। अब देखना है कि सुप्रीम कोर्ट में ताकतवर, बलशाली कमलनाथ की जीत होती है या सिवनी जिले के 10 लाख लोगों की।

इसके अलावा इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी सिवनी जिले के दस लाख लोगों के अलावा देश भर के मीडिया और बुद्धिजीवियों को भी बेसब्री से इंतजार है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के इस मामे में सिवनी के पक्ष में फैसले से देश भर में पर्यावरण के संरक्षण के साथ विकास जरूरी है का आधार बन जायेगा या फिर पर्यावरण और जंगली जानवरों के कथित संरक्षण के नाम पर देश में जगह-जगह बनाये जा रहे बांध, सड़कें, भवनों पर रोक लगना प्रारंभ हो जायेगी। क्योंकि सिवनी के लोगों और आदिवासी वर्ग में यह बात घर करने लगी है कि जंगलों एवं जंगली जानवरों की रक्षा करें हम और फ्लाई ओवर, मेट्रो ट्रेन और गगनचुम्बी इमारतों की सुविधायें ले दिल्ली और मुम्बई के लोग खासतौर से वाईल्ड ट्रस्ट ऑफ इंडिया के अशोक कुमार जैसे लोग जिन्होंने पर्यावरण के नाम पर कभी एक पौधा नहीं लगाया, जिन्होंने बाघों को बचाने के लिये कुछ नहीं किया वे दिल्ली के अपने वातानुकूलित ऑफिस में बैठे-बैठे सैंकड़ों कि.मी. दूर सिवनी के जंगल और बाघों की चिन्ता कर रहे हैं।

गुरुवार, 20 मई 2010

हृदय प्रदेश के माथे पर कुपोषण का कलंक

हृदय प्रदेश के माथे पर कुपोषण का कलंक
 
स्वास्थ्य विभाग ने यूनीसेफ से मिलकर खेला अनूठा खेल
 
कुपोषित बच्चे आज भी तरस रहे तीमारदारी को
 
(लिमटी खरे)
 
समूचे देश में कुपोषित बच्चों की खासी तादाद देखने को मिल रही है। यह आज की कहानी नहीं है, आजादी के पहले से ही देश में बच्चों को पर्याप्त और पोष्टिक भोजन न मिल पाने के चलते उनका विकास अवरूद्ध होता रहा है। देश में कुपोषित बच्चों की तादाद में तेजी से इजाफा हुआ है। देश के हृदय प्रदेश माने जाने वाले मध्य प्रदेश में कुपाषित बच्चों की खासी तादाद होने के बावजूद भी सूबे के स्वास्थ्य और महिला बाल विकास महकमे की पेशानी पर चिंता की लकीरें कहीं भी परिलक्षित नहीं होती है।
 
एक अनुमान के अनुसार मध्य प्रदेश के बच्चे इन दिनों यूनीसेफ के रहमो करम पर ही जी रहे हैं। विडम्बना तो देखिए जो यूनीसेफ कल तक बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए दवा दारू और पोष्टिक भोजन का प्रबंध करता आ रहा था, वही यूनीसेफ आज मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग को ब्रम्हास्त्र भी मुहैया करवा रहा है। कुपोषण से बचने के लिए यूनेसेफ द्वारा उपलब्ध करवाने वाले फंड के बोझ तले दबी मध्य प्रदेश सरकार अब कुपोषित बच्चों को पोष्टिक आहार उपलब्ध कराने में असहाय ही महसूस कर रही है।
 
मध्य प्रदेश के मुखयमंत्री शिवराज सिंह चौहान भले ही सूबे के बच्चों में फैले कुपोषण को माथे का कलंक समझा जाता हो और जमीनी हकीकत भी कुछ यही बयां कर रही है। इसके साथ ही साथ मध्य प्रदेश का स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग यूनीसेफ की मदद से इस मामले में अपनी खाल बचाता ही नजर आ रहा है। विश्व सम्वाद एजेंसी बीबीसी द्वारा हाल ही में प्रकाश में लाई गई एक रिपोर्ट के अध्ययन से साफ हो जाता है कि समूची दुनिया के सामने हिन्दुस्तान की कुपोषण के मामले में मदद करने वाला यूनीसेफ स्चयं ही इस मामले में हिन्दुस्तान के प्रति कितने प्रतिबद्ध हैं।
 
विकासशील देशों में कुपोषण के शिकार बच्चों का 90 फीसदी हिस्सा एशिया और आफ्रीका में रहता है। किसी को यह जानकार आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि इसका एक तिहाई हिस्सा भारत की सरजमीं पर है। आबादी के मामले में विश्व में नंबर दो का खिताब पाने वाले हिन्दुस्तान के लिए यह चिंता की बात है कि यहां अभी भी कुपोषित बच्चों की तादाद बहुत ही ज्यादा है। अगर देखा जाए तो पाकिस्तान में यह 42 और बंग्लादेश जैसे देश में महज 43 फीसदी ही है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वे का प्रतिवेदन इस बात की ओर पुरजोर इशारा करता है कि इन देशों में कुपोषित बच्चों की हालत में दिनोंदिन सुधार ही हुआ है। हिन्दुस्तान की अगर बात की जाए तो 1992 में यहां 52 फीसदी था जो 2005 में घटकर 43 फीसदी तक पहुंचा था। इस सर्वे के अनुसार कुपोषण का शिकार बच्चों का बडा हिस्सा 24 देशों में पाया गया है। इनमे से पांच देशों में लगभग सवा आठ सौ करोड बच्चे कुपोषण का शिकार हुए हैं।
 
बच्चों और महिलाओं के प्रति खासे संजीदा मध्य प्रदेश के निजाम शिवराज सिंह चौहान ने अपने सूबे में महिलाओं और बच्चों के कल्याण के लिए अनेक योजनाआंे को न केवल लाया बल्कि उन्हें अमली जामा भी पहनाया है। कुपोषित बच्चों के पुर्नवास के लिए शिवराज सिंह सरकार ने प्रदेश भर में ‘‘पोषण पुर्नवास केंद्र‘‘ स्थापित किए हैं। इस योजना के माध्यम से शिवराज सिंह चौहान की मंशा बिल्कुल साफ थी कि इससे बच्चों को न केवल कुपोषण से मुक्त कराया जाएगा, वरन् उनकी माताओं की काउंसलिंग के माध्यम से उन्हें जागरूक भी बनाया जाएगा।
 
मध्य प्रदेश में कुपोषित बच्चों को खोजने की जवाबदारी महिला एवं बाल विकास के लगभग निठल्ले बैठे परियोजना अधिकारियों के कांधों पर दी गई थी। दो साल तक तो सब कुछ बिल्कुल ठीक ठाक ही चला, पर अचानक ही इस कार्यक्रम में कुछ अडंगे आने आरंभ हो गए। सूबे में अनेक गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों को अचानक ही यूनीसेफ ने कुपोषित मानने से भी इंकार कर दिया। इसी के चलते प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग ने महिला बाल विकास द्वारा सुदूर ग्रामीण अंचल से चिन्हित कर लाने वाले बच्चों की माताओं और आंगनवाडी कार्यकर्ताओं तक को हडकाना आरंभ कर दिया।
 
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मापदण्डों के अनुसार ग्रोथ चार्ट से जब कुपोषित बच्चों का आंकलन महिला एवं बाल विकास विभाग के सहयोग से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा करवाया गया तो इनकी संख्या में तेजी से इजाफा परिलक्षित हुआ। कुपोषित बच्चों के पालकों द्वारा जब अपने बच्चों का रूख पोषण पुनर्वास केंद्र की ओर किया तब स्वास्थ्य विभाग को अपनी कमजोरी समझ में आई। अव्यवस्था का शिकार स्वास्थ्य विभाग के इन केंद्र में अपनी ही कमजोरी छिपाने के लिए विभाग ने यूनीसेफ से रायशुमारी कर इन केंद्रों में प्रवेश के इतने कडे नियम रच डाले कि वहां कुपोषित बच्चे का प्रवेश असंभव ही हो गया। नई गाईडलाईन में अब इन केंद्र में वे ही बच्चे प्रवेश पा सकेंगे जो मौत के मुहाने पर हों। इन परिस्थितियों में गंभीर कुपोषित बच्चे अब गैर चिकित्सकीय अमले के हाथों में जीवन मृत्यु के बीच संघर्षरत हैं।

मध्य प्रदेश में 74 लाख 75 हजार 696 बच्चों का वजन किया गया था, जिनमें से 47 लाख 11 हाजर 640 बच्चे सामान्य वजन के तो 23 लाखप 63 हजार 653 बच्चे कम वजन के निकले एवं अति कम वजन के बच्चों की संख्या 4 लाख 103 थी। मध्य प्रदेश में धार, झाबुआ, अलीराजपुर, खरगोन, अनूपपुर, सतना, सागर, शिवपुरी, श्योपुर आदि जिलों में कुपोषण के लिए अलख जगाने की आवश्यक्ता है, देखना है कि शिव के राज में बच्चों को न्याय कब नसीब हो पाता है।

एक अनार सौ बीमार

बुधवार, 19 मई 2010

राज्‍यसभा के लिए मारामारी चरम पर

पिछले दरवाजे से प्रवेश के लिए रस्साकशी

सोनिया के सिपाहसलारों में गलाकाट स्पर्धा आरंभ

शर्मा पचोरी आमने सामने

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 19 मई। सत्ता की मालई खाने के बाद जनसेवक दुबारा उसे पाने किस कदर आतुर रहते हैं, इसकी बानगी है मध्य प्रदेश और हरियाणा में रिक्त होने वाली राज्य सभा सीटों के लिए मचा घमासान। दोनों ही सीटों पर दावेदारों की संख्या देखकर कहा जा सकता है कि एक अनार सौ बीमार। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा हरियाणा तो पूर्व केंद्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुरेश पचौरी मध्य प्रदेश से रिक्त होने वाली सीट पर काबिज होकर पिछले दरवाजे (राज्यसभा) से संसदीय सौंध तक पहुंचने का जतन कर रहे हैं। पचौरी और शर्मा दोनों ही दस जनपथ (सोनिया गांधी का सरकारी आवास) के नौ रत्नों में समझे जाते हैं।

मध्य प्रदेश और हरियाणा से रिक्त होने वाली एक एक राज्य सभा सीट से किसकी लाटरी निकलेगी इसके लिए सोनिया गांधी के सिपाहसलारों में छिडी जंग देखते ही बन रही है। एक ओर वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा के लिए राज्य सभा से भेजने के लिए सूबे की तलाश तेजी से की जा रही है तो दूसरी ओर सोनिया के नाक कान समझे जाने वाले पूर्व कार्मिक मंत्री सुरेश पचौरी को पुनः संसद में लाने की तैयारियों की बिसात बिछाई जा रही है। आनंद शर्मा का कार्यकाल इसी साल दो अप्रेल को समाप्त हुआ है तो सुरेश पचौरी का कार्यकाल 2008 में अप्रेल में समाप्त हुआ था, इसके बाद उन्हें मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी का प्रमुख बनाकर भेज दिया गया था।

आनंद शर्मा का नाम हरियाणा से रिक्त होने वाली सीट के लिए चल पडा है। वहीं दूसरी ओर शर्मा विरोधियों ने एक समय मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे चौधरी वीरेंद्र सिंह का नाम आगे कर दिया है। वीरेंद्र के नाम पर आलाकमान असमंजस में पड गया है, क्योंकि चौधरी वीरेंद्र सिंह एक तरह से दस जनपथ की पसंद माने जाते हैं, पर आनंद शर्मा को दुबारा चुनकर लाना सरकार और कांग्रेस के लिए प्राथमिकता बन गई है। अगर हरियाण में शर्मा की दाल नहीं गली तो उन्हें भेजने के लिए महाराष्ट्र पर विचार किया जा सकता है। पर हरियाणा शर्मा को सूट करेगा, क्योंकि भले ही वे हिमाचल में जाकर बस गए हों पर उनके पिता हरियाणा में रहे हैं, इसलिए बाहरी का ठप्पा उन पर नहीं लग सकेगा।

रही बात मध्य प्रदेश की तो यहां प्यारे लाल खंडेलवाल और लक्ष्मीनारायण शर्मा के निधन के कारण दो सीट रिक्त हैं, साथ ही साथ अनिल माधव दुबे का कार्यकाल जून महीने में समाप्त हो रहा है। इन परिस्थितियों में रिक्त होने वाली तीन सीटों में से दो पर भाजपा का कब्जा होगा और एक कांग्रेस के खाते में जा सकती है। मध्य प्रदेश में सूबे के कांग्रेसी मुखिया सुरेश पचौरी की नजरें इस सीट पर हैं। पचौरी विरोधियों ने सूबे की वयोवद्ध तर्जुबेकार आदिवासी बेबाक नेता जमुना देवी का नाम आगे कर पचौरी की मुश्किलें काफी हद तक बढा दी हैं। जमुना देवी वर्तमान में मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं, और महिला होने के साथ ही साथ आदिवासी समुदाय से हैं। जमुना देवी के ब्रम्हास्त्र के आगे पचौरी के पास कोई काट दूर दूर तक दिखाई ही नहीं पड रही है।

स्कूलों से चमडे के जूतों की बिदाई जल्द

स्कूलों से चमडे के जूतों की बिदाई जल्द

चमडे के बजाए कपडे के जूतों में नजर आएंगे विद्यार्थी

मेनका गांधी ने किया शंखनाद

विद्यार्थियों के गणवेश में बदलाव जरूरी
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 19 मई। औपनिवेशिक दासता का प्रतीक स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह चमडे के चमचमाते जूतों से लैस विद्यार्थियों के पैरों में अब कपडे के पीटी शू नजर आएंगे। आने वाले दिनों में केनवास के कपडे वाले जूते ही स्कूली विद्यार्थियों के पैरों की शोभा बढाएंगे। शालेय संस्थाओं में इस मामले में सैद्धांतिक सहमति बना ली गई है, अब इंतजार है सरकार के औपचारिक आदेश का। अभी तक इस तरह के जूतों को बच्चे व्यायाम यानी पीटी या खेलकूद के दौरान ही पहना करते थे, अब रोजाना ही बच्चे अपनी यूनीफार्म के साथ इसे पहने दिखेंगे।

पशुओं के बचाने के मसले पर बेहद संजीदा रहने वाली नेहरू गांधी परिवार की बहू श्रीमति मेनका गांधी द्वारा इस तरह का प्रस्ताव दिया था, जिसे सीबीएसई, सीआईएससीई, के अलावा अनेक स्कूल बोर्ड द्वारा स्वीकार कर लिया गयाहै। श्रीमति मेनका गांधी द्वारा जुलाई 2009 में इस आशय का एक प्रस्ताव केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पत्र के माध्यम से दिया था। मेनका का कहना था कि स्कूल की वर्दी के साथ औपनिवेश दासता का प्रतीक चमडे के जूते की अनिवार्यता को समाप्त किया जाना चाहिए।

मेनका ने अपने पत्र में लिखा था कि हिन्दुस्तान के लोगों को चमडे के जूते पहनने का फैसला ब्रितानियों ने जबरिया थोपा था। मेनका कहतीं हैं कि फिरंगियों का यह फैसला न केवल बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानीकारक है, वरन् पर्यावरण की दृष्टि से भी उचित नहीं कहा जा सकता है। बकौल मेनका केनवास के जूतें से एक ओर जहां बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड पाएगा, वहीं दूसरी ओर अभिभावकों के पैसों की बचत भी हो सकेगी।

देश में शिक्षा नीति के निर्धारक माने जाने वाले मानव संसाधन विकास मंत्रालय से अनुरोध किया था कि वह एक आदेश जारी कर शालाओं से चमडे के जूतों को बेदखल कर दे। मेनका के पत्र को मंत्रालय ने भी हल्के में नहीं लिया। मंत्रालय ने इस बारे में शालाओं से संबंधित बोर्ड से बाकायदा रायशुमारी भी की थी। मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि सीआईएससीई और सीबीएसई बोर्ड ने मेनका के प्रस्ताव से इत्तेफाक जताया है। दोनों ही शिक्षा बोर्ड चमडे के जूतों को पर्यावरण विरोधी और बच्चों की सेहत के लिए बहुत ही ज्यादा नुकसानदेह मानते हैं। बोर्ड का मानना है कि चमडे के जूते पसीना नहीं सोख पाते तथा उसके अंदर गंदगी पनपती रहती है, जबकि कपडे के जूते एक ओर पसीना सोख लेते हैं, वहीं दूसरी और केनवास शूज को धोकर साफ किया जा सकता है।

एक अनुमान के अनुसार आज निन्यानवे फीसदी सरकारी और गैर सरकारी शालाओं में गणवेश के साथ चमडे के जूतों का प्रयोग किया जाता है। जानवरों के हितों के लिए काम करने वाली संस्था पीपुल फार एनिमल (पीएफए) द्वारा भी चमडे जूतों को बच्चों के लिए हानीकारक ही माना गया है। संस्था का मानना है कि इससे ज्यादा चमडे की आवश्यक्ता होती है और पशुओं के प्रति क्रूरता को बढावा ही मिलता है। पीएफए के इस अभियान को देश भर में खासा समर्थन मिल रहा है, चेन्नई शहर में सोलह स्कूलों ने गणवेश के साथ चमडे के जूतों पर प्रतिबंध लगा दिया है।

केंद्रीय विदयालय के साथ नित नए प्रयोग

मंगलवार, 18 मई 2010

कौन सा किला संभाले हैं गडकरी


घर नहीं छोडना चाहते गडकरी

विदर्भ पर नजरें गडी हैं गडकरी की

नागपुर, चंद्रपुर, भण्डारा से किस्मत आजमाना चाहते हैं भाजपा के निजाम

कट्टर मुस्लिमों को भाजपा में लाने का एजेंडा है गडकरी का

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 18 मई। भाजपा के नए निजाम ने इस तरह के संकेत अवश्य दिए हैंे कि वे देश की सबसे बडी पंचायत में पिछले दरवाजे अर्थात राज्यसभा से जाने के कतई इच्छुक नहीं हैं, पर वे आम चुनावों में विदर्भ से किस्मत अवश्य ही आजमाना चाहेंगे। मुस्लिमों को रिझाने की दिशा में भी गडकरी ने भाजपा को आगे लाने के पक्षधर गडकरी ने पांच हजार कट्टर मुस्लिमों को भाजपा में लाकर यह मिथक तोडने का प्रयास किया जाएगा कि अल्पसंख्यकों की भाजपा से दूरी है।

एक समाचार पत्र के साथ चर्चा के दौरान नितिन गडकरी ने कुछ इसी आशय की बातें कहीं हैं। गडकरी का कहना था कि जब तक वे अध्यक्ष रहेंगे, चुनाव नहीं लडेंगे। यह बात गडकरी ने संभवतः इसलिए कही है, क्योंकि वे 2010 में अध्यक्ष बने हैं और उनका कार्यकाल दो वर्ष का होगा, तब तक कोई लोकसभा चुनाव नहीं होगा। 2014 में होने वाले आम चुनावों में वे अवश्य कूद सकते हैं।
गडकरी के करीबी सूत्रों ने भी कमोबेश इसी तरह की बात दोहराई है। सूत्रों का कहना है कि सूबाई राजनीति में भी गडकरी की प्राथमिकता विदर्भ ही हुआ करता था, सो अब भी वे विदर्भ से ही चुनाव लडने की जमीन तैयार कर रहे हैं। गडकरी नागपुर, भण्डारा या फिर चन्द्रपुर से किस्मत आजमा सकते हैं।

भाजपाध्यक्ष बनने के उपरांत गडकरी का ध्यान पार्टी को मजबूत कराने के साथ ही साथ अल्पसंख्यकों को पार्टी से जोडने की ओर है। गडकरी चाहते हैं कि मुसलमानों में भाजपा और संघ के प्रति जो अविश्वास है, उसे दूर किया जाए। गडकरी का मिशन है कि देश के कट्टर पांच हजार मुसलमानों को भाजपा में शिरकत करवाकर वे मुसलमानों के मन में भाजपा के प्रति फैली गलतफहमी को दूर करने का प्रयास करेंगे।

गडकरी के करीबी सूत्र यह भी बताते हैं कि भाजपा के निजाम गडकरी समाज सेवा में भी खासी दखल रखते हैं। जनसेवक होने के दौरान उन्होंने लगभग चौदह सौ बच्चों के दिल के आपरेशन करवाए हैं इनमें से तीन सौ बच्चे मुसलमान हैं। गडकरी का मानना है कि राजनीति में छल प्रपंच का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। सूत्रों की मानें तो गडकरी चाहते हैं कि भाजपा के नेता जनसेवा को सही मायनों में अपनाकर एक आदर्श प्रस्तुत करें।

सोमवार, 17 मई 2010

पीएम बनने का सपना संजोते दिग्विजय

दिग्गी की नजरें 7, रेसकोर्स पर

2012 में राष्ट्रपति बनाए जा सकते हैं मनमोह

आम चुनावों में राहुल शायद ही हों बतौर पीएम प्रोजेक्ट

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 17 मई। सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस में आने वाले दो वर्षों में नेतृत्व परिवर्तन का रोडमेप तैयार होने लगा है। देश पर आधी सदी से ज्यादा शासन करने वाली कांग्रेस में इन दिनों भविष्य में सत्ता की मलाई खाने की गलाकाट स्पर्धा मची हुई है। कांग्रेस का एक बडा वर्ग जहां अब सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (श्रीमति सोनिया गांधी का सरकारी आवास) को 12 तुगलक लेन (राहुल गाध्ंाी का सरकारी आवास) ले जाना चाह रहा है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के कुछ प्रबंधक चाह रहे हैं कि 2014 में होने वाले आम चुनावों में भी राहुल गांधी को बतौर प्रधानमंत्री न प्रोजेक्ट किया जाए। इस रोड मेप में 2012 को बहुत ही अहम माना जा रहा है।

10 जनपथ के सूत्रों का कहना है कि 2014 में संपन्न होने वाले आम चुनावों में वर्तमान प्रधानमंत्री डॉ.मन मोहन सिंह को पार्टी का नेतृत्व नहीं करने देने के मसले पर सोनिया गांधी ने अपनी मुहर लगा दी है। सोनिया के इस तरह के संकेत के साथ ही कांग्र्रेस के अंदर अब 2012 के सन को महात्वपूर्ण माना जाने लगा है। 2012 में देश के महामहिम राष्ट्रपति का चुनाव होना है। कांग्रेस के प्रबंधकों का एक धडा इस प्रयास में लगा हुआ है कि वजीरेआजम डॉ.मन मोहन सिंह को या तो राष्ट्रपति बना दिया जाए या फिर उन्हें स्वास्थ्य कारणों से घर ही बिठा दिया जाए।

कांग्रेस के प्रबंधकों ने सोनिया गांधी को यह मशविरा भी दे दिया है कि अगर 2014 में कांग्रेस स्पष्ट बहुमत लाने में कामयाब न हो सकी तो राहुल गांधी को पार्टी का नेतृत्व नही करना चाहिए। इन परिस्थितियों में भगवान राम के स्थान पर जिस तरह भरत ने खडांउं रखकर राज किया था, उसी तरह ‘‘खडांउं प्रधानमंत्री‘‘ की दरकार होगी। 2012 में 7, रेसकोर्स रोड (भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री का सरकारी आवास) को आशियाना बनाने की इच्छाएं अब कांग्रेस के अनेक नेताओं के मन मस्तिष्क में कुलाचें भरने लगी हैं। इस दौड में प्रणव मुखर्जी, पलनिअप्पम चिदम्बरम, सुशील कुमार शिंदे के नाम सामने आ रहे हैं।

कांग्रेस की इंटरनल केमिस्ट्री को अच्छी तरह समझने वालों की नजरें इन सारे नेताओं के बजाए इक्कीसवीं सदी में कांग्रेस के अघोषित चाणक्य राजा दिग्विजय सिंह पर आकर टिक गईं हैं। मध्य प्रदेश में दस साल तक निष्कंटक राज करने वाले राजा दिग्विजय सिंह ने संयुक्त मध्य प्रदेश में तत्कालीन क्षत्रप विद्याचरण शुक्ल, श्यामा चरण शुक्ल, अजीत जोगी, माधव राव सिंधिया, कुंवर अर्जुंन सिंह और कमल नाथ जैसे धाकड और धुरंधर नेताओं को जिस कदर धूल चटाई थी, वह बात अभी लोगों की स्मृति से विस्मृत नही हुई है।

राजा दिग्विजय सिंह ने गांधी परिवार को वर्तमान में जिस तरह से भरोसे में लेकर नक्सलवाद के मसले पर वर्तमान गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम पर हमले किए हैं, उसे राजा की प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने की सीढी के तौर पर देखा जा रहा है। राजा के कदम ताल देखकर लगने लगा है कि वे राजपूत नेताओं को लामबंद करने के साथ ही साथ अपनी ठाकुर की छवि को उकेर कर उदारवादी नेताओं का समर्थन भी हासिल करने का जतन कर रहे हैं। चिदम्बरम पर एक जहर बुझा तीर दागकर हाल ही में राजा दिग्विजय सिंह ने कहा था कि पलनिअप्पम चिदम्बरम अगर प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं तो उन्हें और अधिक उदार बनने की दरकार होगी।

वैसे कांग्रेस की नजर में देश के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी के अघोषित राजनैतिक गुरू तथा कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी को राह दिखाने के लिए एक हाथ में लाठी और दूसरे हाथ में लालटेन लेकर चलने वाले राजा दिग्विजय सिंह एक बात शायद भूल रहे हैं कि कांग्रेस की परंपरा कुछ उलट ही रही है। नेहरू गांधी परिवार की मंशा से इतर जब भी किसी कांग्रेसी ने प्रधानमंत्री की कुर्सी को देखा है, उसे राजनैतिक बियावान में सन्यासी जीवन बिताने बलात ढकेल दिया जाता रहा है।

राजा दिग्विजय सिंह को इसके लिए कांग्रेस का बहुत पुराना नहीं बल्कि सत्तर के दशक के उपरांत का इतिहास ही पलटाना होगा। बाबू जगजीवन राम से बरास्ता हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायणदत्त तिवारी और कुंवर अर्जुन सिंह के मन की बातें सामने आने और मंशा स्पष्ट होने के उपरांत उनके साथ कांग्रेस ने किस कदर ‘‘अछूत‘‘ के मानिंद व्यवहार किया है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। कल तक कुंवर अर्जुन सिंह के दिखाए पथ पर चलने वाली कांग्रेस ने आज उन्हें दूध की मख्खी के मानिंद निकालकर बाहर फेंक दिया है।

भाजपा मैनेज नहीं हुई तो जाएंगे हरवंश

 

अगर भाजपा मैनेज नहीं हुई तो विस उपाध्यक्ष का जाना तय
देश के हृदय प्रदेश में 2003 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी थी। इसके बाद 2008 में दुबारा कांग्रेस ने मुंह की खाई और शिवराज सिंह दुबारा सत्तारूढ हो गए। पिछले आठ सालों में भाजपा सरकार द्वारा कांग्रेस को अनेकानेक मुद्दे दिए थे, जिनको आधार बनाकर कांग्रेस द्वारा भाजपा को कटघरे में खडा किया जा सकता था। विडम्बना ही कही जाएगी कि आधी सदी से ज्यादा समय तक देश पर राज करने वाली कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में सबसे कमजोर विपक्ष क्या होता है, यह दिखा दिया है। भाजपा ने भी केंद्र या प्रदेश में कांग्रेस को भला बुरा कहा है पर यह नूरा कुश्ती से अधिक नहीं था। प्रभात झा के प्रदेश भाजपाध्यक्ष बनते ही भाजपा हरकत में आ गई है। उसने विधानसभा उपाध्यक्ष जैसे संवैधानिक पद पर बैठे कांग्रेस के ठाकुर हरवंश सिंह को विधानसभा सत्र के बहिष्कार को लेकर आडे हाथों लिया है। चर्चाओं के अनुसार अब तक प्रदेश में भाजपा हरवंश सिंह के इशारों पर ही कदम ताल करती रही है। पहली मर्तबा भाजपा ने सर उठाया है। प्रभात झा के नेतृत्व में भाजपा में जान फुंकती दिख रही है। इतिहास साक्षी है कि जब भी कांग्रेस के कद्दावर नेता हरवंश सिंह के खिलाफ कोई मुहिम छेडी गई है, उन्होंने अपनी कुशल प्रबंधन क्षमता का परिचय देकर उसे ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया है। सिंह के खिलाफ उन्हीं की कर्मभूमि की सिवनी की तत्कालीन भाजपा सांसद श्रीमति नीता पटेरिया ने आमानाला कांड में धारा 307 के तहत प्रकरण पंजीबद्ध करवाया था, सूबे में भाजपा सरकार के होते हुए यह प्रकरण का बनना और उसी सरकार के रहते हुए भी खात्मा के लिए अग्रसर होना हरवंश सिंह के कुशल प्रबंधन की एक बानगी ही माना जा रहा है। मध्य प्रदेश में चर्चा गरम है कि अगर इस बार भाजपा अगर विधान सभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह के हाथों मैनेज नहीं हुई तो हरवंश सिंह को विधानसभा उपाध्यक्ष की संवैधानिक कुर्सी को छोडना ही पडेगा।
बिना काम की टीम गडकरी
भाजपा इन दिनों सुस्सुप्तावस्था में हैै। इसका कारण यह है कि भाजपा के नए निजाम की पहली दिल्ली रैली में ही वे गर्मी को सहन न कर पाए और गश खाकर गिर पडे। अब जब तक मौसम ठीक ठाक नहीं होता भाजपा के सुकुमार नेता प्रदर्शन से परहेज ही करेंगे। भारतीय जनता पार्टी मेें टीम गडकरी की घोषणा के लगभग पचास दिनों बाद भी वह पूरी तरह से निष्क्रीय ही दिख रही है, इसका कारण यह है कि टीम गडकरी का गठन तो कर लिया गया है, पर किसी को कोई जवाबदारी नहीं दी गई है। 11 अशोक रोड (भाजपा का नेशनल आफिस) में चल रही चर्चाओं के अनुसार बडे कद वाले हेवीवेट नेताओं को साधने के चक्कर में गडकरी द्वारा अनेक सूबों के भाजपाध्यक्षों की घोषणा भी नहीं कर सके हैं। पार्टी में विभिन्न प्रकोष्ट के अध्यक्षों के पद रिक्त हैं। इतना ही नहीं टीम गडकरी के पदाधिकारियों के बीच काम के बटवारे के अभाव में वे पार्टी मुख्यालय में आकर मुंह बजाने को मजबूर हैं। अब तो लोग नितिन गडकरी की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए यह भी कहने लगे हैं कि टीम गडकरी अब काम के अभाव में बिना काम की ही बची है।
बडबोलों ने घेरा मनमोहन को
देश के वजीरे आजम डॉ.मन मोहन सिंह इन दिनों खासे परेशान नजर आ रहे हैं, उनकी पेशानी पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रहीं हैं। इसका प्रमुख कारण उनके ही मंत्रियों का जबान पर काबू न होना। शशि थुरूर, एम.एस.कृष्णा द्वारा मंहगे होटलों में रूककर, फिर थुरूर के आईपीएल और अन्य विवादों में फंसने के कारण हुई बिदाई, जयराम रमेश और कमल नाथ के हाट एण्ड कोल्ड वार, ए.राजा के घोटाले, चिदम्बरम वर्सिस दिग्विजय सिंह आदि विवादों के बाद अब एक बार फिर जयराम रमेश द्वारा अपने विभाग से इतर चीन की हिमायत करने के आरोप से प्रधानमंत्री डॉ.एम.एम.सिंह परेशान हो उठे हैं। रमेश ने चीन की संचार कंपनियों पर से प्रतिबंध हटाने की मांग की थी। विपक्ष का कहना है कि भारत गणराज्य के वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश चीन के लाईजनिंग एजेंट के मानिंद काम कर रहे हैं, उन्हें तत्काल बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए। वहीं भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ ने मध्य प्रदेश के तेंदूखेडा में यह कहकर सनसनी फैला दी कि फोरलेन उनके संसदीय क्षेत्र छिंदवाडा से होकर जाएगा। यद्यपि यह कूटनीतिक बयान ही था, गौरतलब होगा कि स्वर्णिम चतुर्भुज का उत्तर दक्षिण गलियारा अब शेरशाह सूरी के जमाने के राष्ट्रीय रजमार्ग क्रमांक सात पर अवस्थित सिवनी के बजाए छिंदवाडा होकर जाए इसके लिए कमल नाथ प्रयासरत हैं। मामला चूंकि सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है, फिर कमल नाथ द्वारा इस तरह के बयान देने से लगने लगा है कि वे सर्वोच्च न्यायलय से अपने आप को उपर ही मान रहे हैं।
सुरेश की जमानत पर बचेंगे कैलाश
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह कार्यवाहक सुरेश सोनी की इन दिनों भाजपा में तूती बोल रही है। पहले मध्य प्रदेश में प्रभात झा के विरोध के बावजूद भी उन्हें प्रदेशाध्यक्ष का ताज पहनवाकर सोनी ने अपनी कुशल रणनीति और प्रबंधन गुरू होने का प्रमाण दे दिया। अब सुरेश सोनी मध्य प्रदेश के एक विवादस्पद मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के तारण हार की भूमिका में नजर आ रहे हैं। भ्रष्टाचार और कदाचरण के अरोपों से घिरे कैलाश विजयवर्गीय की रवानगी इस सप्ताह तय थी। गंभीर आरोपों के बावजूद भी कैलाश का मंत्री पद पर बने रहना आश्चर्य का विषय ही माना जा रहा है। बताते हैं कि सुरेश विजयवर्गीय की कुर्सी के पायों को उनके विरोधी और खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी हिला नहीं पा रहे हैं, क्योंकि चारों पाए सुरेश सोनी ने जो पकड रखे हैं। सोनी के समर्थन और संरक्षण के कारण कैलाश विजयवर्गीय बने हुए हैं। मध्य प्रदेश की सूबाई राजनीति में सुरेश सोनी जिस कदर ताकतवर होकर उभर रहे हैं, वह निश्चित तौर पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए शुभ लक्षण नहीं माना जा रहा है।
दूजी बीबी नहीं है मैंटिनेंस की हकदार
पहले से शादी शुदा आदमी के तलाक के बिना अगर कोई महिला उससे शादी करती है तो वह महिला गुजारा भत्ता पाने की अधिकारी नहीं है। मुंबई उच्च न्यायालय के जस्टिस ए.पी.देशपाण्डे वाली डिविजन बैंच ने यह व्यवस्था देते हुए कहा है कि हिंदू विवाह कानून और यहां तक कि हिंदू एडाप्शन एंड मेंटिनेंस एक्ट (हामा) के तहत एसी महिला गुजारा भत्ता पाने के लिए दावा नहीं कर सकती है। उच्च न्यायालय का कहना है कि अगर पहली पत्नि जिंदा है तो दूसरे विवाह का अधार ही नहीं बनता है। वादी ने अपने परिवाद में कहा कि उसके पति ने उससे वैधानिक तौर पर विवाह रचाया था अतः वह गुजारा भत्ता की अधिकारिणी है। कोर्ट का कहना था कि जब वह हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत उसकी दूसरी पत्नि का दर्जा ही नहीं रखती है तो वह फिर गुजारा भत्ता की हकदार कैसे है। जब दूसरी पत्नि जानती है कि उसके कथित पति की पहली पत्नि जिंदा है, और वह उसके साथ रह रही है तब वह मैंटेनेंस का दावा नहीं कर सकती है। हामा के तहत इस तरह का क्लेम तभी किया जा सकता था जबकि यह हिन्दू मेरिज एक्ट 1955 के प्रभाव में आने के पहले की गई हो। इसके लागू होने के पहले हिन्दू कस्टमरी कानून में दो पत्नियां वैध थीं।
मुफत में नहीं मिलने वाला ‘आधार‘
केंद्र सरकार देश के समस्त नागरिकों को अनिवार्य पहचान नम्बर ‘‘आधार‘‘ मुहैया करवाने जा रही है। देश में अवैध तरीके से रहने वाले बंग्लादेशी और पाकिस्तानी नागरिक इससे बुरी तरह भयाक्रांत हैं। इसका कारण यह है कि अगर बारीकी से कार्यवाही की गई तो इन्हें देश छोडने पर मजबूर होना पड सकता है। इस तरह का यूआईडी नंबर देश के नागरिकों से इसकी रकम वसूलेगा जबकि गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों को यह निशुल्क मिल सकेगा। जनगणना आरंभ हो चुक है। यूआईडी प्राधिकरण 2011 से लोगों को यूआईडी नंबर मुहैया करवाएगा। सरकार एपीएल के लोगों से इसकी कितनी कीमत वसूलेगा इस बारे में अभी तय नहीं हो सका है। इस यूआईडी नंबर में महती जानकारियां होंगीं। लोगांे को इंतजार है कि लोगों का यह आधार लोगों की कितनी अधिक जेब ढीली करने के बाद उपलब्ध होगा। इससे केंद्र सरकार को हर वर्ग के लोगों की वास्तविक जानकारी तो मुहैया होगी ही साथ ही देश में घुसपैठियों के बारे में भी पता चल सकेगा।
हांफने लगा है त्रणमूल - कांग्रेस गठबंधन
पश्चिम बंगाल पर काबिज होने के लिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी और त्रणमूल कांग्रेस के बीच कभी न समाप्त होने वाली प्रतिस्पर्धा चल पडी है। कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (कांग्रेसाध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी का सरकारी आवास) के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि त्रणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी को समझाया है कि अगर कांग्रेस उन्हें पश्चिम बंगाल में काबिज कराने में मदद करे तो त्रणमूल कांग्रेस द्वारा केंद्र मंे कांग्रेस को बिना शर्त और बिना मंत्री पद लिए समर्थन दिया जा सकता है। बताते हैं कि ममता के इस लाई लप्पा से कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह और बंगाल की राजनीति की धुरी रहे प्रणव मुखर्जी सहमत नहीं है। उनका कहना है कि कांग्रेस भले ही समझौते पर लडे पर किसी भी कीमत पर ममता को वहां प्रमोट नहीं किया जा सकता है। दोनों ही नेताओं को डर है कि अगर ममता को बंगाल पर काबिज कर दिया गया तो आने वाले दिनों में ममता फिर से केंद्र में कांग्रेस को आंखे दिखा सकतीं हैं। हालात देखकर लगने लगा है कि कांग्रेस और त्रणमूल कांग्रेस का गठबंधन लडखडाने लगा है।
नंबर पोर्टेबिलिटी मामले में दिल्ली अभी दूर है
नंबर वही, पर मोबाईल सेवा प्रदाता आपकी पसंद का, अर्थात नंबर पोर्टेबिलिटी के मामले में अभी और समय लगने की उम्मीद है। भारत संचार सेवा निगम लिमिटेड बीएसएनएल, महानगर संचार निगम लिमिटेड एमटीएनएल, सहित अनेक निजी मोबाईल सेवा प्रदाता इसके लिए तैयार नहीं हैं। लंबे समय से नंबर पोर्टेबिलिटी की बात सरकार द्वारा कही जा रही है, पर खराब सेवा देने वाली कंपनियों को डर है कि कहीं उसके उपभोक्ता किसी अन्य सेवा प्रदाता के पास न चले जाएं, इसीलिए इन कंपनियों द्वारा इसके लिए आवश्यक तकनीक विशेषकर एमएनपी गेटवे तक नहीं जुटाई गईं हैं। संचार विभाग द्वारा बार बार तिथियों को बढाने के बाद अब कहा गया है कि नंबर पोर्टेबिलिटी सुविधा आने वाले 30 जून से आरंभ कर दी जाएंगी। हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि भारत गणराज्य में नंबर पोर्टेबिलिटी का सपना अभी हकीकत में बदल नहीं पाएगा, इस मसले में अभी दिल्ली बहुत दूर ही नजर आ रही है।
समस्या की जड प्रगति मैदान गो आउट ऑफ डेल्ही
देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में व्यापार मेलों और प्रदर्शनियों के चलते सडकों पर जाम लगना आम बात हो गई है। इंडिया गेट, आईटीओ, यमुना पार, इंद्रप्रस्थ वाली रिंग रोड, मथुरा रोड जैसी महात्वपूर्ण सडकों पर जाम लगने का प्रमुख कारण प्रगति मैदान ही है। यहां होने वाले आयोजन दिल्ली की रफ्तार को थाम देते हैं। यह हम नहीं संसद की एक समिति का कहना है। शांता कुमार की अध्यक्षता वाली वाणिज्य विभाग संबंधी संसदीय स्थाई समिति का कहना है कि आईटीपीओ के तहत आयोजित होने वाले व्यापार मेलों को प्रगति मैदान के बजाए दिल्ली शहर के बाहर जगह मुहैया करवाई जानी चाहिए, ताकि मेले ठेले के दौरान दिल्ली की यातायात व्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके। समिति ने वाणिज्य और उद्योग विभाग की 2010 - 2011 की अनुदान मांगों के सबंध में 93वें प्रतिवेदन में यह सिफारिश की है। अब देखना यह है कि इस सिफारिश को सरकार वैसे ही मानती है, या फिर किसी को माननीय न्यायालय की शरण में जाना होगा।
साल भर में ही उखडने लगीं एयरपोर्ट की सांसें
देश की राजधानी दिल्ली को देश का आईना कहा जाता है। विदेशों से आने वाले इस शहर को देखकर शेष भारत के हालातों का अंदाजा आसानी से लगा सकता है। नई दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे की शक्ल सूरत तो काफी सुधार दी गई है, किन्तु इससे लगा घरेलू हवाई अड्डा (डोमेस्टिक एयरपोर्ट) आज भी अपनी बदहाली पर आंसू बहाने पर मजबूर है। आलम यह है कि घरेलू हावाई अड्डे के आगमन अर्थात एरावल प्वाईंट पर एक तरफ की दीवार में दरारें साफ दिखाई पड रही हैं। डिपार्चर टर्मिनल की छत का पेंट उखडने लगा है। आग बुझाने वाले फायर एक्सटेंविशर भी गायब हैं। यह सब तब है जबकि डिपार्चर टर्मिनल 1 डी को 500 करोड रूपए खर्च कर अत्याधुनिक बनाया गया है। इसका व्यवसायिक उपयोग पिछले साल 19 अप्रेल से आरंभ हुआ था। इसमें लगी लिफ्ट में भी पावर बेकअप नहीं के बराबर है। विमानन विभाग के दिल्ली स्थित एयरपोर्ट के आलम यह हैं तो शेष भारत की कल्पना करना बेमानी ही होगा।
कामनवेल्थ में गोमांस नहीं
बार बार चेताने के बाद अब सरकार की तंद्रा टूटती दिख रही है। कामन वेल्थ गेम्स के दौरान मेहमानों को गोमांस परोसने की खबरों ने सरकार की नींद उडा दी थी। अब कामन वेल्थ गेम्स की आर्गनाईजिंग कमेटी ने साफ कर दिया है कि खेल के दौरान मेहमानों को बीफ अर्थात गोमांस नहीं परोसा जाएगा। वैसे कमेटी का प्रयास है कि खेल के दौरान एथलीट्स और उनके साथ आने वाले अधिकारियों को उत्तम क्वालिटी की केटरिंग सर्विस चोबीसों घंटों उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है। इसमें पोष्टिक खाना और नाश्ते के साथ ही साथ डाईट के संबंध में पूरा ध्यान रखा जाएगा। वैसे अर्गनाईजिंग कमेटी आने वाले मेहमानों को उनका मनपसंद भोजन परोसने के लिए बाध्य ही है। गौरतलब है कि भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने इस समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाडी से आग्रह किया था कि मेन्यू से बीफ को बाहर कर दिया जाए। भाजपा के प्रभाव वाली दिल्ली नगर निगम ने भी गोमांस परोसे जाने की खिलाफत करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था।
दाउद के निशाने पर थे मोदी
आईपीएल में आर्थिक अनियमितताओं और केंद्र सरकार के मंत्री शशि थुरूर को सत्ता के गलियारे से बाहर का रास्ता दिखाने वाले आईपीएल के पूर्व चेयर पर्सन ललित मोदी कुख्यात अंडर वर्ल्ड डॉन दाउद अब्रहाम के निशाने पर थे। इंटरपोल के बाद सबसे चुस्त पुलिस मानी जाने वाली मंुबई पुलिस को इस तरह के संकेत मिले थे कि ललित मोदी को आईपीएल 3 के दौरान ही मुंबई, दिल्ली या बंग्लुरू में जान से मारने की योजना थी। मुंबई पुलिस सूत्रों का कहना है कि इस साल जनवरी में ही पुलिस को इस बात की जानकारी मिल चुकी थी और यही कारण है कि मोदी को हथियार बंद दो पुलिस कर्मी चोबीसों घंटे घेरे रहते थे। मोदी की सुरक्षा में प्रतिदिन का खर्च पचास हजार रूपए था। मोदी को एस्कार्ट तक मुहैया करवाई गई थी। अब तक इस बात का खुलासा नहीं हो सका है कि दाउद आखिर मोदी को मोत के घाट उतारना क्यों चाह रहा था। इसके पीछे आर्थिक वजह थी या फिर कोई अन्य विवाद।
ये है मंत्री जी का असली चेहरा
मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य मण्डला जिले में बीते दिवस बरात की एक बस बिजली की हाई टेंशन लाईन से टकराकर दुर्घटना ग्रस्त हो गई, इसमें 28 लोग घटनास्थल पर भगवान को प्यारे हो गए। हृदय विदारक इस घटना ने सभी को झझकोर कर रख दिया सिवाय सूबे के आदिवासी विकास के मंत्री के। ग्राम मण्डला के सूरजपुरा के पास बीते शुक्रवार को हुई इस दुर्घटना के बाद सूबे के तीन मंत्रियों ने पीडितों के परिजनों के पास जा उनका ढाढस बंधाने का उपक्रम किया। इसमें मण्डला मूल के मंत्री देवी सिंह सय्याम, मण्डला के प्रभारी मंत्री जगन्नाथ सिंह और आदिवासी विकास मामलों के मंत्री कुंवर विजय शाह शामिल थे। तीनों मंत्रियों ने परिजनों को सांत्वाना दी। इनमें से सय्याम और जगन्नाथ सिंह तो पीडितों के परिजनों से मिलने उनके गांव गए पर अजाक मंत्री कुंवर विजय शाह ने वहां जाना मुनासिब नहीं समझा। कुंवर विजय शाह ने इसके बजाए मण्डला जिले की धरोहर विश्व प्रसिद्ध कान्हा नेशनल पार्क की सैर करने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई। भीषण गर्मी में जंगल की सुरम्य वादियां बाहंे फैलाकर माननीय मंत्री जी को बुला जो रहीं थीं।
पुच्छल तारा
पिंकी उपाध्याय एक बहुत ही मजेदार ईमेल भेजते हैं, वे कहते हैं कि देश का हृदय प्रदेश मध्य प्रदेश समूचे देश में पहला एसा प्रदेश है, जहां के लोग हर घंटे दो घंटे में खुशियां मनाते हैं। पूछिए कैसे, अरे बहुत आसान है भई आप भी आईए मध्य प्रदेश में और देखिए कि यह कैसे संभव होता है। अरे भाई साहब हर घंटे दो घंटे में सूबे के लोग खुशी से पागल होकर चिल्लाते हैं, ‘‘लाईट आ गई, लाईट आ गई।‘‘ दरअसल मध्य प्रदेश में बिजली की अघोषित कटौती ने यहां के रहने वालों के नाम में दम कर रखा है।

रविवार, 16 मई 2010

आपरेशन सुषमा गडकरी में लगे हैं आडवाणी

आपरेशन सुषमा गडकरी में लगे हैं आडवाणी

सुषमा के फ्लोर मेनेजमेंट को बढा चढा कर पेश कर रही आडवाणी मण्डली

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 16 मई। नितिन गडकरी की ताजपोशी के उपरांत बलात पार्श्व में ढकेल दिए गए राष्ट्रीय जनतांत्रिग गठबंधन के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी और उनकी मण्डली इन दिनों भाजपा के नए निजाम नितिन गडकरी और आडवाणी की जगह पर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनीं सुषमा स्वराज की जडों में मट्ठा डालने का काम पूरे जतन से कर रहे हैं। नितिन गडकरी के खिलाफ आडवाणी मण्डली ने दुष्प्रचार तेज कर दिया है। गौरतलब है कि आडवाणी की मर्जी के खिलाफ संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सुषमा को नेता प्रतिपक्ष तो गडकरी को भाजपाध्यक्ष बनाया था।

राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आडवाणी के करीबी सूत्रों का दावा है कि आडवाणी ने अपनी शातिर चालों से गडकरी और सुषमा को फ्लाप साबित करने और उनकी मण्डली ने शिबू सोरेन प्रकरण में नितिन गडकरी को घेरना आरंभ किया है। भाजपा के अंदरखते में चल रही चर्चाओं के अनुसार कटौती प्रस्ताव पर सरकार को घेरने के में विफल रही भाजपा की इस पराजय का ठीकरा सुषमा स्वराज के फ्लाप फ्लोर मेनेजमेंट पर फोडना आरंभ कर दिया है।

इसके बाद इसी मामले में भाजपाध्यक्ष नितिन गडकरी को भी असफल बताने का प्रयास किया जा रहा है। मीडिया को लीक की गई खबरों में इस बात को प्रमुखता से उछाला जा रहा है कि जब भाजपा झामुमो की संयुक्त सरकार थी तो फिर क्या सोरेन को दिल्ली बुलाकर भाजपा के खिलाफ वोट डलवाने के लिए बुलाया गया था। इतना ही नहीं डिनर डिप्लोमेसी के दर्मयान ही जब इस बात का खुलासा हुआ कि सोरेन ने लोकसभा में भाजपा के खिलाफ मताधिकार का प्रयोग किया तो कांग्रेस का तो कुछ नहीं बिगडा, भाजपा झामुमो की सरकार ही नेस्तनाबूत हो गई।

भाजपा के निजाम का कांटों भरा ताज पहनने के बाद नितिन गडकरी ने अपनी पहली उपलब्धि के तौर पर झारखण्ड में सरकार बनाकर साबित किया था कि उनका प्रबंधन बेहद अच्छा है। इसके बाद कटौती प्रस्ताव में भाजपा की शर्मनाक हार और उसी झारखण्ड में झामुमो और भाजपा की सरकार का गिरना अशुभ संकेत ही माना जा रहा है। इस सबके साथ ही साथ कुशाग्र बुद्धि के धनी एल.के.आडवाणी देश भर में सुषमा, गडकरी और संघ के खिलाफ यह संदेश देने में तो सफल रहे हैं कि सुषमा स्वराज, नितिन गडकरी का प्रबंधन कितना उथला है, इसके अलावा संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सुषमा और गडकरी को पदों पर बिठाकर भाजपा का कितना नुकसान किया है।

गडकरी के करीबी सूत्रों की मानें तो शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत जब सोरेन को लेकर गडकरी के पास गए तो हेमंत को आधा घंटा तो सोरेन के बारे में समझाने में ही लग गया। दरअसल गडकरी यह मानने को तैयार ही नहीं थे कि यही गुरू जी हैं, क्योंकि गडकरी सूबाई राजनीति से आए हैं और उन्होंने सोरेन से शायद ही कभी भेंट की हो। उधर राजनाथ सिंह के राईट हेण्ड निशिकान्त दुबे जो आजकल सुषमा स्वराज की गुड बुक्स में हैं, को शिबू सोरेन के साथ लगाया गया था, पर वे भी सोरेन को भाजपा के पक्ष में वोट दिलवाने में नाकामयाब रहे।

हालात देखकर लगने लगा है कि अपनी उपेक्षा से आहत वयोवृद्ध नेता एल.के.आडवाणी द्वारा अब चुन चुन कर भाजपा के उच्च पदों पर आसीन उन लोगों को निशाना बनाना आरंभ कर दिया है, जिनकी वजह से देश के पहले और इकलौते पीएम इन वेटिंग को बलात पार्श्व में ढकेला गया हो। अब देखना यह है कि आडवाणी मुख्य धारा में लौट पाते हैं या संघ अपनी दबी इच्छाओं को परवान चढा पाता है।