लिमटी खरे
पाकिस्तान भेज रहा है 'कबूतर जासूस'
हिन्दुस्तान को हर तरह से अस्थिर करने की जुगत में लगे पाकिस्तान ने अपने नापाक इरादों के तहत अब कबूतर जासूस भेजना आरंभ कर दिया है। पिछले दिनों त्रिकुटा पर्वत पर विराजीं माता वेष्णो देवी के बेस केम्प कटडा में पकडे गए एक कबूतर के पैर पर कुछ संदिग्ध टेलीफोन नंबर और संदेश दर्ज था। इसी तरह का एक कूबतर पाक सीमा पर ततेयाल गांव के करीब भी पकडा गया है। 2009 में भी एक इसी तरह का कबूतर आरएसपुरा के पास सुचैतगढ में पकडा गया था। इन कबूतरों पर लिखे संदेशों की डिकोडिंग आरंभ कर दी गई है। हो सकता है कि इन कबूतरों के माध्यम से केमरा चिप आदि के माध्यम से चित्र वीडियो फुटेज आदि जुटाए जा रहे हों। जानकारों का कहना है कि इस तरह से कबूतर हमला कर पाकिस्तान द्वारा भारत पर आक्रमण की नई रणनीति तैयार की जा रही हो। उधर कबूतरबाजों की माने तो इस तरह के खास कबूतरों को संदेश लाने ले जाने के काम में इस्तेमाल किया जाता है। ये कबूतर लगातार घंटो उडान भर सकते हैं और बिना रास्ता भटके अपने घर वापस लोट सकते हैं। उडान के पहले इन्हें बादाम, काले चने और दूध पिलाया जाता है। भारत में इस तरह की गतिविधियों के बाद अगर खुफिया एजेंसी हरकत में न आईं तो आने वाले दिनों में पाक के आतंकी पिल्ले फिर से हमला कर दें तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
प्लेटफार्म बिकता है बोलो खरीदोगे!
दिल्ली में प्लेटफार्म पर हुई भगदड से संबंधित नई कहानी प्रकाश में आ रही है। कहा जा रहा है कि इसके पीछे वैंडर्स का खेल है, जिससे उच्चाधिकारी भली भांति परिचित हैं। चर्चा है कि कौन सी रेलगाडी किस प्लेटफार्म पर आएगी इसको कौन तय करता है, जवाब है ‘‘चढावा‘‘। दरअसल रेल्वे स्टेशन पर खानपान और अन्य सामग्रियां बेचने वाले वेंडर्स के चढावे पर ही तय होता है कि कौन सी रेलगाडी किस प्लेटफार्म पर आएगी। ये वेंडर्स पहले से ही प्लेटफार्म पर अपनी ट्राली लगा लेते हैं। इसके बाद आरंभ होता है खेल। दिल्ली में बीते दिनों हुई दुर्घटना पर अगर नजर डाली जाए तो प्लेटफार्म नंबर 2 पर सात, छः और सात पर 80, 8 और 9 पर 70, 10 तथा 11 पर 60, 12 और 13 पर 125, 14 और 15 पर पचास अवैध वेंडर्स ने अपना डेरा जमा रखा था। गौरतलब है कि प्लेटफार्म 15 गाडी 13, 13 की 12 पर स्थानांतरित किया गया था। अब ममता दीदी को कौन समझाए कि रेल्वे के कण कण में भ्रष्टाचार समा चुका है, जिसे निकाल पाना शायद किसी के बस की बात नहीं है। हालात देखकर यही कहा जा सकता है, ‘‘प्लेटफार्म बिकता है बोलो खरीदोगे।‘‘
आप भी दे दो कसाब को फांसी
2008 में देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई पर हुए अब तक के सबसे बडे आतंकी हमले के इकलौते जिंदा दोषी कसाब के बारे में हर भारतीय का मन होता होगा कि कसाब की गर्दन हाथ में आ जाए और उसे फांसी पर चढा दिया जाए। वास्तविकता में तो आप एसा नहीं कर सकते किन्तु अगर आप चाहें तो इंटरनेट पर कसाब को फांसी पर चढा सकते हैं। नेट पर ‘आनलाईन रियल गेम्स डाट काम‘ पर ‘‘हेंग कसाब‘‘ नाम का खेल मोजूद है। इसके माध्यम से आप जितनी बार चाहे कसाब को फांसी पर चढा सकते हैं। हर बार सफलता पूर्वक फांसी देने पर आपको बाकायदा 100 प्वाईंट भी मिलंेगे। एक मिनिट के इस खेल में कसाब बचने की हर संभव कोशिश करता है। हिन्दुस्तान में यह खेल इतना लोकप्रिय हो गया है कि रोजाना एक लाख लोग कसाब को फांसी पर चढा रहे हैं।उर्दू अकामदी का उर्दू को बढावा!
केंद्र सरकार द्वारा अल्पसंख्यक वोट बैंक तगडा करने की जुगत में उर्दू भाषा को बढाने का प्रयास किया जाता रहा है, इस मामले में कांग्रेस का कोई सानी नहीं है। उर्दू को बढावा देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा करोडों अरबों रूपए फूंके जाते हैं, वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश की उर्दू अकादमी द्वारा उर्दू जुबान के साहित्यकारों का सरेआम माखौल उडाया जा रहा है। वर्ष 2009 - 2010 के लिए अकादमी पुरूस्कारों की घोषणा की गई। चयन समिति ने विभिन्न स्तरों पर पुरूस्कारों के लिए देश भर से ग्यारह लोगों का चयन किया था। चयनित लोगों को उर्दू अकादमी के बुलावे का इंतजार था। इन लोगों का भरम तब टूटा जब इन्हें पुरूस्कार के लिए बुलावा तो नहीं आया पर इन्हें पुरूस्कार में मिली राशि और प्रशस्ति पत्र भारत डाक एवं तार विभाग के सौजन्य से घर बैठे ही प्राप्त हो गया। साहित्यकारों की आपत्ति वाजिब है, उनका कहना है कि उनका सम्मान बकायदा सम्मान समारोह आयोजित कर किया जाना चाहिए था, और महामहिम राज्यपाल द्वारा उन्हें पुरूस्Ńत किया जाना चाहिए था, वस्तुतः जो हुआ नहीं।
शेखावत के खाते में एक रूपैया 9 पैसा!
दिवंगत पूर्व उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत के एक बैंक खाते में कितनी रकम हो सकती है। जी हां आपको जानकर अश्चर्य होगा कि शेखावत के राजस्थान के उदयपुर स्थित महिला समृद्धि बैंक के खाते में महज एक रूपए 09 पैसे ही जमा हैं। इस खाते के खुलने के उपरांत से ही इसमें कोई लेन देन नहीं हुआ है। दरअसल 1995 में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने इस बैंक का उद्घाटन किया था। उस समय बैंक के अनुरोध पर भैरो सिंह शेखावत ने महिला समृद्धि बैंक में खाता खुलवाया था। मजे की बात यह है कि उस समय शेखावत की जेब में महज बीस रूपए ही थे। गनीमत थी कि वहां उपस्थित बैंक कर्मी ने शेखावत के खाते को खोलने के लिए दो रूपए मिलाए तब जाकर 22 रूपए में उनका खाता खुल सका था। इस खाते में सालाना ब्याज जुडकर 2002 तक रकम 35 रूपए तक पहुंच गई थी। इसके उपरांत न्यूनतम बैलेंस 500 रूपए न रख पाने से उनके खाते से निर्धारित राशि का आहरण बैंक द्वारा लगातार किया जाता रहा है, जिससे अब उनके खाते की रकम घटकर एक रूपैया और 9 पैसा ही बची है।
आईएएस का छग से मोहभंग
नक्सलवाद की आग में झुलस रहे छत्तीसगढ सूबे से अफसरशाही की रीढ माने जाने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों का मोह भंग होता जा रहा है। काडर बेस्ड अधिकारियों की तैनाती में अहम भूमिका निभाने वाले डीओपीटी मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार वह विभिन्न राज्यों में अधिकारियों की तैनाती में काडर रिव्यू में जुटा है। छग मेें नक्सलवादी समस्या को देखकर लगता था कि केंद्र सरकार द्वारा सूबे में आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की अधिक तैनाती में अपनी सहमति दे देगा, वस्तुतः एसा होता नहीं दिख रहा है। सूबे ने केंद्र से 111 आईएएस अधिकारी मांगे थे, पर उसे मिले महज 103, वर्तमान में इनकी संख्या यहां 81 ही है। छग के अस्तित्व में आने के उपरांत वहां भेजे गए आईएएस अधिकारियों में से मोहम्मद सुलेमान, आई.बी.चहल, विनय शुक्ला, एस.के.राजू ने अपना काडर बदलवा लिया था। अब एम.गीता ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा इसी आधार पर खटखटाया है कि जब इनका काडर बदला जा सकता है तो फिर गीता का क्यों नहीं। छग की नक्सल समस्या और भोगोलिक परिस्थितियों से घबराकर आईएएस अधिकारियों ने जुगाड का सहारा लेकर अपना काडर बदलवा लिया है या प्रयास जारी हैं।
राजनीति में माहिर हो गई ‘‘गुड्डी‘‘
सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की अर्धांग्नी जया बच्चन ने कभी गुड्डी का किरदार बहुत ही करने से निभाया था, पर राजनैतिक बिसात पर वे गुड्डी नहीं रहीं बल्कि शतरंज की माहिर खिलाडी हो चुकी हैं। अपने बाल सखा राजीव गांधी के कहने पर राजनैतिक जीवन में प्रवेश करने वाले अमिताभ बच्चन को भले ही राजनीति रास न आई हो पर उनकी पत्नि की रग रग में राजनीति बसी दिख रही है। अमर प्रेम के तले दबे बच्चन परिवार की बहू जया ने समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की राज्य सभा की पेशकश को जिस कदर ठुकराया है, वह किसी अनाडी राजनेता के बस की बात नहीं, एसे कदम घाघ राजनेता ही उठा सकते हैं। कल तक सायकल की सवारी करने वाले संजय दत्त, मनोज तिवारी, जया प्रदा ने पहले ही मुलायम को बाय बाय कह दिया है। वालीवुड द्वारा की जाने वाली सायकल की सवारी अब सपा के लिए गुजरे जमाने की बात हो गई है। उधर अमिताभ बच्चन की नरेंद्र मोदी से बढती नजदीकियों से कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाले दिनांे में जया बच्चन कमल पर बैठी दिखाई दें तो किसी को अश्चर्य नहीं होना चाहिए।
टुम बोले टुम बोले हम टो टुप्पई टाप
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने सूबे के समस्त जिला कलेक्टर्स को 24 अप्रेल को एक परिपत्र भेजकर साफ निर्देश दिए थे कि जो भी मंत्री पूर्व सूचना देकर सूबे में आंए उनके लिए प्रोटोकाल का पालन किया जाए। उनकी खातिर तवज्जो में कोई कोर कसर नहीं रखी जाए। इसका अर्थ यह भी लगाया जा रहा है कि अगर कोई बिना सूचना के आता है तो उसकी परवाह न की जाए। मध्य प्रदेश सूबे का प्रतिनिधित्व करने वाले चार में से तीन मंत्री कांति लाल भूरिया, ज्योतिरादित्य सिंधिया और अरूण यादव ने शिवराज के इस फरमान पर अपनी गहरी नाराजगी जताई, पर कमल नाथ ने चिरपरिचित शांति का ही परिचय दिया। तीनों मंत्रियों ने पलटवार करते हुए कहा कि उनके द्वारा सूचना देने पर भी समीक्षा बैठकों में सूबे के आला अधिकारी नदारत ही रहते हैं। कांतिलाल भूरिया ने तो प्रधानमंत्री से यहां तक सिफारिश कर डाली कि अगर शिवराज बाज न आएं तो केंद्रंीय इमदाद को तत्काल प्रभाव से रोक दिया जाए। राजनैतिक बियावान में कमल नाथ की मुस्कुराहट और इस मसले पर शांति के अर्थ अपने अपने ढंग से खोजे जा रहे हैं।
भारत सुरक्षित है सैलानियों के लिए
आतंकी गतिविधियों के निशाने पर आए हिन्दुस्तान में विदेशी सैलानियों की आवाजाही काफी हद तक कम हो चुकी है। समूची दुनिया विशेषकर दुनिया के चौधरी अमेरिका ने अपने नागरिकों को हिन्दुस्तान न जाने का मशविरा दिया है। इस सबके चलते विदेशी राजस्व में आई कमी को दूर करने की गरज से केंद्र सरकार हरकत में आई है। केंद्रीय पर्यटन सचिव सुजीत बनर्जी ने टोरंटो में एक कार्यŘम में कहा कि भारत पूरे एशिया में न केवल विदेशी पर्यटकोें के लिए न केवल सुरक्षित स्थान है वरन् यह ध्यान, योग, चिकित्सा के क्षेत्र में तेजी से उभर रहा है। भले ही भारत में आंतरिक और बाहरी अस्थिरता चल रही हो पर यह सच है कि यहां पर्यटन की दृष्टि से बहुत ही अनुकूल माहौल है। भारत सरकार अगर वास्तव में विदेशी सैलानियों को आकर्षित करना चाह रही हो तो उसे चाहिए कि आंतरिक और बाहरी सुरक्षा की दीवारें अभैद्य करे, ताकि ‘अतिथि देवो भव‘ को साकार करने के लिए कम से कम उसे पर्यटक तो मिल सकें।
न्यायधीश होंगे जवाबदेह!
न्यायधीशों की जवाबदेही से संबंधित विधेयक को केंद्र सरकार अगले सत्र में पेश किया जा सकता है। उक्ताशय की बात केंद्रीय कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोईली ने वैकल्पिक व्यापारिक मध्यस्थता एवं समाधान के एक अंतर्राटŞीय केंद्र के शिलान्यास के मौके पर कही। मोईली ने कहा कि न्यायधीश जवाबदेही बिल पर मंत्रियों के समूह अर्थात जीएमओ ने अपनी सहमति प्रदान कर दी है। इसके संसद के अगले सत्र में पेश होने की संभावना है। न्यायधीशों की उम्र बढाने पर भी केंद्र सरकार विचार कर रही है, पर यह विचार सिर्फ उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशों पर ही होगा। वर्तमान में न्यायधीशों की सेवानिवृति की आयु 62 वर्ष है, न्यायालयों में मुकदमों के बोझ को देखकर केंद्र सरकार ने विचार किया है कि न्यायधीशों की सेवानिवृति की आयु 62 से बढाकर 65 कर दी जाए।
सरकारी में दम है!
कौन कहता है कि सरकारी सिस्टम कोलेप्स हो चुका है। हो सकता है कि बाबूराज के चलते देखने में लगता हो कि सरकारी सिस्टम के धुर्रे उड रहे हों, पर स्कूल शिक्षा के मामले में प्राईवेट सेक्टर यानी निजी तौर पर चलने वाले स्कूलों से सरकारी स्कूल बहुत ही आगे निकल चुके हैं। निजी शालाओं में फीस का स्टकर्चर बहुत ही हेवी होता है, पर सरकारी स्कूल में फीस बहुत ज्यादा नहीं होती है। अस्सी के दशक के उपरांत आम धारणा बन गई थी कि सरकारी स्कूलों में पढने वाले बच्चों का विकास औसत से कम ही होता है, यही कारण था कि निजी स्कूलों की तादाद गली कूचों में कुकुरमुत्तों की तरह हो गई थी। योग्य शिक्षकों के अभाव में इन शालाओं में अध्ययन अध्यापन का काम किसी तरह आगे बढाया जाता रहा है। पिछले कुछ सालों में यह बात आईने की तरह साफ हो चुकी है कि निजी शालाओं में पढाई का स्तर सरकारी स्कूलों की तुलना में कहीं गिरा हुआ है। इस साल के दसवीं, बारहवी के परीक्षा परिणामों पर अगर गौर फरमाया जाए तो निजी शालाओं के बजाए सरकारी स्कूलों के परफारमेंस में जबर्दस्त उछाल दर्ज किया गया है। सरकारी में दम है, जय हो . . .।
कैदी नंबर सी 7096 यानी कसाब
देश के आम नागरिक को भले ही यूनिक आईडेंटिटी नंबर न मिला हो पर मुंबई आतंकी हमले में पकडे गए इकलौती दोषी कसाब को एक नई पहचान अवश्य ही मिल गई है। पाकिस्तानी बंदूकधारी अजमल आमिर कसाब की नई पहचान है कैदी नंबर सी 7096। जेल के सूत्रों का कहना है कि दोषियों का रिकार्ड रखने के लिए उन्हें नंबर प्रदान किया जाता है। साथ ही जिनकी सजा तीन महीने तक की हो उन्हें ‘ए‘ श्रेणी में, तीन महीने से पांच साल तक की सजा वाले कैदियों को ‘बी‘ श्रेणी में रखा जाता है। चूंकि कसाब को मौत की सजा मिली है, अतः उसे सी श्रेणी में रखा गया है। कसाब को जेल में कोई काम नहीं दिया जाएगा। कसाब सिर्फ अपने कपडे ही धोएगा। कसाब के पास लांडŞी के पैसे नहीं है, इसलिए उसे यह काम खुद ही करना पडेगा। जेल में अकेला अलग थलग पडा कसाब रोज ही जेल अधिकारियों से पूछता है कि उससे मिलने उसके रिश्तेदार आए क्या। अमूमन सात बजे सुबह उठने वाले कसाब का सारा दिन कोठरी के कोने में बैठकर उंघते हुए ही बीतता है।
पुच्छल तारा
जिंदगी क्या है, मौत क्या है, इस बारे में कवियों, लेखकों ने अनगिनत बाते लिखीं हैं। किसी ने जिंदगी को सुनहरा पल तो किसी ने अंधेरे की कोठरी ही बता दिया है। इसी तरह मौत के बारे में भी तरह तरह की बातें लोगों के जेहन में आना स्वाभाविक ही है। नरेंद्र ठाकुर ‘‘गुड्डू‘‘ ने एक जबर्दस्त ईमेल भेजा है जो जिन्दगी और मौत के बीच रिश्ता कायम करते हुए इसे रेखांकित करता है कि जीवन और मृत्यु क्या है। वे लिखते हैं कि जिंदगी की सबसे बडी सच्चाई बयां कर रहा था मोक्षधाम यानि कब्रिस्तान के बाहर लगा एक नोटिस बोर्ड। इस पर लिखा था ‘‘मंजिल तो मेरी यही थी, बस जिंदगी गुजर गई यहां आते आते।‘‘
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