सूर्य चंद्र गहण के
दौरान क्या करें क्या ना करें
(पंडित दयानंद
शास्त्री)
नई दिल्ली (साई)।
अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 1 अप्रैल से वर्ष का चौथा महीना शुरू हो गया है। लेकिन
हिन्दू कैलेंडर यानी पंचांग के अनुसार 11 अप्रैल से नव वर्ष 2013 (गुरुवार) से शुरू होगा। पण्डित दयानंद
शास्त्री के अनुसार इस वर्ष 2013-14 में
तीन ग्रहण लगने वाले हैं। इनमें दो सूर्य ग्रहण होंगे और एक चन्द्रग्रहण।
पहला सूर्य ग्रहण 9
मई,2013 की रात में लगेगा। इसलिए यह सूर्य ग्रहण भारत
में नहीं देखा जा सकेगा। दूसरा सूर्यग्रहण 3 नवंबर को लगेगा, यह भी भारत में
नहीं देखा जा सकेगा। इन दोनों सूर्यग्रहण में सूतक के दान, स्नान का विचार
करने की जरूरत नहीं है क्योंकि इनका असर भारत पर नहीं होगा।
इस वर्ष का एक
मात्र चन्द्रग्रहण 25 अप्रैल की मध्य रात्रि के बाद 1 बजकर 22 मिनट पर लगेगा और 1
बजकर 53 पर ग्रहण समाप्त हो जाएगा। ग्रहण का सूतक 25 तारीख को भारतीय मानक समय के
अनुसार 4 बजकर 22 मिनट से शुरू होगा। ग्रहण के समय चन्द्रमा तुला राशि और स्वाति
नक्षत्र में होगा। तुला राशि एवं स्वाति नक्षत्र में जिनका जन्म हुआ है उन्हें
चन्द्रग्रहण के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए चन्द्रमा एवं शुक्र के मंत्र का जप
करना चाहिए।
ग्रहगोचर के आधार
पर -----
पंचाग भवानीशंकर
निर्णयसागर चण्डमार्तण्ड पंचाग नीमच के आधार पर इस वर्ष भूमण्डल पर पॉच ग्रहण
पडेगे परन्तु भारत में एक भी ग्रहण मान्य नही होगा । प्रथम ग्रहण पूर्णिमा चौत्र
मास शुक्ल पक्ष में दिनांक 25 अप्रैल 2013 को पडने वाला चन्द्रग्रहण अंगुलाल्प
ग्रास आदेश्य नही माना जा सकता । क्योकि अंगुलाल्पग्रास ग्रहण को मनुष्य की आखों
से नही देखा जा सकता है ।
अतः इस ग्रहण का
दोष मान्य नही है । अतः इस ग्रहण को अनादेश्य नही पालने वाला माना गया है । यह ही
उपरोक्त पंचाग ने अपना निर्णय दिया है । आचार्य भास्कराचार्य ने भी यहा पुष्टि की
है कि अंगुलाल्प ग्रास को नहीप पालने में ही बुद्विमानी है ।
पण्डित दयानंद
शास्त्री के अनुसार कुछ पंचाग ने इस ग्रहण को माना है । परन्तु सेवाक्रम की बात
करे तो इस ग्रहण जो मनुष्य की आखो से नही दिखे तो ऐसे ग्रहण को मानने की अनुमति
हमारे धर्मसिन्धु निर्णयसिन्धु ग्रन्थ भी नही देते है । शास्त्र में यह भी कहा
जाता है कि देखो को ग्रहण और सुने का सूतक मान्य होता है ।
सूर्यग्रहण में
सूतक 12 घंटे पहले और चंद्रग्रहण में सूतक 9 घंटे पहले लगता है । सूतक काल में
जहाँ देव दर्शन वर्जित माने गये हैं वहीं मन्दिरों के पट भी बन्द कर दिये जाते हैं
। इस दिन जलाशयों,
नदियों व मन्दिरों में राहू, केतु व सुर्य के
मंत्र का जप करने से सिद्धि प्राप्त होती है और ग्रहों का दुष्प्रभाव भी खत्म हो
जाता है ।
हमारे ऋषि मुनियों
ने सुर्यग्रहण लगने के समय भोजन करने के लिये मना किया है, क्योंकि उनकी
मान्यता थी कि ग्रहण के समय में किटाणु बहुलता से फैल जाते हैं । खाद्य वस्तु, जल आदि में सुक्ष्म
जीवाणु एकत्रित होकर उसे दूषित कर देते हैं।
इसलिये ऋषियों ने
पात्रों में क़ुश अथवा तुलसी डालने को कहा है, ताकि सब किटाणु कुश में एकत्रित हो जायें और
उन्हें ग्रहण के बाद फेंका जा सके। पात्रों में अग्नि डालकर उन्हें पवित्र बनाया
जाता है, ताकि किटाणु
मर जायें। ग्रहण के बाद स्नान करने का विधान इसलिये बनाया गया ताकि स्नान के दौरान
शरीर के अन्दर ऊष्मा का प्रवाह बढे, भीतर बाहर के किटाणु नष्ट हो जायें, और धूल कर बह
जायें।
पण्डित दयानंद
शास्त्री के अनुसार ग्रहण के दौरान भोजन न करने के विषय में जीव विज्ञान विषय के
प्रोफेसर टारिंस्टन ने पर्याप्त अनुसन्धान करके सिद्ध किया है कि सुर्य चन्द्र
ग्रहण के समय मनुष्य के पेट की पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है, जिसके कारण इस समय
किया गया भोजन अपच,
अजीर्ण आदि शिकायतें पैदा कर शारीरिक या मानसिक हानि पहुँचा
सकता है ।
पण्डित दयानंद
शास्त्री के अनुसार भारतीय धर्म विज्ञान वेत्घ्ताओं का कहना है कि सूर्य-चन्घ्द्र
ग्रहण लगने से 10 घंटे पूर्व से ही इसका कुप्रभाव शुरू हो जाता है। अंतरिक्ष
प्रदुषण के समय को सूतक काल कहा जाता है। इसलिए सूतक काल और ग्रहण काल के समय में
भोजन तथा पेय पदार्थों के सेवन की मनाही की गयी है। चॅंकि ग्रहण से हमारी जीवन
शक्ति का ह्रास होता है और तुलसी दल (पत्र) में विद्युत शक्ति व प्राण शक्ति सबसे
अधिक होती है, इसलिए सौर
मंडलीय ग्रहण काल में ग्रहण प्रदूषण को समाप्घ्त करने के लिए भोजन व पेय सामग्री
में तुलसी के कुछ पत्घ्ते डाल दिए जाते हैं। जिसके प्रभाव से न केवल भोज्घ्य
पदार्थ बल्कि अन्घ्न, आटा आदि भी प्रदूषण से मुक्घ्त बने रह सकते हैं।
पुराणों की
मान्घ्यता के अनुसार राहू चन्घ्द्रमा को तथा केतू सूर्य को ग्रसता है। ये दोनों
छाया की संतान है । चन्घ्द्रमा और सूर्य की छाया के साथ साथ चलते हैं ।
चन्घ्द्रग्रहण के समय कफ की प्रधानता बढ़ती है, और मन की शक्ति
क्षीण होती है । जबकि सूर्य ग्रहण के समय जठराग्नि नेत्र तथा पित्घ्त की शक्ति
कमजोर पड़ती है ।
पण्डित दयानंद
शास्त्री के अनुसार ग्रहण लगने से पूर्व नदी या घर में उपलब्घ्ध जल से स्घ्नान
करके भगवान का पूजन,
यज्ञ, जप करना चाहिए । भजन कीर्तन करके ग्रहण के समय का सदुपयोग
करें । ग्रहण के दौरान कोई कार्य न करें । ग्रहण के समय में मंत्रों का जप करने से
सिध्घ्दि प्राप्घ्त होती है ।
पण्डित दयानंद
शास्त्री के अनुसार ग्रहण की अवधि में तेल लगाना, भोजन करना, जल पीना, मल-मूर्त्त्घ्याग
करना, केश
विन्घ्यास करना, रति क्रीडा
करना, मंजन करना
वर्जित किए गये हैं । कुछ लोग ग्रहण के दौरान भी स्घ्नान करते हैं । ग्रहण
समाप्घ्त हो जाने पर स्घ्नान करके ब्राम्घ्हण को दान करने का विधान है । कहीं कहीं
वर्स्घ्त्धोने, बर्तन धोने
का भी नियम है । पुराना पानी, अन्घ्न नष्घ्ट कर नया भोजन पकाया जाता है, और ताजा भरकर पीया
जाता है, क्घ्योंकि
डोम को राहू केतु का स्घ्वरूप माना गया है ।
पण्डित दयानंद
शास्त्री के अनुसार सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्रग्रहण में
तीन प्रहर पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए (1 प्रहर = 3 घंटे) । बूढ़े, बालक और रोगी एक
प्रहर पूर्व खा सकते हैं । ग्रहण के दिन पत्घ्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं
तोड़ना चाहिए । बाल और वर्स्घ्त्नहीं निचोड़ने चाहिए एवं दंत धावन नहीं करना चाहिए ।
ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना मल मूर्त्का त्घ्याग करना, मैथून करना और भोजन
करना ये सब वर्जित कार्य हैं । ग्रहण के समय मन से सत्घ्पार्त्को उद्देश्घ्य करके
जल में जल डाल देना चाहिए ऐसा करने से देने वाले को उसका फल प्राप्घ्त होता है और
लेने वाले को उसका दोष भी नहीं लगता है । ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्घ्न, जरूरत मंदों को
वर्स्घ्त्दान देने से अनेक गुना पुण्घ्य प्राप्घ्त होता है।
पण्डित दयानंद
शास्त्री के अनुसार चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से
कई गुना फल होता है। भगवान वेदव्यास जी ने परम हितकारी वचन कहे हैं- सामान्य दिन
से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना और सूर्य ग्रहण में दस
लाख गुना फलदायी होता है। यदि गंगा जल पास में हो तो चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना
और सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुना फलदायी होता है।
देवी भागवत में आता
हैः सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने
खाता है, उतने
वर्षों तक अरुतुन्द नामक नरक में वास करता है। फिर वह उदर रोग से पीड़ित मनुष्य
होता है फिर गुल्मरोगी, काना और दंतहीन होता है। ग्रहण के अवसर पर पृथ्घ्वी को नहीं
खोदना चाहिए ।
पण्डित दयानंद
शास्त्री के अनुसार सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व और चन्द्र
ग्रहण में तीन प्रहर ( 9 घंटे) पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए। बूढ़े, बालकक और रोगी डेढ़
प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं। ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो, उसका शुद्ध बिम्ब
देखकर भोजन करना चाहिए।
ग्रहण वेध के पहले
जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित
नहीं होते। जबकि पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर
नया भोजन बनाना चाहिए।
ग्रहण के समय गायों
को घास, पक्षियों
को अन्न, जररूतमंदों
को वस्त्र और उनकी आवश्यक वस्तु दान करने से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है।
ग्रहण के समय कोई
भी शुभ या नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।
ग्रहण के समय सोने
से रोगी, लघुशंका
करने से दरिद्र, मल त्यागने
से कीड़ा, स्त्री
प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है। गर्भवती महिला को
ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए।
गर्भवती स्त्रियों
के लिये सावधानी------
पण्डित दयानंद
शास्त्री के अनुसार गर्भवती स्त्री को सूर्य दृ चन्घ्द्रग्रहण नहीं देखना चाहिए, क्घ्योकि उसके
दुष्घ्प्रभाव से शिशु अंगहीन होकर विकलांग बन जाता है । गर्भपात की संभावना बढ़
जाती है । इसके लिए गर्भवती के उदर भाग में गोबर और तुलसी का लेप लगा दिया जाता है, जिससे कि राहू केतू
उसका स्घ्पर्श न करें ग्रहण के दौरान गर्भवती स्त्री को कुछ भी कैंची, चाकू आदि से काटने
को मना किया जाता है , और किसी वस्घ्त्र आदि को सिलने से मना किया जाता है ।
क्घ्योंकि ऐसी मान्घ्यता है कि ऐसा करने से शिशु के अंग या तो कट जाते हैं या फिर सिल (जुड़) जाते हैं ।
पण्डित दयानंद
शास्त्री के अनुसार क्या सावधानियां रखे ग्रहण के समय..???
1 ग्रहण के सोने से
रोग पकड़ता है किसी कीमत पर नहीं सोना चाहिए।
2 ग्रहण के समय
मूर्त्दृ त्घ्यागने से घर में दरिद्रता आती है ।
3 शौच करने से पेट
में क्रीमी रोग पकड़ता है । ये शार्स्घ्त्की बातें हैं इसमें किसी का लिहाज नहीं
होता।
4 ग्रहण के समय
संभोग करने से सूअर की योनी मिलती है ।
5 ग्रहण के समय
किसी से धोखा या ठगी करने से सर्प की योनि मिलती है ।
6 जीव-जन्घ्तु या
किसी की हत्घ्या करने से नारकीय योनी में भटकना पड़ता है ।
7 ग्रहण के समय
भोजन अथवा मालिश किया तो कुष्घ्ठ रोगी के शरीर में जाना पड़ेगा।
8 ग्रहण के समय
बाथरूम में नहीं जाना पड्रे ऐसा खायें।
9 ग्रहण के दौरान
मौन रहोगे, जप और
ध्घ्यान करोगे तो अनन्घ्त गुना फल होगा।
पण्डित दयानंद
शास्त्री के अनुसार घ् ग्रहण विधि निषेध घ्
१. सूर्यग्रहण मे ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और
चंद्र ग्रहण मे तीन प्रहर पूर्व भोजन नहीं करना चाहिये । बूढे बालक और रोगी एक
प्रहर पूर्व तक खा सकते हैं ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चंद्र, जिसका ग्रहण हो, उसका शुध्द
बिम्बदेख कर भोजन करना चाहिये । (१ प्रहर = ३ घंटे)
२.
ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोडना चाहिए । बाल तथा
वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहियेव दंत धावन नहीं करना चाहिये ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल मूत्र का त्याग
करना, मैथुन करना
औरभोजन करना - ये सब कार्य वर्जित हैं ।
३. ग्रहण के समय मन से सत्पात्र को उद्दयेश्य
करके जल मे जल डाल देना चाहिए । ऐसा करने
से देनेवालेको उसका फल प्राप्त होता है और लेनेवाले को उसका दोष भी नहीं लगता।
४. कोइ भी शुभ
कार्य नहीं करना चाहिये और नया कार्य शुरु नहीं करना चाहिये ।
५. ग्रहण वेध के पहले जिन पदार्थाे मे तिल या
कुशा डाली होती है,
वे पदार्थ दुषित नहीं होते । जबकि पके हुएअन्न का त्याग करके
गाय, कुत्ते को
डालकर नया भोजन बनाना चाहिये ।
६. ग्रहण वेध के प्रारंभ मे तिल या कुशा मिश्रित
जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति मे
ही करना चाहिये और ग्रहण शुरु होने से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिये ।
७. ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरुरतमंदों को
वस्त्र दान से अनेक गुना पुण्य
प्राप्तहोता है ।
८. तीन दिन या एक दिन उपवास करके स्नान दानादि
का ग्रहण में महाफल है, किंतु संतानयुक्त
ग्रहस्थको ग्रहणऔर संक्रान्ति के दिन उपवास नहीं करना चाहिये।
९. श्स्कंद पुराणश् के अनुसार ग्रहण के अवसर पर
दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षाे का एकत्र किया हुआसब पुण्यनष्ट हो जाता है ।
१०. श्देवी भागवतश् में आता है कि भूकंप एवं
ग्रहण के अवसर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिये ।
पण्डित दयानंद
शास्त्री के अनुसार ग्रहण के समयकेसे करें
मंर्त्सिध्दि ..???
1. ग्रहण के समय “ घ् ह्रीं नमः “ मंत्र का 10 माला
जप करें इससे ये मंर्त्सिध्घ्द हो जाता है । फिर अगर किसी का स्घ्वभाव बिगड़ा हुआ
है .... बात नहीं मान रहा है .... इत्घ्यादि ..... । तो उसके लिए हम संकल्घ्प करके
इस मंर्त्का उपयोग कर सकते हैं ।
2. श्रेष्ठ साधक उस समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत
का स्पर्श करके श्घ् नमो नारायणायश् मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात
ग्रहणशुद्ध होने पर उस घृत को पी ले। ऐसा करने से वह मेधा (धारणाशक्ति), कवित्वशक्ति तथा
वाकसिद्धि प्राप्त कर लेता है।