चीनी मिल मालिकों
की बल्ले-बल्ले
(सचिन धीमान)
मुजफ्फरनगर (साई)।
आखिरकार केन्द्र सरकार ने एक बार फिर जता दिया कि वह पूंजीपतियों और सरमायेदारों
के लिए ही सोचती है और आम जनता और किसानों के दुख दर्द से उसे कोई वास्ता नहीं।
राष्ट्रीय किसान
मजदूर संगठन के प्रवक्ता विकास बालियान ने कहा कि सी रंगाराजन कमेटी की रिपोर्ट
केन्द्र सरकार ने किस्तों में लागू कर चीनी मिल मालिकों को दोनों हाथों से खुलेआम
लूट खसौट करने की आजादी देनी शुरू कर दी है। जहां पहले सी रंगाराजन की सिफारिशों
को मानते हुए 10 प्रतिशत चीनी की लेवि देने की बाध्यता चीनी मिलों से समाप्त की
वहीं विदेशों से आयात करने पर कच्ची चीनी पर 60 प्रतिशत की जगह 10 प्रतिशत ही
डयूटी लगाने की घोषणा कर दी। वहीं आज चीनी से सरकारी नियन्त्रण खत्म कर आम
उपभोक्ताओं को भी चीनी मिल मालिकों के हाथों ही गिरवी रख दिया।
उल्लेखनीय है कि
वर्ष 2011-12 में चीनी मिले अदालत चली गयी और उन्होंने अपील की कि उत्तर प्रदेश
में केन्द्र सरकार द्वारा घोषित गन्ना मूल्य 145 रूपये कुन्तल ही दिलाया जाये।
जबकि राज्य सरकार ने 240 रूपये कुन्तल का रेट घोषित कर रखा था। चीनी मिल मालिकों
ने दलील देते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश में गन्ने का राज्य सरकार द्वारा मूल्य
घोषित होगा या केन्द्र सरकार द्वारा घोषित मूल्य लागू होगा। इस बात पर सात सदस्य
की संवैधानिक पीठ फैंसला लेना है। अगर उस पीठ ने कहा कि राज्य सरकार का रेट ही सही
है तो हम तत्काल किसानों को 240 रूपये प्रति कुन्तल की दर से ही रेट दे देंगे।
परंतु अगर पीठ ने कहा कि केन्द्र सरकार का ही रेट मान्य होना चाहिए तो राज्य सरकार
को रेट तय करने का कोई अधिकार नहीं है। ऐसे में किसान हमारा पैसा वापिस नहीं
करेंगे। इसलिए मिलों ने उस वक्त 55 लाख गन्ना किसानों के 95 रूपये के अन्तर मूल्य
भुगतान 5400 करोड रूपये का रोक दिया था। जिसके बाद वीएम सिंह ने अदालत में गुहार
लगायी कि हमें भी सुना जाये और उन्होंने किसानों का पक्ष रखते हुए उच्चतम न्यायालय
में कहा कि उत्तर प्रदेश का गन्ना किसान केन्द्र के मूल्य निर्धारण क्षेत्र में नहीं
आता है। वह गन्ना आयुक्त के निर्देश पर फार्म सी के तहत समझौता होने के बाद मिलों
को गन्ना देता है। ऐसे में उसे राज्य सरकार द्वारा घोषित मूल्य ही मिलना चाहिए।
जिस पर 17 जनवरी 2012 को उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया कि किसानों का बकाया रूपया
240 रूपये प्रति कुन्तल की दर से तत्काल दे दिया जाये।
इसके बाद खेल शुरू
हुआ और 20 जनवरी 2012 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आर्थिक सलाहकार सी रंगाराजन
के नेतृत्व वाली पांच सदस्यी कमेटी गठित
की जिसमें कुछ मिल मालिकों से बातचीत कर पांच अक्टूबर 2012 को अपनी रिपोर्ट दे दी।
रिपोर्ट में सिर्फारिस की गयी थी कि चीनी मिलों से 10 प्रतिशत लेवी का कोटा समाप्त
कर दिया जाये। विदेश से चीनी आयत पर लगने वाला 5 प्रतिशत शुल्क घटाकर 10 प्रतिशत
कर दिया जाये। चीनी के मूल्य निर्धारण से सरकारी नियन्त्रण घटा लिया जाये। राज्य
सरकार से गन्ना मूल्य निर्धारित करने का अधिकार ले लिया जाये। किसान किसी भी मिल
को गन्ने देने को आजाद रहे। गन्ना किसान समूह के रूप में न मानकर इकाई के रूप में
माना जाये। रंगाराजन की इस गन्ना किसान व आमउपभोक्त विरोधी रिपोर्ट का राष्ट्रीय
किसान मजदूर संगठन केे बैनर तले वीएम सिंह और पूर्व सेनाध्यक्ष वीके ंिसह के
नेतृत्व में 4 दिसम्बर को संसद घेराव कर जंतर मंतर पर एक विशाल जनसभा आयोजित की
जिसके दबाव के बाद उसी दिन शाम को केन्द्र सरकार ने चिट्ठी लिखकर राष्ट्रीय किसान
मजदूर संगठन के राष्ट्रीय संयोजक वीएम सिंह को लिखित सूचना दी कि रंगाराजन की
रिपोर्ट लागू नहीं की जा रही है और उसे लागू करने से पूर्व एक बार फिर सभी से राय
ली जायेगी।
बालियान ने कहा कि
केन्द्र सरकार ने रंगाराजन रिपोर्ट में की गयी उन सिफारिशों को धीरे धीरे लागू कर
शुरू कर दिया है जो चीनी मिलों के हितों में है। इन सिफारिशों के लागू होने के बाद
चीनी के दामों में बेहताशा वृद्धि हो जायेगी। जिसका नुकसान आम उपभोक्ताओं को उठाना
पडेगा। चीनी का सबसे ज्यादा उद्योग ग्रामीण अंचल में ही होता है।
चीनी मिले गन्ना
किसानों का शोषण कर उन्हें धीरे धीरे गन्ने की फसल से मुंह मोडने को मजबूर कर रही
है। चीनी मिल मालिकों की मंशाएं है कि विदेशों से कच्ची चीनी मंगाकर उसे रिफाइंड
कर बाजार में बेचा जाये। विदेशों से आने वाली कच्ची चीनी (राशुगर) की मिठास साधारण
चीनी से आधी होती है। आने वाले समय में सरकारी नियन्त्रण न रहने के बाद जहां चीनी
महंगी खरीदनी पडेगी वहीं चीनी की मिठास कम होने से ज्यादा भी लगेेगी। चीनी मिले
अपना माफिया राज देश में लाना चाहती है और केन्द्र सरकार आम जनता और गन्ना किसानों
के हितों की रक्षा न करते हुए चीनी मिल मालिकों के हितों को ही साधने का काम कर
रही है।
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