फोरलेन के रास्ते की सारी बाधाएं हटीं: सांसद बसोरी
सिवनी फोरलेन मामले में प्रकाश की किरण हुई प्रस्फुटित
अगर बालाघाट जबलपुर आमन परिवर्तन का रोड़ा हटा तो बन सकती है सिवनी के लिए नजीर
रेल संघर्ष समिति के सुव्यवस्थित से वनबाधा हटने के आसार
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। ‘‘उत्तर दक्षिण गलियारे में सिवनी जिले में फोरलेन की सारी बाधाएं हट चुकी हैं। सिवनी बालाघाट के लोग दिल्ली जाकर संबंधितों से मिल चुके हैं। अभी तक इसका काम आरंभ क्यों नहीं हुआ इस बारे में पता लगाना पड़ेगा। इस मामले को मेरे द्वारा लोकसभा में नहीं उठाया गया है।‘‘ उक्ताशय की बात आज सिवनी मण्डला लोकसभा क्षेत्र के सांसद बसोरी सिंह मसराम द्वारा कही गई।
दूरभाष पर चर्चा के दौरान श्री मसराम ने कहा कि मामला न्यायालय ने वापस कर दिया है। इस मार्ग पर लगी सारी रोक हट चुकी हैं। जब उनसे यह कहा गया कि इस मार्ग की जर्जर हालत और जानलेवा गड्ढ़ों में लोग कालकलवित हो चुके हैं, तब सांसद मसराम ने कहा कि इस बारे में वे पता करने का प्रयास करेंगे कि अभी तक सड़क निर्माण का काम क्यों नहीं आरंभ कराया गया। सांसद मसराम ने स्वीकार किया कि इस मामले को अभी तक उन्होंने लोकसभा में नहीं उठाया है।
उधर बालाघाट से बरास्ता नैनपुर जबलपुर जाने वाले रेलखण्ड में अमान परिवर्तन के काम को अगर वनविभाग द्वारा स्वीकृति दे दी जाती है तो इसी आधार पर उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे में सिवनी जिले के विवादित मार्ग को अनुमति मिलने की संभावनाएं बलवती हो जाती हैं। बालाघाट रेल संघर्ष समिति के सतत और सही दिशा में किए गए प्रयासों का परिणाम है कि मामला अब पकने की स्टेज में आ गया है।
ज्ञातव्य है कि वर्ष 1997 में बालाघाट से जबलपुर के बीच नेरोगेज को ब्राडगेज में परिवर्तित करने का काम आरंभ हुआ था। सरकारी मकड़जाल में उलझी इस अमान परिवर्तन की महात्वाकांक्षी परियोजना को चौदह साल घिसटने के बाद भी वन विभाग की अनुमति नहीं मिल सकी है। इस मार्ग में पेंच कान्हा कारीडोर का 19 एकड़ का हिस्सा आ रहा है। इस वन भूमि को हस्तांतरित करने की अनुमति मांगी गई है।
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि रेल संघर्ष समिति बालाघाट द्वारा नागरिकों के मशविरे के उपरांत सही दिशा में किए गए सटीक प्रयासों का ही नतीजा है कि मामला मंत्रालय ने परीक्षण के लिए पर्यावरण विभाग के भोपाल स्थित क्षेत्रीय कार्यालय को भेज दिया है। गौरतलब है कि इस क्षेत्रीय कार्यालय की सौगात तत्कालीन केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री कमल नाथ द्वारा मध्य प्रदेश को दी गई थी।
सूत्रों ने बताया कि क्षेत्रीय कार्यालय को निर्देश दिए गए हैं कि वाईल्ड लाईफ विशेषज्ञों की एक उच्च स्तरीय समिति का गठन कर इस मामले का परीक्षण करवाया जाए। इस समिति में केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारियों की भागीदारी सुनिश्चित करने को कहा गया है। अगर इस समिति ने रेल लाईन के निर्माण हेतु वन भूमि के हस्तांतरण की अनुमति दे दी जाती है तो बालाघाट जबलपुर रेल खण्ड कं अमान परिवर्तन का रास्ता साफ हो जाएगा। सूत्रों ने संकेत दिए हैं कि वन एवं पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन को महाकौशल के एक कद्दावर संसद सदस्य द्वारा इस प्रोजेक्ट में वन विभाग की अनुमति देने के लिए प्रभावी तरीके से ब्रीफ किया गया है। नटराजन के सहयोगात्मक तेवर देखकर संभावना व्यक्त की जा रही है कि इस योजना को जल्द ही हरी झंडी मिलने की उम्मदी है।
यहां उल्लेखनीय होगा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में बनाई गई स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे में मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में मोहगांव से लेकर खवासा तक लगभग 22 किलोमीटर लंबे सड़क निर्माण का काम इसी आधार पर रोका गया है। कहा जा रहा है कि इसके बीच से 8.7 किलोमीटर का हिस्सा पेंच कान्हा कारीडोर से होकर गुजर रहा है।
18 दिसंबर 2008 को तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि के आदेश पर रोके गए इस काम के उपरांत सड़क के रखरखाव का काम ही बंद कर दिया गया था। जिसके परिणाम स्वरूप सड़कों पर बड़े बड़े जानलेवा गड्ढ़े हो गए हैं, जिससे यहां से गुजरने वालों में रोष और असंतोष पनप गया है। वहीं दूसरी ओर सिवनी जिले के निवासियों के रिसते घावों पर मरहम लगाने के बजाए नमक और मिर्च छिड़कने की गरज से एनएचएआई द्वारा बंडोल के समीप एक अस्थाई टोल बूथ बनाकर टोल वसूली का काम भी आरंभ करवा दिया गया था। इस टोल बूथ में टोल वसूल कर एनएचएआई के खाते में जमा करने का काम हरियाणा की एक सिक्यूरिटी एजेंसी को दिया गया है। बताया जाता है कि इस कंपनी को प्रतिमाह पचास लाख रूपए से अधिक की राशि का भुगतान एनएचएआई द्वारा किया जा रहा है।
सिवनी से गुजरने वाले फोरलेन सड़क मार्ग के संबंध में सिवनी बालाघाट के संसद सदस्य के.डी.देशमुख पूर्व में ही कह चुके हैं कि इस मामले को उन्होंने संसद में उठाने की जहमत तो नहीं की किन्तु वे एनएचएआई के सतत संपर्क में हैं। के.डी.देशमुख ने इस मामले में एनएचएआई के सतत संपर्क में रहकर क्या प्रयास किए इसका खुलासा उन्होंने नहीं किया है।