शनिवार, 19 नवंबर 2011

कानों कान खबर नहीं है जनसुनवाई की


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 19

कानों कान खबर नहीं है जनसुनवाई की

प्रदूषण मंडल की वेब साईट भी है झाबुआ ग्रुप के साथ

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश के हृदय प्रदेश की संस्कारधानी से महज सौ किलोमीटर दूर स्थापित होने वाले देश के मशहूर थापर ग्रुप के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड केे कोल आधारित पावर प्लांट के द्वितीय चरण की जनसुनवाई का काम गुपचुप तरीके से चालू है। 22 नवंबर को शासकीय हाई स्कूल गोरखपुर, तहसील घंसौर एवं जिला सिवनी में प्रातः 11 बजे होने वाली जनसुनवाई की मुनादी भी नहीं पिटवाया जाना अनेक संदेहों को जन्म दे रहा है। इस बारे में मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की वेब साईट भी लगता है झाबुआ पावर लिमिटेड के कथित एहसानों से दब चुकी है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार आदिवासी बाहुल्य तहसील घंसौर के ग्राम बरेला में स्थापित होने वाले पावर प्लांट के पहले चरण में पूर्व में ही गुपचुप तरीके से 600 मेगावाट की संस्थापना की जनसुनवाई पूरी कर ली गई थी। इस जनसुनवाई में क्या क्या हुआ इसका विवरण मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की वेब साईट पर उपलब्ध तो है किन्तु जरूरी एवं काम की कार्यवाही की छायाप्रति इतनी उजली डाली गई है कि उसे पढ़ा भी नहीं जा सकता है।

मध्य प्रदेश प्रदूषण मण्डल के क्षेत्रीय अधिकारी जबलपुर पुष्पेंद्र सिंह और तत्कालीन अतिरिक्ति जिला दण्डाधिकारी श्रीमति अलका श्रीवास्तव के हस्ताक्षरों से युक्त इस प्रतिवेदन में क्या क्या हुआ यह तो वर्णित है, इसमें चालीस आपत्तियां भी दर्ज हैं, किन्तु इस आपत्तियों को पठनीय किसी भी दृष्टिकोण से नहीं कहा जा सकता है। यह शोध का ही विषय है कि सरकारी वेब साईट में लोक जनसुनवाई की कार्यवाही को पारदर्शिता के साथ प्रदर्शित क्यों नहीं किया गया है। इसके पूर्व में भी हुई जनसुनवाईयों के बारे में भी मण्डल का रवैया संदिग्ध ही रहा है।

मण्डल की वेब साईट पर 352 नंबर पर अब इसके दूसरे चरण की लोक जनसुनवाई का मामला अंकित है। इसमें हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में कंपनी की प्रस्तावना को क्लिक करने पर पेज केन नॉट बी डिस्पलेड प्रदर्शित हो जाता है। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में शिवराज सरकार का यह पक्षपात पूर्ण रवैया समझ से परे ही कहा जा सकता है। पूर्व की जनसुनवाई में आई आपत्तियों का निराकरण क्या किया गया है इस बारे में मण्डल, मध्य प्रदेश सरकार और कंपनी ने अपने मुंह सिले हुए हैं।

गौरतलब है कि इसके पूर्व भी पहले चरण में 600 मेगावाट के प्रस्तावित कोल और सुपर क्रिस्टल टेक्नोलॉजी आधारित पावर प्लांट की जनसुनवाई के मामले में भी पहले तो मण्डल की वेब साईट मौन रही फिर जब शोर शराबा हुआ तब जाकर पांच दिन पूर्व मण्डल ने इसकी कार्यवाही को सार्वजनिक किया था। इस बार 22 नवंबर को होने वाली जनसुनवाई की कार्यवाही को इन पंक्तियों के लिखे जाने तक प्रदूषण नियंत्रण मण्डल ने अपनी वेब साईट में स्थान नहीं दिया है।

(क्रमशः जारी)

सांसद देशमुख की उठाई मांगों पर जनसंपर्क मौन!


सांसद देशमुख की उठाई मांगों पर जनसंपर्क मौन!

उठाई डेढ़ दर्जन मांग खबरों में मिला एक को स्थान

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। परिसीमन में समाप्त हुई सिवनी लोकसभा सीट को समायोजित कर बालाघाट संसदीय क्षेत्र के सांसद के.डी.देशमुख ने क्षेत्र के विकास के लिए डेढ़ दर्जन से ज्यादा मांग केंद्रीय रेल मंत्री के समक्ष रखीं, किन्तु मध्य प्रदेश के जनसंपर्क विभाग द्वारा उनकी एक मांग को ही स्थान दिया जाना आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है। भाजपा के सांसद देशमुख के साथ मध्य प्रदेश की भाजपा की सरकार का यह रवैया चर्चा का विषय बना हुआ है। वहीं सिवनी जिले के दूसरे हिस्से को आरक्षित मण्डला सीट में समाहित किया गया है, वहां के सांसद बसोरी सिंह मसराम को सिवनी वासियों की कोई चिंता ही नहीं थी, यही कारण है कि वे सांसदों से रेल मंत्री के मिलन कार्यक्रम से गायब रहे।

सांसद के.डी.देशमुख ने दूरभाष पर चर्चा के दौरान बताया कि उन्होंने रेल मंत्री से चर्चा के दौरान जबलपुर से गोंदिया रेल मार्ग की बात को पुरजोर तरीके से उठाया। उन्होंने कहा कि यह रेल खण्ड डेढ़ दशक से अपूर्ण है। इसमें कुछ क्षेत्र में वनबाधा है जिसे तत्काल प्रभाव से दूर करना आवश्यक है। इसके साथ ही साथ ंिछंदवाड़ा से बरास्ता सिवनी नैनपुर होकर मण्डला के रेलखण्ड के अमान परिवर्तन का काम दो साल से लंबित है। सांसद देशमुख ने कहा कि इस रेल खण्ड के सर्वेक्षण हेतु सौ करोड़ रूपयों का बजट प्रावधान भी किया जा चुका है।

उन्होंने बताया कि इसके अलावा उन्होंने कटंगी तिरोड़ी, अमान परिवर्तन के काम को तत्काल पूरा करने की मांग भी की। लामटा से परसवाड़ा बैहर मलाजखण्ड नया रेल मार्ग बनाया जाए। गौरतलब है कि मलाजखण्ड में एशिया का सबसे बड़ा कापर पोजेक्ट लगा हुआ है। इसके साथ ही साथ नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण यहां यातायात के साधनों का विकास अत्यावश्यक ही है।

सिवनी जिले के लिए सांसद देशमुख ने सिवनी छपारा लखनादौन, सिवनी बरघाट, कटंगी, मार्ग में भी नए रेलखण्ड की बात कही। उधर मध्य प्रदेश सरकार के जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया है कि सांसद देशमुख ने महज बालाघाट से नागपुर नई रेल सेवा की मांग की है। गौरतलब है कि सांसद देशमुख द्वारा सिवनी जिले के रेल खण्ड में अमान परिवर्तन या नई रेल लाईनों के लिए संसद में कब कब तारांकित, अतारांकित प्रश्न या ध्यानाकर्षण लगाया है इस बारे में उनका इतिहास मौन ही है। जब सौ करोड़ रूपए का बजट प्रावधान छिंदवाड़ा से सिवनी, नैनपुर मण्डला फोर्ट मार्ग के लिए किया जा चुका है और काम आरंभ नहीं हुआ है तो इस संबंध में सांसद द्वारा संसद में क्या कार्यवाही की गई है इस बारे में भारतीय जनता पार्टी की जिला इकाई और खुद सांसद खामोश ही हैं।

आपा खो रही कांग्रेस भाजपा


आपा खो रही कांग्रेस भाजपा

अनर्गल प्रलाप और कामों का बढ़ा ग्राफ

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश के हृदय प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्ष में बैठी कांग्रेस दोनों ही आपा खोती जा रही है। एक तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के खिलाफ वारंट जारी होता है तो दूसरी ओर कांग्रेस के सूबे के निजाम कांति लाल भूरिया द्वारा प्रदेश की महिला मंत्रियों को नचैया कह डाला। सूबे में कांग्रेस भाजपा के बौराएपन से असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। आलम देखकर लगने लगा है मानो किसी को भी सूबे की रियाया की दुख तकलीफ की चिंता नहीं रही।

कांग्रेस की कथित फूट जिसे सियासी हल्कों में भाजपा का तगड़ा मैनेजमेंट करार दिया जा रहा है के चलते भाजपा के आला नेता फूले नहीं समा रहे हैं। मध्य प्रदेश की एक अदालत द्वारा मुख्यमंत्री एस.आर.चौहान एवं विदिशा सांसद एवं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज के खिलाफ राष्ट्रध्वज के अपमान के मामले में वारंट जारी करने की चर्चाएं भी हैं। दोनों ही को 9 दिसंबर को अदालत में हाजिर होने के निर्देश दिए गए हैं।

उधर दूसरी ओर कांग्रेस के नेशनल हेडक्वार्टर में चल रही चर्चाओं के अनुसार प्रदेश में कांग्रेस के अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया अब चाटुकारों की फौज से घिर गए हैं। कपड़े की तरह मोबाईल नंबर बदलने वाले भूरिया का मोबाईल सदा ही स्विच ऑफ रहता है। इतना ही नहीं चर्चा है कि उनके समर्थकों ने भूरिया को आश्वस्त किया है कि प्रदेश में लोग भाजपा के कुशासन से आजिज आ चुके हैं।

चाटुकारों ने भूरिया को यह भी भरोसा दिलाया है कि वर्ष 2013 में होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का परचम फहरने से कोई नहीं रोक सकता है। और सरकार बनने के उपरांत मुख्यमंत्री की कुर्सी पर वे ही काबिज होंगे। संभवतः यही करण है कि उन्होंने झाबुआ के एक गांव का नाम बदलने के समारोह में प्रदेश भाजपा की मंत्रियों को नाचने वाली कह डाला। भूरिया की जुबान ने लगाम खोई और उन्होंने कांग्रेसियों को भाजपा का बाप कह डाला। इतना ही नहीं उन्होंने उल्लू जैसी संज्ञा देते हुए कहा कि भाजपाई रात को जगते हैं और दिन में घरों में दुबक जाते हैं।

परमाणु करार बन सकता है मनमोहन के गले की फांस


बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 31

परमाणु करार बन सकता है मनमोहन के गले की फांस

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। परमाणु बिजली घर में हादसे की स्थिति में देशी विदेशी कंपनियां किस कानून के तहत हर्जाना अदा करेंगी इस पर अभी संशय बरकरार है। कन्वेन्शन ऑफ सप्लिमेंटरी कंपनसेशन (सीएससी) वस्तुतः 1997 में अंतर्राष्ट्रीय परमाणु उर्जा एजेंसी (आईएईए) की एक संधि है, इसके साथ ही भारत में अपना अलग घरेलू लायबिलिटी कानून अस्तित्व में है। देश के वजीरे आजम के सामने यह चुनौति होगी कि वे किसकी वकालत करें। वैसे बाली में अमेरिका के महामहिम राष्ट्रपति बराक ओबामा को मनमोहन सिंह सीएससी को मंजूरी दिलाने का वायदा कर चुके हैं। इस पर अब तक चौदह देश हस्ताक्षर कर चुके हैं।

जानकारों का कहना है कि दोनों कानूनों में बेहद अंतर है। सीएससी और भारत के लायबिलिटी कानून में काफी विरोधाभास हैं। सीएससी में हर्जाना भरने की जिम्मेदारी ऑपरेटर (परमाणु बिजली घर चलाने वाली कंपनी) पर डाली गई है, जब कि भारत के लायबिलिटी कानून में जिम्मेदारी परमाणु बिजली घर के लिए उपकरण और साजोसामान की सप्लाई करने वाली सप्लायर कंपनियों पर डाली गई है।

भारत में जो भी विदेशी परमाणु रिएक्टर लगेगा, उसका संचालन भारत के न्यूक्लियर पावर कॉर्पाेरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआईएल) करेगा इसलिए एनपीसीआईएल ऑपरेटर कहा जाएगा और किसी परमाणु बिजली घर में कोई दुर्घटना होती है तो सीएससी के तहत दुर्घटना का हर्जाना ऑपरेटर यानी भारत सरकार की एक कंपनी को ही भरना होगा।

पेट्रोलियम मामले में बैकफुट पर सरकार


पेट्रोलियम मामले में बैकफुट पर सरकार

अब नहीं बढ़ेंगे गैस, केरोसीन और डीजल के दाम

ममता के आगे नतमस्तक सरकार

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। पेट्रोल के दाम बढ़ाकर सहयोगी दलों विशेषकर ममता बनर्जी का तीखा आक्रोश देखकर कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के हाथ पांव फूल चुके हैं। इसके दामों में लगातार बढ़ोत्तरी से उपजे जनाक्रोश को भी झेलना अब सरकार के बस की बात नहीं लग रही है।

मूल लागत में करों को जोड़कर लगभग दुगने दामों पर तेल बेचने के बाद भी सरकार की नवरत्न कंपनियों को डीजल, मिट्टी का तेल और रसोई गैस बेचने में रोजाना 360 करोड़ रूपयों का घाटा उठाना पड़ रहा है जो आश्चर्यजनक ही माना जा हरा है। पीएमओ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि इस वक्त इन तीनों उत्पादों के दामों बढ़ोत्तरी निश्चित तौर पर आत्मघाती ही होगा।

वैसे भी संसद का सत्र मंगलवार से आरंभ हो रहा है और एक माह चलने वाले इस सत्र के बीच अगर इन तीनों उत्पादों के दाम में बढोत्तरी की जाती है तो सरकार को विपक्ष आसानी से घेर लेगा। वैसे भी 15 नवंबर को दो रूपए की पेट्रोल की कीमतों में कमी के बाद भी सरकार पर राजनैतिक लाभ लेने के आरोप लग गए थे।