रविवार, 20 अक्टूबर 2013

भाजपा में इस बार टिकिट की जमकर है सर फुटव्वल!

भाजपा में इस बार टिकिट की जमकर है सर फुटव्वल!

नीता नरेश हटाओ मुहिम है जारी, राजेश भी पहुंचे नीता विरोध में भोपाल, रडार पर हैं नीता, नरेश, कमल और शशि

(नन्द किशोर/शशिकांत)

भोपाल/नागपुर (साई)। परिसीमन के उपरांत सिवनी में बची चार विधानसभाओं में से तीन पर वर्तमान में भाजपा का वर्चस्व है। इसी के चलते हर कोई भाजपा से टिकिट लेने लालायित दिख रहा है। भाजपा के वर्तमान विधायकों का जमकर विरोध हो रहा है। वहीं, भाजपा के जिला स्तर के क्षत्रपों की कार्यकर्ताओं से उपेक्षा और दूरी के चलते, उनका मुखर विरोध सिवनी से भोपाल तक साफ तौर पर दिखाई पड़ रहा है।
शिवराज सिंह चौहान के आधा दर्जन कैबिनेट मंत्री और दो दर्जन से ज्यादा विधायकों के खुले और मुखर विरोध के चलते, भाजपा के रणनीतिकारों को बैचेन कर दिया है। विधायकों और मंत्रियों का विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है। भाजपा के आला नेताओं का मत है कि विरोध को रोका नहीं जाए, कम से कम कार्यकर्ताओं का गुबार निकल जाएगा और एंटी एंकंबेंसी फेक्टर भी काफी हद तक कम हो जाएगा, बशर्ते सिटिंग एमएलए की टिकिट काट दी जाए।

इन मंत्रियों का हो रहा विरोध
भोपाल सहित निर्वाचन क्षेत्र के जिलों में जिन मंत्रियों का विरोध जमकर हो रहा है, उनमें जल संसाधन मंत्री जयंत मलैया, वन मंत्री सरताज सिंह, किसान कल्याण मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया, राज्य मंत्री ब्रजेंद्र प्रताप सिंह, नगरीय प्रशासन राज्य मंत्री मनोहर उंटवाला का नाम शामिल हैं। वहीं संघ मुख्यालय नागपुर के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि संघ के अपने सर्वेक्षण में भी अनेक मंत्रियों के नाम रडार पर आ गए हैं। इनमें चिकित्सा शिक्षा मंत्री अनूप मिश्रा, पीडब्लूडी मंत्री नागेंद्र सिंह, नारायण सिंह कुशवाह, कन्हैया लाल अग्रवाल, तुकोजीराव पवार आदि के नाम शामिल हैं। भाजपा के आला दर्जे के सूत्रों ने साई न्यूज को बताया कि लोक निर्माण मंत्री नागेंद्र सिंह द्वारा नागौद से तौबा करने की मंशा जताई जा चुकी है, तो अनूप मिश्रा अपनी सीट ग्वालियर के बजाए भितरवार करना चाह रहे हैं। वहीं कैलाश विजयवर्गीय महू के बजाए इंदौर से दांव आजमाना चाह रहे हैं। वे महू से अपने साहेबजादे आकाश को उतारना चाह रहे हैं।

इनके टिकिट पर लटकी तलवार
भाजपा के सूत्रों का कहना है कि सत्ता विरोधी लहर की हवा निकालने के लिए जिन विधायकों का जमकर विरोध हो रहा है, उनके टिकिट काटने का फार्मूला अपनाया जा सकता है। जिन विधायकों पर गाज गिरना तय माना जा रहा है उनमें सिवनी के तीनों विधायक शामिल बताए जा रहे हैं। सिवनी की नीता पटेरिया, लखनादौन की शशि ठाकुर एवं बरघाट के कमल मर्सकोले की टिकिट पर संकट के बादल छाते दिख रहे हैं। वहीं दूसरी ओर खातेगांव से ब्रजमोहन धूत, कालापीपल से बाबूलाल वर्मा, मतरान से रोड़मल राठौर, कुक्षी से मुकाम सिंह, उज्जैन से शिवनारायण जागीरदार, बड़नगर से शांति लाल धबई, बड़वाह के हितेंद्र सोलंकी, सतना के शंकर लाल तिवारी, नरयावली के प्रदीप लारिया, बीना के विनोद पंथी, कोलारस के देवेंद्र जैन, बड़वारा से मोती कश्यप, बरगी से प्रतिभा सिंह, जबलपुर पश्चिम से हरेंद्रजीत सिंह बब्बू, तेंदूखेड़ा से भैयाराम पटेल, कुरवाई से हरिसिंह सप्रे, सुवासरा से राधेश्याम पाटीदार, मेहगांव से राकेश शुक्ल, सिलवानी से देवेंद्र पटेल आदि की टिकिट पर तलवार लटक रही है।

लाल पीली बत्ती वालों को टिकिट नहीं!
वहीं संघ मुख्यालय के सूत्रों ने साई न्यूज को बताया कि संघ ने भाजपा को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि इस बार लाल पीली बत्ती धारकों (मंत्रियों को छोड़कर) को टिकिट से वंचित रखा जाए। इस क्राईटेरिए में निगम मंडल अध्यक्ष, महापौर, और नगर पालिका अध्यक्ष आ रहे हैं। गौरतलब होगा कि प्रदेश में 14 में से दस नगर निगमों पर भाजपा का कब्जा है। अगर संघ के निर्देशों का भाजपा आलाकमान ने पालन किया तो सिवनी जिले में राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष डॉ.ढाल सिंह बिसेन, महाकौशल विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष नरेश दिवाकर, नगर पालिका सिवनी के अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी की टिकिट की दावेदारी पर संकट के बादल छा सकते हैं।

नीता नरेश के साथ कमल का हुआ विरोध
भोपाल में आज भाजपा कार्यालय और भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के निवास पर विधायक मंत्रियों से नाराज कार्यकर्ताओं ने अपने रोष का इजहार किया। नीता नरेश हटाओ के गगन भेदी नारों के साथ तोमर का आवास हिल गया। बताया जाता है कि इस विरोध में भाजपा के सिवनी नगर पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी का समावेश भी रहा। वहीं बताया जाता है कि पिछले दिनों कमल मर्सकोले को टिकिट दिये जाने के विरोध में बरघाट विधानसभा के भाजपाईयों ने भोपाल भाजपा कार्यालय के सामने जमकर प्रदर्शन करते हुए कमल मर्सकोले के खिलाफ नारेबाजी की। इस दौरान कमल मर्सकोले हटाओ, बरघाट विधानसभा बचाओ के नारे लगाये गये। सूत्रों की माने तो लगभग 10 से 11 गाड़ियों में भरकर बरघाट विधानसभा से कार्यकर्ता भोपाल पहुंचे थे, जहां उन्होंने भाजपा की निर्वाचन समिति के सदस्य अनिल दबे, संगठन मंत्री अरविंद मेनन के सामने उन्होंने कमल मर्सकोले के विरूद्ध नारेबाजी की।

राजेश त्रिवेदी पहुंचे भोपाल
नगर पालिका सिवनी के अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी भी भोपाल पहुंच गए हैं। राजधानी के एक समाचार पत्र में छपी खबर के अनुसार विधायकों का विरोध किया गया इस खबर के साथ राजेश त्रिवेदी का फोटो भी प्रकाशित किया गया है, जिसका ईमेल मीडिया को भेजा जाना चर्चित ही रहा।

सिवनी से अखिलेश, सुजीत के नामों की चर्चा
सिवनी विधानसभा के लिए दो नामों की चर्चाएं तेजी से चल रही हैं। इन नामों में पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष सुजीत जैन और पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट अखिलेश शुक्ला के नामों का शुमार है। इसके अलावा सिवनी विधानसभा से डॉ.ढाल सिंह बिसेन, आरती शुक्ला, नरेश दिवाकर के नामों पर भी विचार चल रहा है। केवलारी विधानसभा से नवनीत सिंह ठाकुर, डॉ.प्रमोद राय और हरिसिंह ठाकुर के नामों की चर्चा है। वहीं बरघाट से अशोक तेकाम और महादेव तेकाम के नामों के बारे में चर्चाएं हैं।
वहीं, दूसरी ओर संघ के सूत्रों का कहना है कि संघ के सर्वेक्षण में सिवनी विधानसभा से अखिलेश शुक्ला, बरघाट से महादेव और अशोक तेकाम तथा केवलारी विधानसभा से नवनीत सिंह ठाकुर का नाम सामने आया है।

विरोध को हवा दे रहे नेता

वहीं दूसरी ओर भाजपा संगठन के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि पार्टी चाह रही है कि विरोध को किसी तरह निकाल दिया जाए। संभवतः यही कारण है कि विरोध करने वालों को नेताओं द्वारा हवा दी जा रही है, और पार्टी मंच के बाहर भी हो रहे विरोध पर पार्टी ज्यादा ध्यान नहीं दे रही है। पार्टी का स्टैंड है कि किसी तरह विरोध का प्रेशर समाप्त कर दिया जाए, ताकि कार्यकर्ताओं की भड़ास निकल सके। साथ ही साथ विरोध की वीडियोग्राफी भी आला नेताओं द्वारा कराई जा रही है, ताकि चुनाव के दौरान विरोध करने वाले नेताओं पर अनुशासन का डंडा चलाया जा सके।

जरूरी है पुलिस की मुस्तैदी

जरूरी है पुलिस की मुस्तैदी

(शरद खरे)

जिला मुख्यालय सिवनी के लोगों की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया है। दिन में अगर घर पर ताला लगाकर दस मिनिट को गए नहीं कि ताला टूट जाता है। रात में अगर देर रात तक घर में ताला लगा है तब रात में ताला टूटने का भय बना रहता है। चोरों के हौसले इस कदर बुलंद हैं कि लोगों का भरोसा अब पुलिस पर से उठता ही प्रतीत हो रहा है। आए दिन होने वाली चोरी की वारदातों ने लोगों को हिलाकर रख दिया है।
शहर के व्हीव्हीआईपी बंग्लों के आसपास के लोग भी अब चोरों की कारस्तानियों से नहीं बच पा रहे हैं तो बाकी की कौन कहे। जिला कलेक्टर के घर जहां चौबीसों घंटे एक चार की गार्ड पहरा देती है, उस बंग्ले के सामने से चार महीने में चार बार चेन स्नेचिंग हो जाए तो इसे क्या कहा जाएगा? जबकि बंग्ले के ठीक सामने पुलिस लाईन है। कहा जा रहा है कि शाम ढलते ही पुलिस लाईन में पुलिसियों की गिनती के उपरांत इलाका सूनसान हो जाता है। कलेक्टर बंग्ले के सामने पुलिस लाईन्स तो पूर्व में रेस्ट हाउस, सर्किट हाउस एवं पश्चिम में सिन्धी कॉलोनी है। पुलिस लाईन और रेस्ट हाउस वाला इलाका शाम ढलते ही सन्नाटे में डूब जाता है। सिन्धी कॉलोनी के रहवासी इक्का दुक्का इस सड़क से होकर गुजरते हैं। यह माहौल चोरों विशेषकर राहजनी, चेन स्नेचिंग आदि के कारिंदों के लिए मुफीद होता है।
यही अमला जिले की सुरक्षा के लिए पाबंद जिला पुलिस अधीक्षक के आवास के आसपास का है। जिला कलेक्टर के आवास पर तो नगर सेना के सुरक्षा कर्मी तैनात होते हैं, किन्तु जिला पुलिस अधीक्षक के आवास पर तो बाकायदा पुलिस के जवान तैनात होते हैं, बावजूद इसके पुलिस अधीक्षक के आवास के आसपास राहजनी, चोरी, छेड़छाड़ जैसी घटनाएं आए दिन घट रही हों तो क्या इसे शिव के राजका सुराजमाना जाएगा? जाहिर है नहीं, सिवनी में अराजकता पूरी तरह हावी होती दिख रही है। आला अधिकारियों की विभागों पर पकड़ ढीली पड़ने लगी है।
एसपी बंग्ले के ठीक सामने से दिन दहाड़े अधिवक्ता राजेंद्र सिसोदिया की अर्धांग्नी के गले से सोने की चेन छीनकर भाग जाते हैं लुटेरे! एसपी बंग्ले पर तैनान सुरक्षा कर्मी मूकदर्शक बने खड़े रह जाते हैं? क्या उनका दायित्व महज बंग्ले की सुरक्षा का ही है? एसपी बंग्ले से सटे बाबूजी नगर में चोरियां जमकर हो रही हैं। बीते दिनों एसपी बंग्ले से महज सौ मीटर की दूरी पर नवल टेलीकॉम के संचालक के घर से पांच लाख रूपए की चोरी हो जाती है। पुलिस की रात्रि गश्त शोभा की सुपारी ही प्रतीत होती है।
लगता है कि दिखाने के लिए ही पुलिस द्वारा बस स्टैंड, बाहुबली चौराहे, शुक्रवारी चौराहे पर ही अपनी पूरी ताकत झोंकी जाती है। पुलिस के पास चीता मोबाईल (अब ब्रेकर मोबाईल) है, जो मोटर साईकल से गश्त करती है? क्या कभी आला अधिकारियों ने इनसे हिसाब लिया है कि आखिर ये दिन रात कहां घूमकर पेट्रोल फूंक रहे हैं। जिस रात नवल टेलीकॉम या अन्य स्थानों पर चोरी की वारदात हुई हैं, उन रातों में कोतवाली पुलिस के नाईट गश्त अधिकारीसे जवाब तलब किया गया है? क्या जिस दिन कलेक्टर बंग्ले के सामने से चेन स्नेचिंग हुई, उस दिन उस बीट के इंचार्ज से पूछताछ हुई? इन सवालों के जवाब तो जिम्मेदार पुलिस अधिकारी ही दे सकेंगे। बारापत्थर में अस्पताल के सामने बनी रेडक्रॉस की दुकानों के सामने रात ढलते ही नशैले युवाओं द्वारा आतंक मचाया जाता है। एक मर्तबा तो एडीशनल एसपी के वाहन के सामने युवा एक हाथ ठेले वाले पर हाथ साफ कर रहे थे।
शहर के पॉश इलाके में इन दिनों कोचिंग क्लासेस की धूम मची हुई है। शालाओं में अध्यापन के गिरते स्तर से इन कोचिंग संस्थाओं के संचालकों की बन आई है। क्या कभी सांसद, विधायक, जिला प्रशासन, जिला शिक्षा अधिकारी ने इस बात पर चिंतन किया है कि आखिर कोचिंग क्लासेस में भीड़, दिन ब दिन क्यों बढ़ रही है? यह फैशन नहीं है जनाब, कोई भी अभिभावक अपने गाढ़े पसीने की कमाई इस तरह व्यर्थ जाया नहीं करेगा! मतलब साफ है कि शिक्षण संस्थानों में अध्यापन का स्तर हद दरजे तक गिर चुका है। इन कोचिंग क्लासेस में जाने वाली कोमलांगी बालाओं को धुआं उड़ाते नाबालिग, बालिग बाईक सवार अपने जाल में फंसा रहे हैं, फब्तियां कस रहे हैं, अंधेरे का लाभ उठाकर उनके अंगों पर हाथ मार रहे हैं, कभी कभार रोककर कुछ पैसा भी थमा रहे हैं। यह सब हो रहा है, अभिभावक मजबूर है, पर पुलिस इनकी मजबूरी पर अट्टहास लगाती दिख रही है।
जिले में जुंए, सट्टे, विशेषकर क्रिकेट सट्टे, अवैध मदिरा के कारोबार, गर्म गोश्त के व्यापार का जमकर जोर है। जब तब पुलिस द्वारा इस तरह की वारदातों मंें लिप्त लोगों के पकड़े जाने की विज्ञप्तियां जारी कर पुलिस अपनी पीठ थपथपा लेती है, किन्तु क्या जमीनी हकीकत से पुलिस के आला अधिकारी अनजान हैं? जाहिर है नहीं, पुलिस के पास अपना खुफिया तंत्र होता है। एक वाक्ये का जिकर यहां लाजिमी होगा, पूर्व में प्रशिक्षु आईपीएस सिद्धार्थ बहुगुणा की तैनाती के दौरान एक सिपाही इसलिए निलंबित हुआ क्योंकि उसने एसडीओपी सिद्धार्थ बहुगुणा के नाम से एक कबाड़ी से रिश्वत ले ली थी। बात बढ़ी और ईमानदार अधिकारी ने किसी के सामने घुटने नहीं टेके और सिपाही को निलंबित किया। इस तरह के अनेक मामले हैं जो आला अधिकारियों के संज्ञान में आते होंगे पर उन पर पता नहीं क्यों कार्यवाही नहीं हो पाती है।

चुनाव के दौरान मसल और मनी पॉवर के साथ ही साथ सियासी लोग शराब का प्रलोभन भी देने से नहीं चूकेंगे। आज आवश्यक्ता इस बात की है कि कम पुलिस अमले के साथ कानून और व्यवस्था से कैसे निपटा जाए, इस बारे में विचार किया जाए। पुलिस कर्मियों का दर्द भी शायद ही कोई समझता हो, क्योंकि सिपाही से लेकर उपर तक, चौबीसों घंटे कर्मचारी वर्दी में ही दिन गुजार देता है। वह भी इंसान है उसे भी आराम की जरूरत है, वह भी चाहता है कि अपने बच्चों के साथ बैठकर वह समय बिताए पर . . .।

अचार संहिता का माखौल उड़ा रहे वाहनों के काले कांच

अचार संहिता का माखौल उड़ा रहे वाहनों के काले कांच

रस्म अदायगी के लिए जब तब होती है कार्यवाही पर कब होगी सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की तामीली!

(अय्यूब कुरैशी)

सिवनी (साई)। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वाहनों के काले कांच या काली फिल्में पूरी तरह प्रतिबंधित कर दी गई हैं। इस प्रतिबंध के परिपालन के लिए प्रदेश में यदा कदा अभियान चलाया जाकर फिल्में उतरवाई गई हैं। आज जिले भर विशेषकर जिला मुख्यालय में काले कांच वाले वाहन फर्राटे भरते नजर आ रहे हैं। चुनाव के मौसम में काले कांच वाले वाहनों के अंदर आपत्तिजनक सामग्रियों का परिवहन आसानी से किया जा सकता है इन संभावनओं से इंकार नहीं किया जा सकता है।
ज्ञातव्य है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा देश भर में काले कांच वाले वाहनों से काली फिल्म उतारने के लिए आदेश जारी किए गए थे। इसके परिपालन में सिवनी जिले में भी तत्कालीन नगर निरीक्षक हरिओम शर्मा ने कुछ वाहनों के कांच से काली फिल्म निकलवा दी गई थी। उस समय उनके स्वयं के वाहन से काली फिल्म उतारकर उनके द्वारा मीडिया की सुर्खियां बटोरी थीं।
एक दो दिन चली मुहिम के उपरांत मामला पूरी तरह ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया गया। उसके बाद न तो यातायात पुलिस और न ही परिवहन विभाग ने कभी काले कांच वाले वाहनों की कोई खोज खबर ली गई। आज काले कांच वाले वाहन जिले भर में फर्राटे भरते देखे जा सकते हैं।
बताया जाता है कि युवाओं का प्रिय शगल बन चुके काले कांच वाले इन वाहनों को जिला मुख्यालय से पांच से दस किलोमीटर के दायरे में सुनसान जगह पर दिन दहाड़े सड़क किनारे खड़े अजीबोगरीब तरीके से हिलते भी देखा जा सकता है। बताया जाता है कि कुछ दिनों पूर्व पुलिस के एक दल ने इसी तरह का एक वाहन पकड़ा जिसमें एक प्रेमी युगल आपत्तिजनक स्थिति में भी मिला था। वह तो पुलिस कर्मियों की सहृदयता थी कि उन्होंने उक्त युगल के पालकों को बुलाकर वस्तु स्थिति के बारे में बताकर बच्चों को संभालने हेतु ताकीद किया था।
काले कांच वाले वाहन शाम ढलते ही बियर बार में भी तब्दील हो जाते हैं। सड़कों किनारे युवा इन काले कांच वाले चार पहिया वाहनों में जाम टकराते भी दिख जाते हैं। गत दिवस पुलिस के एक अधिकारी के सामने ही नशे में धुत्त युवाओं द्वारा तेज रफ्तार में वाहन दौड़ाते देखा गया था।
इस संबंध में सबसे दुखद पहलू यह है कि सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों के परिपालन में क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी कार्यालय द्वारा कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई गई है। वस्तुतः काली फिल्म को निषिद्ध किए जाने पर आरटीओ द्वारा कार्यवाही किया जाना चाहिए था।
चुनाव की बेला में काले कांच वाले वाहनों के अंदर आपत्तिजनक सामग्री का परिवहन बेहद आसानी से किया जा सकता है। काले कांच वाले वाहनों में हथियार, शराब जैसी चीजों को असानी से पुलिस की आंखों में धूल झोंककर एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचाया जा सकता है। बताया जाता है कि चुनावी गोदे (अखाड़े) में उतरने वाले कुछ प्रत्याशियों द्वारा क्षेत्र में अवैध शराब का भण्डारण इस तरह के काले कांच वाले वाहनों से किया जा रहा है।

सिवनी में राजनैतिक दलों से जुड़े लोगों विशेषकर प्रत्याशी, संभावित प्रत्याशियों के विलासिता वाले वाहनों के शीशों में काली फिल्म लगी साफ दिखाई दे जाती है जो सर्वोच्च न्यायालय के नियमों को खुलेआम धता बता रही है। सियासी दलों के कार्यकर्ताओं के बीच चल रही चर्चाओं के अनुसार काली फिल्म वाले वाहन में चलना सियासी दलों के लोगों के लिए स्टेटस सिंबल बन चुका है। कुछ कार्यकर्ताओं का कहना है कि राजनैतिक दलों के बड़े नेताओं के रसूख के आगे पुलिस और परिवहन विभाग के कारिंदे भी अपने आप को बौना ही महसूस कर रहे हैं। जिला निर्वाचन अधिकारी से अपेक्षा व्यक्त की जाती है कि काले कांच वाले वाहनों से काली फिल्म उतरवाई जाए।

सिवनी में खुलीं, ना जाने कितनी खबरों की दुकानें!

सिवनी में खुलीं, ना जाने कितनी खबरों की दुकानें!

(लिमटी खरे)

जो भी अधिकारी सिवनी में तैनात होता है एक माह बाद ही वह यहां के खबरों के दुकानदारोंसे बुरी तरह परेशान हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि औसतन सिवनी में देश के सबसे ज्यादा पत्रकार हैं। इनमें वास्तविक कितने हैं और फर्जी कितने हैं इस बारे में कहना मुश्किल ही है। मजाक में लोग कहने लगे हैं कि यार एक पत्थर उठाकर उछालो जिसे लगे उससे पूछना क्या करते हो, तपाक से वह बोले उठेगा -क्या बात करते हो पत्रकार हूं भई।सिवनी में पत्रकारिता को लोगों ने लाभ का धंधाबना लिया है।
ना जाने कितने पत्रकार संगठन सिवनी में अस्तित्व में हैं। आज ये संगठन पत्रकारों के हित संवंधर्न की दिशा में कितने सजग हैं यह बात वे स्वयं ही जानते होंगे। फरवरी में कर्फ्यू लगा, अखबार नहीं बटे, मीडिया घरों में कैद रहा, पर पत्रकार संगठन आश्चर्यजनक तौर पर मौन ही साधे रहे, क्या इस बात का जवाब है उनके पास कि प्रशासन की इस बेजा हरकत पर उन्होंने मुंह क्यों सिले रखा? चाय पान ठेले वाले, आरटीओ के दलाल, सब्जी विक्रेता, परचून की दुकान वाले, होटल किराना वाले, टेक्सी संचालक सभी आज इन संगठनों के सदस्य बताए जाते हैं। माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति किसी स्थान से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक अखबार की पच्चीस कापी (औसतन पांच रूपए प्रति कापी) लाकर पत्रकार बनता है तो साल भर में उसे कम से कम साढ़े छः हजार रूपए खर्च करना होगा, पर इस तरह के संगठनों की सदस्यता महज सौ से पांच सौ रूपए प्रतिवर्ष में मिल जाती है। साथ ही साथ मिल जाता है प्रेस लिखा एक आईडी कार्ड, जिसे चमका कर वह गैर पत्रकारवास्तविक पत्रकारों की छवि पर बट्टा लगाता दिखता है। इतना ही नहीं, वाहनों में प्रेस लिखने का फैशन दिन ब दिन बढ़ गया है। आज जो अपना नाम भी ठीक से नहीं खिल सकते वे भी पत्रकार का तमगा लगाए घूम रहे हैं। देखा जाए तो यह पत्रकारिता धर्म के एकदम खिलाफ है।
बीते दिनों श्रमजीवी पत्रकार संघ की एक बैठक में हमने साफ तौर पर कहा था कि पत्रकारों के लिए पत्रकारिता मां के समान है और कोई भी पत्रकार अपनी मां को कोठे पर कतई नहीं बिठाएगा, अगर पत्रकारिता को बदनाम किया जा रहा है तो यह काम वे ही कर सकते हैं जो . . .। साथ ही साथ पीत पत्रकारिता या पत्रकारिता को धंध बनाने वालों को मशविरा दिया था कि बेहतर होगा कि वे लोग पत्रकारिता छोड़कर परचून की दुकान खोल लें, पर पत्रकारिता जैसे पवित्र पेशे को बदनाम ना करें। एक पत्रकार मित्र ने हमसे कहा कि कहीं आपकी ईमानदारी के चक्कर में हमारा नुकसान ना हो जाए, कोई पत्रकार यह कहता पाया जा रहा है कि वे तो हमारे आदमियोंको चुन चुन कर नंगा कर रहे हैं। हमारा कहना महज इतना है कि कोई किसी का आदमी नहीं होता। क्या किसी ठेकेदार, नेता या व्यक्ति पर कोई पत्रकार सील लगा सकता है कि वह उसका आदमी है? जाहिर है नहीं। जब काले काम करने वाले सफेद पोशों को नंगा करने की जवाबदेही से बचकर उन्हें महिमा मण्डित करने का काम कथित मीडिया मुगल करने लगें तो ईमानदार पत्रकार क्या करें? आज आवश्यक्ता इस बात की है कि पत्रकारिता पेशे को लाभ का धंधा बनाने के बजाए अपनी मां का दर्जा दिया जाए, ताकि पत्रकारिता के प्रतिमान स्थापित किए जा सकें।
हमें क्या करना है?‘, ‘विज्ञापन पार्टी है बब्बा!‘, ‘अरे ऐसा मत लिखो, . . . नाराज हो जाएगा, दाल रोटी बंद हो जाएगी‘, ‘मकान बनाना है, मदद कौन करेगा‘, शादी करना है खर्चा बहुत है‘, ‘उपर से आदेश है, इनके खिलाफ नही छापना है‘, ‘झाबुआ पावर तो अपनी दुकान हैजिसको विज्ञापन चाहिए हमसे संपर्क करे, जैसे जुमलों से पत्रकारिता रूपी माता का आंचल छलनी ही होता है। गत दिवस मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के शीर्ष अधिकारी मेंहदीरत्ता ने कहा कि उन्होंने सिवनी के पत्रकारों के विज्ञापन के देयक आना पाई से बिचौलियों के हाथों भेज दिए हैं। अगर किसी को नहीं मिला हो तो प्रकाशन की तारीख, संस्थान का नाम और राशि लिखकर उन्हें 9977802499 पर एसएमएस किया जा सकता है, ताकि उन्हें यह पता लग सके कि पूरा भुगतान करने के बाद भी कितनी देनदारी अभी झाबुआ पावर की बाकी है।
लोग अक्सर कहा करते हैं कि सिवनी से प्रकाशित होने वाले अखबारों का कुछ करो भई। हमारा कहना है कि हम क्या कर सकते हैं, समाचार पत्र का शीर्षक लेने के लिए अनुविभागीय दण्डाधिकारी के माध्यम से भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक तक जाना होता है। भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक द्वारा शीर्षक आवंटन कर जिला दण्डाधिकारी को सूचित किया जाता है। जिला दण्डाधिकारी के अधीन जनसंपर्क विभाग का एक कार्यालय कार्यरत होता है। जनसंपर्क विभाग का काम ही जिला प्रशासन और पत्रकारों के बीच समन्वय बनाने के साथ ही साथ शासन प्रशासन की जनकल्याणकारी नीतियों को जनता तक मीडिया के माध्यम से पहुंचाने का होता है।
इन परिस्थितियों में प्रश्न यही पैदा होता है कि आखिर वो कौन है जो सिवनी में मीडिया की हालत को सुधारेगा। जाहिर है जिला दण्डाधिकारी ही जनसंपर्क अधिकारी के माध्यम से मीडिया की स्थिति को सुधारने का काम करेंगे। वस्तुतः जनसंपर्क विभाग भी अपनी जवाबदेही से पीछे हटता आया है। अगर कोई समाचार पत्र का प्रकाशन नियमित ना होकर कभी कभार हो रहा है तो उस पर जिला जनसंपर्क अधिकारी को चाहिए कि इसकी जानकारी लिखित रूप से भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक कार्यालय को दें, और उस पर कार्यवाही सुनिश्चित करवाए।
समाचार पत्रों की आवधिकता दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक, छःमाही या वार्षिक होती है। पर सिवनी में एक और आवधिकता दिखाई पड़ती है और वह है एक्छिकअर्थात जब मन चाहा कर दिया प्रकाशित। पंद्रह अगस्त, 26 जनवरी, होली, दीपावली तो मानो एक पर्व होता है अखबारों के लिए। सरकारी नुमाईंदो, विशेषकर वन विभाग के रेंजर्स, पीडब्लूडी, आरईएस, सिंचाई, पीएचई आदि विभागों के सब इंजीनियर या एसडीओ के कार्यालयों में सैकड़ों की तादाद में विज्ञापन के बिल पहुंच जाते हैं। अधिकारी हैरान परेशान हो उठते हैं, वे भी आखिर करें तो क्या?
आज सिवनी में आरएनआई में ‘‘डीब्लाक‘‘ (समाचार शीर्षक के अस्थाई सत्यापन के दो वर्ष के अंदर अगर स्थाई नहीं किया जाता है तो वह स्वतः ही निरस्त हो जाता है) हो चुके शीर्षकों के नाम पर समाचार पत्र प्रकाशित हो रहे हैं, जिनका अस्थाई पंजीयन समाप्त हो गया है वे भी सीना तानकर अखबार का प्रकाशन कर रहे हैं। नगर पालिका प्रशासन सहित सरकारी विभाग अखबारों को मनमर्नी के रेट पर बिलों का भुगतान कर रहे हैं।
जिन समाचार पत्रों का घोषणा पत्र सिवनी जिला दण्डाधिकारी के पास नहीं जमा है उन्हें भी लोकलकी श्रेणी में रखा जा रहा है। आयुक्त जनसंपर्क मध्य प्रदेश या डीएव्हीपी दिल्ली के द्वारा दिए गए रेट्स को दरकिनार कर उससे दस से पचास गुना ज्यादा दरों पर हो रहा है भुगतान, ना आडिट विभाग आपत्ति ले रहा है और ना ही कोई और। कुल मिलाकर सिवनी जिले में लूट मची हुई है। दुख और चिंता का विषय तो यह है कि इस लूट में अब नेता अधकारी और पत्रकारों का त्रिफलाबन चुका है।
इलेक्ट्रानिक मीडिया में भी न जाने कितने समाचार चेनल्स की आईडी (माईक पर लगा चेनल का लोगो) दिखाई पड़ जाते हैं पत्रकार वार्ता में। एक बार सिवनी से प्रकाशित एक दैनिक समाचार पत्र (हिन्द गजट नहीं) ने लिखा था आखिर कहां दिखाई जाती हैं इलेक्ट्रानिक मीडिया द्वारा इतनी सारी ली गई बाईट्स)।
सूचना के अधिकार एक्टिविस्ट अधिवक्ता दादू निखलेंद्र नाथ सिंह ने नगर पालिका से विज्ञापन की सूची निकलवाई जिसमें पता नहीं किन किन अखबारों के नाम हैं जिनका नाम कभी सुना ही नहीं गया, कुछ तो समाचार पत्र वितरण एजेंसी को भी विज्ञापन जारी किया जाना दर्शाया गया है। अखबारों में सब प्रकाशित हुआ, विपक्ष में बैठी कांग्रेस और उसके उपाध्यक्ष राजिक अकील भी मुंह सिले हुए हैं, आखिर क्या कारण है? आखिर क्या वजह है कि शिवराज सिंह चौहान को पानी पी पी कर कोसने वाले कांग्रेस के प्रवक्ता ओम प्रकाश तिवारी, जेपीएस तिवारी और रामदास ठाकुर सदा ही नगर पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी, श्रीमति नीता पटेरिया, नरेश दिवाकर, डॉ.ढाल सिंह बिसेन, कमल मस्कोले, श्रीमति शशि ठाकुर की गलत नीतियों के खिलाफ अपनी कलम रेत में गड़ा देते हैं। जाहिर है ये कहीं ना कहीं भाजपा के इन नेताओं से उपकृत ही हैं, वरना और क्या वजह हो सकती है इनकी खामोशी की!
बहरहाल, किसके खिलाफ बोलना किसके खिलाफ नहीं, यह पार्टी की अंदरूनी नीति का मसला है, इससे हमें ज्यादा लेना देना नहंी है, पर जनता को भरमाईए तो मत। सिवनी में सब कुछ ठीक ठाक नहीं है। शिवराज सिंह चौहान को कोसने के लिए प्रदेश में मुकेश नायक हैं और भाजपा की ओर से देश में मनमोहन सिंह को कोसने के लिए प्रकाश जावड़ेकर हैं, उनकी रोजी रोटी मच छीनिए सिवनी के प्रवक्ता महोदयों। आपके कंधे पर सिवनी की जवाबदेही सौंपी गई है आप सिवनी की ही चिंता करें तो बेहतर होगा।
जिला कलेक्टर भरत यादव ने अप्रेल माह में जिला जनसंपर्क अधिकारी को ताकीद किया था कि वास्तविक पत्रकारों को चिन्हित किया जाए। उसके बाद उन्होंने दैनिक और साप्ताहिक समाचार पत्रों से आरएनआई पंजीयन और घोषणा पत्र की कापी चाही है। यह एक स्वागत योग्य कदम है, किन्तु इसमें पाक्षिक और मासिक समाचार पत्रों को क्यों छोड़ दिया गया है। साथ ही साथ सिवनी से बाहर से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र और इलेक्ट्रानिक चेनल्स के संवदादाताओं से भी समय सीमा में उनके संपादकों से उनकी नियुक्ति का प्रमाणपत्र बुलवाया जाए। हो यह रहा है कि सालों पहले एक नियुक्ति पत्र जमा करवाने वाले व्यक्ति द्वारा सालों साल उसके ही दम पर अपनी धाक जमाई जाती है। चिंताजनक पहलू तो यह भी सामने आ रहा है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग अब मीडिया की आड़ लेने लगे हैं।
वस्तुतः यह जवाबदेही जिला प्रशासन और जिला जनसंपर्क अधिकारी की है कि वह मीडिया में बढ़ रहे फर्जीवाड़े को नियंत्रित करे। जिला जनसंपर्क अधिकारी को चाहिए कि अगर उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है (किसी भी आवधिकता वाले समाचार पत्र के नियमित प्रकाशन का प्रमाण पत्र आरएनआई किसे मानती है, या अखबार से संबंधित अन्य जानकारियां जिससे कि वह समाचार पत्र नियमित माना जाए) तो वे बाकायदा आरएनआई को पत्र लिखकर इसकी जानकारी मांग सकते हैं। डीएम और पीआरओ का एक सख्त कदम सिवनी में पत्रकारिता के क्षेत्र में बिखरी गंदगी को धोने में वाकई मील का पत्थर ही साबित होगा, आशा तो है कि संवेदनशील जिला कलेक्टर भरत यादव इस दिशा में ठोस कदम उठाएंगे।

साथ ही साथ चुनाव के मौसम में कम से कम पेड न्यूज के बारे में सविस्तार उदहारणों के साथ अगर गाईड लाईन मीडिया तक लिखित रूप में पहुंचाई जाती तो यह मीडिया के लिए सुलभ हो जाता कि वह अपने आप को पेड न्यूज की लक्ष्मण रेखा से दूर ही रखती, वस्तुतः जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी गाईड लाईन में स्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही है।