जरूरी है पुलिस की
मुस्तैदी
(शरद खरे)
जिला मुख्यालय
सिवनी के लोगों की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया है। दिन में अगर घर पर
ताला लगाकर दस मिनिट को गए नहीं कि ताला टूट जाता है। रात में अगर देर रात तक घर
में ताला लगा है तब रात में ताला टूटने का भय बना रहता है। चोरों के हौसले इस कदर
बुलंद हैं कि लोगों का भरोसा अब पुलिस पर से उठता ही प्रतीत हो रहा है। आए दिन
होने वाली चोरी की वारदातों ने लोगों को हिलाकर रख दिया है।
शहर के
व्हीव्हीआईपी बंग्लों के आसपास के लोग भी अब चोरों की कारस्तानियों से नहीं बच पा
रहे हैं तो बाकी की कौन कहे। जिला कलेक्टर के घर जहां चौबीसों घंटे एक चार की
गार्ड पहरा देती है,
उस बंग्ले के सामने से चार महीने में चार बार चेन स्नेचिंग हो
जाए तो इसे क्या कहा जाएगा? जबकि बंग्ले के ठीक सामने पुलिस लाईन है।
कहा जा रहा है कि शाम ढलते ही पुलिस लाईन में पुलिसियों की गिनती के उपरांत इलाका
सूनसान हो जाता है। कलेक्टर बंग्ले के सामने पुलिस लाईन्स तो पूर्व में रेस्ट हाउस, सर्किट हाउस एवं
पश्चिम में सिन्धी कॉलोनी है। पुलिस लाईन और रेस्ट हाउस वाला इलाका शाम ढलते ही
सन्नाटे में डूब जाता है। सिन्धी कॉलोनी के रहवासी इक्का दुक्का इस सड़क से होकर
गुजरते हैं। यह माहौल चोरों विशेषकर राहजनी, चेन स्नेचिंग आदि के कारिंदों के लिए मुफीद
होता है।
यही अमला जिले की
सुरक्षा के लिए पाबंद जिला पुलिस अधीक्षक के आवास के आसपास का है। जिला कलेक्टर के
आवास पर तो नगर सेना के सुरक्षा कर्मी तैनात होते हैं, किन्तु जिला पुलिस
अधीक्षक के आवास पर तो बाकायदा पुलिस के जवान तैनात होते हैं, बावजूद इसके पुलिस
अधीक्षक के आवास के आसपास राहजनी, चोरी, छेड़छाड़ जैसी घटनाएं आए दिन घट रही हों तो
क्या इसे ‘शिव के राज‘ का ‘सुराज‘ माना जाएगा? जाहिर है नहीं, सिवनी में अराजकता
पूरी तरह हावी होती दिख रही है। आला अधिकारियों की विभागों पर पकड़ ढीली पड़ने लगी
है।
एसपी बंग्ले के ठीक
सामने से दिन दहाड़े अधिवक्ता राजेंद्र सिसोदिया की अर्धांग्नी के गले से सोने की
चेन छीनकर भाग जाते हैं लुटेरे! एसपी बंग्ले पर तैनान सुरक्षा कर्मी मूकदर्शक बने
खड़े रह जाते हैं? क्या उनका
दायित्व महज बंग्ले की सुरक्षा का ही है? एसपी बंग्ले से सटे बाबूजी नगर में चोरियां
जमकर हो रही हैं। बीते दिनों एसपी बंग्ले से महज सौ मीटर की दूरी पर नवल टेलीकॉम
के संचालक के घर से पांच लाख रूपए की चोरी हो जाती है। पुलिस की रात्रि गश्त शोभा
की सुपारी ही प्रतीत होती है।
लगता है कि दिखाने
के लिए ही पुलिस द्वारा बस स्टैंड, बाहुबली चौराहे, शुक्रवारी चौराहे
पर ही अपनी पूरी ताकत झोंकी जाती है। पुलिस के पास चीता मोबाईल (अब ब्रेकर मोबाईल)
है, जो मोटर
साईकल से गश्त करती है? क्या कभी आला अधिकारियों ने इनसे हिसाब लिया है कि आखिर ये
दिन रात कहां घूमकर पेट्रोल फूंक रहे हैं। जिस रात नवल टेलीकॉम या अन्य स्थानों पर
चोरी की वारदात हुई हैं, उन रातों में कोतवाली पुलिस के ‘नाईट गश्त अधिकारी‘ से जवाब तलब किया
गया है? क्या जिस
दिन कलेक्टर बंग्ले के सामने से चेन स्नेचिंग हुई, उस दिन उस बीट के
इंचार्ज से पूछताछ हुई? इन सवालों के जवाब तो जिम्मेदार पुलिस अधिकारी ही दे सकेंगे।
बारापत्थर में अस्पताल के सामने बनी रेडक्रॉस की दुकानों के सामने रात ढलते ही
नशैले युवाओं द्वारा आतंक मचाया जाता है। एक मर्तबा तो एडीशनल एसपी के वाहन के
सामने युवा एक हाथ ठेले वाले पर हाथ साफ कर रहे थे।
शहर के पॉश इलाके
में इन दिनों कोचिंग क्लासेस की धूम मची हुई है। शालाओं में अध्यापन के गिरते स्तर
से इन कोचिंग संस्थाओं के संचालकों की बन आई है। क्या कभी सांसद, विधायक, जिला प्रशासन, जिला शिक्षा
अधिकारी ने इस बात पर चिंतन किया है कि आखिर कोचिंग क्लासेस में भीड़, दिन ब दिन क्यों बढ़
रही है? यह फैशन
नहीं है जनाब, कोई भी
अभिभावक अपने गाढ़े पसीने की कमाई इस तरह व्यर्थ जाया नहीं करेगा! मतलब साफ है कि
शिक्षण संस्थानों में अध्यापन का स्तर हद दरजे तक गिर चुका है। इन कोचिंग क्लासेस
में जाने वाली कोमलांगी बालाओं को धुआं उड़ाते नाबालिग, बालिग बाईक सवार
अपने जाल में फंसा रहे हैं, फब्तियां कस रहे हैं, अंधेरे का लाभ
उठाकर उनके अंगों पर हाथ मार रहे हैं, कभी कभार रोककर कुछ पैसा भी थमा रहे हैं। यह
सब हो रहा है, अभिभावक
मजबूर है, पर पुलिस
इनकी मजबूरी पर अट्टहास लगाती दिख रही है।
जिले में जुंए, सट्टे, विशेषकर क्रिकेट
सट्टे, अवैध मदिरा
के कारोबार, गर्म गोश्त
के व्यापार का जमकर जोर है। जब तब पुलिस द्वारा इस तरह की वारदातों मंें लिप्त
लोगों के पकड़े जाने की विज्ञप्तियां जारी कर पुलिस अपनी पीठ थपथपा लेती है, किन्तु क्या जमीनी
हकीकत से पुलिस के आला अधिकारी अनजान हैं? जाहिर है नहीं, पुलिस के पास अपना
खुफिया तंत्र होता है। एक वाक्ये का जिकर यहां लाजिमी होगा, पूर्व में
प्रशिक्षु आईपीएस सिद्धार्थ बहुगुणा की तैनाती के दौरान एक सिपाही इसलिए निलंबित
हुआ क्योंकि उसने एसडीओपी सिद्धार्थ बहुगुणा के नाम से एक कबाड़ी से रिश्वत ले ली
थी। बात बढ़ी और ईमानदार अधिकारी ने किसी के सामने घुटने नहीं टेके और सिपाही को
निलंबित किया। इस तरह के अनेक मामले हैं जो आला अधिकारियों के संज्ञान में आते
होंगे पर उन पर पता नहीं क्यों कार्यवाही नहीं हो पाती है।
चुनाव के दौरान मसल
और मनी पॉवर के साथ ही साथ सियासी लोग शराब का प्रलोभन भी देने से नहीं चूकेंगे।
आज आवश्यक्ता इस बात की है कि कम पुलिस अमले के साथ कानून और व्यवस्था से कैसे
निपटा जाए, इस बारे
में विचार किया जाए। पुलिस कर्मियों का दर्द भी शायद ही कोई समझता हो, क्योंकि सिपाही से
लेकर उपर तक, चौबीसों
घंटे कर्मचारी वर्दी में ही दिन गुजार देता है। वह भी इंसान है उसे भी आराम की
जरूरत है, वह भी
चाहता है कि अपने बच्चों के साथ बैठकर वह समय बिताए पर . . .।
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