फेरबदल से क्या
अलीबाबा . . . . 6
घपले घोटालों के
प्रकाश में गुम गया घोषणापत्र
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली (साई)।
कांग्रेसनीत केंद्र सरकार द्वारा आठ सालों से देश पर शासन किया जा रहा है। दो बार
चुनाव जीतने के बाद भी कांग्रेस के घोषणा पत्र के वायदे आज भी कोरे ही वायदे साबित
हो रहे हैं कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व रणनीतिकारों यहां तक के संयुक्त प्रगतिशील
गठबंधन की सरकार के घटक दलों को भी इस घोषणापत्र से कुछ लेना देना नहीं है जिसके
आधार पर कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के घटक दल आज सत्ता की मलाई चख रहे हैं।
कांग्रेस के सत्ता और
शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ (बतौर सांसद सोनिया गांधी को आवंटित बड़ा सा सरकारी आवास)
के उच्च पदस्थ सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि संगठन द्वारा
केंद्र सरकार के मंत्रियों को कांग्रेस के घोषणा पत्र के आधे अधूरे वायदों को अमली
जामा पहनाए जाने का एजेंडा अवश्य ही थमा दिया किन्तु मंत्री हैं कि कांग्रेस के इस
घोषणा पत्र की बजाए निहित स्वार्थों को पूरा करने में ही लगे हुए हैं।
सूत्रों ने कहा कि
केंद्र में मंत्री इस बात को लेकर भ्रम में हैं कि कुछ मामलों में वे क्या
कार्यवाही करें, क्योंकि उन
मसलों पर सोनिया गांधी का नजरिया ही साफ नहीं है। सूत्रों ने कहा कि तेलंगाना के
साथ ही साथ अन्य क्षेत्रीयता वाले मामले, युवाओं को पंचायत में आरक्षण, जीएसटी लागू करना, महिला आरक्षण
विधेयक जैसे मामले आज भी जस के तस ही पड़े हुए हैं। इन सभी की वेटिंग आज भी इसलिए
कंफर्म नहीं हो पाई है क्योंकि इसमें शीर्ष नेतृत्व ने कोई फैसला ही नहीं लिया है।
सोनिया गांधी के
करीबी सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को यह भी बताया कि चुनाव की पदचाप और
राज्यों में कांग्रेस के औंधे मुंह गिरने से कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व अब बैकफुट
पर आकर चिंताग्रस्त हो गया है। शीर्ष नेतृत्व को लगने लगा है कि जिस तरह उत्तर
प्रदेश, गुजरात और
मध्य प्रदेश में संगठन की कमर बुरी तरह टूट चुकी है उसी तरह कहीं देश में कांग्रेस
का नामोनिशान ही ना मिट जाए।
कांग्रेस मुख्यालय
में पदस्थ एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम उजागर ना करने की शर्त पर समाचार एजेंसी ऑफ
इंडिया से कहा कि दरअसल, सोनिया गांधी रीढ़ विहीन लोगों से घिरी हुईं हैं, जिसके चलते
कांग्रेस सर्वनाश के मार्ग पर आगे बढ़ चुकी है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को अपना
घोषणापत्र देखना चाहिए और उसमें आम आदमी से किए गए वायदों को प्रथमिकता के आधार पर
पूरा करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि
वैसे तो तेलंगाना को आंध्र प्रदेश से अलग कर प्रथक राज्य बनाने की बात कांग्रेस ने
अपने घोषणा पत्र में नहीं कही थी किन्तु अब हालात बहुत ही ज्यादा बदल चुके हैं।
आंध्र प्रदेश के कांग्रेस के नेता ही इस मामले में शीर्ष नेतृत्व की चुप्पी के
चलते बुरी तरह कसमसा रहे हैं। दरअसल, तेलंगाना राज्य की जनता इन नेताओं को लंबे
समय से कोस रही है,
लोकसभा में इस मामले को पुरजोर तरीके से ना उठा पाने के चलते
अनेक कांग्रेस के नेताओं की बुरी गत हो रही है।
उक्त वरिष्ठ
पदाधिकारी ने याद दिलाते हुए समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से कहा कि वर्ष 2009 के घोषणा-पत्र में
कांग्रेस ने कहा था,
कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस यह मानती है कि कुछ बड़े राज्यों
के पिछड़े इलाकों का समग्र विकास नहीं हो पाया है। इसकी वजह से अलग राज्य की मांग
भी उठी है। हमने इन क्षेत्रों के लिए कई विशेष योजनाएं और कार्यक्रम शुरू किए हैं।
ऐसे इलाकों में अलग-अलग प्रकार की समस्याओं के निराकरण भी अलग तरीकों से ही किया
जा सकता है। इसलिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इन क्षेत्रों की मांग को पूरा करने
का भरपूर प्रयास करेगी। तेलंगाना से जुड़े नेताओं का कहना है कि पार्टी को
क्षेत्रीय आकांक्षाओं को पूरा करने का अपना वादा पूरा करना चाहिए। लेकिन बार-बार
नई समयसीमा देकर धैर्य की सलाह दी जाती है।
इसके साथ ही साथ
कांगेस ने यह वायदा भी अपने घोषणा पत्र के किया था कि वह देश में स्कूलों की
पाठ्य-सामग्री के लिए एक राष्ट्रीय संस्था का गठन करेगी। पार्टी ने यह भी वादा
किया था कि देश भर में स्कूलों की सभी पाठ्य-सामग्री को एक राष्ट्रीय संस्था के
अंतर्गत लाएगी, भले स्कूल
की स्थापना किसी संस्था या संप्रदाय ने की हो। लेकिन अंदरूनी विवादों के चलते
सरकार नेशनल टेक्स्ट बुक काउंसिल बनाने का प्रस्ताव अमल में नहीं ला सकी। अभी भी
इस मसले पर कोई जोर नहीं।
पार्टी के घोषणा
पत्र में अनेक वायदे ऐसे हैं जिनकी अभी इबारत भी नहीं लिखी गई है। कहा जा रहा है
कि लूट सके तो लूट की तर्ज पर मंत्रियों ने कांग्रेस के इस घोषणा पत्र पर धूल डालकर
अपने निहित स्वार्थ ही साधे गए हैं। कांग्रेस के एक अन्य पदाधिकारी ने भी पहचान
उजागर ना करने की शर्त समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से कहा कि कांग्रेस में अब अराजकता
हावी हो गई है। पार्टी में अब आलाकमान नाम की ही चीज नहीं बची है। किसी को भी
पार्टी आलाकमान का खौफ ही नहीं बचा है।
हाल ही में
कांग्रेस के सांसद सज्जन सिंह वर्मा ने पार्टी के आला नेताओं को आड़े हाथों लेते
हुए कहा था कि पार्टी के शीर्ष नेता दिल्ली के वातानुकूलित कक्षों से बाहर ही नहीं
निकलना चाहते हैं। पार्टी के नेता जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं के हाल चाल जानने का
प्रयास भी नहीं करते हैं। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से दूरभाष पर चर्चा के दौरान
सांसद सज्जन सिंह वर्मा ने कहा कि पार्टी के आला नेता यह अवश्य कहते फिरते हैं कि
पार्टी में कोई गुटबाजी नहीं है, वास्तव में गुटबाजी ये आना नेता ही फैलाते
हैं।
श्री वर्मा ने आगे
कहा कि पार्टी के नेताओं को जगाना ही होगा वरना आने वाले दिनों में कांग्रेस का
नामलेवा ही नहीं बचेगा। कार्यकर्ताओं के बीच में जाने से ही वास्तविकता का भान हो
सकेगा। दिल्ली में वातानुकूलित कक्षों में बैठकर कागजी घोड़े दौड़ाने से किसी का
फायदा नहीं होने वाला है। ज्ञातव्य है कि मध्य प्रदेश में 2003 के बाद कांग्रेस
का नामलेवा भी नहीं बचा है। लगातार नौ साल तक सत्ता से बाहर रहने के चलते अब
कांग्रेस का झंडा और डंडा उठाने वालों का टोटा भी साफ दिखने ही लगा है।