4 दिसम्बर को दिल्ली में गरजेंगे वीएम सिंह
(सचिन धीमान)
मुजफ्फरनगर। (साई)।
रंगराजन रिपोर्ट के विरोध में तथा गन्ना किसानों को उनका हकों को वापिस दिलाने
हेतु गन्ना किसानों से राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय संयोजक एवं पूर्व
विधायक वीएम सिंह ने एक बार फिर कमर कस ली है। वीएम सिंह एक बार फिर चीनी मिल
मालिकों को उनके चाल से पलटवार करने जा रहे है। इस बार चीनी मिल मालिकों को
रंगराजन रिपोर्ट को लागू न होने देकर किसानों को महाराष्ट्र व गुजरात के किसानों
की तरह गन्ने का भुगतान दिलाने में जुटे है। इस बार वीएम सिंह ने अपनी ताकत को
बढाने व केन्द्र सरकार द्वारा रंगराजन रिपोर्ट को रद्द कर किसानों को राहत न दी तो
वह लाखों किसानों के साथ 4 दिसम्बर को दिल्ली कूच कर जायेंगे और रंगराजन रिपोर्ट के
रद्द होने तक दिल्ली में आंदोलन करेंगे।
राष्ट्रीय किसान
मजदूर संगठन के राष्ट्रीय संयोजक एवं पूर्व विधायक वीएम सिंह ने जानकारी देते हुए
बताया कि वह पिछले 20 वर्षों से किसानों
के हकों के लिए हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में जाकर लड़ाई लड़ी उनके उनके पक्ष में
कई आदेश पारित किए गए। जिनमें एक सोसाइटी में एक रेट, राज्य सरकार को
गन्ना मूल्य तय करने का अधिकार, 14 दिन की देरी के बाद गन्ना भुगतान पर 15 फीसदी ब्याज, जब तक गन्ना मूल्य
ना दिया जाए तब तक किसानों के खिलाफ कृषि वसूली पर रोक (अ) जब तक करार किया गया
गन्ना ना पेरा जाए तब तक मीलों का चलना अनिवार्य और मील के ना पेरने पर खड़े गन्ना
का पैसा देने के आदेश व शुरूआती वैराइटी जारी रहेगी। आदि। उन्होंने कहा कि इस आदेश
के बाद सैंकड़ों साल किसान खड़ा रहे और सरकारी एवं मील मालिकों की लूट से बच सकेगा
परंतु मील मालिकों की सोच मुझसे बहुत विपरित थी। वो किसानों को किसी भी कीमत परे
लूटना चाहते हैं। 2004 में
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने केन्द्र सरकार के रेट एसएमपी को न्यूनतम माना और
राज्य सरकार को गन्ना मूल्य (एसएपी) तय करने का अधिकार दिया। मिल मालिकों को तब 1996-97 एवं 2002-03 और 2003-04 में लगभग 1000 करोड़ रुपए डेफर
पेमेन्ट देना पड़ा। जिसके बाद मील मालिकों ने केन्द्र सरकार के साथ मिलकर नई रणनीति
बनाई। उन्होंने बताया कि केन्द्र ने कानून में संशोधन करके एसएमपी के बदले एफआरपी
(उचित एवं लाभकारी मूल्य कर दिया। 2011 में सुप्रीम कोर्ट जब 2003-04 से 2008-09 गन्ना मूल्य की
अपील सुन रहा था मिल मालिकों ने एफआरपी देने की मांग की। (एफआरपी, एसएपी से लगभग 40 फीसदी कम होता
है।) मिल मालिकों को 17।जनवरी 2012 को झटका लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने एसएपी और
एसएमपी के विवाद को 7 जजों की बैंच को भेजा पर वीएम सिंह की समझौता मूल्य और एक
सोसाइटी में एक रेट की दलील को मानते हुए आपको 2006-07 का एवं 2007-08 का 7 रुपए एवं 15-20 रुपए क् लगभग 1300 करोड़ के डेफर
पेमेंट का आदेश दिया। जिसके बाद मील मालिकों को अहसास हुआ कि अब उन्हें किसानों को
हराने के लिए कोई और रणनीति अपनानी पड़ेगी। उन्हें एहसास हुआ कि वीएम सिंह के होते
हुए किसानों को हराना नामुमकिन है। उन्होंने नई रणनीति बनाते हुए 20 जनवरी 2012 को प्रधानमंत्री
कार्यालय ने सी।रंगराजन समिति का गठन किया और उस समिति ने उत्तर-प्रदेश एवं
उत्तर-भारत के प्रांतों के विरोध के बावजूद अपनी 05 अक्टूर 2012 की रिपोर्ट में
गन्ना किसानों को बर्बाद और मिल मालिकों को आबाद करने की योजना प्रस्तुत की। जहां
किसानों की लड़ाई गन्ना रेट की होती है, इस रिपोर्ट में ये भी साफ किया गया है कि
राज्य सरकार अपना गन्ना मूल्य (एसएपी) घोषित नहीं करेगी, साथ में आरक्षण और
उसके साथ जुड़े फार्म सी का समझौता खत्म करने की सिफारिश और जो राज्य सरकार आरक्षण
करना चाहे तो कम-से-कम तीन साल या पांच साल का आरक्षण मिल को देना होगा, वहीं दूसरी तरफ मिल
मालिकों को लेवी शुगर, रिलीज आर्डर में केन्द्र सरकार का दखल खत्म करना, आयात-निर्यात पर
छूट एवं मिलों को हर कहीँ से लाभ देने का काम किया। उन्होंने बताया कि लेवी शुगर
के खत्म करने से मिलों को एक साल में 3000 करोड़ रुपए का फायदा होगा। उन्होंने कहा कि
हमें मिलों के पक्ष की सिफारिश से मतलब नहीं है। हमें तो अपने-आपको बचाना है। चीनी
मिल इन 20 सालों के
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों से दुखी हैं। वीएम सिंह ने कहा कि कानून का
तोड़ उनके पास नहीं था। इसलिए रंगराजन समिति ने डीकंट्रोल के नाम पर अपनी रिपोर्ट
में कानून खत्म करने की ही सिफारिश कर दी। ना रहेगा बांस, ना बजेगी बांसुरी
उनका कहना है कि किसान मिल मालिक से खरीद-फरोख्त की सीधी बात करें। इससे किसान को
लाभ होगा। राज्य सरकार एसएपी निर्धारित नहीं करेगी। मील मालिक जो भी रेट तय करें
पर उन्हें कम-से-कम केन्द्र सरकार का एफआरपी देना होगा जो की इस सीजन का 170 रुपए प्रति
क्विंटल है और साथ-साथ किसानों के बेवकूफ बनाने के लिए कहा गया कि 10।31 प्रतिशत रिकवरी पर
चीनी का 70 प्रतिशत
मूल्य गन्ना मूल्य में देना होगा। जहां तक इस रिपोर्ट का सवाल है यह रिपोर्ट पूरी
तरह खारिज नहीं हो सकती क्योंकि कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात और
आंध्र-प्रदेश में जहां आपसे एक एकड़ में दोगनी पैदावार होती है और आपकी 9 फीसदी रिकवरी के
बदले में उनके यहां 12 से 14 फीसदी रिकवरी होती है। इसलिए उनको इस रिपोर्ट से कोई नुकसान
नहीं है बल्कि 10।31 फीसदी चीनी रिकवरी
पर चीनी के 70 फीसदी दाम
मिलने की बात पर उनको तो 85 फीसदी चीनी का रेट मिलेगी जो कि अंदाज से चीनी का रेट 30-32 रुपए मानते हुए
गन्ने का रेट लगभग 250 रुपए मिलेगा। वहीं
उत्तर-भारत में नौ फीसदी रिकवरी पर चीनी का 50-52 फीसदी मिलेगा जो कि लगभग एफआरपी 170 से भी कम होगा। अब
आप देखिए बिना आरक्षण के, बिना राज्य सरकार के रेट के आपकी चीनी मीलें क्रशर या कोल्हू
की तरह खरीद करेंगी। जिससे किसान फिर 50 साल पीछे चले जाओगे, जहां कुछ साल पहले
आप अपनी पर्ची साहूकार के पास रखकर गन्ने के पैसे लेते थे। जहां तक रेट का सवाल है
जितनी लंबी लाइन लग जाएगी, लाइन देखते ही मील मालिक कोल्हू एवं क्रशर जैसे गन्ने का रेट
कम कर देंगे। भाईयों, आज जब कानून भी है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश
किसानों हक में भी है। तब भी सरकार किसानों का साथ नहीं देती। इसी साल किसानों ने
देखा कि जब 20 अपै्रल 2012 को सुप्रीम कोर्ट
ने मिल मालिकों को 3 किस्तों
में 2011-12 का गन्ना
मूल्य का बकाया 5400 करोड़ रुपए
देने का आदेश दिया और कहा कि किस्त टूटने पर देने का आदेश दिया और कहा कि किश्त
टूटने पर मिल मालिकों से रिकवरी की जाए परंतु वहीं दूसरी किस्त टूटने पर भी किसी
की रिकवरी नहीं की जाए। पर दूसरी किश्त टूटने पर भी किसी की रिकवरी नहीं की गई।
उन्होंने कहा कि 6 अगस्त 2012 के हाईकोर्ट के
आदेश के तहत किसानों की वसूली पर रोक तो लग गई पर भुगतान में 14 दिन की देरी के
बाद ब्याज आज तक नहीं मिला। सरकार उन आदेशों को लागू नहीं कराती। आज भी कुछ मिलों
ने गन्ना मूल्य नहीं दिया। कल जब कानून नहीं रहेगा। वीएम सिह ने किसानों को चेताया
कि हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट के आदेश लागू नहीं रहेंगे तो किसान अपने गन्ने का मूल्य
कैसे लोगे। मिल मालिक किसानों को पटकनी पर पटकनी लगाते रहेंगे। उन्होंने कहा कि
कोई राजनीतिक लोग आपको बहकाने की बात करें कि भाई राज्य सरकार इस रिपोर्ट को नहीं
मानेगी और कोई फर्क नहीं पड़ेगा। ये गलत है। राज्य सरकार की रिपोर्ट मानने या नहीं
मानने से फर्क नहीं पड़ता क्योंकि ये रिपोर्ट दिल्ली द्वारा गठित की गई समिति की
है। उन्होंने कहा कि कंट्रोल आर्डर 1966 में संसद से संशोधन की बात कही है और
संशोधन होने पर यह राज्य सरकार पर बाध्य होगी।
उन्होंने किसानों
से किसानों से कहा कि मैंने जिंदगी में कोशिश तो की थी कि आपके हक दिलाने के लिए
ऐसे प्रयास कर जाऊं कि यहां ना रहने पर
आपको, आपकी आने
वाली पीढ़ियों को उसका लाभ मिले। मुझे उम्मीद नहीं थी कि सरकार हमें बर्बाद करने
वाली रिपोर्ट लागू करेगी पर 12 अक्टूबर को केन्द्र के खाद्य मंत्री ने इस
रिपोर्ट को स्वीकार करने की बात कही, तब मेरे पैरों से जैसे जमीन खिसक गई हो।
उन्होंने कहा कि इसके बाद ऐसा लगा कि अब किसानों को खुद दिल्ली आकर अपनी बात स्वंय
कहनी पड़ेगी। इस सम्बंध में लिखित में 2 नवंबर 2012 को प्रधानमंत्री
को चिट्ठी लिखकर मांग की गयी थी कि उत्तर-भारत को इस रिपोर्ट से अलग कर दिया जाए
और हमारी पुरानी व्यवस्था को ही रखा जाए। और हमारी पुरानी व्यवस्था में थोड़ी और
मजबूती लाएं जिससे हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के आदेश लागू हो सकें। साथ में
प्रधानमंत्री को पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा कि था कि अगर
हमारी व्यवस्था बहाल नहीं होती तो हम सब मिलकर 4 दिसंबर को दिल्ली
कूच करेंगे। संसद का घेराव करेंग। सरकार एवं संसद के सदस्यों को बताएंगे कि यह रिपोर्ट
लागू करने पर हमारे साथ कितना बड़ा अन्याय और विश्वासघात होगा। आपको अपना कानून
सुरक्षित रखना होगा। क्योंकि जब कानून ही नहीं रहेगा तो आपकी लड़ाई कैसे लड़ पाएंगे।
और हकीकत में क्रशर एवं कोल्हू की तरह मील मालिक अपनी मोनोपोली का फायदा उठाएंगे
एवं हमें बर्बादी के रास्ते पर ले जाएंगे। उन्होंने किसानों से अपील करते हुए कहा
कि आगामी 4 दिसंबर को
हर काम छोड़कर एक दिन अपनी हाजिरी दिल्ली में लगाएं, जिससे आपकी आवाज उन
बहरे कानों तक पहुंच पाए और आपकी एवं आपकी अगली पीढ़ी की जिंदगी सुरक्षित हो सके।
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