मंगलवार, 22 जनवरी 2013

स्वास्थ्य सुविधाओं पर राष्ट्रपति चिंतित पर सरकारें मौन


स्वास्थ्य सुविधाओं पर राष्ट्रपति चिंतित पर सरकारें मौन

(लिमटी खरे)

राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने देश की स्वास्थ्य सुविधाओं पर पूर्व महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल की तरह ही चिंता जताई किन्तु सरकारों के कान में आज भी इस मसले पर जूं नहीं रेंगी है। वर्तमान परिवेश में आम आदमी चिकित्सा की मद में जितना व्यय कर रहा है वह उसकी कमर तोड़ने के लिए पर्याप्त कहा जा सकता है। दवाओं और चिकित्सकों विहीन सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भीड़ दिन ब दिन कम होती जा रही है वहीं दूसरी ओर उन्ही सरकारी चिकित्सकों के आवासों या क्लीनिक्स पर मरीजों की भीड़ संभाले नहीं संभल रही है। आजादी के साढ़े छः दशक बीतने के बाद भी नीम हकीमों या मंहगे चिकित्सकों के भरोसे बैठे हैं आम हिन्दुस्तानी। अगर यह कहा जाए कि चिकित्सकों पर सरकारों का जोर नहीं तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। आम आदमी अब तो अपने स्वास्थ्य पर खर्च करने के लिए ही कमाता दिख रहा है।

भारत गणराज्य के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने देश की स्वास्थ्य सेवाओं की जर जर हालत पर चिंता जताई है। यद्यपि प्रणव मुखर्जी ने कहा है कि सरकार ने इससे निपटने के लिए अगले दस साल में स्वास्थ्य बजट में भारी वृद्धि करने का फैसला लिया है। राष्ट्रपति उद्योग संगठन एसोचौम के स्वास्थ्य सेवाओं पर आयोजित एक सम्मेलन में बोल रहे थे। उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक स्टडी का हवाला देते हुए कहा कि हमारे देश की महज 35 प्रतिशत आबादी की ही जरूरी दवाओं और हेल्थकेयर सुविधाओं तक पहुंच है। राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार ने 12वीं योजना में हेल्थ पर होने वाले खर्च को जीडीपी का 2.5 प्रतिशत करने का फैसला किया है। 11वीं योजना में यह 1.2 फीसदी था। 13वीं योजना में इसे तीन प्रतिशत तक ले जाने की योजना है।
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का सोचना सही है कि अगर देश का स्वास्थ्य बजट बढ़ जाए तो हालात सुधर सकते हैं। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का लंबा संसदीय जीवन रहा है, सरकारी व्यवस्थाओं को वे भली भांति जानते हैं। वस्तुतः अगर वर्तमान बजट का ही सही उपयोग हो जाए तो देश से बीमारी का सफाया संभव है। एनआरएचएम में दिया जाने जाने वाला अनाप शनाप आवंटन ही सही उपयोग में आ जाए तो काफी हद तक स्थिति पर नियंत्रण पाया जा सकता है। एनआरएचएम में एक एक राज्यों में अरबों रूपए के घोटालों की गूंज हो रही है।
देश की पहली महिला महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल की उनके कार्यकाल में बारंबार की जाने वाली यह चिंता बेमानी नहीं है कि देश में चिकित्सकों की भारी कमी है। प्रतिभा पाटिल ने अपने कार्यकाल में पश्चिमी दिल्ली में भारतीय चिकित्सा परिषद की प्लैटिनम जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में उनकी यह पीड़ा सामने उभरकर सामने आई। इससे पहले अक्टूबर में भी महामहिम ने असम के तेजपुर में आर्युविज्ञान संस्थान की आधारशिला रखते हुए इसी मसले पर अपनी चिंता जाहिर की थी।
बकौल प्रतिभा पाटिल देश के 271 मेडिकल कालेज से प्रतिवर्ष 31 हजार चिकित्सक उपाधि ग्रहण करते हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल में इस बात को भी रेखांकित किया कि इसके बावजूद भारत में आज भी छह लाख डाक्टरों व 10 लाख नर्सों र्की कमी है। राष्ट्रपति ने कहा कि वैसे तो ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में डाक्टरों के अभाव वाले राज्यों में 60 मेडिकल कालेज व 225 नर्रि्सग कालेज खोलने का लक्ष्य है, लेकिन केवल संख्या बढ़ा देने से ही काम नहीं चलेगा।
सरकारी आंकड़े चाहे जो कहें पर ज़मीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। मजरे, टोले, गांव या छोटे शहरों में रहने वाला आम भारतीय आज भी झोला छाप डॉक्टरों के भरोसे पर ही है। इसके लिए पूरी तरह जिम्मेदार हैं सरकारें। कितने आश्चर्य की बात है कि आजादी के साठ साल बीत जाने के बाद भी सरकारों द्वारा चिकित्सकों को ग्रामों की ओर भेजने के मार्ग प्रशस्त नहीं किए जा सके हैं। वर्तमान में बतौर महामहिम प्रतिभा पाटिल के द्वारा व्यक्त की गई चिंता को केंद्र सरकार ने कितनी संजीदगी से लिया इस बात का आंदाजा देश में चिकित्सा के वर्तमान ढांचे को देखकर लगाया जा सकता है।
भारत को आजाद हुए बासठ साल से अधिक बीत चुके हैं। मानव जीवन में अगर कोई बासठ बसंत देख ले तो उसे उमरदराज माना जाता है। सरकार भी बासठ साल की आयु में अपने कर्तव्य से सरकारी कर्मचारी को सेवानिवृत कर देती है। राजनीति में यह नहीं होता है। राजनीति में 45 से 65 की उमर तक जवान ही माना जाता है। इन बासठ सालों देश पर हुकूमत करने वाली सरकारें अपनी ही रियाया को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करवाने में नाकाम रहीं हैं, इससे ज्यादा और शर्म की बात हिन्दुस्तान के लिए क्या हो सकती है।
अपने निहित स्वार्थों की बलिवेदी पर भारत के हितों को अब तक कुर्बान ही किया गया है, यहां के जनसेवकों ने। देश में सरकारी तौर पर आर्युविज्ञान (मेडिकल), आयुर्वेदिक, दंत, और होम्योपैथिक कालेज का संचालन किया जाता रहा है। अब तो निजी क्षेत्र की इसमें भागीदारी हो चुकी है। भारत में न जाने कितने चिकित्सक हर साल इन संस्थाओं से पढकर बाहर निकलते हैं। इन चिकित्सकों को जब दाखिला दिलाया जाता है तो सबसे पहले दिन इन्हें एक सौगंध खिलाई जाती है, जिसमें हर हाल में बीमार की सेवा का कौल दिलाया जाता है। विडम्बना ही कही जाएगी कि पढाई पूरी करने के साथ ही इन चिकित्सकों की यह कसम हवा में उड जाती है।
अपने अपने मतदाताओं को लुभाने के लिए सत्ता में बैठे जनप्रतिनिधि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी), प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी), उप स्वास्थ्य केंद्र या सिटी डिस्पेंसरी तो स्वीकृत करा लेते हैं किन्तु इन अस्पतालों में कितना अमला वास्तव में कार्यरत है, इस बारे में देखने सुनने की फरसत किसी को भी नहीं है। सत्ता के मद में चूर ये जनप्रतिनिधि चुनावो की घोषणा के साथ ही एक बार फिर सक्रिय हो मतदाताओं को लुभावने वादों से पाट देते हैं।
नेशनल रूलर हेल्थ मिशन के प्रतिवेदन पर अगर नज़र डाली जाए तो देश की साठ फीसदी से अधिक पीएचसी में सर्जन नहीं हैं, इतना ही नहीं पचास फीसदी जगह महिला चिकित्सक गायब हैं, तो 55 फीसदी जगह बाल रोग विशेषज्ञ। क्या ये भयावह आंकड़े सरकार की तंत्रा तोड़ने के लिए नाकाफी नहीं हैं।
दिया तले अंधेरा की कहावत देश की सबसे बड़ी पंचायत में साफ हो जाती है। यूं तो सभी दल आरक्षण का झुनझुना बजाकर वोट बैंक तगड़ा करने की फिराक में रहते हैं किन्तु सांसदों के इलाज के लिए तैनात चिकित्सा कर्मियों में महज 22 फीसदी चिकित्सक ही कोटे के हैं। हाल ही में सूचना के अधिकार में निकाली गई जानकारी से यह कड़वा सच सामने आया है। सांसदों के लिए तैनात 49 चिकित्सकों मेंसे नौ अनुसूचित जाति, एक एक अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के हैं।
बहरहाल प्रश्न यह उठता है कि आखिर चिकित्सा जैसे पवित्र पेशे के माध्यम से जनसेवा को उतारू युवा गांव की ओर रूख क्यों नहीं करना चाहते? संभवतः विलासिता के आदी हो चुके युवाआंे को गांव की धूल मिट्टी और अभाव का जीवन रास नहीं आता होगा इसी के चलते वे गांव नहीं जाना चाहते। इसके साथ ही साथ शहरों में सरकारी चिकित्सकों के आवासों पर लगने वाली मरीजों की भीड़ भी उन्हें आकर्षित करती होगी। हर जिला मुख्यालय का नामी सरकारी डॉक्टर किसी न किसी अध्यनरत चिकित्सक का पायोनियरभी होता होगा।
वैसे इस मामले में सरकार को दोष देना इसलिए उचित होगा क्योंकि सरकार द्वारा चिकित्सकों को गांव भेजने के लिए उपजाउ माहौल भी तैयार नहीं किया गया है। अस्सी के दशक में सुनील दत्त अभिनीत ‘‘दर्द का रिश्ता‘‘ चलचित्र का जिकर यहां लाजिमी होगा। उस चलचित्र में विदेश में अपनी सेवाएं दे रहे चिकित्सक का किरदार निभा रहे सुनील दत्त ने अपनी ही बेटी के इलाज के दौरान हुई तकलीफों से प्रेरणा लेकर हिन्दुस्तान में गांवों में जाकर सेवा करने का संकल्प लिया था।
वह निश्चित रूप से चलचित्र था, पर उससे प्रेरणा लेकर न जाने कितने नौजवानों ने गांवों की ओर रूख किया था। कहने का तात्पर्य महज इतना है कि सरकार को चाहिए कि फूहड़ और समाज को बरबादी के रास्ते पर ले जाने वाले चलचित्रों के स्थान र प्रेरणास्पद चलचित्रों के निर्माण को प्रोत्साहन देने की आज महती जरूरत है।
देखा जाए तो भारत को भी अन्य देशों की भांति चिकित्सा की डिग्री के उपरांत पंजीयन के पहले यह शर्त रख देना चाहिए कि सुदूर ग्रामीण अंचलों और पहुंच विहीन क्षेत्रों में कम से कम छः माह, विकासखण्ड, तहसील और जिला मुख्यालय से निर्धारित दूरी में एक साल तक सेवाएं देने वाले चिकित्सकों का सशर्त पंजीयन किया जाएगा कि वे अपनी सेवाओं का प्रमाणपत्र जब जमा करेंगे तब उनका स्थाई पंजीयन किया जाएगा।
इसके अलावा अगर केंद्र सरकर विदेशों की तरह स्वास्थ्य कर लगा दे तो सारी समस्या का निदान ही हो जाएगा। सरकार को चाहिए कि न्यूनतम सालाना शुल्क पर साधारण और कुछ अधिक शुल्क पर असाध्य बीमारियों का इलाज एकदम मुफ्त मुहैया करवाए। गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले इस कर से मुक्त रखे जाएं। अगर एसा हुआ तो चिकित्सकों की जमी जकडी दुकानों पर ताले लगने में देर नहीं लगेगी। मोटी कमाई करने वाले मेडिकल स्टोर और दवा कंपनियों के मेडिकल रिपरजेंटेटिव भी अपना का समेटने लग जाएंगे। जब अस्पताल में ही इलाज और दवाएं मुफत में मिलेंगी तो भला कोई निजी चिकित्सकों के पास क्यों जाएगा। इससे निजी तौर पर चिकित्सा पूरी तरह प्रतिबंधित हो जाएगी। डिग्री धारी चिकित्सक सरकारी तौर पर ही इलाज करने को बाध्य होंगे।
आजाद हिन्दुस्तान में चिकित्सा सुविधाओं का आलम यह है कि देश में 45 करोड से भी अधिक लोगों को अने निवास के इर्द गिर्द सवास्थ्य सुविधाएं मुहैया नहीं हो पाती हैं। देश में औसतन 10 हजार लोगों के लिए अस्पतालों में सिर्फ सात बिस्तर मौजूद हैं, जिसका औसत विश्व में 40 है। भारत में हर साल तकरीबन 41 हजार चिकित्सकों की आवश्यक्ता है, जबकि देश में उपलब्धता महज 17 हजार ही है।
सौ टके का सवाल यह है कि अस्सी के दशक के उपरांत चिकित्सकों का ग्रामीण अंचलों से मोह क्यों भंग हुआ है। इसका कारण साफ है कि तेज रफ्तार से भागती जिंदगी में भारत के युवाओं को आधुनिकता की हवा लग गई है। कहने को भारत की आत्मा गांव में बसती है मगर कोई भी स्नातक या स्नातकोत्तर चिकित्सक गांव की ओर रूख इसलिए नहीं करना चाहता है, क्योंकि गांव में साफ सुथरा जीवन, बिजली, पेयजल, शौचालय, शिक्षा, खेलकूद, मनोरंजन आदि के साधानों का जबर्दस्त टोटा है। भारत सरकार के गांव के विकास के दावों की हकीकत देश के किसी भी आम गांव में जाकर बेहतर समझी और देखी जा सकती है।
इक्कीसवीं सदी में एक बार फिर केंद्र में काबिज हुई कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार द्वारा अपने न्यूनतम साझा कार्यक्रम में ग्रामीण स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान केंद्रित करने की शुरूआत की थी। 2005 में इसी के अंतर्गत राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन को भी आरंभ किया गया था। अपने अंदर वास्तव में ग्रामीणों को स्वस्थ्य रखने की अनेक योजनाओं को अंगीकार किए इस मिशन की असफलता के पीछे यह कारण है कि इसे बिना पूरी तैयारी किए हुए ही आनन फानन में लागू कर दिया गया।
दरअसल इस मिशन की सफलता चिकित्सकों पर ही टिकी थी, जो ग्रामीण अंचलों में सेवाएं देने को तैयार हों। अमूमन देश के युवा चिकित्सक बडे और नामी अस्पतालों में काम करके अनुभव और शोहरत कमाना चाहते हैं, फिर वे अपना निजी काम आरंभ कर नोट छापने की मशीन लगा लेते हैं। अस्पतालों में मिलने वाले मिक्सचर (अस्सी के दशक तक दवाएं अस्पताल से ही मुफ्त मिला करतीं थीं, जिसमें पीने के लिए मिलने वाली दवा को मिक्सचर के आम नाम से ही पुकारा जाता था) में राजनीति के तडके ने जायका इस कदर बिगाडा कि योग्य चिकित्सकों ने सरकारी अस्पतालों को बाय बाय कहना आरंभ कर दिया।
वर्तमान में देश भर में दवा कंपनियों ने चिकित्सकों के साथ सांठगांठ कर आम जनता की जेब पर सीधा डाका डाला जा रहा है। लुभावने पैकेज के चलते चिकित्सकों की कलम भी उन्हीं दवाओं की सिफारिश करती नजर आती है, जिसमें उन्हें दवा कंपनी से प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर लाभ मिल रहा हो। चिकित्सकों को पिन टू प्लेन अर्थात हर जरूरी चीज को मुहैया करवा रहीं हैं, दवा कंपनियां। सरकार की रोक के बाद भी दवा कंपनियों और चिकित्सकों की मिलीभगत के साथ मरीज लुटने को मजबूर है। (साई फीचर्स)

मामा के कायर भांजे, भांजियां!


लाजपत ने लूट लिया जनसंपर्क ------------------40

मामा के कायर भांजे, भांजियां!

(आकाश कुमार)

नई दिल्ली (साई)। क्या मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राज्य में उनके भांजे भांजियां कायर हैं! क्या मध्य प्रदेश राज्य के बच्चे बच्चियों ने वीरता का कोई काम नहीं किया है? अगर किया है तो उन्हें इस साल गणतंत्र दिवस पर वीरता पुरूस्कार के लिए नामांकित क्यों नहीं किया गया है? इस तरह की बातें देश की राजधानी दिल्ली की हाड गला देने वाली फिजां में जमकर उछल रही हैं।
देश भर में शिवराज सिंह चौहान को मामा के नाम से जाना जाता है। शिवराज सिंह चौहान ने अपने राज्य के बच्चे बच्चियों के लिए ना जाने कितनी कल्याणकारी योजनाएं चलाई हैं, पर इस बार गणतंत्र दिवस पर सम्मानित होने वाले वीर बच्चों में मध्य प्रदेश के एक भी बच्चे का शामिल ना हो पाना निश्चित तौर पर शिवराज सिंह चौहान के लिए निराशाजनक ही माना जा रहा है।
राजधानी दिल्ली के मंहगे व्यवसायिक इलाके कनाट सर्कस में स्थित एम्पोरिया बिल्डिंग स्थित मध्य प्रदेश के आवासीय आयुक्त कार्यालय उच्च पदस्थ सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि इस बार भी मध्य प्रदेश की ना तो झांकी ही प्रस्तुत की जा रही है और ना ही किसी भी बच्चे को वीरता के लिए नामांकित ही किया गया है।
दिल्ली में पदस्थ भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी ने नाम उजागर ना करने की शर्त पर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान कहा कि यह चुनावी साल है। इस साल तो सारी ताकत झोंक दी जानी चाहिए थी। अमूमन एसा होता है कि सरकार के नुमाईंदे अपने निजाम को खुश करने के लिए तरह तरह की रणनीतियां तैयार करते हैं, पर इस बार तो मध्य प्रदेश के अफसरों द्वारा इस दिशा में दिलचस्पी ना लिया जाना आश्चर्यजनक ही है।
उन्होंने कहा कि अगर भाजपा चाहती तो मुख्यमंत्री की लाड़ली लक्ष्मी एवं तीर्थ दर्शन जैसी सुपर डुपर हिट योजनाओं की झांकी इस बार राजपथ पर अवश्य ही दिखाई दे जाती। झांकी के संबंध में आयुक्त जनसंपर्क के बयान पर उन्होंने कहा कि हो सकता है अगले साल किसी ओर की सरकार मध्य प्रदेश में हो या यही रहे, किन्तु जो भी हो पता नहीं अगले साल इस पद पर कौन विराजमान होगा।
मध्य प्रदेश के अधिकारियों की नजरों में मध्य प्रदेश की ओर से केंद्र सरकार को प्रस्ताव ना भेजा जाना ही निंदनीय है। पिछली साल की तर्ज पर इस साल भी प्रस्ताव भेजे जाते और फिर वे स्वीकृत ना होते तो जुदा बात थी, किन्तु प्रस्ताव ही ना भेजकर हथियार डालना समझ से परे ही है। इसके साथ ही साथ इस साल जून जुलाई में तो चुनावी तैयारी आरंभ हो जाएगी फिर 2014 मेें झांकी दिखती है या नहीं इस बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है क्योंकि इस समय चुनावी तैयारियों को अंजाम दिया जाएगा ना कि झांकी के विषयों पर चर्चा होगी। लोग तो यह कहने से भी नहीं चूक रहे हैं कि मामा शिवराज सिंह चौहान के भांजे भांजियां क्या कायर हो गए हैं जो कि उन्हें वीरता पुरूस्कार के लिए भेजा तक नहीं जा रहा है।

बलात्कार विरोध प्रदर्शन के साथ हैं सीजेआई!


बलात्कार विरोध प्रदर्शन के साथ हैं सीजेआई!

इंडिया गेट का प्रदर्शन हाईजेक हुआ

(मणिका सोनल)

नई दिल्ली (साई)। देश दुनिया को दहला देने वाले पिछले 16 दिसंबर को दिल्ली में सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद देश भर में हुए विरोध प्रदर्शनों को पूरी तरह सही और बिल्कुल जरूरी करार देते हुए देश के मुख्य न्यायाधीश अलतमस कबीर ने कहा, कि काश वे भी वहां होते, लेकिन वे रह नहीं सकते थे।
जस्टिस कबीर ने कहा, कि 16 दिसंबर को जो भी हुआ वह नया नहीं था। लेकिन लोगों का ध्यान इस ओर गया, जिससे विरोध का जबर्दस्त स्वर फूटा और जैसा कि मैंने पहले भी कहा है, यह विरोध बिल्कुल जायज था। अपने गुस्से के इजहार के लिए जो प्रदर्शन शुरू हुआ वह बिल्कुल सही था और जरूरी भी था।
घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा विषय पर आयोजित छठे राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए जस्टिस कबीर ने कहा, कि वे उन सभी को सलाम करते हैं जिन्होंने प्रदर्शनों में हिस्सा लिया। काश मैं भी वहां होता, लेकिन मैं रह नहीं सकता था। हालांकि, मुख्य न्यायाधीश ने इस बात के प्रति आगाह किया, कि हम ऐसे लोगों या समूहों को नहीं झेल सकते जो अपने हित के लिए ऐसी स्थिति का फायदा उठाते हैं। उन्होंने कहा, इंडिया गेट पर प्रदर्शन के दौरान मेरे भतीजे को भी पीटा गया। बाद में प्रदर्शन को हाइजैक कर लिया गया।

सरकार का दोहरा चेहरा: सड़क को ना, रेल को हां!


सरकार का दोहरा चेहरा: सड़क को ना, रेल को हां!

(महेश)

नई दिल्ली (साई)। एनएचएआई के ठेकेदार इस बात को लेकर परेशान हैं कि उन्हें वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से सड़क बनाने के लिए आवश्यक मंजूरी नहीं मिल पा रही है। इसी के चलते वे काम को बीच में ही छोड़ रहे हैं, वहीं भारतीय रेल का दावा है कि उसकी परियोजनाओं के लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय का पूरा पूरा सहयोग मिल रहा है।
उल्लेखनीय है कि देश के विभिन्न हिस्सों में माल जल्दी और बिना किसी बाधा के पहुंचाने के लिए रेल मंत्रालय डीएफसी के दो गलियारे बना रहा है। इनमें एक पूर्वी हिस्से को जोडे़गा और दूसरा पश्चिमी हिस्से को। अभी तक जो प्रस्ताव है इसके मुताबिक डीएफसी की योजना 2016 तक शुरू होनी है।
रेलवे बोर्ड के चेयरमैन विनय मित्तल ने डीएफसी की प्रगति को लेकर हुई समीक्षा बैठक में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की खुलकर तारीफ की। उन्होंने बताया कि डीएफसी के लिए नौ राज्यों के 61 जिलों में करीब 8 हजार एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया है। अब तक कुल जमीन का 82 प्रतिशत अधिग्रहण कर लिया गया है। शेष 18 प्रतिशत की भी प्रक्रिया चल रही है। जल्दी ही इसे पूरा कर लिया जाएगा।
मित्तल ने रेल मंत्री को बताया कि डीएफसी के लिए दो अभ्यारण्यों और एक पक्षी अभ्यारण्य से अनुमति मिल गई है। इस काम में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के साथ-साथ महाराष्ट्र एवं गुजरात की सरकारों ने भी बहुत मदद की है। रेलवे बोर्ड के चेयरमैन ने उम्मीद जताई कि आने वाले दिनों में करीब एक हजार किलोमीटर लाइन का ठेका दे दिया जाएगा। 

. . . तो क्या पीएम को ठोंक दूं: ममता


. . . तो क्या पीएम को ठोंक दूं: ममता

(प्रतुल बनर्जी)

कोलकता (साई)। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की केंद्र सरकार के प्रति नाराजगी परवान चढ़ने लगी है। अनेक मामलों में मुंह की खाने के उपरांत अब ममता ने केंद्र सरकार पर छींटाकशी आरंभ कर दी है। उन्होंने यहां तक कह दिया है कि क्या अब वे जाकर मनमोहन सिंह को ठोंक दें!
राज्य में कनिंग में ममता की केंद्र के प्रति नाराजगी साफ तौर पर दिखी। उन्होंने कहा कि वह उर्वरक मूल्य वृद्धि के खिलाफ विरोध दर्ज कराने के लिए कई बार प्रधानमंत्री से मिलीं, लेकिन नतीजा सिफर रहा। बनर्जी ने कहा, कि उन्होंने प्रधानमंत्री से 10 बार मुलाकात की। मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं कर सकती। क्या मैं जाऊं और उन्हें पीटूं। तब आप कहेंगे कि मैं गुंडा बन गई हूं। मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता। लेकिन मुझे रास्ता पता है। हमें फर्टिलाइजर फैक्टरी लगानी होगी। इसमें तीन या चार साल लगेंगे।

साई मंदिर का भूमि पूजन 31 को


साई मंदिर का भूमि पूजन 31 को

(अनेशा वर्मा)

पलवल (साई)। ओम साई करुणाधाम समिति की यहां गीता भवन में संपन्न हुई बैठक में अगवानपुर स्थित साई विहार में नेशनल हाइवे पर प्रस्तावित ओम श्री साई करूणाधाम मंदिर व कम्युनिटी सेंटर का भूमिपूजन 31 जनवरी को करने का निर्णय लिया गया। बैठक की अध्यक्षता सोसायटी के प्रधान सतीश भूटानी ने की। संचालन सचिव अरविंद कालड़ा ने किया। बैठक में हाल ही में शिरडी होकर आए साई भक्तों के दल का स्वागत किया गया। इस अवसर पर उपाध्यक्ष शिव सेठी व अजय चोपड़ा, कैशियर मनोज छाबड़ा, सहकोषाध्यक्ष डा. राजकुमार अरोड़ा व मोहित कालड़ा, बलदेव छाबड़ा, योगेश दुआ, दिनेश अग्रवाल, सुमित कालड़ा, अरविंद चौधरी, नरेन्द्र अरोड़ा, जगदीश मेहता, मनीष रिकु चौधरी व तुषार ग्रोवर मुख्य रूप से मौजूद थे।

२५ जनवरी को मनाया जायेगा राष्ट्रीय मतदाता दिवस


२५ जनवरी को मनाया जायेगा राष्ट्रीय मतदाता दिवस

(एस.के.खरे)

सिवनी (साई)। भारत निर्वाचन आयोग के निर्देशानुसार आगामी २५ जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस (नेशनल वोटर डे) मनाया जायेगा। मतदाता दिवस में नव मतदाताओं को वोटर आई डी कार्ड वितरित कर उन्हें प्रोत्साहित किया जायेगा, ताकि वे अपने मताधिकार का प्रयोग कर लोकतंत्र को मजबूत कर सकें। पात्र मतदाता अपने मोहल्ले/वार्ड के समीपस्थ मतदान केन्द्र में प्रारूप-६ में अपनी समस्त जानकारियां भरकर दें और मतदाता सूची में अपना नाम जुडवा सकते हैं। २५ जनवरी को कलेक्ट्रेट में सभाकक्ष के सामने दोपहर १२ बजे से राष्ट्रीय मतदाता दिवस कार्यक्रम आयोजित किया जायेगा। यह जानकारी आज साप्ताहिक विभागीय समीक्षा बैठक में कलेक्टर अजीत कुमार ने दी। उन्होंने कहा कि जिले की प्रत्येक तहसील मुख्यालय में राष्ट्रीय मतदाता दिवस कार्यक्रम आयोजित होगा। इसकी जिम्मेदारी संबंधित एस.डी.एम. व तहसीलदार की होगी। निर्वाचन आयोग के निर्देशों के सिलसिले में महाविद्यालयों एवं स्कूलों में भाषण व निबंध प्रतियोगितायें भी आयोजित करने को कहा गया है। कलेक्टर ने बताया कि अबतक मतदाता सूची में ८.७४ लाख मतदाताओं के नाम जोडे जा चुके हैं। बैठक में अपर कलेक्टर आर.बी. प्रजापति, सीईओ. श्रीमती प्रियंका दास के अलावा अन्य सभी जिलाधिकारी उपस्थित थे।
बैठक में कलेक्टर अजीत कुमार ने २६ जनवरी को आयोजित होने वाले गणतंत्र दिवस के मुख्य समारोह की तैयारियों की भी समीक्षा की। उन्होंने कहा कि सभी अधिकारी प्रातरू ७.३० बजे तक अपने-अपने कार्यालयों में झंडा वंदन करने के पश्चात मुख्य समारोह में पहुंचे। कलेक्टर ने प्रभात फैरी, परेड, झाकियों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, पेयजल व्यवस्था आदि के संबंध में जानकारी लेकर संबंधित अधिकारियों को निर्देशित किया। गणतंत्र दिवस की फुल ड्रेस रिहर्सल २४ जनवरी को एवं २५ जनवरी की शाम अंतिम तैयारियों का अवलोकन किया जायेगा। उन्होंने अधिकारियों से कहा कि वे २६ जनवरी को अपने-अपने कार्यालयों में रौशनी करें। गणतंत्र दिवस की संध्या को महारानी लक्ष्मीबाई कन्या उ.मा.वि. के प्रांगण में शाम ६ बजे से होने वाले भारत पर्व कार्यक्रम के संबंध में कलेक्टर ने पर्व आयोजन के नोडल अधिकारियों, सहायक आयुक्त आदिवासी विकास एवं जिला शिक्षा अधिकारी को निर्देशित किया कि वे सुव्यवस्थित तरीके से कार्यक्रम संपन्न कराये। भारत पर्व के अवसर पर राश्य शासन के संस्कृति/स्वराज संचालनालय, भोपाल द्वारा सिवनी जिले में प्रस्तुति के लिये चयनित दो सांस्कृतिक दलों द्वारा देशभक्ति पर केन्द्रित प्रस्तुतियां दी जायेंगी। इस मौके पर जिला जनसंपर्क विभाग द्वारा छायाचित्र प्रदर्शनी भी लगाई जायेगी।

जन अभियान परिषद का जिला स्तरीय सम्मेलन 24 जनवरी को


जन अभियान परिषद का जिला स्तरीय सम्मेलन 24 जनवरी को

(राजीव सक्सेना)

ग्वालियर (साई)। जन अभियान परिषद द्वारा 24 जनवरी को स्वैच्छिक संगठनों का एक दिवसीय जिला स्तरीय सम्मेलन बुलाया गया है। जन अभियान परिषद के जिला समन्वयक सुशील बरूआ से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस दिन यह सम्मेलन प्रातः 11 बजे से मांढरे की माता के समीप स्थित डॉ. भगवत सहाय सभागार में रखा गया है। 

भारतपर्व का आयोजन 26 जनवरी को


भारतपर्व का आयोजन 26 जनवरी को

(सुरेंद्र जायस्वाल)

जबलपुर (साई)। मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत ने बताया कि कलेक्टर जबलपुर द्वारा निर्देशित किया गया है कि 26 जनवरी 2013 गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारतपर्व के आयोजन की समस्त कार्यवाही हेमंत कुमार सिंह जिला संस्थागत वित्त्घ् अधिकारी (अल्प बचत) कक्ष क्रमांक 74 कलेक्ट्रेट जबलपुर द्वारा की जावेगी। 

किरनापुर में ग्रामीण युवा केन्द्र द्वारा ब्यूटी पार्लर प्रशिक्षण प्रारंभ


किरनापुर में ग्रामीण युवा केन्द्र द्वारा ब्यूटी पार्लर प्रशिक्षण प्रारंभ

(महेंद्र देशमुख)

बालाघाट (साई)। म.प्र. शासन के खेल एवं युवा कल्याण विभाग एवं ग्रामीण युवा केन्द्र किरनापुर के तत्वावधान में गत वर्ष की तरह इस वर्ष भी ग्रामीण एवं नक्सल प्रभावित क्ष्ज्ञेत्र की बालिकाओं, महिलाओं एवं युवतियों के लिए रोजगार के अवसर प्रदान करने ब्यूटी पार्लर प्रशिक्षण का प्रारंभ किया गया है।
ग्रामीण युवा केन्द्र की समन्वयक कुमारी योगिता कावड़े ने बताया कि किरनापुर में 11 जनवरी से ब्यूटी पार्लर का प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया है। इस प्रशिक्षण में 20 से 30 प्रशिक्षणार्थी प्रथम सप्ताह में शामिल हुई है। यह प्रशिक्षण पूरी तरह से निरूशुल्क है। प्रशिक्षण के उपरान्त श्रेष्ठ प्रशिक्षणार्थियों को पुरूस्कार के साथ प्रमाण पत्र भी दिया जायेगा। यह प्रशिक्षण स्थानीय पार्लर प्रशिक्षक श्रीमती नीलिमा द्वारा दिया जा रहा है। किरनापुर क्षेत्र की अधिक सेअधिक युवतियों से इस रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण में शामिल होने की अपील की गई है।

गणतंत्र दिवस पर मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम में विशेष भोज


गणतंत्र दिवस पर मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम में विशेष भोज

(संजय कौशल)

नरसिंहपुर (साई)। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के निर्देशानुसार 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम के तहत शासकीय व शासन से अनुदान प्राप्त प्राथमिक और माध्यमिक शालाओं में स्कूली विद्यार्थियों को विशेष भोज दिया जायेगा। विशेष भोज में सब्जी, पूरी, खीर अथवा सब्जी, पूरी, हलुवा दिया जायेगा तथा इसके साथ लड्डू का वितरण किया जायेगा। जिला कलेक्टर संजीव सिंह तथा जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी दीपक सक्सेना समेत गणतंत्र दिवस के मुख्य समारोह के मुख्य अतिथि भी शाला में जाकर विशेष भोज में विद्यार्थियों के साथ भोजन ग्रहण करेंगे।
इस सिलसिले में जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने जिला व विकासखण्ड स्तर के अधिकारियों का रोस्टर बनाकर कम से कम एक शाला में आयोजित विशेष भोज में विद्यार्थियों के साथ शामिल होने के निर्देश दिये हैं। अनुविभागीय राजस्व अधिकारियों, जिला शिक्षा अधिकारी, जिला परियोजना समन्वयक, जनपद पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों, विकासखण्ड शिक्षा अधिकारियों, विकासखण्ड स्रोत समन्वयकों, जन शिक्षा केन्द्र प्रभारियों को तत्संबंध में आवश्यक कार्रवाई सुनिश्चित करने और विशेष भोज कार्यक्रम की मॉनीटरिंग करने के निर्देश दिये गये हैं।
सक्सेना ने संबंधित अधिकारियों को निर्देशित किया है कि वे यह सुनिश्चित करें कि इस विशेष भोज के दौरान विद्यार्थियों को दिये जाने वाला भोजन खासतौर पर सब्जी आदि पूर्णतः शुद्ध व ताजी हो। इस के वितरण में किसी प्रकार की शिकायत न हो।

बर्धा बाजार में आये ग्रामीणों ने जानी शासकीय योजनाएं


बर्धा बाजार में आये ग्रामीणों ने जानी शासकीय योजनाएं

(के.पूनम)

दमोह (साई)। शासन की सामाजिक सरोकार की योजनाओं, विकास कार्यों और हितग्राही मूलक योजनाओं की जानकारी ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाने के मद्देनजर जनसम्पर्क विभाग द्वारा बीते दिवस हटा जनपद पंचायत के ग्राम बर्धा में लगे बाजार स्थल पर सूचना शिविर का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विकास प्रदर्शनी में प्रदेश और दमोह जिले के विकास को प्रदर्शित करने वाले छायाचित्रों सहित जानकारी प्रदर्शित की गई। शिविर में शासन की जन कल्याणकारी योजनाओं से संबंधित प्रचार सामग्री का भी वितरण किया गया। बाजार में अपनी रोजमर्रा की जरूरत की सामग्री लेने आये ग्रामीणजन शासन की योजनाओं से अवगत हुए साथ ही योजनाओं संबंधी प्रचार सामग्री उपलब्ध कराने पर ग्रामीणजन ने खुशी जाहिर की।

सिलाई एवं कढ़ाई प्रशिक्षण का साक्षात्कार 30 को


सिलाई एवं कढ़ाई प्रशिक्षण का साक्षात्कार 30 को

(सिद्धार्थ वर्मा)

टीकमगढ़ (साई)। जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला एवं बाल विकास विभाग ने बताया है कि महिला उम्मीदवारों/आवेदनकर्ता जिन्होंने शासकीय महिला सिलाई प्रशिक्षण वर्ष 2013 मे भर्ती होने हेतु आवेदन-पत्र प्रस्तुत किया है, 30 जनवरी 2013 को दोपहर 12 बजे शासकीय महिला सिलाई कढ़ाई प्रशिक्षण केन्द्र, दीक्षित मुहल्ला टीकमगढ़ में उपस्थित हो तथा अपने साथ समस्त शैक्षणिक योग्यता, अर्हता संबंधी पत्र जिसमें अंकसूची तथा जन्मतिथि अंकित हो, मूल प्रमाण पत्र अवलोकन हेतु प्रस्तुत करें। उन्होंने बताया कि ये प्रमाण-पत्र समिति के सदस्यों द्वारा साक्षात्कार के समय देखे जावेंगे। उपस्थित न होने की दशा में संबंधित महिला उम्मीदवार जिम्मेदार रहेगी।

ओबामा फिर से बने दुनिया के चौधरी


ओबामा फिर से बने दुनिया के चौधरी

(यशवंत)

वाशिंगटन (साई)। बराक ओबामा ने वाशिंगटन में हजारों लोगों की मौजूदगी में दूसरी बार अमरीकी राष्ट्रपति पद की शपथ ली। मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स ने ओबामा को अमरीका के ४४वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलायी। शपथ लेने के बाद अपने भाषण में ओबामा ने अपने अगले चार साल की नीतियों को सामने रखा। उन्होंने अमरीकी स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने के लिए सामूहिक रूप से कार्य करने का आह्घ्वान किया।
ओबामा ने कहा कि अमरीका दुनिया के हर कोने में अपना सहयोग जारी रखेगा तथा एशिया से लेकर अफ्रीका तक लोकतांत्रिक व्यवस्था का समर्थन करेगा। उन्होंने कहा कि हम दूसरे देशों के साथ शांतिपूर्ण तरीके से मतभेद खत्म करने के सभी प्रयास करेंगे। हम एशिया से अफ्रीका तक और अमरीका से मध्य पूर्व के देशों तक लोकतत्र का समर्थन करते हैं, क्योंकि इसमें हमारे हित हैं और हमारी अन्तरात्मा उन सभी का समर्थन करने को कहती है, जो आजादी की इच्छा रखते हैं।
ओबामा ने अपने भाषण में कहा कि हमें एकजुट होकर चुनौतियों का सामना करना है। अमेरिका में सब बराबर और आजाद हैं। हमारी आजादी ईश्वर की देन है और इसे बनाए रखना हमारी जिम्घ्मेदारी है। अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बनकर चार साल पहले नया इतिहास रचने वाले बराक ओबामा ने आज सामारोहपूर्वक शपथ लेने के बाद व्हाइट हाउस में अपनी दूसरी पारी की शुरुआत की। हालांकि उनकी दूसरी पारी के शुरुआत में बजट संबंधी मुद्दा, बंदूक नियंत्रण एवं आव्रजन जैसे मुद्दों से निपटने की चुनौतियां मौजूद हैं।
हाड कंपा देने वाली सर्दी में हजारों लोगों की मौजूदगी के बीच ओबामा ने ऐतिहासिक सफेद गुंबद वाली कैपिटल बिल्डिंग में दूसरी बार शपथ ली। 51 वर्षीय ओबामा को चार साल के कार्यकाल के लिए उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश जान राबर्ट्स ने लगातार दूसरे दिन शपथ दिलायी।
ओबामा के शपथ ग्रहण के अवसर पर उनका परिवार, सांसद, मित्र, कर्मचारी और हजारों लोग उपस्थित थे। संवैधानिक अनिवार्यताओं के कारण ओबामा को औपचारिक रुप से कल शपथ दिलायी गयी क्योंकि उनका दूसरा कार्यकाल 20 जनवरी की दोपहर से शुरु होना था।
चूंकि कल रविवार था और सारे संघीय कार्यालय बंद थे लिहाजा उनका समारोहपूर्वक शपथ ग्रहण आज आयोजित किया गया। अमेरिका के इतिहास में सातवीं बार ऐसा हुआ है कि राष्ट्रपति को दूसरी बार शपथ लेनी पडी।
ओबामा ने जब पहले कार्यकाल के लिए शपथ ली थी तो उस समय आर्थिक संकट और युद्ध का खतरा मंडरा रहा था। ये खतरे आज काफी हद तक खत्म हो चुके हैं लेकिन दूसरे कार्यकाल में शपथग्रहण समारोह के दौरान उत्साह का वह माहौल नहीं था जो पहले देखने को मिला था। ओबामा के पिछले कार्यकाल में करीब 18 लाख लोग शपथग्रहण समारोह देखने आये थे जबकि आज इनकी संख्या करीब छह लाख रही। वर्ष 2008 में व्हाइट हाउस में उनके ऐतिहासिक प्रवेश के साथ लोगों में यह उम्मीद और आकांक्षा जगी थी कि एक ऐसा नया शासन आयेगा जो हाल के दशकों में विकसित दलगत भेदभाव की खाई को पाट देगा। राष्ट्रपति और उनकी पत्नी मिशेल ओबामा ने आज अपने दिन की शुरुआत व्हाइट हाउस के समीप सेंट जान एपिस्कोपल चर्च में जाकर प्रार्थना करने के साथ की। प्रार्थना के समय उपराष्ट्रपति जोसेफ बाइडन और उनकी पत्नी जिल बाइडेन भी उनके साथ थीं। ओबामा ने अपने दूसरे कार्यकाल की शपथ दो ऐतिहासिक बाइबिलों पर ली। ये ऐतिहासिक बाइबिल अब्राहम लिंकन और मार्टिन लूथर किंग की हैं। शपथ लेते समय ओबामा आत्मविश्वास से लबरेज दिख रहे थे। उन्होंने मुस्कुराते हुए अपने प्रशंसकों का हाथ हिलाकर अभिवादन किया। सीनेटर चाल्घर््स ई शूमर ने ओबामा और प्रधान न्यायाधीश को शपथ ग्रहण समारोह के लिए आमंत्रित करते हुए कहा, ‘‘यह हमारे महान लोकतंत्र का जश्न है।’’ शूमर शपथ ग्रहण समारोह संबंधित संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष हैं। ओबामा ने दोनों ऐतिहासिक बाइबिलों पर हाथ रखकर शपथ ली। इन बाइबिलों को मिशेल ने पकड रखा था। उस समय उनके समीप उनकी पुत्रियां साशा और मालिया खडी थीं। ओबामा ने कहा, ‘‘मैं बराक हुसैन ओबामा सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूं कि मैं अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर ईमानदारी से काम करुंगा तथा अमेरिका के संविधान की रक्षा, सुरक्षा और उसे अक्षुण्ण रखने के लिए अपनी सर्वाेत्तम क्षमता लगाउंगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘प्रभु, मेरी मदद करना।’’ इसके बाद प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘बधाई हो श्रीमान राष्ट्रपति।’’ शपथ ग्रहण समारोह के दौरान बाइबिल के उपयोग की कोई संवैधानिक अनिवार्यता नहीं है लेकिन राष्ट्रपति पारंपरिक तौर पर इसे उपयोग में लाते हैं। राष्ट्रपति इसके लिए अपनी अथवा ऐतिहासिक बाइबिल की प्रतियां चुनते हैं। वर्ष 2009 में ओबामा ने उस बाइबिल पर शपथ ली थी जिसका इस्तेमाल लिंकन ने 1891 में किया था। उपराष्ट्रपति जो बाइडेन को उच्चतम न्यायालय की सहयोगी न्यायाधीश सोनिया सोटोमेयर ने शपथ दिलायी थी। शपथ ग्रहण के बाद ओबामा ने अपने संबोधन में पूरे अमेरिका से कहा कि वह एक देश और एक जनता के रुप में एकजुट हों। ओबामा ने वहां एकत्र भीड से कहा, ‘‘अब हमें पहले की तुलना में कहीं अधिक, एकसाथ मिलकर काम करना होगा, एक देश और एक जनता की तरह।’’ उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल में जलवायु बदलाव को अपनी प्राथमिकताओं में से एक बनाने की प्रतिबद्धता जतायी। ओबामा ने कहा, ‘‘हम जलवायु बदलाव की चुनौती का जवाब देंगे। हम यह जानते हैं कि यदि हम ऐसा करने में नाकाम रहे तो यह हमारे बच्चों और आने वाली पीढ़ी के साथ विश्वासघात होगा।’’