मंगलवार, 26 जून 2012

दादा की धमकी से आईं सोनिया बैकफुट पर


दादा की धमकी से आईं सोनिया बैकफुट पर

राष्ट्रपति चुनाव में प्रणव ने खेला आर पार का खेल

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। स्व.राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के मसले में शूल बोने वाले कांग्रेस छोड़कर नाराज होकर गए प्रणव मुखर्जी को महामहिम राष्ट्रपति बनाने की पक्षधर कांग्रेस सुप्रीामो श्रीमति सोनिया गांधी बिल्कुल नहीं थीं, वो तो प्रणव मुखर्जी की त्यागपत्र की धमकी का असर था कि कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को बैकफुट पर आकर उन्हें सपोर्ट करना पड़ा। इस बात का खुलासा कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ यानी बतौर सांसद सोनिया गांधी को आवंटित सरकारी आवास के सूत्रों ने किया है।
जब त्रणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी से मुलाकात की और वे बाहर आईं और ममता ने मीडिया को कांग्रेस की दो पसंद के तौर पर प्रणव मुखर्जी और हामिद अंसारी का नाम बताया और इसकी जानकारी प्रणव दा को लगी तो वे हत्थे से उखड़ गए।
सूत्रों का कहना है कि दादा ने इस जानकारी की पुष्टि टीवी न्यूज चेनल पर ममता बनर्जी के बयान को देखकर की। इसके बाद दादा ने छूटते ही कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल के मोबाईल पर फोन दे मारा और अपनी तल्ख नाराजगी का इजहार कर दिया।
सूत्रों ने बताया कि राष्ट्रपति बनने का सपना मन में पाले प्रणव मुखर्जी इस बात से इतने खफा हुए कि उन्होंने असंसदीय भाषा में अंग्रेजी में अहमद पटेल को खासी फटकार लगाते हुए कहा कि आखिर सोनिया एसा कौन सा गेम प्लान कर रही है कि उसने मेरे नाम के अलावा हामिद का नाम आगे कर दिया? गुस्से से भरे प्रणव मुखर्जी ने पटेल से दो टूक शब्दों में यह कह डाला कि अगर उनके अलावा कांग्रेस की दूसरी पसंद हुई तो वे कांग्रेस से त्यागपत्र दे देगे। प्रणव ने समय सीमा में कार्यवाही करने की बात भी पटेल से कही।
डरे सहमे अहमद पटेल ने सारा किस्सा जस का तसकांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी को कह सुनाया। सोनिया गांधी ने अपने रणनीतिकारों से रायशुमारी कर डाली और अंततः सारे विमर्श के उपरांत उनके पास प्रणव मुखर्जी अकेले का नाम आगे बढ़ाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नज़र नहीं आया।
वित्त मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता प्रणव मुखर्जी जिन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनते ही समाजवादी कांग्रेस का गठन कर लिया था का नाम भले ही कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी ने मजबूरी में सामने लाया हो पर सूत्रों ने कहा कि सोनिया गांधी और प्रणव मुखर्जी के बीच अविश्वास साफ झलक रहा है। संभवतः यही कारण है कि राष्ट्रपति चुनाव से सोनिया गौर राहुल कटे कटे ही दिख रहे हैं।

खण्डित हो गई है राष्ट्रपति भवन की गरिमा!


खण्डित हो गई है राष्ट्रपति भवन की गरिमा!

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। भारत गणराज्य की स्थापना के उपरांत देश के प्रथम नागरिक के रायसीना हिल्स स्थित कार्यालय और निवास की गरिमा पिछले पांच सालों में तार तार होती नजर आ रही है। जिस मंतव्य को ध्यान में रख कांग्रेस ने प्रतिभा देवी सिंह पाटिल को देश का पहला नागरिक बनाया था उसे प्रतिभा पाटिल बरकरार नहीं रख पाईं हैं।
देश के पहले महामहिम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद से लेकर प्रतिभा देवी पाटिल तक के सफर में महामहिम आवास का अवमूल्य इससे पहले इतना अधिक कभी नहीं हुआ है। इसके पहले मीडिया में महामहिम आवास को लेकर टीका टिप्पणी को ज्यादा स्थान इसलिए नहीं मिल पाता था क्योंकि रायसीना हिल्स की इस भव्य कोठी में रहने वालों ने इसकी गरिमा को बरकरार रखने का प्रयास किया है।
इतिहास पर अगर नजर डाली जाए तो डॉ.राजेंद्र प्रसाद, सर्वपल्ली राधाकृष्णन एवं एपीजे अब्दुल कलाम को छोड़कर अधिकांश महामहिमों का कार्यकाल तारीफे काबिल नहीं कहा जा सकता है। फखरूद्दीन अली अहमद ने तो आपातकाल के आदेशों पर हस्ताक्षर कर इस सर्वोच्च पद की गरिमा को धूल में मिला दिया।
देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर इंदिरा गांधी की बदौलत कांग्रेस के उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी को पराजित कर पहुंचे बी.बी.गिरी का भी कोई उल्लेखनीय कार्यकाल नहीं कहा जा सकता है। पंजाब के लोगों को प्रसन्न करने के लिए कांग्रेस ने ज्ञानी जेल सिंह को रायसीना हिल्स भेजा।
देश के महामहिम राष्ट्रपति की शपथ लेने के उपरांत ज्ञानी जेल सिंह ने विवादित बयान देकर सभी को चौंका दिया। जेल सिंह ने बयान दिया था कि अगर इंदिरा गांधी कहंे तो वे फर्श पर झाडू लगाने को भी तैयार हैं। वैंकटरमण और के.आर.नारायणन क बारे में कहा जाता है कि दोनों ने इस कार्यालय की परंपराओं से इतर ब्रिटिश हुकूमत के महाराजा जैसा कार्यकाल बिताया।
देश को 2007 में मिली पहली महिला महामहिम राष्ट्रपति के बारे में माना जाता था कि वे देश को नई दिशा और दशा देने में सफल हो पाएंगी, वस्तुतः एसा हुआ नहीं। प्रतिभा देवी सिंह पाटिल का कार्यकाल मीडिया के नजरिए से काफी हद तक विवादित रहा है। उनके अनेक कदमों को मीडिया ने काफी बुरा भला कहा है। यहां तक कि सोशल नेटवर्किंग वेब साईट्स पर भी प्रतिभा पाटिल के बारे में किए जाने वाले कमेंट देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद की गरिमा को ही ठेस पहुंचा रहे हैं।

भूरिया शायद ही करें लखनादौन की ओर रूख


भूरिया शायद ही करें लखनादौन की ओर रूख

लखनादौन में कांग्रेस का वाकओवर‘!

(संजीव प्रताप सिंह)

सिवनी (साई)। केंद्रीय मंत्री कमल नाथ के प्रभाव वाले महाकौशल अंचल में मध्य प्रदेश विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर की कर्मभूमि सिवनी जिले में कांग्रेस ने भाजपा और एक निर्दलीय प्रत्याशी के सामने घुटने टेक दिए हैं। कांग्रेस की ओर से नगर पंचायत लखनादौन में अध्यक्ष पद के उम्मीदवार के द्वारा नाम वापसी के अंतिम दिन अपना पर्चा वापस लेने के नौ दिनों के उपरांत भी कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए किसका समर्थन करेगी इस पर से कुहासा हट नहीं सका है। उधर, अंडरवर्ल्ड डॉन की माशुका और फर्जी पासपोर्ट मामले की आरोपी मोनिका बेदी के लखनादौन में रोड़ शो करने की खबरें भी आ रही हैं।
ज्ञातव्य है कि आदिवासी बाहुल्य लखनादौन विधानसभा क्षेत्र जो कि आनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित है के तहसील मुख्यालय लखनादौन में होने वाले अध्यक्ष पद के चुनावों के लिए कांग्रेस की ओर से उतारे गए प्रत्याशी ने अपना नाम अंतिम दिन वापस ले लिया था, जिससे कांग्रेस की बुरी तरह किरकिरी हुई।
इस संबंध में कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष कांतिलाल भूरिया द्वारा समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को दूरभाष पर बताया गया था कि अध्यक्ष के नाम वापस लेने के बाद कांग्रेस द्वारा अपने डमी प्रत्याशी जिसे निर्दलीय के तौर पर उतारा गया था को अपना समर्थन दे दिया जाएगा। यहां उल्लेखनीय होगा कि लखनादौन में निर्दलीय के बतौर नूर बी और सुधा राय ही मैदान में हैं।
इस तरह की खबरों के आने के बाद कांग्रेस के कार्यकर्ता असमंजस मे हैं कि आखिर वह कौन है जिसे कांग्रेस ने अपना डमी बनाकर मैदान में उतारा था। इसका कारण यह है कि सुधा राय और नूर बी दोनों ही के परिजनों द्वारा कांग्रेस को कई मोर्चों में संकट में डाला है। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के बीच चल रही चर्चाओं के अनुसार कांग्रेस यहां कौन सी रणनीति अपना रही है कि कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाने वाले को कांग्रेस द्वारा निर्दलीय के बतौर मैदान में उतारा गया!
गौरतलब होगा कि कांग्रेस के शिरोमणी रहे पूर्व प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी भी आदिवासी प्रेम के चलते लखनदौन में अपनी आमद दे चुके हैं। इतना ही नहीं छिंदवाड़ा की पूर्व कांग्रेस नेत्री और भाजपा की पूर्व सांसद सुश्री अनुसुईया उईके ने जब लखनादौन से भाजपा के प्रत्याशी के बतौर विधानसभा चुनाव लड़ा था तब तत्कालीन कांग्रेस प्रत्याशी रणधीर सिंह को जिताने के लिए केंद्रीय मंत्री कमल नाथ ने एड़ी चोटी एक कर दी थी।
इन सारे समीकरणों के बावजूद भी कांग्रेस द्वारा पता नहीं कौन सी रणनीति आदिवासी बाहुल्य लखनादौन तहसील की लखनादौन नगर पंचायत अध्यक्ष पद के लिए अपनाई जा रही है कि नाम वापसी के नौ दिन बीत जाने के बाद भी कांग्रेस ने अपने पत्ते इस बारे में नहीं खोले हैं कि उसका अध्यक्ष पद के लिए किसे समर्थन होगा?
स्थानीय निकाय चुनावों में एक ओर जहां मालवांचल में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांति लाल भूरिया द्वारा पूरी ताकत झोंकी जा रही है वहीं महाकौशल की इस प्रतिष्ठापूर्ण सीट पर भूरिया की अनदेखी समझ से ही परे नजर आ रही है। इस संबंध में जब उनसे संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उनके भोपाल स्थित आवास से पता चला कि वे स्थानीय निकाय चुनावों के मद्देनजर मालवा क्षेत्र के दौरे पर हैं साथ ही साथ उनका मोबाईल सदा की ही भांति स्विच ऑफ ही मिला। माना जा रहा है कि भूरिया इस संबंध में मीडिया से चर्चा करने से बच ही रहे हैं।
सिवनी जिले के लखनादौन नगर पंचायत चुनावों में अपनी बुरी तरह भद्द पिटवाने के बाद कांग्रेस में चल रही चर्चाओं को अगर सही माना जाए तो पंचायत चुनावों तक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कांति लाल भूरिया शायद ही लखनदौन की ओर रूख करें। माना जा रहा है कि कार्यकर्ताओं के आक्रोश और मीडिया के प्रश्नों से बचने के लिए वे अपना पूरा समय मालवा में ही बिताना चाह रहे हैं।
कहा तो यहां तक जा रहा है कि लखनादौन में कांग्रेस के आला नेता भी आकर प्रचार करने से बच रहे हैं। इसका कारण यह बताया जा रहा है कि अगर जनता अथवा कांग्रेस के कार्यकर्ता या मीडिया द्वारा यह पूछ लिया गया कि कांग्रेस ने आखिर यह चाल क्यों चली? तो इसका जवाब शायद ही किसी नेता के पास हो!

शिव के राज में मनमानी चरम पर


शिव के राज में मनमानी चरम पर 

बिना अनुमति चले गए चिकित्सकों की हड़ताल पर

(नन्द किशोर)

भोपाल (साई)। मध्य प्रदेश में सत्ता में चाहे कांग्रेस पार्टी रहे या भाजपा की सदा ही सरकारी नुमाईंदों की मनमानी चरम पर रही है। सोमवार को इंडियन मेडीकल एसोसिएशन के आव्हान पर आहूत बंद में भी मध्य प्रदेश में मनमानी देखने को मिली। उच्चाधिकारियों की पूर्वानुमति के बिना सरकारी चिकित्सकों ने अवकाश रखा, जो नियमानुसार अवैध ही है। चूंकि राजधानी में बैठे सरकारी नुमाईंदों की तिजोरियां एक के बाद एक धन उगल रही हैं इसलिए किसी का ध्यान मूल भूत सुविधाओं और नियम कायदों की तरफ ना होना स्वाभाविक ही है।
राजधानी भोपाल के अरेरा हिल्स स्थित सतपुड़ा भवन के स्वास्थ्य संचालनालय के सूत्रों का कहना है कि निजी चिकित्सक जब मर्जी तब अपनी दुकान बंद रखने के लिए स्वतंत्र हैं किन्तु जहां तक सरकारी तनख्वाह प्राप्त चिकित्सकों की बात है तो उन्हें हड़ताल पर जाने के पूर्व अपने इमीडिएट बॉस के माध्यम से संचालनालय से इसकी अनुमति की दरकार होती है। इसके पहले स्वास्थ्य कर्मचारियों द्वारा की गई हड़ताल में अनुमति चाही गई थी, किन्तु इस बार मद में चूर चिकित्सकों ने इसकी जरूरत ही नहीं समझी।
सूत्रों ने कहा कि चिकित्सक भला क्यों शासन से अनुमति लेने चले। जब मध्य प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष श्रीमति नीता पटेरिया के पति डॉ.एच.पी.पटेरिया, विधायक शशि ठाकुर के पति डॉ.वाय.एस.ठाकुर, भी चिकित्सक हैं। इसके अलावा अपने नाम के आगे डॉक्टर की उपाधि लगाने वालों की फेहरिस्त बड़ी ही लंबी है।
सांसद डॉ.वीरेंद्र कुमार, डॉ.विजय लक्ष्मी साधो, के अलावा विधायकों में डॉ.गोविंद सिंह, डॉ.नरोत्तम मिश्रा, डॉ. श्रीमति विनोद पंथी, डॉ.भानु राना, डॉ.राम कृष्ण कुसमरिया, डॉ.निशिथ पटेल, डॉ.प्रभुराम चौधरी, डॉ.बाबू लाल वर्मा, डॉ.कल्पना पारूलेकर अदि भी अपने नाम के आगे डॉक्टर संबोधन लगाते हैं।
सूत्रों ने कहा कि इस चिकित्सकों द्वारा अगर नियमानुसार हडताल पर जाने के पूर्व अपना आवेदन सक्षम अधिकारी के माध्यम से उच्चाधिकारी को नहीं भेजा है तो उन पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जा सकती है। अपनी खाल बचाने के लिए अगर अब इन चिकित्सकों द्वारा सक्षम अधिकारी को सिद्ध कर पुरानी तिथि में आवेदन भेजने की कार्यवाही की जाती है तो सक्षम अधिकारी भी नप सकते हैं।
चिकित्सा जैसे पेशे में अगर सरकारी तनख्वाह पाने वाले चिकित्सकों द्वारा निजी क्षेत्र के चिकित्सकों के मानिंद मनमर्जी से काम किया जाएगा तो मरीजों की तो जान पर बन आएगी। इस संबंध में विधानसभा के वर्षाकालीन सत्र में कांग्रेस या विपक्ष के विधायक अगर मौन साधे रहते हैं तो यही समझा जाएगा कि शिवराज सिंह चौहान के इस कुशासन को कांग्रेस और विपक्ष का मौन समर्थन हासिल है।

महिलाओं को मिले शौचालय का संवैधानिक अधिकार


महिलाओं को मिले शौचालय का संवैधानिक अधिकार

(सुधीर नायर)

तिरूअनंतपुरम (साई)। केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने शौचालय और सफाई के मामले में भारतीय मानसिकता की कड़ी आलोचना की है. और इस बात पर जोर दिया है कि इस समस्या को राजनीतिक और सामाजिक इच्छा शक्ति के बिना नहीं दूर किया जा सकता है. उनकी मान्यता है कि कम-से-कम महिलाओं के लिए शौचालय को संवैधानिक अधिकार बना देना चाहिए.
भारत देश में कुछ लोग इस बात पर हंस सकते हैं जहाँ शौचालय और साफ- सफाई की संस्कृति न हो लेकिन जयराम रमेश की बात से तर्कतः असहमत होना असंभव है. उनका कहना है कि शौचालय हर महिला का मौलिक अधिकार है. उसकी निजता के लिए, उसकी गरिमा के लिए.....शौच को लेकर भारतीय मानसिकता की उन्होंने जमकर आलोचना की. उन्होंने कहा कि भारत में लोग खुले में शौच को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं. खुले में शौच करना भारतीय मानसिकता की खासियत है.
केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश तिरुवनंतपुरम में राज्य के मंत्रियों और अधिकारयों के साथ साफ-सफाई में केरल की प्रगति की समीक्षा बैठक ले रहे थे. उन्होंने कहा कि शौचालय की न बनाने और खुले में शौच करने की प्रवृत्ति क्या प्रगतिशील प्रदेश क्या बीमारू (बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान उत्तर प्रदेश) प्रदेश सभी में एक-सी है. शौचालय और सफाई के मामले में तो पूरा देश बीमारू है.
रमेश ने याद दिलाया कि खुले में फराकत करने वाले दुनिया के ६० प्रतिशत लोग भारत में रहते हैं. इस गंभीर समस्या, जो कई जान लेवा बीमारियों का कारण है, की सही समझदारी पेश करते हुए रमेश ने कहा कि शौचालय निर्माण कार्यक्रम सरकारी कार्यक्रम नहीं हो सकता है, यह एक राजनीतिक कार्यक्रम है. राजनीतिक वर्ग को सफाई के मुद्दे को प्राथमिकता के आधार पर लेना चाहिए. नहीं तो समस्या ज्यों- की -त्यों बनी रहेगी. यह शौचालय निर्माण कार्यक्रम नहीं है, बल्कि सामाजिक सुधार का कार्यक्रम है.
जयराम रमेश का यह बयान क्या पूरे राजनीतिक वर्ग को उस रस्ते पर ले जायेगा जिस पर कभी महात्मा गाँधी चलते थे और शौचालय और साफ-सफाई को अपने राजनीतिक कार्यक्रम के साथ-साथ रखते थे.

अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देने आरबीआई की योजना

अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देने आरबीआई की योजना

(प्रियंका श्रीवास्तव)

नई दिल्ली (साई)। रिजर्व बैंक ने भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देने के लिए अनेक उपायों की घोषणा की है। सरकारी प्रतिभूतियों में विदेशी संस्थागत निवेश की सीमा पांच अरब डॉलर बढ़ाई गई है। यह उपाय भारतीय प्रतिभूति तथा विनिमय बोर्ड, सेबी के साथ पंजीकृत विदेशी संस्थागत निवेशकों के लिए ही है। इस फैसले के साथ सरकारी प्रतिभूतियों में विदेशी संस्थागत निवेश की कुल सीमा बीस अरब डॉलर हो जायेगी। दस अरब की उप-सीमा पर शेष परिपक्वता की अवधि तीन वर्ष होगी।
इस बीच सरकारी प्रतिभूतियों में विदेशी एजेंसियों के निवेश को बढ़ावा देने के लिए रिजर्व बैंक ने लंबी अवधि के लिए निवेश करने वाली एजेंसियों जैसे सरकारी धन कोषों, बहुपक्षीय एजेंसियों, बीमा कोषों, पेंशन कोषों और विदेशी केन्द्रीय बैंकों को सेबी के साथ पंजीकरण कराने की अनुमति देने का फैसला किया है।
उधर, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने रिजर्व बैंक के नए उपायों पर कहा कि विदेशी निवेश को बढ़ावा देने और आर्थिक वृद्धि दर को फिर से पटरी पर लाने के लिए अभी ऐसे कदम उठाये जायेंगे। उन्होंने कहा कि सरकार यह देखेंगी कि बड़ी परियोजनाओं को लागू करने के लिए जल्द ही कई उपायों की घोषणा की जायेगी। उन्होंने आशा व्यक्त की कि स्थिति में सुधार के उपायों से बाजार में विश्वास बढ़ेगा।
विशेषज्ञों का मानना है रिजर्व बैंक के उपायों के सकारात्मक परिणाम हासिल होंगे। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी रंगराजन ने कहा कि इन उपायों से निवेश बढ़ने के साथ रुपये में गिरावट भी थमेगी। रंगराजन ने कहा कि निवेश बढ़ने में थोड़ा वक्त लग सकता है। ऐसे कई लोग हैं जो निवेश करना चाहते हैं और यदि वह बहुत थोड़ा निवेश भी करें, तो आंकड़ा काफी बड़ा हो जाएगा।