संगमा की शहादत पर
भाजपाई धर्मनिरपेक्षता का शिलान्यास
(विस्फोट डॉट काम)
नई दिल्ली (साई)।
पूर्व लोक सभा अध्यक्ष और मिजोरम के विधायक पी ए संगमा ने सबसे पहले अपनी जाति, आदिवासी, के तर्क पर
राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बने. कुछ लोग यह भी मान रहे हैं कि संगमा अपनी धार्मिक
पहचान, ईसाई, के आधार पर भी
फायदा उठाना चाहते हैं. ऐसे में जाति और धर्म की राजनीति करने वाली भारतीय जनता
पार्टी के आलावा कौन दूसरा दल होता जो उनकी उम्मीदवारी को लेकर सबसे ज्यादा
उत्साहित होता?
जाति और धर्म के
साथ-साथ अब उसने संगमा की क्षेत्रीय पहचान को भी इस्तेमाल करने की रणनीति बनाई है.
अरुणाचल की राजधानी ईटानगर में भाजपा के राष्ट्रीय सचिव तापिर गाओ ने एक संवाददाता
सम्मेलन के ज़रिये सिक्किम समेत पूर्वाेत्तर के सभी जनप्रतिनिधियों से यह अपील की
है कि वे संगमा का समर्थन करें. उनका कहना है कि श्मैं क्षेत्र के सभी राजनीतिक
दलों से यह अपील करता हूँ कि वे अपने राजनीतिक मतभेदों को भुलाकर सर्वसम्मति से
संगमा की उम्मीदवारी का समर्थन करें जो एक आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधित्व करते
हैं.श्
संगमा राष्ट्रपति
बनें, इससे किसी
को क्या आपत्ति हो सकती है. इस पद पर निर्वाचित होने का उनका उतना ही अधिकार है
जितना कि इस देश के किसी भी नागरिक या राजनेता को है. हाशिये और वंचित तबकों के
लोगों का देश के सर्वाेच्च पद पर बैठना शुभ ही है. लेकिन जिस तरह से वे और उनके
रणनीतिकार पहचान को इस्तेमाल कर रहे हैं उस पर आपत्ति होना स्वाभाविक है. तापिर
गाओ ने संगमा की और खूबियों का भी उल्लेख उनकी योग्यता को साबित करने के लिए किया
है लेकिन सबसे ज्यादा उन्होंने उनकी क्षेत्रीय और जातीय पहचान को ही रेखांकित करते
रहे. उनके पूरे बयान को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि उन्होंने संगमा के
पूर्वाेत्तर का आदिवासी होने को बार-बार दुहराया है.
अंत में उन्होंने
उस बात का जिक्र कर ही दिया जो भाजपा के मन में है. वह है संगमा भले ही चुनाव हार
जाएँ और राष्ट्रपति न बन पायें लेकिन भाजपा को इससे पूर्वाेत्तर में अपने को ज़माने
में फायदा ही मिलेगा. इसलिए गाओ ने संगमा की धार्मिक पहचान का इस्तेमाल करते हुए
यह भी कह दिया कि भाजपा के विरोधी हमें सांप्रदायिक पार्टी कहते हैं लेकिन हम लोग
सांप्रदायिक नहीं हैं. होते तो क्या सर्वाेच्च पद के लिए एक ईसाई को समर्थन देते.
जाहिर है कि संगमा की धर्मनिरपेक्ष छवि की शहादत के बदौलत भाजपा अपने को
धर्मनिरपेक्ष साबित करने का मौका नहीं जाने देना चाहती. अब यह सवाल संगमा से कोई
कैसे पूछे कि अपनी राजनीतिक साख की हत्या करके और भाजपा के हाथों का हथियार बनकर
क्या उन्हें तब भी कोई प्रायश्चित का बोध नहीं होगा जब वे चुनाव हार कर फिर वापस
गारो की पहाड़ियों में वापस चले जाएंगे.
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